फोर लेन विवाद
अपने ही प्रस्ताव से लागत की आड़ लेकर क्यों मुकर रहा है भूतल परिवहन मन्त्रालय?
फ्लाई ओवर बनाने का पहला विकल्प दिया था कोर्ट में :बी.ओ.टी.में बन रही हैं सड़क : लागत का पैसा टोल टेक्स से जनता से किया जायेगा वसूल : मन्त्रालय को ठेकेदारों को दिये जाने वाले हर्जाने की करना चाहिये चिन्ता
सिवनी। उत्तर दक्षिण गलियारे के विवाद में सरकार ना जाने क्यों लागत की चिता कर रही हैं। सरकार ठेकेदारों को देने वाले हर्जाने की राशि कम करने पर ध्यान देना चाहिये जो कि सरकार को ही देना होगा।
उल्लेखनीय हैं कि प्रधानमन्त्री स्विर्णम चतुZभुज योजना के अंर्तगत निर्माणाधीन उत्तर दक्षिण गलियारे के तहत लखनादौन से खवासा तक जिले में लगभग 106 कि.मी. फोर लेन सड़क निर्माण का काम हो रहा था। केन्द्र सरकार के भूतल परिवहन मन्त्रालय के अंर्तगत राष्ट्रीय राजमार्ग विकास प्राधिकरण के नियन्त्रण में यह काम प्रारंभ हुआ था। यह समूचा कार्य बी.ओ.टी. योजना के तहत हो रहा था जिसमें ठेकेदार को खुद सड़क बना कर टोल टेक्स वसूल करना था और फिर उसे निर्धारित समयावधि के बाद राष्ट्रीय राजमार्ग विकास प्राधिकरण को हस्तातरित कर देना था। इसमें सरकार की कोई लागत नहीं लगनी थी और पूरी वसूली जनता से टोल टेक्स के द्वारा की जानी थी।
इस काम को करने वाली दोनों निर्माण ऐजेिन्सयों ने तेजी से अपना काम किया और जिस हिस्से की मंजूरी वन एवं पर्यावरण विभाग से नहीं मिली थी उसे छोड़कर बाकी पूरा काम निर्धारित समयावधि से काफी पहले ही पूरा कर लिया था। इसी बीच एक एन.जी.ओ. ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी जो कि विचाराधीन हैं।
केन्द्र शासन के दो विभागों,भूतल परिवहन एवं वन एवं पर्यावरण मन्त्रालय में एक राय ना बनने के कारण मामला आज भी लंबित हैं। संप्रग शासन काल के पहले कार्यकाल में कोर्ट में जो जवाब प्रस्तुत किया गया था उसमें विवादास्पद 9 कि.मी. में पहले विकल्प के रूप में फ्लाई ओवर बनाने का प्रावधान किया गया था। जिस पर वन एवं पर्यावरण विभाग पहले सहमत नहीं हुआ था। लेकिन नागरिकों के ऐतिहासिक आन्दोलन और जनमंच के इंटरवीनर बनने के बाद जब मामले का दूसरा पक्ष न्यायालय के सामने आया और कोर्ट ने जब आम सहमति बनाने के निर्देश दिये तो वन विभाग फ्लाई ओवर के विकल्प पर सहमत हो गया लेकिन ना जाने क्यो अपने ही द्वारा सुझाये गये विकल्प पर अब भूतल परिवहन मन्त्रालय ही सहमत नहीं हैं। उनके द्वारा तर्क दिया जा रहा हैं कि 900 करोड़ रुपये के फ्लाई ओवर के बजाय 300 करोड़ रुपये से वर्तमान के रोड़ के चौड़ी करण से ही काम चल सकता हें तो 900 करोड़ रुपये क्यों खर्च किये जाये। वन एवं पर्यावरण विभाग भी इसी परियोजना के एक अन्य हिस्से की अनुमति जबरन ही अटकाये हुये हैं जबकि वह हिस्सा कोर्ट में विवादास्पद भी नहीं हैं। यदि यही काम निपट जाता तो कम से कम एक ठेकेदार का काम पूरा हो जाता और सरकार को देने वाला हर्जाना कुछ तो कम होता।
इस मामले में सहज ही यह सवाल उठ खड़ा होता हैं कि जब रोड बनाने का पूरा काम बी.ओ.टी.के तहत हो रहा हैं तो भूतल परिवहन मन्त्रालय को लागत की क्यों चिन्ता करनी चाहिये अन्त में टोल टेक्स के द्वारा जनता से ही वसूल किया जाना हैं। जबकि सरकार के होने वाले विलंब के कारण भू तल परिवहन मन्त्रालय को कों लगभग 37 लाख रुपये प्रति दिन के हिसाब से हर्जाना देना होगा जो कि अब तक 320 करोड़ रुपये हो चुका हैं।
जानकार लोगों का मानना हैं कि जब सिवनी के नागरिक जनमंच के नाम से इंटरवीनर बने थे उस समय हालात यह थे कि सिवनी नागपुर राष्ट्रीय राजमार्ग क्रं 7 एक षड़यन्त्र के तहत बन्द कर दिये जाने की कगार पर था।लेकिन कोर्ट में दूसरे पक्ष के सामने आने के बाद अब यह तो सुनिचित सा लगता हैं कि वह षड़यन्त्र अब सफल नहीं हो पायेगा।
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