दोस्तों, हर इंसान रात को सोते में स्वप्न देखता है, जिनमे से अधिकतर तो वह सुबह उठते ही भूल जाता है, मगर कोई-कोई स्वप्न ऐसा भी होता की लाख कोशिश करने के बाद भी इन्सान उसे कभी भुला नहीं पाता, और स्वप्न उसे इतना बैचेन कर देता है कि, इन्सान उस स्वप्न को सभी को बताने की ठान लेता है! ठीक कुछ यही मेरे साथ हुआ है और मैं भी आपके सामने अपने एक स्वप्न को पेश कर रहा हूँ! बात कुछ दिन पहले की है मैं गहरी नींद में सोया हुआ था! अचानक मैं सपनों की दुनिया में चला गया तो मैंने देखा,
”चारों तरफ पहाड़ ही पहाड़ हैं, इन्ही पहाड़ों के मध्य” एक वृद्द महिला मेली- कुचेली, पैबंद लगी, सफ़ेद धोती में अपनी जर्जर काया को समेटे नज़र आई! न जाने ये कौन है, और इतनी रात गए ये यहाँ क्या कर रही है, यही जानने कि उत्कंठा से मैं महिला के निकट जा पहुंचा, उस वृद्द महिला के शरीर पर ज़ख़्म ही ज़ख़्म थे, वो रो रही थी मगर आँखों में आंसू नहीं थे, चेहरे से एक तेज सा नज़र आ रहा था! अचानक उस महिला ने अपने दोनों हाथों आसमान की ओर उठाए और जोर-जोर से भगवान को पुकारने लगी!
“त्राहि माम प्रभु त्राहि माम, मेरी रक्षा करो प्रभु मेरी रक्षा करो! “हे परम पिता ब्रह्मदेव, मैं ब्रह्मपुत्री हूँ तात:! हे देवादिदेव महादेव- मेरी पुकार सुनो, हे मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम कहाँ हो प्रभु, मुझ दुखियारी पर दया करो दीनानाथ!
“हे पितामह मैं आपके कमंडल से निकली आपकी पुत्री गंगा हूँ! मैं कालांतर से भूलोक वासियों के दुखों का निवारण करती, हर दुःख, हर ज़ख्म, हर पीड़ा को बिना कुछ कहे, बिना कुछ सुने, अपना फ़र्ज़ निभाती आ रही हूँ! भूलोक वासियों को मुक्ति और मोक्ष देने हेतु उनकी अस्थियों को अपने गर्भ में समाहित कर रही हूँ! मगर हे पितामह आपकी पुत्री अब और दुःख सहन करने की हालत में नहीं है! मेरा धैर्य समाप्त हो चुका है ! अब मेरे जीवन का दीप बुझने की कगार पर है पितामह! इस भूलोक के सभी वासी अपनी-अपनी दुनिया में मस्त हैं, किसी को भी मेरी पुकार सुनने का समय नहीं है, सब सिर्फ धन के लोभ में भागते नज़र आ रहे हैं! मेरी दुर्दशा किसी को भी नज़र नहीं आ रही है! आह, हे प्रभु यह कैसी बिडम्बना है, कि आपके बनाये इस संसार में आज आपके नियमों का कोई स्थान नहीं है, यह सब कुछ बदल चुका है प्रभु, अब इस जगत में मानवता, प्रेम, अपनत्व का स्थान ईर्ष्या, छल, कपट, हिंसा ने ले लिया है!
”एक माँ की समूची दुनिया उसकी संतान से शुरू होती है और संतान पे ही ख़त्म हो जाती है! माँ अपनी संतान को पूरी दुनिया का परिचय देती है, उसी संतान को उसका खुद का परिचय देती है! मगर आज तक किसी माँ को अपनी संतान को अपना ही परिचय देने की जहमत नहीं उठानी पड़ी थी, मगर आज सब कुछ बदल चुका है! जो अबोध बच्चा माँ के क़दमों की आहट से, आवाज़ से, प्रेम की महक से, आँचल (गोद) से ही पहचान लेता था! आज वही अबोध बच्चे बड़े होकर एक माँ से उसके माँ होने का प्रमाण मांग रहे हैं! अब मैं क्या करूँ पितामह मेरी मदद करो“!
मैंने कहा अरे ये क्या यह तो माँ गंगा है, माँ गंगा का ये क्या हाल ? युगों-युगों से समूचे विश्व में भारतवर्ष का नाम, संस्कृति, सभ्यता, आदि के लिए जिस गंगा की वजह से ही जाना जाता है आज वही गंगा बदहाल होकर इस तरह गुहार लगाती दर-दर की ठोकरें खा रही है! मुझे लगा कि मुझे चुप रहकर पूरी बात सुननी चाहिए, मैं चुप होकर सुनने लगा, तब माँ गंगा अपने दोनों हाथों को फैलाये कहे जा रही थी कि,
“हे विधाता यह कैसा संकट है आज मेरे सामने ! अब मैं कैसे समझाऊं कि मैं वही गंगा हूँ जिसे सारा संसार में पतितपावनी, पापनाशिनी, रोगनाशिनी, मुक्तिदायिनी, मोक्षदायिनी, हिमालयपुत्री, गौमुखी, माँ गंगे, ब्रह्मपुत्री, रामगंगा और भी अनेकों नाम से पुकारा जाता है! हाँ मैं वही गंगा हूँ जो परमपिता ब्रह्मदेव के कमंडल में वास करती थी! हाँ मैं वही गंगा हूँ जिसे हिन्दुस्तान की राष्ट्रीय नदी का गौरव प्राप्त है! हाँ मैं वही गंगा हूँ जो बैकुंठलोक में क्षीरसागर से भी निकलती है! हाँ मैं वही गंगा हूँ जो शिव के शीश पर वास करती है शिव की जटाओं से निकलती है! हाँ मैं वही गंगा हूँ जिसे भागीरथी भी कहा जाता है!”
”हे भागीरथ, कहाँ हो, आओ पुत्र देखो जिस गंगा को भूलोक पर लाने को तुमने सदियों अखंड तपस्या की,अनगिनत दुःख उठाये, तब तुमने भी नहीं सोचा होगा कि जो गंगा आज निर्मल, पावन, उज्जवल, दुग्ध से भी स्वच्छ और सफ़ेद, अल्हड नवयौवना जैसी चंचलता, मिठास, चपलता, कान्तिमयी, अनुपम छटा बिखेरती उन्माद में प्रवाहित हो रही है ! उसी गंगा को एक दिन तुम इस बदहाल हालत में देखोगे! जिस गंगा के उत्कृष्ट स्वरूप के तुम साक्षी थे, जिस गंगा के प्रवाह से उत्पन्न ध्वनि गर्जन की भयंकरता से कांपती दसों दिशाएं और कांपती संपूर्ण स्रष्टि के साथ ही पृथ्वी के रसातल में धंसने का भय उत्पन्न हो गया था और इस विनाश लीला को रोकने के लिए स्वयं कैलाशपति ने मेरे वेग और मेरी गति को अपनी जटाओं में रोका था! शिव जटाओं से निकली एक छोटी सी धारा को हिमालायराज ने अपने आश्रय में लिया था और फिर गौमुख से निकलकर मैं इस भूलोक में स्वछन्द भाव से विचरण करने लगी! तुमने माँ का दर्जा दे अपना नाम भागीरथी दिया था! आज वही भागीरथी अपने जीवन की सुरक्षा के लिए गुहार लगा रही है! युगों-युगों से अस्थि विसर्जन करने के साथ-साथ दुनिया भर का कूड़ा- करकट, कल-कारखानों से निकलती जहरीली गैस, जहरीला धुंआ, रासायनिक पदार्थ, अधिकाँश महानगरों, ग्रामों का गन्दा पानी, नित्य-प्रतिदिन कटे जाने वाले पशुओं के अवशेष, अरबों-खरबों टन कचरा, गंदगी मेरे ही गर्भ में समाहित किया जा रहा है! यही वजह से आज यह दुर्दशा है कि गंगा का अस्तित्व संकट में है! मेरे जिस जल को अमृत सा पवित्र और चमत्कारी माना जाता था, आज वही जल इतना प्रदूषित हो चुका है कि अब आचमन के योग्य भी नहीं रहा है!मेरे गर्भ में पलने वाले अनेकों दुर्लभ जीव जंतु आज विलुप्त हो चुके हैं! मेरी सहनशक्ति अपनी मर्यादों की सभी सीमाएँ लाँघ चुकी है!”
“मुझे प्रतीत होता है कि जैसे मेरा अंतिम समय निकट चुका है और मैं अब अपनी अंतिम सांसें गिन रही हूँ! अगर अब मेरी रक्षा हेतु तवज्जो नहीं दी तो यक़ीनन बहुत जल्द ही मैं विलुप्त हो जाउंगी, अर्थात मैं मर जाउंगी! फिर मैं बस इतिहास बनकर किस्से कहानियों और किताबों में ही नज़र आउंगी! हालांकि कुछ पुत्रो ने मेरे दर्द को समझा है और वह मेरी रक्षा को कुछ प्रयास भी कर रहे हैं मगर उनके द्वारा किये जा रहे प्रयासों को भी कहीं से भी बल मिलता नहीं नज़र आ रहा है, बहुत से पुत्रों ने तो मेरी रक्षा के नाम पर मिलने वाली मदद से अपना और अपने परिवार का पेट पलने का जरिया भी बना लिया है! कोई भी मेरी रक्षा के लिए पूरी गंभीरता से प्रयास नहीं कर रहा है! जिसका खामियाजा भी कल इन्हें ही भुगतना पडेगा! आज तुम सभी अत्यंत शान से कहते हो कि हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है! मगर मेरी म्रत्यु के बाद तुम सिर्फ यही कह सकोगे कि हम उस देश के वासी हैं जिस देश में कभी गंगा बहती थी!”
अब इस संसार में कोई भी मेरी पुकार सुनना नहीं चाहता है, अधिकतर लोगों को तो सुनाई ही नहीं देता है, और जिन्हें सुनाई देता है वो सुनना नहीं चाहते, तो अब ऐसे में कौन सुनेगा मेरी पुकार। हे परमात्मा, हे जीवनदाता अब आप ही मुझे बताओ, मेरे सवालों का जवाब आप ही दो, मैं आपसे ही जानना चाहती हूँ, कि -
हे परम पिता क्या मेरा जीवन का यही अंत है…….?
क्या मौत ही है मेरा विकल्प…………?
Posted By:-
Madhur Bhardwaj
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SUCH TO YAH HAI JANAB
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