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31.1.13

आधी आबादी का दर्द  

आजकल महिला क्रिकेट वर्ल्ड कप का आयोजन हो रहा है । आज ही एक मैच देखा ।  भारत और  वेस्ट इंडीज के  बीच । मैंने देखा । 43 ओवर बीत चुके थे । सच कहूं तो मुझे पता ही नहीं था कि  क्रिकेट विश्व कप चल रहा है या शुरू हो चुका  है । किसी बीते दिन कहीं पढ़ा जरूर था । रोज अखबार पढता हूँ । लेकिन सिर्फ मतलब की ख़बरें । मैच का रोमांच इतना कि  भारत की आकर्षक बैटिंग देखकर मन मुग्ध हो गया । भारत के 50 ओवर में बनाए गए 284 रन में कामिनी के 100 रन का अपना महत्व है हालांकि मैं उनकी पारी देखने से वंचित रह गया हूँ । हाँ , अंतिम ओवेर्स में जो कुछ हुआ वह बेहद रोमांचक रहा है ।
जब मैच होता है तो मैं सक्रिय  विज्ञापनों के दौरान यदा कदा  अपने काम निकाल लेता हूँ । हर ओवर के बाद थोड़े समय के लिए विज्ञापन आते हैं । खिलाड़ी के आउट होने के बाद भी विज्ञापन आते हैं और इस बीच मैदान पर क्या क्या चल रहा होता है  , पता  ही नहीं चल पाता  । इधर जब से मैं मैच देख रहा हूँ तो मुझे इन कार्यों से निवृत्त होने का अवसर ही नहीं मिल पा रहा है । मैं मैच पूरा देखना चाहता हूँ । और बीच बीच में दिखाए गए डिटेल से प्रथम विकेट के लिए कामिनी और राउत के बीच 224 गेंदों में चली 175 रन की साझेदारी से याद आता है कि  विगत कितने ही दिनों से पुरुष क्रिकेट टीम ऑफ़ इंडिया की तरफ से ऐसी कोई पारी देखने में नहीं आ पायी है ।
इसी बीच आई एच एल का एक विज्ञापन आया है । भारतीय हॉकी लीग का विज्ञापन । लेकिन मैं इतनी देर मैं कोई काम नहीं निपटा सकता हूँ । बीच बीच में एल जी और रिलायंस का भी एक छोटा सा चित्र एक कोने में आ रहा है । मुझे लग रहा है ये इनके प्रायोजक होंगे । शायद आधी आबादी के प्रायोजक । एक कोने में आ रहे हैं । हालांकि मैदान में कुछ बोर्ड मैदान के boundry पर लगे हैं जो शायद स्थायी होंगे । देश के और दुनिया के उद्योगपतियों में कुछ तो महिलायें भी होंगी । रिलायंस के इस प्रकार इस चित्रात्मक विज्ञापन के पीछे शायद नीता अम्बानी की कृपा हो । लेकिन मुझे इससे लगता है कि  जब ओवर बदलता है या कोई खिलाड़ी आउट होता है तो टी वी पर या मैदान पर क्या चल रहा होता है ।
मैदान पर दर्शक हैं । बस उस क्षण से काफी कम हैं जितने भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम द्वारा मैच जीते जाने पर बाद में सबके घर चले जाने पर मैन  ऑफ़ द  मैच के प्राइज के समय स्टेडियम  में बचे रहते हैं । यदि आप वीडिओ क़ो न देखकर सिर्फ आवाज पर ध्यान देंगे तो शायद आपको लगे - कोई खेतों में कौवे उड़ा  रहा है । 40 मिनट्स बीत चुके हैं । कोई विज्ञापन नहीं आया है । सोचता हूँ , कौन कहता है बिना विज्ञापन के कोई कार्यक्रम नहीं चल सकता । यदि महिला क्रिकेट वर्ल्ड कप चल सकता है तो कुछ और क्यों नहीं ।
यह मेरे देश की नहीं बल्कि दुनिया की आधी आबादी का वर्ल्ड कप है । यदि लिंग भेद पर कहूं तो पुरुष वर्ल्ड कप भी आधी आबादी का ही वर्ल्ड कप होता है । महिला वर्ल्ड कप बिना विज्ञापन के चल रहा है । कहीं कहीं विज्ञापन आ भी रहे होंगे । मैंने तो पिछले 45 मिनट से नहीं ही देखे हैं । मेरी दिक्कत यह नहीं कि  विज्ञापन क्यों नहीं आ रहे । दिक्कत यह है कि  विज्ञापन के बगैर यह कब तक चल पायेगा । कब तक सुरक्षित रहेगा । क्या देश और दुनिया की आधी आबादी सोयी है ? शायद नहीं । लेकिन  वह नियंत्रित है अपनी उस सोच से जिसमे उसने स्वयं अपने अस्तित्व के बारे में वर्षों से सोचा ही नहीं । या क्या वह पुरुषों के द्वारा सोचे विषयों और सीमा तक ही सोच पाती है । मैदान पर सूनापन  क्यों है ? आधी आबादी के इस दर्द को क्या कहूं ?

विश्व देखा पाएगा “विश्वरूपम” का रूप ?


विश्वरूपम को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है और बढ़ते विवाद के चलते ही विश्वरूपम का रूप विश्व के सामने नहीं आ पा रहा है। दक्षिण के बाद अब उत्तर भारत में भी फिल्म के रिलीज पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। मामला मद्रास हाईकोर्ट में है तो इस बीच बयानबाजी के दौर भी जारी है। करूणानिधि ने इसमें भी राजनीति तलाश ली है और वे कहते हैं कि एक कार्यक्रम में कमल हासन ने पी चिदंबरम की तारीफ कर दी...बस इसी से जयललिता नाराज हो गई हैं और फिल्म की रिलीज पर बैन लगा दिया..!
हालांकि जयललिता ने आरोप लगाने वालों पर मानहानि का केस करने के साथ ही फिल्म को लेकर 24 मुस्लिम संगठनों के विरोध को दरकिनार नहीं किए जाने की सरकार की मजबूरी बताकर अपनी सफाई भी पेश कर दी है लेकिन खामियाजा न तो करूणानिधि भुगत रहे हैं और न ही जयललिता...खामियाजा भुगत रहा है एक कलाकार..! कमल हासन के मुताबिक अपना सब कुछ इस फिल्म में दांव पर लगा दिया है।
फिल्म इंडस्ट्री भी कमल हासन के समर्थन में खड़ी है...सलमान लोगों से फिल्म पर बैन के खिलाफ बगावत की अपील कर चुके हैं तो तमाम फिल्मी हस्तियां भी फिल्म में बैन के खिलाफ आवाज बुलंद कर रही हैं लेकिन तमिलनाडु में विश्वरूपम में बैन का ग्रहण फिलहाल छंटता नहीं दिख रहा है..!
बकौल जयललिता सरकार राज्य में 524 थियेटरों को सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकती...इसके पीछे मान लेते हैं कि सरकार की कानून व्यवस्था को लेकर अपनी मजबूरियां हैं...7 करोड़ लोगों पर सिर्फ 87 हजार का पुलिसबल है लेकिन सवाल ये खड़ा होता है कि एक फिल्म जो मनोरंज का साधन होने के साथ ही लोगों के लिए एक संदेश भी छोड़ कर जाती है क्या लोगों को आपस में बांट सकती है या देश की आबोहवा में जहर घोल सकती है..?
जो जानकारी है कि फिल्म अफगानिस्तान में आतंकवाद पर बनी है और भारत का उससे कोई संबंध नहीं हैं लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं निकाला जा सकता कि फिल्म में आतंकवाद को बढ़ावा दिया जा रहा होगा या फिल्म में आतंकवादी बनने का संदेश दिया जा रहा होगा या किसी धार्मिक ग्रंथ का अपमान किया गया होगा...ऐसा होता तो क्या सेंसर बोर्ड जैसी जिम्मेदार संस्था फिल्म को हरी झंडी देती..!
ऐसा होता तो क्या कमल हासन अपना सब कुछ एक फिल्म में दांव पर लगा देते..! कमल हासन एक अच्छे कलाकार हैं और लंबे अरसे से फिल्म इंडस्ट्री में है ऐसे में वे ये अच्छी तरह समझते होंगे कि ऐसा करके वे अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मारने का काम करते और शायद इसलिए कमल हासन मुस्लिमों के लिए फिल्म की अलग से स्क्रीनिंग करने को भी तैयार थे लेकिन इसके बाद भी फिल्म को लेकर कुछ मुस्लिम संगठनों का विरोध नहीं थमा और राज्य सरकार ने उनके कहने पर फिल्म की रिलिज पर बैन लगा दिया..!
बहरहाल अच्छी बात ये है कि कमल हासन फिल्म से उन दृश्यों और डॉयलाग को हटाने पर सहमत हो गए हैं जिन पर आपत्ति जतायी जा रही है और जयललिता ने भी कांटछांट होने पर फिल्म की रिलीज में आपत्ति न होने की बात कही है ऐसे में उम्मीद करते हैं कि विश्वरूपम से विवादरूपम बन चुकी कमल हासन की फिल्म का विवादों से पीछा छूटे और इस विवाद का पटाक्षेप हो और समूचा विश्व विश्वरूपम का रूप देखे।  

deepaktiwari555@gmail.com

30.1.13

सुपरहिट हुई विश्वरूपम !

कमल हासन की फिल्म विश्वरूपम की रिलीज कानूनी पचड़े में नहीं फंसती तो पता नहीं कि ये फिल्म हिट होती या नहीं लेकिन फिल्म के रिलीज पर बवाल मचने के बाद ये तो तय है कि देर सबेर जब भी ये फिल्म बड़े पर्दे पर आएगी तो फिल्म सुपर हिट जरूर होगी। जाहिर है फिल्म को लेकर लोगों की जिज्ञासा बढ़ गई है और हर कोई फिल्म देखने के लिए ललायित होगा..!
फिल्म में कुछ दृश्यों के साथ ही डॉयलाग को लेकर विरोध हो रहा है...अच्छी बात ये है कि कमल हासन विवादित अंश को फिल्म से हटाने पर सहमत भी हो गए हैं लेकिन फिलहाल मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के बाद एक बार फिर से फिल्म रिलीज का मामला सोमवार तक अटक गया है।
बड़ा सवाल ये उठता है कि जब फिल्म के किसी दृश्य पर किसी डॉयलाग पर सेंसर बोर्ड ने आपत्ति नहीं जतायी और फिल्म को हरी झंडी दे दी तो फिर आखिर क्यों राज्य सरकार ने सेंसर बोर्ड के फैसले का सम्मान नहीं किया और फिल्म की रिलीज पर रोक लगा दी..?
अगर राज्य सरकार को ही सब कुछ तय करना है तो फिर सेंसर बोर्ड की जरूरत ही क्या है..?
हालांकि ऐसी फिल्मों को प्रदर्शित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए जिसमें समुदाय विशेष को निशाना बनाया गया हो या फिर ऐसे दृश्य या डॉयलाग हों जो समाज के लिए खतरा हों या समाज में वैमनस्य पैदा करते हों लेकिन सेंसर बोर्ड एक जिम्मेदार संस्था है और जब वह किसी फिल्म को प्रमाणित कर रहा है तो फिर सवाल नहीं उठने चाहिए।
विश्वरूपम मेगा बजट फिल्म है और जैसा सुना है कि विश्वरूपम में करीब 100 करोड़ की लागत से बनी है ऐसे में फिल्म की रिलीज में देरी पर कमल हासन का दर्द समझा जा सकता है...वो भी तब जब कमल ने अपना घर तक फिल्म के लिए गिरवी रख दिया है।
बकौल कमल हासन वे राजनीति का शिकार हो रहे हैं और तमिलनाडु की जयललिता सरकार उन्हें राज्य से भगाना चाहती है...अगर वाकई में ऐसा है तो तमिलनाडु के लिए...इस देश के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य और कुछ नहीं हो सकता कि एक कलाकार को प्रोत्साहन देने की बजाए उसका मनोबल तोड़ने की पूरी कोशिश की जा रही है जबकि फिल्म को सेंसर बोर्ड से हरी झंडी मिल चुकी है..!
बहरहाल फिल्म कानूनी पचड़े में बुरी तरह फंस गयी है और फिलहाल ये विवाद जल्द शांत होने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं।
उम्मीद करते हैं कि विश्वरूपम की रिलीज पर लगा ग्रहण जल्द हटेगा और फिल्म को लेकर लोगों के मन में छाया कुहासा भी रिलीज के साथ छंटेगा और वास्तविक स्थिति सबके सामने आएगी।

deepaktiwari555@gmail.com

शाहरुख खान- दिल की बात लिखकर क्यों लाए ?


मैं न ही शाहरुख खान के खिलाफ हूं और न ही मेरा ईरादा शाहरुख की आलोचना करने का था...लेकिन पाकिस्तानी गृहमंत्री रहमान मलिक की टिप्पणी पर किंग खान की बहुत देर से आई प्रतिक्रिया पर खुद को लिखने से भी नहीं रोक सका। आपने शाहरुख खान की वो प्रतिक्रिया समाचार चैनलों में देखी और सुनी की नहीं पता नहीं और देखी और सुनी भी तो पता नहीं गौर किया की नहीं कि शाहरुख खान साहब जब अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे तो सामने रखे कागज पर पढ़कर अपनी बात बोल रहे थे।
शाहरुख ने कहा मुझे भारतीय होने पर गर्व है और बाहरी लोग सलाह न दें। हालंकि शाहरुख ने अपने लेख पर बेवजह बखेड़ा खड़ा करने का आरोप भी लगाया और भारत में अपनी सुरक्षा की चिंता नहीं होने की बात कही। रहमान मलिक के बयान पर शाहरुख से जवाब की उम्मीद थी जो उन्होंने बहुत देर से ही सही लेकिन आखिरकार दिया।
शाहरुख खान सहाब जब कागज से पढ़कर अपनी बात कह रहे थे तो देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि आखिर जो शाहरुख खान फिल्मों के डॉयलाग बिना पढ़े शानदार तरीके से बोलते हैं...और कई टीवी भी शो भी उन्होंने इसी तरह होस्ट भी किए हैं...उन्हें अपनी दिल की बात कहने के लिए कागज पर लिखकर लाना पड़ा। शाहरुख ने बहुत कुछ नहीं बोला और न ही वे कोई भाषण टाइप दे रहे थे लेकिन फिर भी आखिर क्यों लिखकर लाने की जरूरत पड़ गई और उसमें से ही पढ़कर अपनी बात शाहरुख ने कही..! मुझे तो समझ नहीं आया...आपको आया हो तो बताइएगा जरूर..!

deepaktiwari555@gmail.com

29.1.13

कौन कहता है ये इक्कीसवी सदी है..


Sudheer Maurya 'Sudheer'
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आज कल बलात्कारियो को क्या सजा मिलनी चाहिए, ये चर्चा बड़े जोरो पर है। जहाँ तक में मानता हूँ ये चर्चा का विषय होना ही नहीं चाहिए, बलात्कारी को हर हाल में अधिकतम सजा मिलनी ही चाहिए।
बलात्कारी, नाबालिग हो सकता है में इस बिंदु को सिरे से ही खारिज करता हु। कोई भी व्यक्ति जब वो किसी से जबरन सेक्स करता है तो ये क्रिया उसकी पूर्ण वयस्कता को दर्शाती है।     
अगर बलात्कारी को नाबालिग समझ कर सजा में रियायत दी जाती है, तो क्या ये इस बात का सूचक नहीं है की जिन नाबालिग लडकियों के साथ बलात्कार हुआ, उनके बलात्कारी और भी अधिक सज़ा के हक़दार हे।
पकिस्तान में 6 साल की लड़की वैजन्ती के साथ हुए बलात्कार को हम किस श्रेणी मे रखेंगे। उसके अपराधियों को अधिकतम सज़ा क्या नहीं मिलनी चाहिए। बलात्कार तो बलात्कार है वो किसी के भी साथ हुआ हो, पर एक 6 साल की बच्ची के साथ हुए बलात्कार को हैवानियत ही मना जायेगा।
अगर कानून, नाबालिग बलात्कारी की सजा में रियायत बख्शता है, तो क्या उस कानून को नाबालिग के साथ हुए बलात्कार करने वाले को तुरंत 
ज्यादा से ज्यादा सज़ा नहीं देनी चाहिए।
रिंकल कुमारी और वेयाजंती के उदहारण हमारे सामने है इन नाबालिग लड़कियों के बलात्कारी खुला घूम रहे हैं किसी और को अपना शिकार बनाने के लिए। हम चुप है, सरकार और कानून चुप हे, अंतररास्ट्रीय मानवाधिकार चुप है, ये बहुत है बलात्कारियों का हौसला बढाने के लिए। सच तो ये है इन शर्मनाक घटनाओं को   रोकने के लिए विश्व्यापी पहल की जरुरत है।
आओ हम सब मिलकर लड़कियों पर हो रहे सेक्स आत्याचार के खिलाफ आवाज़ उठाये। नहीं तो न जाने कितनी रिंकल, दामनी और वेय्जंती सिसकती रहेगी और इनके अपराधी खुला घूमते रहेगे। किसी और पर अत्याचार करने के लिए।

सुधीर मौर्य 'सुधीर'
गंज जलालाबाद, उन्नाव 
भारत 
209869             

         

समलैंगिकता एक अभिशाप

क्या आपने कभी किसी जानवर को अपने समलिंगी के साथ सम्भोग करते देखा है । मुझे पता है कि आप कहेंगे कि नहीं । आप  क्या कहेंगे कि उसके पास बुद्धि नहीं है । विवेक नहीं है । उसको पता नहीं होता कि ऐसे भी होता है या हो सकता है ।  यदि ऐसा नहीं तो फिर आप क्या कहेंगे ? और यदि आप वही कहेंगे जो मैं कह रहा हूँ कि आप कहेंगे तो फिर क्या मनुष्य के पास इश्वर ने यह विवेक बुद्धि इसीलिए दी है कि वह कुछ ऐसा करे जिससे उसके विवेक बुद्धि पर ही प्रश्नचिह्न लग जाए । यदि इस ब्रह्माण्ड मे कोई एलियन आदि नहीं है और समस्त ब्रह्माण्ड में मनुष्य ही सबसे बुद्धिमान व्यक्ति है तो फिर बुद्धिमत्ता का यही अर्थ है कि मनुष्य ऐसा कुछ करता फिरे  जो उसके विवेक पर ही प्रश्नचिह्न लगा दे ।
ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि मैंने परसों दिनांक 27 जनुअरी का आई बी एन चैनल का एक प्रोग्राम देखा है जिसमे कुछ समलैंगिकों से बात कराई गई । उनके एकाकी एवं उपेक्षा भरे जीवन के बारे में बताया गया । प्राकृतिक रूप से तो निश्चित ही जो लोग इस प्रकार से बचपन से ही कुछ अलग सा महसूस करते हैं और नपुंसकों की तरह अलग थलग पद जाते हैं वे सहानुभूति के पात्र हैं क्योंकि इस पर उनका बस नहीं चलता । लेकिन यदि हम इंटर नेट की कुछ अश्लील वेब साइटों को खंगालने निकलें तो पता चलता है कि वहाँ पाशविक प्रवृति तक देखि जाती जाती है और पशु और मनुष्य के पारस्परिक संबंधों के भी उदाहरण मिल जाते हैं । कम से कम पशु तो इतना होशियार नहीं कि  उसे यह सब खुराफात सूझे तो फिर मनुष्य ही क्यों ? मनुष्य को ही यह सब क्यों सूझ रहा है । बहुत से समलैंगिको की बात से पता चला कि किसी के द्वारा अप्राकृतिक सेक्स किये जाने के कारण उनको भी बाद में ऐसी आदत पड़ गयी और वे भी समलैंगिक हो गए । मनुष्य को क्या अब जानवर से सीखना पड़ेगा कि  जीवन कैसे जीया जाता है ? क्या आपने किसी जानवर को कभी बिना मौसम या सीज़न के सेक्स करते देखा है । क्या उसके अन्दर ऐसे परिवर्तन पाए जाते हैं जब मनुष्य को लगे कि  वह जानवर बिना मौसम के भी  सेक्स के लिए आतुर है । मुझे तो नहीं लगा । हाँ , मनुष्य में यह कौशल है कि  वह अपने वैज्ञानिक प्रयोगों से कुछ ऐसा ईजाद कर दे कि  समयांतर पर जानवर में भी ऐसी विकृति आ जाए । आखिर मनुष्य तो मनुष्य है और उसकी बुद्धि जरूरत से कुछ ज्यादा ही नयी नयी चीजों को खोजने में लगी रहती है । लेकिनं हमें क्या ऐसी बुद्धिमत्ता की जरूरत है ?
एक समलेंगिक का कहना था कि  यह समलैंगिक होना भी पृकृति का ही एक स्वरुप है । नहीं , समलैंगिक होना प्रकृति का एक स्वरुप नहीं बल्कि प्रकृति का एक विकृत स्वरुप है । सेक्स को यदि सही मायने में समझा जाएगा तो यह वंश वृद्धि के लिए ही है । सिर्फ आनंद के लिए नहीं । लेकिन कालांतर में मनुष्य ने इसे वंश वृद्धि के बजाय आनंद का ही एक कारण मान लिया और विज्ञान ने नए नए प्रयोग करते हुए संतान उत्पत्ति में अवरोध उत्पन्न करने के नए नए उपकरण कंडोम जैसी चीजों को इजाद कर तथा संतानोत्पत्ति के नए नए टेस्ट ट्यूब बेबी आदि उपजाकर इसे कोरा  आनंद का कारण बनाने में कोई कोर कसर  नहीं छोड़ी है ।
जो मैं कह रहा हूँ वह शोध के आधार पर तो नहीं लेकिन मेरे पुख्ता विचारों पर आधारित है -
जो संताने बाल्यकाल से ही विकृति का शिकार हो जाती हैं उसके पीछे मनुष्य के मानस में पूर्व से ही या तो किसी पीढ़ी में किसी व्यक्ति के मानस में उपजे विकृत विचार या उसके कुकृत्य ही  कारण होते हैं । धीरे धीरे पीढ़ी दर पीढ़ी कुछ पीढ़ियों के बाद उत्पन्न संतानों में अपनी पूर्व पीढ़ियों के इस विकृत विचार के जींस या  फिर उसके माता पिता के इस प्रकार के अप्राकृतिक सेक्स के विचार ही कारण हो सकते हैं कि  संतानें इस प्रकार से अप्राकृतिक मैथुन का शिकार हो जाती हैं । उनमें समलैंगिकता उपज जाती है और वे समाज से अलग थलग हो जाते हैं । यह एक अभिशाप है और कोई भी माँ बाप कभी नहीं चाहेगा कि  उनके बच्चे इस स्थिति को देखें लेकिन यदि वे ऐसे हो भी जाते हैं । निश्चित तौर पर माँ बाप के मन और मानस में व्याप्त विकृति और सुकृति उसके बनते बिगड़ते स्वरुप के पीछे कारण है । इसलिए माँ बाप के लिए बहुत जरूरी है कि  वे अपने मन मानस को इस प्रकार से विकृत होने से बचाएं । यह बहुत जरूरी है कि माता पिता इस बात का भी पूरी तरह से ध्यान रखें कि यदि ऐसा कोई बच्चा है भी तो उसके  मन को कोई इस तरह की ठेस लगे ।
आजकल बच्चे माता पिता से दूरी होते देखकर या माता पिता के व्यस्त कार्यक्रमों से परेशान हैं । मोबाइल हाथ में हैं और इन्टरनेट भी । क्या क्या वे सीख सकते हैं यह सोचकर भी सिहरन हो जाती है । सरकार को जो सख्त कदम उठाने चाहिए वह अपने राजस्व के फेर में नहीं उठाती ।
समलैंगिकों का एक प्रश्न है कि  उनसे समाज दूरी बनाए रखता है । दूरी क्यों न बनाए ? आखिर अपने बच्चों को माँ बाप क्या समझायेंगे उनके बारे में ? स्वस्थ समाज के माँ बाप भी चाहते हैं कि  उनके बच्चे ऐसी बुराइयों से दूरी रखें । नपुंसकता जन्मजात है । समलैंगिकता भी जन्मजात होती है लेकिन समलैंगिकता समाज में क्रितिमतया भी जन्म ले रही है । सरकारी कृपा है । इन्टरनेट है न ।
मनुष्य प्राकृतिक नियमों को ध्वस्त कर रहा है  । सिर्फ अपने सुखों के लिए । सिर्फ भौतिक वस्तुओं में ही विकृतियाँ नहीं पैदा की जा रही हैं बल्कि मानस में भयानक विकृतियाँ पैदा की जा रही हैं जो ज्यादा खतरनाक है । माँ बाप के लिए आज की शिक्षा दीक्षा चुनौती बन कर कड़ी हो गयी है ।
सम्भलिये  और संभालिये ।

नाबालिग युवती से सामूहिक दुष्कर्म नोखा के मैयासर गांव में हुई वारदात

नाबालिग युवती से सामूहिक दुष्कर्म


बीकानेर.  देश मर गेंग रेप के पर्कानो लेकर इतना हंगामा हो रहा है फिर भी दुष्कर्मियों की हरकतों पर नकेल नहीं लगी है . लगता है कानून का दर अब भी नहीं है , इस घटना में बड़े शर्म की बात तो यह है की भाई ने भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को ही कलंकित कर दिया है.
घटना कर्म  के अनुसार नोखा तहसील के  मैयासर गांव में नाबालिग 15  वर्षीय युवती के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ है ,  युवती को जबरन बोलेरो गाड़ी में ले जाकर उसके साथ उसके भाई व उसके साथियों द्वारा सामूहिक दुष्कर्म करने की घटना प्रकाश में आयी है .  पुलिस ने आरोपी किशनलाल को जो  युवती का  ताऊ का  लड़का है को राउंडअप किया है।

नोखा थाना ने दर्ज F .I .R .में  बताया गया है  कि मैयासर गांव में दलित समाज की नाबालिग लड़की शनिवार की रात को करीब 10 बजे अपने सौच के लिए गयी थी । वहां से वापस लौटते समय उसके ताऊ के लड़के किशनाराम मेघवाल, मदनसिंह व दो अन्य ने उसे रोक लिया और जबरन बोलेरो गाड़ी में ले गए। युवती ने अपने बयान में बताया है कि किशनाराम और मदनसिंह ने गाड़ी में उसके साथ बारी-बारी से सामूहिक दुष्कर्म किया। इस दौरान दो अन्य युवक बाहर खड़े रहे। वारदात को अंजाम देने के बाद आरोपी उसे गाड़ी से नीचे पटककर फरार हो गए। रविवार को सुबह युवती के पिता की ओर से नोखा पुलिस थाने में सामूहिक दुष्कर्म का मामला दर्ज करवाया गया है। नोखा के अस्पताल में मेडिकल बोर्ड से युवती का मेडिकल मुआयना करवाया गया। किशनाराम  व मदनसिंह  को राउंडअप कर पूछताछ की जा रही है। अन्य आरोपियों की भूमिका के बारे में भी पता लगाया जा रहा है। पुलिस की कारवाई पर पीड़ित  पक्ष के लोग अंगुली उठा रहें है .  अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (शहर ) ने बताया की लड़की के  १६४ में बयान हो गए हैं . नोखा ठाणे में IPC  की धारा 376 G व SC /ST एक्ट ३  की धारा  1 ,2 ,5 ,7 के तहत मुक़दमा दराज किया गया है
मामले की जांच कर रहीं नोखा की कार्यवाहक सीओ अनुकृति उज्जैनिया ने ने बताया की लड़की की उम्र की पुष्टि स्कूल के सर्टिफिकेट से हो गयी है परन्तु मेडिकल जांच आना बाकी है l  IG पुलिस GOVIND GUPTA बीकानेर ने बताया की दो व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया है परन्तु तीन  अन्य आरोपियों के बारे में अभी तक पता नहीं चला है . दोनों मुलजिमो को कल अदालत मर पेस करके पुलिस रिमांड लिया जाएगा .

शाहरुख खान ने बढ़ाया रहमान मलिक का हौसला !


सीमा पार से पाकिस्तान के गृहमंत्री रहमान मलिक को भारतीय अभिनेता शाहरुख खान की चिंता खूब सता रहा है लेकिन क्या ये वाकई में रहमान मलिक की चिंता है या कुछ और...? ये बड़ा सवाल है।
ये सवाल इसलिए भी उठता है क्योंकि रहमान मलिक अपने मुल्क के वाशिंदों को तो सुरक्षा मुहैया कराने में नाकाम साबित हुए हैं ऐसे में उनका एक भारतीय को वो भी मुसल्मि की सुरक्षा की चिंता करना गले तो नहीं उतरता।
27 दिसंबर 2007 की तारीख तो रहमान मलिक साहब आपको याद ही होगी जब पाकिस्तान में रावलपिंडी के लियाकत बाग में पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की सरेआम हत्या कर दी गयी थी।
इतना काफी नहीं है तो रहमान मलिक साहब एक और तारीख आपको याद दिला देते हैं- 16 अक्टूबर 1951...याद है ये तारीखजब रावलपिंडी के लियाकत बाग में ही पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की हत्या कर दी गई थी। उनके हत्यारों को तो आज तक आप पकड़ नहीं पाए..!
इसके अलावा पाकिस्तान में आए दिन होने वाले बम धमाके और गोलीबारी की घटनाओं की गूंज तो रहमान मलिक साहब आपके कानों तक पहुंचती ही होगी...किस तरह हर रोज पाकिस्तान में निर्दोष लोगों को चाहे वे किसी भी जाति या धर्म के क्यों न हो मार दिया जाता है..!
न जाने कितने ही मंदिर, मस्जिद और दरगाहें तोड़ दी जाती हैं...अमन की बात करने वालों को मौत की नींद सुला दिया जाता है लेकिन आप कुछ नहीं कर पाते..!   
आप करोगे भी क्या..?
आपको तो अमन और चैन की भाषा समझ ही नहीं आती..! आप अपना घर तो संभाल नहीं पाए...चले हो दूसरों को नसीहत देने।
1999 में कारगिल में पाकिस्तानी सैनिक लड़ते हैं तो आप ये कहकर पलट जाते हो कि वे आतंकवादी थे...हमारे सैनिक नहीं थे..! ये बात अलग है कि आपकी ही सेना के एक पूर्व कमांडर बाद में आपके झूठ का पर्दाफाश करते हैं।
भारतीय सीमा पर पाकस्तानी सैनिक घुसकर भारतीय सैनिकों के साथ बर्बरता करते हैं तो आप इसको सिरे से खारिज कर देते हैं...ये बात अलग है कि एलओसी के पास भारतीय क्षेत्र में पाकिस्तानी सैनिकों की बिछाई बारुदी सुरंग सारी कहानी खुद बयां कर देती है।
मुंबई हमले का मास्टरमाइंड हाफिज सईद पाकिस्तान में बैठकर कश्मीर की लड़ाई तेज करने की बात करता है और आप कहते हो कि हाफिज के खिलाफ सबूत नहीं हैं।
कितना झूठ बोलोगे मलिक साहब...खैर इसमें आपकी भी गलती नहीं है...दरअसल ये आप जैसे अमन के दुश्मन पाकिस्तानियों के खून में ही है।
अपने मुल्क में तो आप अमन कायम कर नहीं पाते...या कहें कि करना ही नहीं चाहते लेकिन भारत में अमन और शांति आपको बर्दाश्त नहीं होती..! इसलिए ही आप भारत में आते हो तो मुंबई हमले की तुलना बाबरी विध्वंस से करते हो और पाकिस्तान में बैठकर शाहरुख खान की चिंता करते हो।
आप जितनी मर्जी कोशिश कर लो लेकिन आपके नापाक ईरादे कभी पूरे नहीं होने वाले क्योंकि ये पाकिस्तान नहीं हिंदुस्तान है मलिक साहब हिंदुस्तान..!
ये तो रही रहमान मलिक की बात लेकिन इस मामले में शाहरुख खान की चुप्पी समझ नहीं आती...क्या शाहरुख को मलिक के इस बयान का खुद जवाब नहीं देना चाहिए..?
क्या शाहरुख को वाकई में एक ऐसा इंटरव्टयू देने की जरूरत थी...जो रहमान मलिक को ऐसा बयान देने के लिए प्रेरित करता क्योंकि पाकिस्तान तो ताक में रहता है ऐसे बयानों की...जिसके सहारे वह भारत को निशाना बना सके और मुस्लिमों की भावनाओं से खिलवाड़ कर सके।
शाहरुख कहते हैं कि- मैं कभी-कभी राजनीतिज्ञों के लिए एक बेपरवाह वस्तु हो जाता हूं। वे उन सभी चीजों के लिए मुझे एक प्रतीक के रूप में लेते हैं, जिन्हें वे मुस्लिमों के बारे में गलत समझते हैं।’ 
शाहरुख साहब आपको कभी कभी ऐसे बयानों का दर्द हो रहा है लेकिन आपको भारत के 121 करोड़ लोगों को वो प्यार याद नहीं आता जो आपको हिंदुस्तान में मिलता आया है और मिल रहा है..!
आपकी एक एक झलक पाने के लिए आपके करोडों फैंस की दीवानगी आपको नजर नहीं आती खान साहब..!
कुछ तो बोलो खान साहब...देश की जनता आपको सुनना चाहती है...आपके करोड़ों फैंस रहमान मलिक की टिप्पणी पर आपका मन जानना चाहते हैं...कुछ तो बोलो..चुप रहकर तो आप हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तरह रहमान मलिक का हौसला ही बढ़ा रहे हो।

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धर्म आराधना के साथ राष्ट्र सेवा: देश के साथ षड्यंत्र

धर्म आराधना के साथ राष्ट्र सेवा: देश के साथ षड्यंत्र: पिछले कुछ दिनों से अन्तराष्ट्रीय जगत में   भारत की छवि बहुत ख़राब करने की कोशिस की गयी है । भारत जो की अनेकता में...
अब अपने गृह मंत्री और हमारे हकले खान की इन दोनों करतूतों से मुझे तो एक गहरी षड्यंत्र दिख रहा हैभारत में अल्पसंख्यको को असुरक्षित भाव से भर देना और उसके बाद सीमा पार से एक इनामी जिस परअमेरिका ने इनाम रखा है और कभी भी ड्रोन हमले में ये दोजख में जा सकता है लेकिन भारत के इन दोनोंकपूतो के बयान पर उसने खासा प्रतिक्रिया दी है और हद तो तब हो गयी जब उसने ये मांग कर डाली कीभारत को आतंकी देश घोषित किया जाये और हमारे सत्तासीन नेता जो बस आपस में कुत्ते बिल्ली की तरहबयानबाजी करते है एक रहस्यमयी ख़ामोशी साधे है  अब तो हकले खानगृह मंत्री और आतंकी हाफिजबिल्ला इन तीनो के पीछे से कौन है और उनका मकसद भारत की साफ सुथरी छवि को दुनिया के सामनेधूमिल करना है या फिर भारत में अल्पसंख्यको को असुरक्षित भावना से भर के अपना कोई उल्लू सीधा करनाहै लेकिन कुछ भी हो इस खतरनाक तिगडी के पीछे से कोई और भी जरुर है जो इन पुतलो को नचा रहा है ।.....................http://humanitywithakshay.blogspot.in/2013/01/blog-post_28.html

न्याय


न्याय 

एक देवदूत ने कहा -मैं संसार में जा कर न्याय करना चाहूंगा।भगवान् ने उसे पृथ्वी
पर भेज दिया।वह पृथ्वी पर पहुंचा और मानव से बोला -मैं तटस्थ भाव से न्याय
करने को आया हूँ इसलिए मेरी आँखों पर पट्टी बाँध दो।
  
देवदूत की आँखों पर पट्टी डाली गयी ताकि वह तटस्थ भाव से न्याय कर सके मगर
जैसे ही आँखों पर पट्टी डाली कि वह तटस्थ भाव भूल कर अँधा हो गया।

देवदूत की आँखों पर पट्टी बांधते समय एक और भूल हो गयी सिर्फ आँखे बाँधने को
कहा था मगर आँखों के साथ मानव ने उसके  कान भी बाँध दिये इसलिए वह बहरा भी
हो गया।

देवदूत अब ना देख सकता था और ना सुन सकता था इसलिए वह संवेदना शून्य हो
गया और शब्दों के बंधन में बंध गया।

देवदूत न देख सका,ना सुन सका ,ना सोच सका तो वह चिल्लाया -मैं फैसले कैसे लूंगा ?

मानव ने कहा-चिंता ना करो तुझे वह तर्क और सबूतों की बैसाखी दे देते हैं वो जिधर
घुमे उस पक्ष के फैसले सुना दिया करो अब वह तर्क और सबूतों के पराधीन हो गया।

देवदूत चिल्लाया -यह गलत हो रहा है मानव,मैं देखे बिना न्याय नहीं कर सकता,ये
आँखों की पट्टी हटा दो।

मानव बोला -पट्टी हटाने की जरूरत नहीं है तुझे देखने के लिए गवाह की आँखे दे देते
हैं उनसे देख कर फैसले करना।  

तब से देवदूत गवाह की आँखों से देखने लगा वह न तो जुर्म की गहराई में उतर सकता है
और ना खुद सोच सकता है वह तो कुछ शब्दों में फँस कर तड़फ रहा है।     

28.1.13

राजनाथ- क्या धुलेगा 2009 का दाग ?


2005 में जब राजनाथ सिंह ने भाजपा की कमान संभाली थी तो भाजपा विपक्ष में थी। आम चुनाव में चार साल का वक्त था और राजनाथ सिंह के कंधे पर भाजपा को 2009 में वापस सत्ता में लाने की जिम्मेदारी थी। राजनाथ सिंह को भी पूरा भरोसा था कि वे 2009 में केन्द्र में एनडीए की सरकार बनाने में सफल होंगे लेकिन जब 2009 में चुनाव नतीजे आए तो भाजपा का सत्ता में आना तो दूर उल्टा भाजपा की सीटों की संख्या 2004 के मुकाबले कम हो गई।
2004 में जहां भाजपा ने 138 सीटों जीती थी वहीं 2009 में भाजपा की सीटों संख्या 116 रह गई यानि सत्ता में आने का ख्वाब देख रही भाजपा को 22 सीटों का बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। ऐसे में एक बार फिर से राजनाथ सिंह के हाथ भाजपा की कमान है तो सवाल ये उठता है कि क्या राजनाथ सिंह 2005 से 2009 तक भाजपा अध्यक्ष रहने के दौरान उन पर 2009 के आम चुनाव में असफलता का जो दाग लगा है उसको 2014 में धो पाने में कामयाब होंगे..? वो भी जब उन्होंने पार्टी की कमान ऐसे वक्त पर संभाली है जब 2014 के आम चुनाव में तकरीबन 15 महीने का ही वक्त है और पार्टी  के सामने चुनाव जीतने से बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि आखिर एनडीए की सरकार बनी तो प्रधानमंत्री कौन बनेगा..?
राजनाथ सिंह भले ही पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद 2014 में एनडीए की सरकार बनने का दम भर रहे हों लेकिन राजनाथ के इस दावे की हवा 2009 के आम चुनाव में उनके नेतृत्व में ही भाजपा की करारी हार का जिक्र आते ही निकल जाती है..!
राजनाथ सिंह संघ के भरोसेमंद होने के साथ ही सबको साथ लेकर चलने वाले नेता हो सकते हैं लेकिन उनकी इस योग्यता पर 2009 का आम चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन सवाल खड़ा कर देता है..!
राजनाथ के इस कार्यकाल में उनके लिहाज से अच्छी बात ये है कि उनकी दुश्मन नंबर एक यूपीए सरकार पहले से ही अपने फैसलों को लेकर विवादों के साथ ही उनके मंत्रियों के बयानों को लेकर सवालों में भी है..!
यूपीए-2 सरकार के भ्रष्टाचार, घोटाले राजनाथ सिंह की राह आसान कर देते हैं तो सरकार के खिलाफ अन्ना हजारे, अरविंद केजरीवाल और बाबा रामदेव के आंदोलनों से बदली देश की फिजा भी राजनाथ के लिए संजीवनी साबित हो सकती है। लेकिन राजनाथ सिर्फ इन सब के भरोसा 2014 में पार्टी की नैया पार नहीं लगा सकते इसके लिए राजनाथ को पिछली गलतियों से भी सबक लेना होगा कि आखिर 2009 में ऐसी क्या चूक वे कर गए कि भाजपा को फायदा होने की बजाए 22 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा।    
राजनाथ सिंह को पार्टी के नेताओं को भरोसे में लेने के साथ ही एनडीए में भाजपा के सहयोगियों को भी साथ लेकर चलना होगा फिर चाहे वो सहयोगियों के लिए सीटें छोड़ने की बात हो या फिर नेतृत्व को लेकर उठने वाले सवाल। क्योंकि भाजपा अगर अपनी सीटों की संख्या 200 से ऊपर नहीं ले जा पाती है तो फिर ये सहयोगी ही होंगे जो केन्द्र की सत्ता के रास्ते या तो आसान कर सकते हैं या फिर राह में रोड़े अटका सकते हैं। हालांकि इस काम में वे माहिर माने जाते हैं लेकिन सरकार बनने की स्थिति में पीएम की कुर्सी को लेकर एनडीए में अंतर्कलह को थामना उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी।
इसके साथ ही राजनाथ सिंह पर अपने फायदे के लिए पार्टी हितों को बलि चढ़ाने के साथ ही जातिगत पक्षपात के भी आरोप लगते रहे हैं ऐसे में राजनाथ सिंह को पार्टी अध्यक्ष के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल में इस सब से दूर रहते हुए भी खुद को साबित करना होगा।   
समय कम हैं लेकिन चुनौती बड़ी...देखते हैं राजनाथ सिंह इससे पार पा पाएंगे या नहीं..!

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