15.10.16
किताब 'गुस्ताखी माफ़ हरियाणा' की पत्रकार-छायाकार स्व. बुद्धिराजा द्वारा लिखी गई समीक्षा
स्वाद हरियाणा का... भारतीय मानचित्र पर हरियाणा एक छोटा सा प्रदेश है। हमेशा चर्चा में रहने वाला। राजनीति से लेकर अफसरशाही तक, आम आदमी की जीवन शैली से लेकर रोजमर्रा के हालात पर आए दिन किस्से बनते रहते हैं। कोई किस्सा खबर बन कर सामने आया तो कोई बिना शीर्षक बने खत्म हो गया। चर्चित और अनाम किस्सों को संकलित कर उसे एक किताब के रूप में सामने लाने का नवोदित लेकिन उल्लेखनीय प्रयास है – गुस्ताखी माफ हरियाणा।
हाल ही में विमोचित इस पुस्तक में हरियाणा से जुड़ी घटनाओं की भरमार है जो बीते दौर में काफी हलचल मचाती रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार पवन कुमार बंसल की यह तीसरी पुस्तक है। इससे पहले उनकी दो किताबें हरियाणा के लालों के सबरंगे किस्से और खोजी पत्रकारिता, क्यों और कैसे भी आ चुकी है। हालांकि इससे पहले की दोनों पुस्तकें दो अलग रंगों में थी शायद इसलिए उन्होंने अपनी इस तीसरी पुस्तक में एक तीसरा रंग दिया है।
220 पन्नों की इस किताब में ज्यादातर घटनाएं पिछले चार दशकों के उस कालखंड की नजर आती हैं जब लेखक बतौर पत्रकार हरियाणा की पत्रकारिता की मुख्यधारा में सक्रिय था । इस कालखंड से बाहर निकलने के लिए लेखक ने कई दशकों पुरानी ऐतिहासिक घटनाओं पर भी प्रकाश डाला है जिसे पढ कर पैसे वसूल होने जैसी संतुष्टि हो सकती है। किताब में प्रकाशित हर घटना के चित्रण में लेखक की बेबाकी और निर्भीकता देख कर आश्चर्य हो सकता है । आधुनिक दौर में जहां ऐसे लेखक, पत्रकारों की कमी नहीं जो निहित स्वार्थों के चलते चाटूकारिता करने में परहेज नहीं करते वहीं इस पुस्तक में किसी राजनेता पर किसी वजह से तीखे कटाक्ष किए गए हैं तो वहीं उसी नेता के किसी अच्छे निर्णय पर उसे सराहा भी गया है।
हरियाणा की लोक संस्कृति से लबरेज अनेक ऐसे किस्से भी संकलित हैं जो गुदगदाती हैं वहीं राज्य में व्याप्त भ्रष्टाचार पर चिंतन करती घटनाओं पर भी सीधे प्रहार हैं । लेखक द्वारा सीधे प्रहारों के चलते कई नेताओं को गहरी नाराजगी हो सकती है लेकिन शायद इसीलिए लेखक ने पहले ही कह दिया है कि – गुस्ताखी माफ हरियाणा । जाह्नवी प्रकाशन, नरवाना द्वारा प्रकाशित की इस पुस्तक का मूल्य चार सौ रूपये रखा गया है । पुस्तक की सामग्री सरल,सरस और मुहावरेदार है । सीधी बात के कारण इस पुस्तक को किसी कहानी संग्रह की तरह पढ़ने जैसा आनंद लिया जा सकता है वहीं यह प्रदेश के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक भूगोल को समझने में सहायक हो सकती है । किताब पढ़ने के बाद ऐसा भी मन में आता है कि इस पुस्तक का नाम स्वाद हरियाणा का भी हो सकता था।
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