((डा. सुभाष भदौरिया जाने क्यों मुझे अच्छे लगते हैं। संभवतः वो एकमात्र ब्लागर हैं जो अपनी बात लपेट-लूपेट के नहीं बल्कि विशुद्ध सरल और सहज तरीके से कहते हैं, जिसे आम आदमी भी तुरंत समझ जाए। उन बौद्धिकों की तरह नहीं कि पढ़ते पढ़ते बौद्धिक कब्जियत हो जाए या अंत में लगा कि हां, बढ़िया जंजाल बुना था। डाक्टर साहब की बातें सीधे दिल तक पहुंचती हैं, उनमें दिमाग नहीं लगाना पड़ता। जैसे गांधी जी जो लिखते और कहते थे वो कोई निरक्षर भी समझ जाता था। बिलकुल सहज, सरल और संक्षिप्त। डाक्टर साहब ने लोक जीवन में रची बसी गालियों को अपने लेखन का जिस तरह हिस्सा बनाया है, भड़ास उसका कायल है और हम हमेशा से कहते रहे हैं कि डा. सुभाष भदौरिया सबसे बड़े भड़ासी हैं। जिस दिन भड़ास पुरस्कार दिया जाएगा, उसका सबसे पहले दावेदार डाक्टर साहेब ही होंगे। खैर, यहां जिस संदर्भ में बात कर रहा हूं वह है ढंढोरची की हकीकत पोस्ट पर डाक्टर साहब ने जो बिंदास टिप्पणी दी है, उससे वाकई मजा आ गया। लीजिए पढ़िए और अपनी प्रतिक्रिया दीजिए....जय भड़ास...यशवंत))
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Dr.Subhash Bhadauria has left a new comment on your post "ढंढोरची की हकीकत":
यार यशवंतजी एक जमाना हो गया, न हमने किसी को गाली दी, न किसी ने हमें दी, पर इस डिंडोरची ने वही मिसाल कर दी गांड में गू नहीं नौ सौ सुअर नौत दिये. यार हम तो आप सब में शामिल सुअर राज हैं.गू क्या गांड भी खा जायेंगे साले की, तब पता पता चलेगा. नेट पर बेनामी छिनरे कई हैं, अदब साहित्य से इन्हें कोई लेना देना नहीं हैं, सबसे बड़ा सवाल इनकी नस्ल का है, न इधर के न उधर के.
भाई हम सीधा कहते हैं, भड़ासी पहुँचे हुए संत है, शिगरेट शराब जुआ और तमाम फैले के बावजूद उन पर भरोसा किया जा सकता है. इन तिलकधारियों का भरोसा नहीं किया जा सकता.कुल्हड़ी में गुड़ फोड़ते हैं चुपके चुपके.इन का नाम लेकर इन्हें क्यों महान बना रहे हैं आप. देखो हम ने कैसे इस कमजर्फ को अमर कर दिया.
जय भड़ास.
डा. सुभाष भदौरिया
28.12.07
नेट पर बेनामी छिनरे कई हैं - डा. सुभाष भदौरिया
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1 comment:
डाक्टर साहेब की बात हमसे भी पूछें बहुत पहुंचे हुए इंसान हैं. जो कहते हैं ताल ठोक के कहते हैं और जबान ऐसी की गालियाँ दें तो भी शीरीं लगें. हमने इनके पास बहुत चरने की कोशिश की लेकिन भाई ने घास ही ना डाली. ग़ज़ल के ऐसे शिल्पी हैं की अपने हुनर से आम से दिखने वाले मकबरे को ताजमहल बनादें. इनके शान में जब कोई महफिल सजानी हो तो हमें भी याद कर लेना मंजीरा बजाने आ जायेंगे, सच्ची कहते हैं.
नीरज
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