Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

22.11.20

झोला छाप डॉक्टरी कर लें लेकिन स्वतंत्र पत्रकारिता में न आएं

कोरोना ने सभी पर असर डाला है  वह आम आदमी से लेकर खास क्यों न हो बस दो जमात ऐसी हैं जिन पर कोरोना का असर नहीं पड़ा है उसमें पहला है मेडिकल सेक्टर यानी हॉस्पिटल और उससे जुड़े व्यवसायी। जिसमें पैथॉलजी, मेडिकल स्टोर, रेडियोलॉजी आदि शामिल है। अब अगर दूसरे सेक्टर की बात करें तो उसमें आता है,खाद्य सेक्टर इसमें किराना स्टोर सब्जी आदि की दुकानें शामिल हैं। इन दोनों के व्यवसाय में बहुत तेजी से उछाल आया है। सामान्य दिनों से भी ज्यादा। अब मुद्दे पर आते हैं कोरोना ने जिन पर सबसे ज्यादा असर डाला है उनमें एक सेक्टर पत्रकारिता का भी शामिल है।
इस कोरोना काल ने कई नामचीन पत्रकारों को घर बैठने पर मजबूर कर दिया। लेकिन पत्रकारों की इसी जमात में एक ऐसा भी प्राणी शामिल है जो निहायत ही मजबूर कहा जा सकता है। वह है स्वतंत्र पत्रकार। सच कहूं उन्हीं में मैं भी शामिल हूँ। लेकिन दर्द कहा भी जाये तो किससे। कोरोना के पहले ढेर सारी स्टोरी छप जाती थी तो सामान्य जीवन यापन भर का पैसा महीने दो महीने पर  मिल जाता था । लेकिन वाह रे कोरोना। इसके चलते न घर के रहे न घाट के । किसी से दर्द कहा नहीं जा रहा है।

पिछले 15 दिनों से पत्नी की तबियत खराब चल रही थी। लेकिन अचानक तबियत ज्यादा खराब हुई तो एक निजी हॉस्पिटल में भर्ती कराना पड़ा । यहां आने के बाद पता चला कि पत्नी गंभीर रूप से कोरोना से पीड़ित हो चुकी है। सरकारी में इस लिए नहीं ले गया क्यों कि मुझे यह पता है कि सरकारी डॉक्टर कोरोना पीड़ितों के साथ किस तरह का व्यवहार कर रहें हैं। अब एक स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर पिछले 7 महीने से सारी जमा पूंजी खर्च कर चुका मुझ जैसा प्राणी जब हर रोज औकात से ज्यादा दवा पर खर्च करेगा तो खुद पर झल्लाहट होगी ही। वैसे सरकार से कृषि पत्रकारिता के लिए मुझे  इस साल 1 लाख का पुरस्कार भी मिला था लेकिन वाह रे दुर्भाग्य हर साल टैक्स नहीं कटता था इस साल 40 हजार टैक्स भी काट लिया। सरकार से टैक्स काट कर जो 60 हजार मिले थे उसी में कुछ पैसे बचे थे जिससे पत्नी का इलाज करवा रहा  लेकिन अब जब जेब खाली होती जा रही है तो झल्लाहट भी बढ़ती जा रही है सभी के लिए यही सलाह है कि स्वतंत्र पत्रकारिता में  न खुद आएं और न ही अपनी आने वाली पीढ़ियों को आने दें।

अगर जीवन को सुखमय बनाना चाहते हैं तो बहुत सारे व्यसाय हैं। सब्जी बेच लीजिये, ठेला लगा लीजिये, दुकान खोल लीजिये, झोला छाप डॉक्टर बना दीजिये लेकिन इस सेक्टर की तरह आंख उठा कर भी न देखिए। यह आप को कहीं का नहीं छोड़ता है। मैं अपने दर्द को इस भड़ास में किस तरीके से लिख रहा हूँ मुझे खुद नहीं पता है। और न ही पता करने की कोशिश कर रहा हूँ। और एक बात और है यह भड़ास इस लिए नही  लिख रहा हूँ कि आप सभी आर्थिक मदद करें। बस सचेत कर रहा हूँ कि जो सेक्टर जीवन के कठिन परिस्थितियों में काम न आये उसमें जबरदस्ती घुसने की कोशिश न करें। मेरा यह उलूल जलूल लिखा अगर आप को बुरा लगे तो मन भर गरिया लेना। यह भड़ास महज सच्चाई को बताना है, इसे मन कहे तो पढ़ें और अमल करें नहीं तो आप की इच्छा पर है

बृहस्पति पांडेय
BRIHASPATI KUMAR PANDEY
brihaspatikp@gmail.com

2 comments:

Unknown said...

To kya hua hum sab apke sath hay..
Apke Shri mati ji Ka elag bhi Hoga..
Akash kumar
9506488953

Account number share me boss..
All is well..

प्रवीण 'महेन्द्र' said...

कड़वी मगर सच🙏🙏