कठिन काम गार्ड का है बाहर ही बैठा रहता,
गर्मी, सर्दी, बरसातों की असली मार है सहता
घंटे १२ ड्यूटी करता, हरदम हँसता जाता
फिर भी अन्दर वालों से वह पैसा कम ही पाता
कहीं भूल से कोई अन्दर बिन पूछे कोई जाता
अगले दिन ही मालिक की वह कड़ी डांट पा जाता
भूल से भी यदि कहीं रात में नीद उसे आ जाती
अगले दिन की उसकी काम से छुट्टी कर दी जाती
'शिशु' की विनती लोगों से उसको कूलर दिलवादो
कुछ पैसा तुम लोग लगाओ कुछ ऑफिस से दिलवादो
18.8.10
कठिन काम गार्ड का है बाहर ही बैठा रहता
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3 comments:
ekdam satya vachan shishu ji,
jo jaan hatheli par rakh kar hammari hifajat me lage rahte hai.hammara bhi unke prati kuchh kartavy banta hai.
bahut hi sarthak kavita.
poonam
touching poem
गहरा असर छोडती है कविता.सार्थक लेखन.
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