हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों, सही पहचाना आपने! मैंने बताया तो था
आपको 13 मार्च,2015 को उनके बारे में। हमने खबर लगाई तो थी। शीर्षक था-
कानून नहीं थानेदारों की मर्जी से चलते हैं बिहार के थाने
ये
वही सुरेश बाबू हैं मेरे मित्र रंजन के ससुर,पिता का नाम-स्व. रामदेव
सिंह,साकिन-गुरमिया,थाना-सदर थाना,हाजीपुर,जिला-वैशाली। बेचारे के साथ इसी
साल के 10 मार्च को सदर थाना परिसर से दक्षिण सटे एक्सिस बैंक के एटीएम के
साथ धोखा हुआ और किसी लफंगे ने उनकी मदद करने के बहाने उनके खाते से 16000
रुपये निकाल लिए। बेचारे भागे-भागे हमारे पास आए। हमने लगे हाथों 12
मार्च,2015 को सदर थाने में एफआईआर के लिए अर्जी डाल दी ताकि पुलिस से
अपराधी का पता लगाकर बुजुर्ग सुरेश बाबू को न्याय मिल सके।
मित्रों,उसके बाद कई दिनों तक रोज सुबह-शाम सुरेश बाबू का फोन मेरे पास आता
कि एफआईआर दर्ज हुआ कि नहीं। फिर मैं इंस्पेक्टर को फोन करता। जब थाने के
चक्कर लगाते दो दिन बीत गए तब मैंने एसपी को फोन किया। एसपी साहब से जब भी
बात होती लगता जैसे वे सोकर उठे हों। इस प्रकार किसी तरह से दिनांक 17
मार्च को एफआईआर दर्ज हुआ। थाने में मौजूद एक फरियादी से पता चला कि बिना
हजार-500 रुपये लिए एफआईआर दर्ज ही नहीं किया जाता।
मित्रों,हमने तुरंत
सुरेश बाबू को सूचित किया और कहा कि कल जाकर एफआईआर की कॉपी ले जाईए। मगर
यह क्या जब वे थाने में एफआईआर की कॉपी लेने गये तो मुंशी ने उनसे 500
रुपये की रिश्वत की मांग कर दी। मैंने उनको मुंशी से बात करवाने को कहा तो
मुंशी फोन पर ही नहीं आया। फिर मैंने उनसे कहा कि आराम से घर जाईए क्योंकि
यह पुलिस कुछ नहीं करनेवाली है क्योंकि हम उसे एक चवन्नी की भी रिश्वत नहीं
देंगे और वे बिना पैसे लिए कुछ करेंगे नहीं। सुरेश बाबू बेचारे दिल पर
पत्थर रखकर अपने घर चले गए और ठगे गए 16000 रुपयों से संतोष कर लिया।
मित्रों,फिर परसों अचानक सुरेश बाबू का फोन आया कि सदर थाने से उनको फोन
गया था। वे काफी घबराए हुए थे। कहा कि पुलिस ने पैसा तो ऊपर किया नहीं फिर
तंग क्यों कर रही है? मैंने कल उनको सदर थाने में आने को कहा। कल जब हम सदर
थाने पहुँचे तो इंस्पेक्टर साहब अपने चेंबर में नहीं थे। मैंने अन्य
पुलिसवालों से फोन के बारे में पूछा तो उन्होंने हमलोगों पर ही इल्जाम
लगाया कि हम एफआईआर करके सो गए। हमने सीधे-सीधे कहा कि मुंशी ने एफआईआर की
कॉपी देने के पैसे मांगे और घूस देना हमारी फितरत में नहीं है इसलिए हम
निराश होकर थाने नहीं आए।
मित्रों,उनलोगों की सलाह पर जब हमने उस नंबर
पर पलटकर फोन किया जिससे हमें फोन गया था तो पता चला कि श्रीमान् थाने के
पीछे केस डायरी के पन्ने काले कर रहे हैं। पिछवाड़े में जाने पर पता चला कि
उनका नाम लक्ष्मण यादव है और वे गया जिले के रहनेवाले हैं। वे हमारे केस
के आईओ यानि अनुसंधान अधिकारी हैं। बेचारे काफी परेशान दिखे। अरे,हमारे लिए
नहीं बल्कि खुद के लिए। उनको अपनी नौकरी बचाने की फिक्र थी। उन्होंने हमसे
दरख्वास्त की कि हम उनको सुरेश बाबू के चार परिचितों के नाम लिखवा दें
जिनका नाम वे गवाह के रूप में केस डायरी में लिखेंगे और केस को समाप्त करने
के लिए कोर्ट में अर्जी दे देंगे। सुरेश बाबू से पूछा तो बोले कि पैसा तो
अब मिलने से रहा गवाह के नाम लिखवा देते हैं झंझट खत्म हो जाएगा।
मित्रों,इस तरह सुरेश बाबू का मुकदमा हाजीपुर की पुलिस ने खल्लास कर दिया।
हमने कहा लक्ष्मण बाबू कम-से-कम अब तो हमें एफआईआर की कॉपी दे दीजिए।
बेचारे ने मना भी नहीं किया वो भी बिना रिश्वत लिए। हमने पूछा कि इस केस
में आपको क्या करना चाहिए था आप जानते हैं क्या तो वे बोले नहीं। फिर हमने
अपनी तरफ से पहल करके बताया कि आपको एटीएम का सीसीटीवी फुटेज देखना चाहिए
था और अपराधी को पकड़ना चाहिए था क्योंकि जबतक वो अपराधी बाहर रहेगा थाना
क्षेत्र में इस तरह की ठगी की घटनाएँ होती ही रहेंगी। बेचारे लक्ष्मण यादव
कुछ बोले नहीं सिर्फ सुनते रहे और हम भी आहिस्ता-आहिस्ता चलते हुए थाने से
बाहर आ गए। वैसे सुरेश बाबू को एफआईआर दर्ज करवाने का पछतावा तो है लेकिन
इस घटना से उन्होंने एक सीख भी ली है। और अब बेचारे ने एटीएम कार्ड से पैसा
निकालना ही छोड़ दिया है।
हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित।