बाढ़ का पानी उतरा तो सरकारी बाबू अपने ऑफिसों से निकल कर मुआवजा बांटने के लिए गांव में ही आ गए। बाढ़ के दौरान ही जो लोग शहर पहुंच सके थे उन्हें ऑफिसों में ही खुले दिल से मुआवजा बांट दिया गया था। बाबू रजिस्टर खोल कर नाम पुकारता और पीड़ित आगे बढ़कर अपना मुआवजा ले जाता। मुआवजा लेने वालों की भीड़ लगी थी। सब अपने अपने नाम की इंतजारी में थे। जैसे जैसे काम निपटने लगा, भीड़ के बीच खड़ी बुढ़िया की धडकनें बढ़ने लगीं। कई दिनों से कुछ न खाने के कारण पीला पला उसका चेहरा बाबू से बात करने के लिए तमतमाने लगा था। वह बड़ी उम्मीद से अपने नाम की इंतजारी कर रही थी। सब निपट गए... लोग अपने अपने घरों को लौट गए। अकेले खड़ी बुढ़िया को देख बाबू ने पूछा... ऐ क्या नाम है।सरबतिया...
बाबू ने रजिस्टर के पन्ने पलटते हुए पूछा- पति का नाम...
बुढ़िया ने शरमाते हुए बताया- लछमन...
बाबू ने पूरा रजिस्टर पलट दिया, लेकिन इस तरह के नाम का कोई पीडित उसे नहीं मिला, फिर बाबू ने पिछले पन्ने भी खंगाल दिए। एक जगह पर पेन लगाकर वोह रुक गया -अरे तेरे मरे का मुआवजा तो तेरा बेटा शहर आकर ही ले जा चुका है...पूरे पांच हजार रुपए मिले उसें... जा भाग यहां से... तू तो कागजों में मर चुकी है...बुढ़िया बाबू की बातों को हैरानी से सुन रही थी। उसकी जुबान तालू से चिपक गई, बिना कुछ बोले ही वह चुपचाप वापस लौट गई...शायद अपनी कोख को गाली दे रही थी...
12.8.10
कोख
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2 comments:
ये वाकई बहुत बुरा है। लेकिन मेरा मानना है कि ये शायद सच नहीं है। क्या आज का आदमी इतना भी गिर सकता है।
ये वाकई बहुत बुरा है। लेकिन मेरा मानना है कि ये शायद सच नहीं है। क्या आज का आदमी इतना भी गिर सकता है।
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