जब अमीरी में मुझे ग़ुरबत के दिन याद आ गए,
कार में बैठा हुआ पैदल सफ़र करता रहा।
ये अदभुत दो लाइनें जिनने रची हैं, उन्हीं की तस्वीर है ये, जिन्हें विजेन्द्र सिंह 'परवाज़' कहते हैं.
आजकल परवाज़ साब मोहननगर (गाजियाबाद) में रहते हैं, अपने डाक्टर पुत्र के पास. परवाज़ जी ने मधुशाला के आगे की कड़ी 'मेरा प्याला' नाम से सन 2004 में रच कर उसकी एक प्रति उन्हीं दिनों भेंट की थी. आज साफ-सफाई के दौरान इस किताब के दिखने पर मैंने इसे पढ़ना-गाना शुरू कर दिया... सुनिए 'मेरा प्याला' की कुछ लाइनें... वीडियो लिंक ये है... https://www.youtube.com/watch?v=krJtHWgDVLQ


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