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17.8.10

कदर ना मेरी कदर ना तेरी कदर मिली बेअक्लों को

कदर ना मेरी कदर ना तेरी
कदर मिली बेअक्लों को
हमने जिनकी कदर खूब की
उन्हें रास ना हमशक्लों को

हमने उनका मान बढाया
इज्ज़त दी भरपूर,
उसने ऐसा काम किया कुछ
इज्ज़त हुयी कफूर

सच्ची हंसी हमारी होती
वादे भी होते पक्के
उसने पता नहीं क्या कर दिया
रह गए सब हक्के-बक्के

हमने काम किया था ज्यादा
दाम मिला पर आधा
उसने धेले भर के काम का
दाम लिया पर ज्यादा

'शिशु' चूतिया और गधे भी
हमी दोस्त कहलाये
उसने उलटे-सीधे काम से
धन-सम्मान हैं पाए

1 comment:

राजकुमार शर्मा said...

शिशुपालाजी बहुत सुंदर कविता है | इस कविता के माध्यम से आपने लोगों के वर्तमान जीवन-दर्शन को बखूबी उजागर किया है |