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16.11.15

गैरसैंण सत्र- बदनामी से आगे नही बढ पाया पक्ष-विपक्ष

पुरुषोत्तम असनोड़ा
वरिष्ठ पत्रकार
उत्तराखंड
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उत्तराखण्ड की जनता की राजधानी के नाम से विख्यात गैरसैंण में 2 नवम्बर से आयेजित हुआ विधान सभा सत्र पक्ष-विपक्ष के हो-हल्ले, आरोप-प्रत्यारोप व कटुता से आगे नही बढ पाया। केवल दो दिनों में सिमट गये सत्र से जनता को काफी अपेक्षाऐं थी वे धूल-धूसरित हो गयी। सत्र की निरर्थकता तो कंाग्रेस के अधिवेशन 1 नवम्बर से ही लगने लगी थी जब उत्तराखण्ड आन्दोलन के फूनिया बने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने गैरसैंण राजधानी पर एक शब्द नही बोला और गैरसैंण अधिवेशन को शहीदों व राज्य आन्दोलन को समर्पित करने जैसे दार्शनिक भाषा का उपयोग कर राजधानी की मांग भी नही कर सके। किशोर उपाध्याय गैरसैंण को गाहे-बगाहे राजधानी बनाने का शोशा छेडते आये हैं।







कांग्रेस अधिवेशन में गैरसैंण राजधानी का कोई प्रस्ताव न आने के बाद लगने लगा था कि सरकार गैरसैंण सत्र को केवल प्रचार तक सीमित रखने वाली है और जैसा कि मुख्य सचिव राकेश शर्मा सत्र के तीन दिन में निबट जाने की बात कह चुके थे सही होती प्रतीत हो गयी थी। विधान सभा की कार्यमंत्रण समिति ने भी दो दिन की ही कार्य योजना बनाई थी। 18 मई 15 को देहरादून में विधान सभा के विशेष सत्र में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने विधान सभा सत्र कम से कम 100 दिन कराने की सलाह दी थी। विधान सभा अध्यक्ष गोविन्दसिंह कुंजवाल ने भी कहा थ  िकवे चाहते हैं कि गैरसैंण विधान सभां सत्र 10-15 दिन का हो। जबकि मुख्य सचिव विधान सभा सत्र के तीन दिन में निवटने की भविष्यवाणी कर चुके थे। जो राष्ट्रपति व विधानसभा अध्यख की भावनाओं के नजदीक भी नही था।

सरकार के तर्क, अनुपूरक वजट और 10 विधेयक के साथ दो संकल्पों के पारित होने को सत्र की उपलब्धि बताते हुए अपना सीना चौडा कर रहे हैं तो विपक्ष सत्र को फिजूल खर्ची  और व्यर्थ की कवायद करार चुका है। सत्र का सबसे दुर्भाग्य पूर्ण पक्ष सत्र के दौरान और बाद में आयी कटुता का हैं। सदन में जो हुआ उसके लिए सरकार, विपक्ष या पीठ जिम्मेदार हो सकती है लेकिन वही कटुता जनत के बीच आना विनता का विषय है। कह सकते हैं कि जो कटुता 2-3 नवम्बर को गैरसैंण में देखी-सुनी गयी वो एक दिन की उपज नही थी, देहरादून में वह पिछले 15 सालों पल-बढ रही कटुता नंगी होकर जनता केसामने आ खडी हुई। दोनों दिन एक दूसरी पार्टी के पुतले फूंकने के अलावा जनता के बीच अपशब्दों का प्रयोग और प्राथमिकी दर्ज होने, राज्यपाल को शिकायत करने की नौबत स्थिति की गम्भीरता दिखाती है।

विपक्ष को सरकार के सााि ही विधान सभा अध्यक्ष तक को आरोपित करने का अवसर मिला। ये पक्ष- विपक्ष की राजनीति हो सकती है लेकिन इसमें मुख्य मुद्दा जो जन अपेक्षाओं का था दूर-दूर तक गायब हो गया। गैरसैंण को जनता की राजधानी क्यों कहा जाता है गैरसैंण की क्या विशेषता है और गैरसैंण आकर लोगों को सचमुच आपना र्प्यावरण अपना परिवेश मिलता है, ये देखने समझने बहुत से लोग आये थे और सत्र के बाद वे उसकी चर्चा करते। हमने गैरसैंण सत्र में ड्यूटी पर आयी दो कांसटेबल लडकियों से पूछा आपको गैरसैंण कैसा लगा दोनों ने ही खुश होकर कहा बहुत अच्छा एक लडकी अल्मोड़ा और दूसरी चमोली से थी दोनों पहली बार गैरसैंण आयी थी।, उत्तरकाशी के एक बुजर्ग कह रहे थे मैं पहली बार गैरसैंण आया हूॅं और ये देखने कि गैरसैंण कैसा है उनकी बहुत अच्छी प्रतिक्रिया थी, जिसने भी गैरसैंण राजधानी कहा बहुत अच्छा कहा। बहुत से युवाओं से बात हुई जो उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के ज्वार के समय बहुत छोटे रहे होंगे लेकिन उन्हें गैरसैंण राजधानी चाहिए है। लेकिन सत्र के दोदिन में निबटने और वह भी हो-हल्लड के साथ लोग कुपित हैं।

गैरसैंण में अपनी मांग रखने आये संगठनों को गैरसैंण नजदीक और सुलभ स्थान लगा। वीरोंखाल जिला बनाओं संघर्ष समिति 40 वाहनों के साथ भरी संख्या में अपनी मांग को लेकर आयी थी।  पार्टियों ने भी रैली कर अपनी मांग रखी। देहरादून में जो लोग विधनसभा क्या रिस्पना पुल से आगे नही जा सकतेवे विधान सभा के मुख्य गेट तक पहुंच रहे थे। ग्रामीण जनता को विधान सभा की कार्यवाही देखने या ये कहें कि  माननीयों की धींगा-मुश्ती सदन के अन्दर देखने का अवसर मिल गया।

घूम-फिर कर फिर वहीं पहुंचें तो पाते हैं कि राज्य अवधारणा का रोना रोने वाले लोग कहीं जनता को बरगला तो नही रहे हैं? भराडी सैंण में विधानसभा, विधायक निवास, सचिवालय बनने के बाद भी क्या नेता- अधिकारी गैरसैंण आना चाहेंगे? क्या रायपुर मेें विधानसभा बनाकर गैरसैंण की विधान सभा सैर-सपाटे से अधिक मायने रखेगी?  गैरसैंण में हुए पहले सत्र के बाद जनता में उत्साह दिखा था लेकिन दूसरे सत्र के बाद निराशा का भाव है। मुख्यमंत्री हरीश रावत से जब पत्रकारों ने पूछा कि सरकार और विपक्ष यदि गैरसै।ण राजधानी पर सहमत हैं तो उसकी घोषणा क्यों नही करते? मुख्य मंत्री विरपरिचित अंदाज में कहते हैं सर्व सम्मति बनायेंगे। आप भराडी सैंण विधानसभा के लिए सरकार का निर्णय ले लेते हैं और राजधानी घोषित करने के लिए सर्व सम्मति चाहते हैं अच्छी बात है। विधानसभा निर्माण के लिए भी सर्वाम्मति ली होती तो ठीक। माना सर्व सम्मति नही बनी तब विधान सभा का क्या होगा?  सरकार 10 विधेयक पारित करा सकती है राजधानी विधेयक भी पारित हो जाता तो गुरेज क्यों है?

किसी भी राजनैतिक दल को राजनैतिक लाभ के प्रश्न बडे हैं जनता की आशा- अपेक्षा से भी बडे। गैरसैंण सत्र के दौरान और बाद की घदनाओं ने जिस कटुता को जन्म दिया है वह उत्तराखण्ड का स्वास्थ्य बिगाडेगा। क्या राज्य का स्वास्थ्य बिगाडने की कीमत पर भी राजनीति होगी? उत्तराखण्ड स्वयं में बडा सवाल है। एक हिमालयी प्रश्न है, न केवल उत्तराखण्ड बल्कि देश के पर्यावरण, सामरिकता और जन जीवन से जुडे प्रश्नों पर उत्तराखण्ड की भागीदारी है और दायित्व भी। उन प्रश्नों को छोड जब हमारे माननीय विधान सभा को केवल राजनीति का अखाडा बना देते हैं तो स्वार्थी लगते हैं। ऐसा स्वार्थ जो उत्तराखण्ड का हितैषी तो नही होगा। गैरसैंण सत्र में जो बदनामी हुई उसकी जिम्मेदारी से पक्ष-विपक्ष बच नही सकता।

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