20/9/94 को लिखी मेरी एक कविता मिली...हू ब हू पेश है....
आज की कविता का विषय
हजारों की
सैकड़ों परेशानियां
सब दर्द से बेहाल-- अपने अपने !
खंड खंड में बंटे लोग
टुकड़ों में विभक्त
व्यक्तित्तव हो गया-- टुकड़े टुकड़े !
निवीर्य होती पीढ़ियां
सपने न देख पाने का सच
जोंक बनकर नाभिनालबद्ध होने को आतुर--धीरे धीरे
आत्महत्याएं....
संवैधानिक परिणति है
विषपान करती प्रदूषण को ये पीढ़ी शनै: शनै:
यशवंत
28.12.07
आज की कविता का विषय
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