आसाराम बापू केआश्रम में एक के बाद एक कई बच्चों की मौत ने कई सवाल खड़े कर दिए है।
पहले अहमदाबाद आश्रम में दो बच्चों की मौत .... हिंसा... बवाल....
और अब छिन्दवाड़ा के आसाराम बापू आश्रम के स्कूल में दो बच्चों की मौत ....।
पहला बच्चा- रामकृष्ण यादव
दूसरा बच्चा- वेदांत मनमोधे अब
तीसरा बच्चा - विशाल ... गंभीर हालत में है
उसे इलाज़ के लिए नागपुर रिफर कर दिया गया है ...
वैसे देर शाम को अफवाह फैली थी कि उसकी भी मौत हो गई है ...
सवाल उठता है ...आखिर और कितने `रामकृष्ण´ को निगल जाएंगे बापू के ये आश्रम ...।
इस पर भी यह बात समझ से परे है कि आखिर मासूम बच्चों केमां-बाप क्यों कर स्कूल प्रबंधन को क्लीनçचट दे रहे हैं। पहले रामकृष्ण के पिता ने क्लीनचिट दी और अब ... वेदांत के पिता कृष्ण मनमोधे ने भी।
उन्होंने कहा कि वह वेदांत की मौत के लिए स्कूल प्रबंधन को जिमेदार नहीं मानते। और वह अपने बेटे का पोस्टमार्टम भी नहीं कराना चाहते। बच्चे की मां पूजा ने तो अंध भçक्त जाहिर करते हुए कहा कि अगर स्कूल प्रबंधन जांच में दोषी भी पाया गया तो भी वह उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेंगी। उनकी केजी में पढ़ रही छोटी बेटी इसी स्कूल में पढ़ती रहेगी। इससे भी बढ़कर वेदांत की मां पूजा ने कहा कि कोई बापू को बदनाम करने की साजिश रच रहा है।
माजरा क्या है समझ में नहीं।
एक तरफ तो अपने जिगर के टुकड़ों को खोते जा रहे हैं उस पर भी अंधश्रध्दा दिखाते हुए स्कूल प्रबंधन को क्लीनचिट दे रहे है।
छिन्दवाड़ा के लोगों को कहना है कि आश्रम के खिलाफ साजिश की बात बेईमानी है। जिन परिस्थितियों में दोनों बच्चों की मौत हुई उनमें किसी बाहरी व्यçक्त की हाथ हो ही नहीं सकता। और कोई बाहरी तत्व क्यों कर आश्रम या बापू को बदनाम करने की कोशिश करेगा।
RAMKRISHNA DONGRE
http://chhindwara-chhavi.blogspot.com/
2.8.08
और कितने `रामकृष्ण´ को निगल जाएंगे बापू के ये आश्रम
Labels: आसाराम बापू आश्रम, छिन्दवाड़ा, बच्चों की मौत
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2 comments:
अरे भाई कल तो मैंने देखा कि आसाराम आंसू बहा रहे थे और अपने शिष्यों को शायद कठोपनिषद या गरुड़पुराण जैसी कोई चीज समझा कर मौत को एक तुच्छ सा परिवर्तन बता रहे होंगे......
गुरुदेव,
ये परिवर्तन बताने वाले लोग साले खुद क्योँ नहीं परिवर्तित हो जाते हैं, सालों ने आँसू बहा बहा कर मगरमच्छ भी तैरा रखे हैं. इन्तेहा तो तब हो जाती है जब अपने आपको पढ़े लिखे कहने वाले जिनकी तादाद हमारे यहाँ सबसे ज्यादा है इन् चेले चपाटी वाले आराम पसंद, नव युवती पसंद, चिर यौवन पसंद को अपना सब कुछ मान लेते हैं, अपनी विचारधरा का त्याग कर कर्म से विहीन मानव इन धोंगीयों के प्रती समर्पित हो जाते हैं.हमारे समाज के कोढ़ इन बाबा साधू ससुरों ने कभी भी सड़क पर चलते अनाथ, गरीब बेसहारा को अपना शिष्य नही बनाया, मालदार चेले का मालदार गुरु, और भीड़ अंधभक्तों की.
जय जय भड़ास
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