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30.10.16

भारत के प्रति विश्‍व बैंक का नकारात्‍मक रवैया

किसी भी देश के विकास के लिए जिन तत्‍वों को आवश्‍यक माना जाता है, उनमें अत्‍यधिक महत्‍वपूर्ण है, उस देश का कारोबारी माहौल कितना सकारात्‍मक है और वहाँ व्‍यापारियों-उद्योगपतियों को पर्याप्‍त सम्‍मान मिलता है कि नहीं। भारत के संदर्भ में इसे लें तो आज स्‍थ‍ितियाँ पूर्व की अपेक्षा बहुत ही सकारात्‍मक हैं। हलांकि इसका प्रारंभ केंद्र में राजीव गांधी की सरकार के बाद ही दिखना शुरू हो गया था, किंतु राजीव गांधी के असमय निधन के बाद नौवें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेते ही पामुलापति वेंकट नरसिंम्‍हा राव ने भारतीय राजनीति को एक नई दिशा देते हुए समाजवादी भारत की अर्थव्‍यवस्था को पूंजीवाद और खुली अर्थव्‍यवस्‍था की ओर मोड़ने में सफलता हासिल की।


भारतीय राजनीति और अर्थव्‍यवस्‍था की दृष्टि से उन्‍होंने जो बड़ा कार्य किया, वह लाइसेंस राज की समाप्ति और खुली अर्थव्‍यवस्‍था के लिए भारत के द्वार विश्‍व के लिए खोलना है। देश के पहले प्रधानमंत्री बनने के बाद जवाहरलाल नेहरू भी स्‍वयं अपने को राजनीतिक और आर्थ‍िक विकास के लिए गुट निरपेक्ष आंदोलन, समाजवाद-पूंजीवाद मॉडल एवं देश में नदियाँ, बांध और पंचवर्षीय योजनाओं तक ही सीमित रख सके थे, जबकि उससे कहीं आगे की सोच रखते हुए नरसिंम्‍हा राव ने कारोबारी विकास की नजर से देशहित में निर्णय लिए। वर्तमान भारत को जिस ग्‍लोबल इकॉनॉमी के रूप में हम देख रहे हैं, उसका सर्वप्रथम श्रेय श्री राव को दिया जाए तो कुछ गलत न होगा। देश में चहुंओर विरोध के बाद भी दुनिया के देशों के लिए अपने द्वार खोलने और स्‍वयं अपने देश से विश्‍वभर में छा जाने का उनका निर्णय तत्‍कालीन समय में कितना सही था, यह हम वर्तमान मोदी सरकार के लिए जा रहे निर्णयों से जोड़कर भी देख सकते हैं।

केंद्र में वर्तमान भाजपा सरकार के पूर्व कांग्रेस के मननोहन राज में और इससे पहले एनडीए की वाजपेयी सरकार में ग्‍लोबल इकॉनॉमी से जुड़े एफडीआई जैसे तमाम निर्णय लिए गए, उन्‍होंने भारत की छवि विश्‍व में यही बनाई कि विकासशील भारत बहुत हद तक विकसित हो चुका है। जहाँ तक गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण, बेरोजगारी जैसे नकारात्‍मक मुद्दों का प्रश्‍न है तो दुनिया का शायद ही कोई देश वर्तमान में हो जो इन समस्‍याओं से पीड़ि‍त न हो, स्‍वयं अमेरिका, इंग्‍लैण्‍ड और जर्मनी जैसे विकसित देश भी आज यह घोषणा नहीं कर सकते कि उनके यहां कोई कुपोषित या बेरोजगार नहीं है। कहने का आशय यह है कि दुनिया में जो देश विकसित कहे जाते हैं, उनके यहां भी समस्‍याएं भारत जैसे देशों की तुलना में कम हों ऐसा बिल्‍कुल नहीं है। यह जरूर है कि विश्‍व में उनकी प्रचलित मुद्रा के कारण उनका रुतबा कम या ज्‍यादा कायम है। विश्‍व बैंक जैसी संस्‍थाएं भी समय-समय पर इन कुछ चुनिंदा देशों के हिसाब से अपनी नीतियों और व्‍यवस्‍थाओं में परिवर्तन करती रहती हैं।

यह कहने के पीछे जो पुख्‍ता कारण नजर आ रहा है, वह है कारोबारी सुगमता को लेकर विश्व बैंक की बनाई हुई ताजा रिपोर्ट जिसमें दुनिया की 190 अर्थव्यवस्थाओं का विभिन्न मानकों पर मूल्यांकन किया गया और भारत को उसमें 130वें स्थान पर रखा गया है। किंतु वर्तमान में यह बात सभी के लिए जानना आवश्‍यक हो गई है कि इस रपट के पहले एक रिपोर्ट अमेरिकी विदेश मंत्रालय की ओर से भी कुछ माह पूर्व जारी हुई थी, जिसका निष्‍कर्ष है कि भारत वास्तव में प्रगति नहीं कर रहा, उसकी यह ग्रोथ बढ़ा-चढ़ाकर बताई गई है। नरेंद्र मोदी सरकार आर्थिक सुधारों के अपने वादों को पूरा करने की दिशा में धीमी रही है। अमेरिकी विदेश विभाग के आर्थिक एवं कारोबार ब्यूरो की ओर से तैयार यह रिपोर्ट कहती है, दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में भारत की 7.5 फीसद की वृद्धि दर वास्तविकता से अधिक बताई गई है। भारत में कई प्रस्तावित आर्थिक सुधारों को संसद में पारित कराने के लिए सरकार को कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है। इस कारण राजग सरकार के समर्थन में आगे आए कई निवेशक पीछे हट रहे हैं।

वस्तुत: यहां कहना होगा कि अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने पहले यह रपट प्रस्तुत कर दुनिया के सामने भारत के विषय में भ्रम फैलाने का कार्य किया, जिससे कि विश्वभर में तेजी से भारत के प्रति बन रहे उत्साहवर्धक और सकारात्मक माहौल को रोका जा सके। अब दूसरी किस्‍त में विश्‍व बैंक ने अमेरिका की इस बात पर अपनी मुहर लगा दी। इस सब के बीच यदि भारत में तेजी से सर्वव्‍यापी विकास की ओर पहले जाकर पड़ताल की जाए तो स्‍थ‍िति बिल्‍कुल साफ हो जाती है। अमेरिका द्वारा फैलाए गए झूठ के पहले तक पिछले दो वर्षों में आईं तमाम रपटें फि‍र वह विश्व बैंक से लेकर एशि‍यन बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष, हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी, संयुक्त राष्ट्र या अन्य किसी की क्यों न हों, सभी ने एक स्वर में यह बात स्वीकारी थी कि भारत आज विकसित, विकासशील और तीसरी दुनिया के देशों के बीच सबसे ज्यादा तेज गति से विकास कर रहा है। ऐसे में यक्ष प्रश्‍न यह है कि विश्‍व बैंक की किस रपट को सही माना जाए ? आज यह बैंक सही कह रही है या अमेरिकी विदेश विभाग के आर्थिक एवं कारोबार ब्यूरो की रपट से पहले विश्‍व बैंक भारत के संबंध में जो कहा था वह सही था ?

विश्‍व बैंक क्या हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी के पिछले वर्ष ही किए गए उस अध्ययन को झुठला सकती है, जिसके निष्कर्ष बताते हैं कि भारत के जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) की वृद्धि दर दुनिया के प्रमुख देशों में सबसे ज्यादा रहेगी और भारतीय अर्थव्यवस्था अगले आठ साल तक सालाना औसतन 7.9 प्रतिशत की रफ्तार से दौड़ते हुए चीन को पीछे छोड़ देगी ?  यदि हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (सीआइडी) की जमीनी स्तर पर तैयार की गई रिपोर्ट सही है तो निश्चित ही विश्‍व बैंक की भारत की ग्रोथ को लेकर आज जो निष्‍कर्ष आए हैं, कहीं न कहीं वे गलत हैं। हो सकता है कि इस रपट के माध्‍यम से भारत की दुनिया में जमती धाक को कम करने की मंशा से यह भ्रम फैलाया गया हो। इसी प्रकार संयुक्त राष्ट्र की गत वर्ष की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत की मौजूदा आर्थिक वृद्धि दर की जो रफ्तार है उस हिसाब से भारत चीन को पीछे छोड़ देगा। यहां यह भी बताया गया था कि 2016 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि 7.7 प्रतिशत रहेगी।

रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया स्‍वरूप केंद्र सरकार का यह कहना सही प्रतीत हो रहा है कि इसे तैयार करते समय उसमें भारत के उन अनेकों सुधारों को सम्‍म‍िलित नहीं किया गया है, जिनके शामिल होने के बाद 190 देशों के बीच यह प्रबल संभावना थी कि कम से कम भारत की रैंकिंग 130 पर तो बिल्‍कुल नहीं की जाती । इस रिपोर्ट से यही आभासित हो रहा है कि सन् 1947 को आजाद होने के बाद पिछले 69 वर्षों में निरंतर के प्रयासों से अब तक भारत दुनिया के समस्‍त देशों में जिनमें कि भारत के छोटे राज्‍य छत्‍तीसगढ़ से भी छोटे देश शामिल हैं के बीच तुलनात्‍मक रूप से विकास के स्‍तर पर अभी भी बहुत पीछे बना हुआ है, इतना कि सिर्फ वह विश्‍व के 60 देशों से ही आगे है। किंतु वर्तमान सत्‍य इसके विपरीत है।

यहां पूर्व कांग्रेस सरकार को छोड़ि‍ए केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद से ही पिछले ढाई वर्षों में जो  देश के संपूर्ण विकास की दृष्‍ट‍ि से कार्य किए गए हैं, उन्‍हें ही सिर्फ देख लें। वे ही आज देशभर में इतनी तेज गति के साथ किए जा रहे हैं कि कोई कारण नहीं बनता, जिसको आधार बनाकर प्रमाणिकता के साथ यह कहा जा सके कि भारत में कारोबार में आसानी के लिए अभी तक सहज माहौल तैयार नहीं हो सका है या ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के मामले में भारत अभी बहुत पीछे है। जीएसटी, ईएसआइसी एवं ईपीएफओ पंजीकरण की ऑनलाइन व्यवस्था, निर्माण योजना से जुड़ी एकल खिड़की योजना, दिवालियापन संहिता, कमर्शियल कोर्ट स्थापित करने से जुड़े सुधार, बैंक्रप्सी कोड जैसे अनेक कार्य पिछले दिनों भारत में तेज विकास के लिए सुधार की दृष्‍ट‍ि से किए गए हैं। विश्‍व बैंक उनको नकारकर कैसे आज यह साबित करने का प्रयत्‍न कर रहा है कि भारत दुनिया में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के मामले को लेकर तैयार नई रैंकिंग में 130 वें क्रमांक पर खड़ा हुआ है ?

भारत के विकास को लेकर यह भी तथ्‍य हैं कि देश में पिछले ढाई साल में बिजली उपलब्धता, ठेका प्रणाली लागू करवाने, सीमा के आर-पार व्यापार एवं प्रॉपर्टी पंजीकृत करवाने की प्रक्रिया आसान हुई है। देश में निरंतर  औद्योगिक उत्पादन सूचकांक और मुख्य औद्योगिक क्षेत्रों के प्रदर्शन में सुधार हो रहा है। व्‍यापार विस्‍तार और नई शुरुआत को लेकर आज छोटे निवेशकों में पहले से ज्‍यादा भरोसा जागा है, जिसका परिणाम है कि राज्‍यों में लगातार वैश्‍विक निवेश तेजी से आ रहा है और बड़े उद्योगों के साथ छोटे-छोटे उद्योगों के विकास के लिए उत्‍साह से पूर्ण माहौल सतत् बना हुआ है।

लेखक डॉ. मयंक चतुर्वेदी हिन्‍दुस्‍थान समाचार के मध्‍यक्षेत्र प्रमुख एवं केंद्रीय फिल्‍म प्रमाणन बोर्ड की एडवाइजरी कमेटी के सदस्‍य हैं। 

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