Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

31.12.10

कहां हैं हम और आप।


अक्सर पुराने साल में जो नहीं कर पाए उसकी शिकायत और नए साल के संकल्प। शायद यही तो है, थर्टी फस्र्ट। लेकिन मुझे लगता है, ऐसा कुछ भी नहीं है। मेरे लिए 2010 वेरी प्रॉसपेरस रहा। हर कदम पर एक नया अनुभव और मेरी यूएसपी सकारात्मकता में बेइमतहां इजाफा हुआ है। 2010 से मुझे न कोई शिकायत रही न रहा कोई गिला। नए साल के लिए कुछ प्लानिंग होनी चाहिेए। लेकिन इस तरफ कुछ करने की योजनाएं हैं। दोस्तों इस साल इस बात पर ध्यान दिया जाएगा कि हम सब मिलकर एक ऐसा ग्रुप बनाएं, जो सोशल स्टडी के साथ ही साथ सिस्टम की खामियों को दूर करने के लिए शोध करे और ऑल्टरनेटिव्स खोजे। आम लोगों की व्यवस्था। सियासी गंदगी को साफ करने के लिए की जाने वाली व्यवस्था के लिए किसी और को छोड़ दें। बाकी के लिए हम रहें. यानी वेरी प्रैक्टिकल सॉल्यूशन। इनमें हमें भारतीय चुनाव प्रणाली से घृणा करने की बजाए एक वैकल्पिक इससे अच्छी व्यवस्था देने की तरफ ध्यान देना है। इस सिलसिले में जल्द ही हम कुछ चुनिंदा लोग मिलकर इस तरह का प्रयास करने जा रहे हैं, जिसमें सारी बातें बहुत ही औपचारिक और कार्यरूप में परिणित होने वाली की जाएंगी। यह पूरी तरह से वर्चुअल वेबसाइट होगी। इसके सदस्यों को हर विषय पर बोलने का हक और उसपर काम करने का आजादी होगी। दोस्तों मुझे भरोसा है इस काम में आपको मजा भी आएगा और अपने अंदर की बात को कार्यरूप में परिणित होते देखकर खुशी भी होगी। हमारा मकसद होगा सिर्फ और सिर्फ प्रैक्टिकल बाते करना और उन्हें कैसे भी करके इंप्लीमेंट करवाना। इस काम में मेरे सीनियर (प्रोफेशनली और एकडेमिक) प्रसून जी का विशेष योगदान मिलने की आशा है। साथ में मेरे अभिन्न रोहित मिश्र की वैचारिक संपदा का हमें सदैव सहयोग मिलेगा। इसकी शुरुआत भले ही यूनिवर्सिटी के पूर्व और वर्तमान छात्रों के संगठन के रूप मे की जाएगी, लेकिन यह वास्तव में देश के हर युवा विचारवान व्यक्ति का अपना मंच होगा।
भाइयों इस विचार के साथ कि जरूर हम इसे वास्तु रूप में बदल पाएंगे। इस विषयक जनवरी में पूरी तैयारी करने और मार्च तक विधिवत लॉन्च करने की तैयारी है। आगे तो फिर मेरी उम्र रही तो जरूर कुछ करेंगे। आपके वैचारिक, निर्देशात्मक और सुझावात्मक सहयोग की अपेक्षा है। इसे लेकर मेल करें या फोन करें या आप एसएमएस भी कर सकते हैं। ०९००९९८६१७९ इ-मेल sakhajee@gmail.com

Lokendra singh rajput

नमन हमारा

लाली छाये दशों दिशा में, जगमग जगमग हो जग सारा |

नवल वर्ष के नव प्रभात को विनत हमारी, नमन हमारा ||

शीतल, मलय सुवासित नंदन वन सा मह मह महके भारत |

कोकिल सा कूके इस जग में खग सा चह चह चहके भारत |

फटे शत्रुओं पर बन घातक ज्वाला भक् भक् भभके भारत |

शौर्य, तेज का तीक्ष्ण हुताशन बनकर दह दह दहके भारत |

तड तड टूटे सारे बंधन जीर्ण शीर्ण हो सारी कारा |

नवल वर्ष के नव प्रभात को विनत हमारी नमन हमारा ||

शेष फिर कभी वंदे भारत मातरम

मनोज कुमार सिंह मयंक

एक हिंदू आतंकवादी

अरी ओ आधी दुनिया....!!

अरी ओ आधी दुनिया....
देख-देख देख ना आ गया इक और नया साल 
और तेरी भी खुशियों का नहीं है कोई पारावार 
यानी कि तुझे भी मनाना है नया साल...है ना....
तो सुन आज की रात होगा 
कई जगह तेरी अस्मत का व्यापार और कई जगह तो 
तेरी मर्ज़ी  के बिना तुझसे व्यभिचार......
धरती के सारे लोग सभी प्रकार के जीवों का असीमित मांस 
तो अपने  सीमित पेट में धकेलेंगे और साथ ही  
यही लोग तेरे गुदाज जिस्म की हरारत के संग 
अपनी असीम यौन-आकांक्षा के मारे हुए 
ना जाने कितने ही खेल खेलेंगे.....
बेशक कई जगह तो तू भी अपनी ही मर्ज़ी से 
इस फड़कते हुए खेल में शामिल रहेगी 
मगर ज्यादातर तो तू,तेरे साथ क्या हुआ 
ये किसी से कह भी ना सकेगी....
अरी ऐ री आधी दुनिया.....!!
क्या तूने कभी यह सोचा भी है कि 
हर कुछ सेकेंडों में तेरे साथ.... 
होता है किसी किस्म का कोई क्रोध, और 
किसी ना किसी किस्म का पारिवारिक वैमनस्य....
हर कुछ मिनटों में कहीं ना कहीं 
हो जाता है तेरे साथ रेप....
नन्ही-नन्ही बच्चियां भी इस कहर से बच नहीं पाती...!!
हर कुछ मिनटों में धरती में कहीं ना कहीं 
तुझमें से कोई कर लेती है आत्महत्या..... 
और तू सोचती है अ आधी दुनिया 
कि कंधे-से-कन्धा मिला रही है तू...!!
अगर इसे ही कंधे से कंधा मिलाना मिलाना कहते हैं 
तो फिर मुझे तुझसे कुछ नहीं कहना अ आधी दुनिया 
फिर भी तुझको इतना कहने से खुद को रोक नहीं सकता 
कि फिर अपने ऊपर हो रहे किसी भी तरह 
के अत्याचार पर चीत्कार मत कर 
तू सबके साथ कंधे से कंधा मिला और 
आज ही सबके साथ नया साल मना 
अपने जिस्म को बोटी-बोटी के रूप में 
तमाम लोगों के सामने परोस....
कहा तो जाता था कभी कि 
पुरुष के दिल पर कब्जा करने का रास्ता 
उसके पेट से होकर जाता है...
मगर अब जब तू खुद इस तरह शरीके-यार है 
सीधा ही मामला सेक्स तक पहुँच जाता है....
अगर तू तैयार है तब तो बहुत अच्छा....
अगर तैयार नहीं भी है तो कोई गम नहीं 
अपनी ताकत के दम पर पा लेगा वह तुझे 
चल-चल अ आधी दुनिया 
तू किसी बात की कोई फ़िक्र मत कर....
आज आधी रात के बाद से ही नया साल है...
तू सब चीज़ों के लिए तैयार हो जा....
और नया साल मना....
अ आधी दुनिया, इस अँधेरे भरे चकाचौंध में 
अपने लिए कोई कोना टटोल 
और उस कोने में नया साल मना 
हाँ तू बस....नया साल मना....!!!!

http://baatpuraanihai.blogspot.com/

हर तरफ चांदनी हो नए साल में

ब्लॉग के सभी मित्रों नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें। नया साल
सभी को यश और स्वास्थ वर्धक हो। इन्हीं भावनाओं के साथ
नए साल पर एक ग़ज़ल पेश है।
हर तरफ चांदनी हो नए साल में
होठों पर रागिनी हो नए साल में।

हर दिशा खुशबुओं से महकती रहे
महके फिर रात-रानी नए साल में।

इस वतन में हैं जितने भी चिकने घड़े
काश हों पानी-पानी नए साल में।

दर्दो-दहशत का नामो-निशाँ ना रहे
हो हवा जाफरानी नए साल में।

अब न मक़बूल फिर हो धमाका कोई
हो यही मेहरबानी नए साल में।
मृगेन्द्र मक़बूल

अंत के बाद शुरुआत से उम्मीद


जनता की कमर तोड़ महगाई के साथ कदम रख लोगों के बिच प्रवेश करने वाले जा रहे बीते वर्ष से शायद सबकी सिर्फ यही उम्मीद थी की इस वर्ष महगाई जैसी बीमारी से लोगों को कुछ राहत जरुर मिलेगी क्योंकि वर्ष २००९ ने जनता को महगाई के आग में बहुत जलाया था लेकिन आग बुझने की आस लगाये बैठी जनता ने अपना एक और वर्ष २०१० के रूप में बिता डाला जिसमे एक तरफ अंत तक राहत के नाम पर सिर्फ महगाई रूपी जहर को पीते-पीते दामो में बढ़ोत्तरी ही देखने को मिली वहीँ दूसरी तरफ पुरे साल ख़ुशी और देश के विकास में टकटकी लगायी आँखों को अंत में महा घोटालों का तोहफा मिला,अब ऐसे में जब अंत ऐसा तो शुरुआत कैसी होगी पता नहीं बस अंत के बाद शुरुआत से उम्मीद ही लगायी जा सकती है!
कहते है जो बच्चो को शिखाया जायेगा वही भविष्य होगा ठीक उसी प्रकार जैसा रास्ता बनेगा वैसा ही भविष्य में रिसल्ट देखने को मिलेगा और फिर इसका प्रमाण अभी देखने को भी मिला जिसमे पुरे वर्ष महगाईं से जूझता २००९ ने बीते वर्ष २०१० को भी पुरे साल देश को महगाई के हिचकोले खिलाता रहा जिसमे एक तरफ पुरे साल जनता बढ़ते दामो से त्रस्त रही वही दूसरी तरफ राजनितिक पार्टियों को भी इस महगाई ने पुरे शाल सिर्फ अपने ही इर्द्द गिर्द रखा,ठीक इसी क्रम में जहाँ एक तरफ जनता और देश को जोर का झटका जोर से देने वाले घोटालो के बिच वर्ष के अंत में प्याज ने काटने के बजाय खरीदते समय ही रोने पर मजबूर कर दिया वही दूसरी तरफ पुरे वर्ष सिर्फ भ्रस्टाचार का ही बोल बल रहा!
बीते वर्ष २०१० ने देश व देश की जनता को कामयाबी के कुछ शुखद पल जरुर दिए जिसको हर हाल में नहीं भुलाया जा सकता और शायद जो कभी भूल भी नहीं सकता क्योंकि वो हमेशा के लिए इतिहास के पन्नो पर सुनहरे अछरों से लिखा जा चूका है जैसे जहाँ एक तरफ पिछड़े राज्य के नाम से चर्चित बिहार को बदल माडल रूप देने वाली बिहार में नितीश सरकार की दुबारा से जोरदार ताजपोशी जिसमे जनता ने अपनी मंशा जाहिर करते हुए स्पस्ट रूप से सबसे कह दिया की उसे राजनीती करने वाले नहीं बल्कि विकास करने वाले मालिक चाहिए वहीँ दूसरी तरफ एक दिविसीय क्रिकेट में दोहरा शतक बना इतिहास रचने वाले मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने इसी वर्ष टेस्ट क्रिकेट में जबरदस्त उपलब्धि हासिल करते हुए शतकों का अर्ध शतक बना देश का सम्मान बढाया,ठीक इसी प्रकार अनेकों उपलब्धियों के साथ साथ एक और उपलब्धि हासिल करते हुए कामन वेल्थ खेलों को संपन्न करा पुरे विश्व में एक अलग पहचान अर्जित करना! जैसे शुखद पलों को वर्ष २०१० ने देश को दिया जिसमे भारत की अलग ही तस्बीर नजर आती है!
अब तो जहाँ एक तरफ महगाई और घोटालो का वर्ष २०१० सबको बिदाई कहने को तैयार है वहीँ दुसरे तरफ नए वर्ष के रूप में २०११ हम सब के बिच दस्तक देने को आतुर है जो अब से कुछ ही घंटों के अन्दर अपने में सबको तब्दील कर देगा लेकिन एक बार फिर इस देश में जीवन यापन करने वाली भोली भली जनता को अपने नए आगंतुक से शायद यही उम्मीद है की शायद ये वर्ष भ्रस्टाचार और महगाई से कुछ राहत दिला पाए! कुछ वर्षों से तोहफों के रूप में चली आ रही महगाई को यह नव आगन्तुक वर्ष कितना अपने बस में कर सकता है यह देखने योग्य होगा जिसका अंदाजा लगाना इतना आसन नहीं,हाँ एक नए वर्ष में कदम रख उम्मीद की किरण जरुर जगाई जा सकती है की इस वर्ष जनता को महगाई से कुछ राहत जरुर मिले!
आप सब को नए वर्ष २०११ की हार्दिक सुभकामनाओं सहित

18 माह तक 21 करोड़ घटनाओं से हिल उठेगी दुनिया
महाभ्रश्टों और स्वार्थी राजनेताओं के नाम होगा नया साल
2011 की आगाज प्राकृतिक आपदाओं राजनैतिक घटनाओं और विस्फोटों से होगी। 18 माह तक छोटी बड़ी 21 करोड़ घटानाओं का मंजर दुनिया देखेगी। घटनाओं के केन्द्र में म अक्षर से षुरू होने वाले राश्ट्र स्थान नगर मुद्दे, मुस्लिम देष, महाषक्ति राश्ट्र, मंदिर, मस्जिद, माओवादी, मुस्लिम आतंकी, महाभ्रश्टाचारी होगें। पूर्व और वर्तमान तानाषाह मन्त्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और महामहिम राश्ट्रपति को आधार बनाकर पराप्रकृति ध्वंस और निर्माण का अनोखा खेल खेलेगी। नये वर्श में सर्वाधिक घटनायें अमेरिका भारत, चीन, लन्दन, पाकिस्तान, रूस, जापान, मुस्लिमराश्ट्र, और नेपाल सहित 13 देषो मे होगी। प्रकृति की सूची में अमेरिका, भारत, और पाकिस्तान का नाम सबसे ऊपर है। इस दौरान दो ट्रेनों दो बिमानों दो जहाजों में भिडन्त होगी। कही विमान गिरगें तो कही ट्रेने पटरी से उतरेगी। सड़को पर मौत दौड़गी अन्य वाहनों में टक्कर होगी। नेताओं में भगदड़ मचेगी। पार्टी बदलेंगे और पद त्याग करेंगे। कैदी फरार होगें। प्राकृतिक आपदाओं से विष्व हिल उठेगा। भूकम्प, तूफान भीशण अग्नि कांड होगे ज्वालामुखी फूटेंगे सुनामी के भी योग है। विनाषकारी घटनाओं दुर्घटनाओं से बचने के लिए दुनिया का प्रत्येक व्यक्ति हर महीने की 3, 4, 5, 10, 13, 18, 19, 20, 21, एवं 27, 28 इन तारीखों में पूरे परिवार के साथ एक ही वाहन में बार बार यात्रा ना करें। सुबह 4 से 6 बजे प्रकृति में असन्तुलन रहेगा तेज गति से बाहन न चलायें और धार्मिक कार्यो मे षादी के बाद लड़की की विदाई न करें।
काग्रेस के लिए विशम समय
महगाई की मार झेल रही काग्रेस के लिए 2011 बेहतर नही है। काग्रेज के युवा चहेरे राहुल गांधी पर नीच का चन्द्रमा हाबी रहेगा। इस दौरान वह कई बार ऐसी टिप्पणी करेंगे जिससे बिवाद उन्हें घेरे रखेगें। राहुल गांधी ने हिन्दू चरम पंतियों को लष्कर से ज्यादा खतरनाक बताकर विनाषकारी घटनाओं के बन्द दरवाजे खोल दिये है। मुस्लिम समुदायों के वोट पाने की खातिर उनके द्वारा की गई टिप्पणी सुरूआत मात्र है। राहुल गांधी की कुण्डली में नीच का चन्द्रमा उनसे इस तरह की और टिप्पणियाँ करायेगा। राहुल गांधी का भाग्योदय विदेष में होगा। राहुल गांधी के षादी के योग 2011 में बनेगें और प्रक्रिया तीन वर्श चलेगी। राहुल गांधी भारत की कमाल सभालेगें तो राश्ट्र समाज के हित में लोक कल्याणकारी कार्य न कर सकेंगे। ऐसे मे राहुल गांधी दाहिने हाथ की छोटी उगली में नौरत्ती का मोती धारण करें तो दुर्योग सुयोग में बदल सकता है। प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल का 10 वाँ वर्श देष काग्रेस पर भारी पड़ेगा। उनके 10 वे वर्श के सासन के तार 10 वीं लोक सभा चुनाव से जुड़े है। जिसमें महिला द्वारा मानव बम्ब के प्रयोग से राजीव गांधी की मृत्यु के बाद 13 वर्श तक सोनिया गांधी को राजनैतिक वनवास भौगना पड़ा घटनाओं का दौर अभी थमने वाला नही है। मार्च, मई, अक्टूबर, नबम्बर, और दिसम्बर माह में सरकारों के पतन नई सरकारों के गठन ध्वंस और निर्माण की जो प्रकिया चल रही है। उसके पीछे हमारे द्वारा जनवरी 1981 को सृश्टिचक्र में प्रक्षेपित म अक्षर 3, 10 और 13 के कालचक्र कार्य कर रहे है। इन माहों मे पराप्रकृति राजनेताओं को कभी षीर्श सत्ता पर बैठायेगी तों कभी रसातल में ढकेल देगी। उक्त माहों में अटल बिहारी वाजपेयी 3 बार प्रधानमंत्री बनें। इस कार्य में म अक्षर 3, 10 और 13 की भूमिका रही। देष में विकास का नया दौर षुरू हुआ। मई माह में मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी के हाथो म अक्षर ने सौपीं दो बार देष की कमान। इन दोनो हस्तियों ने सत्ता प्राप्ति को अपना पराक्रम समझने की भूल की और देष को म नामधारी मँहगाई की दहकती आँग में झोक दिया। इस रहस्य को समझ कर कांग्रेस ने अपने चाल चरित्र और चिन्तन में परिवर्तन न किया तो 10 वे वर्श का षासन देष कांग्रेस नेहरू परिवार के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।
धन्यवाद
आपने हमारा ब्लाॅक पढ़ा। अब हम जो बताने जा रहे है उससे आपकी अन्तर्रात्मा सिहर उठेगी। विकिलीक्स ने तो कुछ नेताओं व्यक्तियों और राश्ट्रों के रहस्य खोले। हम उजागर करने जा रहे है। दुनिया के तानाषाहों, भ्रश्टनेताओं अधिकारियों और राश्ट्रद्रोहीयों के सनसनी खेज राज। जनवरी 1981 में हमारे द्वारा ब्रह्माम्ड स्थित सृश्टिचक्र में प्रक्षेपित म अक्षर 3, 10 और 13 षक्तिध्रवों के रचे विधान से एक सुन्दर विष्व और एक षक्तिषाली भारत निर्मित हो रहा है। भ्रश्टाचार्य, जातिवाद, आतंकवाबद, स्वार्थ की राजनीति और नवसृजन दोनों एक साथ नही चल सकतें। ध्वंस के बाद नवसृजन की प्रक्रिया षुरू होती है। म के प्रहार से मार्च, मई, और 10 के प्रहार से 10 वां माह अक्टूबर तथा 3 के प्रहार से 12 वें माह दिस्बम्बर ं 1$2 त्र 3 में बडे से बड़े भ्रश्टाचारियों, अफसरों, समाज विरोधी ताकतों और महाभ्रश्ट मंत्रीयों मुख्य मंत्रीयों नवसृजन में बाधक ताकतो पर ऐसा कहर टूटेगा कि उनकी सारी खुषियाँ नेस्त नाबूत हो जायेगी। उक्त माहों में सरकारों के पतन नयी सरकारों के गठन ध्वंस और निर्माण की जो प्रक्रिया चल रही है। उसके पीछे म अक्षर 3, 10, और 13 के षक्तिध्रुव कार्य कर रहें है। इन षक्तिध्रुवों का बुरा प्रभाव कीसी भी राश्ट्र व समाज पर नही पड़ेगा। इसका प्रभाव माहपापियों और अत्याचारियों पर ही पड़ेगा। राश्ट्रहित में कार्य करने वालों को परा प्रकृति पुरस्कृत व सम्मानित करेगी। और जनता पर अत्याचार करने वालों को विनाष के अन्धें कुए में ढकेल देगी। म नामधारी प्रिन्ट मीडिया, इलेक्ट्रानिक्स, और ब्लाॅक मीडिया म अक्षर के नव सृजन का हिस्सा है। इन्ही के माध्यम से प्रकृति तीन बार माहपापियों को सचेत करने के बाद मार्च, मई, अम्टूबर, नबम्बर व दिसम्बर माह में घटनाओं को अन्जाम देगीं। इसी उद्देष्य से हम सम्पूर्ण विष्व को अपने ब्लाॅक के माध्यम से भ्रश्टाचारियो को सचेत कर रहे है। न सूधरें तो भुगतेगें परिणाम।
इतिहास गवाह है इनाक के तानाषाह राश्ट्रपति सद्दाम को दिसम्बर 2006 में फांसी पर लटकाया गया।
इतिहास गवाह है भारत का सबसे ज्वलन्त अयोध्या का मंदिर, मस्जिद बिवादित ढांचा दिसम्बर 1992 में ध्वंस की भेट चढा। और 460 वर्श पुराने विवाद का अन्त हुआ।
इतिहास गवाह है 31 अक्टूबर 1984 को भारत की तत्कालिन प्रधानमंत्री इन्द्रागांधी को उनके अंग रक्षकों ने 13 गोलिया मारी थी।
इतिहास गवाह है मई 1991 में राजीव गांधी की मृत्यु के 13 वर्श सोनिया गांधी को राजनैतिक वनवास भौगना पड़ा।
इतिहास गवाह है। अक्टूबर 1999 में पाकिस्तान का तख्ता पलटा और सैनिक षासक मुसर्रफ जबरन पाकिस्तान के राश्ट्रपति बने। कारगिल युद्ध में भारत को दोखा दिया। म अक्षर 3, 10, 13 का उन पर ऐसा कहर टूटा कि मार्च माह में जमीन पर आ गिरे और अब पाकिस्तान में ही पराये है। पाकिस्तान ने आंतकबाद का साथ नही छोड़ा तो वह इसकी आग में खुद भश्म हो जायेगा। पाकिस्तान के लिए आतंकी भश्मासुर साबित होगें। दूसरे राश्ट्रों नेताओं और लोगों को गलत रास्ता दिखाने वाले पाकिस्तान के षासक भटक गयें है और वह खुद ही देष को गर्द में ले जायेगें।
2011 साक्षी बनेगा 13 राजनैतिक हस्तियों के पतन का।
2011 साक्षी बनेगा 13 लोगों को ऊचाइयों तक पहुँचाने का।
2011 साक्षी बनेगा 13 बडे़ घोटालों के उजागर होने का।
2011 साक्षी बनेगा 13 दुस्मन राश्ट्रों की दुरिया कम होने का।
2011 साक्षी बनेगा 13 बड़ी योजनाओं की आधारसिला रखने का।
यही नही आगामी लोकसभा चुनाव तक केन्द्र में सत्तारूढ कांग्रेस नेतृत्व 13 अक्षर वाले सयुंक्त प्रगतिषील गठबंधन और सत्ता से बाहर भाजपा नेतृत्व 13 अक्षर वाले राश्ट्रीय जनतात्रिक गठबंधन के बीच ऐसी जंग छिडेगी कि उसकी गूज 2014 तक पूरे विष्व में सुनायी देगी। अगरेजी के 13 अक्षर वाले मनमोहन सिंह और मँहगाई को आधार बनाकर प्रकति अपना खेल खेलेगी।
और जानकारी के लिए देखें।

Mob:- 9410227070

Email- sagartiwari_mtr@yahoo.in

www.sagartiwari12.blogspot.com

संस्‍कृतपृष्‍ठसंकलक पर इस माह प्रस्‍तुत लेखों की सूची ।।



प्रिय बन्‍धु 

आपके अपने संस्‍कृतपृष्‍ठसंकलक संस्‍कृतम्-भारतस्‍य जीवनम् पर इस माह प्रकाशित लेखों की सूची प्रस्‍तुत कर रहा हूँ  ।।


बृहस्पतिवार, ३० दिसम्बर २०१०

नूतनस्य आगमने पुरातनस्य उपेक्षा न भवेत् ।




मंगलवार, २१ दिसम्बर २०१०

श्री हनुमते नम:


सोमवार, २० दिसम्बर २०१०

संस्‍कृतपरिवार: महती शुभकामना: ददाति ।-राष्‍ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट)



रविवार, १९ दिसम्बर २०१०

शिव स्‍तुति: ।


बृहस्पतिवार, १६ दिसम्बर २०१०

राष्‍ट्रसेवाया: कृते पन्‍थाह्वानम् ।।



बुधवार, १५ दिसम्बर २०१०

रुप्यकैः मनःशान्तिः ।


सोमवार, १३ दिसम्बर २०१०

गोष्ठी् आयोजिता –संस्कृ्तभारती (विश्व-संस्कृत-पुस्तकमेला 






शुक्रवार, १० दिसम्बर २०१०


बृहस्पतिवार, ९ दिसम्बर २०१०

वैदेशिका: अपि प्रार्थनायां भागं गृहीतवन्त


मंगलवार, ७ दिसम्बर २०१०

धनानन्दस्य दानानन्दः


एकम् अद्भुतं कीर्तिमानम्



शुक्रवार, ३ दिसम्बर २०१०

एकं अतिमधुरं गीतम् - श्री हनुमत स्‍तुति: ।

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प्रस्‍तुत लेखों पर अपने विचार प्रकट करके हमारा मार्गदर्शन करें  । 

भवदीय: - आनन्‍द:

30.12.10

आदर्श पुलिस की संकल्पना अब भी अधूरी

राजकुमार साहू, जांजगीर, छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण को दस साल हो गए हैं और प्रदेश ने विकास के कई आयाम गढ़े हैं, लेकिन पुलिस की चुनौती कहीं से कम नहीं हुई हो, नजर नहीं आती। प्रदेश के हालात को देखें तो पुलिस की जवाबदेही पहले से अधिक और बढ़ गई है। बढ़ते औद्योगीकरण के कारण अपराध में वृद्धि हो रही है, दूसरी ओर साइबर अपराध से निपटने राज्य की पुलिस के पास तकनीक का अभाव है। लिहाजा ऐसा कोई मामला आने के बाद पुलिस उस तरीके से छानबीन नहीं कर पाती, जिस तरीके से वे अन्य अपराधों के सुराग तलाशते हैं। छत्तीसगढ़ पुलिस में निश्चित ही इन बीते बरसों में कई परिवर्तन हुए हैं तथा कई उपलब्धि हासिल हुई हैं और संसाधन भी बढ़े हैं, मगर में समाज शांति व्यवस्था बनाने के लिए दिन-रात एक करने वाली पुलिस की स्थिति में कुछ खास बदलाव नहीं हुए हैं। आलम यह है कि बढ़ती बेरोजगारी के कारण युवाओं में पुलिस सेवा के प्रति रूझान तो है, लेकिन उनके मन में एक कसक भी देखी जाती है, जिसे समझकर सरकार को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। तब कहीं जाकर पुलिस के जवान ज्यादा उर्जा के साथ काम करेंगे। आम जनता के समक्ष बरसों से जो धूमिल छवि पुलिस की बनी हुई है, उसे दूर किए जाने की जरूरत है। पुलिस और जनता के बीच समन्वय बनाने और दूरियां कम करने कई तरह के प्रयास किए गए हैं, लेकिन प्रदेश में पुलिस महकमे को वह सफलता हासिल नहीं हो सकी है, जिस तरह की मंशा थी। ऐसे में कहा जा सकता है कि आज भी आदर्श पुलिस की संकल्पना अधूरी नजर आती है। समाज में शांति स्थापित करने पुलिस का बड़ा दायित्व है, लेकिन जिस तरीके से भय, आम जनता के चेहरे पर पुलिस के नाम पर देखा जाता है, इस पर भी विचार किए जाने की जरूरत है कि कैसे आम जनता के मन में पुलिस के प्रति बरसों से बने उस चेहरे को उज्जवल छवि के रूप में उकेरा जाए।
छत्तीसगढ़ के दस बरस के साथ ही पुलिस महकमा का भी दस साल पूरे हो गए हैं और यह बात समझने की है कि केवल दिन बढ़ रहे हैं, लेकिन पुलिस की कार्यक्षमता बढ़ाने किसी तरह के प्रयास नहीं हो रहे हैं। पिछले कुछ सालों में पुलिस के जवानों की भर्ती हुई है, निःसंदेह इससे प्रदेश के बेरोजगारों को लाभ हुआ है, किन्तु आज भी पुलिस विभाग में हजारों की संख्या में अनेक पदों पर रिक्तियां बरकरार है। छग जैसे शांतिप्रिय प्रदेश में नक्सलवाद ने इस तरह से पैर पसार लिया है, जिससे पुलिस तंत्र को मजबूत बनाए जाने की आवश्यकता बढ़ गई है। प्रदेश की जेलों में बंदियों व कैदियों के फरार होने की बात सामने आती रही है, उस पर रोक लगाने तो पुलिस विभाग के ही अधिकारी-कर्मचारियों पर सख्ती बरती जा सकती है। दूसरी ओर यह बात भी स्पष्ट तौर पर कही जा सकती है कि यदि समाज में शांति व्यवस्था बनानी है या फिर अपराध पर रोकथाम करनी है तो यहां एक आम व्यक्ति की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि हजारों की संख्या में रहने वाली पुलिस, भला किसी सहयोग के इन होने वाले अपराधों को कैसे रोके। इस मामले पर गौर करें तो इसके दो पहलू हैं, जनता इसलिए पुलिस से दूर रहती है, क्योंकि कई बार पुलिस का रवैया उसके साथ भी अपराधियों की तरह रह जाता है। ऐसे में होना यह चाहिए कि पुलिस को आम लोगों से जुड़कर कार्य करना चाहिए। जब एक पुलिस आदर्श व्यक्ति की तरह किसी आम जनता से पेश आए तो कहीं भी गुजाइश नहीं बनती कि जनता भी अपने कर्तव्यों से विमुख हो। पुलिस, समाज का एक ऐसा हिस्सा है, जिसकी अहमियत हर पल है, लेकिन जब यह जनता के हितों को दरकिनार कर कार्य करने लगती है तो फिर पुलिस के प्रति लोगों का विश्वास उठना स्वाभाविक ही है। पुलिस की जो धूमिल छवि बनी हुई है, उस पर विचार करना चाहिए और जनता के प्रति सह्दयता की भावना रखनी चाहिए। वे भी मानवीय पहलू से जुड़ी हैं, किन्तु ऐसे कौन से हालात निर्मित हो जाते हैं कि पुलिस के कार्य करने का तरीका दिशाहीन हो जाता है, इस पर भी सोचने की जरूरत है। राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण भी पुलिस अपना कर्तव्य कई बार पूरी तरह से नहीं निभा पाता।
सरकार ने पुलिस को आम जनता के नजदीक लाने तमाम तरह के प्रयास किए हैं, जिसमें आदर्श पुलिस थाना की स्थापना को भी हम एक मान सकते हैं। लगभग हर जिले में एक थाने को आदर्श थाना घोशित किया गया है, मगर इन थानों में आदर्श संहिता के पालन की जो संकल्पना की गई थी, वह दिखाई नहीं देती। आदर्श थानों की हालत भी वैसी है, जेसे अन्य थानों की है। संसाधनों का अभाव भी बना हुआ है। पुलिस विभाग एक ऐसा समाज का अंग है, जिससे हर व्यक्ति जुड़ा हुआ है। संसाधनों की कमी के साथ स्टाफ की कमी, इस विभाग की सबसे बड़ी समस्या व मजबूरी कही जा सकती है, जबकि होना यह चाहिए कि इस विभाग में पर्याप्त पुलिस होनी चाहिए, जिससे समाज में शांति व्यवस्था सुदृढ़ किया जा सके, लेकिन छत्तीसगढ़ बनने के बाद जिस तेज गति से पुलिस विभाग का कायाकल्प होना चाहिए, वह नहीं हो सका है। पिछले सालों में पुलिस विभाग द्वारा आम लोगों के प्रकरणों पर त्वरित निराकरण करने के लिए चलित थाने जैसे आयोजन किए गए, इसके कुछ लाभ भी हुए, मगर जिस तरह की अपेक्षा इस आयोजन को लेकर थी, वह भी पूरी नहीं हो सकी। इसके अलावा कई बार पुलिस को गांधीगिरी भी करते देखा गया, जिसमें लोगों से कानून पालन करने अनुरोध किया गया। इन प्रयासों को पुलिस की छवि को बेहतर बनाने के लिए विभाग के महत्वपूर्ण निर्णयों में माना जा सकता है। समाज में जिस तरह से पुलिस की भूमिका है, उस लिहाज से उनका दायित्व भी बड़ा है, क्योंकि आम जन की सुरक्षा को जो सवाल है।
नए राज्य गठित होने के बाद शुरूआत में तो छत्तीसगढ़ में अपराध का ग्राफ कम ही था, लेकिन धीरे-धीरे यहां बढ़ते औद्योगीकरण के कारण स्थिति गंभीर होती जा रही है। इसके लिए पुलिस विभाग को पर्याप्त बल की जरूरत है। वैसे पुलिस के कार्य करने की अपनी शैली है और यह भी देखने में आता है कि पुलिस कई बार चौबीसों घंटे ड्यूटी पर रहती है, इस दौरान जाहिर सी बात है कि काम के बोझ का असर उनके मन और मस्तिष्क पर पड़ता है। इन्हीं परिस्थितियों से निपटने पुलिस तंत्र को मजबूत बनाने, जनसंख्या के अनुपात में जितनी पुलिस होनी चाहिए, वह नहीं है। आंकड़े यही बताते हैं कि हजारों की जनसंख्या के लिहाज से एक पुलिस तैनात हैं, ऐसे में भला कैसे अपराध में कमी की जाए, यह एक बड़ा सवाल है, जिस पर सरकार को विचार करने की जरूरत है। यह बात तो सही है कि समाज में पहले भी अपराध होते थे, आज भी हो रहे हैं, मगर यह बात भी समझने की है कि यदि तंत्र मजबूत हो तो ऐसी किसी अप्रिय गतिविधियों को रोका जा सकता है। फिलहाल यही बात कही जा सकती है कि पहले तो राज्य में पुलिस की संख्या में वृद्धि की जाए तथा उन्हें संसाधन से पूरी तरह लैसा किए जाए। इसके अलावा पुलिस की छवि में आदर्श की भावना लाने नैतिक शिक्षा की आवश्यकता से इंकार नहीं किया जा सकता। देश का 26 वां राज्य छत्तीसगढ़ को विकास की दृष्टि से देखें तो यह प्रदेश अभी शिशु अवस्था में है। खनिज संपदा से परिपूर्ण इस राज्य को विकास के नए आयाम गढ़ने हैं। आज के आधुनकि और प्रौद्योगिकी युग में संचार के साधनों में वृद्धि हुई है, वहीं संसाधनों के अभावों के बीच अपराधों को रोकने पुलिस कामयाब नहीं हो रही है। इस छोटे से प्रदेश में जिस तरह से साइबर अपराध के मामले बढ़ रहे हैं, उस लिहाज से नई तकनीक की कमी, प्रशिक्षण और जानकारी का अभाव, पुलिस की कार्यक्षमता को कम कर रही है। ऐसे में विचार करने वाली बात है कि कैसे इन सभी चुनौतियों से निपटा जाए। सरकार को भी इस दिशा में पहल करनी चाहिए और कुछ ऐसी नीतियां बनानी चाहिए, जिससे पुलिस की छवि भी बदले तथा समाज में शांति भी कायम रहे है।

भड़ास blog: किसी थाने का सिपाही , उठवा के नदी में तो डलवा ही देगा ,""

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पड़ोसियों से सावधान-ब्रज की दुनिया

भाजपा के शीर्षस्थ नेता अपनी विशेष भाषण-शैली के लिए प्रसिद्ध अटल बिहारी वाजपेई जब प्रधानमंत्री थे तब अक्सर कहा करते थे कि आप मित्र बदल सकते है,शत्रु भी बदल सकते हैं मगर पड़ोसी नहीं बदल सकते.लेकिन मेरा दुर्भाग्य कुछ ऐसा रहा है कि हर साल-दो-साल पर मुझे नए पड़ोसियों का सामना करना पड़ता है.वर्ष १९९२ से ही मेरा परिवार किराये के मकानों में रहता आ रहा है.एक-दो सालों तक तो मकान मालिक के साथ हनीमून पीरियड चलता है और फ़िर उसका हमसे मन उबने लगता है.फ़िर वह भाड़ा बढ़ाने की बात करने लगता है और हम भाड़ा में मनमाना वृद्धि करने के बजाए डेरा ही बदल लेते हैं.एक झटके में मोहल्ले का नाम,पता-ठिकाना सब बदल जाता है और साथ ही बदल जाते हैं पड़ोसी भी.१९९२ में जब हम स्वर्ग से सुन्दर अपने गाँव को छोड़कर महनार आए तब हमारे मोहल्ले यानी चकबंदी कालोनी से ज्यादा वी.आई.पी. कोई मोहल्ला नहीं था.एक पूर्व प्रिंसिपल,दो प्रोफ़ेसर और एक बैंक क्लर्क हमारे पड़ोसी बने.प्रिन्सिपलाईन को पड़ोसियों से सामान मांगने की बुरी बीमारी थी.उनकी दूत यानी नातिन भी एक ही जिद्दी थी.मना करने पर कहती कि नहीं देंगे कैसे?मैं तो चीनी या चायपत्ती या कुछ और लेकर ही जाऊंगी.एक और पड़ोसी थे प्रोफ़ेसर साहब.आमदनी अठन्नी और खर्चा रूपया वाले आदमी थे.रंग भैंसे से भी ज्यादा गहरा.उनके एक सहकर्मी की राय थी कि जब वे पान खा लेते हैं तो ऐसा लगता है जैसे किसी ने भैंसे की लाद में भाला मार दिया है.उनकी पत्नी को एक अजीबोगरीब बीमारी थी.अगर उनका कोई बच्चा टी.वी. देखने दूसरे घरों में या सिनेमा हॉल में सिनेमा देखने चला जाता तो रात के १२ बजे भी पूस में भी उसे बिना स्नान के घर में नहीं घुसने देती.कोई अगर उनका स्पर्श कर जाता तो ठण्ड की परवाह किए बिना शीघ्र स्नान कर लेतीं.यहाँ तक कि कोई अगर उनके बिछावन पर बैठ जाता तो बिछावन बदल देतीं और अगर कोई कुर्सी पर बैठ जाता तो कुर्सियों को भी चाहे कंपकंपाती ठण्ड ही क्यों न हो धोने लगतीं.दुर्भाग्यवश उनकी इसी छुआछूत की बीमारी के चलते हमें डेरा-परिवर्तन करना पड़ा.हुआ यह कि एक दिन माँ ने मेरे नवजात भांजे का पेशाब किया हुआ बिछावन सार्वजनिक अलगनी पर सूखने को डाल दिया.इस पर वे इतनी आगबबुला हुईं और गालियों की ऐसी बौछार कर दीं कि हमने डेरा बदल लेने में ही अपनी भलाई समझी.गाँव से हम शांति की तलाश में ही शहर आए थे और अशांति यहाँ भी पीछा नहीं छोड़ रही थी सो हमने ही उनसे पीछा छुड़ा लिया.वहीँ पर एक ऐसे पड़ोसी भी थे जो प्यादा से फर्जी हुए थे इसलिए जनाब हमेशा टेढो-टेढो जाते थे.पहले स्टेट बैंक में चपरासी थे अब क्लर्क कम कैशियर बन गए थे.दुर्योगवश उनकी सुन्दर बिटिया को हमसे प्रथम दृष्टया प्रेम हो गया वो भी एकतरफा.मुझे तो वो फूटी आँखों भी नहीं सुहाती थी.गाहे-बगाहे मेरे इर्द-गिर्द मंडराती रहती.अंत में जब मेरी ओर से कोई ग्रीन सिग्नल नहीं मिला तो जा पहुंची मेरी माँ के पास.एक सप्ताह बाद उसकी शादी होनी थी और मोहतरमा फार्म रही थीं कि काकी अगर आप मुझे बहू बनना स्वीकार कर लें तो मैं यह शादी रूकवा दूँगी.माँ ठहरी ग्रामीण संस्करोंवाली महिला सो आश्चर्यचकित-सी रह गई और साफ तौर पर मना कर दिया.नए डेरे में भी हम ज्यादा समय तक नहीं टिक सके.यहाँ से भागने का कारण बनी मकान-मालकिन जो पूरे महनार में अपनी यौन-स्वच्छंदता के लिए बदनाम थी.इस डेरे में छः महीने रहने के बाद हमने सिनेमा रोड में किराये पर मकान ले लिया.वर्ष १९९५ की बात है तब हम इसका ६०० रूपये मासिक किराया देते थे जो पूरे महनार में सबसे ज्यादा था.यहाँ निकट के पड़ोसी नहीं थे.दूर के दो पड़ोसी थे और दोनों प्रोफ़ेसर थे.इन दोनों में से जो निकट में थे एक पुरसाहाल इन्सान थे.परन्तु उनके पूरे परिवार को अपनी बर्बादी का रंचमात्र भी अफ़सोस नहीं था.अफ़सोस था तो इस बात पर कि कोई दूसरा प्रोफ़ेसर आगे कैसे बढ़ रहा है.दिनभर वे और उनकी पत्नी निंदा-पुराण के पाठ में लगे रहते और हमें भी अक्सर उनलोगों के सौजन्य से निंदा रस में सराबोर होने का दुर्लभ अवसर मिल जाता.ईधर ज्यादा दूर के पड़ोसी प्रोफ़ेसर साहब का बेटा मेरा मित्र बन गया था,अच्छा या बुरा पता नहीं.वह मेरी जेब में से १-२ रूपया का सिक्का जबरन निकल लेता और उसका गुटखा खा जाता.मैं इस कैंसरकारी आत्मभोज में शामिल होने से मना कर देता तो वह और भी खुश होता कि हिस्सा नहीं बाँटना पड़ेगा.बाद में मेरी छोटी दीदी की शादी में उसने शराब पीकर जो नाटक किया कि दोस्ती दुश्मनी में तो नहीं बदली लेकिन टूट जरूर गई.उसके बाद फ़िर से हमारा घोंसला बदला और इस बार निकट पड़ोसी बने दो परिवार.एक तो बनिए का परिवार था जिसकी चौक पर दुकान थी किराने की.बनिए की बहू उन्मुक्त स्वभाव वाली थी.चापाकल पर पूरी तरह अनावृत्त होकर स्नान करती और मुझे छेड़ा भी करती.मैं अब तक जवान हो चुका था सो यह तो नहीं कह सकता कि वह मुझे अच्छी नहीं लगती थी लेकिन मेरा कभी साझेदारी में विश्वास रहा ही नहीं है.एक अन्य पड़ोसी बिजली विभाग में एस.डी.ओ. थे.दिनभर घूस खाते लेकिन पेट नहीं भरता था,आत्मा भी अतृप्त रह जाती थी.सो एक दिन हमारे गरीब मुसलमान पड़ोसी का मुर्गा चुरा बैठे और रंगे हाथों पकड़ भी लिए गए.परिणाम यह हुआ कि उन्होंने महनार से तबादला ही करवा लिया.बाद में सामनेवाली भाभी के परिवार ने भी अपना आशियाना बदल लिया और करीब डेढ़ साल तक तक हमें पड़ोसीविहीनता की दर्दनाक स्थिति में गुजारा करना पड़ा.उसके बाद मेरा परिवार हाजीपुर आ गया.यहाँ भी हम तीन बार डेरा बदल चुके हैं.वैसे संयोग यह भी रहा इन डेरों में रहते हुए किसी पड़ोसी से हम ज्यादा घुलमिल नहीं पाए.खैर पिछले डेरे में जरूर दो पड़ोसी मिले थे.एक प्रोफ़ेसर था वो भी गणित का.परीक्षा के लिए आवेदन करते समय भाई साहब मेरे पास आते उम्र निकलवाने.हाँ उनका हिसाब-किताब तिकड़म में खूब अच्छा था और दिनभर इसी चक्कर में मोटरसाइकिल का धुआं उड़ाते रहते.उनकी पत्नी को भी मांगने की बुरी आदत थी जिससे मेरी माँ बहुत परेशान रहा करती.नीचे के माले में एक शिक्षिका का सपति निवास था.इन दिनों बिहार में मुखियापति,पंचायत सदस्यपति जैसे शब्दों का खूब प्रचलन है.तो ये श्रीमान जीवन में कुछ नहीं कर सकने की मजबूरी के कारण शिक्षिकापति कहलाने लगे.चपर जिले के हैं और राजपूत भी हैं इसलिए झूठ बोलने को अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते हैं.उनकी पत्नी उत्क्रमित मध्य विद्यालय,दाऊदनगर हरिजन,अंचल-बिदूपुर,जिला-वैशाली में प्रधानाध्यापिका हैं.अजी प्रधानाध्यापिका तो नाममात्र की हैं वास्तव में वे घोटाला-विशेषज्ञ हैं.दोनों परले दर्जे के कंजूस भी हैं.मैडमजी के स्कूल में ७वीं और ८वीं कक्षा के छात्र-छात्राओं को पिछले सालभर से सिर्फ कागज पर ही खिचड़ी खिलाई जा रही है.भाई साब यह तो बस नमूनाभर है उनकी कलाकारी का और भी अनगिनत मद हैं उनकी अवैध कलाकारी के उनके स्कूल में.सो वे घोटाला कर रही है और पति उसका हिसाब रखते हैं.ठीक उसी तरह जैसे बिहार में मुखियापति आदि पति रखते हैं.मियां अक्सर घर में पड़े रहते हैं और बीबी स्कूल में घोटाला-प्रशासन चलती हैं.हीनभावना से ग्रस्त मियां पूछने पर खुद को भी शिक्षक बताते हैं.घर में पड़े-पड़े बोर हो जाते तो पहुँच जाते हमारे पास हमें बोर करने.फ़िर शुरू होता पुत्रचरितमानस और रिश्तेदार पुराण.उनके अनुसार उनके बेटे दिल्ली में लाखों कमाते हैं लेकिन श्रीमान रहते हैं हाजीपुर में किराया के मकान में.न जाने कौन-सी मजबूरी है?हर महीने कहीं-न-कहीं जमीन देखते हैं लेकिन खरीदते नहीं हैं.अब मैं आता हूँ उन पड़ोसियों पर जो वर्तमान में मेरे पड़ोसी हैं.मेरे बगलवाले कमरे में मेरी पड़ोसन रहती है तीन बड़े-बड़े बच्चों के साथ.उसे हरदम बोलने की बीमारी है और वह भी फुल वॉल्यूम में.जब मैं प्रभात खबर में था तो उसने मेरी नींद हराम कर दी थी.सुबह जब मैं सोने जाता तब उसके जागने और बकवास शुरू करने का समय हो जाता.बार-बार मना करने का भी कोई असर नहीं हुआ तो मैंने हारकर नौकरी छोड़ दी.उस पर श्रीमतीजी को गंदे फ़िल्मी गाने सुनने का चस्का लगा हुआ है.मुन्नी बदनाम हुई उनके घर में इस प्रकार बजता है और वे इसे इस तरह भाव-विभोर होकर सुनते हैं जैसे हनुमान जी या दुर्गा माता की आरती हो.डी.वी.डी. पर अश्लील गाना बजने पर उनके पुत्रगण भी साथ-साथ गाते रहते हैं.मना करने पर बेटे अगर मान भी गए तो वह कहती है बंद मत करना मैं सुन रही हूँ.उनके तीनों जवान हो चुके बेटे रूम से लेकर मकान के दरवाजे तक हाफ कच्छा पहने चहलकदमी करते रहते हैं.शायद यह उनका लेटेस्ट फैशन है या फ़िर युगों का सफ़र दिनों में व्यतीत करते हुए उल्टी दिशा में एंटीक्लॉकवाईज सफ़र करते हुए वे फ़िर से आदिम युग में पहुँच गए है.वह पहले से मकान में रहने के कारण हमारे साथ कुछ इस तरह से पेश आती है जैसे वही मकान-मालकिन हो.जबकि हमारे वर्तमान मकान-मालिक परिवारसहित दिल्ली में रहते हैं.पड़ोसन का बड़ा बेटा चाचा की कमाई पर मोटरसाईकिल का धुआं उडाता है.उसकी कथित तौर पर ग्राम-फतिकवारा जो देसरी स्टेशन के पास है के रहनेवाले एक नवनियुक्त आई.ए.एस. से जान-पहचान है.गरीब कुर्मी परिवार में जन्मे इस युवक ने जब सिविल सेवा परीक्षा पास करने का कारनामा किया था तो जिले के सभी समाचार-पत्रों ने उसे प्रमुखता से छापा था.जैसा कि यह लड़का बताता है कि फैक्टरी खोलने के लिए जिलाधिकारी महोदय को हाजीपुर में एक बीघा जमीन की तलाश है.इतनी जल्दी इतनी तरक्की!श्रीमान जब पास हुए थे तब तो उनके सिर पर पक्की छत तक नहीं थी.बतौर मेरा पड़ोसी अगर सौदा पट गया तो उसे दलाली में १ लाख रूपये कट्ठा की दर से २० लाख रूपये बैठे-बिठाए मिल जाएँगे.वैसे मैं यह बताता चलूँ कि मेरे वर्तमान मोहल्ले संत कबीर नगर के ज्यादातर लोग जमीन की दलाली में ही लगे हैं.ठगी उनका धर्म है और बेईमानी उनका ईमान.तो भाइयों लगातार बदलते रंग-बिरंगे पड़ोसियों से परेशान होकर हमने खुद की जमीन खरीद ली है और अब जनवरी-फरवरी से घर बनना शुरू करनेवाले हैं.वैसे तो मैं समझता हूँ कि मेरी व्यथा से जो सीख लेनी चाहिए आपने स्वतःस्फूर्त भाव से थोक के भाव में ले ली होगी.फ़िर भी आपको सावधान करना अपना लेखकीय धर्म समझते हुए मैं आपको लाख टके की सलाह बिलकुल मुफ्त में देना चाहूँगा कि भाई मेरे,बहना मेरी जब भी किराये का मकान देखने जाना तो मकान में कितनी जगह है और वास्तुशास्त्र के मुताबिक है या नहीं बाद में देखना;पहले यह देखना कि पड़ोसी कौन लोग हैं और कैसे लोग हैं.तो भाइयों और भाइयों की बहनों पड़ोसियों से सावधान!!!

किसी थाने का सिपाही , उठवा के नदी में तो डलवा ही देगा ,""

कैसा है ये जिंदगी का सफ़र ,

रात के अंधेरे में , 
क्या क्या सोचता जाता हूँ 

कभी लगता है सब ख़त्म हो गया ,
फिर आशा की  एक नयी किरण ,
आके  कानो में कह जाती है ,
जिए जा , जिए जा ,

अभी  तो इस संसार में ,
बहुत कुछ  करना बाक़ी  है .

तभी किसे कोने से एक विचार जन्मता है ,
मरने के बाद कौन फूंकेगा तुझे ,

अपना कोई सगा  ना होने की  दशा में शायद ,
नगर निगम या और  कोई स्वयंसेवी संस्था 
तेरी लाश उठा के अंतिम संस्कार ना भी  करेगी , 

 "" तो किसी थाने का सिपाही ,
उठवा के नदी में तो  डलवा ही देगा ,""

चिंता मत कर अभी आज कोई साथ  दे ना दे , 
मुर्दे के नाम पर कफ़न देने वालों की  कमी नहीं इस देश में .
इसलिए बस आज जिए जा------ जिए जा ,
कल की चिंता  को  भुला    के , बस जिए --- जा --जिए जा 

पत्निया " स्लीपिंग पिल्स" का विकल्प बन गई हें !


Free calling in Gmail extended through 2011



When we launched calling in Gmail back in August, we wanted it to be easy and affordable, so we made calls to the U.S. and Canada free for the rest of 2010. In the spirit of holiday giving and to help people keep in touch in the new year, we’re extending free calling for all of 2011.

In case you haven’t tried it yet, dialing a phone number works just like a regular phone. Look for “Call phone” at the top of your Gmail chat list and dial a number or enter a contact’s name.


To learn more, visit gmail.com/call. Calling in Gmail is currently only available to U.S. based Gmail users.

Happy New Year and happy calling!

इज्ज़त के नाम पर बलि चडा दी गई बेटी की पुकार

इज्ज़त के नाम पर बलि चडा दी गई बेटी की पुकार ...................................
बापू मेरे बतला दे मुझे ,
भाई मेरे तू ही बता मुझे ,
अंगुली पकड़ चलना सिखलाया ,
बांहों का झूला बना कर झुलाया ,
उस हाथ को तेरे दर्द न हुआ जरा ?
उस अंगुली में टीस न उठी जरा ?
बापू मेरे बतला .........................
चोट लगी जब मुझे कहीं ,
आंख तेरे में नीर भरी ,
उस दिल में तेरे हुक न उठी जरा ?
आंख में तेरे पीर न जगी जरा?
बापू मेरे बतला .......................
प्यार क्या तूने कभी न किया ?
मेरे प्यार ने क्या जुर्म किया ?
मुझे मार कर कौन सी इज्ज़त बचाली जरा ?
क्या जेल जाकर इज्ज़त कमा ली जरा?
बापू मेरे बतला दे मुझे ,
भाई मेरे तू ही बता मुझे...................
संगीता मोदी "शमा"