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6.5.16

जय मजदूर दिवस... करते रहेंगे बड़े पत्रकारों को लाठी


किसी ने मजदूर दिवस पर उक्त कार्ड पोस्ट किया। इस कार्ड की तस्वीर शायद मेहनतकश मजदूरों की मेहनत को दर्शा रही है। पर मेरी निगाहों ने इस तस्वीर को दूसरे नजरिये से देखा। पत्रकारिता के क्षेत्र में मठाधीशी / बेईमानी / भ्रष्टाचार / दोगलापना / पत्रकारों के अधिकारों का हनन / विघटन / टकराव / बिखराव और दलाली वाले कथित बड़े पत्रकारों को लाठी कर-कर के पसीना बहाने वाले मेरे जैसे मेहनतकश पत्रकारो की ये तस्वीर लगी मुझे।


वाकई, असत्य के खिलाफ लाठी करना बहुत कठिन और मेहनत का काम है। मैंने इस शहर मे ही तकरीबन बीस साल तक करीब आठ जाने-पहचाने मीडिया संस्थानों मे  मुसलसल बतौर श्रमजीवी / फुलटाइमर नौकरी की। शुरु के पाँच साल तक पैदल रिपोर्टिग की। इसके बाद खटारा दोपहिया गाड़ी से ज्यादा कुछ नसीब नहीं हुआ। बहुत मेहनत की, बहुत कष्ट उठाये।

लेकिन इतनी मेहनत नही लगी जितनी आजकल लाठी करने मे लगती है। दैनिक भास्कर के विजय उपाध्याय भाई ने सवाल उठाया कि पत्रकार आखिर मजदूर कैसे हो सकता है।
हो सकता है विजय भाई। जब कलम की ताकत का कद और आकार लाठी की शक्ल इख्तियार कर ले तो  ऐसे कलम की लाठी चलाते वक्त मजदूर जैसे फौलादी जिस्म और फौलादी जिगर की जरुरत पड़ती है।

मजदूर दिवस की मुबारकबाद  
नवेद शिकोह
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NAVEDSHIKOH84@GMAIL.COM

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