बहरे कानों को सुनाने के लिए बजाई ताली थाली
आंदोलन को बदनाम करने में लगी सरकार हो रही किसानों से अलग-थलग
लखनऊ : अन्नदाता किसानों को अपमानित करने, आंदोलन पर दमन करने और आंदोलन के खिलाफ दुष्प्रचार करने के लिए रोज राष्ट्र को सम्बोधित करने वाले प्रधानमंत्री मोदी को अपने मन की बात करने की जगह भीषण ठंड में एक माह से दिल्ली के बाहर बैठे किसानों के मन की बात सुननी चाहिए। उन्हें किसानों की कानूनों की वापसी, एमएसपी पर कानून बनाने, विद्युत संशोधन विधेयक रद्द करने और पराली कानून से किसानों को राहत देने की मांग पूरी कर भीषण ठंड में जान गंवाते अन्नदाता की जान बचाने की पहल करनी चाहिए। यह बात किसान आंदोलन के राष्ट्रव्यापी आह्वान पर आज आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट और मजदूर किसान मंच के कार्यकर्ताओं ने मन की बात कार्यक्रम का विरोध करते हुए कही। आज उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों के गांवों में बहरे कानों को सुनाने के लिए मन की बात कार्यक्रम के दौरान ताली, थाली और सुपा बजाया गया। यह जानकारी एआईपीएफ के राष्ट्रीय प्रवक्ता एस. आर. दारापुरी व मजदूर किसान मंच के महासचिव डा. बृज बिहारी ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में दी। आज सुबह ही सोनभद्र के एआईपीएफ के जिला संयोजक व प्रदेश उपाध्यक्ष कांता कोल को उनके घर से पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। इसकी जानकारी होने पर घोरावल के कई गांव के एआईपीएफ कार्यकर्ताओं ने आदिवासियों के नरसंहार के लिए चर्चित उभ्भा गांव में स्थित पुलिस चौकी का घेराव कर लिया।
29.12.20
अपने मन की बात की जगह किसानों के मन की बात सुनें मोदी
भारतीय डाक विभाग की गौरवशाली परम्परा पर मंडराता संकट
नरेंद्र तिवारी
सेंधवा, मप्र
यह सुनकर बेहद अफसोस हुआ की उत्तरप्रदेश में कानपुर डाक विभाग द्वारा माफिया सरगना छोटा राजन ओर बागपत जेल में मारे गए शार्प शूटर अपराधी मुन्ना बजरंगी के फोटो वाले डाक टिकिट जारी कर दिए।यह बड़ी भूल कैसे हुई, क्यो हुई? यह जांच का विषय है।कानपुर डाक विभाग की इस घटना ने भारतीय डाक विभाग की गौरवशाली परंपरा पर प्रश्न चिन्ह अंकित करते हुए यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि समय के साथ आर्थिक दिक्कतों से विश्व की सबसे बड़ी डाक व्यवस्था भी जूझ रही है।भारतीय डाक प्रणाली का अपना गौरवशाली ओर समृद्ध इतिहास है। इतिहास डाक टिकटों का भी है जिसे आम भारतीय जनमानस श्रद्धा और सम्मान की दृष्टि से देखता है।इसे संग्रहित कर रखता है किंतु आय बढ़ाने की धुन में भारत सरकार द्वारा माई स्टाम्प योजना लागू की जिसमे निर्धारित राशि जमाकर कोई भी व्यक्ति या कम्पनी अपनी पसन्द के चित्र के साथ डाक टिकिट जारी करवा सकता है।
28.12.20
उपज का सही दाम न मिलने के कारण किसान आत्महत्या करते हैं : अन्ना हजारे
किसानों को खर्चें पर आधारित सही दाम ना मिलने का क्या कारण है?
हर राज्य में कृषि मूल्य आयोग होता हैं। इस कृषि मूल्य आयोग में, राज्य के सभी कृषि विद्यापीठ के विभिन्न कृषि उपज के वैज्ञानिक खेती की जुताई, बुवाई, बीज, उर्वरक, पानी, फसल कटाई, उत्पादन के लिए मजदुरी का दाम, बैल तथा कृषि यांत्रिक मुआवजा और कृषिउपज को मंडी तक ले जाने का खर्चा ऐसा कूल मिल कर लागत की रिपोर्ट बना कर राज्य कृषिआयोग द्वारा केंद्रीय कृषि आयोग को भेजा जाता हैं। केंद्रिय कृषि मूल्य आयोग केंद्रीय कृषि मंत्री के दायरे में कार्य करता है। इसलिए केंद्रिय कृषि मंत्री के प्रभाव में केंद्रिय कृषि आयोग राज्य कृषि मूल्य आयोग की रिपोर्ट में दिए हुए दाम में बिना वजह 10 प्रतिशत से 50 प्रतिशत तक कटौती कर देता है। परिणास्वरुप, किसानों को खर्चे पर आधारित सही दाम नहीं मिलता। एक तरफ किसानों के जीवनावश्यक जरुरतों में कपड़ा, बर्तन जैसे आवश्यक वस्तुओं के दाम बढते जा रहे है। और कृषि उपज से मिल रहें दाम बहुत ही कम मिल रहें हैं। इस कारण किसान मुसिबत में हैं।
26.12.20
एक नहीं, अनेक प्रकार की होनी चाहिए पुलिस!
गोविंद गोयल
वरिष्ठ पत्रकार, श्रीगंगानगर (राजस्थान)
एक पुलिस, हजार झंझट! लावारिस लाश मिली। पुलिस बुलाओ। कचरे मेँ भ्रूण पड़ा है। पुलिस उठाएगी/उठवाएगी। सड़क दुर्घटना। पुलिस के बिना कुछ नहीं। लावारिस डैड बॉडी का संस्कार भी पुलिस की सिरदर्दी। आग लगी तो पुलिस। झगड़ा हुआ तो पुलिस। कोई नेता आया तो पुलिस। आंदोलन तो पुलिस। कलक्टर के खिलाफ नारेबाजी तो पुलिस और मिलने जाओ तो पुलिस। सड़कों से सामान हटवाए, पुलिस। चालान काटे पुलिस। धार्मिक शोभायात्रा के आगे पुलिस। पीछे पुलिस।
25.12.20
फ़ारूक़ी साहब की कमी कोई पूरी नहीं कर सकता !!
‘गुफ़्तगू’ ने पेश किया ‘खिराज-ए-अक़ीदत
प्रयागराज। मशहूर उर्दू आलोचक शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी के निधन पर साहित्यक
संस्था गुफ़्तगू’ की तरफ से हरवारा, धूमनगंज स्थित गुफ़्तगू कार्यालय में
उन्हें खिराज-ए-अक़ीदत पेश किया गया। अध्यक्ष इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने कहा
कि पाकिस्तान के ‘निशान-ए-इम्तियाज़’ एवार्ड से लेकर पद्मश्री और सरस्वती
सम्मान तक का सफ़र तय करने वाले शम्सुरर्हमान फ़ारूक़ी ने निधन से पूरी
दुनिया में उर्दू अदब का जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई कभी नहीं की जा
सकती। मीर तक़ी मीर की शायरी पर लिखी उनकी किताब पूरे उर्दू अदब के इतिहास
में अद्वितीय है। उनके सारे का रेखांकन और मूल्याकंन पूरी तरह इमानदारी
करना भी आसान नहीं होगा। श्री ग़ाज़ी ने कहा कि फ़ारूक़ी साहब ने उर्दू की
सेवा के लिए अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, रूस, हालैंड, न्यूजीलैंड,
थाईलैंड, बेल्जियम, कनाडा, तुर्की, पश्चिमी यूरोप,सउदी अरब और कतर आदि
देशों का दौरा किया था। अमेरिका, कनाडा और इंग्लैंड के कई
विश्वविद्यालयों में कई बार लेक्चर दिया था।
24.12.20
अपनी ही छपी हिंदी का खंडन करा रहा है जागरण
दैनिक जागरण ख़बरों में हिंदी को लेकर खुद ही भ्रमित है. हिंदी के शब्दों और इसकी शुद्धता को लेकर पाठक भी नहीं समझ पा रहे हैं कि क्या सही है और क्या गलत? हर शनिवार को इस अख़बार में सप्तरंग परिशिष्ठ प्रकाशित होता है. इसमें एक कॉलम होता है "हिंदी हैं हम". इसे आचार्य पंडित पृथ्वी नाथ पांडेय लिखते हैं. वह खुद को भाषाविद बताते हैं. पहले डॉ पृथ्वी नाथ पांडेय नाम से लिखते थे...अब डॉ के बजाय आचार्य पंडित ....लिखने लगे हैं.
पत्रकारों के सवाल उठाने पर हमले क्यों?
बिना मांगे कृषि कानून लाने वाली सरकार पत्रकार सुरक्षा की मांग पर मौन क्यों? लोकतंत्र बचाने के लिए डब्ल्यूजेआई ने अविलंब पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग की
नई दिल्ली : पत्रकारिता के गढ़ दिल्ली और संपूर्ण क्रांति का सूत्र स्थल पटना ने सरकार के सामने यक्ष प्रश्न खड़ा कर दिया है. वह है किसान कल्याण का हित और लोकतंत्र व पत्रकारिता की रक्षा का।
सत्ता के दम पर किसान से किसान को भिड़वा रही भाजपा!
CHARAN SINGH RAJPUT-
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पैदा हो रही खूनी संघर्ष की आशंका
इसे भाजपा की बेशर्मी ही कहा जाएगा कि जब किसान आंदोलन को खालिस्तान के नाम पर बदनाम न किया जा सका। टोपी के नाम पर बदनाम न किया जा सका। नकली किसान के नाम पर बदनाम न किया जा सका, विपक्ष के नेताओं के बरगलाने के नाम पर बदनाम न किया जा सका। जब अपने लोगों को आंदोलन में भेज माहौल खराब न किया जा सका तो अब किसान को किसान से ही लड़ाने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया। अब मोदी सरकार के साथ ही भाजपा शासित राज्यों के नेता शासन और प्रशासन के दम पर किसानों को आंदोलन के विरोध में तैयार कर रहे हैं। दबाव बनाकर कानूनों का समर्थन करा रहे हैं। गौतमबुद्धनगर में कुछ भाजपा नेताओं ने किसान संघर्ष समिति के कुछ नेताओं को विश्वास में लेकर किसान कानूनों के पक्ष में समर्थन दिलवा दिया दिया। भाजपा नेताओं का ऐसा करने से समिति में शामिल सपा नेताओं में भारी आक्रोश देखने को मिल रहा है।
पत्रकारिता के आदर्श पुरुष थे मालवीय और वाजपेयी : राम बहादुर राय
पंडित मदन मोहन मालवीय एवं श्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित हुआ कार्यक्रम
नई दिल्ली, 24 दिसंबर। ''पत्रकारिता के क्षेत्र में पंडित मदन मोहन मालवीय एवं अटल बिहारी वाजपेयी के विचार और उनका आचरण पत्रकारों के लिए आदर्श हैं। इन दोनों राष्ट्रनायकों ने हमें यह सिखाया कि पत्रकारिता का पहला कर्तव्य समाज को जागृत करना है।'' यह विचार पद्यश्री से अलंकृत वरिष्ठ पत्रकार एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली के अध्यक्ष श्री राम बहादुर राय ने गुरुवार को भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) द्वारा आयोजित कार्यक्रम 'योद्धा पत्रकार : पुण्य स्मरण' में व्यक्त किए। भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय एवं पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती की पूर्व संध्या पर आयोजित इस समारोह में प्रसार भारती बोर्ड के सदस्य एवं अटल बिहारी वाजपेयी के तत्कालीन मीडिया सलाहाकार श्री अशोक टंडन, आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी, अपर महानिदेशक श्री के. सतीश नंबूदिरीपाड एवं अपर महानिदेशक (प्रशिक्षण) श्रीमती ममता वर्मा भी मौजूद थीं।
इफ्को दुर्घटना का सच सामने लाए प्रबंधन
मृत व घायल कर्मियों के प्रति व्यक्त की संवेदनाएं
लखनऊ 24 दिसम्बर 2020, इलाहाबाद के फूलपुर स्थित खाद के इफ्को कारखाने में अमोनिया गैस रिसाव के कारण मृत हुए दो कर्मियों वी. पी. सिंह और अभय नंदन और घायल हुए अन्य कर्मियों के प्रति अपनी संवेदनाएं व्यक्त करते हुए प्रेस को जारी अपने बयान में वर्कर्स फ्रंट के अध्यक्ष दिनकर कपूर ने कहा कि इफ्को के प्रबंधन को इस दुर्घटना के कारणों की सच्चाई जनता के सामने लानी चाहिए और इसकी जवाबदेही तय करनी चाहिए।
23.12.20
वोराजी, जिन्होंने सत्ता को पत्रकारिता का रसूख बताया!
-जयराम शुक्ल
मार्च 1985 के दूसरे हफ्ते जब मोतीलाल वोरा मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के तौरपर शपथ ली तो दूसरे दिन अखबार की सुर्खियों में उनकी योग्यता व कर्मठता के बखान की जगह परिस्थितिजन्य खड़ाऊँ मुख्यमंत्री का विशेषण मिला। बात स्वाभाविक भी लगती थी। 11मार्च को अर्जुन सिंह ने दूसरी बार शपथ ली, लेकिन राजीव गांधी को क्या सूझा कि उन्हें दूसरे दिन ही चंडीगढ़ के राजभवन में बतौर राज्यपाल शपथ लेने का हुक्म जारी कर दिया।
22.12.20
कोविड -19 की वैक्सीन : दावे हैं दावों का क्या ?
- शैलेन्द्र चौहान
कम से कम पिछले छह महीनों से बहुत बेसब्री से दुनिया को कोरोना वैक्सीन का इंतजार है. कब वैक्सीन आए और कब कोरोना विदा हो. लेकिन आपात् स्थिति में त्वरित गति से विकसित वैक्सीन की विश्वसनीयता और उसके प्रभाव को लेकर कुछ चिंता भी है कि आखिर यह वैक्सीन कितनी सुरक्षित है. अब कई कंपनियों की वैक्सीन के उपयोग की अनुमति कुछ देशों में मिल गई है. यूं दावा तो सभी कंपनियां यही कर रही हैं कि उनकी वैक्सीन प्रभावी और सुरक्षित है पर इसके प्रभाव और परिणाम की अभी प्रतीक्षा है. जहाँ ब्रिटेन में फाइजर, मॉडर्ना सहित लगातार उनके उपयोग को अप्रूवल मिल रहा है वहीं भारत में सीरम इंस्टीट्यूटऔर भारत बायोटेक की कोरोना वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल के आवेदनों को स्वास्थ्य विशेषज्ञों की एक कमेटी द्वारा मंजूरी नहीं मिल सकी. दोनों ही कंपनियों से अगली बैठक में और डाटा देने को कहा गया है. हालांकि बैठक की तारीख अभी तय नहीं है. वैक्सीन की उपयुक्तता पर अंतिम निर्णय ड्रग कंट्रोलर आफ इंडिया उर्फ डीजीसीआई द्वारा लिया जाएगा.
घुमक्कड़ी : कसौली - एक अलहदा संसार...
सक्षम द्विवेदी-
पर्वतों में हमेशा ही एक अलहदा आकर्षण होता है। यहाँ पर प्रकाश परावर्तन, बादल व छाया इतने खूबसूरत बिंब उत्पन्न करते हैं कि ये तय कर पाना मुश्किल हो जाता है कि किस ओर नेत्रों को केंद्रित किया जाए ? कसौली की विशिष्टता यहाँ का धार्मिक सद्भाव व हर ओर फैले हुए रंग-बिरंगे फूल हैं। यहाँ के कुछ फूलों की सुगंध इतनी विशिष्ट है कि वे सीधे गले में जाकर टकराती है।
21.12.20
वरिष्ठ पत्रकार ने पत्र लिखकर पूछा- कृषि संशोधन कानून की जरूरत क्यों पड़ी?
श्रीमान नरेन्द्रसिंह तोमर
कृषि मंत्री भारत सरकार
नई दिल्ली
विषय:- कृषि संशोधन कानून की जरूरत क्यों पड़ी?
श्रीमान ,
मुझे ये तो पता नहीं आपका खेती बाड़ी से कोई सम्बन्ध है या नहीं लेकिन खाते तो आनाज फल या मेवे ही होंगे जो खेती की उपज है फिर भी आप व्यक्ति गत रूप से तो दुखी होंगे कि आपकी सरकार अन्नदाता से सौतेला व्यवहार क्यों कर रही है ? आपकी सरकार ने खेतों की उपज पर जीवन यापन करने वाले किसानों से बार बार वायदा किया है कि उनकी फसल आय दोगुनी कर देंगे , उस वायदे की पूर्ति के लिए महामारी से पीड़ित देश में आपका विभाग एक एक करके तीन कृषि संशोधन अध्यादेश महामहिम राष्ट्रपति से जारी कराए जो आपकी सरकार की मंशा पर स्वंय शक की सुई इंगित करती है जिसे और मजबूत करने के लिए आपकी सरकार ने कोरोना काल में प्रतिपक्ष के साथ संसदीय परम्पराओं को तक में रख कर पहले लोकसभा में फिर राज्यसभा में ध्वनि मत से पारित कराया जो शतप्रतिशत आपकी सरकार की नियत पर सवालिया निशान लगाती है आखिर ऐसी क्या मजबूरी थी ? भारतीय जनता पार्टी सरकार ने अपने बहुमत का दुरुपयोग किया ? ये पूरा कार्यक्रम पूरी तरह लोकतांत्रिक प्रक्रिया के घोर खिलाफ है जबकि आपकी पार्टी स्वच्छ लोकतंत्र की पैरोकार रही है तोमर जी आप भली भांति जानतें हैं कि आपकी पार्टी ने देश के मुसलमानों के बाद दूसरी बड़ी बिरादरी किसानों को रुष्ट किया है एक को संघ के कारण तो दूसरी को उधोगपतियों को दोनों बिरादरी जनाधार वाली हैं ये जानते हुए भी आपकी सरकार बड़े वोट बैंक को नाराज कर किसे खुश करना चाहती है जिसे देश की जनता तो जान चुकी है लेकिन आप दबाए बैठें हैं ।
19.12.20
काकोरी काण्ड बलिदान दिवस की 93वीं बरसी पर श्रद्धांजलि सभा, वीर रस कवि सम्मेलन व मुशायरे का आयोजन
क्रांतिकारी राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी, अशफाक उल्ला खां, ठाकुर रौशन सिंह व पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल की शहादत को यूँ ही नहीं भुलाया जा सकता है । खाली हाथ कोई जंग नहीं जीती जा सकती ।अंग्रेजी हुकूमत को कांटे की टक्कर देने के लिए जरूरी था हथियारों से लैस होना और उसके लिए चाहिए पैसा । जी हां क्रांतिकारियों को हथियार खरीदने के लिए पैसे कहाँ से आते । सो क्रांतिकारियों को जो रास्ता समझ में आया सो उन्होंने अपनाया और दे डाला ट्रेन डकैती को अंजाम । जो आगे चलकर काकोरी कांड के नाम से मशहूर हुआ । खोदा पहाड़ निकली चुहिया की कहावत सच साबित हुई । ट्रेन डकैती में मिली छोटी सी धनराशि मगर जिसकी वजह से मौत को गले लगाना पड़ा । क्रमशः 17 व 19 दिसम्बर, 1927 को इन चारों आजादी के परवानों को अलग अलग जेलों में फांसी के फंदे पर लटका दिया गया था । जिनकी कहानी सुनकर रगों में खून उबाल मारने लगता है ऐसे अमर सपूतों को नमन करते हुए काकोरी स्थित शहीद मंदिर में मार्तण्ड साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था के द्वारा पण्डित बेअदब लखनवी के संयोजन में आयोजित श्रद्धांजलि समारोह, कवि सम्मेलन एवं मुशायरे में कवियों व शायरों ने अमर बलिदानियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपने अपने कलाम पेश किया ।
बंगला देश की दोस्ती ने बता दिया की पडोसी ही पडोसी के काम आता है
कोरोना वायरस की वजह से पूरी दुनिया में वर्चुअल बैठकें हो रही हैं| हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के साथ अपनी बैठक में वर्चुअल बैठक का जिक्र किया और कहा कि दोनों नेताओं के बीच यह माध्यम नया नहीं है और दोनों नेता इस माध्यम से बातचीत करते रहे हैं| दोनों नेताओं के बीच बैठक ऐसे समय में हुई जब बांग्लादेश की आजादी को 50 साल पूरे हुए हैं और देश विजय दिवस मना रहा है |मोदी ने इस मौके पर कहा कि वैश्विक महामारी के कारण ये वर्ष चुनौतीपूर्ण रहा है लेकिन संतोष का विषय है कि भारत और बांग्लादेश के बीच अच्छा सहयोग रहा, वैक्सीन के क्षेत्र में भी हमारे बीच अच्छा सहयोग चल रहा है | इस सिलसिले में हम आपकी आवश्यकताओं का भी विशेष ध्यान रखेंगे.| मोदी ने कहा आगे कहा कि विजय दिवस के तुरंत बाद हमारी मुलाकात और भी अधिक महत्व रखती है| एंटी लिब्रेशन फोर्सेस पर बांग्लादेश की ऐतिहासिक जीत को आपके साथ विजय दिवस के रूप में मनाना हमारे लिए गर्व की बात है | दूसरी तरफ प्रधानमंत्री हसीना ने 1971 के युद्ध में शहीद हुए भारतीय जवानों को श्रद्धांजलि देते हुए उन्होंने बांग्लादेश की आजादी में भारतीय फौज और भारत की अहम भूमिका को याद किया| हसीना ने भारत को "सच्चा दोस्त" बताया| हसीना ने पिछले साल दिल्ली स्थित हैदराबाद हाउस में दोनों नेताओं की मुलाकात को याद भी किया| कोरोना वायरस महामारी का जिक्र करते हुए हसीना ने कहा कि दुनियाभर में लाखों लोगों की इस वजह से मौत हुई, करोड़ों लोगों की आजीविका प्रभावित हुई और बीमारी के कारण अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा है|
18.12.20
किसानों को आतंकी बताने वाले न्यूज चैनलों को कांग्रेसी सरकारें क्यों दे रही हैं विज्ञापन?
-सुरेशचंद्र रोहरा
भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बतौर छत्तीसगढ़ सरकार के 2 वर्ष पूर्ण हो गए हैं. ऐसे समय में परंपरा रही है सरकार अपनी नीतियों विकास और कामकाज के प्रदर्शन विज्ञापन जारी करे. यह परंपरा भूपेश बघेल सरकार भी निभा रही है. यह सब ठीक है. मगर मुख्यमंत्री जी...! कुछ ऐसे राष्ट्रीय चैनलों में विज्ञापन चल रहे हैं जिन पर आरोप है कि वे किसानों को देशद्रोही, आतंकवादी बता रहे हैं. ऐसा करते हुए पत्रकारिता धर्म का निर्वहन नहीं किया. किसानों की जायज मांगों के खिलाफ देशभर में माहौल बनाने का काम ये चैनल करते रहे हैं. यह देखकर बहुत कष्ट हुआ. माननीय मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी, आप से मेरी करबद्ध प्रार्थना है, जनहित में मांग है कि ऐसे मीडिया संस्थान को छत्तीसगढ़ सरकार आपके मुख्यमंत्री काल में एक रुपए का भी विज्ञापन न जारी करे.
16.12.20
JFA bats for supports to newspaper industry but with condition
JFA bats for supports to newspaper industry but with condition
Guwahati: Journalists’ Forum Assam (JFA) advocates for due supports to
the Indian newspaper industry, which is facing an exceptional crisis
because of the Covid-19 pandemic affecting both of its circulation and
advertise revenues since March 2020, but with the condition that
every media group would pay their employees according to the concerned
wage board guidelines endorsed by the Supreme Court of India.
बदलते परिवेश में बदलती नजर आ रही है पत्रकारिता
पत्रकार सत्येन्द्र सिंह राजपुरोहित
कल देश गुलाम था पत्रकार आजाद, लेकिन आज देश आजाद है और पत्रकार गुलाम। देश में गुलामी जब कानून था तो पत्रकारिता की शुरुआत कर लोगों के अंदर क्रांति को पैदा करने का काम हुआ। आज जब हमारा देश आजाद है तो हमारे शब्द गुलाम हो गए हैं। कल जब एक पत्रकार लिखने बैठता था तो कलम रुकती ही नहीं थी, लेकिन आज पत्रकार लिखते-लिखते स्वयं रुक जाता है, क्योंकि जितना डर पत्रकारों को बीते समय में परायों से नहीं था, उससे ज्यादा भय आज अपनों से है।
मजदूरों की गुलामी के दस्तावेज हैं मोदी सरकार के लेबर कोड
काम के घंटे 12, सैकड़ों साल के संघर्ष से हासिल अधिकार का खात्मा
जमाखोरी, न्यूनतम समर्थन मूल्य के खात्मे, ठेका खेती के जरिए जमीनों पर कब्जा करने और देश की खाद्य सुरक्षा को खतरे में डालकर खेती किसानी को देशी विदेशी कारपोरेट घरानों के हवाले करने की आरएसएस-भाजपा की मोदी सरकार की कोशिश के खिलाफ पूरे देश के किसान आंदोलनरत है। सरकार और आरएसएस के प्रचार तंत्र द्वारा आंदोलन को बदनाम करने, उस पर दमन ढाने और उसमें तोड़-फोड़ करने की तमाम कोशिशों के बावजूद आंदोलन न सिर्फ मजबूती से टिका हुआ है बल्कि उसके समर्थन का दायरा भी लगातार बढ़ रहा है। किसान विरोधी तीनों कानूनों को रद्द करने, विद्युत संशोधन विधेयक 2020 को वापस लेने और न्यूनतम समर्थन मूल्य का कानून बनाने की मांग जोर पकड़ रही है और ‘सरकार की मजबूरी-अडानी, अम्बानी, जमाखोरी‘ का नारा जन नारा बन रहा है।
12.12.20
साहित्य के एलियन्स
सुनील जैन राही
एम-9810960285
साहित्य धरा पर छुपे हुए एलियन्स की खबर सुन साहित्य जगत थर्रा गया। साहित्य के एलियन्स कैसे होंगे? साहित्य में उन्हें किस रूप में जाना जाएगा। अगर उनकी पहचान नहीं हुई तो साहित्य का बड़ा नुकसान होगा। इस नुकसान की भरपाई कौन करेगा? जब साहित्य में भी एलियन्स हैं तो उन्हें सामने लाना जरूरी है। अगर सामने नहीं आते तो भितरघात की संभावना बढ़ जाएगी। भितरघात साहित्य की मूल प्रवृत्ति है। अगर इस पर उनका कब्जा हो गया तो साहित्य के भितरघातियों का क्या होगा? पहले ही भितरघात से साहित्य तार-तार हुआ जा रहा है। साहित्य भितरघात से ही तो समृद्ध होता है और अगर यह विधा ही एलियन्स के पास चली गयी तो साहित्य में बचेगा क्या?
11.12.20
डांवाडोल शहडोल की दूसरी मिसाल
मध्यप्रदेश के राज्य सूचना आयुक्त विजय मनोहर तिवारी ने आरटीआई के नजरिए से अपने फेसबुक पेज पर एक तीखी पोस्ट लिखी है। बच्चों की लगातार मौत के कारण सुर्खियों में बने आदिवासी बहुल शहडोल जिले की डंवाडोल हालत पर यह पोस्ट पूरे प्रशासनिक तंत्र पर सवाल खड़े कर रही है। उन्होंने इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ध्यान आकर्षित किया है, क्योंकि यहाँ केंद्र सरकार की महात्वाकांक्षी कौशल विकास योजना में भारी गोलमाल है...
9.12.20
'तारक मेहता का उल्टा चश्मा' के लेखक ने सुसाइड क्यों किया?
आशाओं का संचार करते धारावाहिक के लेखक की निराशा... भारतीय टेलीविजन जगत के सुप्रसिद्ध हास्य धारावाहिक तारक मेहता का उल्टा चश्मा दर्शको का प्रिय,मनोरंजक सीरियल बीते 12 बरसो से लगातार बना हुआ है। इसके लेखकों में से एक अभिषेक मकवाना की आत्महत्या की खबर ने बहुत निराश किया है। यही नही कोरोनाकाल मे अभिनय की दुनिया के चर्चित चेहरों के द्वारा जीवन समाप्त करने की निराशावादी सोच ने भी मन को बहुत दुखी किया है। यह भी लगा कि फिल्मी दुनियाँ के लेखकों,कलाकारों का वास्तविक दुनियाँ से कोई सरोकार नही होता है।जीवन को समाप्त करने की भावना का प्रबल होना निराशावादी प्रवृत्ति का उदाहरण है।इसे सादगी पूर्ण जीवन शैली से दूर किया जा सकता है।गांधी की सादगी इस दौर में जीने का बेहतर तरीका हो सकता है।
10 दिसंबर जयंती पर विशेष : हिन्दू-मुस्लिम एकता और आज़ादी के नायक - मौलाना मोहम्मद अली जौहर
"दौर-ए-हयात आएगा क़ातिल क़ज़ा के बाद,
है इब्तिदा हमारी तिरी इंतिहा के बाद।"
मौलाना मोहम्मद अली जौहर को मोहम्मद अली के नाम से भी जाना जाता है जो स्वतंत्रता के भावुक सेनानियों में थे। वह एक बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्ति थे और उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ प्रयासों में एक बड़ी भूमिका निभाई थी। वह एक भारतीय मुस्लिम नेता, कार्यकर्ता, विद्वान, पत्रकार कवि /शायर,एक दूरदर्शी राजनीतिज्ञ और एक बेहतरीन वक्ता भी थे । रोहिलात्री के यूसुफ ज़ई कबीले से ताल्लुक रखते थे जो पठानों का एक धनी और प्रबुद्ध परिवार था। मौलाना मोहम्मद अली जौहर का जन्म 10 दिसंबर 1878 को रामपुर रियासत में शेख अब्दुल अली खान के घर हुआ। उनकी माता आबादी बानो बेगम को 'बी अम्मा' के नाम से जाना जाता है। पांच भाई-बहनों में वह सबसे छोटे थे। वह दिग्गज अली बंधुओं में से एक और मोहम्मद अली मौलाना शौकत अली के भाई थे। मोहम्मद अली और मौलाना शौकत अली भारतीय राजनीति में 'अली बन्धुओं' के नाम से मशहूर हैं।
किसान आंदोलन की गूंज अब भारत के खेतों तक पहुंची
नरेंद्र तिवारी
सेंधवा : बेशक दिल्ली में जारी किसान आंदोलन अब राष्ट्रव्यापी हो गया है। केंद्र सरकार इन कानूनों को वापिस लेती है,या आंशिक संसोधन करती है,यह आगामी दिनों में साफ हो पाएगा। आंदोलन कब तक जारी रहेगा यह भी किसान संगठनों की आगामी रणनीति के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा।बहरहाल किसानों के दिल्ली जाने वाले रास्तो को खोद देने वाली सरकार,किसानों पर वाटर केनन,अश्रुगैस,लाठियां चलाने वाली सरकार, बयानों ओर तर्को के माध्यम से पूरे आंदोलन पर दोषारोपण करने वाली सरकार, आंदोलन को विपक्षी राजनीति से प्रेरित बताने वाली सरकार अब किसानों की मांगों को सुनने के लिए बाध्य हुई है। बातचीत के अनेको दौर अब तक बेनतीजा रहे है। भारत बंद के बाद देश के गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को किसान संगठनों के नेताओ को बातचीत के लिए आमंत्रित किया है। किसान आंदोलन को लेकर सरकार के मंत्रियों ,पक्ष-विपक्ष नेताओ, एवं सोशल मीडिया पर चल रही बहसों पर देश का किसान कान लगाए हुए है।वे किसान जो दिल्ली पहुचकर आंदोलन में तो शामिल नही हो सके वे यह सब देखकर,सुनकरअपनी धारणाए निर्मित कर रहे है।वह यह भी जान रहे है की सरकार का किसानों के प्रति क्या रवैय्या है? और विपक्षी दल क्या चाहते है?दरअसल अब यह आंदोलन भारत के खेतों में कार्यरत किसानों की चर्चा का विषय बन चुका है।
8.12.20
किसान आंदोलन पर गोदी मीडिया का दिवालियापन तो देखिए…
Himanshu Sharan
किसानों को खालिस्तानी कहने वाले मीडिया के चाटुकार सच में दिमागी तौर पर या तो पंगु हैं या फिर उनकी समझ उनका साथ नहीं दे रही...आंखों पर पट्टी बांधकर ऐसे चाटने में लगे हैं जैसे सरकार इन्हे चाशनी लगा के चटा रही है...ये दिमागी तौर पर अंधे ये भी भूल गए कि जिन किसानों पर लाठियां बरसीं वो भूखे जवानों को खाना भी खुद बना कर खिला रहे थे...
6.12.20
हर ट्रेन की यही कहानी , टूटे फ्लश – बेसिन में पानी !!
30.11.20
क्या ‘जंतर मंतर ‘बन पाएगा नया शाहीन बाग़?
श्रवण गर्ग-
कोरोना के आपातकाल में भी दिल्ली की सीमाओं पर यह जो हलचल हो रही है क्या वह कुछ अलग नहीं नज़र आ रही ? हज़ारों लोग—जिनमें बूढ़े और जवान , पुरुष और महिलाएँ सभी शामिल हैं—पुलिस की लाठियों ,अश्रु गैस के गोलों और ठंडे पानी की बौछारों को ललकारते और लांघते हुए पंजाब, हरियाणा और अन्य राज्यों से दिल्ली पहुँच रहे हैं।उस दिल्ली में जो मुल्क की राजधानी है, जहां जो हुक्मरान चले गए हैं उनकी बड़ी-बड़ी समाधियाँ हैं और जो वर्तमान में क़ायम हैं उनकी बड़ी-बड़ी कोठियाँ और बंगले हैं।
कोरोना के कारण पिछले आठ महीनों से जिस सन्नाटे के साथ करोड़ों लोगों के जिस्मों और साँसों को बांध दिया गया था उसका टूटना ज़रूरी भी हो गया था।लोग लगातार डरते हुए अपने आप में ही सिमटते जा रहे थे।चेहरों पर मास्क और दो गज की दूरी प्रतीक चिन्हों में शामिल हो रहे थे।लगने लगा था कि मार्च 2020 के पहले जो भारत था वह कहीं पीछे छूट गया है और उसकी पदचाप भी अब कभी सुनाई नहीं देगी।पर अचानक से कुछ हुआ और लगने लगा कि लोग अभी अपनी जगहों पर ही क़ायम हैं और उनकी आवाज़ें भी गुम नहीं हुईं हैं।
अभी कुछ महीनों पहले की ही तो बात है जब ऐसे ही हज़ारों-लाखों लोगों के झुंड सड़कों पर उमड़े थे।पर वे डरे हुए थे ।सब थके माँदे और किसी अज्ञात आशंका के भय से बिना रुके अपने उन घरों की ओर लौटने की जल्दी में थे जो काफ़ी पहले उनके पेट ने छुड़वा दिए थे।इन तमाम लोगों के खून सने तलवों की आहटें कब सरकारें बनाने के लिए ख़ामोश हो गईं पता ही नहीं चला।अपनी परेशानियों को लेकर किसी भी तरह की नाराज़गी का कोई स्वर न तो किसी कोने से फूटा और न ही इ वी एम के ज़रिए ही ज़ाहिर हुआ।राजनीति ,वोटों के साथ आक्रोश को भी ख़रीद लेती है।सबकुछ फिर से सामान्य भी हो गया।जो पैदल लौट कर गए थे उन्हें वातानुकूलित बसों और विमानों से वापस भी बुला लिया गया।मशीनें और कारख़ाने फिर से चलने लगे।मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर में जी डी पी में सुधार भी नज़र आने लगा।
यह जो हलचल अब पंजाब से चलकर हरियाणा के रास्ते राजधानी पहुँची है उसकी पदचाप भी अलग है और ज़ुबान में भी एक ख़ास क़िस्म की खनक है।सरकार माँगों को लेकर उतनी चिंतित नहीं है जितनी कि इस नई और अप्रत्याशित हलचल को लेकर।राजधानी दिल्ली पहले भी ऐसे कई आंदोलनों को देख चुकी है।कई बलपूर्वक दबा और कुचल दिए गए और कुछ उचित समर्थन मूल्य पर ख़रीद लिए गए।आंदोलन ,सरकारों और आंदोलनकारियों , दोनों के धैर्य की परीक्षा लेते हैं।नागरिकों की भूमिका आमतौर पर तमाशबीनों या शिकायत करने वालों की होती है।वैसे भी ज़्यादातर नागरिक इस समय वैक्सीन को लेकर ही चिंतित हैं जो कि जगह-जगह ढूँढी भी जा रही है।निश्चित ही सारी पदचापें सभी जगह सुनाई भी नहीं देतीं हैं।
सरकार ने किसानों को बातचीत के लिए आमंत्रित किया है।बातचीत होगी भी पर तय नहीं कि नतीजे किसानों की मांग के अनुसार ही निकलें।अपवादों को छोड़ दें तो सरकारें किसी ख़ास संकल्प के साथ लिए गए फ़ैसलों को वापस लेती भी नहीं।वर्तमान सरकार का रुख़ तो और भी साफ़ है।पिछली और आख़री बार अनुसूचित जाति/जनजाति क़ानून में संशोधन को लेकर व्यापक विरोध के समक्ष सरकार झुक चुकी है।ठीक वैसे ही जैसे राजीव गांधी सरकार शाहबानो मामले में झुक गई थी पर तब आरिफ़ मोहम्मद नाम के एक मंत्री इस समझौते के विरोध में मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा देने के लिए उपस्थित थे।
किसान आंदोलन से निकलने वाले परिणामों को देश के चश्मे से यूँ देखे जाने की ज़रूरत है कि उनकी माँगों के साथ किसी भी तरह के समझौते का होना अथवा न होना देश में नागरिक-हितों को लेकर प्रजातांत्रिक शिकायतों के प्रति सरकार के संकल्पों की सूचना देगा।ज़ाहिर ही है कि किसान तो अपना राशन-पानी लेकर एक लम्बी लड़ाई लड़ने की तैयारी के साथ दिल्ली पहुँचे हैं पर यह स्पष्ट नहीं है कि उनके साथ निपटने की सरकारी तैयारियाँ किस तरह की हैं ! शाहीन बाग़ के सौ दिनों से ज़्यादा लम्बे चले धरने के परिणाम स्मृतियों से अभी धुंधले नहीं हुए हैं।किसानों ने दिल्ली के निकट बुराड़ी गाँव की ‘खुली जेल‘ को अपने धरने का ठिकाना बनाने के सरकारी प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। तो क्या सरकार किसानों की मांग मानते हुए ‘‘जंतर मंतर’ को नया शाहीन बाग़ बनने देगी ? ऐसा लगता तो नहीं है। तो फिर क्या होगा ?
देश की एक बड़ी आबादी इस समय दिल्ली की तरफ़ इसलिए भी मुँह करके नहीं देख पा रही है कि मीडिया के पहरेदारों ने अपनी चौकसी बढ़ा रखी है। इस तरह के संकटकाल में मीडिया व्यवस्था को निःशस्त्र सेनाओं की तरह सेवाएँ देने लगता है।अतः केवल प्रतीक्षा ही की सकती है कि किसान अपने आंदोलन में सफल होते हैं या फिर उन्हें भी प्रवासी मज़दूरों की तरह ही पानी की बौछारों से गीले हुए कपड़ों और आंसुओं के साथ ख़ाली हाथ अपने खेतों की ओर लौटना पड़ेगा ! किसानों के आंदोलन के साथ देश की जनता के सिर्फ़ पेट ही नहीं उनकी बोलने की आज़ादी भी जुड़ी हुई है।
मीडिया को सजग होकर ‘विकासोन्मुख पत्रक़ारिता’ को बढ़ावा देना चाहिए
सिरोही शहर में पिछले दिनों एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया. आयोजक था 'मैं भारत फ़ाउंडेशन'. ग्रामीण उद्योग एवं स्वरोज़गार मुहिम के तहत ‘वोकल फ़ोर लोकल में मीडिया, प्रशासन एवं सामाजिक संगठनों की भूमिका’ विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी में मुख्य वक़्ता थे भारतीय जन संचार संस्थान के प्रोफेसर डॉ राकेश गोस्वामी और 'मैं भारत फाउंडेशन' के संस्थापक अध्यक्ष रितेश शर्मा.
29.11.20
यूट्यूब पर फर्जी पत्रकारों की बाढ़
akhilesh dubey
akhileshd884@gmail.com
अण्डरकवर जर्नलिज्म यानी स्टिंग ऑपरेशन के नाम पर सिवनी में फर्जी पत्रकार गैंग की वसूली का दौर निरंतर चल रहा है। अखबारों, अलंकार, अनुप्रास और शब्दों के जाल से कोसों दूर इस गैंग ने अलग-अलग नाम से कई तरह के यू-ट्यूब चैनल बना रखे हैं, जिस पर केवल और केवल स्टिंग ऑपरेशन कर बद्नीयति से वीडियो लोड किया जाता है, उसके बाद वसूली का खेल शुरू हो जाता है। जिसमें एक से अधिक लोग मिलकर इस वसूली के षड्यंत्र को अंजाम देते हैं।
28.11.20
मोदी सरकार की हेकड़ी निकालेगा किसान आंदोलन!
CHARAN SINGH RAJPUT
मोदी सरकार द्वारा पारित कराये गये किसान बिलों के खिलाफ दिल्ली बोर्डरों पर डटे किसानों पर दमनात्मक नीति अपनाकर भले ही मोदी सरकार उनकी आवाज को दबाने में लगा लगी हो, भले ही सरकार ने गोदी मीडिया किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए लगा दिया हो, भले ही सरकार ने अपनी आईटी सेल को किसान आंदोलन को खालिस्तानी समर्थकों से जुड़वाकर उनके हाथों में तलवारें और डंडे दर्शाकर उनकी छवि को खराब करने के लिए लगा दिया हो, भले ही केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर किसान बिलों को किसानों के लिए क्रांतिकारी बताते हुए आंदोलित को भटकाने का प्रयास कर रहे हों पर किसान इस बार आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं और मोदी सरकार की हेकड़ी निकालने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। कानूनों को वापस कराने के लिए दिल्ली को घेरने आये विभिन्न प्रदेशों के किसान अपनी बात मनवाए बिना किसी भी सूरत में मानने को तैयार नहीं। ये किसानों के आक्रामक तेवर ही हैं कि मोदी सरकार के सभी दांव-पेंच उनके हौसले के सामने पस्त होते नजर आ रहे हैं। किसानों को मूर्ख बनाने में लगी मोदी सरकार के लिए यह आंदोलन सबक सिखाने वाला होगा।
आर्थिक मजबूती से बढ़ेगा हिन्दी का साम्राज्य
-डॉ. अर्पण जैन 'अविचल'-
भाषा और भारत के प्रतिनिधित्व के सिद्धांत में हिन्दी के योगदान को सदा से सम्मिलित किया जा रहा है और आगे भी किया जाएगा, किन्तु वर्तमान समय उस योगदान को बाजार अथवा पेट से जोड़ने का है। सनातन सत्य है कि विस्तार और विकास की पहली सीढ़ी व्यक्ति की क्षुधा पूर्ति से जुडी होती है, अनादि काल से चलते आ रहे इस क्रम में सफलता का प्रथम पायदान आर्थिक मजबूती से तय होता हैं। वर्तमान समय उपभोक्तावादी दृष्टि और बाजारमूलकता का है, ऐसे काल खंड में भूखे पेट भजन नहीं होय गोपाला जैसे ध्येय वाक्य के अनुसार भाषा का सार्वभौमिक विकास भी रचना अनिवार्य होगा।
26.11.20
Govt must ratify ILO Convention to eliminate gender-based violence: IJU
New Delhi : The Indian Journalists Union joins the International Federation of Journalists’ call on International Day for the Elimination of Violence Against Women and girls today, to all governments, including India, to act responsibly to eradicate violence against women by ratifying the ILO Convention 190 on harassment and violence in the world of work.
अपने भाई पूर्व डीजीपी बनर्जी पर हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाने वाली बहन की लाश तक न मिली!
सौरभ सिंह सोमवंशी
प्रयागराज
उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी आनंदलाल बनर्जी की बहन और इलाहाबाद हाईकोर्ट में पूर्व में सहायक निबंधक के पद पर तैनात रह चुकी विजयलक्ष्मी बनर्जी की पिछले दिनों प्रयागराज स्थित एक निजी अस्पताल से जांच के दौरान बाहर जाने पर संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई थी। इसके बाद उनके पति व वर्तमान में इलाहाबाद हाईकोर्ट में संयुक्त निबंधक के पद पर तैनात हेम सिंह को मृत शरीर भी नहीं मिल पाया और वह अंतिम संस्कार करने से भी वंचित रह गए। इस मामले की शिकायत हेम सिंह ने पुलिस और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग में की है। जांच क्षेत्राधिकारी सिविल लाइंस कर रहे हैं। परंतु इस बीच विजयलक्ष्मी बनर्जी द्वारा जीते जी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में दिया गया एक शपथ पत्र वायरल होने से हड़कंप मच गया है। इसमें उन्होंने अपनी हत्या की आशंका जताई है और स्पष्ट रुप से अपने भाई समेत चार लोगों का नाम भी लिया है जो उनकी हत्या करा सकते थे। ये शपथ पत्र स्वयं उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने सूचना के अधिकार के तहत उनके पति हेम सिंह को उपलब्ध कराया है।
एक पव्वे में बिकता है क्राइम रिपोर्टर
अवैध निर्माण वसूली गैंग का सरगना है रिपोर्टर
हरिद्वार जिले में दो नम्बर के पत्रकारों की कमाई का सिर्फ खनन ही माध्यम नहीं है। भवनों के मानचित्र स्वीकृत करने वाला हरिद्वार-रुड़की विकास प्राधिकरण भी उठाईगिर पत्रकारों की जेब भरने का साधन बना हुआ है। चूंकि इसके क्षेत्र का कुछ दिन पहले विस्तार हुआ है, इसलिए रुड़की क्षेत्र में विभाग का अच्छा खासा दबदबा है।
25.11.20
हिंदुस्तानी न्यूज एडिटर के महंगे शौक के चर्चे
हिंदुस्तान अखबार की एक छोटी यूनिट के न्यूज एडिटर आजकल चर्चा में हैं. वे दनादन धमाके कर रहे हैं. कुछ समय पहले 9 लाख की होंडा अमेज कार खरीद कर अपना लोहा मनवाया तो अब सवा लाख वाला एप्पल का आईफोन ले आए हैं.
दिमाग से नहीं, दिल से कहानी सुनाएं : सुभाष घई
नई दिल्ली । 'सिनेमा हो या मीडिया, आप कहानी दिमाग से नहीं, दिल से सुनाएं। और जब आप दिल से कहानी सुनाएंगे, तभी आप एक अच्छे कम्युनिकेटर बन पाएंगे।' यह विचार प्रसिद्ध फिल्म निर्माता एवं निर्देशक श्री सुभाष घई ने मंगलवार को भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) के सत्रारंभ समारोह-2020 के दूसरे दिन व्यक्त किये।
साजिश है ‘लव जेहाद’ को प्यार का नाम देना
संजय सक्सेना, लखनऊ
जो लोग गोलमोल शब्दों में साजिशन ‘लव जेहाद’ के खिलाफ योगी सरकार द्वारा लाए गए ‘उत्तर प्रदेश विघि विरूद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020’ कानून का विरोध करते हुए यह कह रहे हैं कि प्यार का कोई धर्म-महजब नहीं होता है, वह सिर्फ और सिर्फ समाज की आंखों में धूल झोंकने का काम कर रहे हैं। लव जेहाद को प्यार जैसे पवित्र शब्द के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए। भला कोई अपना धर्म-नाम छिपाकर किसी से कैसे सच्चा प्यार कर सकता है। बात यहींे तक सीमित नहीं है। यह भी समझ से परे है कि ऐसे कथित प्यार में हमेशा लड़की हिन्दू और लड़का मुसलमान ही क्यों होता है और यदि कहीं किसी एक-दो मामलों में लड़की मुस्लिम और लड़का हिन्दू होता है तो वहां खून-खराबे तक की नौबत जा जाती है। मुस्लिम लड़कियों से प्यार करने वाले कई हिन्दू लड़कांे को इसकी कीमत जान तक देकर चुकानी पड़ी है। इसी के चलते समाज में वैमस्य बढ़ रहा था।
मांगलिक कार्य आरम्भ होने का दिन है ‘‘देवोत्थान एकादशी’’
देवोत्थान एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहते हैं। दीपावली के ग्यारह दिन बाद आने वाली एकादशी को ही प्रबोधिनी एकादशी अथवा देवोत्थान एकादशी या देव-उठनी एकादशी कहा जाता है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव चार मास के लिए शयन करते हैं। इस बीच हिन्दू धर्म में कोई भी मांगलिक कार्य शादी, विवाह आदि नहीं होते। देव चार महीने शयन करने के बाद कार्तिक, शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उठते हैं। इसीलिए इसे देवोत्थान (देव-उठनी) एकादशी कहा जाता है। देवोत्थान एकादशी तुलसी विवाह एवं भीष्म पंचक एकादशी के रूप में भी मनाई जाती है। इस दिन लोग तुलसी और सालिग्राम का विवाह कराते हैं और मांगलिक कार्यों की शुरुआत करते हैं। हिन्दू धर्म में प्रबोधिनी एकादशी अथवा देवोत्थान एकादशी का अपना ही महत्त्व है। इस दिन जो व्यक्ति व्रत करता है उसको दिव्य फल प्राप्त होता है।
रोशनी एक्ट की आड़ में हो रहे कई घोटालेबाजों का चेहरा हुआ बेनकाब
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के बाद नेशनल कांफ्रैंस के नेता फारूक अब्दुल्ला, पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती और अन्य नेताओं की तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं और उन्होंने कश्मीरियों के अधिकारों के लिए लड़ने और अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए गुपकर संगठन बना लिया है। फारूक अब्दुल्ला अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए चीन की मदद लेने की बात करते हैं तो महबूबा तिरंगे का अपमान करती हैं। अनुच्छेद 370 के चलते आज तक केन्द्र की सरकारों ने जम्मू-कश्मीर में इतना धन बहाया है कि उसका कोई हिसाब-किताब नहीं। अलगाववादियों ने पाकिस्तान और खाड़ी देशों के धन से देश-विदेश में अकूत सम्पत्तियां बना लीं जबकि कश्मीरी बच्चों के हाथों में पत्थर और हथियार पकड़वा दिए।
जमीनी स्तर पर नहीं दिखता सक्रिय सदस्य
कांग्रेस पार्टी एक राष्ट्रीय पार्टी है जिसने भारत निर्माण से लेकर अब तक कई ऐसे ऐतिहासिक कार्य किए हैं जिसकी व्याख्या इतिहासो में दर्ज है। लेकिन कांग्रेस जब से केंद्र की सत्ता से बेदखल हुई है तब से तितर-बितर हो गई है। कांग्रेस के कई ऐसे केंद्रीय नेता हैं जो अपनी बात मजबूती से रखते हैं पर जमीनी स्तर पर उनका संगठन दिन पर दिन कमजोर होते चला गया है जिसके वजह से उनकी बात जनता तक नहीं पहुंच पाता है।
22.11.20
कैदियों की दीपावली मतलब गम की दीपावली
रूपेश कुमार सिंह
स्वतंत्र पत्रकार
मैं आज के दिन पिछले साल बिहार के गया सेन्ट्रल जेल के अंडा सेल में बतौर विचाराधीन बंदी रह रहा था। आज सुबह से ही व्हाट्सअप, फेसबुक और फोन पर कई दोस्त व रिश्तेदार दीपावली की बधाई व शुभकामनाएँ दे रहे हैं, तो बरबस मुझे पिछली दीपावली की याद आ गयी और मैं कल्पना में खो गया कि आज जेलों में बंदी क्या कर रहे होंगे? क्या उनके लिए दीपावली का कोई महत्व है और है तो क्या है?
स्वास्थ्य विभाग के मैनेजर को दैनिक भास्कर में लाखों का विज्ञापन देना पड़ा भारी
अब विज्ञापन की डिमाण्ड से उच्च अधिकारी परेशान
बिलासपुर। अपनी नाकामयाबी छुपाने के लिए अधिकारी तरह तरह के हतकंडे अपनाने से बाज नहीं आते। ऐसा ही एक मामला इन दिनों बिलासपुर स्वास्थ्य विभाग में घटित हुआ है जो चर्चाओं में है। रोज रोज के निगेटिव न्यूज़ और अपनी नाकामयाबी को छुपाने के लिए स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी (जो कि विभाग के मैनेजर के नाम से प्रसिद्ध हैं) ने युक्ति लगते हुए बिलासपुर के लीड अखबार दैनिक भास्कर में फुल पेज का एड (विज्ञापन) दे डाला। इस विज्ञापन की राशि लाखों में बताई जा रही है। इसे इस तरह डिजाइन किया गया है कि देख कर ये एक फुल पेज खबर लगता है।
मेरठ के सरधना में अमर उजाला के प्रतिनिधि पर लगा रंगदारी मांगने का आरोप
मेरठ जिले का सरधना नगर हमेशा चर्चाओं में बना रहता है। कुछ समय पहले चर्चाओं में आया था कि कैसे किसी खबर को अपने फायदे के लिए तीन अखबार के प्रतिनिधि मिलकर परोसते हैं। तब वह खबर भड़ास पर भी प्रकाशित हुई थी। इसी क्रम में बुधवार को अमर उजाला के प्रतिनिधि पर रंगदारी मांगने के गंभीर आरोप लगे हैं।
हर शाख पर उल्लू बैठा है, अंजाम ए यूनिट क्या होगा
खुद को देश का नम्बर वन हिंदी दैनिक बताने वाले एक अखबार की पहाड़ यूनिट को लेकर यह कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है। यूनिट पट्टाधारक मठाधीशों से भरी पड़ी है। पट्टाधारक इस संदर्भ में कि यूनिट में कोई डेढ़ दशक तो कोई दो दशक से कुंडली जमाए पड़ा है। कोरोना काल में छंटनी की बारी आते ही पट्टाधारकों ने मजबूती से एक दूसरे की कुर्सियां थाम ली। बड़े वालों ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए कइयों की बलि ले ली। जबकि कुछ अभी भी आंखों में खटक रहे हैं। पूरे गैंग का उद्देश्य एक ही है कि बस किसी तरह अपनी कुर्सी बच जाए, बाकी अखबार भले ही दो नम्बर से खिसक तीसरे पायदान पर पहुंच जाए।
झोला छाप डॉक्टरी कर लें लेकिन स्वतंत्र पत्रकारिता में न आएं
सावधान, सुखबीर एग्रो पुवायां में है रहस्यमय जादुई तालाब!
आपने अभी तक केवल किताबों में ही जादूई तालाब के बारे में पढ़ा होगा लेकिन अब आप पुवायां में भी इस तरह का तालाब देख सकते हैं जिनमें भरा हुआ पानी एक लाल रंग की पाइप लाइन के माध्यम से लाया जाता है।
इस लाल रंग वाली लाइन को फैक्ट्री में स्थित E.T.P के पास से होकर निकाला गया है जिससे फैक्ट्री का समस्त गंदा पानी जल शुद्धिकरण प्रक्रिया में न लेकर इसी लाइन में एक पम्प के माध्यम से इस रहस्यमई तालाब तक पहुंचा दिया जाता है जिससे फैक्ट्री में जल शुद्धिकरण प्रक्रिया में खर्च होने वाला लाखों रुपए हर माह आसानी से बचा लिया जाता है और किसी को कोई शक भी नहीं होता है क्योंकि इस बंद पाइप लाइन के अंदर क्या चल रहा है आमजन के लिए यह अनुमान लगाना काफी मुश्किल होगा परन्तु फैक्ट्री प्रबंधन को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि चोर चाहें जितना भी चालाक क्यों न हो एक न एक दिन सच्चाई सबके सामने आ ही जाती है।
देश की बेटी, बेटी न रही वो हिंदू मुसलमान हो गई
बिहार के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पहले ही संबोधन में जीत का श्रेय साइंलेंट वोटरों को दिया और अपनी जीत में सबसे बड़ा हाथ महिलाओं का बताया. ये वही महिलाएं हैं जो आए दिन बालात्कार और शोषण का शिकार होती हैं. हर चौक-चौराहे पर इनको बालात्कार का डर होता है. एक तरफा जुनूनी प्यार के चलते इन्हीं महिलाओं या बच्चियों को जान तक गंवानी पड़ जाती है. इनको बीच सड़कों पर गोली मार दिया जाता है या तेजाब से इनके शरीरों को जला दिया जाता है तब देश की उन बेटियों या महिलाओं के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमदर्दी नहीं दिखाते हैं हालांकि उन्हें किसी खिलाड़ी के उंगली में चोट लगने से तकलीफ हो जाती है, उनका ट्वीट आ जाता है लेकिन प्रधानमंत्री का ट्वीट उन लड़कियों के लिए नहीं आता है जो मौत के घाट बेरहमी के साथ उतार दी जाती हैं.
राज्यपाल ने मासिक समाचार पत्रिका 'माई स्टेट' का विमोचन किया
रांची : राज्यपाल श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने कहा है कि पत्रकारों के ऊपर समाज की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। पत्रकारों को अच्छी और ज्ञानवर्धक बातें समाज को बतानी चाहिए। उन्हें सदा निष्पक्ष पत्रकारिता करनी चाहिये। मीडिया को लोकतंत्र का चतुर्थ स्तंभ कहा गया है। इसलिए इसे सदा समाज की सजग प्रहरी की भूमिका का निर्वहन करना चाहिये। जनता को जागरूक करना और भ्रम दूर करना, यह अच्छी पत्रकारिता का गुण है। समाज में कई तरह की भ्रांतियां फैली रहती हैं। इन भ्रांतियों को दूर करने की जिम्मेदारी हमारे मीडिया जगत व पत्रकारों की है।
योगी राज में खबर चलाने के कारण टीवी पत्रकारों पर मुकदमा दर्ज
फ़तेहपुर से सूचना है कि दो दलित बहनों का तालाब में शव मिलने के मामले की खबर प्रकाशित प्रसारित करने पर पत्रकारों के खिलाफ मुकदमा हो गया है. एक पत्रकार भारत समाचार का है. नाम है महेश सिंह. दूसरा पत्रकार नेटवर्क18 का है जिसका नाम धारा यादव है. लड़की के परिजनों द्वारा रेप के बाद हत्या की आशंका जताए जाने पर दोनों पत्रकारों की तरफ से खबर का प्रकाशन किया गया. पुलिस का कहना है कि लड़कियां डूब कर मरी हैं.
जनरूचिकारी नहीं, जनहित वाली हो पत्रकारिता
वाराणसी । बाबूराव विष्णु पराड़कर जी की जयंती पर आज पराड़कर स्मृति भवन में ‘‘आज की पत्रकारिता’’ विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में वक्ताओं ने पत्रकारिता के गिरते स्तर पर चिंता व्यक्त करते हुये कहा कि पत्रकारों को जनरूचिकारी नहीं बल्कि जनहितकारी समाचारों पर जोर देना चाहिए।
योगी राज में भी महाभ्रष्ट आबकारी विभाग बेलगाम
पहले कच्ची अब सरकारी शराब पी रही लोगों की जान प्रयागराज में छह मौतों से मचा हाहाकार
प्रयागराज। प्रदेश में जहरीली शराब पीने से हो रही मौतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। पहले जहां कच्ची शराब से लोगों की मौतें हो रही थीं वहीं अब सरकारी ठेके की शराब लोगों की जान ले रही है। लखनऊ, मथुरा और फिरोजाबाद के बाद अब जहरीली शराब से प्रयागराज स्थित फूलपुर के अमिलिया गांव में छह लोगों की मौत हो गई जबकि पांच अन्य को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया है। शराब ठेकेदार की तलाश में छापेमारी जारी है जबकि सेल्समैन समेत पांच को गिरफ्तार किया गया है। वहीं छह मौतों से गांव में हाहाकार मचा है। लोग आक्रोशित हैं।
India continues to lose scribes to Covid-19
Geneva/Guwahati : One more journalist falls prey to the Covid-19 pandemic as Noida based scribe Pankaj Shukla breathed his last on Friday night (20 November). Hailed from Bareilly locality of Uttar Pradesh, Shukla (50) was admitted at JP Hospital, Noida where he succumbed to novel corona virus infection aggravated ailments.
आधार डेटा को लीक करने वाले कम्पनी पर ही मेहरबानी क्यों?
1. एक प्राइवेट कंपनी है, CSC E-Governance Services India Ltd.
2. कोई सरकारी योजना आवंटित करने के लिए बाकायदा टेंडर या बिडिंग प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता है पर इस एकलौते कम्पनी को बिना टेंडर के ही धड़ाधड़ योजना आवंटन का कार्य दे दिया जाता है ।
19.11.20
Political Will Needed To Halt Crimes Against Journalists
New Delhi : On the occasion of National Press Day, 16 November 2020, the Indian Journalists Union drew the attention of Prime Minister Narendra Modi to the rising attacks on journalists and urged that all-out efforts be made by his government to end impunity for crimes against journalists. A free press, said the IJU, is critical for a vibrant democracy and that action rather than words would instill confidence in the country’s media, which is under grave threat of intimidation and harassment from various quarters.
16.11.20
जनजातीय गौरव दिवस पर विशेष- हमारा हर कदम विनाश की ओर बढ़ रहा है
विमर्श/जयराम शुक्ल
रामायण : वनवासियों के मुक्ति संघर्ष और विजय की अमरकथा
"रामायण कथा वनवासियों के पराक्रम और अतुल्य सामर्थ्य की कथा है, जिसमें उन्होंने राम के नेतृत्व में पूंजीवाद, आतंकवाद के पोषक साम्राज्यवादी रावण को पराजित कर सोने की लंका को धूलधूसरित कर दिया। रामकथा यथार्थ में वनवासियों के मुक्ति संघर्ष और विजय की अमरकथा है। इस कथा के नायक ने स्वयं वनवासी बनना स्वीकारा और तमाम वनवासियों को अपने बराबरी में खड़ाकर के समाज को समत्व की नयी परिभाषा दी।"
आसान नहीं युवाओं का मीडिया में टिक पाना, खासकर लड़कों का
मैं यशवंत सर ( भईया ) को निजी तौर पर तो नहीं पहचानता लेकिन भड़ास 4 मीडिया पढ़ता रहता हूँ उनके हिम्मत की दाद देता हूँ कि वो मीडिया के अंदरखाने चल रहे दुर्व्यवस्था को बिना डरे खुलकर सामने लाते है .क्योंकि कुछ मीडिया बॉलीवुड में परिवारवाद, राजनीति में परिवारवाद पर तो खुलकर बोलती है लेकिन खुद को कभी आईने के सामने खड़ा करना पसंद नहीं करती
महिला कानूनों का दुरुपयोग और ब्लैकमेलिंग का धंधा
प्रयागराज : दहेज,यौन शोषण, छेड़छाड़, जबरन शारीरिक संबंध बनाना यानी बलात्कार और ऐसे ही अन्य घिनौने अपराध के आरोप अक्सर महिलाओं के द्वारा लगाए जाते रहते हैं,लेकिन क्या पुरुष भी ऐसे अपराधों से पीड़ित हैं? या फिर क्या महिलाओं द्वारा लगाए गए ऐसे आरोप हमेशा सही होते हैं? क्या इनका गलत उपयोग भी होता है? आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि जहां यह मामले वास्तव में पीड़ित के होते हैं वहीं पर इस तरह के तमाम मामले ब्लैकमेलिंग और महिला कानूनों के दुरुपयोग से भी जुड़े हुए होते हैं मामला प्रयागराज का है जहां पर कुछ लोगों का एक गिरोह तमाम बड़े और प्रभावशाली लोगों के ऊपर आरोप लगाकर व ब्लैकमेल कर उनसे मोटी रकम वसूलने का है। जिसमें एक महिला के शिक्षक पति ने ही उसके ऊपर ब्लैकमेलिंग और संगठित गिरोह बनाकर पैसा ऐंठने के लिए महिला कानून के दुरूपयोग का आरोप लगाया है।
बिहार के बाद अब पश्चिम बंगाल चले ओवैसी, ममता के दिलों की धड़कनें हुई तेज़
बिहार चुनाव के बाद अब पश्चिम बंगाल में राजनीतिक गतिविधियां तेज़ हो रही है जिस तरह से बिहार चुनाव के रिजल्ट रहे उससे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की चिंता बढ़ गई है. पश्चिम बंगाल में विधानसभा की कुल 294 सीटें हैं जिसमें बहुमत का आंकड़ा छूने के लिए 148 सीट पानी जरूरी है. पिछले विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने 211 सीट पाकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. जबकि कांग्रेस ने 44, लेफ्ट ने 26 और भाजपा ने मात्र 3 सीटों पर कब्जा जमाया था. पिछला विधानसभा चुनाव हारने के बाद से ही भाजपा वहां लगातार सक्रिय है और इस साल 2021 के विधानसभा चुनाव में वह ममता बनर्जी को सीधे टक्कर देने को तैयार है.
Scribe murdered, police officer booked in UP
Guwahati: Journalists’ Forum Assam (JFA) expresses serious concern
over the killing of another scribe in Uttar Pradesh where a police
officer is booked for the murder. Suraj Pandey (25), who worked for a
Hindi newspaper, was found dead on a railway track at Sadar Kotwail
area on Thursday (12 November 2020) evening.
हकीकत और फसाने के बीच 'मीडिया बाजार'
राष्ट्रीय प्रेस दिवस/ जयराम शुक्ल
भारत में पहले अखबार 'बंगाल गजट' का निकलना एक दिलचस्प घटना थी। वह 1780 का साल था ईस्ट इंडिया कंपनी वारेन हेस्टिंग के नेतृत्व में मजबूती के साथ विस्तार पा रही थी, तब कलकत्ता उसका मुख्यालय था। कंपनी के ही एक मुलाजिम जेम्स आगस्टस हिक्की ने हिक्कीज बंगाल गजट आर कलकत्ता एडवरटाइजर नाम का अखबार निकाल कर बड़ा धमाका किया। धमाका इसलिए कि उसने पहले ही अंक से वारेन हेस्टिंग्स समेत उन अन्य कंपनी बहादुरों की खबर लेना शुरू कर दी जिनके भ्रष्टाचार, अय्याशी के किस्से कलकत्ता की गलियों में फुसफुसाए जाते थे। हिक्की जल्दी ही कंपनी बहादुरों की आँखों में खटकने लगा पहले उसे जेल में डाला गया फिर जल जहाज में बैठाकर लंदन भेज दिया गया। यह भी कहते हैं कि उसे बीच सफर में ही मारकर समुंदर में फेक दिया गया ताकि कंपनी बहादुरों के काले कारनामे महारानी के दरबार तक न पहुंच सकें।
14.11.20
यदि पैसा चाहते हों तो अपने-अपने क्षेत्र के सहारा कार्यालय कब्जाने होंगे
CHARAN SINGH RAJPUT
देखने में आ रहा है कि सहारा इंडिया के ठगे गए निवेशक, एजेंट और कर्मचारी अपने पैसों को लेकर लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। आंदोलनकारियों ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को अपनी पीड़ा से संबंधित पत्र भी लिखा है। जगह जगह केस भी चल रहे हैं। इन सब के बावजूद कुछ हल नहीं निकल पा रहा है। इस पर मंथन की जरूरत है।
एम्स ऋषिकेश में आउटसोर्सिंग एक बड़ा खेल
एम्स ऋषिकेश में आउटसोर्सिंग के माध्यम से कितना बड़ा खेल चल रहा है यह तो सभी को पता है लेकिन आउटसोर्सिंग के द्वारा की जा रही भर्तियां व आउटसोर्स कंपनियों को दिया जा रहा लाभ कब रुकेगा?
विश्व मधुमेह दिवस : गर्भकालीन मधुमेह एवं सावधानी
डॉ संध्या, सीनियर रेजिडेंट, प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग, चिकित्सा विज्ञान संस्थान, बी एच यू
अंतरराष्ट्रीय मधुमेह संघ (आई डी एफ) लोगों में मधुमेह से उपजे जोखिम के बारे में बढ़ती चिंताओं के प्रति जागरूक करने के लिए पिछले दो दशकों से १४ नवंबर को विश्व मधुमेह दिवस मनाता है।
13.11.20
JFA mourns demise of cartoonist Trailokya Dutta
Guwahati: Journalists’ Forum Assam (JFA) expressed profound grief over
the demise of northeast India’s well known cartoonist and illustrator
Trailokya Dutta who breathed his last on Wednesday (11 November 2020)
night after suffering from old-age ailments from sometime.
दोहरी पेंशन व्यवस्था तत्काल बंद हो
पेंशन का अर्थ बिल्कुल स्पष्ट है कि एक कर्मचारी चाहे वह महिला हो अथवा पुरुष अपने कार्यकाल के दौरान जो वेतन पाता है उसका कुछ हिस्सा उसकी भविष्य निधि के रूप में सरकारी और अर्ध सरकारी संस्थाएं प्रतिमाह संचित करती रहती हैं ताकि कर्मचारी की आयु वृद्धि होने पर भौतिक शरीर में शिथिलता आने के बावजूद वह आर्थिक क्षमतावान बना रहे। इसके लिए उस संचित कोष से एक निश्चित धनराशि प्रतिमाह उस कर्मचारी को पेंशन के रूप में प्रदान की जाती है।
12.11.20
उत्तर प्रदेश में मायावती राज और दलित उत्पीड़न
-एस आर दारापुरी आई पी एस (से.नि.), राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट
(नोट: यद्यपि यह लेख कुछ पुराना है परंतु आज इसकी प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती गई है जब मायावती का भाजपा प्रेम खुल कर सामने आ गया है। वर्ष 2001 में भी मायावती ने भाजपा की मदद लेकर ही सरकार बनाई थी और उसी दौरान उसने भाजपा के दबाव में सवर्णों को खुश करने के लिए एससी/एसटी एकट को रद्द कर दिया था। इससे स्पष्ट है कि ऐसा करने में मायावती का मुख्य उद्देश्य दलितों पर अत्याचार करने वाले सवर्णों को संरक्षण देने के लिए दलित हितों की बलि देकर भाजपा को खुश करना था। इससे आप अंदाज लगा सकते हैं कि दलित उत्पीड़न को रोकने तथा दोषियों को दंडित कराने में मायावती का क्या नजरिया रहा है। समूचे देश में कभी भी किसी मुख्य मंत्री ने दलित विरोधी करार दिए जाने के ड र से एससी/एसटी एक्ट पर रोक लगाने की जुर्रत नहीं दिखाई थी परंतु मायावती ने उत्तर प्रदेश में ऐसा किया. शायद वह उत्तर प्रदेश के दलितों को अपना गुलाम समझती रही है।)
JFA caveat to media persons in India
Guwahati: On the eve of National Press Day (on 16 November), Journalists’ Forum Assam (JFA) appeals to every professional journalist in India to get united for the cause of truthful journalism and avoid personal interest in deliberating views so that it cannot return as a trap to oneself in the days to come.
11.11.20
9.11.20
नोटबंदी की चौथी वर्षगांठ पर अर्थव्यवस्था की अर्थी निकालकर विरोध प्रदर्शन किया
नेशनल स्टूडेंट युनियन आफॅ इंडिया (एनएसयूआई) ने नोटबंदी की चौथी वर्षगांठ पर अर्थव्यवस्था एवं नोटबंदी के कारण बढ़ी बेरोज़गारी की अर्थी जलाई एवं विरोध प्रदर्शन किया।
8.11.20
पत्रिका के मालवा जोन के पत्रकार लगातार कार्य के कारण हो रहे बीमार
नहीं मिल रहा साप्ताहिक अवकाश
पत्रिका मध्यप्रदेश के इंदौर संस्करण के अंतर्गत आने वाले मालवा जोन के पत्रकार इस समय मानसिक और शारीरिक रूप से बुरी तरह से थक चुके हैं। उन्हें पिछले आठ माह से साप्ताहिक अवकाश नहीं मिल रहा है। अवकाश की मांग करने पर उन्हें उचित जवाब तक नहीं दिया जा रहा। कहा जा रहा है वर्क फ्रॉम होम में अवकाश की क्या जरूरत है।
6.11.20
महाराष्ट्र में पत्रकारिता के लिए आपातकाल, बाक़ी जगह रामराज्य!
पत्रकारिता क्षेत्र में जब क़दम रखा था तब यह सोंचा नहीं था कि एक दिन ख़बर देने वाले ही ख़ुद ख़बर बन जाएंगे।
आज आम लोगों से ज़्यादा ख़बर देने वाले ख़ुद ख़बरों में छाए हुए हैं। बीते दिन रिपब्लिक टीवी के एडिटर इन चीफ़ अर्नब गोस्वामी को मुंबई पुलिस ने उनको उनके घर से गिरफ़्तार कर लिया। अर्नब की गिरफ़्तारी 2018 के एक आत्महत्या से जुड़े केस में हुई है। इस कदर अचनाक हुई गिरफ्तारी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। 2 साल पुराने इस केस में उस समय कोई सुबूत ना होने के कारण केस को बंद कर दिया गया था। लेक़िन आज मुंबई पुलिस को अचानक सुबूत मिल जाते हैं और अर्नब को गिरफ़्तार कर लिया जाता है। हो सकता है सुबूत मिल भी गए हों, लेक़िन क्या किसी समन के किसी को गिरफ़्तार करना सही है ?. गिरफ्तारी के भी तरीक़े होते हैं किसी के साथ मारपीट कर उसे जबरदस्ती रूप से गाड़ी में बिठाकर थाने ले जाना ठीक है ?।
4.11.20
देशहित में नहीं है मोनोपली
पी.के. खुराना
अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस, यानी, न्याय विभाग ने इसी वर्ष 20 अक्तूबर को गूगल के विरुद्ध एंटी-ट्रस्ट का मामला दायर करते हुए आरोप लगाया है कि कंपनी सर्च सर्विसेज़ के मामले में गैरकानूनी ढंग से एकाधिकारवादी नीतियां अपना रही है जिससे प्रतियोगिता पर अंकुश लग रहे हैं। ऐसा ही 1990 में माइक्रोसॉफ्ट के साथ भी हुआ था। अमेरिकी न्याय विभाग की इस कार्यवाही के मद्देनज़र जापान सरकार ने भी अपने यहां बहुराष्ट्रीय टेक कंपनियों को प्रतियोगी कंपनियों के प्रति न्यायोचित रुख अपनाने को कहा है।
लव जिहाद : माले-गनीमत की मध्ययुगीन घात
1994 की दीपावली के आसपास की घटना है। इंदौर की एमआईजी कॉलोनी में मैं अपने मित्र मनीष शर्मा के घर मिलने गया था। उनके घर के कुछ पहले एक घर के सामने सड़क पर एक लॉरी में बर्फ की सिल्लियां पिघल रही थीं। घर में चहलपहल थी। मेरा ध्यान बर्फ के पानी में घुले लाल रंग पर गया। वह खून था। और तब मुझे सुबह के अखबार में छपी खबर याद आई। यह एक जैन उद्योगपति का खुशहाल परिवार था, जिसमें एक दिन पहले ही पति-पत्नी दोनों ने खुदकुशी कर ली थी। यह बहुत दर्दनाक हादसा था, जो हाल की कुछ घटनाओं से मुझे याद आया है।
एमपी में उपचुनाव नतीजों के अनुमान ऐसे समझिए
-जयराम शुक्ल-
पत्रकारिता और ज्योतिष में एक साम्य गजब का है। ज्योतिषी ग्रह-नक्षत्रों की चाल के हिसाब से भविष्यवाणी करते हैं और पत्रकार नेताओं मतदाताओं की। कभी तुक्का सटीक बैठता है तो कभी गलत।
वैसे अच्छा पत्रकार वह है जो घटना घटित होने के पूर्व ही उसकी घोषणा कर दे और जब सही न निकले तो अपने तर्कों से यह साबित कर दे कि यह क्यों नहीं हुई। ज्योतिषी भी यही करते हैं। ऐसे तीर-तुक्कों बावजूद भी पत्रकारिता और ज्योतिष का धंधा फलता-फूलता रहता है।
3.11.20
आखिर मंदिर में तुमको नमाज़ पढ़ना ही क्यों है?
मशाहिद अब्बास
मंदिर हो मस्जिद हो गुरुद्वारा हो या फिर गिरजाघर हो, सभी पवित्र स्थल हैं और सबकी अपनी-अपनी पवित्रता है. हर धर्म के लोगों को अपने पवित्र स्थल से एक खास लगाव होता है. यह लगाव प्रेम से कहीं अधिक होता है यह आस्था से जुड़ा हुआ होता है और जब किसी के आस्था पर चोंट पहुंचती है तो वह आगबबूला हो जाता है, क्रोधित हो जाता है. सब्र कर पाना मुश्किल होता है. इसीलिए हमेशा कहा जाता है कि कभी किसी के आस्था को चोंट नहीं पहुंचानी चाहिए. मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा और चर्च ये सभी इबादतगाहें हैं पूजा स्थल हैं. कोई भी धर्म का मानने वाला कभी भी अपने पवित्र जगह को अपवित्र नहीं करना चाहता है. मथुरा में जो हुआ उसके प्रति लोगों की अलग अलग राय है. पहले जान लेते हैं कि मामला दरअसल था क्या.
अपनी बर्बाद का खुद ही स्वागत करता भारतीय मुस्लिम समुदाय
भारतीय मुस्लिम समुदाय की त्रासदी... भारतीय मुस्लिम समुदाय ने अपनी पिछले करीब 30- 40 वर्षों की भयंकर गलती से भी सबक नहीं सीखा है, और वह गलती है- मुस्लिम बच्चों को स्कूल - कॉलेज से दूर रखना।
स्मृतियों के कोलाज में जिंदा हो उठे संदीप दा
भास्कर गुहा नियोगी
वाराणसी। कामरेड संदीप घटक के असामयिक मृत्यु के बाद आयोजित श्रद्धांजलि सभाओं में वक्ताओं के स्मृतियों ने उनसे जुड़ी किस्से-कहानियों की कोलाज में संदीप दा को जीवित कर दिया।
1.11.20
क्या वर्तमान दलित राजनीति का स्वर्णिम युग है?
-एस आर दारपुरी, राष्ट्रीय प्रवक्ता आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट
हाल में एक साक्षात्कार में चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण ने कहा है कि वर्तमान दलित राजनीति का स्वर्णिम काल है। वैसे आज अगर दलित राजनीति की दश और दिशा देखी जाए तो यह कहीं से भी उसका स्वर्णिम काल दिखाई नहीं देता है बल्कि यह उसका पतनकाल है। एक तरफ जहां दलित नेता दलित विरोधी पार्टियों में शरण लिए हैं वहीं शेष दलित पार्टियां इतनी कमजोर हो गई हैं कि वे राजनीति में कोई प्रभावी दखल नहीं दे पा रही हैं। इधर जिन दलित पार्टियों ने जाति की राजनीति को अपनाया था वे भाजपा के हाथों बुरी तरह से परास्त हो चुकी हैं क्योंकि उनकी जाति की राजनीति ने भाजपा फासीवादी हिन्दुत्व की राजनीति को ही मजबूत करने का काम किया है। परिणामस्वरूप इससे भाजपा की जिस अधिनायकवादी कार्पोरेटप्रस्त राजनीति का उदय हुया है उसका सबसे बुरा असर दलित, आदिवासी, मजदूर, किसान और अति पिछड़े वर्गों पर ही पड़ा है। निजीकरण के कारण दलितों का सरकारी नौकरियों में आरक्षण लगभग खत्म हो गया है। श्रम कानूनों के शिथिलीकरण से मजदूरों को मिलने वाले सारे संरक्षण लगभग समाप्त हो गए हैं।
लुका छुपी का खेल खत्म, मायावती अब भाजपा के साथ- एआईपीएफ
मायावती ने आज उत्तर प्रदेश में राज्यसभा चुनाव को लेकर बसपा के सात विधायकों द्वारा विद्रोह करके सपा में चले जाने पर कहा कि वह सपा को हराने के लिए बीजेपी समेत किसी भी विरोधी पार्टी के उम्मीदवार को समर्थन दे देंगी। मायावती के इस बयान से यह स्पष्ट हो गया है कि अब वह खुलकर बीजेपी के साथ आ गई हैं और उनका बीजेपी के साथ अब तक चल रहा लुका छुपी का खेल खत्म हो गया है। मायावती ने इसी प्रकार का बयान मेरठ में एक चुनावी सभा में मुसलमानों को लेकर भी दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि चूंकि मुसलमानों का कोई भरोसा नहीं है, अतः उन्होंने अपने वोटरों को कह दिया है कि वे अपना वोट मुसलमान प्रत्याशी को न देकर भाजपा प्रत्याशी को दे दें। यह उल्लेखनीय है कि मायावती इससे पहले भी तीन बार भाजपा के साथ गठजोड़ करके मुख्यमंत्री बन चुकी हैं और अब भी उससे हाथ मिलाने में उन्हें कोई परहेज नहीं है।
आईआईएमसी में संघी बैकग्राउंड के लोगों की नियुक्तियां क्यों न हो!
Ashish Kumar 'Anshu'
आईआईएमसी में नियुक्तियों से ठीक पहले दो नामों को लेकर दिल्ली से लेकर भोपाल तक चर्चा थी। एक दिल्ली विश्वविद्यालय की प्राध्यापिका हैं और दूसरे आईआईएमसी के वर्तमान डीजी के करीबी मित्र बताए जाते हैं। संयोगवश इन दोनों का चयन इस बार आईआईएमसी में नहीं हो पाया। इससे इतना तो स्पष्ट है कि संस्थान ने चयन की प्रक्रिया में पारदर्शिता बरती है। जिस तरह पांच लोगों का पैनल बनाया गया। उसमें यूजीसी गाइडलाइन के अनुसार एक अनुसूचित जाति से आने वाले शिक्षक शामिल थे। अब नियुक्तियों पर जो लोग सवाल उठा रहे हैं, उन्हें मेरिट पर सवाल उठाना चाहिए। चयनित लोगों के मेरिट पर बोलने के लिए उनके पास कुछ नहीं है तो वे विचारधारा पर सवाल उठा रहे हैं।
अब चुनावी मुद्दे बदलने लगे हैं
पिछले वर्षों में मतदाताओं ने देश के नाम वोट वोट देने के साथ केंद्र की सत्ता में परिवर्तन किया है । धीरे धीरे उसका प्रतिफल भी दिखने लगा है । बिहार चुनाव को क़रीब से देखें तो पता चलेगा कि अब चुनावी मुद्दे भी बदलने लगे हैं । शुरुआती दौर में कश्मीर में प्लॉट ख़रीदने जैसे बयान सुनाई दिए उसके बाद की रैलियों में शिक्षा, रोज़गार, खेती किसानी, सिंचाई आदि मूलभूत ज़रूरतों की तरफ़ ध्यान दिया जाने लगा है । उम्मीदवारों के समर्थन में तेजस्वी लगातार मज़दूर और किसान एकता के नारों को दोहरा रहे हैं । उम्मीद हैं इस बार का बिहार चुनाव एक नई कहानी लिखेगा, जिसमें शिक्षा और रोज़गार के साथ मज़दूरों गरींबों के हक़ पर कुछ नए और बड़े फ़ैसले लिए जाएँगे । एक नए बिहार को देखने का सपना करोड़ों बिहारी के साथ अन्य राज्यों के नागरिकों को भी है, चूँकि बढ़ती जनसंख्या के नाते अन्य राज्य अपने आप को यह कहकर किनारे कर लेते हैं कि राज्य की जनसंख्या ज़्यादा है । उम्मीद है बिहार आगामी वर्षों में देश के लिए मिशाल बनेगा।
वाल्मीकि जयंती के बहाने हिन्दूवाद
(कंवल भारती)
उत्तरप्रदेश की भगवा दल वाली योगी सरकार ने हाथरस कांड से हुए राजनीतिक नुकसान की भरपाई के लिए को प्रत्येक जिले में वाल्मीकि-जयंती (31 अक्टूबर) सरकारी स्तर पर मनाने का निर्णय लिया था. राज्य सरकार के मुख्य सचिव आर. के. तिवारी ने मंडल आयुक्तों और जिला अधिकारियों को जो आदेश जारी किया था, उसमें कहा गया है कि महर्षि वाल्मीकि से सम्बन्धित स्थलों व मंदिरों आदि पर अन्य कार्यक्रमों के साथ-साथ दीप प्रज्वलन, दीप-दान और अनवरत आठ, बारह या चौबीस घंटे का वाल्मीकि-रामायण का पाठ तथा भजन आदि का कार्यक्रम भी कराया जाए. निश्चित रूप से यह वाल्मीकियों को लुभाने की ऐसी शातिर चाल है, जो एक तीर से दो निशाने साधती है.
29.10.20
मार्केट में बहुतायत में पाए जाने लगे वरिष्ठ पत्रकार...
आज बहुत दिनों के बाद कुछ लिखने का मन हुआ... काफी सोचने पर मन मे ये विचार आया कि आजकल मार्किट में किलो के भाव मे वरिष्ठ वरिष्ठ पत्रकार देखने को मिल जाते है मन मे खयाल आया कि आखिर ये वरिष्ठ पत्रकार आते कहा है? आखिर ये वरिष्ठ पत्रकार बनते कहा पर है? आखिर ये वरिष्ठ पत्रकार करते क्या है?
नालंदा में जदयू प्रत्याशी के उम्र संबंधी गलत शपथ पत्र को पत्रकारों ने नहीं छापा
नालंदा से संजय कुमार की रिपोर्ट
बिहारशरीफ ।बिहार के पूर्व शिक्षा मंत्री एवं हरनौत विधानसभा क्षेत्र से जदयू प्रत्यासी हरि नारायण सिंह का उम्र संबंधी गलत शपथ पत्र मामले में यहां के पत्रकारों ने निष्पक्ष पत्रकारिता नहीं की ।जदयू प्रत्याशी द्वारा 2015 के चुनाव में अपना उम्र 75 साल बताए था। परंतु ,20 20 में जो शपथ भरा गया है ,उसमें उन्होंने अपनी उम्र 73 साल बतायी है। इस संबंधी खबरें सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ। परंतु, नालंदा का कोई भी मीडिया कर्मी ने इस समाचार को अपने अखबारों में जगह नही दी। कई लोगों का कहना है कि प्रत्याशी द्वारा खबरें नहीं छापने के एवज में मोटी रकम दी गयी है। जबकि गलत हलफनामे के कारण इनकी सदस्यता , चुनाव जीतने के बाद भी समाप्त हो सकती हैं । आखिर 5 साल उम्र बढ़नी चाहिए थी।परंतु, दो साल उम्र कम हो गयी।
26.10.20
नेशनल वॉइस के कर्मियों को चार माह से नहीं मिली सेलरी
नेशनल वॉइस चैनल मार्च महीने से नॉएडा सेक्टर 65 के B -128 में है.. सर आपको बातना चाहेंगे की इस चैनल के हालत अभी पैसो के मामलो में इतना बुरा हो गया है.. कि यहाँ के किसी भी कर्मचारी को पिछले 4 महीने से पैसा नहीं मिला है। . हालात यहाँ इतना बुरा है की कुछ दिने पहले एक कर्मचारी ने आत्महत्या करने का प्रयास किया था। . जो भड़ास नामक एक पोर्टल पर इसकी खबर भी छपी थी। . लोगो के अंदर काफी गुस्सा है पर पैसे फसे होने के कारण कोई कुछ नहीं बोल पा रहा और साथ में यहाँ सभी परेशान है.
BJP की रणनीति-सत्ता के साथ भी और सत्ता के खिलाफ भी!
मधुप मणि “पिक्कू”
कुछ अरसा पहले एक गीत आया था “हम तो मशहूर हुए हैं आपकी चाहत में”. ठीक वैसे हीं नीतीश के प्यार में मशहूर हुई या यूँ कहें कि घुटने के बल बैठने वाली बीजेपी को इस मोहब्बत का सौदा मंहगा पड़ता नजर आने लगा है.
तेजस्वी के बढ़ते ग्राफ से घबराई बीजेपी ने अपनी रणनीति में कुछ बदलाव किया है. जानकारों की माने तो सत्ता विरोधी लहर से खुद को बचाने की कवायद के क्रम में बीजेपी ने सिर्फ नरेन्द्र मोदी की तस्वीर विज्ञापन में दिया है. यह विज्ञापन पहले चरण के चुनाव के ठीक पहले रिलीज़ किया गया.
मीडिया सर्वे की मानें तो एनडीए की वापसी तय है पर वहीँ धरातल पर और चुनावी क्षेत्रों का दौरा कर रहे रिपोर्ट्स की ओर देखें तो कहानी कुछ और बयां कर रही है. तेजस्वी यादव की सभा में लग रही भीड़ से एनडीए खेमे में बेचैनी बढ़ गयी है तो चिराग पासवान के द्वारा नीतीश कुमार से बिहार की जनता की नाराजगी के दावे को भी मजबूती मिल रही है.
PPFA urges PM Modi to pursue with Islamabad on protection of Hindu shrines
Guwahati: Patriotic People's Front Assam (PPFA), while expressing
annoyances over the vandalism at an ancient Durga temple in Sindh
province of Pakistan recently, urged Prime Minister Narendra Modi to
pursue with his counterpart in Islamabad for adequate protection and
preservation of all holy Hindu shrines in the trouble-torn neighboring
country.
मोदी सरकार के खिलाफ भी क्रांति का बीज फूट रहा बिहार की धरती से
सी.एस. राजपूत
नई दिल्ली। बिहार हमेशा से ही बदलाव की धरती रही है। चाहे आजादी की लड़ाई रही हो, कांग्रेस के खिलाफ सोशलिस्टों की हुंकार रही हो, ईमरजेंसी के खिलाफ जेपी का फूंका गया बिगुल हो या फिर सामाजिक बदलाव की पुकार, हर मामले में बिहार की धरती से ही क्रांति का आगाज हुआ है। अब जब देश में अर्थव्यवस्था रसातल में चली गई है। बेरोजगार युवाओं की फौज सडक़ों पर घूम रही है। काम धंधे सब चौपट हो गये हैं। श्रम कानून में संशोधन कर श्रमिकों को कॉरपोरेट घरानों के यहां बंधुआ मजदूर बनाने की तैयारी मोदी सरकार ने कर ली है। किसान कानून बनाकर किसान को उसके ही खेत में मजदूर बनाने का ठेका अडानी और अंबानी को दे दिया गया है। उद्योगपतियों को खाद्याान्न के स्टॉक में छूट देकर देश को ब्लैकमेल करने की छूट प्रधानमंत्री ने दी दी है। जब मोदी सरकार हर संवैधानिक तंत्र को बंधक बनाने पर उतारू है।
चुनावी मौसम में यूपी-बिहार बार्डर पर शराब माफियाओं की सरगर्मी तेज
अजय कुमार, लखनऊ
लखनऊ। विधान सभा चुनाव बिहार में हो रहे हैं लेकिन सक्रियता उत्तर प्रदेश में बढी हुई है। शराब तस्करों और अवैध हथियार के सौदागरों के अचानक ‘अच्छे दिन आ गए’ हैं। बिहार में शराब और हथियार दोनों की ही मांग तेज हुई तो यूपी के शराब माफिया मौके का फायदा उठाने के लिए मैदान में कूद पडे़। यूपी-बिहार सीमा से सटे आधा दर्जन से अधिक जिलों में शराब तस्करों और अवैध हथियारों की खेप कभी पकड़ी जाती है तो कभी पुलिस गच्चा खा जाती है तो ‘माल’ अपने ठिकाने पर पहुंच जाता है। नदी व पगडंडी के रास्ते बिहार में हथियार एवं शराब भेजी जा रही है।इस बात की भनक यूपी पुलिस को भी है। इसीलिए कुशीनगर, देवरिया, बलिया,चंदौली, गाजीपुर,देवरिया,कुशीनगर,महाराजगंज आदि जिलों में बार्डर के थानों पर चैकसी बढ़ी हुई हैं। पगडंडी पर पुलिस पिकेट लगाकर बिहार जाने वाले सभी वाहनों के साथ ही संदिग्ध व्यक्ति की तलाशी की जाती है ,लेकिन इससे अवैध कारोबारियों के हौसले पस्त नहीं हुए हैं। इन दिनों भी पुलिस ने सभी सीमावर्ती क्षेत्रों में चुनाव के लिए सतर्कता बढ़ा दी है, फिर भी में बिहार में शराब माफियाओं द्वारा पुलिस पर हमला करने के कई मामले सामने आए हैं। इस महीने की शुरुआत में पटना में पुलिसकर्मियों की पिटाई भी की गई थी, जब वे शराब तस्करी के संदेह पर एक जगह पर छापा मारने गए थे।
ताजमहल में फिर लहराया भगवा
धार्मिक और आर्कोलॉजीकल इमारत को ठेस पहुंचाने से बाज नहीं आ रहे कुछ धार्मिक ठेकेदार ताजमहल में फिर लहराया भगवा
हिंदू जागरण मंच के युवा जिला अध्यक्ष गौरव ठाकुर का वायरल हो रहा वीडियो,
ताजमहल के अंदर की गई शिव आराधना,
वायरल वीडियो के मामले में सामने आए हिंदू जागरण मंच के युवा जिला अध्यक्ष गौरव ठाकुर,
गौरव ठाकुर का दावा हिंदू आस्था का केंद्र है ताजमहल
ताजमहल को तेजो महालय कह कर निष्पक्ष जांच कराना चाहते हैं गौरव ठाकुर,
केंद्र सरकार से की है ताज महल को तेजो महालय के तौर पर जांच की मांग
दलित बनाम बहुजन
एस.आर. दारापुरी आई.पी.एस. (से.नि.) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट
पिछले काफी समय से राजनीति में दलित की जगह बहुजन शब्द का इस्तेमाल हो रहा है. बहुजन अवधारणा के प्रवर्तकों के अनुसार बहुजन में दलित और पिछड़ा वर्ग शामिल हैं. कांशी राम के अनुसार इस में मुसलमान भी शामिल हैं और इन की सख्या 85% है. उन की थ्योरी के अनुसार बहुजनों को एक जुट हो कर 15% सवर्णों से सत्ता छीन लेनी चाहिए. वैसे सुनने में तो यह सूत्र बहुत अच्छा लगता है और इस में बड़ी संभावनाएं भी लगती हैं. परन्तु देखने की बात यह है कि बहुजन को एकता में बाँधने का सूत्र क्या है. क्या यह दलितों और पिछड़ों के अछूत और शुद्र होने का सूत्र है या कुछ और? अछूत और शुद्र असंख्य जातियों में बटे हुए हैं और वे अलग दर्जे के जाति अभिमान से ग्रस्त हैं. वे ब्राह्मणवाद (श्रेष्ठतावाद) से उतने ही ग्रस्त है जितना कि वे सवर्णों को आरोपित करते हैं. उन के अन्दर कई तीव्र अंतर्विरोध हैं. पिछड़ी जातियां आपने आप को दलितों से ऊँचा मानती हैं और वैसा ही व्यवहार भी करती हैं. वर्तमान में दलितों पर अधिकतर अत्याचार उच्च जातियों की बजाये पिछड़ी संपन्न (कुलक) जातियों द्वारा ही किये जा रहे हैं. अधिकतर दलित मजदूर हैं और इन नव धनाडय जातियों का आर्थिक हित मजदूरों से टकराता है. इसी लिए मजदूरी और बेगार को लेकर यह जातियां दलितों पर अत्याचार करती हैं. ऐसी स्थिति में दलितों और पिछड़ी जातियों में एकता किस आधार पर स्थापित हो सकती है? एक ओर सामाजिक दूरी है तो दूसरी ओर आर्थिक हित का टकराव. अतः दलित और पिछड़ा या अछूत और शूद्र होना मात्र एकता का सूत्र नहीं हो सकता. यदि राजनीतिक स्वार्थ को लेकर कोई एकता बनती भी है तो वह स्थायी नहीं हो सकती जैसा कि व्यवहार में भी देखा गया है.
24.10.20
नए कृषि क़ानून से 62 लाख करोड़ का कारोबार जाएगा अडानी-अंबानी की जेब में
-चरण सिंह राजपूत-
किसान अपने खेत में ही बनकर रह जाएगा बंधुआ मजदूर
अपनी गलत नीतियों से देश को बेरोजगारी, महंगाई और अवसाद देने के बाद मोदी सरकार ने अब अपने आकाओं को खुश करने के लिए अन्नदाता को तबाह करने की रणनीति बना ली है। नए कृषि कानून के तहत मोदी सरकार ने एक तरह से देश के शीर्षस्थ उद्योगपतियों को किसानों की फसल का फायदा लेने का ठेका दे दिया है। जैसे अंग्रेजी शासन में किसानों पर अपनी सोच थोपकर फसल उगवाई जाती थी और उसे कम दामों पर खरीदकर मोटा मुनाफा कमाया जाता था। ठीक उसी प्रकार से इन नए कृषि कानून के चलते देश के पूंजपीति अपनी मर्जी की फसल किसानों से उगवाएंगे और उन्हें कम दाम पर बेचने के लिए मजबूर कर मोटा मुनाफा कमाएंगे। किसान हैं कि वे अपने ही खेत में बंधुआ बनकर रह जायेंगे।
बसपा के दांव से भाजपा-कांग्रेस-सपा में बढ़ी हलचल
अजय कुमार,लखनऊ
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव हों या फिर कांग्रेस के राहुल गांधी -प्रियंका वाड्रा तीनों को ही बसपा सुप्रीमों मायावती की राजनैतिक शैली रास नहीं आती है। कांग्रेस एवं समाजवादी पार्टी हमेशा से भारतीय जनता पार्टी की धुर विरोधी रहीं हैं और यह दल(सपा- कांग्रेस ) चाहते हैं कि उनकी तरह से मायावती भी भाजपा को अपना दुश्मन नंबर वन मानकर चलें, लेकिन बसपा सुप्रीमों मायावती किसी भी दल को अछूत नहीं मानती हैं। न ही किसी को क्लीन चिट देती हैं। वह सपा-कांगे्रस या फिर भाजपा की सियासत को एक ही तराजू में तौलती हैं। माया जितना हमलावर भाजपा पर रहती हैं उतना ही तीखा हमला वह कांग्रेस-सपा पर भी बोलती हैं। इतना ही नहीं मोदी-योगी सरकार के कुछ अच्छे फैसलों की माया सराहना करने से भी नहीं चूकती हैं। बस, इसी की आड़ लेकर कांगे्रस और सपा नेता बसपा को भाजपा की बी टीम बताने का हल्ला शुरू कर देते हैं। इस हो-हल्ले के पीछे सपा-कांगे्रस का जो डर छिपा रहता है,उसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है। दोनों ही दलों के नेताओं की कोशिश यही रहती हैं कि बसपा का दलित-मुस्लिम का फार्मूला ‘हिट’ नहीं हो पाए। इसकी तोड़ के लिए बसपा को बीजेपी की बी टीम बताकर मुस्लिम वोटों का रूख अपनी तरफ मोड़ने का प्रयास यह दल करते हैं,लेकिन मायावती भी कच्ची सियासतदार नहीं हैं। वह कांगे्रस-सपा को आइना दिखाने का कोई मौका छोड़ती नहीं हैं। राज्यसभा चुनाव में भी मायावती ने अपना प्रत्याशी उतार कर यही ‘चाल’ चली है। माया के इस दांव की काट करना कांगे्रस और सपा के लिए आसान नहीं होगा।
गांधी पर सबसे बेहतरीन गांधी हैं - रमाशंकर सिंह
हिन्दू कालेज में गांधी पर वेबिनार
दिल्ली। गांधी को लेकर, युवाओं के मन में दो तरह की बातें हैं ;एक तो गांधी को लेकर युवाओं के मन में बेचैनी है और दूसरा कई सवाल हैं। साथ ही युवाओं के बीच गांधी को लेकर बहुत ज्यादा सामग्री है, जो इस नए तरह के मीडिया द्वारा रोज परोसी जाती है, और इस तरह से गांधी की अच्छी - बुरी,कमतर या हीन छवि यह मीडिया निर्मित करता है। सुपरिचित अध्येता रमाशंकर सिंह ने उक्त विचार हिन्दू कालेज के हिंदी विभाग द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में व्यक्त किये।
कोयला चोरी के मामले में भाजपा विधायक के बेटे का नाम आने से मचा हड़कंप
S.k.kushwaha
आरोपी चालक का वीडियो वायरल, वायरल वीडियो में ड्राईवर ले रहा विधायक के बेटे का नाम
सिंगरौली: मध्यप्रदेश का सिंगरौली जिला औद्योगिक नगरी के लिए विश्व विख्यात है तो वही जिले के औद्योगिकीकरण को लेकर जिले में अवैध कार्यों में संलिप्त लोगों के मंसूबों का अंदाजा आप इन्हीं बातों से लगा सकते हैं की दिनदहाड़े औद्योगिक इकाइयों से कोयला कबाड़ डीजल का अवैध कार्य भली-भांति फल फूल रहा है कोयला चोरी का एक मामला तूल पकड़ता नजर आ रहा है जिसमें की कोयले के अवैध कार्यों में संलिप्त सफेद पोस की सरपरस्ती भी नजर आ रही है । संबंधित मामले से जुड़ा एक वीडियो सोशल मीडिया में तेजी से वायरल हो रहा है जिसमें की राजनैतिक गठजोड़ की बात सामने आ रही है ।
23.10.20
DM, SP और पत्रकारों ने उड़ाई सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाई
आदित्य कुमार दुबे
बेतीया।कोरोना वायरस के फैलते संक्रमण को रोकने और लोगों को संक्रमण से बचाने के लिए केंद्र सरकार ने देशभर में लॉकडाउन को जारी रखा है । लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने की अपील की जा रही है, लेकिन बिहार के बेतिया में सरकार के अधिकारी और इलेक्ट्रोनिक मीडिया के पत्रकारों ने इसे ताख पर रखकर बेतिया DMऔर SP से बाइट लिया।
बिके अखबारों की जलाई होली
भू माफिया से पीड़ित लोगों ने महात्मा गांधी जी को सौंपा समाचार पत्रों के खिलाफ ज्ञापन
पन्ना जिले में आए दिन राजनीतिक दलों एवं सामाजिक संगठनों द्वारा विभिन्न मांगों को लेकर ज्ञापन सौंपा आमवात हो गया है परंतु पन्ना जिला मुख्यालय के गांधी चौक में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को सौंपा गया ज्ञापन थोड़ा अलग है
देह व्यापार से जुड़े वीडियो के वायरल होने के बाद होटल पर पुलिस ने मारा छापा
ताजनगरी के थाना ताजगंज क्षेत्र के अंतर्गत फतेहाबाद रोड पर स्थित जेपी होटल के सामने राधा ग्राण्ड होटल का नाम बदल कर शिवम होटल में देह व्यापार चलाया जा रहा था। बुधवार की रात को पुलिस ने होटल में छापा मार कार्यवाही की। मौके से पुलिस को होटल में कोई नही मिला।
आर्थिक तंगी से जूझ रहा है एबीपी न्यूज़ बरेली का पत्रकार, बच्चो की फीस पर संकट
कोरोना जैसी महामारी से कोई भी अछूता नहीं है बरेली में तैनात एबीपी न्यूज़ के पत्रकार अनूप मिश्रा इन दिनों आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहे है आलम यह है कि वह अपने बच्चो की स्कूल फीस जमा करने में असमर्थ है अनूप पहले समाचार प्लस और एवीपी न्यूज़ में काम करते थे समाचार प्लस बंद हो गया और एवीपी न्यूज़ रीजनल आने के बाद संसथान ने पैसे कम कर दिए जिससे पत्रकार के सामने दो वक्त की रोटी का संकट खड़ा हो गया है
बंद की कगार पर नेशनल वॉयस, लोगों को नहीं मिल रही सैलरी
फरवरी में जोरो शोरों से शुरू हुआ न्यूज़ चैनल नेशनल वॉयस अब लगभग दम तोड़ चुका है। यहां पर कार्यरत लोग अब आत्महत्या पर उतारू हो रहें है। यहाँ पर अभी तक जुलाई की सैलरी भी नहीं आई है और जिसकी भी सैलरी आती है वो किश्तों में और 20/30 प्रतिशत कट कर आती है।
जागरण ग्रुप के मालिकों द्वारा घोड़े की बला तबेले के सिर डालने का प्रयास!
बिगड़ती है जब किसी ज़ालिम की नीयत
नहीं काम आती दलील और हिक़मत।।
जागरण ग्रुप के मालिकों द्वारा घोड़े की बला तबेले के सिर डालने का प्रयास!
किसी शायर ने ठीक ही कहा है कि जब किसी ज़ालिम की नीयत बिगड़ती है तो फिर कोई भी दलील काम नहीं आती है। ठीक उसी तरह का हाल इस समय दैनिक जागरण ग्रुप कानपुर का है। मजीठिया वेतनमान मांगने पर बौखलाए इस ग्रुप ने अपने उन कर्मठ व परिश्रमी कर्मचारियों पर कुठाराघात शुरू कर दिया है जिनकी बदौलत आज ये अखबार पाठकों में अपनी पकड़ बना चुका है।
Request of raising the issue of larger public interest
Date: 12th May, 2020
To,
The Chief Election Commissioner
Election Commission of India,
Nirvachan Sadan, Ashoka Road,
New Delhi-110001
Subject: Suggestions regarding disclosure of the information with respect to the status of the promises of quantitative nature made in the previous election manifestos of the candidates and political parties before the ensuing elections
Sir,
I am making this representation in the capacity of a concerned and spirited citizen of this country. I possess a Degree in Bachelor of Ayurvedic Medicine and Surgery and also identify myself as an academic writer. I have taken up several research activities aiming at Good Governance and policy framing for the last 4 years. On the basis of the extensive academic research carried out by me, I have sent many recommendations and suggestions to the Central Government and various State Governments in order to make our society better, more transparent and egalitarian, some of which have been accepted.
Factual background:
The Hon’ble Supreme Court recognising the importance of the election manifestos directed the Election Commission of India to frame guidelines directly governing the contents of the election manifestos in the case of S. Subramaniam Balaji v. State of Tamil Nadu & Ors. reported in (2013) 9 SCC 659.
Although, the Election Commission of India issued certain guidelines on election manifestos, framed in consultation with the political parties, it failed to consider that the voters ought to have a right to know as to what happened to those promises made in the election manifestos. A failure on part of the political party or for that matter a candidate in disclosing the status of the promises made in their election manifestos before the next elections deprives a voter his right to know and thereby denudes him from making an informed choice.
There is a statutory vacuum regarding regulation of election manifestos to the extent of tracking the performance of the political parties and the candidates and accountability to the public thereof. The Representation of People Act, 1951 as well as the Conduct of Election Rules, 1961 although have recognised the right to know of a voter, however, the same is insufficient. The information sought under Section 33A and Form No. 26 pertains more to the conduct of the candidates in their personal capacity. However, it is more so important to call for information with respect to their conduct as a representative of the nation.
Being a socially spirited citizen of the country, I made several representations to the Election Commission of India suggesting to call for declaration from the political parties as well as contesting candidates regarding the status of the promises made in their manifestos for the previous elections.
When these representations did not bear any positive results, I approached the Hon’ble High Court of Judicature at Bombay by way of a Public Interest Litigation (Civil Public Interest Litigation No.15 of 2019). The prayers sought in the said Public Interest Litigation were that necessary directions may be issued to the effect that Rule 4A of the Conduct of Election Rules, 1961 be amended empowering the Election Commission of India to seek information regarding the Status Report of the promises made in the election manifestos of the candidates and that of the political party. Further, it sought that an affidavit be required from the candidates contesting election on behalf of the political parties disclosing the status of the promises made in the previous election manifestos before the ensuing elections.
It is submitted that the election manifestos are generally drafted by the political parties and candidates keeping an eye on forthcoming elections and are generally published and well publicized. The political parties/candidates bag the votes by making promises in the elections, however, the voters are kept in dark, when it comes to giving them an opportunity to know the correct status of all such promises made.
It shall be difficult to hold the political parties and candidates responsible for non-fulfilment of each and every promise made in the election manifestos, however, what would be the harm caused to such political parties and candidates if a disclosure with regard to the status of the promises is required to be made by them while filing nominations.
Till recently, the candidates use to propagate the manifestos published or released by the political parties to which such candidates are affiliated to. However, since last few elections, several candidates belonging to different political parties, taking into consideration the local issues, have been coming up with their own manifestos giving an account of what would they do for their constituency if they are elected. The safeguards, although few, laid down by the Election Commission of India governs only the election manifestos issued by the political parties and not the individuals. As such, there is a vacuum regarding the law governing the election manifestos published by a candidate.
Voter’s (little man/citizen’s) right to know about the agenda of the political parties, their accountability and sincerity towards the promises made by it is much more fundamental and basic for the survival of democracy. The little man may think over before making his choice of electing law-breakers as law-makers.
The vacuum regarding the information relating to the promises made in the election manifestos and their status has resulted into deprivation of right to know of voter as guaranteed under Article 19(1)(a) of the Constitution of India. Such a disclosure would ensure that the voters make an informed choice while casting their votes which is very much essential for a participatory democracy. If a Status Report is there at the disposal of every citizen, then it can strengthen the democratic process and also restore the confidence of the people in the democratic process of choosing elected representatives. Furthermore, such a disclosure would also keep a check upon the political parties inasmuch as all such parties/candidates shall publish their manifestos after thorough research thereby restraining them from making false promises with a view to filling their vote banks.
Although, the judgment dated 23.04.2019 in Civil Public Interest Litigation No.15 of 2019 passed by the Hon’ble High Court of Judicature at Bombay which was arbitrary for several reasons, held that requiring the Election Commission to obtain a status report regarding the promises made in the form of election manifestos and make an assessment as to which promise has been fulfilled, and in what manner, is an exercise which is impossible to be performed for the reason promises made at the election are qualitative in nature.
Aggrieved by such arbitrary and perverse judgment of the Hon’ble High Court of Judicature at Bombay, I preferred a Special Leave Petition (SLP (C) Diary No.29113 of 2019) before the Hon’ble Supreme Court of India. The Hon’ble Supreme Court suggested that a fresh representation with modified remedies be made to the Election Commission of India and thus the petition was then withdrawn on 14.10.2019 and pursuant to the suggestion of the Hon’ble Supreme Court, this representation is being made.
Reasons why the provision of information as to the past performance of a candidate and political parties with respect to the election manifestos is essential are mentioned below:
Article 19(1)(a) of the Indian Constitution includes right to know of the voters about their candidates and their performance in their tenure before any citizen exercise their franchise. It is submitted that the Hon’ble Supreme Court recognized the voter’s right to know for the first time in the case of State of Uttar Pradesh v. Raj Narain & Ors., [(1975) 4 SCC 428] at Para 74. and has widened the horizons of the right to know of a voter while reiterating that the said right is a fundamental right under Article 19(1)(a) of the Constitution of India in the case of Lok Prahari v. Union of India reported in (2018) 4 SCC 699. Further, in the case of Union of India v. The Association for Democratic Reforms, [(2002) 5 SCC 294] held in Para 22 that a voter has a right to elect or re-elect on the basis of the antecedents and the past performance of the candidate.
Article 19 of the International Covenant of Civil and Political Rights (ICCPR) guarantees the right to freedom of speech and expression with regards to voting and this right shall include the freedom to seek, receive and impart information and ideas of all kind.
Any political party is not liable to disclose information under RTI. As such, the citizens of the country are left with no option to know as to what is the status of the fulfilment or otherwise of the election manifestos. For a participative form of democracy, it is important that the voters’ are educated in a right manner. It is all the more important that people cast their votes after knowing their candidate and not for any other extraneous considerations.
As per Article 324, the jurisdiction of Election Commission is wide enough to include all powers necessary for smooth conduct of the entire process of election. The Election Commission of India has already exercised the power and issued guidelines with regard to the issuance of the election manifestos and as such a further safeguard with regard to the right to information as to the past performance of a candidate and political parties with respect to the election manifestos would be well within the four corners of the powers of the Election Commission, which is long awaited.
Further, it is humbly submitted that in a landmark case the Hon’ble High Court of Australia recognizing the voters right to know the actions of the government and those actions being subject to electoral scrutiny by the voters in the case of Australian Capital Television Pty Ltd v The Commonwealth [177 CLR 106] wherein it observed that:
“236. If the institutions of representative and responsible government are to operate effectively and as the Constitution intended, the business of government must be examinable and the subject of scrutiny, debate and ultimate accountability at the ballot box. The electors must be able to ascertain and examine the performances of their elected representatives and the capabilities and policies of all candidates for election. Before they can cast an effective vote at election time, they must have access to the information, ideas and arguments which are necessary to make an informed judgment as to how they have been governed and as to what policies are in the interests of themselves, their communities and the nation.…”
Prayers:
It is therefore, humbly submitted that, in order to make our democracy and our election process, transparent and to give the voters all the information they require about the political parties and the candidates so that the voters could exercise their right to vote wisely, I urge you to deeply consider the below mentioned prayers/suggestions: –
Issue guidelines regarding submission of an affidavit containing statement with respect to the status of the promises of quantitative nature made in the election manifestos of the candidates along with that of his/her political party from the candidates by suitably modifying the Model Code of Conduct;
Send recommendation to the Ministry of Law and Justice to amend the Rule 4A and Form 26 appended to the Conduct of Election Rules, 1961 thereby seeking information regarding the status report of the promises of quantitative nature made in the election manifestos of the candidates along with that of his/her political party from the candidates;
Issue such other order(s) or direction(s) as the Election Commission of India deems fit to ensure free and fair elections and protect voters' right to information.
Yours faithfully,
Akshay Yadavrao Bajad