खुद को देश का नम्बर वन हिंदी दैनिक बताने वाले एक अखबार की पहाड़ यूनिट को लेकर यह कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है। यूनिट पट्टाधारक मठाधीशों से भरी पड़ी है। पट्टाधारक इस संदर्भ में कि यूनिट में कोई डेढ़ दशक तो कोई दो दशक से कुंडली जमाए पड़ा है। कोरोना काल में छंटनी की बारी आते ही पट्टाधारकों ने मजबूती से एक दूसरे की कुर्सियां थाम ली। बड़े वालों ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए कइयों की बलि ले ली। जबकि कुछ अभी भी आंखों में खटक रहे हैं। पूरे गैंग का उद्देश्य एक ही है कि बस किसी तरह अपनी कुर्सी बच जाए, बाकी अखबार भले ही दो नम्बर से खिसक तीसरे पायदान पर पहुंच जाए।
इसी कारण मठाधीशों का सारा समय केवल दूसरों की कमियां ढूंढने में गुजरता है। इसके लिए सुबह से रात तक खाओ कम, फैलाओ ज्यादा की थीम पर व्हाट्सएप-व्हाट्सएप खेलते हैं। व्हाट्सएप में जितना दम दिखाते हैं, उसका आधे से आधा भी धरातल पर दिखाएं तो अखबार की रंगत अलग हो। कई की नौकरी तो ग्रुप में सिर्फ ट्वीट और वीआईपी कार्यक्रम डालने पर चल रही है। जबकि कुछ माइक्रोस्कोप से निचले वालों की कमियां ढूंढकर और बात का बतंगड़ बनाकर ही रोजी रोटी चला रहे हैं।
कुल मिलाकर मठाधीश मिलकर एक दूसरे की कमियां या कहें कि (कांड) छिपाते हैं और दूसरों की मामूली कमियां ढूंढकर उनपर गिद्ध की तरह टूट पड़ते हैं। हाल ही में एक सूरमां का बिस्तर बंधा, तो यूनिट में खुशी की लहर दौड़ गई। कुछ ने तो खुशी में पार्टी भी कर डाली कि चलो एक आफत से तो छुटकारा मिला। लेकिन मठाधीशों का वही फार्मूला काम आया, सबने मिलकर नोएडा में बैठे हाईकमान को ही गुमराह कर डाला। दीमक की तरह अखबार को चट कर रहे इस गैंग पर मालिकान ने जल्द चाबुक नहीं चलाया तो कई अन्य यूनिटों की तरह इस यूनिट पर ताला लगना निश्चित है।
Faiz Kumar
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