इज्ज़त के नाम पर बलि चडा दी गई बेटी की पुकार ...................................
बापू मेरे बतला दे मुझे ,
भाई मेरे तू ही बता मुझे ,
अंगुली पकड़ चलना सिखलाया ,
बांहों का झूला बना कर झुलाया ,
उस हाथ को तेरे दर्द न हुआ जरा ?
उस अंगुली में टीस न उठी जरा ?
बापू मेरे बतला .........................
चोट लगी जब मुझे कहीं ,
आंख तेरे में नीर भरी ,
उस दिल में तेरे हुक न उठी जरा ?
आंख में तेरे पीर न जगी जरा?
बापू मेरे बतला .......................
प्यार क्या तूने कभी न किया ?
मेरे प्यार ने क्या जुर्म किया ?
मुझे मार कर कौन सी इज्ज़त बचाली जरा ?
क्या जेल जाकर इज्ज़त कमा ली जरा?
बापू मेरे बतला दे मुझे ,
भाई मेरे तू ही बता मुझे...................
संगीता मोदी "शमा"
30.12.10
इज्ज़त के नाम पर बलि चडा दी गई बेटी की पुकार
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4 comments:
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Regards
v.v.good
बहुत मार्मिक...समझ नहीं आता कि समाज के झूठे आधारहीन रिवाजों के लिए कोई पिता अपने बच्चों को स्वयं कैसे मार सकता है. शर्मनाक प्रथा..यही कामना है कि नववर्ष में ये बुराइयां लुप्त हो जाएँ.
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