30.6.08
वो रुला कर हंस न पाया देर तक, जब मैं रो कर मुस्कुराया देर तक
वो रुला कर हँस न पाया देर तक
जब मैं रो कर मुस्कुराया देर तक
भूलना चाहा कभी उसको अगर
और भी वो याद आया देर तक
ख़ुद ब ख़ुद बे-साख्ता मैं हंस पड़ा
उसने इस दर्जा रुलाया देर तक
भूखे बच्चों की तसल्ली के लिए
माँ ने फिर पानी पकाया देर तक
गुनगुनाता जा रहा था इक फक़ीर
धूप रहती है न छाया देर तक
कल अन्धेरी रात में मेरी तरह
एक जुगनू जगमगाया देर तक
-नवाज़ देवबंदी
साभारः संकलन
करुनाकर का एकाउंट नम्बर देने के लिए शुक्रिया
भाई यशवंत , मैंने करुणाकर के बारे पढ़ा। बहुत दुःख भी हुआ की एक होनहार किस तरह से मौत से लड़ रहा है। लेकिन मैं इस बात से खुश हूँ की भड़ास के साथियों ने किस तरह से करुनाकर के मदद के लिए पहल की है । मैं भी औरंगाबाद के अपने भाइयों के साथ मिलकर करुनाकर खाते मैं पैसे डालने का निशचय किया है । एक-दो दिन यह कम पूरा हों जाएगा। मैं डॉक्टर रुपेश्जी का भी बहुत ही शुक्रगुजार हूँ , जिन्होंने करुनाकर के लिए मानवता का परिचय दिया है। अमित भी साधुवाद के पात्र है। अब अगले पोस्ट में फिर बातें होंगी।
जय भड़ास
मंहगाई पर वानर प्रयास
कहानी एक जंगल की है, एक बन्दर की है। होता ऐसा है कि जंगल में सालों-साल से शेर का ही शासन चला आ रहा होता है। लोकतंत्र की खुशबु सूंघ कर जंगल के तमाम सरे जानवरों ने फ़ैसला किया कि अब जंगल में भी चुनाव होना चाहिए। हमारे बीच के किसी जानवर को भी राजा बनने का अवसर मिलना चाहिए। जानवरों के एक प्रतिनिधिमंडल ने शेर से मुलाकात की और अपनी बात उसके सामने रखी। शेर को बुरा तो लगा किंतु राजशाही के सामने सिर उठाते लोगों की ताकत देख कर वह भी चुनाव करवाने को तैयार हो गया।
जानवरों ने सर्वसम्मति से अपना एक नेता चुनने का मन बनाया जिससे शेर को आसानी से हराया जा सके। लम्बी मंत्रणा और बैठक के बाद तय किया गया कि बन्दर को चुनाव में प्रत्याशी बनाया जाए। (बन्दर की विशेषताओं की चर्चा यहाँ नहीं करते हैं) सरे जानवरों ने पूरी ताकत प्रचार में लगा दी। मतदान का दिन आया, सरे जानवरों ने मन से बन्दर के पक्ष में वोट डाले। परिणाम जैसा कि तय था राजा शेर हार गया।
बन्दर ने पूरे ताम-झाम के साथ सत्ता संभाली और जंगल पर शासन करने लगा। एक दिन शेर ने आम जानवर की तरह टहलते हुए अपने भोजन के लिए बकरी के बच्चे का शिकार कर डाला। बकरी बड़ी परेशां, उसको कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे, क्या न करे? बकरी हर कोशिश के बाद जब परेशान हो गई तो उसने अपने राजा बन्दर के सामने मदद की गुहार लगाई। जब बन्दर ने सुना कि बकरी के बच्चे को शेर उठा कर ले गया है तो उसके हाथ-पैर फूल गए। चूँकि वह सारे जानवरों के वोट से चुना गया था, सत्ता का मजा भी नहीं खोना चाहता था इस कारण मरता क्या न करता बकरी के बच्चे को शेर से छुडाने के लिए चल पड़ा।
बन्दर डर भी रहा था और बकरी को दिखाना भी चाहता था कि वह बिना डरे उसके बच्चे को शेर से छुडा लाएगा। बन्दर कभी इस पेड़ पर कभी उस पेड़ पर। कभी उछल कर एक पेड़ पर कभी उछल कर दुसरे पेड़ पर चढ़ जाता। कई घंटों तक बन्दर इधर से उधर पेड़ पर छलांग लगते हुए सारे जंगल में कूदता रहा। जहाँ शेर होता वहाँ नहीं जाकर यहाँ वहाँ उछलता रहा। नीचे बकरी अपने बच्चे की सुरक्षा को लेकर परेशान बन्दर के साथ-साथ दौड़ती रही। आख़िर जब उसने देखा कि बन्दर बस इधर से उधर छलांग ही लगा रहा है तो बकरी ने मिमियाते हुए कहा "राजा साहब, हमारे बच्चे को बचा लो, नहीं तो शेर उसको मार डालेगा।"
बन्दर डर भी रहा था और कुछ न कर पाने की झेंप भी थी, उसने बकरी पर रोब झाड़ते हुए डांट कर कहा- "क्यों बेकार में शोर कर रही हो? क्या मैं कोशिश नहीं कर रहा हूँ? तुम्हारे बच्चे को छुडाने के लिए सारे जंगल में कूदता घूम रहा हूँ। कोशिश में तो कोई कमी नहीं है, मौका मिलते ही छुडा लूंगा। तुमको लगता है जैसे ये आसान काम है।" बन्दर की डांट के बाद बकरी खामोश हो गई। चुपचाप अपने घर लौट कर अपने बन्दर राजा और अपने भाग्य को कोसने लगी। उधर बकरी का बच्चा मदद के आभाव में शेर के जबडों में फंसा दम तोड़ गया।
सरकार का यही रवैया है, जनता जबडों फंसी पिस रही है, सरकार, मंत्री इधर से उधर उछल-कूद कर रहे हैं। प्रयास कुछ भी नही हो रहे हैं और दिखाया ऐसे जा रहा है जैसे बहुत मेहनत हो रही है। आम जनता का बकरी के बच्चे सा हाल है।
उल्लू के बाद गधा
इब समझ में आया की आज कल यो घंने सुथरे सुधरे सपने कित सै आन लग रे सें !कल अपना उल्लू होना याद आया तो सपने में साक्षात् लक्ष्मी जी म्हारे पै रात भर भूतनी की तरीयाँ सवार रही !
क्यों की हम उल्लू तो , लक्ष्मी जी की बी। एम्. डब्लू. कार हैं ! और भाई पंडीत जी न्यूं समझ ल्यो की रात भर मजा आ गया और भाई जब सवार सुथरा हो तोसवारी कराने का भी आनंद आवै सै और लक्ष्मी जी तें सुथरी और कौन मिलेगी सो आप भड़ासियोंकी कृपा से बड्डे मौज के सपने आवन लाग रे सें ! जय हो भाई पंडीत जगदीश जी त्रिपाठी की ना आप उल्लू बनाते और ना हमें यो लक्ष्मी जी को अपने ऊपर सवारी कराने का परम सौभाग्य प्राप्त होता
क्यों जलन होने लग गई ना भाई आप भी अपनी लक्ष्मी जी को ज़रा इस सपने के बारें में बता कर तो देखो पर सावधान ! अपनी कोई गारंटी नही सै ! की वो किस तरियां रियकट करेगी ! क्यों की एक लक्ष्मी जी (घरवाली) के रहते , दूसरी को सवारी कराने मे किम्मै खतरा सा भी है ! अगर कही जूते चप्पल खा बैठे तो अपनी जिम्मेवारी नही सै !
और म्हारे ब्लॉग पर इसका डिसक्लेमर भी दे राख्या सै की म्हारी सलाह मानने के पहले विशेषज्ञ से सलाह कर लें ! और भाई त्रिपाठी जी आपने तो म्हारी फोटू कै साथ साथ यो पढ़ भी लिया होगा ! भाई म्हारा तो यो उल्लू बनना म्हारा जनम सार्थक कर गया बस यारों पूछो मत , ख़ुद करके देखा ल्यो ! इब थारा थम सोच समझ ल्यो और घर जाके,हिम्मत हो तो बात कर लियो !
और इब पं. सुरेश नीरव जी आज रात का तो आपने नशा ही उतारने का मन बना राख्या सै ! जो इन भडासी भाइयां नै गधा बतान लाग रे हो ! पर वो कहते हैं ना की " जहाँ ना पहुंचे रवि , वहा पहुंचे कवि" !आपका गधा पुराण पढ़ कर पहले तो लगा की पंडितजी से हमारी खुसी बर्दास्त नही हो रही दिखै , और आज सारी रात हम तो गधे बने रहेंगे और कुम्हार म्हारी ऎसी तैसी करता रहेगा ! सही में पहले तो हम आपकी सलाह पर चोंक उठे की भाई यो आदरणीय कवि महाराज की आँख्यां मे हमने कुणसा काजल पाड़ दिया, जोइतनी जल्दी दोस्ती से दुशमनी पर आ गए !
और हमको तुंरत क्रिशन चंदर जी के गधे की याद आगई इतना असाधारण , अति महत्व पूर्ण गधा ! ये गधा पंडीत नेहरू जी से भी मिल आया था ! और यार पंडितजी इस गधे ने आगे क्या क्या किया ? बस पूछो ही मत ॥ पर आप तो म्हारेसाथी और प्रेरणा श्रोत हो तो बताना ही पडेगा ! हम कोई इक्कले इक्कले ही थोड़े मजे लेंगे ! आगे ... आगे ... आगे.. यार कुछ लिखने में जी घबडा रहा है ! म्हारी लक्ष्मी आस पास ही मंडरा रही है ! कही पढ़ लिया तो सपने तो धरे रह जायेंगे और आज रात के डिनर के भी वांदे पड़ जायेंगे !पर क्या करूँ ? आप लोगों के प्रेम के सामने ये रिस्क भी उठा रहा हूँ ! अगर कल तक मेरी कोई ख़बर नही मिले तो समझ लियो के मैं लक्ष्मी जी के हत्थे चढ़ लिया !
हाँ तो, आगे इस गधे का एक लखपति सेठ ( आज कल करोड़पति ) की नखरे दार छोरी पर दिल आ गया ! और ये गधा भी बिचारा रोमांटिक मूड मे आ गया ! अब जो, भाई श्री यशवंतजी, श्री जगदीशजी त्रिपाठी जी,प. नीरव जी , डा. श्रीवास्तव जी (और मैं तो हूँ ही) जैसे बड़े गधे हैं , उनको तो आगे की कहानी मालूमहोगी और भाई जो थोड़े छोटे गधे हैं उनका मार्ग दर्शन अपने प. त्रिपाठी जी कर ही देंगे !अच्छा तो इब मैं तो जा रहां हूँ गधा बनने , आपकी इच्छा हो तो आप जानो !
करुणाकर का एकाउंट नम्बर देने के लिए shukriya
करुणाकर की इस तरह मदद करें
करुणाकर के मित्र और पत्रकार अमित द्विवेदी से बातचीत के बात जिस नतीजे पर हम लोग पहुंचे हैं, वो इस प्रकार है....
1- करुणाकर के इलाज के लिए डा. रूपेश ने जिम्मेदारी उठाई है। करूणाकर उनके यहां परिवार के किसी एक सदस्य के साथ मुबंई जाएगा और एक दिन रुकने के बाद दवा लेकर वापस आ जाएगा। डाक्टर रूपेश के मुताबिक वे तीन महीने की दवाएं देंगे और इसमें करुणाकर को ठीक हो जाना चाहिए। डा. रूपेश ने करुणाकर से कई राउंड में उसके मर्ज के बारे में बात की है।
2- करुणाकर को आर्थिक मदद की जरूरत है। इसके लिए जो लोग मदद देना चाहें, वो सीधे करुणाकर के बैंक एकाउंट में रकम डाल दें। करुणाकर अपना बैंक एकाउंट आराम से आपरेट कर रहा है, तो मदद भी उसे सीधे पहुंचाई जानी चाहिए ताकि किसी तरह का कोई विवाद, शक या गलतफहमी न पैदा हो। करुणाकर का बैंक एकाउंट इस प्रकार है...
Karunakar Mishra
State Bank of India
AC No. 30037096026
यहां यह भी उल्लेख करते चलें कि करुणाकर पहले से ही कर्ज में हैं। उन्होंने अपनी पढ़ाई के लिए एजुकेशन लोन ले रखा है। अगर साढ़े तीन सौ भड़ासियों ने सिर्फ एक एक हजार रुपये डाल दिए तो कल्पना करिए छोटे से प्रयास से कितनी ज्यादा रकम इकट्ठी हो जाएगी।
3-करुणाकर के पिता को जो फर्जी तरीके से फंसाकर जेल में बंद कराया गया है, उन्हें छुड़ाने के लिए मीडिया के साथी अपने अपने स्तर पर लगे हुए हैं। पर इसमें अब भी काफी कुछ करने की जरूरत है। लखनऊ के पत्रकार साथियों से अनुरोध है कि वे प्रदेश प्रशासन के संवेदनशील अफसरों और नेताओं को इस प्रकरण के बारे में जानकारी देकर करुणाकर के पिता ओंकार मिश्रा को गोंडा जेल से रिहा कराने का प्रयास करें ताकि पिता अपने पुत्र का देखभाल करने के साथ साथ उचित इलाज भी करा सकें।
4- करुणाकर का जन्मदिन 3 जुलाई है। 3 जुलाई को हम सभी साथी करुणाकर के नोएडा स्थित घर पर, अगर वो घर पर हुए तो, इकट्ठा होकर उनके जन्मदिन का केक काटेंगे। अगर आप न पहुंच सकें तो अपनी शुभकामनाएं भड़ास के माध्यम से करुणाकर तक पहुंचाएं।
5- इस प्रकरण के बारे में जिन लोगों को अभी तक न पता हो वो कृपया भड़ास पर पड़ी नीचे की पोस्टों को देखें, उसमें करुणाकर के बारे में तफसील से जिक्र किया गया है। करुणाकर के बारे में अन्य किसी जानकारी के लिए आप उनके मित्र अमित द्विवेदी से उनके मोबाइल नंबर 09911045467 पर संपर्क कर सकते हैं।
फिलहाल इतना ही....
जय भड़ास
यशवंत
आभार.
आभार
शशि भूषण द्विवेदी
उल्लू और Gadha
लुहार की.भाई जगदीश त्रिपाठी का हर्तिरिया देखकर एक शेर याद आगया।
मौत भी इस लिए गवारा है,क्योंकि मौत आता नही आती है।
आपके सुराप्रेम को देखकर तबीयत बाग़-बाग़ हो गई.आपकी शान मे एक शेर अर्ज़ है।
दारु की बात क्या कहू ,उसकी तो याद में,
अपना भी ध्यान मुझको कभी है कभी नही।
इसी तरह भड़ास निकलते रहिये और हमें भडासी टोनिक पिलाते रहिये।
जय भड़ास
Maqbool
करुनाकर की मदद को उठे सैकड़ों हाथ
अमित द्विवेदी
ढेंचू-ढेंचू प्रणाम।
उल्लू की बातचीत और गधे का गुस्सा ..गजल की शक्ल में यकीनन गधों को पसंद आएगा क्योंकि मुझे तक पसंद आ गया हैं। आपको मेरे ढेंचू-ढेंचू प्रणाम।
अरविंद पथिक
बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया
बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया
प्यार कहते हैं किसे है कौन से जादू का नाम
आंख करती है इशारे दिल का हो जाता है काम
बारहवें बच्चे से अपनी तेरहवीं करवा गया
बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया
गुस्ल करवाने को कांधे पर लिए जाते हैं लोग
ऐसे बूढे शेख को भी पांचवी शादी का योग
जाते-जाते एक अंधा मौलवी बतला गया
बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया
जबसे बस्ती में हमारे एक थाना है खुला
घूमता हर जेबकतरा दूध का होकर धुला
चोर थानेदार को फिर आईना दिखला गया
बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया
चांद पूनम का मुझे कल घर के पिछवाड़े मिला
मन के गुलदस्ते में मेरे फूल गूलर का खिला
ख्वाब टूटा जिस घड़ी दिन में अंधेरा छा गया
बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया।
पं. सुरेश नीरव
( त्रिपाठीजी ने मुझे उल्लू कहकर अपनी बिरादरी में शामिल करने की जो उदारता दिखलाई, मैं सपरिवार उनका आभारी हूं। पी.सी. रामपुरियाजी ने उल्लू महात्म बताकर हमें और अपने आप को जिस चतुराई से महिमामंडित किया है,यह काम भी कोई विद्वान उल्लू ही कर सकता है, कोई काठ का उल्लू नहीं। उल्लू की बातचीत सुनकर, गधे को गुस्सा आ गया। पेश है उसका बयान...गजल की शक्ल में। यकीनन गधों को पसंद आएगा और जिन्हें पसंद न आए समझिए वह सचमुच ही गधे हैं। उनके गधत्व को अग्रिम दुलत्ति-प्रणाम। )
29.6.08
हम उल्लू हैं
सौ सवाल कर गई....
कूडे के ढेर में।
सिसकती है जिंदगी
गरीबी के अंधेर में।
है गन्दगी के बीच वो
जर्जर से झोपडे।
कुत्तों की किस्मत से उनमें
रास्ते हैं बडे -बडे।
उन्ही में देखा उस तरुणी को
जो कोने में सिमटी थी।
रूप माधुर्य की मल्लिका
फटे कपडो में लिपटी थी ।
बाप बूढा था हुआ
बेटी के भार से ।
कमर भी झुकी थी
शायद दहेज़ के मार से ।
पिता ने दामाद
अपनी उम्र का ढूंढा था ।
पैसे ने उसके अरमानो को
पैरों तले रौंदा था ।
फ़िर देखा उस सनकी को
जो पति उसका भावी था ।
प्यार नही उसकी आंखों में
बस हवस ही उस पर हावी था ।
गिंजता था जैसे वो
बेजान खिलौना थी ।
केवल दौलत के कारण ही तो
वो देवी भी बौना थी ।
हामी भी न पूछा
और पल्लू थमा दिया ।
बेटी को इस बाप ने
आख़िर ये कैसी सज़ा दिया।
बेमेल झोपडे की
ये बेमेल विवाहें ।
देख दिल रोता रहे
और निकलती रही आहें।
पुकार कर उसे एकांत में बुलाया
फ़िर मैंने उसे कुछ यूँ समझाया
मन से इसे पति स्वीकार कर सकोगी?
यदि नही! तो फ़िर विरोध क्यों नही करती हो?
समाज के चोंचलों से आख़िर क्यों डरती हो?
सुन मेरी बातें कहीं खोने लगी वो
फ़िर आँचल में मुंह छुपा कर रोने लोगी वो
उठी जो नज़र तो कमाल कर गई
जवाब मैंने माँगा था
सौ सवाल कर गई....
ताऊ की पाती करुनाकर के नाम
हो रह्या सै ! और भई क्युं ना होगा ? यो परिवार ही बण्या सै, एक दुसरे के
सुख दुख: बाटनै के लिये । अरे भई , करुणाकर बेटे, चल मेरे यार उठ.. खडया हो ।
तेरे के हो सकै सै ? अरे तेरे लिये, यो तेरे सारे चाचे, ताऊ खडै हो लिये सैं ।
तेरी बात द्विवेदीजी नै सबको बताई । और भाई यशवंतजी खडे हो लिये थारै बापू को
बाइज़्ज़त बाहर ल्यावन खातिर और पं. जगदीशजी त्रिपाठी खडे हो लिये सैं तेरे
लिये भगवान से दुआ मांगण के लिये । बेटे न्युं समझ लिये कि यो पन्डत त्रिपाठी
घण्णा जिद्दी दिखै सै । यो भगवान की भी ऐसी तैसी कर देगा थारी खातर ।
और भाई सबसे बडे अपने डा. रुपेशजी श्रीवास्तव जो साक्षात भगवान धनवन्त्री सैं ।
ये खडै हो लिये, तेरे उपचार की खातर । इब भी तन्नैं कुछ कसर सै के ?
और भाई डागदर साब सही बोल रहे हैं एम्स आला के बारे में । यदि एम्स वालॊं की
चलती तो यो थारे इस ताऊ की ओपन हार्ट सर्जरी आज से २० साल पहले ही
कर चुके होते । और भाई यो बैठया थारा ताऊ जीता जागता आज भी । और केवल बैठया
ही कोनी बल्कि आज भी अच्छे अच्छों की ऐसी तैसी करता है ।
देख बेटे करूणाकर , मन मे काची (कमजोरी) तो तू ल्याना मत । मन नै राख
मजबूत और बाकी तेरे लिये यो पूरा का पूरा भडास परिवार खडया सै । हंस मेरे यार ..।
इब देख भई , तन्नैं हंसी नी आंदी ते यो डाक्दर और ताऊ की बातचीत सुण..
एक बार ताऊ के सर्दी जुकाम हो गया और ताऊ के जेब मे धेला कोडी (रुपिये पैसे)
किम्मै था कोनी । और ताऊ पहुंच लिया एक डाक्दर धोरै .....
ताउ- अरे डाक्दर साब .. म्हारे जुकाम हो राखी सै । कुछ इलाज बताओ ।
डाक्दर-- ताऊ न्युं करिये.. १५ रुपिये का दुध. और उसमै १० रुपिये के छूहारे (खारक)
डालके, सामने वाली चाय की दुकान पै, खूब ओटा के और ऊकडू बैठ कर और फ़ूंक
मार के पी लिये । तेरी जुकाम दूर हो ज्यागी ।
ताऊ-- तो भई ..डाक्दर ल्या २५ रुपिये देदे ।
डाक्दर-- तो ताऊ .. थारे धोरे (पास मे) के सै ?
ताऊ-- अरे डाक्दर साब , म्हारे धोरे तो केवल ऊकडू और फ़ूंक सै ...।
तो देख भाई करुणाकर , खडा हो जा, और हंस मेरे भाइ.. इन विपरीत परिस्थितियों
मे तो कोई महामानव ही हंस सकता है । और ऐसा मोका भी ईश्वर केवल
महा मानवों को ही देता है । और तू महा मानव ही तो है । अगर तू साधारण आदमी
होता तो, ये मोका तुझे थोडे ही मिलता ।
सारे भडासियों की दुआएं तेरे साथ हैं ।
28.6.08
उसके चेहरे पर आयी मुस्कराहट ने मुझे खुश कर दिया
धनयबाद
अमित द्विवेदी
ख़बर की सनसनी
अनुरोधः करूणाकर के लिए फंड बनाएं
जगदीश त्रिपाठी
यशवंत दादा,मौत का आतंक किसे दिखाया जा रहा है???????
जय जय भड़ास
हरे प्रकाश भाई
ये बात समझ में नहीं आई
कि,ये गुलाम अली का बाजा है
या कोई खूनी दरवाजा है
जिसे मालिक की बजाय
गुलाम ने नवाजा है
हरे भाई जब भी मस्त मूड में आता है
बाजा यही गाता है
चाहे हो सुबह,चाहे हो शाम
बाजा हूं मैं मुझे बजने से काम
चाहे हो राम या चाहे गुलाम
आपको मेरी सलाह है भली
भूल जाओ बाजा भूल जाओ अली
मुबारक हो इनको ही अंधी गली
सहायक तुम्हारे हैं बजरंग बली।
पं. सुरेश नीरव
ये रही करुणाकर की तस्वीर और उनकी आरकुट प्रोफाइल के डिटेल
smoking: no
drinking: no
living: alone, friends visit often
music: SOFT OLD SONGS
tv shows: INDIAN IDEAL PART TWO
movies: MUNNA BHAI MBBS;PARDESH;
ideal match: that is in pending
first thing you will notice about me: MY simplicity
my idea of a perfect first date: i do't like dating becoc i will do all these things after achieving all my goals
from my past relationships i learned: i do't have any relationship inspite of my parents and sister brothere and from these i am learning continously no endpoints
five things I cant live without: i can live without anything in the presense of air water and food
in my bedroom you will find: i have't here bedroom but i have my flat in that me and my freinds lives together so u find alot of things like MY PC,MY freinds laptop and as i am student then
करुणाकर मौत के मुहाने पे है, पिता जेल में हैं, कौन बचाएगा? कौन इन्हें मिलाएगा?
दूसरों के दुखों से आंख फिराकर खुद के लिए अपार सुख तलाशने वाले हम कथित सुसभ्य शहरियों के लिए अमित द्विवेदी की दो पोस्टें आइना दिखाने वाली हैं। इसी दिल्ली - नोएडा में रह रहा एक पत्रकार अमित द्विवेदी किस तरह एक दूसरे शख्स की पीड़ा के साथ खुद को जोड़े हुए है, उसके साथ कंधा से कंधा मिलाकर चल रहा है, लड़ रहा है.....वो जानने के बाद मैं खुद पर शर्मिंदा महसूस कर रहा हूं। कहने को हम सब इतने मीडिया वाले भड़ास पर हैं, ब्लागिंग में हैं, अखबार में हैं पर किसी जेनुइन की मदद करने का माद्दा नहीं जुटा पाते क्योंकि इसमें समय खर्च होगा, पैसा खर्च होगा और मिलेगा कुछ नहीं। हां, कुछ नहीं मिलेगा पर जो लोग जीने का मतलब और मकसद तलाशते हैं उन्हें बहुत कुछ मिलेगा। हम भड़ासियों के लिए यह मुद्दा जीवन मरण का मुद्दा है। कुछ उसी तरह जिस तरह कानपुर के भड़ासी साथी शशिकांत अवस्थी ने एक बिछुड़ी मां को उसके बेटों से मिलवाया और उसके घर पहुंचाया, उसी तरह हम करुणाकर नामक छात्र जो बस्ती के हरैया तहसील के गांव का रहने वाला है और गरीब घर का है लेकिन पढ़ने में बेहद प्रतिभावान है, अपनी जिंदगी के बचे हुए पांच छह महीने जियेगा और उसके बाद यह दुनिया छोड़कर चला जाएगा। दुख तो यह कि इन बचे हुए छह महीनों में डाक्टरों की सलाह के मताबिक उसे मां बाप के साथ रहने का सुख भी नहीं नसीब हो सकेगा क्योंकि उसके पिता को कुछ प्रभावशाली लोगों ने जेल भिजवा रखा है। उसके पिता को और खुद करुणाकर को यह नहीं पता कि करुणाकर की उम्र अब छह महीने है। यह बात केवल अमित द्विवेदी को पता है जो करुणाकर के साथ सिर्फ भावना और मनुष्यता के नाम पर जुडे़ हैं, उनका इलाज कराने में मदद कर रहे हैं, उन्हें आज सुबह एम्स के डाक्टर ने बताया कि इस करुणाकर की उम्र बस छह महीने बची है। इन दिनों को वो अपने परिजनों के संग गुजारे। कुछ नहीं हो सकता अब।
पूरा मामला इस तरह है---
उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के हरैया तहसील के एक गांव के गरीब ब्राह्मण ओंकार का बेटा करुणाकर पढ़ाई में इतना तेज था कि वो हर एक्जाम में ब्रिलियेंट पोजीशन पाता। उसकी रुचि और इच्छा को देखते हुए ओंकार ने बेटे को करुणाकर को पढ़ाने के लिए नोएडा के एक इंजीनियरिंग कालेज में दाखिला दिला दिया। इसके लिए खेत बेचकर पैसे दिए। बेटा जब यहां पढ़ने लगा तो उसे दर्द वगैरह हुआ और कई चरण की जांच पड़ताल के बाद उसके फेफड़े में कैंसर पाया गया। डाक्टरों ने कह दिया है कि वो अब जिंदा नहीं बचेगा, जीवन के जो कुछ दिन शेष हैं, उसे घर में परिजनों के साथ गुजारे।इस मामले में मैं हिंदी दुनिया के सभी साथियों, दोस्तों, दुश्मनों, परिचितों, अपिरिचितों से अपील करूंगा कि वे जो कुछ बन पड़े इस मामले में करने के लिए आगे आए।
उधर, उसके पिता ओंकार मिश्रा इन दिनों जेल में है। उन्होंने अपने गांव में किसी बुजुर्ग की खूब सेवा की और उस बुजुर्ग ने अपने नौ दस बीघे खेत ओंकार के नाम लिख दिए। बुजुर्ग की मृत्यु के बाद उनके कथित चाहने वालों ने पैसे के बल पर ओंकार को जल भिजवा दिया, यह आरोप लगाते हुए कि उन्होंने चार सौ बीसी करके जमीन अपने नाम लिखवा लिया है। इन दिनों वो गोंडा जेल में बंद हैं। पिता को नहीं पता कि उनका लाडला और तेज तर्रार बेटा अब कुछ दिनों का मेहमान है।
जैसे इस परिवार पर आफत का पहाड़ ही टूट पड़ा हो। पिता जेल में, बेटा मृत्यु शैय्या पर। घर में फूटी कौड़ी नहीं। मामला हाइकोर्ट में है। लखनऊ में करुणाकर के एक मामा रहते हैं सोहन तिवारी। वे ओंकार के मामले में पैरवी कर रहे हैं।
कुछ तथ्य यहां और दे रहा हूं....
-करुणाकर ने आरकुट पर अपनी प्रोफाइल भी बना रखी है। उसका लिंक अमित द्विवेदी मुझे मुहैया कराने वाले हैं।
-करुणाकर की तस्वीर और उनके गांव घर के डिटेल अमित द्विवेदी मुझे जल्द ही मेल करने वाले हैं।
-करुणाकर के मामा सोहन तिवारी जो लखनऊ में हैं और करुणाकर के पिता ओंकार के जेल में होने के मामले में छुड़ाने के लिए पैरवी कर रहे हैं, उनका मोबाइल नंबर मेरे पास अमित ने भिजवा दिया है।
-लखनऊ के एक बड़े अखबार के स्थानीय संपादक और एक नेशनल न्यूज चैनल के लखनऊ स्थित मुख्य रिपोर्टर को इस मामले के बारे में मैंने जानकारी दे दी है। दोनों लोगों ने इस मामले को मीडिया में फ्लैश कर इस पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने का वादा किया है। जल्द ही दोनों लोगों तक इस मामले के सारे डिटेल मेल के जरिए पहुंचा दूंगा।
अपील
-अगर आप मीडिया में हैं और इस पोजीशन में हैं कि गोंडा, बस्ती और इलाहाबाद में वकील, अफसर, नेता के जरिए दबाव बनाकर पिता ओंकार को जेल से रिहा करा सकें तो कृपया इस दिशा में पहल करें। मुझे रिंग कर सकते हैं -09999330099 पर। मुझसे डिटेल ले सकते हैं yashwantdelhi@gmail.com पर मेल करके।
-अगर आपके परिवार, दोस्त, जानकारी में कोई इलाहाबाद में ठीकठाक वकील हों, बस्ती और गोंडा में प्रशासनिक अफसर या नेता हों तो उन्हें इस मामले में पहल करने के लिए अनुरोध करें। यह सिर्फ और सिर्फ मनुष्यता का मामला है। घनघोर स्वार्थ के इस दौर में अगर हम थोड़ी सी पहल करके किसी का भला करा सकते हैं तो हमें करना चाहिए।
-अगर आपकी जानकारी में कोई डाक्टर ऐसा हो जो फेफड़े के कैंसर का इलाज करने में सक्षम हो तो ओंकार को दुबारा उन डाक्टरों से दिखवाने की पहल करें।
-प्लीज, करुणाकर हमारी आपकी तरह है। उसके पिता हमारे आपके पिता की तरह हैं। हम अलग अलग शरीर भले ही धारण किए हुए हैं पर हमारे होने की पहचान एक दूसरे को मदद देने, एक दूसरे को बेहतर बनाने से है, इसलिए इस मामले में आगे आइए।
- अगली पोस्ट में भड़ास पर करुणाकर की तस्वीर और उससे जुड़े सारे तथ्य डिटेल में डालूंगा। अमित द्विवेदी से अनुरोध है कि वे शीघ्र सारी जानकारियों को मेल करके मुझ तक पहुंचाएं।
(उपरोक्त जानकारियां अमित द्विवेदी से फोन पर हुई बातचीत पर आधारित है)
भड़ास के सदस्य और पत्रकार साथी अमित द्विवेदी ने इस मामले में जो दो पोस्टें भड़ास पर डाली हैं, उन्हें आप जरूर पढ़िए.... (यह ध्यान रखिए कि अमित अभी हफ्ते भर भी नहीं हुए, भड़ास के मेंबर बने हैं, और आनलाइन हिंदी लिखना सीख रहे हैं, इसके चलते गूगल ट्रांसलेशन वाले सिस्टम से लिखने में कई शब्द अशुद्ध रूप से हिंदी में अनुवादित हुए हैं, इसलिए इन शब्द व व्याकरण के दोषों को नजरअंदाज करके पढ़ें.....)
पहली पोस्ट
एक कहानी जो जारी है
दूसरी पोस्ट
उसकी जिंदगी अंतिम पड़ाव पर आ गई
जय भड़ास
यशवंत
और उसकी ज़िंदगी अन्तिम पडाव पर आ गयी
................ अभी भी बाकी है ये कहानी
अमित द्विवेदी
गुलाम अली और बाजा
आप कल के लिए?
तुक भिड़ाएंगे क्या आप कल के लिए
गीत गाएंगे क्या आप कल के लिए
नाश्ते में कनस्टर को खाली किया
भर के लाएंगे क्या आप कल के लिए
आज रेंके तो कर्फ्यू शहर में लगा
गुल खिलाएंगे क्या आप कल के लिए
आखिरी थी अठन्नी उड़ी इश्क में
अब बचाएंगे क्या आप कल के लिए
दिल में जो कुछ भी था हिनहिनाया अभी
बिलबिलाएंगे क्या आप कल के लिए
जितना मक्खन था सब मल दिया बॉस को
दुम हिलाएंगे क्या आप कल के लिए
पूरा वेतन महाजन के हत्थे चढ़ा
अब पकाएंगे क्या आप कल के लिए
इक पजामा था नीरवजी चोरी हुआ
अब सिलाएंगे क्या आप कल के लिए?
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६
बीहड़ सुधरे तो मिले दस्यु समस्या से छुटकारा
बीहड़ी इलाकों में दस्यु समस्या का कारण इस क्षेत्र में फैला बीहड़ है। भुमी कटाव से हर वर्ष 0.3 फीसदी उपजाऊ भूमि बीहड़ में तब्दील हो जाती है। इस बीहड़ का समतलीकरण करके और भूमि कटाव को रोककर जनता को दस्यु समस्या से छुटकारा दिलाया जा सकता है। शासन ने भूमि सुधार के अब तक जो भी प्रयास किए हैं वह नाकाफी रहे हैं और इनमें जनता की सीधी भागेदारी नहीं हुई है।शासन और प्रशासन के लिए इटावा, जालौन, कानपुर, हमीरपुर, आगरा, फीरोजाबाद, मध्यप्रदेश में भिंड और मुरैना के लगभग 10 लाख हेक्टेयर में फैले बीहड़ की भूमि को उपयोग में लाना एक चुनौती है वहीं इस क्षेत्र में पल रहे दुर्दांत डकैत, लोगों की जान माल के दुश्मन बने हुए हैं। इस बीहड़ भूमि में वृक्षारोपण के प्रयास तो किए गए हैं, लेकिन अभी भी कई ग्राम सभाओ के पास नंगी, सूखी, बंजर भूमि प़ड़ी हुई है।मैने खुद इटावा और औरैया जिले में इसके हालात देखे और जांचे हैं। यहां के भूमि संरक्षण विभाग के एक अध्ययन के मुताबिक बढ़ता बीहड़ हर साल लगभग 250 एकड़ उपजाऊ भूमि को निगल रहा है। हर सात साल में 2.3 फीसदी अच्छी भूमि कगारों के ढहने और कटने से बीहड़ में तब्दील होती जा रही है। जिला भूमि उपयोग समिति के आंकड़ों के मुताबिक इटावा और औरैया जनपद की कुल कार्यशील जनसंख्या में 79.9 फीसदी लोग कृषि कार्य में लगे हैं। 1995-96 में शुद्ध बोया गया क्षेत्रफल 1 लाख 42 हजार 605 हेक्टेयर था जो 1997-98 में घटकर 1 लाख 40 हजार 431 हेक्टेयर रह गया है।चंबल और यमुना के संगम पर फैले अगर पंचनद बीहड़ की बात करें तो यहां हालात और भी खराब हैं। यहां यमुना, चंबल, पहुंच,सिंध और क्वारी का मिलन होता है। इसके साथ ही इटावा, औरैया, जालौन और मध्यप्रदेश के भिंड जिले की सीमा यहां मिलती है। इन नदियों के प्रवाह क्षेत्र के लगभग 220 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में बीहड़ है। तेजी से बढ़ रहे बीहड़ी क्षेत्र से हर वर्ष उपजाऊ भूमि का 0.3 फीसदी भाग बेकार हो जा रहा है।
नाकारा प्रशासन
बेकार पड़ी भूमि को उपयोग में लाने के लिए जनता को प्रोत्साहित करने को जिलाधिकारी की अध्यक्षता में बनी भूमि उपयोग समिति भी इस दिशा में सार्थक काम नहीं कर सकी है। इस समिति का काम साल में एक दो बैठक करने तक ही सिमट गया है। भूमि संरक्षण विभाग के ही एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं कि कटान से हर साल 250 एकड़ की गति से बढ़ रहे बीहड़ की रफ्तार को कुछ गांवों में चकडैम बनाकर कुछ कम तो किया गया है लेकिन बीहड़ी क्षेत्रफल को देखते हुए यह कदम कुछ भी नहीं है।
क्या कर सकते hain
biihad को समतल करने का काम जनता के हाथ में दे दिया जाए। समतल की गई भूमि का पट्टा उसी व्यक्ति या किसान के नाम कर दिया जाए। एक व्यक्ति को एक तय जमीन ही समतल करने को दी जाए। इससे होगा यह कि भूमिहीनों को जहां जमीन मिल सकेगी वहीं खेती का रकबा भी बढेगा। इसके साथ ही बीहड़ साफ होने से डाकुओं की समस्या से ही निजात मिल सकेगी।
राज ठाकरे ने औरंगाबाद में भी पर्प्रन्तियता का सवाल उठाया
27.6.08
सदस्य संख्या पहुंची 355, जय हिंदी, जय ब्लागिंग, जय भड़ास
भड़ास संचालन समिति की तरफ से सभी नए भड़ासियों का दिल खोलकर स्वागत करता हूं और उनसे अनुरोध करता हूं कि अगर ब्लागिंग करने में किसी भी तरह की तकनीकी दिक्कत आ रही हो तो कृपया वे पोस्ट डालकर या किसी पोस्ट पर कमेंट करके पूछ सकते हैं।
कृपया कोई समाधान बताए?
मुझे खुद एक दिक्कत आ रही है जिसका समाधान दूसरे वरिष्ठ ब्लागर बताने की कृपा करें। भड़ास पर पोस्ट करते समय अक्सर पोस्ट तुरंत पब्लिश नहीं होता और इरर आ जाता है। बाद में दुबारा कोशिश करने पर वह पोस्ट दो या तीन बार भड़ास पर पब्लिश हो जाती है। ऐसा क्यों होता है, समझ में नहीं आता। इसी तरह कई बार पोस्ट करते समय सर्वर इरर शो करता है। क्या यह दिक्कतें भड़ास पर ज्यादा पोस्टें होने के चलते तो नहीं आ रही? कृपया इस बारे में कोई गाइड करे।
आभार के साथ
जय भड़ास
यशवंत
मीडिया फेलोशिप के लिए आवेदन करें
प्रेषक
नदीम अख्तर, रांची से
एक कहानी ऐसी भी जो जारी है
पर जो ऊपर वाला बैठा है उसकी परीक्षा इतनी कठिन है की शायद ही उसे कोई पास कर पाए। २००४ में करुनाकर नाम के उस होनहार बच्चे ने तुमेर के चलते अपना दाहिना पैर गंवा दिया। फिर भी उसने हिम्मत नही हरी। इतना कुछ होने के बवोजूद उसने अपने मुकाम को पाने के लिए मेहनत जारी रक्खी और नॉएडा के एक अच्छे से तकनीकी कॉलेज में उसे प्रवेश भी मिल गया। अच्छे मार्क्स से उसने अपने सारे सेमेस्टर क्लीअर किए बाद में जब उसका अन्तिम साल रहा गया तो इस होनहार बहादुर छात्र को सीने में दर्द उठा और खांसी आयी। जब उसने इसे डॉक्टर को दिखाया तो पता चला की उसके फेफडे में कैंसर हो गया है। उसका इलाज़ ठीक तरीके से नही हो सका क्युकी उसके पिता जी को गांव के कुछ लोगों ने जमीन के एक मामले में जेल भिजवा दिया। और इसमें सबसे बड़ी दिलचस्प बात ये है की छोटे से ज़मीन के मामले में पैसे वाली पार्टी ने पुलिस को घूस देकर उन्हें अन्दर करवाया है। जिसमे कोर्ट उन्हें जमानत देने में झिझक रही है जैसे वो बड़े क्रिमिनल हों कोई। करुनाकर ने एक दिन मुझे फ़ोन किया और उस समय जब वो बिल्कुल टूट चुका था। कोई उसके पास नही था। दिल्ली के करोल्बाघ के यूनानी मेडिकल कॉलेज में वो भरती हो चुका था। मैं उससे मिलने गया तो वो ऐसे टूट गया था जैसे उसके लिए दुनिया में कुछ रहा ही नही। पूरी दुनिया को देखने का सपना देखने वाला बहादुर लड़का बीमारी से हार गया था। यह ऐसा हॉस्पिटल था जहाँ उसका कोई इलाज़ नही था। घर का उसके साथ कोई नही था। क्यूंकि हर कोई उसके पापा की ज़मानत के लिए चक्कर लगा रहा है। जेब में उतने पैसे नही थे जिससे किसी अच्छे हॉस्पिटल में दवा कराई जा सके। मैंने उसकी हालत देखी तो रो पडा। भइया कहकर मुझे जब भी वो पुकारता मुझे अपने पर शर्म आती क्यूंकि मेरे हाथ में उसके करने के लिए कुछ नही था। मैंने एम्स में उसके लिए बात करनी शुरू की। तीन दिन बाद किसी तरह से सर्जरी डिपार्टमेन्ट में डॉक्टर अरविन्द को उसे दिखने में सफल रहा। पर डॉक्टर अरविन्द ने उसकी एक्सरे रिपोर्ट देखकर जो जवाब दिया उसने मुझे हिला दिया। उन्होंने कहा की इन्फेक्शन फेफडे में दोनों तरफ़ फ़ैल गया है। आप इसका सिटी स्कैन करवाकर शनिवार मोर्निंग में यानी की २८ जून को मिलिए फिर हम आपको बताएँगे की हम इसे सही कर पाएंगे या नही। अभी कल सुबह आने में १२ घंटे हैं पर मैं बहुत दुखी हूँ की एक बाप ने अपने बेटे पर वो सारी पूंजी लगा दी जिससे उसने उम्मीद की थी की एकदिन वो कुछ बन जायेगा पर बेटा लायक होते हुए भी अपने बीमारी से हरता जा रहा है। उसे अपने पापा के जेल से बाहर आने का इंतज़ार है। उसे अब कुछ नही सिर्फा अपने पापा चाहिए। पर इस घूसखोर प्रथा में मुझे नही लगता की एक बाप ज़िंदगी मौत से जूझ रहे अपने बेटे तक पहुँच पायेगा। मुझे पता है इस भडास से बहुत से पत्रकार जुड़े हैं अगर किसी की पहुच हो तो चाहूंगा की एक बेटे की आख़िर खवाहिश पूरी करने में कुछ कर सकें तो करके दिखाएँ। यह कहानी नही असलियत है और मैं तब तक लिखता रहूँगा जब तक एक इक्कीस साल के नौजवान को ठीक ना करवा लूँ। उससे मेरा कोई रिश्ता नही है पर हाँ आज की डेट में मेरे लिए वो सबसे बढ़कर है जिसके लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ। ......... ये कहानी जारी रहेगी यूँ ही।
हम आयें हैं यूपी -बिहार लुटने....
कहने को तो बिहार व यूपी में 'सुशासन' है। यहाँ काफ़ी हद तक बद्लाव आए हैं। परिवर्तन हुए हैं। राज्य तरक्की को लात मार रही है। विधि- व्यवस्था में सुधार आए हैं।
विकास की बात तो कुछ हद तक समझ में आती है, पर विधि-व्यवस्था में सुधार की बात पाच नही रही है। क्योंकि यहाँ विधि-व्यवस्था कानून से नही,नेता की जाति से तय होती है। अमन-चैन गुंडों के सुपुर्द है। रही सही कसर यहाँ की पुलिस पुरी कर देती है। सच पूछे तो राज्य को सरकार नही, बल्कि बाहुबली नेता, पुलिस और रंगदार ही चलाते हैं। और रंगदारी वसूलना तो पुलिस का परम कर्तव्य है। इसलिए उन्होंने पारदर्शिता के लिए बहाल किए गए कानून 'सूचना के अधिकार' को भी कमाई का ज़रिया बना लिया है। सूचना मांगने वालो को जेलों में डालने की बात पुरानी पड चुकी है। अब तो आवेदकों से सूचना जमा करने का भी पैसा वसूल रही है यूपी की पुलिस....
जी हाँ! यूपी पुलिस ने अधिकार से बचने और अपनी जेब गरम करने का आसान रास्ता निकाल लिया है। जब सुल्तानपुर के डॉक्टर राकेश सिंह ने पुलिस महानिदेशक से राज्य में मुसहर जाति के ख़िलाफ़ चल रहे पुलिसिया कारवाई के बारे में सूचना मांगी तो पुलिस महानिरक्षक ने श्री सिंह को बताया कि "इसके लिए 7.15 लाख रुपए जमा करें तभी मिलेगी आपको सूचना...... क्योंकि सूचना मुख्यालय में उपलब्ध नही है, जिससे वांछित सूचना दिया जाना सम्भव नही है। इन सूचनाओ का सम्बन्ध पुरे प्रदेश के थानों से है, इस कारण सूचना संकलित करने में सात लाख पन्द्रह हज़ार रुपये का खर्च आने कि संभावना है, जिसे आप जमा कर दे। "
बात अगर आर टी आई कि करें तो एक्ट में कहीं भी सूचना संकलित करने हेतु उस पर होने वाले व्यय के लेने का प्रावधान नही है, पर पुलिस महानिरक्षक पाण्डेय साहेब एक्ट पर कोई बहस नही करना चाहते...... आप कर भी क्या सकते हैं, और वैसे भी लुटने वालों को लुटने का बहाना चाहिए...........
इनामी दस्यु मोहन गुर्जर ढेर
डर
मेरे घर मे भी गिलहरी आती है
मेरे पड़ोस मे गौरैया भी आती है
मेरे घर मे भी गौरैया आती है
मेरे पड़ोस मे कई तरह के भय आते हैं
मेरे पड़ोस मे कई तरह के अपराध होते हैं
मगर फिर भी मेरे पड़ोस मे
गौरैया और गिलहरी दोनों आते हैं
कभी कभी मेरे घर पर भी!
मित्रों, मैं अब क्या करूँ
मुझे अब गौरैया और गिलहरी
दोनों से डर लगने लगा है!!
शशि भूषण द्विवेदी
कराची में भारत के तूफान के आगे नहीं टिका पाकिस्तान
26.6.08
ब्रेकिंग न्यूज़ के नाम पर
हरे भाई ने जयपुर की सांस्कृतिक पत्रकारिता को लेकर मेरा ब्लॉग भडास पर डाला तो देश भर से फ़ोन पर फ़ोन आए। लेकिन क्या हम नही जानते कि हमारे टीवी चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज़ के नाम पर किस किस्म की मूर्खताएं हो रही हैं। कुछ नमूने आप भी मुलाहिज़ा फरमाएं । इन तस्वीरों के लिए सजग दर्शकों के प्रति हार्दिक आभार।
भड़ास: भड़ास सुभिदा
pehle to sabhi bhadshion ko mera pyar bhara salam....
iske baad main apne saher se start krta hu.
meerut main media alag andaj main nazar aane laga hai.new jainration kuch kar gujarne ko tayyar hai. kuch dimagi taor par abhi tayyar ho rahe hai. fiza badalne lagi hai. jiske bhi hath main kemra aur kalam hai whi khud ko reporter samajhne laga hai. yeh senior reporter's ka dard bhi hai aur unki duwidha ka sabab bhi.
E-24 से एक साथ 30 मीडियाकर्मी बाहर किए गए
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हिन्दी मीडिया का काला अध्याय
एक प्रोडक्शन हाउस ने हाल ही में खोले गए अपने हिन्दी इंटरटेन्मेंट चैनल से एकमुश्त ३० स्थायी मीडियाकर्मियों की छंटनी कर दी औऱ अब ये सारे के सारे सड़क पर आ गए हैं। हाउस ने छंटनी करने के एक दिन पहले तक उन्हें नहीं बताया कि उन्हें नौकरी से निकाला जा रहा है। छंटनी के दिन उनसे सीधे कहा गया कि अब हमें आपकी जरुरत नहीं है।
हिन्दी टेलीविजन के इतिहास में पहली ऐसी घटना है जहां एक साथ ३० लोगों को बिना पूर्व सूचना के काम से बाहर निकाल दिया गया। यह कानूनी तौर पर गलत तो है ही साथ ही मीडिया एथिक्स के हिसाब से भी गलत है। वाकई हिन्दी मीडिया के इतिहास का यह काला अध्याय है और हम ब्लॉग के जरिए इसका पुरजोर विरोध करते हैं।
मीडिया संस्थानों से पत्रकारों को निकाल-बाहर करने की यह कोई पहली घटना नहीं है। इसके पहले भी कई चैनलों से बड़े-बड़े अधिकारियों को आपसी विवाद या फिर चरित्र का मसला बताकर निकाल-बाहर किया गया है। लेकिन टेलीविजन के इतिहास में शर्मसार कर देनेवाली शायद ये पहली घटना है जब एक ही साथ तीस मीडियाकर्मियों को जरुरत नहीं है बताकर निकाल दिया गया। इनमें नीचे स्तर से लेकर प्रोड्यूसर लेबल तक के लोग शामिल हैं। हाउस अगर निकालने की वजह सबके लिए व्यक्तिगत स्तर पर बताती है तो इसके लिए उसे काफी मशक्कत करनी पड़ेगी। संभव है कि अगर ये सारे लोग मिलकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाएं तो प्रोडक्शन हाउस पर भारी पड़ जाए।
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25.6.08
सूत्रधार के लिए
दीपेन्द्र
प्रिंसीपल रिचा बावा चौहरे कत्ल की सीबीआई जांच
क्रमश : -
महाबीर सेठ, जालंधर
प्रिंसीपल डॉ ऋचा बावा समेत चौहरे कत्ल की सीबीआई जांच क्यों नही
दिल्ली में बिल्ली छत से कूदती है तो उसे १५५ देश देखता है, लेकिन जब दिल्ली के बाहर कोई बड़ी घटना घट जाती है तो उसे कोई नहीं देख पाता। आरूषि-हेमराज हत्याकांड के पीछे की सच्चाई जानने में जुटी नोयडा व दिल्ली की प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया को जालंधर (पंजाब) में चौहरे कत्ल के राज से भी पर्दा उठाने की कोशिश करना चाहिए।
पंजाब में जालंधर को मीडिया सेंटर माना जा रहा है, लेकिन जालंधर में एक ही रात में चार लोगों का कत्ल होता है, कुछ दिन तक पुलिस के साथ-साथ मीडिया दिग्गज अंधेरे में तीर चलाते हैं , बाद में पुलिस चुप के साथ मीडिया चुप हो जाती है । १९० दिन बाद भी पुलिस को कोई अहम सुराग नहीं लगा है। सबसे बड़ी बात तो यह कि जालंधर में जिसकी हत्या की गई वह कोई मामूली हस्ती नहीं थी, बल्कि समाज की प्रतिष्ठित महिला थी। जालंधर के कन्या महाविद्यालय (केएमवी) की तेजतर्रार प्रिंसीपल डॉ रीता बावा थीं। जिनका समाज के कई तबकों से तालुक था। शिक्षा जगत में अपने नाम की लोहा मनवा चुकीं डॉ ऋचा बावा का नाम राजनीति गलियारों से लेकर बालीवुड के उम्दा कलाकारों के साथ जुड़ा रहा। जालंधर ही नहीं पंजाब, दिल्ली, कलकत्ता, हिमाचल, नोयडा, मुंबई और देश के अन्य स्थानों पर उनके अच्छे जानने वाले थे। पर ऐसा क्या हुआ कि एक ही रात में उनके चौकीदार समेत उनकी हत्या कर दी गई। पुलिस भले ही जांच का बहाना बनाकर मामले से पर्दा न उठाना चाहे, लेकिन खुद सरकार भी इस मामले से परदा नहीं उठवाना चाह रही है।
क्रमशा :
लोगों ने बहुत गालियां दी हैं शराब को
सुरूर शराब का मिकतार पर होता नहीं मौकूफ
शराब कम है तो साकी नजर मिला के पिला
शिकन जबीं पर न डाल शराब देते हुए
ये मुस्कुराती चीज़ है मुस्कुरा के पिला।
और फिर मेरे तजुर्बे के मुताबिक
लोगों ने बहुत गालियां दी हैं शराब को
इसने खिला-खिला दिया झरते गुलाब को
दो दिन जिये या चार चलो पी के तो जिए
वैसे भी ये जगह हमें कब पसंद है
रिंदों में नाम लिख लिया अच्छा ही किया
माथे से लगा बढके तू इस खिताब को
लोगों ने बहुत गालियां दी हैं शराब को।
खैर..इस बहाने एक अच्छी गल्प-गोष्ठी हो गई और इस महफिल में जो भी शामिल हुए सभी का शुक्रीया।
पं. सुरेश नीरव
मो.-९८१०२४३९६६
प्रस्तुतीःमृगेन्द्र मकबूल
गुमनामी का ग़म
कुछ शूल बनकर इस दिल में ही रह जाते हैं,
इन्ही कहे-अनकहे लफ्जों से लिखी हुई
एक दर्द-ऐ-दिल की दास्तान हूँ मैं
कुछ आंखों से अश्क बन कर बरस पड़ते हैं,
कुछ आंखों में अंगार बन कर रह जाते हैं,
इन्ही ख़ामोश, गहरी आंखों में बसे,
मूक अश्कों की बेबस जुबां हूँ मैं।
कभी गिरी तो ज़मीन पर से न उठाया किसी ने
मेरी धूल पोंछकर न सीने से लगाया कभी,
ख़ुद गिरना-संभालना बहुत हो चुका,
अब इस तन्हाई-बेबसी से परेशान हूँ मैं।
आज आया क्या यहाँ पर हे मसीहा कोई???
झुककर मुझे उसने उठाया है अभी,
पोंछ कर मेरी धूल सीने से लगाया है मुझको,
ये क्या हो रहा है? कैसे भला ...
सोचकर बहुत हैरान हूँ मैं
फिर रख कर मुझे सामने बड़े प्रेम से
वो मुझे गौर से पढ़ने लगा,
हर लफ्ज़ पे उसकी निगाह जो गयी,
पढ़ कर उसकी आँखें डबडबा सी गयीं,
जी उठी दास्ताँ, मिल गई रोशनी,
यूँ लगा, जैसे अश्कों को जुबां मिल गयी।
पर वो भी इंसान था, कोई मसीहा नहीं,
पढ़ लिया मगर, समझा न एक लफ्ज़ भी सही,
रख दिया मुझे फिर वहीँ ज़मीन पर,
और होटों पे उसके हसीं छा गयी
ऐसे ही नासमझों की झूठी मुस्कान हूँ मैं।
मैं अनजान हूँ, मैं परेशान हूँ
जान कर भी न कोई पहचाने मुझे
इस बात से हैरान हूँ मैं।
मैं हूँ बेबस निगाहों से बहता लहू,
जुबां है मगर फिर भी बेजुबान हूँ मैं।
कहे-अनकहे लफ्जों से लिखी हुई
एक दर्द-ए-दिल की दास्तान हूँ मैं।
ओ जानेवाले, मुड़ कर तो देख
सिर्फ़ दास्ताँ नही, एक इंसान हूँ मैं।।
-ऋतु गुप्ता
मां रोती क्यों है
24.6.08
गुम
उदय प्रकाश का कोई कांटेक्ट नंबर है?
Neeraj Kumar (neeraj.com@gmail.com)
to
Yashwant Singh (yashwantdelhi@gmail.com)
Yashwant bhai
namaskar,
Kya aapke paas Uday Prakash ka koi contact number hoga. Ek mitra "jaduiee yatharthvaad" (magical realism) par m.phil. karna chah raha hai aur mere gyan me Uday Prakash iske liye sabse makool shakhshiyat hain.
Aapko dubara sadhanyawaad shadhuwaad.
neeraj
neeraj.com@gmail.com
(नीरज भाई, मेरे पास उदय जी का नंबर नहीं है। कोई भड़ासी मित्र आपके मेल आईडी पर आपको उदय जी का नंबर मेल कर देगा, इस आशय से आपकी मेल को यहां डाल रहा हूं।....यशवंत)
अनुजा का ब्लागः जिस स्त्री-विमर्श शब्द को आदि-अंत माना गया है, मैं उसे नहीं मानती
मत-विमत नामक ब्लाग अनुजा का है। इस ब्लाग को भड़ास के कोने में जोड़ने के लिए अनुजा ने मेल भेजा था। इन दिनों जो व्यस्तताएं हैं उसमें दूसरे ब्लागों पर क्या चल रहा है, क्या लिखा जा रहा है....इसे देखने जानने की फुर्सत नहीं मिलती लेकिन उन ब्लागों को एक नजर जरूर देखता हूं जिन्हें भड़ास से जोड़ने के लिए अनुरोध किया जाता है। इसी क्रम में अनुजा के ब्लाग पर पहुंचा तो वहां ज्यादा पोस्टें तो नहीं दिखीं पर जो भी थीं वो गज़ब की ओरीजनल अंदाज में लिखी गईं थीं। किसी पूर्वाग्रह और दुराग्रह से मुक्त होकर, वही कुछ लिखा है अनुजा ने जिसे उन्होंने सच माना है, जिसे उन्होंने समझा-बूझा और गुना है। आप भी मत-विमत पर जाकर पढ़िए। एक पोस्ट चोरी करके यहां प्रकाशित कर रहा हूं। सिर्फ इसी पोस्ट को पढ़ लें तो आपको काफी कुछ जानने-समझने को मिल जाएगा।
-यशवंत
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खोखला है यह स्त्री विमर्श
--अनुजा--
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अधिकांश लोग यह कहते हैं कि 'मैं स्त्री-विमर्श को समझ नहीं पाई हूं। हमेशा स्त्री-विमर्श को देह से जोड़कर उसे अश्लील बना देती हूं।'
एक महिला-ब्लॉगर ने मुझको सुझाया कि 'मैं स्त्री की सीमाओं में रहकर ही अपनी बात को कहा-लिखा करूं। यूं खुलकर स्त्री की देह पर बात करना या लिखना हमारी सभ्यता-संस्कृति-परंपरा के खिलाफ है।'
मैं हर उस क्रिया-प्रतिक्रिया का स्वागत करती हूं जो मेरे लेखन या विचार की सहमति में आए या असहमति में। असहमतियां मेरे लेखन-विचार को ज्यादा 'मजबूत' बनाती हैं क्योंकि उनमें तर्क-वितर्क की संभावनाएं अधिक होती हैं।
खैर, जिन्हें ऐसा महसूस होता है कि मैं स्त्री-विमर्श को समझने में 'कमजोर' रही हूं या स्त्री-देह पर बात अधिक करती हूं तो उनसे इतना ही कहूंगी मैं 'बंधनों में रहकर' या 'लकीर का फकीर' बने रहना नहीं चाहती। मुद्दतों से जिस शब्द स्त्री-विमर्श को आदि-अंत मानकर स्वीकार लिया गया है मैं उसे नहीं मानती। न ही इस शब्द के प्रति मेरी कोई व्यक्तिगत या लेखिकीय सहानुभूति है।
पश्चिम से उधार लिए गए इस शब्द (स्त्री-विमर्श) पर हम सदियों से बहस करते चले आ रहे हैं मगर नतीजा 'शून्य' ही रहा है। इसके शून्य रहने का कारण भी है क्योंकि हमने स्त्री-विमर्श को 'देह से आगे' और 'देह से बाहर' जाने ही नहीं दिया। स्त्री-विमर्श या देह-विमर्श से आगे भी कोई स्त्री या उसका वजूद होता है हमने कभी जानने या समझने की कोशिश ही नहीं की। करते भी क्यों और कैसे? क्योंकि हमारे बुद्धिजीवि वर्ग ने स्त्री-विमर्श को अपनी 'जोरू' बनाकर जो रख छोड़ा है।
उन्हें जब भी स्त्री-विमर्श पर बात या बहस करनी होती है पहले अपनी जोरू को चाट-पकौड़ी खिलाकर उसे चटपटी-मसालेदार बनाते हैं फिर उसकी 'देह की चाट' से अपने कथित विमर्श को शांत करते हैं। उन्हें स्त्री-विमर्श नहीं केवल स्त्री की गर्दन और कमर से नीचे का लज़ीज स्वाद चाहिए ताकि उसके दमपर स्त्री-विमर्श किया जा सके। स्त्री उनके लिए देह थी, देह है और देह ही रहेगी।
एक बात और। कुछ 'पीड़ित लेखिकाएं' कह रही हैं कि 'स्त्री-विमर्श की ताकत के सहारे अब स्त्रियां खुल रही हैं। अपनी देह के मायने समझने लगी हैं।'
वाह! क्या तर्क रखा है पीड़ित लेखिकाओं ने। स्त्री-विमर्श में अगर ताकत होती तो आज 21वीं सदी में भी स्त्री की देह और अधिकार का फैसला पुरुष नहीं स्त्री ही कर रही होती। विवाह-संस्था तब पुरुषों की नहीं स्त्रियों की गुलाम होती। शादी की पहली रात मर्द के मर्द होने का सर्टिफिकेट मर्द नहीं स्त्री उसे देती। अगर तुमने स्त्री को देह के मायने समझाए होते तो आज मर्द का स्त्री की देह पर नहीं बल्कि स्त्री का अपनी देह के साथ मर्द की देह पर भी एकाधिकार होता।
स्त्री-विमर्श की पैरवी कर रहीं पीड़ित लेखिकाओं से मेरा कहना है कि एक बार वो अपने 'खोखले विमर्श' से बाहर आकर उस स्त्री को देखें, उसके संघर्ष, उसके त्याग को समझें जो दिनभर यहां-वहां मजदूरी कर मुश्किल से 15-20 रुपए कमा पाती है और दिनभर मजदूरी के बाद घर लौटकर घर में मजदूरी करती है तब उसके पास जाकर उससे पूछें कि तुम स्त्री-विमर्श के बारे में कितना और कहां तक जानती हो? अरे, 'ठंडे कमरों' में बैठकर 'गर्म स्त्री-विमर्श' करने से न स्त्री देह से मुक्त हो पाएगी न अपनी गुलामी से।
खोखले ढकोसले गढ लेने भर से कभी कोई विमर्श सार्थक नहीं हो सकता इसलिए मैं इस कथित स्त्री-विमर्श को सिरे से नकारती हूं, अब आप जो समझें।
अनुजा के ब्लाग मत-विमत से साभार
सुरां न पीबति सः असुरः।
सुरा की महत्ता को लेकर जगदीश त्रिपाठी का रोचक लेख पढ़ा, मन हुआ कि सुरा के समर्थन में कुछ तथ्य मैं भी प्रस्तुत कर दूं। यथा- महर्षि कश्यप की दो पत्नियां थीं- दीति और अदीति। दीति के पुत्र दैत्य तथा अदीति के पुत्र देवता कहलाए। असुरों ने सुरा न पीने का संकल्प लिया मगर सुरों ने उस प्रतिबंध को नहीं माना क्योंकि उनके पिता महर्षि कश्यप को इससे परहेज नहीं था। संस्कृत में कश्य का अर्थ ही शराब होता है। (कश्यःशराब,अपःपीनेवाला।) जिस जगह बैठकर देवता शराब का उत्कर्षण करते थे यानी आसव का उत्कर्षण (उत-सव) करते थे, वह क्रिया ही उत्सव कहलाई। मंड की बनी शराब, जिस स्थान पर देवता पीते थे, वह जगह ही मंडप कहलाई। और पीनेवालों का समूह मंडली कहलाया। शराब को सुरा भी कहा जाता है और ठीक वैसे ही जैसे मद्य को पीनेवाला मद्यप कहलाता है वैसे ही सुरा को पीनेवेले को सुर और न पीनेवाले को असुर कहा गया। सामवेद में तो यह तक कह दिया गया कि- सुरां न पीबति सः असुरः। हिंदू धर्म में गाय का मांस वर्जित है, शराब नहीं। इस्लाम में शराब पर प्रतिबंध है मांसाहार पर नहीं और ईसाइयत में न शराब पर प्रतिबंध है और न ही मांसाहार पर। फारसी में स का उच्चारण ह होता है जैसे सप्ताह को हफ्ता कहा जाता है। वैसे ही असुर को अहुर कहा जाता है। अहुर राज्य असीरिया से अफगान और ईरान तक फैला था और नासिरयाल यहां का बादशाद था जो अपने को अहुर कहता था। अहुरमत्जा के महत्व को सभी जानते हैं। सुरा,सीता,प्रसन्ना,मधु, कादंबरी, आसव वारुणी, सौ से अधिक शब्द शराब के लिए संस्कृत साहित्य में उपलब्ध हैं जो इस बात को प्रतीक हैं कि सुरों के समुदाय में सुरा का प्रचलन कितना था ? सुरा का ईश ही सुरेश कहलाता है जो तीस से अधिक सरक (पैग ) लगाकर ही सुर में आता है। सोमपान ही सामवेद में साम है और बिना साम के सामंजस्य कहां ? इसलिए है देवपुत्रो समस्त देवी-देवताओं के पावन स्मरण के साथ आप पतितपावनी वारुणी का प्रतिदिन पवित्र भाव से आचमण करें और अपने देवत्व में श्रीवृद्धि करें। ओम वारुणाय नमः।
पं. सुरेश नीरव
जिस शहर में अख़बार ख़ुद ही हॉबी क्लासेस चलायें और उसे ही सांस्कृतिक विकास का पैमाना मानें, उस शहर में सांस्कृतिक पत्रकारिता का यह हश्र तो होना ही था
जयपुर शहर की पत्रकारिता में इन दिनों एक नया चलन देखने में आया है। मुख्य धारा के बड़े अखबारों ने शहर की खबरों से साहित्य कला और संस्कृति की खबरों का स्थान बेहद सीमित कर दिया है। शहर में यह हाल सिर्फ़ हिन्दी साहित्य और गंभीर सांस्कृतिक आयोजनों की रिपोर्टिंग में देखा जा सकता है। अंग्रेज़ी वालों के लिए, मुम्बैया, सेलेब्रिटी, कारपोरेट पूँजी से पोषित आयोजनों में इन अखबारों की पत्रकारिता यूँ लगाती है जैसे साहित्य-संस्कृति का सच्चा हाल इन दो कौडी के आयोजनों की तफसीली रिपोर्टिंग से ही सामने आएगा। कितना बुरा लगता है यह देखकर कि अपने ही साथी भाई बन्धु कलमकार कि मौत तक को छापने में इन अखबारों को तकलीफ होती है। आप हिन्दी साहित्य का राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय आयोजन करके देख लें उसकी रिपोर्टिंग ऐसे होगी जैसे गली-मुहल्ले के किसी मन्दिर में होने वाले पौष बड़ों के कार्यक्रम से भी उसका स्तर बहुत छोटा हो। जयपुर के सांस्कृतिक संवाददाता अपने आप को किसी सिद्ध ज्ञानी-कलामनीशी से कम नही समझते हैं। खैर वो बेचारे तो कम वेतन वाले पार्ट टाइम नौसिखिये पत्रकार हैं उन्हें क्यों दोष दें।असल दोष तो उन लोगों का है जो ऊंचे ओहदों पे बैठे यह तय करते हैं कि अखबार में किस ख़बर को क्या महत्व मिलना चाहिए? शायद उन लोगों की नज़र में धार्मिक आयोजन ही सांस्कृतिक पत्रकारिता का पर्याय है, तभी तो जयपुर के अखबारों में आप धार्मिक खबरों से लिथडा हुआ, एक किस्म की साम्प्रदायिक बदबू से बजबजाता हुआ, अज्ञात कुलशील-अज्ञानी-महिला विरोधी-ढोंगी और प्रपंची साधू संतों के चूतिया किस्म के प्रवचनों से आच्छादित कूडेदान लायक पूरे का पूरा पेज रोजाना पढ़ सकते हैं। एक भेद की बात यह भी है कि अनेक मंदिरों के महंत सांस्कृतिक संवाददाताओं को प्रसाद के नाम पर खबरें छपवाने के लिए मोटे लिफाफे देते हैं, शायद इसलिए भी शहर की सांस्कृतिक पत्रकारिता में यह नया चलन आम हो रहा है। एक शानदार सांस्कृतिक परम्परा की विरासत वाला खूबसूरत शहर अखबारों में संस्कृति के नाम पर अवैज्ञानिक साम्प्रदायिकता की हद तक धार्मिक खबरों से लहूलुहान हो रहा है।एक वक्त था जब साहित्यकार को पत्रकार का बड़ा भाई कहा जाता था, वो इसलिए कि लेखक भाषा का नवाचार सिखाता है, लेकिन जयपुर शहर के अखबारों ने उन दो भाइयों को हिन्दी सिनेमा के डाइरेक्टर प्रोड्यूसर कि तर्ज़ पर बचपन में ही बिछुड़ा दिया है। पता नहीं इस पटकथा में इन दो भाइयों का मिलन लिखा भी है कि नहीं, कोई नहीं जानता। शहर के कलाकार-कलमकार पत्रकारिता में आए इस नए चलन से दुखी हैं लेकिन क्या किया जाए?जिस शहर में अख़बार के दफ्तर में सम्पादक अपने पत्रकार को अवज्ञा के कारण मुर्गा बना दे उस शहर की पत्रकारिता में संस्कृति की हालत सहज ही समझी जा सकती है। जिस शहर में अख़बार ख़ुद ही हॉबी क्लासेस चलायें और उसे ही सांस्कृतिक विकास का पैमाना मानें, उस शहर में सांस्कृतिक पत्रकारिता का यह हश्र तो होना ही था। और क्या कहें सिवाय इसके कि "बक रहा हूँ जुनून में क्या-क्या, कुछ न समझे खुदा करे कोई"।
तो गूंगे भी कोरस में गाने लगेंगे
बदन पर जो साबुन लगाने लगेंगे
कसम से खुदा की मैं कहता हूं यारो
तो गूंगे भी कोरस में गाने लगेंगे
००००
जो बूढ़े भी नजरें लड़ाने लगेंगे
वो मंजर भी कितने सुहाने लगेंगे
किया इश्क का न बुढ़ापे में लफड़ा
तो बच्चों को डैडी जनाने लगेंगे।
-पं. सुरेश नीरव
मो.-९८१०२४३९६६
पं. सुरेश नीरव सम्मानित
प्रेषकः अरविंद पथिक
एनकाउंटर पर उबले दिग्विजय
23.6.08
स्वागत के प्रत्युतर में दो शब्द
काढ राखे सैं । और भई क्युं ना काढै आखिर हम इस
लायक है ही । इब शरमा शरमी मै, मैं न्युं तो नही कहूंगा
के नही नही मैं इस लायक कहां ? पर भई ताऊ तो इस लायक सै
और सोलह आनै सै । किसी नै ऐतराज हो तो हुया करै ।
बल्कि हमनै तो यो लागै सै कि स्वागत किम्मै माडा (कमजोर) ही
हुया सै । बातां सै तो घणा ही स्वागत हुया पर भाई , जरा
ढोल ढमाकां की कमी सी रह गी सै । कोई बात ना यशवंत जी आगे
भी मोके आते ही रहेंगे ।
आगे आपने स्वागत भासण मै कह्या सै की - म्हारे भडासी बनने
से कूछ लोगां नै तकलीफ़ हो सकै सै । सो भाइ हम उनके
कहनै सै तो भडासी बने नही सैं । म्हारी मर्जी , हम भडासी
बनै या संडासी । और जब तक हम भडासी सैं तब तक
तो ठिक सै , उनका पीछा सिर्फ़ बातां धोरै ही छूट ज्यागा ।
और जै हम संडासी बण गे तो भाई उनको घणी तकलीफ़
खडी हो जावैगी । इब थम तो जाणो ही हो कि, संडासी किस काम
आवै सै ? भई वो ही .. जिसनै कुत्ते और बन्दर पकडने के लिये
उनके गले मै डाल्या करते हैं । तो भाइ जिसनै तकलीफ़ हो रही
हो , वो सोचले कि ताऊ की के इच्छा सै । सो सोच समझ कर
बात करैं तो ठिक रहवैगा ।
और भाई इब ताऊ कै जचगी तो जचगी .. कर ले जिसने
जो करना सै .. ताऊ तो बन गया भडासी । किसी नै ऐतराज हो तो
अपनी राधा नै खिलावै । पर ताऊ सै इस बारे मैं बात नही करै ।
ताऊ एक बार अपनै ऊंट नै लेके सडक कै बीचों बीच जावै था ।
पिछे सै एक छोरा अपनी नई नई कार लेके ताऊ कै पीछे
पीं... पीं... होर्न बजानै लग रया था । ताऊ नै किम्मै ध्यान दिया नही ।
सो उस छोरे नै कार की खिडकी मै से गरदन काढ के जोर से आवाज
लगाई-- ओ ताऊ तेरे कान फ़ूट गे क्या ? एक तरफ़ क्यूं नही
हटता, इतनी देर से होर्न बजानै लग रहा हूं ?
ताऊ-- अरे छोरे ! ताता (गर्म) क्युं हो रया सै ?
यो सडक के तेरे बाप की सै ?
वो छोरा भी किम्मै अकडू ही दिखै था । सो उसनै जबाव दिया कि--
हां यो सडक म्हारे बाप की ही सै ! बोल इब के कर लेगा ?
ताऊ बोल्या-- अरे तो , उस तेरे बाप नै कहता क्युं नही के,
तेरे खातर इसनै चोडी करवा दे..... ! ताऊ तो बीच मै ही चलेगा ।
सो भाइ किसी नै तकलीफ़ हो तो म्हारा जबाव पढ लियो ।
अच्छा भाइ इब म्हानै इजाजत देवो कूछ काम धन्धा भी करण दो ।
सप्ताह खत्म होनै तक कूछ कचरा दिमाग मै इक्क्ठा हो गया
तो फ़ेर थारै दिमाग मैं उंडेल देवांगे । तब तक थ्यावस (सब्र) राखो ।
राम राम ..
ब्लागर बालक के सवाल, गुरुवर अनिल यादव के जवाब
- अनिल यादव -
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अयं कः?
-अयं ब्लागरः
ब्लागरं किं करोति?
-कटपट-पश्यति-खटपट- पश्यति, क्लिकति पुनपुनः मूषकम्।
ब्लागर कौन होता है?
-जिसके पास कम्प्यूटर होता है।
कंपूटर किसके पास होता है?
-जो साक्षर होता है।
क्या कंपूटर होने से कोई प्राणी ब्लागर होता है?
-नहीं, सिर्फ मनुष्य अब तक ब्लागर होता पाया गया है और इंटरनेट कनेख्शन भी अपरिहार्य है।
इंटरनेट किसके पास होता है?
-जो शुल्क देता है।
यह शुल्क लेता कौन है, क्या वणिक?
-चुप वे देवता हैं जो ज्ञान, सूचना और अभिव्यक्ति और मनोरंजन के समुद्र में तैरने के लिए कास्ट्यूम और उसके खारे जल की हानियों से जिज्ञासुओं की त्वचा को बचाने के लिए आसुत जल और तदुपरांत लोशन देते हैं। साधु, साधु।
किंतु कंपूटर किसके पास होता है?
-जिसके पास उसे रखने के लिए एक मेज हो।
मेज किसके पास होती है?
-जिसके पास उसके समक्ष रखने के लिए एक कुर्सी हो।
कुर्सी किसके पास होती है?
-हां यह भी एक तरह की खामोश, अनुल्लेखनीय सत्ता है, अधिक काल तक उस पर वही बैठ पाता है जो नितंब-दाह से बचने के लिए उस पर कुशन रखता है।
कुशन किसके पास होते हैं?
-जिसके पास अन्य कुशन होते हैं अर्थात वे समूह में रहते हैं।
अन्य उपादान?
-नेत्र हानि से बचने के लिए चश्मा, पानी के लिए जलछुक्कक, काफी का मग जिसमें काफी, चाय या बियरादि वैकल्पिक द्रव हों.
ये सब क्या अंतरिक्ष में अवस्थित होते हैं?
-मनुष्य जिस गुरूत्वाकर्षण का दास है उसी से आबद्ध होने के कारण कदापि नहीं, ये किसी नगर या उपनगर के किसी पुर के भवन में या भवन के एक कमरे में स्थित होते हैं।
भवन या कमरा किसका होता है?
जो उसका स्वामी होता है या किराया अदा करता है।
किराया का पण्य क्या होता है?
-मुद्रा- लीरा, डालर या रूबल देश, काल, परिस्थिति के अनुसार परिवर्तनीय किंतु अपने मूल स्वरूप में अविचल एवं अपने समान पण्य की सभी वस्तुओं यथा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष आदि को क्रय कर सकने में सक्षम. साधु साधु।
ब्लागर का संपूर्ण अपरिहार्य एवं तात्कालिक परिवेश कितने मूल्य का होता है?
-अगर वह अविवाहित, समूह में रहते हुए लैमारी का अभ्यासी या कार्यालय के संसाधनों का प्रयोग करने में निपुण नहीं है तो भारतीय मुद्रा में न्यूनतम बीस हजार रूपए।
इतनी भारतीय मुद्रा कहां से आती है?
-चाकरी, व्यापार किवां उत्कोच या चोरी करने से अन्य स्रोत भी हैं जिनका तुम्हारी हरी धनिया सी ताजी और खुशबूदार चेतना पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। साधु-साधु।
उत्पादन की प्रक्रिया का चिंतन से गूढ़ संबंध है अस्तु बीस हजार या अधिक भारतीय मुद्रा अर्जित करने की प्रक्रिया ब्लागर रूपी जातक की चेतना पर प्रभाव डालती है और उसके विचारों को कैसे रूपांतरित करती है?
-उसके मष्तिष्क का प्रतिबद्धता भाग लुप्त हो जाता है, विवेक भाग उत्तरोत्तर क्षीण होता है, अपने वर्तमान स्तर की सुरक्षा व प्रगति हेतु चेष्टा करने वाला भाग ग्रीष्म के वायु की भांति प्रलयंकर हो जाता है। तो क्या निर्धन, विकलांग, स्त्रियां, बालक या पण्यविहीन वनों में रहने वाले संन्यासी ब्लागिंग नहीं कर सकते यदि करें तो उनके विचार कैसे होंगे? किसी प्रकार की विकलांगता, लिंग या वय से इसका संबंध नहीं है इसका संबंध संसाधन एवं तकनीक के ज्ञान से है जिसके संसाधन गुड़ है जिसके पीछे ज्ञान कुत्ते की तरह विचरण करता है। साधु साधु।
ब्लागिंग का उपयुक्त काल क्या है और इसे कैसे करना चाहिए?
-प्रातः प्रातराश से पूर्व या रात्रि को कोलाहल प्रिय परिजनों के शयन के पश्चात, यदि सिद्ध हो जाए तो कभी भी किया जा सकता है।
इसका हेतु क्या है और यह क्यों आवश्यक है?
-इसका अविष्कार ग्राम सभ्यता, संयुक्त परिवारों एवं कृषि आधारित व्यवस्था के उच्छेद काल के परवर्ती भ्रष्टाचार के कच्चे माल से चलने वाले उद्योगों से प्रकीर्ण महानगरों में मनुष्य के अकेले पड़ जाने के पश्चात असुरक्षा की भावना के शमन के लिए हुआ। भली प्रकार से सुसज्जित एवं अन्य सुखकर उपादानों से आच्छादित किंतु बंद प्रकोष्ठों में बैठे मनुष्य समूह से पृथक श्रृंगालों की भांति हुंआ-हुंआ करते हैं अन्य उनकी ही ध्वनि को प्रतिध्वनित करते हैं तब उन्हें एक बार फिर समूह में होने का आभास होता है। इसी प्रक्रिया में एक अन्य रसायन का भी स्राव होता है जिससे लगता है कि श्वान काष्ट की विशाल गाड़ी की छाया में सुखपूर्वक चलने की बजाय उसे संपूर्ण बल से खींच रहा है। तदनंतर इस कल्पित पुरूषार्थ से श्वास फूलने लगता है और वत्स तुमसे यह गुप्त भेद कहता हूं कि उसकी अनुभूति संतति प्राप्ति हेतु किए गए मैथुन से श्लथ आत्मा को मिलने वाले उल्लास मिश्रित आनंद से भिन्न नहीं होती।
इन श्रृंगालों का स्वामी कौन है?
-वे आभासी विश्व में रहने के अभ्यस्त हो चले हैं अतः उनमें से अधिकांश स्वयं को स्वामी कहते है, कुछ के स्वामी आभासी विष्णु हैं जो क्षीरसागर में बीस हजार किमी से अधिक लंबे इंटरनेट केबिल रूपी शेषनाग पर लेटे लक्ष्मी से पैर दबवाते रहते हैं।
क्या विष्णु ब्लागिंग करते हैं?
-नहीं करते तो अब करेंगे लेकिन अब तुम जाओ सुत रहो। अगले सत्र में अपने मातृकुल से अनुमति से लेकर आना।
-anil yadav मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें
(अनिल यादव के ब्लाग हारमोनियम से साभार)
नही तो विस्फोटक होगी स्थिति
खुद चूने का पान हुए संयोजकजी
हास्य-ग़ज़ल
कवियों में मलखान हुए संयोजकजी
रसिकों के रसखान हुए संयोजकजी
इतनी तंबाकू-कत्थे से की यारी
खुद चूने का पान हुए संयोजकजी
चुनचुनकर सब फ्लाप कवि, एक टीम रची
खुद उसके कप्तान हुए संयोजकजी
मंचखोर तुक्कड़ कवियों के टापू में
मनचाहे वरदान हुए संयोजकजी
भरते सुबहो-शाम जिन्हें मिलकर चमचे
ऐसे कच्चे कान हुए संयोजकजी
मरियल कवि को मिला लिफाफा मोटा-सा
मंद-मंद मुस्कान हुए संयोजकजी
पाल-पोसकर बड़े किये चेले-चांटे
गुरगों के भगवान हुए संयोजकजी
पशुमेला क्या लालकिला तक चर डाला
भैया बड़े महान हुए संयोजकजी
फसल बचाएं मठाधीश की चिड़ियों से
देखो स्वयं मचान हुए संयोजकजी
नीरव से मुठभेड़ हुई जब करगिल में
पिटकर पाकिस्तान हुए संयोजकजी।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६