क्या आपको नहीं लगता कि भारत की संसद एक ऐसा हल्ला घर बन गया है जहाँ कोई एक दुसरे को सुन नहीं सकता और सिर्फ अपनी बातों को जोर शोर से इसलिए बोलना चाहता है कि आप मुझे जानो कि मैं पक्ष हूँ तो मैं विपक्ष हूँ। रोज रोज करोंरों रुपया बर्बाद होता है इस बेतुकी हल्लाम्गुल्ला से किन्तु इसकी फिकर काहे को हो मेरे इन जनप्रतिनिधियों को । क्या किसी मुद्दा को सौम्य बहस से नहीं सुलझाया जा सकता?
5.12.07
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