अजय कुमार, लखनऊ
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को सियासत का एक बड़ा धड़ा और देश की बड़ी आबादी एक अपरिपक्त नेता मानती है। उनकी समझदारी और गंभीरता पर बीजेपी सहित अन्य विरोधी नेता समय-समय पर सवाल खड़े करते रहते हैं। पप्पू कह कर उनका उपहास उड़ाया जाता है। भारतीय राजनैतिक इतिहास में शायद ही कोई दूसरा नेता रहा होगा जिसकी योग्यता पर इतने प्रश्न चिंह लगे होंगे, जितने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर लगते रहे हैं। कभी-कभी तो उनके द्वारा उठाये गये गंभीर से गंभीर मुद्दे भी सिर्फ इस लिये हलके पड़ जाते हैं क्योंकि इन मुद्दों को राहुल गांधी उठा रहे होते हैं।
राहुल के खिलाफ सब कुछ साजिशन नहीं किया जा रहा है। दबी जुबान से कांग्रेस में भी कभी-कभी उनकी योग्यता पर सवाल खड़े हो जाते हैं। खासकर समय-समय पर कांग्रेस छोड़ने वाले को ने तो यह कहने में जरा भी संकोच नहीं किया कि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस उभर ही नहीं सकती है। राहुल के कई बेतुके बयान और तमाम मुद्दों को लेकर उनका आधा-अछूरा ज्ञान इसकी प्रमुख वजह हैं। जैसे हाल ही में गुजरात दौरे के दौरान राहुल गांधी कहने लगे कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में कभी कोई महिला( खासकर शार्ट पहने हुए)नहीं दिखती है,जबकि संघ की महिला विंग बनी हुई है। इसकी करीब साढ़े चार हजार शाखाएं चल रही हैं। जहां ठीक वैसे ही सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जैसे संघ की अन्य शाखाओं में होता है।
राहुल के साथ समस्या यह भी है कि वह रट्टू तोते की तरह जनता के सामने आकर अपनी बात रखते हैं और चलते बनते हैं। कभी इससे इधर-उधर बोल देते हैं तो भी फंस जाते हैं। आरएएस को गांधी का हत्यारा बताये जाने के कारण राहुल कोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं। अचानक उनसे मीडिया या अन्य कोई सवाल पूछ लेता है तो उनके चेहरे की रंगत उड़ जाती है। उनके मुंह से शब्द नहीं फूटते हैं। एक नेता के बारे में आम धारणा यही रहती है कि उसे प्रत्येक क्षेत्र का थोड़ा-बहुत ही सही ज्ञान जरूर रहता है,लेकिन राहुल इसके अपवाद हैं। न तो उनके पास किसी मुद्दे को लेकर स्पष्ट सोच है और न ही मुद्दों को समझने की परख। इसके अलावा उनकी ‘सुईं’ जब जहां अटक जाती है, उससे आगे बढ़ना मुश्किल हो जाता है। काफी समय तक उनकी सुंई मोदी के कपड़ां पर ही अटकी हुई है। इसके बाद उन्होंने रट्टा मारना शुरू कर दिया कि मोदी सरकार पांच-छहः पूंजीपतियों के लिये काम कर रही है।
मोदी के विदेश दौंरों पर भी वह तंज कसते रहे हैं। एक तरह से वह जब भी मुंह खोलते हैं उनका मुंह मोदी-मोदी का जाप करने लगता है। मोदी सरकार के तीन-साढ़े तीन साल के कामकाज पर तो राहुल बार-बार उंगलियां उठाते हैं,लेकिन यह नहीं बताते हैं कि कांग्रेस सरकारों ने 60 साल में क्या किया। जनता कांग्रेस और उनको क्यों लगातार नकारती जा रही है। कांग्रेस में सभी छोटे-बड़े फैसले उनकी मर्जी से ही होते हैं, परंतु बात जब पार्टी अध्यक्ष बनने की आती है तो वह अपने कदम पीछे खींच लेते हैं। राहुल की पहचान जुमले वाले नेता के रूप में बनती जा रही है। हाल में ही दिया गया उनका बयान ‘विकास पागल’ हो गया है, खूब चर्चा बटोर रहा है तो अमित शाह के बेटे के रूप में उनको एक नया सियासी हथियार मिल गया है। कुल मिलाकार राहुल गांधी निगेटिव पालटिक्स के इर्दगिर्द अपना तांनाबाना बुनते चले आ रहे हैं।
पूरे देश में घूम घूमकर जब वह मोदी राज में विकास नहीं होने की बात करते हैं तो उनको अपना संसदीय क्षेत्र अमेठी नजर नहीं आता है, जिसका प्रतिनिधितत्व नेहरू-गांधी परिवार की तीन पीढ़ियां करती रहीं हैं। ऐसा क्यों है, इस बात का जवाब देने से राहुल गांधी भले ही कतराते हों,परंतु बीजेपी को अमेठी के बहाने राहुल को घेरने में काफी आनंद मिलता है। बीजेपी लगातार यह मैसेज देने की कोशिश कर रही है कि राहुल गांधी थोथे चने की तरह बज रहे हैं, जो अपने संसदीय क्षेत्र का विकास नहीं करा पाया, उसको देश के विकास पर प्रश्न चिंह लगाने का कोई अधिकार नहीं है। बीजेपी पूरी आक्रमकता के साथ राहुल को निरूत्तर कर देना चाहती है।
गौरतलब हो, 2014 के आम चुनाव के बाद बीजेपी ने विरोधियों के खिलाफ आक्रमकता को ही अपना हथियार बना रखा है। वह समझ गई है कि अपने राजनीतिक विरोधियों को नेस्तनाबूद करना है तो सबसे अच्छा रास्ता यही है कि उसे उसके खिलाफ आक्रमक रवैया अख्तियार किया जाये और उनको उन्हीं के गढ़ में जाकर उसे पटकनी दी जाये। इससे न सिर्फ विरोधी की हार होती है बल्कि उसका और उसके संगी-साथियों का मनोबल भी टूटता है। कांग्रेस को 2014 के आम चुनाव में 44 सीटों और उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में सात सीटों पर समेट देने के बाद बीजेपी अब राहुल गांधी के खिलाफ ऐसी रणनीति तैयार कर रही है कि राहुल अपनी सीट बचाने के चक्कर में ही उलझ जायें। अमेठी में विकास नहीं कराने वाले राहुल देश में विकास की बात करने का साहस न कर सके। राहुल को उनके गढ़ अमेठी में मात देने का मतलब है पूरे देश में कांग्रेसियों का हौसला पस्त हो जाना। इसी रणनीति के सहारे बीजेपी कांग्रेस मुक्त भारत के सपने को साकार करना चाहती है।
यूपी के अमेठी संसदीय क्षेत्र से गांधी परिवार की दो पीढ़ियां चुनाव लड़ चुकी है। अमेठी पर कांग्रेस की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां अब तक हुए 15 लोकसभा चुनावों में से 13 बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है। जिन 13 चुनावों में पार्टी ने इस सीट से जीत हासिल की है उनमें से 9 बार यहां उम्मीदवार गांधी परिवार से ही रहा।
अमेठी 1967 में लोकसभा सीट बनी थी, इसके बाद यहां 15 बार लोकसभा चुनाव हुए हैं. यहां से संजय गांधी 1980 में चुनाव लड़े और जीते। उनकी असामयिक मौत के बाद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी 1981, 1984, 1989 में यहां से विजय हुए। 1991 में भी राजीव गांधी यहां से जीते लेकिन उनके निधन के बाद कैप्टन सतीश शर्मा को यहां से उतारा गया था,वह भी चुनाव जीतने मंें सफल रहे। 1999 में सोनिया गांधी ने अमेठी से चुनाव लड़कर राजनीति में कदम रखा और जीत हासिल की। अगले चुनाव 2004 में राहुल गांधी के लिये सोनिया ने यह सीट छोड़ दी और स्वयं गांधी परिवार की एक और प्रतिष्ठित सीट रायबरेली से चुनाव लड़ने चली गईं। 2004 के बाद 2009 और 2014 में भी राहुल की जीत का सिलसिला जारी रहा,लेकिन 2014 में जीत का अंतर काफी कम हो गया।
कांग्रेस के इस गढ़ में 2014 में बीजेपी ने सबको चौंकाते हुए और राजनीतिक परंपराओं के उलट राहुल गांधी के मुकाबले में स्मृति ईरानी को मैदान में उतार दिया। स्मृति अमेठी से लोकसभा उम्मीदवार बनने से पूर्व शायद ही कभी अमेठी गई होंगी, मगर महीने भर में स्मृति ने अमेठी में शमा बांध दी। राहुल गांधी ने स्मृति ईरानी को भले ही हरा दिया हो, लेकिन हार के बाद भी स्मृति ईरानी अमेठी में लगातार सक्रिय हैं। यह तय माना जाता है कि वह 2019 में भी राहुल गांधी के सामने चुनौती पेश करेंगी। पिछले 6 महीने में ही स्मृति तीन बार अमेठी का दौरा कर चुकी हैं। स्मृति की इस कवायद का ही असर है, जो गत दिनों बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अमेठी में एक बड़ी जनसभा की। स्मृति ईरानी भी इस मौके पर मौजूद रहीं। तीनों नेताओं के निशाने पर राहुल गांधी रहे. उन्होंने वहां 21 योजनाओं का शिलान्यास किया। मकसद विकास के मुद्दे पर राहुल और गांधी परिवार को घेरना है।
राजनैतिक पंडित भी यह स्वीकार करते हैं कि गांधी परिवार का गढ़ होने के बावजूद अमेठी में विकास की वो धारा नहीं बही जो दूसरे बड़े नेताओं के इलाके में देखने को मिलती है,लेकिन अमेठीवासी इसी में खुश रहे कि वो देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार की कर्मभूमि है। परंतु विकास को लेकर जनता की बढ़ती ललक के कारण अब अमेठी की सियासी तस्वीर बदलने लगी है। 2009 के लोकसभा चुनाव में अमेठी से राहुल ने करीब 3 लाख 70 हजार वोटों से जीत हासिल की थी तो 2014 में राहुल की जीत का अंतर घटकर एक लाख के करीब रह गया। अमेठी में कुल पांच विधानसभा सीटें हैं। इस वर्ष हुए उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में अमेठी संसदीय क्षेत्र की पांच में से एक भी सीट कांग्रेस के खाते में नहीं गई। अमेठी की पांच में से 4 सीटों पर बीजेपी और एक पर सपा ने जीत दर्ज की थी. इस तरह से 2012 के विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो पांच में से महज 2 सीट कांग्रेस के पास थीं और 3 सीटें सपा के कब्जे में थीं।
अमेठी के कई कांग्रेसी नेता पार्टी छोड़कर बीजेपी और दूसरी पार्टियों का दामन थाम चुके हैं. इनमें अमेठी क्षेत्र की तिलोई विधानसभा से विधायक रहे डॉक्टर मुस्लिम ने बीएसपी का दामन थामा तो वहीं कांग्रेसी राज्यसभा सदस्य डॉ. संजय सिंह की पहली पत्नी गरिमा सिंह और बेटे आनंत विक्रम सिंह बीजेपी का दामन थामा। गरिमा सिंह फिलहाल अमेठी से विधायक हैं। 09 अक्टूबर 2017 को अमित शाह की मौजूदगी में कांग्रेसी नेता जंग बहादुर सिंह ने भी बीजेपी का दामन थाम लिया। विधानसभा चुनाव के दौरान सपा के मयंश्वर शरण सिंह बीजेपी में चले गए थे। तिलोई से उन्होंने जीत भी दर्ज की थी। इसी तरह सलोन के बीएसपी नेता रहे दलबहादुर कोरी ने भी चुनाव के दौरान बीजेपी में घर वापसी की और सलोन विधानसभा से विधायक हैं। तमाम पुराने कांग्रेसियों को अब कांग्रेस में अपना भविष्य नहीं दिखाई दे रहा है।
09 अक्टूबर को बीजेपी ने राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र में उन पर जमकर हमला बोला। उसी समय बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, सीएम योगी आदित्यनाथ ने अमेठी में कई योजनाओं की शुरुआत करके राहुल के खिलाफ ‘आग में घी’ डालने का काम किया। इस मौके पर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने राहुल के खिलाफ सधे हुए तीर छोड़ते हुए कहा कि मोदी सरकार तीन साल में युवाओं, महिलाओं, आदिवासियों, गरीबों के लिए 106 से ज्यादा योजनाएं लाईं, लगता है कि राहुल बाबा को 106 की गिनती नहीं आती है, इसलिए वह सवाल पूछते हैं कि मोदी सरकार ने क्या काम किया। शाह ने कहा कि मैंने पहली बार देखा कि जीता हुआ प्रत्याशी जनता का हाल न ले और हारा हुआ प्रत्याशी(स्मृति ईरानी) क्षेत्र में विकास का काम करें। शाह ने कहा राहुल गांधी पूरे देश में दौरा करते हैं, लेकिन अपने क्षेत्र का हाल नहीं लेते। मैं बताना चाहता हूं जब कांग्रेस की केंद्र सरकार थी तो यूपी को 2 लाख 80 हजार करोड़ मिलता था, 7 लाख 10 हजार करोड़ देने का काम मोदी सरकार ने किया है। हम यूपी को 2022 तक गुजरात बना देंगे। शाह ने राहुल को ललकारते हुए कहा कि अमेठी की धरती से कांग्रेस के शहजादे से पूछना चाहता हूं कि उनकी तीन-तीन पीढ़ी को यहां की जनता ने वोट किया। आप मोदी सरकार से तीन साल का हिसाब मांगते हो, मैं आपसे तीन पीढ़ी का हिसाब मांगता हूं।
इस मौके पर सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी राहुल को खूब खरी-खरी सुनाई और कहा कि हमने बिचौलियो को हटाया। बिचौलिया प्रथा का हटना मतलब कांग्रेस का बेरोजगार हो जाना है। आजादी के बाद कांग्रेस ने इस प्रथा की शुरुआत की थी। योगी ने कहा कि अमेठी और रायबरेली को सबसे ज्यादा चोट पहुंची है। योगी का कहना था कि बीजेपी सरकार ने अमेठी लोकसभा सीट पर हार के बावजूद इस क्षेत्र में काम किया। राज्यसभा सदस्य और केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी इस क्षेत्र के विकास के लिए काम कर रही हैं। कांग्रेस ने कभी भी इस क्षेत्र के विकास में योगदान नहीं दिया। योगी ने कहा कि जब पीएम मोदी की सरकार पैसा देती है तो इस क्षेत्र में विकास का काम होता है। योगी ने कहा कि बीजेपी की अमेठी की रैली के डर से राहुल गांधी ने कुछ दिन पहले अपने क्षेत्र का दौरा किया था।
रॉबर्ट वाड्रा और राहुल गांधी पर एक साथ निशाना साधते हुए योगी ने सम्राट साइकिल विवाद का जिक्र करते हुए कहा कि कहीं दामाद जमीन हड़पे, कहीं पुत्र ही जमीन हड़पने का काम करे, लेकिन यह यूपी में नहीं चलने देंगे। यूपी में किसी को फाउंडेशन के नाम पर किसानों की जमीन नहीं हड़पने देंगे। इस मौके पर स्मृति ईरानी ने राहुल पर वार करते हुए पिपरी गांव का उदाहरण देते हुए कहा कि इस संसदीय क्षेत्र के लोग उनसे मिल नहीं सकते हैं। स्मृति ईरानी के अनुसार लोगों का कहना है कि जब राहुल गांधी की पार्टी के कार्यकर्ता-नेता ही उनसे नहीं मिल पाते तो वे कहां से मिल सकेंगे। ईरानी ने कहा अमेठी में जो साठ साल में नहीं हो पाया, वह योगी सरकार ने सात महीनों में कर दिखाया। सम्राट साइकिल योजना का उदाहरण देते हुए ईरानी ने कहा कि सम्राट साइकिल योजना की जमीन का कब्जा राहुल के राजीव गांधी फाउंडेशन ने कर रखा है। यूपी सरकार के आदेश के बावजूद राहुल गांधी ने जमीन नहीं लौटाई। स्मृति ने कहा कि नेहरू से लेकर इंदिरा और राजीव गांधी ने ऊंचाहर से रेल लाइन का वादा तो किया लेकिन उस योजना के लिए सर्वे और 190 करोड़ का आवंटन पीएम नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में पूरा हुआ है। राहुल गांधी भी 2013 में बस इस योजना का फीता काटकर भूल गए थे।
लब्बोलुआब यह है कि राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र और कांग्रेस के गढ़ अमेठी में ‘मोदी सेना’ की ‘मोर्चाबंदी’ को 2019 लोकसभा चुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा है। 2014 के आम चुनाव में भले ही यहां से बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था, मगर बीजेपी प्रत्याशी स्मृति ईरानी कांग्रेस उम्मीदवार राहुल गांधी से मात्र 1.07 लाख वोट पीछे रहीं थीं,जबकि इससे पहले 2009 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने तीन लाख से अधिक के अंतर से चुनाव जीता था। स्मृति ईरानी की अमेठी में सक्रियता और राहुल गांधी की अमेठी के प्रति लापरवाही 2019 में यहां के नतीजे पलट भी सकते हैं।
लेखक अजय कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं.
12.10.17
कांग्रेस-भाजपा की राजनीति और बदहाल अमेठी
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