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24.3.20

सीएए विरोध में लखनऊ के घंटाघर में चल रहा धरना खत्म

अजय कुमार, लखनऊ

जान है तो जहान है। वर्ना सब बेकार है। शायद इसी लिए दो महीने से अधिक समय से लखनऊ के घंटाघर में नागरिकता सुरक्षा कानूनू(सीएए) के विरोध में धरना-प्रदर्शन कर रही महिलाओं ने कोरोना खौफ के चलते अपना धरना स्वतः खत्म कर दिया है। आश्चर्यजनक बात यह रही कि जिन महिलाओं को मोदी-योगी सरकार और पुलिस के बड़े-बड़े अधिकारी नही समझा सके थे की सीएए देश के मुसलामनों को खिलाफ नहीे है, उसे कोरोना वायरस ने समझा दिया। वर्ना तो धरना दे रही दादियां यहीं हुंकार भर रही थीं कि अगर सीएए वापस नहीं हुआ तो वह लोग मरते दम तक नहीं हटेेंगी, लेकिन जब मौत सिर चढ़कर बोलने लगी तो सबने जान बचाने के लिए घंटाघर से चले जाना ही बेहतर समझा।


यानी कोरोना वायरस ने धरना दे रही दादियों को यह बात अच्छी तरह से समझा दी है कि बेहतरी इसी में हैं कि वह यहां से निकल लें। इसी के साथ नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ घंटाघर में चल रहा महिलाओं का धरना आज खत्म हो गया है।

आज सुबह पुलिस कमिश्नर सुजीत पांडे से बातचीत के बाद महिलाओं का प्रदर्शन खत्म हो गया। 17 जनवरी से यहां महिलाएं धरने पर बैठी थीं। बहरहाल,धरना खत्म करते समय भी महिलाएं यही जताती रहीं की वह धरना खत्म करके मानों प्रशासन पर बड़ा उपकार कर रही हों। पुलिस ने प्रदर्शन कर रही सभी महिलाओं को सुरक्षित घर पहुंचाया।

लखनऊ के पुलिस कमिश्नर सुजीत पांडे ने देर रात महिलाओं से बातचीत की थी और कोरोना से बढ़ते खतरे के प्रति आगाह किया था। प्रदर्शन से हटने के बाद महिलाएं धरना स्थल पर अपना दुपट्टा छोड़कर गई हैं। धरना स्थल पर झंडा भी फहरा रहा है। धरना दे रही महिलाओं का  कहना था कि कोरोना खत्म होगा तो वापस प्रदर्शन करने आएंगे। धरना स्थल पर सांकेतिक तौर पर मौजूदगी के लिए प्रदर्शनकारी महिलाओं ने ये कदम उठाया है। लखनऊ पुलिस की कार्रवाई से प्रदेश सरकार की यह बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। दंगाइयों पर वसूली के लिए पोस्टर की कार्रवाई के बाद घंटाघर का प्रदर्शन खत्म करवाना सरकार की बड़ी सफलता है।

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