चुनाव और पत्रकारों का रिश्ता दिनों दिन ऐसा होता जा रहा है जैसा कि जनम जनम के साथी हों । भाई ये सब तो ठिक है लेकिन उस देश में जहाँ लोग भावना जाती धर्म पर वोट देते हैं वहाँ चुनावी जीत कि भविस्वानी ठिक नहीं । गलती हम लोगों कि भी नहीं , आख़िर इस विज्ञापन कि दुनिया में जहाँ सत्य कि जगह सनसनी पर जोर हो , कोई क्यों बक्सा खुलने का इंतजार करे। कहीं आप हाथ हाथ पर धरे रह जाएगें और चुनावी जीत कि भाविश्वानी कर कोई और अपने को तेज दिखाकर आस विज्ञापन झटक ले जाएगा। हमें तो लगे रहना है । उस मशीन कि तरह जो चलने लायक नहीं रहता है तो उसे बदल या कबार में बेच दिया जाता है। करवा लिखने के लिए के लिए क्षमा।
18.12.07
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