मित्रों,प्रत्येक युग में सफलता की परिभाषा बदलती रही है। आजकल सिर्फ आर्थिक-सफलता को ही सफलता मान लिया जाता है जो कि बिल्कुल भी उचित नहीं है। आर्थिक-विकास तो संपूर्ण विकास का एक अंग मात्र है। जीवन में पैसे के महत्त्व से ईन्कार नहीं किया जा सकता लेकिन भौतिक उन्नति के साथ-साथ मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति भी होनी आवश्यक है। नैतिकविहीन धनपति असल में यह भी भूल जाता है कि वह एक मशीन नहीं है बल्कि भावनाओं से युक्त संवेदनशील मनुष्य है। वह यह भी भूल जाता है कि उस दुनिया से बदले में वही मिलेगा जो वह दुनिया को दे रहा है।
मित्रों,इन दिनों हमारे बहुत-से भाई-बहन हिन्दी में ब्लॉगिंग कर रहे हैं। उनमें-से कुछ का लेखन तो वाकई उत्कृष्ट है कथ्य के दृष्टिकोण से भी,शिल्प की दृष्टि से भी और विषय-चयन के खयाल से भी। उनका कथ्य लाजवाब होता है,विषय समाजोपयोगी और शैली अद्भुत। परन्तु हमारे कुछ ब्लॉगर-बंधु ऐसे भी हैं जो बराबर या तो देश में नफरत फैलानेवाले आलेख लिखते हैं या फिर सेक्स से भरपुर अश्लील लेख। जाहिर है वे पाठकों में उत्सुकता पैदा कर जल्द-से-जल्द ज्यादा-से-ज्यादा पाठक बटोर लेना चाहते हैं। इन दोनों कैटगरी (कृपया वे बंधु खुद को इसमें शामिल न समझें जिनकी नीति और नीयत साफ है और जो स्वस्थ आलोचना और विवेचना में विश्वास करते हैं) में आ सकनेवाले लेखकों की रचनात्मकता विध्वंसात्मक है जिससे देश टूटता है,देशवासियों के दिलों के बीच की दूरियाँ बढ़ती हैं और समाज में अनियंत्रित भोगवाद को बढ़ावा मिलता है। जहाँ तक
मैं समझता हूँ कि इस तरह के लेखक यह भूल रहे हैं कि उनका लेखन बहुत-कुछ मसाला फिल्मों के समान हो जो तत्काल सुपरहिट भले ही हो जाएँ दीर्घकाल तक याद नहीं की जातीं। कहना न होगा कि हमारे कई ब्लॉगरों की रचनाएँ इतनी अश्लील होती हैं जितनी शायद फुटपाथ पर बिकनेवाली अश्लील डाइजेस्ट भी नहीं होता होगा। अंत में मैं सभी ब्लॉगर-बंधुओं से करबद्ध प्रार्थना करता हूँ कि वे जो भी लिखें समाजोपयोगी लिखें,देश और विश्व के कल्याण के लिए लिखें क्योंकि इसी में आपका भी कल्याण निहित है। ईश्वर ने आपको समुचित सुविधाएँ और माहौल देकर इसलिए ज्ञानी और विद्वान नहीं बनाया कि आप उसका सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए दुरूपयोग करें। याद रखिए समाज तो जानबूझकर पथभ्रष्ट करना या उसमें फूट डालना एक आपराधिक कृत्य है और यह भी याद रखिए कि आप चाहे आस्तिक हों या नास्तिक आप कर्मफल के सार्वकालिक और सार्वदेशिक सिद्धांत से हमेशा बंधे हुए हैं।
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