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16.10.17

'प्रधानमंत्री जी, मुझे देश के लिए अखबार निकालना है, दस लाख का कर्ज दिला दीजिए'

आदरणीय प्रधानमंत्री महोदय जी
जय हिन्द
विषय.....देश के चौथे स्तंभ कहे जाने वाले मीडियाकर्मी की मन की बात।
1984 में केवल सिख परिवारों ही नहीं उजड़े तमाम हिन्दू भी उजड़े। मेरे परिवार पर भी 84 का आतंक पड़ा। बाबू जी श्री हरमंदिर साहिब से सटे बाजार में  दुपट्टे का काम छोड़कर पैतृक घर उत्तर प्रदेश के जिला गोंडा, बाजार वजीर गंज गांव मोती पुरवा चले गए। मेरी पढ़ाई दंगों की भेंट चढ़ गई। परिवार की खुशिया उजड़ गई। तीन मकान,  दो प्लाट हजारों में बिक गए जिसकी कीमत आज करोड़ो में होती।

बाबू जी ने गांव में कपड़े की दुकान खोली तो रिश्तेदारों ने ही सत्य के देव बाबू सत्यदेव को ठग लिया। उधार बाबू जी मना नहीं करते थे और रिश्तेदार पैसा देते नहीं थे। 1992 में श्री रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद में मेरे बाबू जी के मन में इतना जोश भर गया कि उन्होंने दुकान की अधिकांश बची जमां पूंजी रामभक्तों की सेवा में लगा दी। इसी दौरान मैंने बराहवीं पास की तो आगे की पढ़ाई के लिए दाखिले के लिए पैसे नहीं थे।
मैं मजबूरी में अमृतसर आकर 750 रुपये में नौकरी की। ठान लिया था कि कुछ करना है। इसी दौरान जम्मू में टीटीई की नौकरी इस लिए नहीं मिली क्योंकि इंटरव्यू में पांच हजार रिश्वत ली जा रही थी। पंजाब पुलिस में भर्ती के लिए रिश्वत जब मांगी गई तो मेरा मन रो पड़ा। मन ने सोचा कुछ ऐसा करूं कि लोग मुझे जाने और कभी भी मेरी पढ़ाई मेरे काम के आड़े न आए। मैंने ठान लिया कि मैं लीक से कुछ हटकर करूंगा। मैंने अब तक वहीं किया।
मैंने देश के नंबर वन अखबार व न्यूज चैनल के लिए ईमानदारी से काम किया लेकिन ईमानदार लोगों में मैं सदैव कांटे की तरह चुभता रहा। नतीजतन मैने अब ठान लिया है कि सच्चाई लिखनी है तो अपना अखबार ही निकालना पड़ेगा। मैने साप्ताहिक समाचार पत्र टीम वर्क के साथ शुरू कर दिया है जिसे रोजाना करने के लिए मुझे दस लाख रुपयों की जरूरत है। बैंक वाले देश के चौथे स्तंभ को कर्ज नहीं देते और शहर के तमाम सूदखोर पता नहीं क्यों मुझे रजिस्ट्री गिरवी रखकर भी कर्ज देने से खौफ खाते हैं।
प्रधानमंत्री जी, मुझे दस लाख का कर्ज दिला दीजिए, मैंने देश के लिए अखबार निकालना है। मैं कर्ज की पाई-पाई चुका दूंगा लेकिन किस्तों में। मैं अपनी दास्तां अपने अखबार में लिखना चाहता हूं क्योंकि देश के किसी न्यूज चैनल और समाचार पत्र में इतना दम नहीं बचा है कि वो सच को सच लिख सकें या दिख सके। 
मेरे पास देश को ईमानदार करने का एक ऐसा फ्रार्मूला है जिसे बिना कोई पैसा खर्च किए देश को ईमानदार बनाया जा सकता है। यही नहीं मैं यह भी होश-हवाश से लिख रहा हूं कि अगर मैं देश को ईमानदार बनाने का गलत दावा पेश करता हूं या देश मेरे दावे से सहमत नहीं है तो मुझे लाल किले पर सरेआम गोली मार दी जाए। अन्यथा मुझे देश के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति महोदय अखबार चलाने के लिए देश के किसी भी बैंक से कर्ज दिलाए। मैें बेईमान पत्रकार हूं शायद इसी लिए इस नौबत पर पहुंचा हूं कि मन की बात आप तक पहुंचा रहा हूं। मुझे रहम की भीख नहीं बल्कि रोजगार के लिए पैसे चाहिए। वैसे एक बात तय है कि मैने आपसे शुरूआत की है अभी सवा सौ करोड़ जनता बाकी है. अखबार तो निकलेगा और वो भी जल्द।
धन्यवाद
लल्लू पत्रकार
अमृतसर।
safarjagran@gmail.com

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