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30.11.20

क्या ‘जंतर मंतर ‘बन पाएगा नया शाहीन बाग़?

 

श्रवण गर्ग-


कोरोना के आपातकाल में भी दिल्ली की सीमाओं पर यह जो हलचल हो रही है क्या वह कुछ अलग नहीं नज़र आ रही ? हज़ारों लोग—जिनमें बूढ़े और जवान , पुरुष और महिलाएँ सभी शामिल हैं—पुलिस की लाठियों ,अश्रु गैस के गोलों और ठंडे पानी की बौछारों को ललकारते और लांघते हुए पंजाब, हरियाणा और अन्य राज्यों से दिल्ली पहुँच रहे हैं।उस दिल्ली में जो मुल्क की राजधानी है, जहां जो हुक्मरान चले गए हैं उनकी बड़ी-बड़ी समाधियाँ हैं और जो वर्तमान में क़ायम हैं उनकी बड़ी-बड़ी कोठियाँ और बंगले हैं।


कोरोना के कारण पिछले आठ महीनों से जिस सन्नाटे के साथ करोड़ों लोगों के जिस्मों और साँसों को बांध दिया गया था उसका टूटना ज़रूरी भी हो गया था।लोग लगातार डरते हुए अपने आप में ही सिमटते जा रहे थे।चेहरों पर मास्क और दो गज की दूरी प्रतीक चिन्हों में शामिल हो रहे थे।लगने लगा था कि मार्च 2020 के पहले जो भारत था वह कहीं पीछे छूट गया है और उसकी पदचाप भी अब कभी सुनाई नहीं देगी।पर अचानक से कुछ हुआ और लगने लगा कि लोग अभी अपनी जगहों पर ही क़ायम हैं और उनकी आवाज़ें भी गुम नहीं हुईं हैं।


अभी कुछ महीनों पहले की ही तो बात है जब ऐसे ही हज़ारों-लाखों लोगों के झुंड सड़कों पर उमड़े थे।पर वे डरे हुए थे ।सब थके माँदे और किसी अज्ञात आशंका के भय से बिना रुके अपने उन घरों की ओर लौटने की जल्दी में थे जो काफ़ी पहले उनके पेट ने छुड़वा दिए थे।इन तमाम लोगों के खून सने तलवों की आहटें कब सरकारें बनाने के लिए ख़ामोश हो गईं पता ही नहीं चला।अपनी परेशानियों को लेकर किसी भी तरह की नाराज़गी का कोई स्वर न तो किसी कोने से फूटा और न ही इ वी एम के ज़रिए ही ज़ाहिर हुआ।राजनीति ,वोटों के साथ आक्रोश को भी ख़रीद लेती है।सबकुछ फिर से सामान्य भी हो गया।जो पैदल लौट कर गए थे उन्हें वातानुकूलित बसों और विमानों से वापस भी बुला लिया गया।मशीनें और कारख़ाने फिर से चलने लगे।मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर में जी डी पी में सुधार भी नज़र आने लगा।


यह जो हलचल अब पंजाब से चलकर हरियाणा के रास्ते राजधानी पहुँची है उसकी पदचाप भी अलग है और ज़ुबान में भी एक ख़ास क़िस्म की खनक है।सरकार माँगों को लेकर उतनी चिंतित नहीं है जितनी कि इस नई और अप्रत्याशित हलचल को लेकर।राजधानी दिल्ली पहले भी ऐसे कई आंदोलनों को देख चुकी है।कई बलपूर्वक दबा और कुचल दिए गए और कुछ उचित समर्थन मूल्य पर ख़रीद लिए गए।आंदोलन ,सरकारों और आंदोलनकारियों , दोनों के धैर्य की परीक्षा लेते हैं।नागरिकों की भूमिका आमतौर पर तमाशबीनों या शिकायत करने वालों की होती है।वैसे भी ज़्यादातर नागरिक इस समय वैक्सीन को लेकर ही चिंतित हैं जो कि जगह-जगह ढूँढी भी जा रही है।निश्चित ही सारी पदचापें सभी जगह सुनाई भी नहीं देतीं हैं।


सरकार ने किसानों को बातचीत के लिए आमंत्रित किया है।बातचीत होगी भी पर तय नहीं कि नतीजे किसानों की मांग के अनुसार ही निकलें।अपवादों को छोड़ दें तो सरकारें किसी ख़ास संकल्प के साथ लिए गए फ़ैसलों को वापस लेती भी नहीं।वर्तमान सरकार का रुख़ तो और भी साफ़ है।पिछली और आख़री बार अनुसूचित जाति/जनजाति क़ानून में संशोधन को लेकर व्यापक विरोध के समक्ष सरकार झुक चुकी है।ठीक वैसे ही जैसे राजीव गांधी सरकार शाहबानो मामले में झुक गई थी पर तब आरिफ़ मोहम्मद नाम के एक मंत्री इस समझौते के विरोध में मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा देने के लिए उपस्थित थे।


किसान आंदोलन से निकलने वाले परिणामों को देश के चश्मे से यूँ देखे जाने की ज़रूरत है कि उनकी माँगों के साथ किसी भी तरह के समझौते का होना अथवा न होना देश में नागरिक-हितों को लेकर प्रजातांत्रिक शिकायतों के प्रति सरकार के संकल्पों की सूचना देगा।ज़ाहिर ही है कि किसान तो अपना राशन-पानी लेकर एक लम्बी लड़ाई लड़ने की तैयारी के साथ दिल्ली पहुँचे हैं पर यह स्पष्ट नहीं है कि उनके साथ निपटने की सरकारी तैयारियाँ किस तरह की हैं ! शाहीन बाग़ के सौ दिनों से ज़्यादा लम्बे चले धरने के परिणाम स्मृतियों से अभी धुंधले नहीं हुए हैं।किसानों ने दिल्ली के निकट बुराड़ी गाँव की ‘खुली जेल‘ को अपने धरने का ठिकाना बनाने के सरकारी प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। तो क्या सरकार किसानों की मांग मानते हुए ‘‘जंतर मंतर’ को नया शाहीन बाग़ बनने देगी ? ऐसा लगता तो नहीं है। तो फिर क्या होगा ?


देश की एक बड़ी आबादी इस समय दिल्ली की तरफ़ इसलिए भी मुँह करके नहीं देख पा रही है कि मीडिया के पहरेदारों ने अपनी चौकसी बढ़ा रखी है। इस तरह के संकटकाल में मीडिया व्यवस्था को निःशस्त्र सेनाओं की तरह सेवाएँ देने लगता है।अतः केवल प्रतीक्षा ही की सकती है कि किसान अपने आंदोलन में सफल होते हैं या फिर उन्हें भी प्रवासी मज़दूरों की तरह ही पानी की बौछारों से गीले हुए कपड़ों और आंसुओं के साथ ख़ाली हाथ अपने खेतों की ओर लौटना पड़ेगा ! किसानों के आंदोलन के साथ देश की जनता के सिर्फ़ पेट ही नहीं उनकी बोलने की आज़ादी भी जुड़ी हुई है।

मीडिया को सजग होकर ‘विकासोन्मुख पत्रक़ारिता’ को बढ़ावा देना चाहिए


सिरोही शहर में पिछले दिनों एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया. आयोजक था 'मैं भारत फ़ाउंडेशन'. ग्रामीण उद्योग एवं स्वरोज़गार मुहिम के तहत ‘वोकल फ़ोर लोकल में मीडिया, प्रशासन एवं सामाजिक संगठनों की भूमिका’ विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी में मुख्य वक़्ता थे भारतीय जन संचार संस्थान के प्रोफेसर डॉ राकेश गोस्वामी और 'मैं भारत फाउंडेशन' के संस्थापक अध्यक्ष रितेश शर्मा.

29.11.20

यूट्यूब पर फर्जी पत्रकारों की बाढ़

akhilesh dubey
akhileshd884@gmail.com
    

अण्डरकवर जर्नलिज्म यानी स्टिंग ऑपरेशन के नाम पर सिवनी  में फर्जी पत्रकार गैंग की वसूली का दौर निरंतर चल रहा है। अखबारों, अलंकार, अनुप्रास और शब्दों के जाल से कोसों दूर इस गैंग ने अलग-अलग नाम से कई तरह के यू-ट्यूब चैनल बना रखे हैं, जिस पर केवल और केवल स्टिंग ऑपरेशन कर बद्नीयति से वीडियो लोड किया जाता है, उसके बाद वसूली का खेल शुरू हो जाता है। जिसमें एक से अधिक लोग मिलकर इस वसूली के षड्यंत्र को अंजाम देते हैं।

28.11.20

मोदी सरकार की हेकड़ी निकालेगा किसान आंदोलन!

CHARAN SINGH RAJPUT
मोदी सरकार द्वारा पारित कराये गये किसान बिलों के खिलाफ दिल्ली बोर्डरों पर डटे किसानों पर दमनात्मक नीति अपनाकर भले ही मोदी सरकार उनकी आवाज को दबाने में लगा लगी हो, भले ही सरकार ने गोदी मीडिया किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए लगा दिया हो, भले ही सरकार ने अपनी आईटी सेल को किसान आंदोलन को खालिस्तानी समर्थकों से जुड़वाकर उनके हाथों में तलवारें और डंडे दर्शाकर उनकी छवि को खराब करने के लिए लगा दिया हो, भले ही केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर किसान बिलों को किसानों के लिए क्रांतिकारी बताते हुए आंदोलित को भटकाने का प्रयास कर रहे हों पर किसान इस बार आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं और मोदी सरकार की हेकड़ी निकालने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। कानूनों को वापस कराने के लिए दिल्ली को घेरने आये विभिन्न प्रदेशों के किसान अपनी बात मनवाए बिना किसी भी सूरत में मानने को तैयार नहीं। ये किसानों के आक्रामक तेवर ही हैं कि मोदी सरकार के सभी दांव-पेंच उनके हौसले के सामने पस्त होते नजर आ रहे हैं। किसानों को मूर्ख बनाने में लगी मोदी सरकार के लिए यह आंदोलन सबक सिखाने वाला होगा।

आर्थिक मजबूती से बढ़ेगा हिन्दी का साम्राज्य

-डॉ. अर्पण जैन 'अविचल'-

भाषा और भारत के प्रतिनिधित्व के सिद्धांत में हिन्दी के योगदान को सदा से सम्मिलित किया जा रहा है और आगे भी किया जाएगा, किन्तु वर्तमान समय उस योगदान को बाजार अथवा पेट से जोड़ने का है। सनातन सत्य है कि विस्तार और विकास की पहली सीढ़ी व्यक्ति की क्षुधा पूर्ति से जुडी होती है, अनादि काल से चलते आ रहे इस क्रम में सफलता का प्रथम पायदान आर्थिक मजबूती से तय होता हैं। वर्तमान समय उपभोक्तावादी दृष्टि और बाजारमूलकता का है, ऐसे काल खंड में भूखे पेट भजन नहीं होय गोपाला जैसे ध्येय वाक्य के अनुसार भाषा का सार्वभौमिक विकास भी रचना अनिवार्य होगा।

26.11.20

Govt must ratify ILO Convention to eliminate gender-based violence: IJU

New Delhi : The Indian Journalists Union joins the International Federation of Journalists’ call on International Day for the Elimination of Violence Against Women and girls today, to all governments, including India, to act responsibly to eradicate violence against women by ratifying the ILO Convention 190 on harassment and violence in the world of work.

अपने भाई पूर्व डीजीपी बनर्जी पर हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाने वाली बहन की लाश तक न मिली!


सौरभ सिंह सोमवंशी
प्रयागराज

उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी आनंदलाल बनर्जी की बहन और इलाहाबाद हाईकोर्ट में पूर्व में सहायक निबंधक के पद पर तैनात रह  चुकी विजयलक्ष्मी बनर्जी की पिछले दिनों प्रयागराज स्थित एक निजी अस्पताल से जांच के दौरान बाहर जाने पर संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई थी। इसके बाद उनके पति व वर्तमान में इलाहाबाद हाईकोर्ट में संयुक्त निबंधक के पद पर तैनात हेम सिंह को मृत शरीर भी नहीं मिल पाया और वह अंतिम संस्कार करने से भी वंचित रह गए। इस मामले की शिकायत हेम सिंह ने पुलिस और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग में की है। जांच क्षेत्राधिकारी सिविल लाइंस कर रहे हैं। परंतु इस बीच विजयलक्ष्मी बनर्जी द्वारा जीते जी राष्ट्रीय मानवाधिकार  आयोग में दिया गया एक शपथ पत्र वायरल होने से हड़कंप मच गया है। इसमें उन्होंने अपनी हत्या की आशंका जताई है और स्पष्ट रुप से अपने भाई समेत चार लोगों का नाम भी लिया है जो उनकी हत्या करा सकते थे। ये शपथ पत्र स्वयं उच्च  न्यायालय इलाहाबाद ने सूचना के अधिकार के तहत उनके पति हेम सिंह को उपलब्ध कराया है।

एक पव्वे में बिकता है क्राइम रिपोर्टर

 
अवैध निर्माण वसूली गैंग का सरगना है रिपोर्टर

हरिद्वार जिले में दो नम्बर के पत्रकारों की कमाई का सिर्फ खनन ही माध्यम नहीं है। भवनों के मानचित्र स्वीकृत करने वाला हरिद्वार-रुड़की विकास प्राधिकरण भी उठाईगिर पत्रकारों की जेब भरने का साधन बना हुआ है। चूंकि इसके क्षेत्र का कुछ दिन पहले विस्तार हुआ है, इसलिए रुड़की क्षेत्र में विभाग का अच्छा खासा दबदबा है।

25.11.20

हिंदुस्तानी न्यूज एडिटर के महंगे शौक के चर्चे

हिंदुस्तान अखबार की एक छोटी यूनिट के न्यूज एडिटर आजकल चर्चा में हैं. वे दनादन धमाके कर रहे हैं. कुछ समय पहले 9 लाख की होंडा अमेज कार खरीद कर अपना लोहा मनवाया तो अब सवा लाख वाला एप्पल का आईफोन ले आए हैं.  

दिमाग से नहीं, दिल से कहानी सुनाएं : सुभाष घई

आईआईएमसी के सत्रारंभ समारोह का मंगलवार को दूसरा दिन

नई दिल्ली । 'सिनेमा हो या मीडिया, आप कहानी दिमाग से नहीं, दिल से सुनाएं। और जब आप दिल से कहानी सुनाएंगे, तभी आप एक अच्छे कम्युनिकेटर बन पाएंगे।' यह विचार प्रसिद्ध फिल्म निर्माता एवं निर्देशक श्री सुभाष घई ने मंगलवार को भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) के सत्रारंभ समारोह-2020 के दूसरे दिन व्यक्त किये।

साजिश है ‘लव जेहाद’ को प्यार का नाम देना

संजय सक्सेना, लखनऊ
 

जो लोग गोलमोल शब्दों में साजिशन ‘लव जेहाद’ के खिलाफ योगी सरकार द्वारा लाए गए ‘उत्तर प्रदेश विघि विरूद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020’ कानून का विरोध करते हुए यह कह रहे हैं कि प्यार का कोई धर्म-महजब नहीं होता है, वह सिर्फ और सिर्फ समाज की आंखों में धूल झोंकने का काम कर रहे हैं। लव जेहाद को प्यार जैसे पवित्र शब्द के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए। भला कोई अपना धर्म-नाम छिपाकर किसी से कैसे सच्चा प्यार कर सकता है। बात यहींे तक सीमित नहीं है। यह भी समझ से परे है कि ऐसे कथित प्यार में हमेशा लड़की हिन्दू और लड़का मुसलमान ही क्यों होता है और यदि कहीं किसी एक-दो मामलों में लड़की मुस्लिम और लड़का हिन्दू होता है तो वहां खून-खराबे तक की नौबत जा जाती है। मुस्लिम लड़कियों से प्यार करने वाले कई हिन्दू लड़कांे को इसकी कीमत जान तक देकर चुकानी पड़ी है। इसी के चलते समाज में वैमस्य बढ़ रहा था।

मांगलिक कार्य आरम्भ होने का दिन है ‘‘देवोत्थान एकादशी’’

देवोत्थान एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहते हैं। दीपावली के ग्यारह दिन बाद आने वाली एकादशी को ही प्रबोधिनी एकादशी अथवा देवोत्थान एकादशी या देव-उठनी एकादशी कहा जाता है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव चार मास के लिए शयन करते हैं। इस बीच हिन्दू धर्म में कोई भी मांगलिक कार्य शादी, विवाह आदि नहीं होते। देव चार महीने शयन करने के बाद कार्तिक, शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उठते हैं। इसीलिए इसे देवोत्थान (देव-उठनी) एकादशी कहा जाता है। देवोत्थान एकादशी तुलसी विवाह एवं भीष्म पंचक एकादशी के रूप में भी मनाई जाती है। इस दिन लोग तुलसी और सालिग्राम का विवाह कराते हैं और मांगलिक कार्यों की शुरुआत करते हैं। हिन्दू धर्म में प्रबोधिनी एकादशी अथवा देवोत्थान एकादशी का अपना ही महत्त्व है। इस दिन जो व्यक्ति व्रत करता है उसको दिव्य फल प्राप्त होता है।

रोशनी एक्ट की आड़ में हो रहे कई घोटालेबाजों का चेहरा हुआ बेनकाब

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के बाद नेशनल कांफ्रैंस के नेता फारूक अब्दुल्ला, पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती और अन्य नेताओं की तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं और उन्होंने कश्मीरियों के अधिकारों के लिए लड़ने और अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए गुपकर संगठन बना लिया है। फारूक अब्दुल्ला अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए चीन की मदद लेने की बात करते हैं तो महबूबा तिरंगे का अपमान करती हैं। अनुच्छेद 370 के चलते आज तक केन्द्र की सरकारों ने जम्मू-कश्मीर में इतना धन बहाया है कि उसका कोई हिसाब-किताब नहीं। अलगाववादियों ने पाकिस्तान और खाड़ी देशों के धन से देश-विदेश में अकूत सम्पत्तियां बना लीं जबकि कश्मीरी बच्चों के हाथों में पत्थर और हथियार पकड़वा दिए।

जमीनी स्तर पर नहीं दिखता सक्रिय सदस्य

कांग्रेस पार्टी एक राष्ट्रीय पार्टी है जिसने भारत निर्माण से लेकर अब तक कई ऐसे ऐतिहासिक कार्य किए हैं जिसकी व्याख्या इतिहासो में दर्ज है। लेकिन कांग्रेस  जब से केंद्र की सत्ता से बेदखल हुई है तब से तितर-बितर हो गई है। कांग्रेस के कई ऐसे केंद्रीय नेता हैं जो अपनी बात मजबूती से रखते हैं पर जमीनी स्तर पर उनका संगठन दिन पर दिन कमजोर होते चला गया है जिसके वजह से उनकी बात जनता तक नहीं पहुंच पाता है।

22.11.20

कैदियों की दीपावली मतलब गम की दीपावली

रूपेश कुमार सिंह
स्वतंत्र पत्रकार


मैं आज के दिन पिछले साल बिहार के गया सेन्ट्रल जेल के अंडा सेल में बतौर विचाराधीन बंदी रह रहा था। आज सुबह से ही व्हाट्सअप, फेसबुक और फोन पर कई दोस्त व रिश्तेदार दीपावली की बधाई व शुभकामनाएँ दे रहे हैं, तो बरबस मुझे पिछली दीपावली की याद आ गयी और मैं कल्पना में खो गया कि आज जेलों में बंदी क्या कर रहे होंगे? क्या उनके लिए दीपावली का कोई महत्व है और है तो क्या है?

स्वास्थ्य विभाग के मैनेजर को दैनिक भास्कर में लाखों का विज्ञापन देना पड़ा भारी




अब विज्ञापन की डिमाण्ड से उच्च अधिकारी परेशान

बिलासपुर। अपनी नाकामयाबी छुपाने के लिए अधिकारी तरह तरह के हतकंडे अपनाने से बाज नहीं आते। ऐसा ही एक मामला इन दिनों बिलासपुर स्वास्थ्य विभाग में घटित हुआ है जो चर्चाओं में है। रोज रोज के निगेटिव न्यूज़ और अपनी नाकामयाबी को छुपाने के लिए स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी (जो कि विभाग के मैनेजर के नाम से प्रसिद्ध हैं) ने युक्ति लगते हुए बिलासपुर के लीड अखबार दैनिक भास्कर में फुल पेज का एड (विज्ञापन) दे डाला। इस विज्ञापन की राशि लाखों में बताई जा रही है। इसे इस तरह डिजाइन किया गया है कि देख कर ये एक फुल पेज खबर लगता है।

मेरठ के सरधना में अमर उजाला के प्रतिनिधि पर लगा रंगदारी मांगने का आरोप

 


मेरठ जिले का सरधना नगर हमेशा चर्चाओं में बना रहता है। कुछ समय पहले चर्चाओं में आया था कि कैसे किसी खबर को अपने फायदे के लिए तीन अखबार के प्रतिनिधि मिलकर परोसते हैं। तब वह खबर भड़ास पर भी प्रकाशित हुई थी। इसी क्रम में बुधवार को अमर उजाला के प्रतिनिधि पर रंगदारी मांगने के गंभीर आरोप लगे हैं।

हर शाख पर उल्लू बैठा है, अंजाम ए यूनिट क्या होगा

खुद को देश का नम्बर वन हिंदी दैनिक बताने वाले एक अखबार की पहाड़ यूनिट को लेकर यह कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है। यूनिट पट्टाधारक मठाधीशों से भरी पड़ी है। पट्टाधारक इस संदर्भ में कि यूनिट में कोई डेढ़ दशक तो कोई दो दशक से कुंडली जमाए पड़ा है। कोरोना काल में छंटनी की बारी आते ही पट्टाधारकों ने मजबूती से एक दूसरे की कुर्सियां थाम ली। बड़े वालों ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए कइयों की बलि ले ली। जबकि कुछ अभी भी आंखों में खटक रहे हैं। पूरे गैंग का उद्देश्य एक ही है कि बस किसी तरह अपनी कुर्सी बच जाए, बाकी अखबार भले ही दो नम्बर से खिसक तीसरे पायदान पर पहुंच जाए।

झोला छाप डॉक्टरी कर लें लेकिन स्वतंत्र पत्रकारिता में न आएं

कोरोना ने सभी पर असर डाला है  वह आम आदमी से लेकर खास क्यों न हो बस दो जमात ऐसी हैं जिन पर कोरोना का असर नहीं पड़ा है उसमें पहला है मेडिकल सेक्टर यानी हॉस्पिटल और उससे जुड़े व्यवसायी। जिसमें पैथॉलजी, मेडिकल स्टोर, रेडियोलॉजी आदि शामिल है। अब अगर दूसरे सेक्टर की बात करें तो उसमें आता है,खाद्य सेक्टर इसमें किराना स्टोर सब्जी आदि की दुकानें शामिल हैं। इन दोनों के व्यवसाय में बहुत तेजी से उछाल आया है। सामान्य दिनों से भी ज्यादा। अब मुद्दे पर आते हैं कोरोना ने जिन पर सबसे ज्यादा असर डाला है उनमें एक सेक्टर पत्रकारिता का भी शामिल है।

सावधान, सुखबीर एग्रो पुवायां में है रहस्यमय जादुई तालाब!


 

आपने अभी तक केवल किताबों में ही जादूई तालाब के बारे में पढ़ा होगा लेकिन अब आप पुवायां में भी इस तरह का तालाब देख सकते हैं जिनमें भरा हुआ पानी एक लाल रंग की पाइप लाइन के माध्यम से लाया जाता है।

इस लाल रंग वाली लाइन को फैक्ट्री में स्थित E.T.P के पास से होकर निकाला गया है जिससे फैक्ट्री का समस्त गंदा पानी जल शुद्धिकरण प्रक्रिया में न लेकर इसी लाइन में एक पम्प के माध्यम से इस रहस्यमई तालाब तक पहुंचा दिया जाता है जिससे फैक्ट्री में जल शुद्धिकरण प्रक्रिया में खर्च होने वाला लाखों रुपए हर माह आसानी से बचा लिया जाता है और किसी को कोई शक भी नहीं होता है क्योंकि इस बंद  पाइप लाइन के अंदर क्या चल रहा है आमजन के लिए यह अनुमान लगाना काफी मुश्किल होगा परन्तु फैक्ट्री प्रबंधन को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि चोर चाहें जितना भी चालाक क्यों न हो एक न एक दिन सच्चाई सबके सामने आ ही जाती है।

देश की बेटी, बेटी न रही वो हिंदू मुसलमान हो गई

बिहार के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पहले ही संबोधन में जीत का श्रेय साइंलेंट वोटरों को दिया और अपनी जीत में सबसे बड़ा हाथ महिलाओं का बताया. ये वही महिलाएं हैं जो आए दिन बालात्कार और शोषण का शिकार होती हैं. हर चौक-चौराहे पर इनको बालात्कार का डर होता है. एक तरफा जुनूनी प्यार के चलते इन्हीं महिलाओं या बच्चियों को जान तक गंवानी पड़ जाती है. इनको बीच सड़कों पर गोली मार दिया जाता है या तेजाब से इनके शरीरों को जला दिया जाता है तब देश की उन बेटियों या महिलाओं के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमदर्दी नहीं दिखाते हैं हालांकि उन्हें किसी खिलाड़ी के उंगली में चोट लगने से तकलीफ हो जाती है, उनका ट्वीट आ जाता है लेकिन प्रधानमंत्री का ट्वीट उन लड़कियों के लिए नहीं आता है जो मौत के घाट बेरहमी के साथ उतार दी जाती हैं.

राज्यपाल ने मासिक समाचार पत्रिका 'माई स्टेट' का विमोचन किया


रांची : राज्यपाल श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने कहा है कि पत्रकारों के ऊपर समाज की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। पत्रकारों को अच्छी और ज्ञानवर्धक बातें समाज को बतानी चाहिए। उन्हें सदा निष्पक्ष पत्रकारिता करनी चाहिये। मीडिया को लोकतंत्र का चतुर्थ स्तंभ कहा गया है। इसलिए इसे सदा समाज की सजग प्रहरी की भूमिका का निर्वहन करना चाहिये। जनता को जागरूक करना और भ्रम दूर करना, यह अच्छी पत्रकारिता का गुण है। समाज में कई तरह की भ्रांतियां फैली रहती हैं। इन भ्रांतियों को दूर करने की जिम्मेदारी हमारे मीडिया जगत व पत्रकारों की है।

योगी राज में खबर चलाने के कारण टीवी पत्रकारों पर मुकदमा दर्ज

फ़तेहपुर से सूचना है कि दो दलित बहनों का तालाब में शव मिलने के मामले की खबर प्रकाशित प्रसारित करने पर पत्रकारों के खिलाफ मुकदमा हो गया है. एक पत्रकार भारत समाचार का है. नाम है महेश सिंह. दूसरा पत्रकार नेटवर्क18 का है जिसका नाम धारा यादव है. लड़की के परिजनों द्वारा रेप के बाद हत्या की आशंका जताए जाने पर दोनों पत्रकारों की तरफ से खबर का प्रकाशन किया गया. पुलिस का कहना है कि लड़कियां डूब कर मरी हैं.

जनरूचिकारी नहीं, जनहित वाली हो पत्रकारिता

 



वाराणसी । बाबूराव विष्णु पराड़कर जी की जयंती पर आज पराड़कर स्मृति भवन में ‘‘आज की पत्रकारिता’’ विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में वक्ताओं ने पत्रकारिता के गिरते स्तर पर चिंता व्यक्त करते हुये कहा कि पत्रकारों को जनरूचिकारी नहीं बल्कि जनहितकारी समाचारों पर जोर देना चाहिए।

योगी राज में भी महाभ्रष्ट आबकारी विभाग बेलगाम

पहले कच्ची अब सरकारी शराब पी रही लोगों की जान प्रयागराज में छह मौतों से मचा हाहाकार

प्रयागराज। प्रदेश में जहरीली शराब पीने से हो रही मौतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। पहले जहां कच्ची शराब से लोगों की मौतें हो रही थीं वहीं अब सरकारी ठेके की शराब लोगों की जान ले रही है। लखनऊ, मथुरा और फिरोजाबाद के बाद अब जहरीली शराब से प्रयागराज स्थित फूलपुर के अमिलिया गांव में छह लोगों की मौत हो गई जबकि पांच अन्य को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया है। शराब ठेकेदार की तलाश में छापेमारी जारी है जबकि सेल्समैन समेत पांच को गिरफ्तार किया गया है। वहीं छह मौतों से गांव में हाहाकार मचा है। लोग आक्रोशित हैं।

India continues to lose scribes to Covid-19

Geneva/Guwahati : One more journalist falls prey to the Covid-19 pandemic as Noida based scribe Pankaj Shukla  breathed his last on Friday night (20 November). Hailed from Bareilly locality of Uttar Pradesh, Shukla (50) was admitted at JP Hospital, Noida where he succumbed to novel corona virus infection aggravated ailments.

आधार डेटा को लीक करने वाले कम्पनी पर ही मेहरबानी क्यों?

1. एक प्राइवेट कंपनी है, CSC E-Governance Services India Ltd.

2. कोई सरकारी योजना आवंटित करने के लिए बाकायदा टेंडर या बिडिंग प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता है पर इस एकलौते कम्पनी को बिना टेंडर के ही धड़ाधड़ योजना आवंटन का कार्य दे दिया जाता है ।

19.11.20

Political Will Needed To Halt Crimes Against Journalists

New Delhi : On the occasion of National Press Day, 16 November 2020, the Indian Journalists Union drew the attention of Prime Minister Narendra Modi to the rising attacks on journalists and urged that all-out efforts be made by his government to end impunity for crimes against journalists. A free press, said the IJU, is critical for a vibrant democracy and that action rather than words would instill confidence in the country’s media, which is under grave threat of intimidation and harassment from various quarters.

16.11.20

जनजातीय गौरव दिवस पर विशेष- हमारा हर कदम विनाश की ओर बढ़ रहा है

विमर्श/जयराम शुक्ल
 
रामायण : वनवासियों के मुक्ति संघर्ष और विजय की अमरकथा

"रामायण कथा वनवासियों के पराक्रम और अतुल्य सामर्थ्य की कथा है, जिसमें उन्होंने राम के नेतृत्व में पूंजीवाद, आतंकवाद के पोषक साम्राज्यवादी रावण को पराजित कर सोने की लंका को धूलधूसरित कर दिया। रामकथा यथार्थ में वनवासियों के मुक्ति संघर्ष और विजय की अमरकथा है। इस कथा के नायक  ने स्वयं वनवासी बनना स्वीकारा और तमाम वनवासियों को अपने बराबरी में खड़ाकर के समाज को समत्व की नयी परिभाषा दी।"

आसान नहीं युवाओं का मीडिया में टिक पाना, खासकर लड़कों का

मैं यशवंत सर ( भईया ) को निजी तौर पर तो नहीं पहचानता लेकिन भड़ास 4 मीडिया पढ़ता रहता हूँ उनके हिम्मत की दाद देता हूँ कि वो मीडिया के अंदरखाने चल रहे दुर्व्यवस्था को बिना डरे खुलकर सामने लाते है .क्योंकि कुछ मीडिया बॉलीवुड में परिवारवाद, राजनीति में परिवारवाद पर तो खुलकर बोलती है लेकिन खुद को कभी आईने के सामने खड़ा करना पसंद नहीं करती

महिला कानूनों का दुरुपयोग और ब्लैकमेलिंग का धंधा

प्रयागराज : दहेज,यौन शोषण, छेड़छाड़, जबरन शारीरिक संबंध बनाना यानी बलात्कार और ऐसे ही अन्य घिनौने अपराध के आरोप अक्सर महिलाओं के द्वारा लगाए जाते रहते हैं,लेकिन क्या पुरुष भी ऐसे अपराधों से पीड़ित हैं? या फिर क्या महिलाओं द्वारा लगाए गए ऐसे आरोप हमेशा सही होते हैं? क्या इनका गलत उपयोग भी होता है? आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि जहां यह मामले वास्तव में पीड़ित के होते हैं वहीं पर इस तरह के तमाम मामले ब्लैकमेलिंग और महिला कानूनों के दुरुपयोग से भी जुड़े हुए होते हैं मामला प्रयागराज का है जहां पर कुछ लोगों का एक गिरोह तमाम बड़े और प्रभावशाली लोगों के ऊपर आरोप लगाकर व ब्लैकमेल कर उनसे मोटी रकम वसूलने का है। जिसमें एक महिला के शिक्षक पति ने ही उसके ऊपर ब्लैकमेलिंग और संगठित गिरोह बनाकर पैसा ऐंठने के लिए महिला कानून के दुरूपयोग का आरोप लगाया है।

बिहार के बाद अब पश्चिम बंगाल चले ओवैसी, ममता के दिलों की धड़कनें हुई तेज़

बिहार चुनाव के बाद अब पश्चिम बंगाल में राजनीतिक गतिविधियां तेज़ हो रही है जिस तरह से बिहार चुनाव के रिजल्ट रहे उससे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की चिंता बढ़ गई है. पश्चिम बंगाल में विधानसभा की कुल 294 सीटें हैं जिसमें बहुमत का आंकड़ा छूने के लिए 148 सीट पानी जरूरी है. पिछले विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने 211 सीट पाकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. जबकि कांग्रेस ने 44, लेफ्ट ने 26  और भाजपा ने मात्र 3 सीटों पर कब्जा जमाया था. पिछला विधानसभा चुनाव हारने के बाद से ही भाजपा वहां लगातार सक्रिय है और इस साल 2021 के विधानसभा चुनाव में वह ममता बनर्जी को सीधे टक्कर देने को तैयार है.

Scribe murdered, police officer booked in UP

 


Guwahati: Journalists’ Forum Assam (JFA) expresses serious concern
over the killing  of another scribe in Uttar Pradesh where a police
officer is booked for the murder.  Suraj Pandey (25), who worked for a
Hindi newspaper, was found dead on a railway track at Sadar Kotwail
area on Thursday (12 November 2020) evening.

हकीकत और फसाने के बीच 'मीडिया बाजार'

राष्ट्रीय प्रेस दिवस/ जयराम शुक्ल

भारत में पहले अखबार 'बंगाल गजट' का निकलना एक दिलचस्प घटना थी। वह 1780 का साल था ईस्ट इंडिया कंपनी वारेन हेस्टिंग के नेतृत्व में मजबूती के साथ विस्तार पा रही थी, तब कलकत्ता उसका मुख्यालय था। कंपनी के ही एक मुलाजिम जेम्स आगस्टस हिक्की ने हिक्कीज बंगाल गजट आर कलकत्ता एडवरटाइजर नाम का अखबार निकाल कर बड़ा धमाका किया। धमाका इसलिए कि उसने पहले ही अंक से वारेन हेस्टिंग्स समेत उन अन्य कंपनी बहादुरों की खबर लेना शुरू कर दी जिनके भ्रष्टाचार, अय्याशी के किस्से कलकत्ता की गलियों में फुसफुसाए जाते थे। हिक्की जल्दी ही कंपनी बहादुरों की आँखों में खटकने लगा पहले उसे जेल में डाला गया फिर जल जहाज में बैठाकर लंदन भेज दिया गया। यह भी कहते हैं कि उसे बीच सफर में ही मारकर समुंदर में फेक दिया गया ताकि कंपनी बहादुरों के  काले कारनामे महारानी के दरबार तक न पहुंच सकें।

14.11.20

यदि पैसा चाहते हों तो अपने-अपने क्षेत्र के सहारा कार्यालय कब्जाने होंगे

CHARAN SINGH RAJPUT

 
देखने में आ रहा है कि सहारा इंडिया के ठगे गए निवेशक, एजेंट और कर्मचारी अपने पैसों को लेकर लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। आंदोलनकारियों ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को अपनी पीड़ा से संबंधित पत्र भी लिखा है। जगह जगह केस भी चल रहे हैं। इन सब के बावजूद कुछ हल नहीं निकल पा रहा है। इस पर मंथन की जरूरत है।

एम्स ऋषिकेश में आउटसोर्सिंग एक बड़ा खेल

एम्स ऋषिकेश में आउटसोर्सिंग के माध्यम से कितना बड़ा खेल चल रहा है यह तो सभी को पता है लेकिन आउटसोर्सिंग के द्वारा की जा रही भर्तियां व आउटसोर्स कंपनियों को दिया जा रहा लाभ कब रुकेगा?

विश्व मधुमेह दिवस : गर्भकालीन मधुमेह एवं सावधानी


डॉ संध्या, सीनियर रेजिडेंट, प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग, चिकित्सा विज्ञान संस्थान, बी एच यू

अंतरराष्ट्रीय मधुमेह संघ (आई डी एफ)  लोगों में मधुमेह से उपजे जोखिम के बारे में बढ़ती चिंताओं के प्रति जागरूक करने के लिए पिछले दो दशकों से १४ नवंबर को  विश्व मधुमेह दिवस मनाता है।

13.11.20

JFA mourns demise of cartoonist Trailokya Dutta

Guwahati: Journalists’ Forum Assam (JFA) expressed profound grief over
the demise of northeast India’s well known cartoonist and illustrator
Trailokya Dutta who breathed his last on Wednesday (11 November 2020)
night after suffering from old-age ailments from sometime.

दोहरी पेंशन व्यवस्था तत्काल बंद हो

पेंशन का अर्थ बिल्कुल स्पष्ट है कि एक कर्मचारी चाहे वह महिला हो अथवा पुरुष अपने कार्यकाल के दौरान जो वेतन पाता है उसका कुछ हिस्सा उसकी भविष्य निधि के रूप में सरकारी और अर्ध सरकारी संस्थाएं प्रतिमाह संचित करती रहती हैं ताकि कर्मचारी की आयु वृद्धि होने पर भौतिक शरीर में शिथिलता आने के बावजूद वह आर्थिक क्षमतावान बना रहे। इसके लिए उस संचित कोष से एक निश्चित धनराशि प्रतिमाह उस कर्मचारी को पेंशन के रूप में प्रदान की जाती है।

12.11.20

उत्तर प्रदेश में मायावती राज और दलित उत्पीड़न


-एस आर दारापुरी आई पी एस (से.नि.), राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट

(नोट: यद्यपि यह लेख कुछ पुराना है परंतु आज इसकी प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती गई है जब मायावती का भाजपा प्रेम खुल कर सामने आ गया है। वर्ष 2001 में भी मायावती ने भाजपा की मदद लेकर ही सरकार बनाई थी और उसी दौरान उसने भाजपा के दबाव में सवर्णों को खुश करने के लिए एससी/एसटी एकट को रद्द कर दिया था। इससे स्पष्ट है कि ऐसा करने में मायावती  का मुख्य उद्देश्य दलितों पर अत्याचार करने वाले सवर्णों को संरक्षण देने  के लिए दलित हितों की बलि देकर भाजपा को खुश करना था। इससे आप अंदाज लगा सकते हैं कि दलित उत्पीड़न को रोकने तथा दोषियों को दंडित कराने में मायावती का क्या नजरिया रहा है। समूचे देश में कभी भी किसी मुख्य मंत्री ने दलित विरोधी करार दिए जाने के ड र से एससी/एसटी एक्ट पर रोक लगाने की  जुर्रत नहीं दिखाई थी परंतु मायावती ने उत्तर प्रदेश में ऐसा किया. शायद वह उत्तर प्रदेश के दलितों को अपना गुलाम समझती रही है।)   

JFA caveat to media persons in India

Guwahati: On the eve of National Press Day (on 16 November), Journalists’ Forum Assam (JFA) appeals to  every professional journalist in India to get united for the cause of truthful journalism and avoid personal interest in deliberating views so that it cannot return as a  trap to oneself in the days to come.

9.11.20

नोटबंदी की चौथी वर्षगांठ पर अर्थव्यवस्था की अर्थी निकालकर विरोध प्रदर्शन किया



नेशनल स्टूडेंट युनियन आफॅ इंडिया (एनएसयूआई) ने नोटबंदी की चौथी वर्षगांठ पर अर्थव्यवस्था एवं नोटबंदी के कारण बढ़ी बेरोज़गारी की अर्थी जलाई एवं विरोध प्रदर्शन किया।

8.11.20

पत्रिका के मालवा जोन के पत्रकार लगातार कार्य के कारण हो रहे बीमार

नहीं मिल रहा साप्ताहिक अवकाश

पत्रिका मध्यप्रदेश के इंदौर संस्करण के अंतर्गत आने वाले मालवा जोन के पत्रकार इस समय मानसिक और शारीरिक रूप से बुरी तरह से थक चुके हैं। उन्हें पिछले आठ माह से साप्ताहिक अवकाश नहीं मिल रहा है। अवकाश की मांग करने पर उन्हें उचित जवाब तक नहीं दिया जा रहा। कहा जा रहा है वर्क फ्रॉम होम में अवकाश की क्या जरूरत है।

6.11.20

महाराष्ट्र में पत्रकारिता के लिए आपातकाल, बाक़ी जगह रामराज्य!

पत्रकारिता क्षेत्र में जब क़दम रखा था तब यह सोंचा नहीं था कि एक दिन ख़बर देने वाले ही ख़ुद ख़बर बन जाएंगे।

आज आम लोगों से ज़्यादा ख़बर देने वाले ख़ुद ख़बरों में छाए हुए हैं। बीते दिन रिपब्लिक टीवी के एडिटर इन चीफ़ अर्नब गोस्वामी को मुंबई पुलिस ने उनको उनके घर से गिरफ़्तार कर लिया। अर्नब की गिरफ़्तारी 2018 के एक आत्महत्या से जुड़े केस में हुई है। इस कदर अचनाक हुई गिरफ्तारी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। 2 साल पुराने इस केस में उस समय कोई सुबूत ना होने के कारण केस को बंद कर दिया गया था। लेक़िन आज मुंबई पुलिस को अचानक सुबूत मिल जाते हैं और अर्नब को गिरफ़्तार कर लिया जाता है। हो सकता है सुबूत मिल भी गए हों, लेक़िन क्या किसी समन के किसी को गिरफ़्तार करना सही है ?. गिरफ्तारी के भी तरीक़े होते हैं किसी के साथ मारपीट कर उसे जबरदस्ती रूप से गाड़ी में बिठाकर थाने ले जाना ठीक है ?।

4.11.20

देशहित में नहीं है मोनोपली

पी.के. खुराना

अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस, यानी, न्याय विभाग ने इसी वर्ष 20 अक्तूबर को गूगल के विरुद्ध एंटी-ट्रस्ट का मामला दायर करते हुए आरोप लगाया है कि कंपनी सर्च सर्विसेज़ के मामले में गैरकानूनी ढंग से एकाधिकारवादी नीतियां अपना रही है जिससे प्रतियोगिता पर अंकुश लग रहे हैं। ऐसा ही 1990 में माइक्रोसॉफ्ट के साथ भी हुआ था। अमेरिकी न्याय विभाग की इस कार्यवाही के मद्देनज़र जापान सरकार ने भी अपने यहां बहुराष्ट्रीय टेक कंपनियों को प्रतियोगी कंपनियों के प्रति न्यायोचित रुख अपनाने को कहा है।

लव जिहाद : माले-गनीमत की मध्ययुगीन घात

1994 की दीपावली के आसपास की घटना है। इंदौर की एमआईजी कॉलोनी में मैं अपने मित्र मनीष शर्मा के घर मिलने गया था। उनके घर के कुछ पहले एक घर के सामने सड़क पर एक लॉरी में बर्फ की सिल्लियां पिघल रही थीं। घर में चहलपहल थी। मेरा ध्यान बर्फ के पानी में घुले लाल रंग पर गया। वह खून था। और तब मुझे सुबह के अखबार में छपी खबर याद आई। यह एक जैन उद्योगपति का खुशहाल परिवार था, जिसमें एक दिन पहले ही पति-पत्नी दोनों ने खुदकुशी कर ली थी। यह बहुत दर्दनाक हादसा था, जो हाल की कुछ घटनाओं से मुझे याद आया है।

एमपी में उपचुनाव नतीजों के अनुमान ऐसे समझिए


  -जयराम शुक्ल-

पत्रकारिता और ज्योतिष में एक साम्य गजब का है। ज्योतिषी ग्रह-नक्षत्रों की चाल के हिसाब से भविष्यवाणी करते हैं और पत्रकार नेताओं मतदाताओं की। कभी तुक्का सटीक बैठता है तो कभी गलत।

वैसे अच्छा पत्रकार वह है जो घटना घटित होने के पूर्व ही उसकी घोषणा कर दे और जब सही न निकले तो अपने तर्कों से यह साबित कर दे कि यह क्यों नहीं हुई। ज्योतिषी भी यही करते हैं। ऐसे तीर-तुक्कों बावजूद भी पत्रकारिता और ज्योतिष का धंधा फलता-फूलता रहता है।

3.11.20

आखिर मंदिर में तुमको नमाज़ पढ़ना ही क्यों है?

मशाहिद अब्बास

मंदिर हो मस्जिद हो गुरुद्वारा हो या फिर गिरजाघर हो, सभी पवित्र स्थल हैं और सबकी अपनी-अपनी पवित्रता है. हर धर्म के लोगों को अपने पवित्र स्थल से एक खास लगाव होता है. यह लगाव प्रेम से कहीं अधिक होता है यह आस्था से जुड़ा हुआ होता है और जब किसी के आस्था पर चोंट पहुंचती है तो वह आगबबूला हो जाता है,  क्रोधित हो जाता है. सब्र कर पाना मुश्किल होता है. इसीलिए हमेशा कहा जाता है कि कभी किसी के आस्था को चोंट नहीं पहुंचानी चाहिए. मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा और चर्च ये सभी इबादतगाहें हैं पूजा स्थल हैं. कोई भी धर्म का मानने वाला कभी भी अपने पवित्र जगह को अपवित्र नहीं करना चाहता है. मथुरा में जो हुआ उसके प्रति लोगों की अलग अलग राय है. पहले जान लेते हैं कि मामला दरअसल था क्या.

अपनी बर्बाद का खुद ही स्वागत करता भारतीय मुस्लिम समुदाय

 
भारतीय मुस्लिम समुदाय की त्रासदी... भारतीय मुस्लिम समुदाय ने अपनी पिछले करीब 30- 40 वर्षों की भयंकर गलती से भी सबक नहीं सीखा है, और वह गलती है- मुस्लिम  बच्चों को स्कूल - कॉलेज से दूर रखना।

स्मृतियों के कोलाज में जिंदा हो उठे संदीप दा

भास्कर गुहा नियोगी
 
वाराणसी। कामरेड संदीप घटक के असामयिक मृत्यु के बाद आयोजित श्रद्धांजलि सभाओं में  वक्ताओं के स्मृतियों ने उनसे जुड़ी किस्से-कहानियों की कोलाज में संदीप दा को जीवित कर दिया।

1.11.20

क्या वर्तमान दलित राजनीति का स्वर्णिम युग है?

-एस आर दारपुरी, राष्ट्रीय प्रवक्ता आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट

हाल में एक साक्षात्कार में चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण ने कहा है कि वर्तमान दलित राजनीति का स्वर्णिम काल है। वैसे आज अगर दलित राजनीति की दश और दिशा देखी  जाए तो यह कहीं से भी उसका स्वर्णिम काल दिखाई नहीं देता है बल्कि यह उसका पतनकाल है। एक तरफ जहां दलित नेता दलित विरोधी पार्टियों में शरण लिए हैं वहीं शेष दलित पार्टियां इतनी कमजोर हो गई हैं कि वे राजनीति में कोई प्रभावी दखल नहीं दे पा रही हैं। इधर जिन दलित पार्टियों ने जाति की राजनीति को अपनाया था वे भाजपा के हाथों बुरी तरह से परास्त हो चुकी हैं क्योंकि उनकी जाति की राजनीति ने भाजपा फासीवादी हिन्दुत्व की राजनीति को ही मजबूत करने का काम किया है। परिणामस्वरूप इससे भाजपा की जिस अधिनायकवादी कार्पोरेटप्रस्त राजनीति का उदय हुया है उसका सबसे बुरा असर दलित, आदिवासी, मजदूर, किसान और अति पिछड़े वर्गों पर ही पड़ा है। निजीकरण के कारण दलितों का सरकारी नौकरियों में आरक्षण लगभग खत्म हो गया है। श्रम कानूनों के शिथिलीकरण से मजदूरों को मिलने वाले सारे संरक्षण लगभग समाप्त हो गए हैं।

लुका छुपी का खेल खत्म, मायावती अब भाजपा के साथ- एआईपीएफ

मायावती ने आज उत्तर प्रदेश में राज्यसभा चुनाव को लेकर बसपा के सात विधायकों द्वारा विद्रोह करके सपा में चले जाने पर कहा कि वह सपा को हराने के लिए बीजेपी समेत किसी भी विरोधी पार्टी के उम्मीदवार को समर्थन दे देंगी। मायावती के इस बयान से यह स्पष्ट हो गया है कि अब वह खुलकर बीजेपी के साथ आ गई हैं और उनका बीजेपी के साथ अब तक चल रहा लुका छुपी का खेल खत्म हो गया है। मायावती ने इसी प्रकार का बयान मेरठ में एक चुनावी सभा में मुसलमानों को लेकर भी दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि चूंकि मुसलमानों का कोई भरोसा नहीं है, अतः उन्होंने अपने वोटरों को कह दिया है कि वे अपना वोट मुसलमान प्रत्याशी को न देकर भाजपा प्रत्याशी को दे दें। यह उल्लेखनीय है कि मायावती इससे पहले भी तीन बार भाजपा के साथ गठजोड़ करके मुख्यमंत्री बन चुकी हैं और अब भी उससे हाथ मिलाने में उन्हें कोई परहेज नहीं है।

आईआईएमसी में संघी बैकग्राउंड के लोगों की नियुक्तियां क्यों न हो!

 Ashish Kumar 'Anshu'

आईआईएमसी में नियुक्तियों से ठीक पहले दो नामों को लेकर दिल्ली से लेकर भोपाल तक चर्चा थी। एक दिल्ली विश्वविद्यालय की प्राध्यापिका हैं और दूसरे आईआईएमसी के वर्तमान डीजी के करीबी मित्र बताए जाते हैं। संयोगवश इन दोनों का चयन इस बार आईआईएमसी में नहीं हो पाया। इससे इतना तो स्पष्ट है कि संस्थान ने चयन की प्रक्रिया में पारदर्शिता बरती है। जिस तरह पांच लोगों का पैनल बनाया गया। उसमें यूजीसी गाइडलाइन के अनुसार एक अनुसूचित जाति से आने वाले शिक्षक शामिल थे। अब नियुक्तियों पर जो लोग सवाल उठा रहे हैं, उन्हें मेरिट पर सवाल उठाना चाहिए। चयनित लोगों के मेरिट पर बोलने के लिए उनके पास कुछ नहीं है तो वे विचारधारा पर सवाल उठा रहे हैं।

अब चुनावी मुद्दे बदलने लगे हैं

पिछले वर्षों में मतदाताओं ने देश के नाम वोट वोट देने के साथ केंद्र की सत्ता में परिवर्तन किया है ।  धीरे धीरे उसका प्रतिफल भी दिखने लगा है ।  बिहार चुनाव को क़रीब से देखें तो पता चलेगा कि  अब चुनावी मुद्दे भी बदलने लगे हैं । शुरुआती दौर में कश्मीर में प्लॉट ख़रीदने जैसे बयान सुनाई दिए उसके बाद की रैलियों में शिक्षा, रोज़गार, खेती किसानी, सिंचाई आदि मूलभूत ज़रूरतों की तरफ़ ध्यान दिया जाने लगा है । उम्मीदवारों के समर्थन में तेजस्वी लगातार मज़दूर और किसान एकता के नारों को दोहरा रहे हैं । उम्मीद हैं इस बार का बिहार चुनाव एक नई कहानी लिखेगा, जिसमें शिक्षा और रोज़गार के साथ मज़दूरों गरींबों के हक़ पर कुछ नए और बड़े फ़ैसले लिए जाएँगे । एक नए बिहार को देखने का सपना करोड़ों बिहारी के साथ अन्य राज्यों के नागरिकों को भी है, चूँकि बढ़ती जनसंख्या के नाते अन्य राज्य अपने आप को यह कहकर किनारे कर लेते हैं कि  राज्य की जनसंख्या ज़्यादा है । उम्मीद है बिहार आगामी वर्षों में देश के लिए मिशाल बनेगा।  

वाल्मीकि जयंती के बहाने हिन्दूवाद

(कंवल भारती)

उत्तरप्रदेश की भगवा दल वाली योगी सरकार ने हाथरस कांड से हुए राजनीतिक नुकसान की भरपाई के लिए को प्रत्येक जिले में वाल्मीकि-जयंती (31 अक्टूबर) सरकारी स्तर पर मनाने का निर्णय लिया था. राज्य सरकार के मुख्य सचिव आर. के. तिवारी ने मंडल आयुक्तों और जिला अधिकारियों को जो आदेश जारी किया था, उसमें कहा गया है कि महर्षि वाल्मीकि से सम्बन्धित स्थलों व मंदिरों आदि पर अन्य कार्यक्रमों के साथ-साथ दीप प्रज्वलन, दीप-दान और अनवरत आठ, बारह या चौबीस घंटे का वाल्मीकि-रामायण का पाठ तथा भजन आदि का कार्यक्रम भी कराया जाए. निश्चित रूप से यह वाल्मीकियों को लुभाने की ऐसी शातिर चाल है, जो एक तीर से दो निशाने साधती है.