भड़ास से पंगा लेने वाले ढंढोरची भाई को सलाम। पहले तो मैंने समझा कि किसी ने यूं ही ब्लाग बनाकर कुछ भी आंय बांय लिखना शुरू किया है लेकिन भड़ास के खिलाफ जब दो पोस्टें आ गईं तो लगा कि कोई गांड़ धो के पीछे पड़ गया है। ऐसे में एक ही चारा था, ढंढोरची की हिस्ट्रीशीट खोलना। हालांकि कई बार हिस्ट्रीशीटर खुद की हिस्ट्री खुद ही गाते फिरते हैं और ढंढोरची के मामले में भी ऐसा ही हुआ। भाई ने एक तो खुद को पहले ही अनाम कर लिया है सो वो खुलकर बोल नहीं सकता। और, नकल करता है भड़ास की स्टाइल का मतलब कह रहा है कि अपन ने भड़ास निकाल दी तो बुरा लग गया टाइप की बात। मेरा कहना है मेरे भाया, बुरा भला कुछऊ ना होत है ऐह दुनिया मा। आप गंदा बोलो अच्छा बोलो लेकिन बोलो तो अपनी पहचान के साथ। अनाम ढंढोरची का कोई मतलब नहीं होता है।
ढंढरोची ने जो हिस्ट्रीशीट खुद की लिखी है वो पढ़कर आप खुद कह उठेंगे कि अरे, बीस वर्षों तक साहित्यकारों, संपादकों का चक्करर लगाने वाले कुंठित व्यक्ति अगर लिखेगा भी तो कतई खुलकर नहीं लिखेगा, वह छिपकर हमले करेगा। मनोविज्ञान की भाषा में ऐसे लोगों को इतना कुंठित बताया गया है कि अगर वो अकेले में किसी बच्ची को पा जाएं तो रेप भी कर डालें। दरअसल कुंठा का कोई ओरछोर नहीं होता। सबके सामने शरीफ बने रहेंगे और अगर छुपने या अकेले होने का मौका मिल जाए तो उनके कुंठा का जिन्न् बाहर आ जाता है। ब्लाग के मामले में भी ऐसा ही है। ढेर सारे लोग हैं जो अनाम होकर कमेंट करते हैं और फर्जीनाम से ब्लाग चलाते हैं। ऐसे लोगों में से अधिकतर डरपोक और कुंठित होते हैं। इन्हें समाज से भय भी होता है और इन्हें समाज के खिलाफ क्रांति भी करनी होती है। इसी दुविधा में मरते रहते हैं। माया मिली न राम। फिलहाल ढंढरोची की खुद के हाथों लिखी प्रोफाइल ऊर्फ हिस्ट्रीशीट पढ़िए और बताइए कि क्या वाकई यह शख्स कुंठित नहीं होगा.....
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नाम.....ढंढोरची
Location: जहाँ चहा वहाँ रहा
About Me
आप आज ऎसे इंसान का परिचय जान रहे हैं जिस ने पिछले बीस सालों से साहित्य जगत में विभिन्न मासिक,सप्ताहिक,दैनिक पत्र-पत्रिकओं मे अपनी रचनाएं प्रेषित की हैं। मुझे अधिकतर ्बड़े-बड़े संम्पादकों को अपना परिचय देने की अवश्यकता नहीं पड़्ती । वह मेरे नाम,मेरे काम को जानते हैं।बीस सालों मे मैनें हजारों रचनाएं उन्हें भेजी हैं ।यह बात अलग है कि उन्होनें बड़े प्रेम के साथ धन्यवाद देते हुए मेरी सभी रचनाएं खेद सहित वापिस लोटा दी। जिन्हें बाद मे मैनें कबाड़ीवाले को बेच दिया। कई संम्पादको ने तो मुझसे विनम्र प्रार्थना की आप की रचनाएं हम समझनें में असमर्थ है। अतः भेजने का कष्ट ना करें। उसी महान रचनाकार,लेखक की रचनाएं अब आप को पढ़नी होगीं। वह संम्पादक तो ना समझ थे इस लिए मेरी रचनाओं को वह ना समझ सके ।लेकिन मै जानता हूँ कि यहाँ के चिट्ठाकार बहुत अकल मंद हैं । वह मेरी भावनाओं कि कदर करेगें।
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वैसे, ढंढोरची भाई, आप भड़ास खूब निकालो, हम दुखी न होंगे, दुखी बस इसलिए हैं कि आप छिपकर भड़ास निकाल रहे हो। यह आपको हलका नहीं करेगा, आपकी कुंठा को और बढ़ाएगा। भगवान आपको अक्ल दें। हालांकि आपने जो काम शुरू किया है उससे भड़ास को प्रचार ही मिलेगा, मुश्किलें तो आपकी बढ़ेंगी। आपका ब्लाग देखकर यह लग रहा है कि आपको जानकारी ढेर सारी है, खासकर तकनीक की भी। ढेर सारे लिंक और टूलबार लगा रखें हैं। मैं तो आपसे कम ही जानता हूं लेकिन आप सब खेल छिपकर कर रहे हैं इससे यह साफ जाहिर है कि आपने मां का दूध नहीं बल्कि डिब्बाबंद बोतल के जरिए जवानी की दहलीज पर कदम रखी है। चलिए...आपकी अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा....। हम लोग तो हैं ही दर छंटे हरामी, आप जैसा महानुभाव के मिल जाने से थोड़ी गर्मी बनी रहती है।
जय भड़ास
यशवंत
27.12.07
ढंढोरची की हकीकत
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6 comments:
यार यशवंतजी एक जमाना होगया न हमने किसी को
गाली दी न किसी ने हमें दी पर इस डिंडोरची ने वही मिसाल कर दी गांड में गू नहीं नौ सौ सुअर नौत दिये.यार हम तो आप सब में शामिल सुअर राज हैं.गू क्या गांड भी खा जायेंगे साले की तब पता पता चलेगा.नेट पर बेनामी छिनरे कई हैं अदब साहित्य से इन्हें कोई लेना देना नहीं हैं सबसे बड़ा सवाल इनकी नस्ल का है न इधर के न उधर के.
भाई हम सीधा कहते हैं भड़ासी पहुँचे हुए संत है शिगरेट शराब जुआ और तमाम फैले के बावजूद उन पर भरोसा किया जा सकता है.इन तिलकधारियों का भरोसा नहीं किया जा सकता.कुल्हड़ी में गुड़ फोड़ते हैं चुपके चुपके.इन का नाम लेकर इन्हें क्यों महान बना रहे हैं आप. देखो हम ने कैसे इस कमजर्फ को अमर कर दिया.जय भड़ास.
....भाई ये .....धोना पोंछना क्या है .
yar yashwantji maza aa gaya, bhopal chodne ke bad itni mast bhasha aur gali sunnne ke liye tarash gaya tha
God save this blogers
यशवंत जी आज भड़ास देखकर पहली बार दुख हो रहा है, कम से सयमित भाषा का तो उपयोग किजीए, आप भी हद करते हैं। मुझे उम्मीद है कि आप मेरी सलाह पर जरुर गौर फरमाएंगे
श्रीमान जी आप भड़ास निकालिए दिलखोलकर. छोडिये कहाँ ढंढोरची की बात कर के उसका भाव बढा रहें हैं.ढंढोरची वो होते हैं जो दूसरों की बातें ही लोगों तक पहुँचाते हैं क्यों की उनके पास अपना कुछ होता ही नहीं. भूल जाईये उसे और लिखते रहिये. जहाँ तक भाषा का सवाल है तो भाई इसे डाक्टर राही मासूम रजा तक ही रहने दें.( आधा गाँव )
नीरज
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