अजय कुमार, लखनऊ
आज भले ही कुछ लोगों ने धर्म के नाम पर हिन्दू-मुसलमानों के बीच दूरियां बढ़ा दी हों लेकिन अवध की जमीं पर हमेशा ऐसा दौर नहीं था। यहां लोग होली-दीवाली,ईद-बकरीद साथ-साथ मनाते थे। न किसी को बलि से गुरेज होता था, न कोई यह कहता था कि शरीर के जिस हिस्से पर रंग पड़ जाता है वह नापाक हो जाता है। होली के मौके पर यह बात बताना जरूरी है। बस इतना समझ लें कि यह यहां होली त्योहार से बढ़कर है। य लखनऊ के नवाबों को यहाँ की सांस्कृतिक और धार्मिक सद्भाव के अग्रदूत होने का श्रेय दिया जाता है।
भारत का सबसे उल्लासपूर्ण और रंगीन त्योहार होली बसंत के आगमन का प्रतीक माना जाता है। वसंतपंचमी के 40 दिनों के बाद होली आती है। होली मार्च महीने में फाल्गुन पूर्णिमा के दिन देशभर में मनाई जाती है, पर उत्तर प्रदेश में इसकी रंगीनी कुछ अलग ही होती है। अवध गंगा-जमुनी तहजीब का घर है। यहां होली का पर्व नवाबों के समय से ही मनाया जाता है। जब लखनऊ के हिंदू-मुसलमान मुहर्रम और होली में शरीक होते थे तो उन्होंने साझा संस्कृति की नींव रखी थी। लखनऊ की उर्दू शायरी में भी होली साफ झलकती है। लखनऊ के कई मुसलमान कवियों ने नवाबों के होली खेलने को बेहतरीन अंदाज में बयां किया है।
जब मशहूर शायर मीर दिल्ली से लखनऊ आए, तो उन्होंने तत्कालीन नवाब आसफउद्दौला को होली इतने उत्साह से मनाते देखा कि उन्होंने इस पर एक काव्य ही रच दिया। नवाब सादात अली खान के होली समारोह का वर्णन भी अद्भुत है। संग होली में हुजूर अपने जो लावे हैं हर रात कन्हैया भएं और सर पे धर लेवें मुकुट। अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह भी होली खेलने के बेहद शौकीन थे. वह न केवल उत्साह से होली खेलते, बल्कि उन्होंने होली पर कई कविताएं भी रची थीं। मोरे कन्हैया जो आए पलट के, अबके होली मैं खेलूँगी डटकेउनके पीछे मैं चुपके से जाके, रंग दूंगी उन्हें भी लिपटके गंगा-जमुनी तहजीब के शहर लखनऊ में होली मनाने की कुछ यही भावना थी।
एक दिलचस्प किस्सा अवध के लोगों के बीच भाईचारे का बंधन दर्शाता है। नवाब वाजिद अली शाह के शासन के दौरान ऐसा हुआ कि संयोग से होली और मुहर्रम एक ही दिन पड़ गए। होली हर्षोल्लास का मौका है, जबकि मुहर्रम मातम का दिन। लखनऊ अवध की राजधानी थी। वहां हिंदुओं ने मुसलमानों की भावनाओं की कद्र करते हुए उस साल होली न मनाने का फैसला किया। मुहर्रम के मातम के बाद नवाब वाजिद अली शाह ने पूछा कि शहर में होली क्यों नहीं मनाई जा रही। उन्हें जब वजह बताई गई, तो वाजिद अली शाह ने कहा कि चूंकि हिंदुओं ने मुसलमानों की भावनाओं का सम्मान किया इसलिए अब ये मुसलमानों का फर्ज है कि वो हिंदुओं की भावनाओं का सम्मान करें।
ये कहने के साथ ही उन्होंने घोषणा की कि पूरे अवध में उसी दिन होली भी मनेगी और वह खुद होली खेलने वालों में सबसे पहले शामिल हुए। ऐसी घटनाएं दिखाती हैं कि त्योहारों के जरिए देश रिश्तों में बंधता है और रसोई से निकली अलग-अलग क़िस्म के जायकों की खुशबू उन्हें साथ लाती है। फिर चाहे वह बच्चे का जन्म हो या 100 साल की उम्र में मौत, शादी के 50 साल पूरे होना हो या रमजान का महीना, सभी त्योहार और उत्सव जोश के साथ मनाए जाते हैं। इन त्योहारों की अलग संस्कृति, धर्म और पहचान हैं और ये भारत की प्राचीन परंपराओं का चेहरा और आवाज हैं।
इन त्योहारों में देश के कई चेहरे, इसके जीवंत रंग और लोगों की रचनात्मकता दिखती है। त्योहार रोजमर्रा की जिंदगी की नीरसता तोड़ते हैं। होली मौज करने और विभिन्न पकवानों का स्वाद लेने का त्योहार है. ठंडाई से भांग तक पीने का पर्व. होली में दूसरे जायकेदार पकवानों के अलावा गुजिया और मालपुआ सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। पापड़ी और दही वड़ा, भांग के वड़े, कांजी वड़ा और ठंडाई खासकर होली के मौके पर तैयार होते हैं। गुलाल के रंग में सब माफ होता है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि बिना गुजिया के होली कैसी?
आज भले ही कुछ लोगों ने धर्म के नाम पर हिन्दू-मुसलमानों के बीच दूरियां बढ़ा दी हों लेकिन अवध की जमीं पर हमेशा ऐसा दौर नहीं था। यहां लोग होली-दीवाली,ईद-बकरीद साथ-साथ मनाते थे। न किसी को बलि से गुरेज होता था, न कोई यह कहता था कि शरीर के जिस हिस्से पर रंग पड़ जाता है वह नापाक हो जाता है। होली के मौके पर यह बात बताना जरूरी है। बस इतना समझ लें कि यह यहां होली त्योहार से बढ़कर है। य लखनऊ के नवाबों को यहाँ की सांस्कृतिक और धार्मिक सद्भाव के अग्रदूत होने का श्रेय दिया जाता है।
भारत का सबसे उल्लासपूर्ण और रंगीन त्योहार होली बसंत के आगमन का प्रतीक माना जाता है। वसंतपंचमी के 40 दिनों के बाद होली आती है। होली मार्च महीने में फाल्गुन पूर्णिमा के दिन देशभर में मनाई जाती है, पर उत्तर प्रदेश में इसकी रंगीनी कुछ अलग ही होती है। अवध गंगा-जमुनी तहजीब का घर है। यहां होली का पर्व नवाबों के समय से ही मनाया जाता है। जब लखनऊ के हिंदू-मुसलमान मुहर्रम और होली में शरीक होते थे तो उन्होंने साझा संस्कृति की नींव रखी थी। लखनऊ की उर्दू शायरी में भी होली साफ झलकती है। लखनऊ के कई मुसलमान कवियों ने नवाबों के होली खेलने को बेहतरीन अंदाज में बयां किया है।
जब मशहूर शायर मीर दिल्ली से लखनऊ आए, तो उन्होंने तत्कालीन नवाब आसफउद्दौला को होली इतने उत्साह से मनाते देखा कि उन्होंने इस पर एक काव्य ही रच दिया। नवाब सादात अली खान के होली समारोह का वर्णन भी अद्भुत है। संग होली में हुजूर अपने जो लावे हैं हर रात कन्हैया भएं और सर पे धर लेवें मुकुट। अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह भी होली खेलने के बेहद शौकीन थे. वह न केवल उत्साह से होली खेलते, बल्कि उन्होंने होली पर कई कविताएं भी रची थीं। मोरे कन्हैया जो आए पलट के, अबके होली मैं खेलूँगी डटकेउनके पीछे मैं चुपके से जाके, रंग दूंगी उन्हें भी लिपटके गंगा-जमुनी तहजीब के शहर लखनऊ में होली मनाने की कुछ यही भावना थी।
एक दिलचस्प किस्सा अवध के लोगों के बीच भाईचारे का बंधन दर्शाता है। नवाब वाजिद अली शाह के शासन के दौरान ऐसा हुआ कि संयोग से होली और मुहर्रम एक ही दिन पड़ गए। होली हर्षोल्लास का मौका है, जबकि मुहर्रम मातम का दिन। लखनऊ अवध की राजधानी थी। वहां हिंदुओं ने मुसलमानों की भावनाओं की कद्र करते हुए उस साल होली न मनाने का फैसला किया। मुहर्रम के मातम के बाद नवाब वाजिद अली शाह ने पूछा कि शहर में होली क्यों नहीं मनाई जा रही। उन्हें जब वजह बताई गई, तो वाजिद अली शाह ने कहा कि चूंकि हिंदुओं ने मुसलमानों की भावनाओं का सम्मान किया इसलिए अब ये मुसलमानों का फर्ज है कि वो हिंदुओं की भावनाओं का सम्मान करें।
ये कहने के साथ ही उन्होंने घोषणा की कि पूरे अवध में उसी दिन होली भी मनेगी और वह खुद होली खेलने वालों में सबसे पहले शामिल हुए। ऐसी घटनाएं दिखाती हैं कि त्योहारों के जरिए देश रिश्तों में बंधता है और रसोई से निकली अलग-अलग क़िस्म के जायकों की खुशबू उन्हें साथ लाती है। फिर चाहे वह बच्चे का जन्म हो या 100 साल की उम्र में मौत, शादी के 50 साल पूरे होना हो या रमजान का महीना, सभी त्योहार और उत्सव जोश के साथ मनाए जाते हैं। इन त्योहारों की अलग संस्कृति, धर्म और पहचान हैं और ये भारत की प्राचीन परंपराओं का चेहरा और आवाज हैं।
इन त्योहारों में देश के कई चेहरे, इसके जीवंत रंग और लोगों की रचनात्मकता दिखती है। त्योहार रोजमर्रा की जिंदगी की नीरसता तोड़ते हैं। होली मौज करने और विभिन्न पकवानों का स्वाद लेने का त्योहार है. ठंडाई से भांग तक पीने का पर्व. होली में दूसरे जायकेदार पकवानों के अलावा गुजिया और मालपुआ सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। पापड़ी और दही वड़ा, भांग के वड़े, कांजी वड़ा और ठंडाई खासकर होली के मौके पर तैयार होते हैं। गुलाल के रंग में सब माफ होता है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि बिना गुजिया के होली कैसी?
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