अवसर बनाये जाते हैं
अवसर की प्रतीक्षा नहीं की जाती है क्योंकि अवसर अनुकूल या प्रतिकूल हर परिस्थिति में
छिपा हुआ रहता है ,आवश्यकता है परिस्थिति को दृढ़ता के साथ अपने सपने के अनुसार
बदल देने की।
किस्मत अवसर को पहचान कर पकड पाने वाले दिलेर लोगों की सफलता को कहते हैं,इसके
अलावा किस्मत हाथ पर हाथ धरे बैठे लोगों की असफलता को भी कहा जाता है।
हमारी संस्कृति हमें अवसर गढ़ना सिखाती है।रामायण काल में श्री राम का वनवास एक घटना
थी,जिसे दुखद कहा जा सकता है परन्तु श्री राम द्वारा उस परिस्थिति को दृढ़ता से राष्ट्र के हित
में मोड़ देना इतिहास का सुखद अवसर बन गया क्योंकि श्री राम ने वनवास काल के दरमियान
अयोध्या से सुदूर फैल रहे आतंक को समूल नष्ट कर दिया और शांति स्थापित कर दी थी।
कृष्ण का जन्म बहुत विपरीत परिस्थियों में हुआ।माँ -बाप कैद थे और खुद की जान जन्म के
साथ ही जोखिम में थी मगर उन्होंने उन विपरीत परिस्थियों में भरपूर संघर्ष किया और आतंक
का खात्मा किया और शांति की स्थापना की।
हमारे वेद कहते हैं कि देव भी कितना भी प्रतिकूल हो मगर आखिर में वह भी पुरुषार्थी के साथ
आ खड़ा होता है
हमारे शास्त्र कहते हैं तुम्हारा भविष्य तुम्हारे हाथों में है,अपना हाथ जगन्नाथ।पुरुषार्थी व्यक्ति
अपनी हाथों की लकीरे खुद तय करता है और निट्ठलो की लकीरे समय तय कर देता है।
चाणक्य ने नन्द के आतंक को ख़त्म करने का दृढ संकल्प लिया और चल पड़े अवसर को
खोजने,जो व्यक्ति अवसर आने की प्रतीक्षा में बैठा रहता है वह अवसर को पहचान नहीं पाता
है मगर जो अवसर को खोजने निकल पड़ता है उसको अवसर का साक्षात्कार हो जाता है,जैसे
चाणक्य को अवसर चन्द्रगुप्त के रूप में मिला था।वेद का सन्देश है -"चरेवेति,चरेवेति "
अवसर कहाँ पाया जाता है?
अवसर का निवास प्रतिकूल परिस्थितियों में छिपा है,विपरीत दिशा से बहती हवा में छिपा
है ,बारिस को तरसती फटी जमीन पर पड़ा है,भयंकर संघर्ष में छिपा है उसे पकड़ने के लिये
राणा प्रताप ने घास की रोटी में ढूंढा,पृथ्वीराज ने शब्दबाण में ढूंढा,शिवाजी ने साहस में ढूंढा,
सुभाष बोस ने आजाद हिन्द फोज में ढूंढा,गांधी ने अहिंसा में ढूंढा,शास्त्री जी ने "जय जवान-
जय किसान में ढूंढा,कलाम ने विज्ञान में ढूंढा,सचिन ने बल्ले में ढूंढा,साइना ने बेडमिन्टन
में ढूंढा और पाया भी। आवश्यकता है कदम बढ़ाने की ,कहा है-दाना खाक में मिलकर गुलो-
गुलजार होता है।
अवसर कैसे मिलता है?
अवसर का रास्ता असफलताओं के दलदल से होकर गुजरता है,संघर्षों की भीषणता से
निकलता है। पानी में भयंकर जोखिम है मगर तैरना सीखना है तो उसमे उतरना ही पड़ता
है केवल किताबी ज्ञान से तैरना नहीं आ जाता।हमारा समय खराब चल रहा है यह सोच
कर जो अच्छे समय के इन्तजार तक बैठे रहने का निर्णय कर चुके हैं उनके लिए कोई
अवसर दस्तक देने नहीं आता है।जो विषम परिस्थियों में कदम दर कदम बढ़ाते जाते हैं
उनकी पकड़ में अवसर आ ही जाता है।
क्या अवसर दर्शन देता है ?
हाँ, अवसर को देखने के लिए किसी शुभ मुहूर्त की प्रतीक्षा नहीं करनी पडती है,हम हर दिन
अवसर को अपने से निकट गुजरते हुए देख सकते हैं।परीक्षा में प्रथम आने वाले विधार्थी में,
खेल में प्रथम आने वाले खिलाड़ी में,भयंकर मंदी में मुनाफा कमाने वाली कम्पनी के
संचालक में,युद्ध में विजयी होने वाले सैनिक में,निर्धनता को पछाड़ कर धनी बने लोगों में
मिलता ही है,जरूरत है खुली आँखों से देखने की।
अवसर को कैसे पकड़े ?
अवसर को पकड़ने के लिए सिर्फ संकल्प नहीं दृढ़ संकल्प करे,सिर्फ लक्ष्य नहीं पक्का ध्येय
बनाये,कुछ कदम नहीं लगातार चले,डर भय घबराहट को छोड़े और निडर बने,खुली आँखों
से सपने देंखे और उन्हें साकार करने के लिए अध्यव्यवसाय करे ,निरन्तरता बनाये रखे,
खुद में विश्वास रखे,कर्म पर ध्यान दे फल की चिन्ता ना रखे।
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