जानिये कैसे 17 साल की लड़ाई के बाद सुप्रीमकोर्ट में महेश ने दी लोकमत प्रबंधन को पटकनी... लोकमत प्रबंधन को लेबर कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट और फिर सुप्रीमकोर्ट तक में पटकनी देने वाले वीर मराठा महेश साकुरे की कहानी उन सभी साथियों को प्रेरित करती है जो मजीठिया वेज के अनुसार वेतन, एरियर और प्रमोशन की मांग को लेकर सुप्रीमकोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं। 4 अक्टूबर 2016 के सुप्रीमकोर्ट के ऑर्डर के बाद कई मीडियाकर्मी निराश हुए। मेरा दावा है महेश की कहानी आप एक बार पढ़िए। निश्चित रूप से आप में जोश आएगा और महेश के जज्बे को भी आप सलाम करेंगे। अपनी संघर्ष की कथा मेरे निवेदन पर लिखने को तैयार हुए महेश साकुरे।
मैं महेश मनोहरराव साकुरे भंडारा (महाराष्ट्र) निवासी हूं। मैं कॉलेज जाते-जाते एक दिन यूँ ही भंडारा स्थित लोकमत जिला कार्यालय पहुंचा, जहां मेरे कुछ दोस्त कार्यरत थे। तब उन्होंने कहा की काम करते हो तो यहां काम है। मैं तो खालीपिली था। मैने हां कही। तब वहां जो कर्मचारी थे वो सारे के सारे बाउचर पर काम कर रहे थे। तब क्या खर्चा पानी से मतलब था। 1 अक्टूबर 1996 से मैं टेलीप्रिंटर ऑपरेटर बतौर काम करने लगा। तब मुझे 300 रुपये मिलते थे। काम के साथ मेरा कॉलेज भी चल रहा था। कुछ महीने बीत गए। बाद में मुझे 500 रु. देने लगे। उस दौरान भंडारा कार्यालय में सितंबर 1997 को कंप्यटर आया। (तब तक टेलिप्रिंटर से न्यूज नागपुर भेजी जाती थी) मुझे कंप्यूटर की कोई जानकारी नहीं थी। इसीलिए मुझे पांच दिन नागपुर कार्यालय में ट्रेनिंग के लिए बुलाया था। उसके बाद मुझे 1000 रु. मिलने लगे। फिर उन्होंने मानव सेवा ट्रस्ट की ओर से लेटर दिया। ज्यादा जानकारी नहीं होने के कारण मैंने वह लेटर लिया। वहां लिखा था की आप इसके तहत 2 साल के कॉन्ट्रॅक्ट में काम करोगे। वहां 1,500 रु. लिए थे। मैंने स्वीकार किया क्योंकि जेबखर्चे के लिए मुझे पैसों की जरुरत थी। तब मां के गुजर जाने से मन भी अकेला था और जेब भी खाली।
कुछ दिन यूँ ही काम चलता रहा। काम बढ़ने लगे थे। तब पैसों की कमी खल रही थी। उस दरम्यान मैंने हमारे भंडारा लोकमत कार्यालय के जिला कार्यालय प्रमुख प्रा.एच.एच. पारधी जोकि जे.एम. पटेल कॉलेज में बतौर अध्यापक के रुप में काम कर रहे थे वे लोकमत तथा लोकमत समाचार के जिला प्रतिनिधि थे। प्रा.पारधी के पास मैंने वेतन बढ़ाने के लिए कई अर्जीयां दी। (जब से लगा तब से 300/500/1000/1500 रुपये मिलते थे बाउचर पर) तब तक तब उन्होंने नागपुर बात कर मेरा मानव सेवा ट्रस्ट का कॉन्ट्रॅक्ट खत्म कराया और लोकमत प्राइवेट लिमि. का ऑर्डर लाया।
1 जुलाई 2000 से 30 जून 2001 तक एक साल का कॉन्ट्रॅक्ट मिला। वहां मोडेम ऑपरेटर लिखा था और पेमेंट 2000 रु. मैं भंडारा कार्यालय में काम कर रहा था। काम बढ़ते गए पर पेमेंट 2 हजार ही मिल रहा था। जैसे जैसे साल खत्म आ रहा था तब डर सता रहा था कि एक साल खत्म होने के बाद निकाल देंगे। तब मैंने और अर्जियां दी। नागपुर आफिस के बड़े ओहदे वाले लोग कह रहे थे कि करना हो तो करो वर्ना नोकरी छोड़ दो पगार बढ़ने वाला नहीं। बार-बार यहीं सुनने को मिल रहा था। इतने दिन काम करने पर ये लोग काम छोड़ने को कह रहे थे तो बुरा लगा।
तब मैं नागपुर के लोकमत की युनियन की संपर्क में आया। उन्होंने मुझे मेरे पास जो डाक्यूमेंट है वो लेकर युनियन कार्यालय में पहुंचने को कहां। मैं एक दिन नागपुर गया और सब कुछ हकीकत बयान किया। फिर यूनियन के लोग मुझे एडवोकेट एस.डी. ठाकुरजी के पास ले गए। जोकि हमारे यूनियन के तरफ से लड़ रहे थे। उन्होंने सारी बात सुन कर डाक्यूमेंट देखकर केस करने को कहा। तब मेरा एक साल का कॉन्ट्रॅक्ट खत्म होने में आखिरी महीना बचा था।
मैंने रेग्युलर एन्ड परमन्सी के लिए 6.6.2001 को इंडस्ट्रीयल कोर्ट नागपुर में यूएलपीए 375/2001 केस फाईल की। पहले जो नागपुर वाले लोग मेरे पेमेंट के बारे में बात करने को कतराते थे, झटक देते थे वो लोग फिर समझाने आ गए कि पेमेंट बढ़ा देंगे, ऐसा क्यों करते हो तब मन में बहुत गुस्सा था, तो मैंने उनकी बात नकार दी। तभी 23.6.2001 को मुझे दोपहर को एक लेटर मिला। उसमें लिखा था की आपकी सेवा 30 जून 2001 तक ही है। फिर क्या, बछावत/मनिसेणा आयोग की हिसाब से पेमेंट नहीं देना पड़े, इसीलिए उन्होंने मुझे निकाल दिया और 30 जून 2001 को मेरा कार्यालय का आखिरी दिन साबित हुआ।
मैंने न्यायालय में स्टे के लिए 375/2001 अर्जी लगाई। 8 अगस्त 2001 को नागपुर के इंडस्ट्रीयल कोर्ट से मुझे इंटेरिम रिलीफ मिला। फिर भी कंपनी वालों ने एक साल तक मुझे काम पर नहीं लिया। इसके बाद लोकमत कंपनी ने 8.8.2001 के इंडस्ट्रीयल कोर्ट के विरोध में हाई कोर्ट में रिटपिटीशन 3163/2001 दायर की। वहां मा.जज मोहिते ने कंपनी की अर्जी खारिज की। फिर मैंने लेबर कोर्ट में 15.10.2001 को क्रिमिनल केस नं. 151/2001 दायर की। फिर कोर्ट ने विजय दर्डा के नाम कोर्ट में हाजिर रहने के लिए 18.2.2002 को समन निकाला और मैंने 15.2.2002 को नागपुर कार्यालय में हमदस्त दिया।
उसके बाद मुझे एक दिन फोन आया की आपको कंपनी में 25.3.2002 को सुबह 11 बजे बुलाया है। मैं उस दिन सुबह 11 बजे गया। वहां मैं पर्सनल अधिकारी खापर्डे को मिला। उन्होंने मुझे कहां की आपको हम आज से प्रोबेशनपर अकोला (महाराष्ट्र) यहां नौकरी के लिए भेज रहे है। आप पिछला सब कुछ भू्ल कर अच्छे से नौकरी करो। आपको 2000 रु. मिलेंगे। मैंने उनकी बात को नकार दिया।
कंपनी ने 27.3.2002 को लेटर भेजा की आपने यूएलपी 375/2001 जो इंडस्ट्रीयल में दाखिल किया वह 8 अगस्त 2001 को पास हुआ। आपको 1 अप्रैल 2002 से धुले (महाराष्ट्र) जाने का आदेश दिया जा रहा है। ट्रान्सफर के लिए कंपनी ने कोर्ट से परमीशन मांगी थी वो कोर्ट ने खारिज की और मुझे भंडारा में काम पर लेने का आदेश दिया ।
तब कंपनी ने मुझे 3 सितंबर 2002 के लेटर के तहत भंडारा में इंटरिम एंड टेंपररी अरेंजमेंट के तहत काम करने को कहां। बतौर ऑपरेटर की पोस्ट पर और मैं 7 सितंबर 2002 से फिर से भंडारा कार्यालय में काम करने लगा। 2000 रुपये प्रतिमाह और मेरा पीएफ अकाउंट में 240 रु. जमा होते थे। यानि कुल 1760 रु. महिना मिलता था। इस बीच जब से कंपनी ने मुझे खाली किया था तब से 16.12.2002 को 26,492 रु. का चेक दिया। मैंने मनिसेणा, बछावत आयोग की हिसाब से पेमेंट देने के लिए केस डाली यह पैसे कम है कहकर अंडर प्रोटेस्ट ले लिए और उसका लेटर भी कंपनी को दिया।
मेरे परिवार में हम तीन भाई और पिताजी थे। बड़े भाई की शादी हुई थी और उनको एक बच्चा था। परिवार सब साथ में ही रहता था। तब मेरी शादी 5 मई 2003 को हुई और अब मुझे एक बेटा और एक बेटी है। परिवार बढ़ता गया और जिम्मेदारी भी, पर पेमेंट 2000 रु. केस धीरे धीरे चल रहा था। फिर इंडस्ट्रीयल कोर्ट और लेबर कोर्ट नागपुर से भंडारा शिफ्ट हो गया और मेरी केस भंडारा आ गई ।
टेलिप्रिंटर ऑपरेटर का काम निरंतर 1.10.1996 से 31.5.1997 करने से 240 दिन पूरे होते ही मैं इस तारीख से रेग्युलर एंड परमानेंट टेलिप्रिंटर ऑपरेटर हुआ। हमारे कंपनी को इंडस्ट्रीयल एम्प्लायमेंट स्टैंडिंग ऑर्डर के तहत मॉडल स्टैंडिंग ऑर्डर लगते है। इसलिए परमानेंट टेलिप्रिंटर ऑपरेटर के सभी फायदे मिलने का मुझे पूरा हक है। 1.1.1998 से अखबार इंडस्ट्रीज को बछावत आयोग लागू है। इसके तहत टेलिप्रिंटर ऑपरेटर एडमिनिस्ट्रेटिव स्टाफ के 4 ग्रेड में आता हैं।
बाद में १.४.१९९८ से कम्प्युटर से काम होने की वजह से मै जो काम करता हूं वह प्लानर की पोस्ट का है. इसीलिए मनिसाना अवार्ड के हिसाब से पेमेंट की मांग की ।प्लानर जर्नालिस्ट श्रेणी में ग्रेड ३ - ए में आता है. वर्कींग जर्नालिस्ट एक्ट के तहत जर्नालिस्ट श्रेणी में काम का समय सप्ताह में ३६ घंटे है पर मुझे हर सप्ताह ४८ घंटे से उपर काम करवा लेते थे. इसका डबल रेट से ओवरटाईम भी मांगा क्योकि फॅक्टरी एक्ट भी लागू है.
यु.एफ.पी. क्र. ८५/२००१ यह मामला औद्योगिक न्यायालय भंडारा (महाराष्ट्र) में था और वह १८.१०.२०११ को (इंडस्ट्रीयल कोर्ट के जज श्री वीं.पी. कारेकर) थे ।मै जिस अखबार में काम करता हूं उसको वर्कींग जर्नालिस्ट अँड अदर न्यूज पेपर एम्प्लॉई कन्डीशन आॅफ सर्विस एन्ड अदर मिसलेनिअस प्रोविजन एक्ट १९५५ के प्रावधान लागू है।इस के तहत शासन ने वेज बोर्ड के तहत बछावत, मणिसाना और मजिठिया लागू किया है. इसका फायदा मिलना मेरा हक है।
मुझे ३१.५.१९९७ से परमनंट टेलिप्रिंटर
१.४.१९९८ से रेग्यलर एन्ड परमनंट प्लानर
१.४.१९९८ से हर सप्ताह १२ घंटे जादा काम का ओवरटाईम डबल रेट से यह आदेश दिया.
इस आदेश को कंपनी ने हाई कोर्ट में रिट याचिका क्र. ६१०७/२०११ को चॅलेंज किया. इस याचिका को सिंगल बेंच के मा.वासंती नाईक ने दि. ९.२.२०१२ खारीज किया और मुझे १० लाख रुपये कंपनी को हाय कोर्ट में जमा करने के आदेश दिए और फरवरी २०१२ से दस हजार रुपये प्रतीमाह देने का आदेश दिया रिट याचिका प्रलंबित रहने तक। सिंगल बेंच का ९.२.२०१२ के आदेश को कंपनी ने डिविजन बेंच एलपीए क्र. १६२/२०१२ दायर किया. मा. डिविजन बेंच के मा.एस.सी. धर्माधिकारी और मा.एम.टी. जोशी सर ने दि. ६ जुलाई २०१२ को दि. ९.२.२०१२ का आदेश बराबर है कहकर खारीज किया।
इसके बाद कंपनी ने दि. ६ जुलाई २०१२ का हायकोर्ट के आदेश को मा. सुप्रिम कोर्ट में २४४७१/२०१२ को चैलेन्ज किया. वहां मा.न्यायमूर्ती टी.एस. ठाकुर और मा.न्यायमूर्ती फकीर महोम्मद इब्राहीम खलीफुल्ला सर ने ७.९.२०१२ को कंपनी को आदेश दिया की हायकोर्ट में जो १० लाख भरे वहां से अभी ५ लाख रु. तथा १०,००० रु. प्रती माह देने का आदेश दिया और सीविएल अपील क्र. ७६५४/२०१४ को आदेश पास कर मा. हायकोर्ट को रिट याचिका क्र. ६१०७/२०११ को छह महिने में परिणाम निकालने के निर्देश दिए।
मा. सर्वोच्च न्यायालय का आदेश होने के बाद भी कंपनी ने जान बुझकर फरवरी २०१२ से १०,००० रु. महिना न देते हुए अगस्त २०१२ तक २००० रु. ही दिए. उसके ५६,००० रु. वो बाकी थे. इस के तहत मा. उच्च न्यायालय के मा.जज जेड ए. हक सर ने २५.६.२०१५ को दोनो पक्षो को सुनकर २४.७.२०१५ को आदेश जारी किया कि १०,००० रु. कॉस्ट लगाकर मामले को खारीज किया और कहा मा.औद्योगिक न्यायालय भंडारा का आदेश बराबर है इस पर मुहर लगा दी और मा.उच्च न्यायालय में जो रकम है उसको निकालने की अनुमती दी।
फिर कंपनी ने २४.७.२०१५ के मा.उच्च न्यायालय के सिंगल बेंच के आदेश के खिलाफ मा.सुप्रिम कोर्ट में एलएफपी क्र. २८७५५/२०१५ दायर की. यह याचिका मा.न्यायमूर्ती फकीर महोम्मद इब्राहीम खलीफुल्ला सर और मा. जस्टीस उदय उमेश ललीत सर ने नोटीस न निकालते हुए १२.१०.२०१५ को खारीज की ।इस बीच नया वेज बोर्ड जो मजीठीया अवार्ड है वह मुझे ११.११.२०११ से लागू है. उसके तहत मुझे भी यह अवार्ड के फायदे और वेतन दि.११.११.२०११ से लागू है. यह आदेश दिया.
फिर कंपनी ने मुझे ६.१.२०१६ को ७,७४,९३६.४९ और १०,००० रु. कॉस्ट इतनी रकम दी. मैने यह रकम अंडर प्रोटेस्ट स्वीकार ली। इसके तहत मजिठिया और ओवर टाईम मिलाकर मैने कुल ७० लाख रुपये का क्लेम बनाया. कंपनी ने अब तक जो वेतन दिया वह २० लाख मायनस कर ५० लाख रु. मांगे और मजीठिया अनुसार वेतन ७०००० और डबल ओवरटाईम पकडकर कुल ९५,००० महिना होता था. नवंबर २०१५ तक यह हिसाब कोर्ट में जोडा है. परंतु कंपनी मुझे सिर्फ ४० हजार रु. महिना दे रही है और ८ घंटे काम और ६.६६.९२७.०० इन्कम टॅक्स काटा है। कौन से साल कितना इन्कम टॅक्स काटा यह कहां, बार बार मैने कंपनी को लेटर लिखकर लेकिन कोई फायदा नही हो रहा है।
पीएफ अकाऊंट में भी २००१ से ही जॉइनिंग डेट दिखा रही है और वही से कंपनी ने रकम डाली है. साल का इन्क्रीमेंट भी नही दे रहे न बेसीक में बढोतरी. इसके बारे में भी कंपनी को लेटर लिखा है. परंतु कोई जवाब नही दे रही. और फिर कामगार न्यायालय में आयडीए क्र. ५८/२०१५ दायर की. जिसमें मजीठिया के तहत वेतन, बकाया करीब ५० लाख रुपये और उनपर ब्याज, पीएफ अकाऊंट जबसे कंपनी जॉईन की उसकी एन्ट्री और फायदे तथा ६ घंटे के लिए बोला है.
ठाकुर सर ने कहां है की लोकमत को पानी पिलाकर ही रहेंगे. बस उनपर पुरा भरोसा है. अब तक उन्होंने ही मुझे संभाला है. जब केस डालनी थी तब घर वालों ने मुझे कहां था आप जो करना उचित समझो वह करो. हम आपका पुरा साथ देंगे. सुप्रिम कोर्ट के आदेश के बाद पर्सनल मैनेजर घोडवैद्य और उनके साथी अली मेरे घर भंडारा मिलने आए थे और उन्होंने कहां की कब तक लडते रहोगे. तुम्हारे ठाकुर साब अब कितने दिन जिएंगे, बुढे हो गए है वो. मैने तब कहां कि आपकी की क्या गारंटी है कि आप ज्यादा जियोगे. उन्होंने बहुत समझाया कि केस फायनल करो और ३० हजार रु. पेमेंट लो और पिछला २० लाख भी देते हैं । फिर मैने कहां कि अब तक जो परेशानी हुई है उसका हिसाब? तो कह रहे थे कि माँ बाप से कोई लड़ता है क्या? मैने कहां की कौनसे माँ बाप इतनी घटीया हरकत करते हैं।
केस चलते बहुत बार मन हुआ की कुछ कर लेते है. पर मेरी वाईफ ने कहां कि जितना सोचोगे उतना लक्ष्य दूर जाएगा. पैसो के बारे में मत सोचो पैसा अपने आप पास आएगा और सोचेगो तो दूर जाएगा. बस उसी की बात को आज तक दिमाग में लिए जी रहे है. पर कुछ भी हो जाए समझौता कंपनी से नहीं करेंगे. बस हमारे युनीयन के साथी जो बाहर है वो अंदर आ जाए. ठाकुर सर, युनीयन के साथी और आप जैसे वरिष्ठ साथीयों का स्नेह है और भगवान का आशीर्वाद, बस और क्या चाहिए. जो है उनसे निपट लेंगे, आखरी दम तक.
महेश मनोहरराव साकुरे
सहकार नगर, रविंद्रनाथ टागौर वॉर्ड
सहकार नगर, भंडारा.
लेखक शशिकान्त सिंह से संपर्क 9322411335 के जरिए किया जा सकता है.
18.10.16
लोकमत प्रबंधन को पटकनी देने वाले महेश साकुरे के संघर्ष की कहानी
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