भोपाल ! सर सैयद अहमद, अल्लामा इकबाल, रफी अहमद किदवई, अशफाक उल्ला खान, मौलाना अबुल कलाम आजाद, डॉ जाकिर हुसैन, फखरुद्दीन अली अहमद, कैप्टेन हमीद, एपीजे अब्दुल कलाम यह वह महान हस्तियां हैं जिन्होंने अपने अपने क्षेत्र में भारत का प्रतिनिधित्व कर मुस्लिम समाज का भी नाम ऊंचा किया परंतु अब शिक्षा प्राप्त करना इतना आसान नहीं जो एक जटिल समस्या बन गई है !
देश की कुल जनसंख्या लगभग 125 करोड़ में से 25 से 30 करोड़ मुसलमान निवासरत है जिनका शिक्षित प्रतिशत 3% है, देश के अलग अलग प्रांतों में ! देश की स्वतंत्रता पूर्व मुस्लिम समाज में बुद्धिजीवी वर्ग का प्रतिशत अधिक रहा परंतु सन 1947 में देश का हुआ जब धार्मिक बंटवारा तो अधिकांश संपन्न और शिक्षित वर्ग देश छोड़कर चला गया ! शेष बचा मुस्लिम परिवार उसने अपने स्वार्थों को त्यागते हुए धार्मिक बंटवारे को ठुकराते हुए भारत देश को ही अपना मादर-ए-वतन माना और वह छोटे-छोटे रोजगार से अपना व अपने परिवार का भरण पोषण करता ! वह अपने परिवार के सदस्यों से भी रोजगार में सहयोग लेता चाहे वे बाल-श्रम ही क्यों ना हो ! स्वतंत्रता के बाद केंद्र व राज्यों में कई सरकारें आई गई देखो कितना धर्मनिरपेक्षता का ढोंग रचाया, स्वतंत्रता से पहले मुस्लिम वर्ग शिक्षा स्तर 70% 80% को 03% तक पहुंचाया !
मुस्लिम परिवार फुटपाथ या अतिक्रमण कर अपना छोटा-मोटा व्यापार चलाते रहे ऐसे ही गरीबी के जुग्गी नुमा कच्चा-पक्का मकान बनाते हैं फिर आता है कोई बुलडोजर लेकर उनके ख्वाबों के महल को घर आता है या फिर धार्मिक दंगे में उनकी कोई दुकान जलाता है ! सन 1977 में जनता पार्टी की सरकार प्रधान-मंत्री मोरारजी देसाई ने दलित और पिछड़ा वर्ग की आर्थिक सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति पता करने के लिए मंडल कमीशन बनाया था ! धर्मनिरपेक्षता दल ने मंडल कमीशन का नाम बदलकर अपने 50 वर्षीय कार्यकाल काल इतिहास जानने के लिए मात्र रिसर्च रिपोर्ट हेतु जिसमें सच्चर कमीशन द्वारा दलित से बदतर बताया था !
जहां तक स्कूली शिक्षा का सवाल है मुस्लिम धार्मिक परिवार वालों ने अंग्रेजी माध्यम वाले मिशनरी स्कूल जाने नहीं दिया कि वहां कुछ अपने धर्म का पाठ पढ़ाते हैं वैसे ही सरकारी स्कूलों में धार्मिक श्लोक या अन्य क्रिया की अनिवार्यत: या कोई पुस्तक दूसरे धर्म ज्ञान भी अनुचित है ! लेकिन एक ऐतिहासिक प्रयास संघ (RSS) द्वारा गठित मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के सहयोग से जो धर्म निरपेक्ष दलगत सत्ताओं में उर्दू भाषा को ऐच्छिक विषय बनाया था जिसके वजह से उर्दू खतम सी होती जा रही को पुनः सरकारी या प्राइवेट स्कूल में कक्षा पहली से दसवीं तक उर्दू भाषा की एक पुस्तक को अनिवार्यता शामिल कराए जाने की पहल की है ! ताकि भारतीय मुस्लिम समाज विद्यार्थी आजादी के पूर्व का उर्दू भाषा में लिखा वह देश भक्तों का स्व इतिहास पढ़ें वक्फ संपत्तियों के साथ इस्लाम धर्म पवित्र पुस्तक कुरान का तर्जुमा (अनुवाद) हो तफ़्सीर (व्याख्या) पर इंसान बने ! इंसान बनकर एक अच्छे शहरी वह अपने मुल्क के निगहबान बने !
"अब तो वैचारिक द्वंद हैं "
@मो. तारिक
स्वतंत्र लेखक
2.10.16
मुस्लिम साक्षरता 03%, बिन साक्षरता और रोजगार कैसे संभव होगा विकास यह मंथन जरूरी है : मो. तारिक
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