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31.7.15

"इश्क का रंग सफेद'' के लीड रोल में नज़र आएंगी ईशा


"इश्क का रंग सफेद'' के लीड रोल में नज़र आएंगी ईशा 


     इंतज़ार की घड़िया खत्म होने वाली हैं, हमारी ईशा 10 अगस्त से कलर्स के स्क्रीन पर छाने के लिए पूरी तरह तैयार है। इसके प्रसारण का समय शाम के 6 बज कर 30 मिनट रखा गया है। "इश्क का रंग सफेद'' अमर प्रेम की एक अनूठी दास्तान है। इसमें ईशा एक विधवा का मुश्किल किरदार निभा रही है। पूरी कहानी ईशा के इर्द-गिर्द घूमती है। सचमुच स्टोरी लाइन बहुत पावरफुल है। इंडस्ट्री के लोग ईशा की एक्टिंग की बहुत तारीफ कर रहे है। मैंने कुछ रशेज देखे हैं। क्या गज़ब की नेचुरल एक्टिंग की है ईशा ने। आजकल पूरे भारत में इस सीरियल और ईशा के रोल की चर्चा है। रोज किसी न किसी पेपर में इनका इंटरव्यू छपता है। 
   

    2014 में मिस एमपी जीत चुकीं ईशा की मां रेखा सिंह ईशा फाउंडेशन प्ले स्कूल चलाती हैं और पापा पंकज सिंह चौहान बिल्डर और कोलोनाइज़र हैं। ईशा और उनका पूरा परिवार स्वस्थ और सुंदर बने रहने के लिए फ्लेक्स ऑयल का सेवन करता है। ईशा को अलसी मैया का पूरा आशीर्वाद मिला है और वह जल्दी ही फिल्म इंडस्ट्री की माधुरी दीक्षित बनने वाली है। रेखा जी ने बताया कि ईशा के लिए धानी का सीरियस रोल निभाना थोड़ा मुश्किल था, क्योंकि वो अभी सिर्फ 17 साल की हैं और 11वीं की स्टूडेंट हैं। इस रोल को पाने के लिए ईशा ने काफी मेहनत की है। इस रोल के लिए पहला ऑडिशन जनवरी में हुआ था। इसके बाद ऑडिशन के पांच और राउंड हुए। ऑडिशन में ईशा का अभिनय कमाल का था। पूरी टीम ईशा की एक्टिंग की कायल हो गई। उसके बाद ईशा को इस रोल के लिए फाइनल किया गया।

     

ईशा जो जॉन अब्राहम प्रोडक्शन की फिल्म "17 को शादी है' में सपोर्टिंग किरदार निभा चुकी हैं। इस फिल्म में भी ईशा के अभिनय की बहुत तारीफ हुई। उनके छोटे भाई रुद्राक्ष ने भी फिल्म "17 को शादी है'' में काम किया है और फिलहाल भोपाल में ही एक्टिंग सीख रहे हैं। यह फिल्म कुछ ही महीनों में रिलीज़ होने वाली है। 



एफआईआर दर्ज करवाकर पछता रहे हैं सुरेश बाबू

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों, सही पहचाना आपने! मैंने बताया तो था आपको 13 मार्च,2015 को उनके बारे में। हमने खबर लगाई तो थी। शीर्षक था-कानून नहीं थानेदारों की मर्जी से चलते हैं बिहार के थाने
ये वही सुरेश बाबू हैं मेरे मित्र रंजन के ससुर,पिता का नाम-स्व. रामदेव सिंह,साकिन-गुरमिया,थाना-सदर थाना,हाजीपुर,जिला-वैशाली। बेचारे के साथ इसी साल के 10 मार्च को सदर थाना परिसर से दक्षिण सटे एक्सिस बैंक के एटीएम के साथ धोखा हुआ और किसी लफंगे ने उनकी मदद करने के बहाने उनके खाते से 16000 रुपये निकाल लिए। बेचारे भागे-भागे हमारे पास आए। हमने लगे हाथों 12 मार्च,2015 को सदर थाने में एफआईआर के लिए अर्जी डाल दी ताकि पुलिस से अपराधी का पता लगाकर बुजुर्ग सुरेश बाबू को न्याय मिल सके।
मित्रों,उसके बाद कई दिनों तक रोज सुबह-शाम सुरेश बाबू का फोन मेरे पास आता कि एफआईआर दर्ज हुआ कि नहीं। फिर मैं इंस्पेक्टर को फोन करता। जब थाने के चक्कर लगाते दो दिन बीत गए तब मैंने एसपी को फोन किया। एसपी साहब से जब भी बात होती लगता जैसे वे सोकर उठे हों। इस प्रकार किसी तरह से दिनांक 17 मार्च को एफआईआर दर्ज हुआ। थाने में मौजूद एक फरियादी से पता चला कि बिना हजार-500 रुपये लिए एफआईआर दर्ज ही नहीं किया जाता।
मित्रों,हमने तुरंत सुरेश बाबू को सूचित किया और कहा कि कल जाकर एफआईआर की कॉपी ले जाईए। मगर यह क्या जब वे थाने में एफआईआर की कॉपी लेने गये तो मुंशी ने उनसे 500 रुपये की रिश्वत की मांग कर दी। मैंने उनको मुंशी से बात करवाने को कहा तो मुंशी फोन पर ही नहीं आया। फिर मैंने उनसे कहा कि आराम से घर जाईए क्योंकि यह पुलिस कुछ नहीं करनेवाली है क्योंकि हम उसे एक चवन्नी की भी रिश्वत नहीं देंगे और वे बिना पैसे लिए कुछ करेंगे नहीं। सुरेश बाबू बेचारे दिल पर पत्थर रखकर अपने घर चले गए और ठगे गए 16000 रुपयों से संतोष कर लिया।
मित्रों,फिर परसों अचानक सुरेश बाबू का फोन आया कि सदर थाने से उनको फोन गया था। वे काफी घबराए हुए थे। कहा कि पुलिस ने पैसा तो ऊपर किया नहीं फिर तंग क्यों कर रही है? मैंने कल उनको सदर थाने में आने को कहा। कल जब हम सदर थाने पहुँचे तो इंस्पेक्टर साहब अपने चेंबर में नहीं थे। मैंने अन्य पुलिसवालों से फोन के बारे में पूछा तो उन्होंने हमलोगों पर ही इल्जाम लगाया कि हम एफआईआर करके सो गए। हमने सीधे-सीधे कहा कि मुंशी ने एफआईआर की कॉपी देने के पैसे मांगे और घूस देना हमारी फितरत में नहीं है इसलिए हम निराश होकर थाने नहीं आए।
मित्रों,उनलोगों की सलाह पर जब हमने उस नंबर पर पलटकर फोन किया जिससे हमें फोन गया था तो पता चला कि श्रीमान् थाने के पीछे केस डायरी के पन्ने काले कर रहे हैं। पिछवाड़े में जाने पर पता चला कि उनका नाम लक्ष्मण यादव है और वे गया जिले के रहनेवाले हैं। वे हमारे केस के आईओ यानि अनुसंधान अधिकारी हैं। बेचारे काफी परेशान दिखे। अरे,हमारे लिए नहीं बल्कि खुद के लिए। उनको अपनी नौकरी बचाने की फिक्र थी। उन्होंने हमसे दरख्वास्त की कि हम उनको सुरेश बाबू के चार परिचितों के नाम लिखवा दें जिनका नाम वे गवाह के रूप में केस डायरी में लिखेंगे और केस को समाप्त करने के लिए कोर्ट में अर्जी दे देंगे। सुरेश बाबू से पूछा तो बोले कि पैसा तो अब मिलने से रहा गवाह के नाम लिखवा देते हैं झंझट खत्म हो जाएगा।
मित्रों,इस तरह सुरेश बाबू का मुकदमा हाजीपुर की पुलिस ने खल्लास कर दिया। हमने कहा लक्ष्मण बाबू कम-से-कम अब तो हमें एफआईआर की कॉपी दे दीजिए। बेचारे ने मना भी नहीं किया वो भी बिना रिश्वत लिए। हमने पूछा कि इस केस में आपको क्या करना चाहिए था आप जानते हैं क्या तो वे बोले नहीं। फिर हमने अपनी तरफ से पहल करके बताया कि आपको एटीएम का सीसीटीवी फुटेज देखना चाहिए था और अपराधी को पकड़ना चाहिए था क्योंकि जबतक वो अपराधी बाहर रहेगा थाना क्षेत्र में इस तरह की ठगी की घटनाएँ होती ही रहेंगी। बेचारे लक्ष्मण यादव कुछ बोले नहीं सिर्फ सुनते रहे और हम भी आहिस्ता-आहिस्ता चलते हुए थाने से बाहर आ गए। वैसे सुरेश बाबू को एफआईआर दर्ज करवाने का पछतावा तो है लेकिन इस घटना से उन्होंने एक सीख भी ली है। और अब बेचारे ने एटीएम कार्ड से पैसा निकालना ही छोड़ दिया है।

हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित।

कलाम बनाम याकूब

इस देश का मीडिया कितना  अपरिपक्व और गैर जिम्मेदार हैं कि उसने पिछले दो दिनों में जितना मुंबई बम ब्लास्ट के गुनहगार याकूब मैनन की फांसी और उससे जुडी  खबर  को दिखाया उतना देश के पूर्व राष्ट्र पति और देश के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक मिसाइल मैन ए पी जे अब्दुल कलाम की मौत और उनसे जुडी  खबर को भी  नहीं दिखाया। मीडिया ने तो जैसे रातो रात सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा पाये २५७ लोगो की हत्या के  गुनाहगार याकूब मेनन को हीरो की तरह पेश किया,लगातार याकूब मेनन का चित्र टी वी चैनेलो पर तैरता रहा , जब कि इस देश के सबसे बड़े हीरो ए पी जे  अब्दुल कलाम की मौत और उनसे जुडी हुई खबर को दूसरे नंबर की खबर के रूप में  दिखाया गया । 

30.7.15

याकूब मेमन की फांसी पर बहुत से राजनेता रो रहे हैं।  हैरानी की बात यह है कि  ये लोग कैसे आतंकवाद के खिलाफ लड़ पाएंगे । इन लोगों को कौन समझाये कि  यदि हमारी न्याय व्यवस्था उस तरह चुस्त दुरस्त होती जिस प्रकार से याकूब मेमन को फांसी देने से पहले राजनाथ सिंह जी की सक्रियता और उसके बाद रात में कोर्ट का चलना और तमाम उन औपचारिकताओं को पूरा करना ताकि हमारे देश में याकूब का कोई  समर्थक कल को कोई अंगुली न उठा सकें , आदि तरीकों में यह सक्रियता देखने में आई उस प्रकार की न्याय व्यवस्था होती तो शायद हाफिज सईद कभी का फांसी पा चुका  होता और फिर उसे छुड़ाने के लिए कोई कंधार काण्ड न होता और जब यह हाफिज सईद को हमें न छोड़ना पड़ता तो २६/११ न होता।  लेकिन इस वक्त ऐसे तमाम लोग कोई एक प्रतिक्रिया उन लोगों के लिए नहीं दे रहे हैं जो उन धमाकों में मारे गए थे। जाके पैर न परी  बिवाई वो क्या जाने पीर पराई । खैर , हैरानी है कि  ये लोग न्याय व्यवस्था पर भी सवाल उठा रहे हैं । देशद्रोह पर न कोई माफ़ी , न विलम्ब । शास्त्र कहते हैं - सतयुग तब शुरू होता है जब न्याय व्यवस्था दंड का आश्रय लेती है । इसलिए दंड में कोई देर नहीं ।  

आयुर्वेद विश्व परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने डॉ राजा राम त्रिपाठी

कोण्डागांव । हिन्दोस्तान के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद की मंश के अनुरूप 1959 में आयुर्वेद को बढावा देने के लिये किया गया था। आयुर्वेद को विश्व स्तर पर स्थापित करने के लिये भारत के प्रथम राष्ट्रपति बाबू  राजेन्द्र प्रसाद का यह प्रयास तब से अब तक पू विश्व में अपनी अर्थपूर्ण महत्ता का निर्वहन करता रहा है । इस संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर बस्तर के कोण्डागांव जिले के एक औषधि कृषक डॉ राजाराम त्रिपाठी का चयन पू छग प्रदेश के लिये गर्व का विषय है । जिले के आयुर्वेद प्रेमियों ने इस नियुक्ति पर हर्षित हो कर कहा है कि यह प्रसन्नता की बात है कि आयुर्वेद विश्व परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष हमा जिले के निवासी है।

रंगकर्म और साधन सम्पन्नता

-   मंजुल भारद्वाज

रंगकर्म और साधन सम्पन्नता – बड़ी आकर्षक और दिल को छूने वाली बात है हर रंगकर्मी का ख्वाब होता है की उसके रंगकर्म के लिए सभी संसाधन मौजूद हों चाहे वो “राज्य व्यवस्था” उपलब्ध कराए या समाज व्यवस्था उपलब्ध  कराए...  बड़ी अच्छी बात है ..और दिल की बात है और दिल की बात हर व्यक्ति को पसंद आती है ... पर क्या रंगकर्म केवल लोक लुभावन दिल को छूने भर की कला है .. नहीं रंगकर्म दिल को छूते हुए दिमाग को झक झोरने और चिंतन प्रक्रिया को आगे बढ़ाने वाली , मानसिक रूढ़ियों को तोड़ने वाली कला है .. यानी इंसान को इंसान बनाये रखने वाली विधा है ..एक ऐसे “व्यक्ति और समाज” का निर्माण करने वाली विधा जो न्याय संगत और शोषण मुक्त हो, जो मानवीय मूल्यों , शांति, सौहार्द और समानता वाली व्यवस्था का निर्माण करे .

यूरोप में अगर कलाम जैसे किसी महापुरुष का निधन हुआ तो कतई एकतरफा महिमामंडन नहीं होता


सब लोग किसी न किसी उद्देश्य को लेकर तत्परमान है, चिन्तित है। हमारी जाति, हमारा धर्म, ये वो से लेकर पंथ, वाद, विवाद तक के मामले चलायमान है सोशल मीडिया पर। सब परेशान है। दूसरे को लेकर तीसरे और चाौथे को लेकर पहले वाले सब परेशान है कि वही सही हैं और बाकी सब गलत। सब अपनी सोच, विचार और अपने मंतव्य को लेकर एक तरह से गतिमान है कि उनका सोचना ही सही है बाकी सब मुर्ख है। अभी मिसाईल मैन का निधन हुआ है और इसपर सेकुलर से लेकर बहुतायत लोगों के पोस्ट और कमेन्ट आये हैं। किसी भी समाज में कटेगेरिशन का बहुत महत्व है। जितना ही गहन विचार किसी विषय विशेष पर होगा उतने ही अधिक उसके विभाग होंगे। आज हम वैश्विक वैचारिक जनसंचार के राहों में हैं। सोशाल मीडिया ने विश्व को वह प्लेटफार्म दिया है जिसपर अनेक समाज, जाति, पाति और पंथ आदि सहित बहुतायत लोग अपने विचार और उसपर प्रतिपुष्टिीकरण कर एकतरह मनःस्थिति के प्रति बदलाव की क्रान्ति कर सकते हैं। हमारा देश, हमारा समाज हमेशा ही से एक तरह से रूढ़ीवादिता का पोषक रहा है।

नेपाल में गायः पवित्र जीव से राष्ट्रीय पशु तक


विष्णु शर्मा
नेपाल के नए संविधान में गाय को राष्ट्रीय पशु स्वीकार किया गया है। अब एक गणतंत्र’, ‘धर्मनिरपेक्ष, ‘समाजवाद उन्मुख’, ‘बहुजातीय’, ‘बहुभाषिक’, ‘बहुधार्मिक’, ‘बहुसांस्कृतिकतथा भौगोलिक विविधायुक्तदेश की मां गाय होगी जो दूध देगी और पंचगव्य से रोगों का निदान होगा। अब नेपाली जनता बिना किसी धार्मिक दवाब के कानूनी तौर पर गाय पर गर्व कर सकेगी। इसके साथ गौ हत्या के आरोपियों को मौत की सजा देने की ''सेकुलर'' मांग का विकल्प खुला रहेगा । अभी गौ हत्या की अधिकतम सजा 12 वर्ष है। एक अध्ययन के अनुसार गौ हत्या के मामले में सारे आरोपी जनजाति, पिछड़ी मानी जाने वाली हिन्दू जातियां या अल्पसंख्यक समुदाय से हैं।

अब्दुल कलामः साधु वैज्ञानिक

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

इससे अच्छा महाप्रयाण क्या हो सकता है? डॉ. अब्दुल कलाम को वह सौभाग्य मिला, जो आज तक भारत के किसी भी राष्ट्रपति को नहीं मिला। वे अंतिम क्षण तक कार्यरत रहे। राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद भी वे जितने सक्रिय रहे, कोई और राष्ट्रपति नहीं रहा। वे राष्ट्रपति नहीं बनते तो भी वे बड़े आदमी थे। वे भारत के ऐसे पहले राष्ट्रपति थे, जो राजनीति से किसी भी तरह जुड़े नहीं थे। वैसे कोई व्यक्ति अक्सर राष्ट्रपति तो कई निजी विशेषताओं के कारण बनता है लेकिन राष्ट्रपति बनने के लिए अनेक राजनीतिक परिस्थितियां ही जिम्मेदार होती हैं। अब्दुल कलाम शुद्ध अपने गुणों के कारण राष्ट्रपति बने। मिसाइलमेन की तौर पर विख्यात होकर वे भारत रत्न तो बन ही चुके थे। उनके निधन पर सारे देश में जैसा शोक का माहौल बना है, वही बताता है कि वे कितने लोकप्रिय थे।

एन जी टी का आदेश कंपनियों के हित में, स्थानीय वाशिंदे होंगे वंचित

हिमालय नीति अभियान
गाँव खुंदन, डाक बंजार, जिला कुल्लू , हिमाचल प्रदेश।

Note on NGT order on Manali Rohtang Tourism  to  Press for publication and public debate

दिनांक: 12-7-2015

नेशनल ग्रीन ट्रिवूनल (एनजीटी) के 6 जुलाई 2015 के आदेशानुसार अब घोड़ों, वर्फ के स्कूटर, ATV, पेराग्लाइडिंग इत्यादि के चलाने पर भी रोक लगा दी है। इस से पहले मनाली रोहतांग सड़क पर दस बर्ष पुराने व डीजल वाहनों के चलाने पर पाँच मई से रोक लगा दी गई  थी तथा इस सड़क पर दिन में केवल छ: सौ पेट्रोल व चार सौ डीजल के पर्यटन वाहन को चलाने की अनुमति दी थी। 2008 से चल रहे इस केस में कई अलग –अलग आदेशों में एन जी टी ने सोलंग नाला व इस सड़क के अन्य स्थलों पर से सभी खोखों  व ढ़ावों को हटाने तथा लघु पर्यटन से जुड़ी बहुत सी सेवाओं पर भी रोक का फर्मान जारी किया है।

मीटिंगें इन्तजार कर सकती हैं, पर किसान और खेती को कभी इंतजार न कराएं : कलाम

डॅा राजाराम त्रिपाठी


: कलाम को आखिरी सलाम, नहीं शाश्वत प्रणाम! :  "कलाम" कभी मरते नहीं, अमर हो जाते हैं। कलाम सकारात्मक प्रेरणा के अजस्र स्रोत थे। " पारस " थे  कलाम,  इन्होंने बस्तर के इस अकिंचन, अनाम से साधारण किसान को, एवं हमारे मां दन्तेश्वरी हर्बल समूह को छूकर " सोना " बना दिया, "खरा सोना"। आज बस्तर का यह समूह देश का सबसे बड़ा वनौषधि कृषक समूह ही नहीं, बल्कि अन्तराष्ट्रीय  प्रमाणीकरण संस्थानों द्वारा प्रमाणित, एवं विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के उत्पादों को गुणवत्ता के मामले में टक्कर देने वाले  " सर्टिफाइड आर्गेनिक हर्बल फूड सप्लीमेंटस " उत्पाद देश के  विदेश के बाजार में उतारने  वाले पहले भारतीय किसान समूह बन गये हैं।

SWASTHYA VIBAG DAWARA KI GAYI FARZI KARYAWAHI

Shriman Sampadak Mhodya ji,

Mera naam Sanjeev Sharma hai me Haryana Ke Yamunanagar Distt. Ke Chote se village Machhrouli  ka rahnewala hu. Shriman ji  dinak 19 April 2015 ko me apni wife ke sath Bilaspur me Satsang me gye the, meri wife ko thoda temperature tha to jab hum satsang se nikle to mene socha ki Dr. se medicine le lete hai, jiske liye hum Bilaspur me hi Arogya Clinic me Dr. Jagmal ke pass chle gye. Dr. Jagmal ne temperature check kiya to 99 digri tha. Uske bad Dr. Jagmal bole ki blood test karwalo hume blood test karwaliya jisme thoda tifid ki compliant thi. Dr. Jagmal ne tifid ke liye injection laga diya jiske turent bad meri wife ki condition bout khrab ho gayi. Jab iske bare me Dr. Jagmal ko batya to usne nazerandaj kar diya. Sirf 15 minute me meri wife ki death ho gyi hume chod kar dr. Jagmal bag gya.

बुडविग उपचार - कैंसर के इलाज में 90% सफलता

बुडविग उपचार - कैंसर के इलाज में 90% सफलता


        जयपुर में 14 सितंबर, 2014 को प्रेस क्लब में पिंक सिटी प्रेस क्लब और प्रानो फ्लेक्स ने मीडिया के परिवारों
के लिए कैंसर का फ्री कैम्प और वर्कशॉप आयोजित किया। इस कैम्प में देश के विख्यात बुडविग उपचार विशेषज्ञ डॉ. ओ.पी.वर्मा ने कैंसर के मरीजों को देखा और उन्हें उपचार के हर पहलू के बारे में विस्तार से बतलाया। मरीजों को अलसी का तेल, उपचार पुस्तिका और डी.वी.डी. भी दी गई। 
       1 बजे डॉ. वर्मा ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि यह महान उपचार कैंसर के हर रोगी तक पहुँचना चाहिए और सरकार को इस उपचार की जागरुकता और शोध के लिए कार्य करना चाहिए। यह उपचार जर्मनी की विश्व-विख्यात डॉ. जोहाना बुडविग ने विकसित किया था। अलसी के तेल और स्वस्थ आहार विहार पर आधारित इस उपचार से 90% प्रामाणिक सफलता मिलती है। उन्हें नोबल प्राइज के लिए 7 बार नोमिनेट किया गया। बुडविग ने पहली बार यह भी साबित किया था कि ट्रांसफैट से भरपूर वनस्पति और रिफाइंड तेल मनुष्य के सबसे बड़े दुष्मन हैं और इन्हें प्रतिबंधित कर ने की पुरजोर वकालत की थी। नियमित अलसी के तेल का सेवन कर के इस रोग से बचा जा सकता है।

मिसाइलमैन कैसे अहिंसा के प्रति आकर्षित हुए?


- ललित गर्ग-

मिसाइलमैन के नाम से प्रसिद्ध एवं बच्चों के चेहते डाॅ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम अब हमारे बीच नहीं रहे। एक सच्चा देशभक्त हमसे जुदा हो गया। देह से विदेह होने के क्षणों को भी इस महापुरुष ने कर्ममय रहते हुए बिताया। वे जन-जन के प्रेरणास्रोत थे, विजनरी थे। उन्होंने राष्ट्र को शक्तिशाली बनाने के लिये अस्त्र-शस्त्र की शक्ति को संगठित करने पर जोर दिया वही अमन एवं शांति के लिये अहिंसा को भी तेजस्वी बनाया। वे समय-समय पर अहिंसा को भी संगठित करने के लिये संतों एवं अध्यात्मपुरुषों से मिलते रहे। वे दुनिया को अणुबम से अणुव्रत ( अहिंसा ) की ओर ले जाने वाले विरल महामानव थे। अहिंसा की प्रेरणा उन्हें आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने दी थी और उससे वे इतने अधिक प्रभावित थे कि अपना हर जन्म दिन आचार्य महाप्रज्ञ की सन्निधि में ही मनाते थे। जहां भी आचार्य महाप्रज्ञ होते वे वहां पहुंचा जाते थे।

29.7.15

कैंसर - कारण और निवारण - प्रेस मीट कोटा

बुडविग प्रोटोकोल की जागरुकता 

पत्रकार वार्ता 
प्राक्कथन
कोटा 13 अप्रेल, 2015 

आदरणीय प्रिन्ट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के संपादकों और पत्रकारों, 

मैं डॉ. ओ.पी.वर्मा आपको नमन करता हूँ और इस पत्रकार वार्ता में आपका इस्तकबाल करता हूँ। आज हम कैंसर के महान उपचार बुडविग प्रोटोकोल पर चर्चा करेंगे जिसे मैं कैंसर के हर मरीज तक पहुँचाना चाहता हूँ। मैं आप सभी का तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ कि आप हमेशा मेरी बातों को बड़े प्रभावशाली तरीके से जन जन तक पहुँचाते रहे हैं।



हे मेरे देश के सजग प्रहरियों 
आज हमारे सामने एक बड़ी चुनौती आ गई है जिसका नाम है कैंसर। 
दोस्तों, 
कैंसर एक गंभीर रोग है, जिसे प्रायः लाइलाज माना जाता है। पिछले 200 वर्षों से अमेरिका और अन्य देश इस रोग पर शोध कर रहे हैं। अरबों रुपया इस रिसर्च में फूँका जा रहा है, अनेक संस्थाओं से डोनेशन लिया जाता है। लेकिन न तो कैंसर की मृत्यु दर कम हुई है और ना ही इसका इंसीडेंस कम हुआ है। हां, नई नई मशीने इजाद हुई हैं, डायग्नोसिस आसान हो गया है। हमारे पास काबिल डॉक्टर्स और स्टाफ की पूरी फौज है। हर साल दर्जनों कीमोथेरेपी दवाइयाँ बनाई जाती हैं। हर बार कहा जाता है कि बस हम कैंसर के क्यौर से बस थोड़ा ही सा दूर हैं। लेकिन यह थोड़ी सी दूरी हम 200 साल में भी तय नहीं कर पाए हैं। हम जहाँ तब थे वहीं आज खड़े हैं। ऐसा क्यों है, कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारी दिशा ही गलत हो। कहीं हमें एक यू टर्न लेने की जरूरत तो नहीं है। 
कैंसर का मूल कारण क्या है...
अगर किसी बीमारी का कारण मालूम हो जाए तो निवारण आसान हो जाता है। कैंसर के मुख्य कारण की खोज 1931 में डॉ. ओटो वारबर्ग ने कर ली थी। जिसके लिये उन्हें नोबल पुरस्कार से नवाजा गया। उन्होंने अपने प्रयोगों द्वारा सिद्ध किया कि यदि सामान्य कोशिकाओं को ऑक्सीजन की आपूर्ति 48 घन्टे के लिए 35 प्रतिशत कम कर दी जाए तो वह कैंसर कोशिकाओं में परिवर्तित हो जाती हैं। सामान्य कोशिकाएँ अपनी जरूरतों के लिए ऑक्सीजन उपस्थिति में ही ऊर्जा बनाती है जबकि कैंसर कोशिकायें ग्लूकोज को फर्मेंट करके ऊर्जा प्राप्त करती हैं। यदि कोशिकाओं को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती रहे तो कैंसर का अस्तित्व संभव ही नहीं है। आप नोबलप्राइज डॉट ऑर्ग पर जाइये, सारा सत्य आपके सामने आ जाएगा। 
वारबर्ग और कई अन्य शोधकर्ता मान रहे थे कि कोशिका में ऑक्सीजन को आकर्षित करने के लिए दो तत्व जरूरी होते हैं पहला सल्फरयुक्त प्रोटीन जो कि पनीर में पाया जाता है और दूसरा एक फैटी एसिड जिसे कोई पहचान नहीं पाया था। वारबर्ग भी इस रहस्यमय फैट को पहचानने में नाकामयाब रहे। 
हे कलम के शूरवीरों
कहानी में इस मोड़ पर डॉ. जोहाना बुडविग की एंट्री होती है। डॉ. जोहाना ने वारबर्ग के शोध को जारी रखा। 1949 में उन्होंने पेपरक्रोमेटोग्राफी तकनीक विकसित की जिससे सेल्यूलर रेस्पिरेशन के सारे राज उजागर हो गए। वह रहस्यमय फैट पहचान लिया गया जिसे दुनिया भर के अनुसंधानकर्ता ढूँड़ रहे थे। यह फैट था अल्फा लिनोलेनिक एसिड जो अलसी के तेल में भरपूर मात्रा में पाया जाता है। इस तकनीक द्वारा ही मालूम हुआ कि इस लिनोलेनिक एसिड में सक्रिय और ऊर्जावान इलेक्ट्रोन्स की अपार संपदा होती है। ये इलेक्ट्रोन ही कोशिका में ऑक्सीजन को खींचते हैं।
बुडविग ने मरीजों को अलसी का तेल तथा पनीर देना शुरू कर दिया। नतीजे चौंका देने वाले थे। बुडविग द्वारा कैंसर के इलाज में सफलता की पहली पताका लहराई जा चुकी थी। इसका हीमोग्लोबिन बढ़ चुका था। कैंसर के रोगी ऊर्जावान और स्वस्थ दिख रहे थे, उनकी गांठे छोटी हो गई थी। डॉ. जोहाना ने अलसी के तेल और पनीर के मिश्रण और स्वस्थ आहार विहार को मिला कर कैंसर के उपचार का तरीका विकसित किया था, जो बुडविग प्रोटोकोल के नाम से विख्यात हुआ। 
इस खोज से यह भी स्पष्ट हो चुका था कि वनस्पति और रिफाइंड तेल बनाते समय ये ऊर्जावान इलेक्ट्रोन्स नष्ट हो जाते हैं। बुडविग ने इन्हे स्यूडो फैट या लिक्विड प्लास्टिक की संज्ञा दी और इनको मानव का सबसे बड़ा शत्रु बताया और इन्हे प्रतिबंधित करने की पुरजोर वकालत की। 
हे आवाज के योद्धाओं
कैंसर के खिलाफ युद्ध का बिगुल बज चुका है। अपने तरकश से तीर निकालिए, उसे अलसी के तेल में डुबो कर धनुष पर अवस्थित कर लीजिए और प्रत्यंचा चढ़ा कर तैयार रहिए। हमें बुडविग उपचार को कैंसर के हर मरीज तक पहुँचाना है। तथा हमें भारत सरकार को यह संदेश पहुँचाना है कि इस उपचार को आम लोगों तक पहुँचाने के लिए समुचित कदम उठाए। इस उपचार द्वारा हम कैंसर के लाखों मरीजों को राहत और सुकून भरा जीवन दे सकते हैं और बहुत सारी विदेशी मुद्रा भी बचा सकते हैं। 
उनका नाम नोबल प्राइज के लिए सात बार नोमिनेट हुआ, परंतु उन्हें कीमो और रेडियोथेरेपी को भी अपने उपचार में शामिल करने को कहा गया। उन्होंने सशर्त दिये जाने वाले नोबल पुरस्कार को हर बार ठुकराया। 


कैंसर की डॉक्टर जोहाना बुडविग शोध किया पहचाना
अलसी तेल पनीर मिलाया किया अचंभित फल जो पाया
जन हित धर्म कर्म चमकाया सात बार नोबल ठुकराया
कर्क रोग से सब जग हारा अलसी खिला खिला उपचारा
 

Cancer - Cause And Cure .... Based on Quantum Physics developed by Dr. Johanna Budwig

Dr. O. P. Verma's book is highly recommended to every cancer patient and to anyone
interested in prevention of cancer. The book is a very thorough and easy readable introduction to Dr. Johanna Budwig's method, which starts with bringing oxygen to the cells and energy to the body. The book gives a lot of supplemental possibilities to fortify the method and bring it into a modern perspective. The language used is formed by Dr. O. P. Verma's clinical experience and his contact with Mr. Lothar Herneise, who was educated by Dr. Johanna Budwig, and he has found a balance between explanations and transparency. The book supports the 3E-Program developed by Lothar Herneise. Eat well (Raw Organic Diet) Eliminate toxins (Detoxification) Energy (Balance the flow of life force) It also contains: Eldi oil, Coffee Enema, Epsom bath, Sun Therapy, Energy Healing, Budwig-Compatible Natural Alternatives to Pain Medication, Remedy for Bone pain. Several methods to strengthen the spirit, as emotional problems must be overcome. Dr. Ryke Geerd Hamer's astonishing discovery of a emotional trauma - brain - cancer connection is nicely explained. A dozen important herbs are highlighted and their positive impact described. The chapter about Ligians gives flax seeds a unique position. Ligian health benefits extend beyond hormone-dependent breast cancer, osteoporosis, and prostate cancer to include brain function, cardiovascular disease, immune function, inflammation and reproduction. The chapters about omega 3, 6, 9 fatty acids and corresponding Series 1, 2, 3 prostaglandins contain vital information also expressed with unusual clarity.
This book is available at http://pothi.com/pothi/book/dr-o-p-verma-cancer-cause-and-cure

अच्छी चिकित्सा पद्धति कौनसी?

डाॅ. चंचलमल चोरडिया

अच्छे स्वास्थ्य हेतु निम्नतम आवश्यकताएँ-

                स्वस्थ जीवन जीने के लिए शरीर, मन और आत्मा, तीनों की स्वस्थता आवश्यक होती है। तीनों एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। तीनों के विकारों को दूर कर तथा सन्तुलित रख आपसी तालमेल द्वारा ही स्थायी स्वास्थ्य को प्राप्त किया जा सकता है। अतः स्वास्थ्य की चर्चा करते समय जहाँ एक-तरफ हमें यह समझना आवश्यक है कि शरीर, मन और आत्मा का सम्बन्ध क्या है? किसका कितना महत्त्व है? दूसरी तरफ जीवन की मूलभूत आवश्यक ऊर्जा स्रोतों का सम्यक् उपयोग करना होता है तथा दुरुपयोग अथवा अपव्यय रोकना पड़ता है।

.... लिपटे रहत भुजंग! (शोध-प्रबंध: देवेश शास्त्री)

‘‘जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग। चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।’’ रहीमदास के इस सूक्ति-परक दोहे को प्रयोग कर नीतीश कुमार चन्दन और विषधर भुजंग के प्रतीकात्मक पात्रों की खोज की जिज्ञासा जगाई, जब खुद (नीतीश कुमार) को चन्दन और सहयोगी (लालू यादव) को भुजंग के रूप में समीक्षा-पंडितों ने शिनाख्त की, जो सर्वथा यर्थार्थ यानी नीतीश कुमार का प्रकट मन्तव्य था। तो कथित बिहारी-गठजोड़ पर नकारात्मक प्रभाव को भांपते ही बिहारी सीएम नीतीश कुमार तत्काल बोले भुजंग लालू को नहीं बीजीपी को कहा है। यानी अपने ही मन्तव्य को वाणी में पलट देने वाली ‘‘उत्तम प्रकृति’’ का परिचय दे दिया। इस सन्दर्भ में रहीमदास के उक्त दोहे के भाष्य की आवश्यकता महसूस हुई, जो प्रस्तुत है।

तकनीकी राष्ट्रवाद एवं आर्थिक राष्ट्रनिष्ठा आज की आवश्यकता - प्रो. भगवती प्रसाद शर्मा

: पत्रकारिता विश्वविद्यालय के सत्रारम्भ कार्यक्रम में आज दूसरे दिन प्रख्यात विद्वानों के हुए व्याख्यान : भोपाल । विश्व में यदि हमें अग्रिम पंक्ति में स्थान पाना है तो ज्ञान आधारित क्षेत्रों में अपना योगदान बढ़ाना होगा। इसके लिए आवश्यक है कि हम अपने खुद के उत्पाद एवं ब्राण्ड विकसित करें। तकनीकी क्षेत्रों में भारतीय मानव संसाधन दुनिया में पहचाना जाता है परंतु इनके द्वारा तैयार किए गए तकनीकी उत्पाद का फायदा वैश्विक मल्टीनेशनल कंपनियाँ उठाती हैं। इससे भारतीय ज्ञान एवं प्रतिभा से प्राप्त मुनाफा विदेशी कंपनियों को प्राप्त होता है। इसे रोकने के लिए भारत को तकनीकी राष्ट्रवाद एवं आर्थिक राष्ट्रनिष्ठा की ओर जाना होगा। यह विचार आज प्रख्यात अर्थशास्त्री एवं पैसिफिक विश्वविद्यालय, उदयपुर के कुलपति प्रो. भगवती प्रसाद शर्मा ने टी.टी.नगर स्थित समन्वय भवन में चल रहे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के सत्रारम्भ कार्यक्रम के दूसरे दिन व्यक्त किए।

India has Been Ranked As One Of The Most Racist Countries In The World

By Asees Bhasin

In a map of a survey released last year by The Washington Post, India was ranked as one of the most racist countries in the world. Through the course of this article, I have tried inspecting the reasons which many have caused a deep rooted xenophobia in the minds of the Indian populace.

Racism as an ego defence mechanism

After two hundred years of colonial domination and being labelled as barbarians, the Indian identity faced a major setback. The belief that India needed saving from itself and the initiation of an entire ‘civilizing mission’ for the populace reiterated a sense of Indian inferiority time and again. Some regressive Indian cultural practices were questioned at a global level, and many were changed. The attempt to get the Indians to emulate the Western ways of living infuriated the Indians, while making them question their own identity time and again. Post independence, in order to counter the existing mindset, a strong patriotic identity was forged. This identity led to an exaltation of Indian culture and practices, and portrayed these to be superior to British or Western tradition.

इस बार 144 साल बाद सावन महीने में सौभाग्य योग बनेगा

हिंदू धर्म में सावन का महीना काफी पवित्र माना जाता है। इसे धर्म-कर्म का माह भी कहा जाता है। सावन महीने का धार्मिक महत्व काफी ज्यादा है। बारह महीनों में से सावन का महीना विशेष पहचान रखता है। इस दौरान व्रत, दान व पूजा-पाठ करना अति उत्तम माना जाता है व इससे कई गुणा फल भी प्राप्त होता है। इस बार का सावन अपने आप में अनूठा होगा। इस बार 144 साल बाद सावन महीने में सौभाग्य योग बनेगा। श्रद्धालुओं में इसे लेकर खासा उत्साह है।

28.7.15

शहर में दो गर्ल्स कॉलेज हैं या सरकार के मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने सदन में मुनमुन के सवाल का गलत जवाब दिया है? 
   सिवनी के विधायक दिनेश मुनमुन राय ने नेता जी सुभाषचंद्र बोस कन्या महाविद्यालय के संबंध में विधानसभा में प्रश्न पूछा। इसका जवाब देते हुये प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने जवाब दिया कि,सिवनी के नेताजी सुभाषचंद्र बोस कन्या माविद्यालय के पास भवन नहीं हैं इस वजह से यूजीसी से राशि नहीं मिल पा रही है। जबकि बींझावाड़ा की भूमि पर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वोरा ने गर्ल्स कालेज का भूमिपूजन किया था जिसमें कालेज भवन के साथ साथ पचास पचास सीट के दो हास्टल भी बनाये गये थे। लेकिन शहर से दूरी को मुद्दा बनाकर जब विरोध पुनः हुआ तो तत्कालीन भाजपा विधायक नरेश दिवाकर की पहल पर उस अपने खुद के भवन को छोड़कर इस कालेज को एक बार फिर उसी जेल भवन में ले जाया गया।इसी दौरान शासकीय कन्या महाविद्यालय का नामकरण नेताजी सुभाषचंद्र बोस कन्या महाविद्यालय के रूप में कर दिया गया। लेकिन कालेज का स्थापना वर्ष तो एक ही है। व्यापम के विरोध में प्रदेश कांग्रेस के आव्हान पर 16 जुलाई को जिले में भी बंद का आव्हान किया गया था। कांग्रेस के इस बंद को जिल मुख्यालय लगभग सभी बड़े कस्बों में आशातीत सफलता मिलने से जिले के कांग्रेसी उत्साहित है। प्रदर्शनकारी युवा कांग्रेसी कार्यकर्त्ताओं पर पुलिस ने अश्रु गैस के गोलों के साथ जम कर लाठी भी भांजी जिसमें सिवनी जिले के बरघाट विस क्षेत्र के युवक कांग्रेस के अध्यक्ष देवेन्द्र ठाकुर भी घायल हो गये और उनके हाथ की हड्डी टूट गयी।

मुनमुन के सवाल से उठे कई सवाल-सिवनी के विधायक दिनेश मुनमुन राय ने नेता जी सुभाषचंद्र बोस कन्या महाविद्यालय के संबंध में विधानसभा में प्रश्न पूछा। इसका जवाब देते हुये प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने जवाब दिया कि,सिवनी के नेताजी सुभाषचंद्र बोस कन्या माविद्यालय के पास भवन नहीं हैं इस वजह से यूजीसी से राशि नहीं मिल पा रही है। जेल भवन की भूमि को महाविद्यालय को देने के लिये उच्च शिक्षा विभाग ने अर्धशासकीय पत्र लिखकर इस संबंध में कार्यवाही करने को लिखा है। विधायक के प्रश्न और मंत्री के द्वारा दिये गये जवाब से यह सवाल पैदा हो गया है कि क्या शहर के दो गर्ल्स कॉलेज है? ऐसा सवाल इसलिये उठ खड़ा हुआ क्योंकि सन 1980 के दशक में जिले में छात्राओं को उच्च शिक्षा मिले इसकी मांग उठने लगी थी। प्रदेश की तत्कालीन दबंग कांग्रेस सरकार की मंत्री कु. विमला वर्मा की पहल पर जिले के सिवनी मुख्यालय में शासकीय कन्या महाविद्यालय खोला गया था जो अपने शुरुआती दिनों में एमएलबी स्कूल में लगा था। फिर कुछ समय बाद इसे जेल के भवन में स्थानान्तरित कर दिया गया था। जब प्रदेश के मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा थे तब प्रदेश के उच्चशिक्षा मंत्री चित्रकांत जैसवाल जिले के प्रभारी मंत्री थे। उसी समय इस कालेज के भवन के लिये राशि स्वीकृत हुयी और जिले की प्रथ महिला कलेक्टर श्रीमती आभा अस्थाना ने निकटवर्ती ग्रात बींझावाड़ा की लगभग 40 एकड़ शासकीय भूमि चिन्हित की जिसमें से 15 एकड़ जमीन गर्ल्स कालेज के लिये आवंटित की गयी एवं शेष जमीन कलेक्टरेट सहित ऐसे शासकीय कार्यालयों को आवंटित कर दी थी जिनके स्वयं के भवन नहीं थे। इसी भूमि पर प्रदेश के मुख्यमंत्री वोरा ने गर्ल्स कालेज का भूमिपूजन किया था जिसमें कालेज भवन के साथ साथ पचास पचास सीट के दो हास्टल भी बनाये गये थे। छुट पुट स्थानीय विरोध के बाद भी गर्ल्स कॉलेज नये भवन में ले जाया गया एवं आवागमन की दिक्कत को देखते हुये एक कालेज बस भी सरकार ने दिलायी थी।लेकिन शहर से दूरी को मुद्दा बनाकर जब विरोध पुनः हुआ तो तत्कालीन भाजपा विधायक नरेश दिवाकर की पहल पर उस अपने खुद के भवन को छोड़कर इस कालेज को एक बार फिर उसी जेल भवन में ले जाया गया। और कालेज के उस भवन का तो कुछ उपयोग हो भी रहा है लेकिन हास्टल के दोनों भवन बिना चालू हुये ही खंडहर में तबदील होते जा रहे है। तात्कालिक राजनैतिक लाभ के लिये गये इस निर्णय से कालेज का कितना नुकसान हुआ इसका अंदाज तो सदन में दिये गये उच्च शिक्षा मंत्री के बयान से ही लग रहा है खुद का भवन ना होने के कारण यूजीसी के अनुदान प्राप्त नहीं हो सकते है। इससे कालेज का पूरा विस्तार ही थम गया है। इसी दौरान शासकीय कन्या महाविद्यालय का नामकरण नेताजी सुभाषचंद्र बोस कन्या महाविद्यालय के रूप में कर दिया गया। लेकिन कालेज का स्थापना वर्ष तो एक ही है। सदन में उच्च शिक्षा मंत्री गुप्ता द्वारा दिये गये बयान से प्रतीत होता है कि शहर में या तो दो गर्ल्स कॉलेज हैं या फिर उन्होंने सदन में गलत बयानी की है कि जिले के कन्या महाविद्यालय के पास अपना खुद का भवन नहीं हैं क्योंकि नेता जी सुभाषचंद्र बोस कन्या महाविद्यालय के रूप में जिले के शासकीय कन्या महाविद्यालय का ही नामकरण किया गया था। अब यह एक शोध का विषय बन गया है कि जिस कालेज का एक भवन हो और वह अपने भवन में नहीं लग रहा है तो क्या यूजीसी उसी कालेज के लिये दूसरा भवन बनाने के लिये राशि देगी? और क्या जिले की छात्राओं को दिखाये जा रहे सपने पूरे होंगें? इनके जवाब भविष्य की गर्त में छिपे हुये हैं।
व्यापम के विरोध में कांग्रेस का बंद रहा सफल-व्यापम के विरोध में प्रदेश कांग्रेस के आव्हान पर 16 जुलाई को जिले में भी बंद का आव्हान किया गया था। कांग्रेस के इस बंद में जिले भर में व्यवसायिक प्रतिष्ठान बंद रखने का आव्हान कांग्रेस ने किया था। कांग्रेस के इस बंद को जिला मुख्यालय लगभग सभी बड़े कस्बों में आशातीत सफलता मिलने से जिले के कांग्रेसी उत्साहित है। जिस तरह से भाजपा के समर्थकों ने सोशल मीडिया पर बंद का विरोध किया था उससे ऐसा लगता था कि भाजपा के लोग सड़क पर उतरकर शायद बंद का विरोध करें। कुछ जानकारों का ऐसा मानना है कि भाजपा के कुछ नेताओं की ऐसी तैयारी भी थी लेकिन शहर में कांग्रेस के सभी गुट के लोगों के एक साथ सड़क पर उतर कर बंद में सहयोग देने के लिये की गयी अपील अधिक कारगर साबित हुयी और लोगों ने स्वयं ही अपने प्रतिष्ठान बंद रखे। प्रदेश के युवाओं की योग्यता के साथ किये गये शिवराज सरकार के व्यापम के खूनी खिलवाड़ के खिल
ाफ लोगों में आक्रोश था और इसी के चलते कांग्रेस को अपने बंद में सफलता मिली। राष्ट्रीय और प्रादेशिक स्तर पर कांग्रेस जिस आक्रामक तरीके से इस मामले को उठा रही है उससे प्रदेश में पहली बार भाजपा और शिवराज सिंह बेकपुट पर दिखायी दे रहे हैं। इस मामले में भाजपा आला कमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के स्तीफे को लेकर चाहे जो भी निर्णय ले लेकिन इस मामले से प्रदेश में भाजपा की साख को जरूर धक्का लगा है।  
घेराव के दौरान देवेन्द्र ठाकुर की हड्डी टूटी-व्यापम के विरोध की श्रृंखला में प्रदेश युवक कांग्रेस ने मुख्यमंत्री निवास के घेराव की घोषणा की थी। इसमें जिले से कई युवा कांग्रेसी शरीक हुये थे। प्रदर्शनकारी युवा कांग्रेसी कार्यकर्त्ताओं पर पुलिस ने अश्रु गैस के गोलों के साथ जम कर लाठी भी भांजी जिसमें सिवनी जिले के बरघाट विस क्षेत्र के युवक कांग्रेस के अध्यक्ष देवेन्द्र ठाकुर भी घायल हो गये और उनके हाथ की हड्डी टूट गयी। कांग्रेस शासनकाल में कभी ये ही भाजपा के कार्यकर्त्ता गला फाड़ फाड़ कर नारे लगाते थे कि लाठी गोली की सरकार नहीं चलेगी चलेगी और आज भाजपा की सरकार ही अपने मुख्यमंत्री के निवास तक लोग ना पहुंच पाये इसके लिये लाठियां भांज रही है। “मुसाफिर” 
दर्पण झूठ ना बोले सिवनी
28 जुलाई 2015 से साभार 







श्रद्धा और विश्वास की जीत

इस महान पुस्तक के बारे में आपको एक छोटी सी बात बताना चाहती हूँ। पिछले दिनों मेरे ब्रेस्ट में एक बड़ी गांठ हुई, स्पाइन में भी कई जगह बहुत दर्द रहने लगा। मेरा चेकअप हुआ। तीन एम.आर.आई. स्केन करवाए गए। डॉक्टर्स को पूरा शक था कि मुझे कैंसर हुआ है। एम.आर.आइ. स्केन की रिपोर्ट आने में समय था। तभी मैंने अमेज़ोन से डॉ.ओ.पी.वर्मा की पुस्तक कैंसर कॉज़ एंड क्योर मंगवाई। यह मेरे लिए ईश्वर का एक तोहफ़ा था। मैं डरी हुई थी और अपने उपचार की तैयारी कर रही थी। एक रात को मैं परेशान थी और नींद भी नहीं आ रही थी। तभी मैं उठी और अपनी प्यारी पुस्तक को सीने से चिपका लिया। मुझे लगा जैसे मैं बडविग की बाहों में हूँ और उनके शरीर से निकले इलेक्ट्रोन्स मुझे ठीक कर हे हैं। मैं जानती थी कि बडविग महान है और वे ही मुझे जीवन दे सकती है। यह सोचते-सोचते पता ही नहीं चला कब मेरी आँख लग गई। दूसरे दिन डॉक्टर ने मुझे बताया कि मुझे कोई कैंसर नहीं है। मैं बहुत खुश थी। मुझे इस पुस्तक की ताकत पर भरोसा था। मैं बडविग और उनकी क्वांटम फिजिक्स से बहुत प्रभावित हूँ। ऐसी बेमिसाल पुस्तक लिखने के लिए मैं डॉ. ओ.पी.वर्मा की बहुत आभारी हूँ। दोस्तों, आज मैं परी की तरह हवा में उड़ रही हूँ। 
मेरेडिथ गुडरिच, न्यू फील्ड्स   यह सचमुच गौरव और प्रसन्नता की बात है। अलसी मैया की विशेष अनुकंपा है। मेरी पुस्तक कैंसर – कॉज़ एंड क्यौर एमेजोन पर सफलता के नई उँचाइयां छू रही है और बहुत प्रशंसा एवम् प्रतिक्रिया बटोर रही है। नित नई कहानियां सामने आ रही हैं। किताब को पूरी श्रद्धा से सीने से लगाने और डॉ बडविग के प्रति पूरी भक्ति रखने मात्र से सारी रिपोर्ट्स ठीक आई, जबकि पूरी पूरी संभावना थी कि गुडरिच को ब्रेस्ट और हड्डियों में कैंसर पूरी तरह फैल चुका है। अलसी मां और बडविग मां ने उसे जीवन दान दिया है। सचमुच दिव्य है यह पुस्तक। यह खुशी मैं आपके साथ साझा करने में आनंद महसूस कर रहा हूँ।
मेरेडिथ गुडरिच 
न्यू फील्ड्स, न्यू हैम्पशायर  

बडविग कैंसर चिकित्सा की इस महान पुस्तक को आप सीधे हमसे या पोथी.कॉम से खरीद सकते हैं    http://pothi.com/pothi/book/dr-o-p-verma-cancer-cause-and-cure 
Dr. O.P.Verma
M.B.B.S., M.R.S.H.(London)
7-B-43, Mahaveer Nagar III, Kota Raj. 
+919460816360

Most Helpful Customer Reviews for this book

This is the best book on Budwig protocol i know of! Its hard to read original Burwig books as they are not translated well and seem complicated. Here you are given exact details of Budwig protocol which seems to be the most natural protocol and rellly easy to follow. The book also suggests some more natural methods of helping your body fight off cancer. I would highly recomend this book for someone who is affected by cancer or whose relative or friend is fighting it. It is very encouraging and gives hope as well as amazes you on how easily curable cancer can be despite all the scares that traditional mesicine and doctors put on you. Stay strong and believe in Gods given natural medicine which is in plants all around us!
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Several methods to strengthen the spirit, as emotional problems must be overcome.
Dr. Ryke Geerd Hamer's astonishing discovery of a emotional trauma - brain - cancer connection is nicely explained.
A dozen important herbs are highlighted and their positive impact described.
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Lothar Hirneise strongly supports holistic and spiritual approach and includes Visualization, Meditation and Detoxification in his 3 E Program. Author has covered all these therapies in detailed. He explained other subjects related to cancer e.g. EFT, stress management, herbs, herbal teas and Essiac tea etc.
This is an interesting book. A lot of the ideas seem pretty farfetched and some of the cures use strange ingredients, but there are also some good ideas and things that are definitely worth knowing. Dr. Budwig and Ms. Caisse had some impressive cures but it would be difficult to follow their recommendations in 21st century America