चित्र हो या खबर किसी की जान नहीं लेते। लेकिन जिस तरह कलम के सिपाहियों की उनकी खबर या कार्टून उन्हीं के जान की दुश्मन बन रहे है, उससे तो यही कहा जा सकता है कलम की ताकत बंदूक या लालफीताशाही के उत्पीड़नात्मक रवैये से कहीं ज्यादा है। यह सही है कि किसी की अभिव्यक्ति पर आपकी असहमति हो, आप उसे मानने या न मानने के लिए भी तो स्वतंत्र है, लेकिन विरोधी स्वर को हमेशा-हमेशा के लिए खामोश कर देना कहीं से भी न्याय संगत नहीं है। परंतु सब कुछ हो रहा है
सुरेश गांधी