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30.4.20

पूछता है भारत, कब पीले होंगे हाथ!!

कोरोना को लेकर मौजूदा व्यवस्था पर व्यंग्य
 

शिवाजी राय

कोरोना का भला नहीं होने वाला है...कोरोना ने लोगों से क्या क्या नहीं छीन लिया...अर्से बाद मेरे एक मित्र शादी के बंधन में बंधने जा रहे थे..कि बीच में कोरोना आ धमका...और उनके गुलाबी सपनों पर 20 सेकेंड तक डिटर्जेंट मल कर चला गया...अब मित्र के बचे खुचे ख्वाब भी क्वरंटिन हो चले हैं...

उत्तराखंड के कुछ ख़ास जनपदों से ग्राउंड रिपोर्ट



कुमुद ऋषभ


खुदरा एंव  अन्य समुदाय के व्यापारियों  समेत उत्तराखंड राज्य के दुर्गम व सुगम क्षेत्रों के बाशिन्दों को करना पड़ रहा  मुश्किलों का सामना :

भारत में कोरोना वायरस से बचने के लिए केंद्र सरकार ने  देश को 14 अप्रैल तक लॉक डाउन करने का एलान किया था। बाद में इसे बढ़ाते हुए 3 मई तक कर दिया है जिससे नागरिकों को तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। खासकर उन लोगों को ज्यादा परेशानी उठानी पड़ रही है जो प्रवासी मजदूर और ठेला-खुमचा लगाने वाले लोग और स्थानीय एंव प्रवासी व्यापारी इसमें कुछ अल्पसंख्यक समुदाय के व्यापारी भी शामिल हैं।

कहानी अधूरी छोड़कर जाने वाला नायक इरफान ख़ान

“दुख सबको माँजता है / और चाहे स्वंय सबको मुक्ति देना वो न जाने / किन्तु जिनको माँजता है/ उन्हें ये सीख देता है कि सबको मुक्त रखे” – अज्ञेय

जैविक बीमारी कोरोना नें हमें हमारे दुख में भी अकेला कर दिया है। अपने-अपने घरों में रहते हुए दुख की घड़ी में किसी को गले नहीं लगा सकते। लेकिन, यही दुख हमें जोड़ भी रहा है। हमारे भाव एवं विचार इस संकट की घड़ी में एक-दूसरे के साथ हैं। आज सुबह अभिनेता इरफ़ान ख़ान की मृत्यु ने हमें एक साथ लाकर खड़ा कर दिया है। साहित्य, सिनेमा, राजनीति, मीडिया ही नहीं, हर विचार, हर क्षेत्र के लोगों के लिए अभिनेता इरफ़ान ख़ान का जाना एक दुखद संदेश है।

ग्रामीण इलाकों में कच्ची शराब का कारोबार फल-फूल रहा है

कालाढूंगी। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के निर्देशन पर जिले में चलाए जा रहे कच्ची शराब बनाने और अवैध तरीके से शराब की तस्करी करने वालों पर लगातार  पुलिस द्वारा धरपकड़ जारी है लेकिन ऐसे लॉकडाउन में भी शराब की दुकानें बंद होने का फायदा उठाते हुए अवैध कच्ची शराब बेचकर मुनाफा कमाने की जुगत लगा रहे है ऐसे माफियाओ के हौसले बुलंद है । इस दौरान लॉकडाउन के चलते शराब की दुकानें बंद हैं ऐसे में ग्रामीण इलाकों में कच्ची शराब का कारोबार फल-फूल रहा है।

निगेटिव न्यूज ट्रैक के तहखाने में कैद...


प्रिंस कुमार


पत्रकारिता से जुड़े कुछ साहसी और जाबाज पत्रकारों के कारण ही देश का चौथा स्तंभ वर्तमान समय में चारो खाने चित होने से बचा हुआ है। लेकिन इन पत्रकारों के सामने निगेटिव और पॉजेटिव न्यूज मोड ने बड़ी समस्या खड़ी कर दी है। अखबार से लेकर बड़े-बड़े न्यूज चैनल तक पॉजेटिव खबर को तरजीह देते हैं।

28.4.20

कारपोरेट घरानों पर सम्पत्ति कर लगा संसाधन जुटाने की जगह कोरोना योद्धा सरकारी कर्मियों पर ही कहर ढा रही सरकार

कारपोरेट पर सम्पत्ति कर लगा संसाधन जुटाए सरकार

 कोरोना योद्धा कर्मचारियों पर दमन ढाना बंद करे सरकार

भत्तों व डीए कटौती समेत सभी मजदूर विरोधी फैसले लिए जाएं वापस

लखनऊ : कोरोना के खिलाफ जमीनीस्तर पर युद्ध लड़ रहे कर्मचारियों के डीए व भत्तों में कटौती कर उनका मनोबल तोड़ने और काम के घंटे बढ़ाने, छटंनी करने जैसे मजदूर विरोधी फैसलों को सरकार को तत्काल प्रभाव से वापस लेना चाहिए और संसाधन जुटाने के लिए कारपोरेट घरानों पर सम्पत्ति कर लगाकर कोरोना संक्रमण के विरूद्ध कार्य करना चाहिए। यह प्रतिक्रिया वर्कर्स फ्रंट के अध्यक्ष व स्वराज अभियान नेता दिनकर कपूर ने प्रेस को जारी अपने बयान में व्यक्त की।

23.4.20

पृथ्वी दिवस पर विशेष : धरती माता को बुखार, है कोई सुनने वाला!

जयराम शुक्ल

इस साल धरतीमाता को पूरे साल शरद-गरम रहा। जब हम धूप की उम्मीद करते तो पानी गिरता। जब चाहते कि इंद्रदेव खेती पर कृपा करें तब आसमान से आग बरसती। कभी आँधी-तूफान, तो कभी ओला-पाला। धरती माता की तबियत ठीक ही नहीं हो रही, उसे बुखार है, वह तप रही है। उसे कभी निमोनिया होता है तो कभी फ्लू। हम अपने में ही मरे जा रहे, अपने में ही मस्त और त्रस्त हैं। जो माता हमें पालती है उसकी सुधि लेने का वक्त नहीं।

मीडियाकर्मी भी कोरोना फाइटर्स जैसा सम्मान और सुरक्षा पाने के हकदार

कृष्णमोहन झा

देश में कोरोनावायरस के संक्रमण को फैलने  से रोकने के लिए जब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने लाक डाउन लागू करने की घोषणा की तो अधिकांश आबादी की ज़िन्दगी घर की चहार दीवारी के भीतर सिमट कर रह गई  और जब देश के विभिन्न राज्यों में इस वायरस के संक्रमण का दायरा बढने लगा तो  यह जानने के लिए लोगों की अधीरता भी बढने लगी कि देश के किस राज्य में कोरोना वायरस के संक्रमण की क्या स्थिति है | लोगों की यह अधीरता अभी भी बरकरार है बल्कि अगर यह कहें कि कोरोना को लेकर देश दुनिया के हालात जानने की यह उत्सुकता पहले से भी अधिक बढ़ गई है तो गलत नहीं होगा |

22.4.20

कोरोना काल में मेरा शहर खड़गपुर भी इंटरनेशनल हो गया ...!!

कोरोना काल में  मेरा शहर खड़गपुर  भी इंटरनेशनल हो गया ...!!
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तारकेश कुमार ओझा

कोरोना के कहर ने वाकई दुनिया को गांव में बदल दिया है . रेलनगरी खड़गपुर का भी यही हाल है . बुनियादी मुद्दों की जगह केवल कोरोना और इससे होने वाली मौतों की चर्चा है . वहीं दीदी -मोदी की  जगह ट्रम्प और जिनपिंग  ने ले ली है .
सौ से अधिक ट्रेनें ,  हजारों यात्रियों का  रेला  , अखंड कोलाहल और चारों पहर ट्रेनों की  गड़गड़ाहट जाने कहां खो गई . हर समय व्यस्त नजर आने वाला खड़गपुर रेलवे स्टेशन इन दिनों बाहर से किसी किले की  तरह दिखाई देता है. क्योंकि स्टेशन परिसर में लॉक डाउन के  दिनों से डरावना सन्नाटा है. स्टेशन के  दोनो छोर पर बस कुछ सुरक्षा जवान ही खड़े नजर आते हैं . मालगाड़ी और पार्सल ट्रेनें जरूर चल रही है . आलम यह कि स्टेशन में  रात - दिन होने वाली जिन उद्घोषणाओं से  पहले लोग झुंझला उठते थे , आजकल वही उनके कानों में  मिश्री घोल रही है . माइक बजते  ही लोग ठंडी सांस छोड़ते हुए कहने लगते है़ं ... आह बड़े दिन बाद सुनी ये आवाज ...उम्मीद है जल्द ट्रेनें चलने लगेगी ....। रेल मंडल के दूसरे स्टेशनों का भी यही हाल है . यदा - कदा मालगाड़ी और पार्सल विशेष ट्रेनों  के  गुजरने पर ही इनकी मनहूसियत कुछ दूर होती है . हर चंद मिनट पर पटरियों पर दौड़ने वाली तमाम मेल , एक्स्प्रेस और लोकल ट्रेनों के  रैक श्मशान से सन्नाटे में डूबी वाशिंग लाइन्स पर मायूस सी खड़ी है . मानों कोरोना के  डर से वे भी सहमी हुई है . नई पीढ़ी के  लिए लॉक डाउन अजूबा है , तो पुराने लोग कहते हैं ऐसी देश बंदी या रेल बंदी न कभी देखी न सुनी । बल्कि इसकी कभी कल्पना भी नहीं की  थी . कोरोना का  कहर न होता तो खड़गपुर इन दिनों नगरपालिका चुनाव की  गतिविधियों में आकंठ डूबा होता .चौक - चौराहे सड़क , पानी , बिजली और जलनिकासी की चर्चा से सराबोर रहते , लेकिन कोरोनाकाल से  शहर का मिजाज मानों अचानक इंटरनेशनल हो गया . लोकल मुद्दों पर कोई बात ही नहीं करता .एक कप चाय या गुटखे की  तलाश में  निकले शहरवासी मौका लगते ही कोरोना के  बहाने अंतरराष्ट्रीय मुद्दों की  चर्चा में  व्यस्त हो जाते  हैं . सबसे ज्यादा चर्चा चीन की  हो रही है . लोग गुटखा चबाते  हुए कहते हैं ....सब चीन की  बदमाशी है ....अब देखना है अमेरिका इससे कैसे निपटता है ....इन देशों के साथ ही इटली , ईरान और स्पेन आदि में  हो रही मौतों की  भी खूब चर्चा हो रही है . कोरोना के असर ने शहर में   हर - किसी को अर्थ शास्त्री बना दिया है. एक नजर पुलिस की  गाड़ी पर टिकाए  मोहल्लों के  लड़के कहते हैं ....असली कहर तो बच्चू   लॉक डाउन खुलने के  बाद टूटेगा ... बाजार - काम धंधा संभलने  में  जाने कितना वक्त लगेगा . कोरोना से निपटने के राज्य व केंद्र सरकार के  तरीके भी जन चर्चा के  केंद्र में  है .
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लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ट पत्रकार हैं। संपर्कः 9434453934, 9635221463

20.4.20

इसे कहते हैं"कर्म"योगी होना...!

इसे कहते हैं"कर्म"योगी होना...
ये कोई योगी ही कर सकता है।वैसे तो उन्हें कल रात ही पता चल गया था कि उनके इस भौतिक शरीर को जन्म देने वाले पिता अंतिम सांसें गिन रहे हैं। सूचना कभी भी आ सकती है।कोई दूसरा मुख्यमंत्री या सामान्य व्यक्ति भी होता तो इतनी खबर पर ही उपलब्ध साधन के आधार पर पिता के पास पहुंचने की कोशिश करता मगर योगीजी ने ऐसा नहीं किया बल्कि एक मुख्यमंत्री के रूप में कोरोना रूपी वैश्विक आपदा के समय अपने कर्तव्यों को अंजाम देने में जुटे रहे।और आशंका के बीच आज सुबह ऐसी ही एक मीटिंग के दौरान जब उन्हें अपने पिताजी के गोलोकवासी होने की सूचना मिली तो वे क्षण भर के लिए विचलित तो हुए और ऐसा होना प्राकृतिक रूप से स्वाभाविक भी है।फिर उन्होंने एक योगी की तरह अपनी भावनाओं को नियंत्रित किया।एक साधक की तरह अपनी भावनाओं और कर्तव्यों के बीच संतुलन साधा।




और जुट गए फिर अपने कर्तव्यपथ पर। एक मुख्यमंत्री के रूप में अपने राजधर्म को उन्होंने अपने पुत्रधर्म पर वरीयता देते हुए जो संदेश इस पत्र में अपने परिजनों को भेजा है, उसे पढ़िये आप लोग......


 "इसे कहते हैं "कर्म" योगी होना" मुझे गर्व है कि @Myyogiaditynath हमारे मुख्यमंत्री हैं।पितृशोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके साथ हैं। ईश्वर से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें और दुःख की इस घड़ी में परिजनों को संबल प्रदान करे🙏

19.4.20

कोरोना कहर ने बना दी तीसरे विश्वयुद्ध की भूमिका, जैविक हथियारों के इस्तेमाल होने की पूरी आशंका?



द्वितीय विश्व युद्ध में जब अमेरिका ने जापान के शहर हिरोशिमा और नागाशाकी पर परमाणु बम गिराया तो उसके ऐसे दुष्परिणाम सामने आये कि दुनिया में मानवता को बचाने के लिए परमाणु नीति पर विश्वस्तरीय मंथन हुआ। परमाणु बम पर प्रतिबंध के लिए कड़े नियम कानून बने। जैविक हथियारों के प्रतिबंध के लिए विश्वस्तरीय नीति बानी।

कोरोना महामारी ने झुठलाया शोले फिल्म का चर्चित संवाद


  
भारतीय फिल्म जगत की एक चर्चित फिल्म है शोले वैसे तो इस फिल्म मे अनेको संवाद भारतीय दर्शको मे चर्चित है जो गाहे बगाहे अब भी दोहराए जाते है फिल्म के विलेन गब्बरसिह का उक्त संवाद "जो डर गया समझो मर गया"  बहुत चर्चित हुआ एवं साहस दिखाने का परिचायक भी बन गया था इस बहुचर्चित संवाद को कोरोना माहमारी के दौरान  बदला हुआ यूँ कहे की झुठलाता सा पाया जा रहा है।

क्या प्रधानमंत्री मध्य प्रदेश की तरफ़ भी देख रहे हैं?

-श्रवण गर्ग

कोरोना से दो-दो हाथ करने को लेकर इस समय दो मॉडलों की बड़ी चर्चा है।पहली,साढ़े तीन करोड़ की आबादी के राज्य केरल की है और दूसरी उससे कोई सौ गुना छोटे राजस्थान के भीलवाड़ा शहर की।केरल की कुल आबादी में कोई 95 लाख और भीलवाड़ा की कुल आबादी में पचास हज़ार मुस्लिम हैं।केरल में 29 जनवरी को कोरोना का पहला केस दर्ज हुआ था और भीलवाड़ा में 20 मार्च को।केरल में अब तक के मृतकों की संख्या तीन है ।15 अप्रैल को केवल एक नया मामला सामने आया था।16 अप्रैल को खाड़ी से लौटने वालों के ज़रूर कुछ नए मामले सामने आ गए।भीलवाड़ा में कोई भी नया मरीज़ नहीं मिला है।

तो कोरोना पर भी शुरू हो गया मैनेज का खेल


मीडिया को समाज का आईना इसलिए  माना जाता है क्योंकि समाज में घटित हो रही गतिविधियों को दिखाने की नैतिक जिम्मेदारी मीडिया की होती है। मीडिया के कंटेंट्स को लेकर गंभीरता बरतने का भी यही कारण रहा है क्योंकि मीडिया समाज को प्रभावित करने वाला सबसे बड़ा तंत्र माना जाता है। आज के मीडिया की बात करें तो कुछ जुनूनी पत्रकारों को छोड़ दें तो पूरे के पूरे मीडिया का काम बस सरकारों और पूंजीपतियों की गलती पर पर्दा डालना और उनका प्रवक्ता बनना रह गया है। मतलब आज की मीडिया का काम बस मैनेज करना और प्रभावशाली लोगों के लिए काम करना रह गया है। कहना गलत न होगा कि समाज के लिए सबसे उपयोगी साबित होने वाला मीडिया आज समाज का सबसे अधिक नुकसान कर रहा है।

17.4.20

अंबेडकरी आंदोलन से दूर सफाई कामगार जातियां

संजीव खुदशाह

वैसे तो दलितों में विभिन्न जातियां होती है। विभिन्न जातियों के पेशे भी भिन्न भिन्न होते है। लोकिन पूरी दलित जातियों के बड़े समूह को दो भागों में बांट कर देखा जाता रहा है। पहला चमार दलित जातियां जो मरी गाय की खाल निकालती और उसका मांस खाती थी। दूसरा सफाई कामगार जातियां जो झाड़ू लगाने से लेकर पैखाना सिर पर ढोने का काम करती रही है।

कोविड -19 की रिपोर्टिंग में वैज्ञानिक दृष्टिकोण, विश्वसनीयता और तथ्यपरकता की जरूरत है - प्रोफेसर बंदना पांडेय


गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा के जन संचार एवं मीडिया अध्ययन विभाग ने '  कोविड -19 विमर्श: महामारी का सामना ' विषय पर विभाग के पहले वेबिनार का आयोजन किया


कोरोना वायरस की विश्वव्यापी महामारी से निपटने के लिए और लोगों को संक्रमण से बचाने के लिए राष्ट्रीय लॉक डाउन का दूसरा चरण तीन मई तक के लिए घोषित किया गया है। संकट की इस घड़ी में गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा में ऑनलाइन माध्यमों से शिक्षण कार्य जारी है और अत्याधुनिक संचार तकनीकों की सहायता से अनुसंधान और शैक्षणिक गुणवत्ता बढ़ाने में सहायक वेबिनार का आयोजन भी किया गया। जीबीयू के जन संचार और मीडिया अध्ययन विभाग की चेयरपर्सन और विभागाध्यक्ष प्रोफेसर बंदना पांडेय की पहल पर विभाग ने आज '  कोविड -19 विमर्श : महामारी का सामना ' विषय पर  वेबिनार का आयोजन किया।

12.4.20

दौर कुछ ऐसा आया है ....

देश - दुनिया की  विडंबना पर खांटी  खड़गपुरिया की चंद लाइनें ....
दौर कुछ ऐसा आया है  ....
तारकेश कुमार ओझा
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क्या कोलकाता , क्या खड़गपुर
गया  हो या टाटा
कोरोना वायरस से कांपी दुनिया
गांव शहर है सन्नाटा
हर चेहरे पर चस्पा दहशत
दौर कुछ ऐसा आया है .
कैसी होगी भविष्य की दुनिया
सोच कर दिल घबराया है .
घर से चलेंगे बाबुओं के दफ्तर
गरीब भटकेंगे दर - ब- दर
अहसास से मन अकुलाया है ,
दौर कुछ ऐसा आया है .
बंद कमरों में  होली - दीवाली
दूर की  कौड़ी बकलौली - बतरस
व्वाट्सएप पर मिलेंगे स्नेह निमंत्रण
स्क्रीन पर मिटेगी  शादी - बारात की  हसरत
 भयाकुल मन भरमाया है
दौर कुछ ऐसा आया है .

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लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ट पत्रकार हैं। संपर्कः 9434453934, 9635221463

गैर-कोरोना मरीजों की मुश्किलें बढ़ीं, इलाज के अभाव में बच्चे ने दम तोड़ा

सेवा में ,

श्रीमान् प्रधानमंत्री जी,

भारत सरकार, नई दिल्ली,                                        

विषय- ग़ैर करोना मरीजों की देखभाल एवं उपचार की तत्काल व्यवस्था के संबंध में ।

महोदय ,                                    

सविनय  एबीपी न्यूज़ चैनल पर आज दिनांक 11 अप्रैल को प्रसारित समाचार का संज्ञान ग्रहण करने का कष्ट करें जिसमें यह बताया गया कि बिहार राज्य के जहानाबाद जिले में एक महिला पुरुष अपने बच्चे के इलाज के लिए दर-दर की ठोकरें खाते हुए किसी प्रकार से स्थानीय अस्पताल में भी पहुंचे तो वहां उसे समुचित इलाज मुहैया नहीं हो पाया। बजाय उसको जहानाबाद के लिए रेफर कर दिया किंतु नहीं उन्हें वहां तक पहुंचने के लिए एंबुलेंस ही उपलब्ध कराया गया, नहीं कोई व्यवस्था की गयी। इलाज के अभाव में बच्चे ने अंततः दम तोड़ दिया।

राजतंत्र से भी ज्यादा घातक साबित हो रहे हैं लोकतंत्र के ये शासक


CHARAN SINGH RAJPUT

लोकतंत्र में जनता का राज माना जाता है। मतलब शासक से बड़ी जनता होती है। क्या आज के शासक जनता के प्रति समर्पित हैं ? क्या लोकतंत्र की दुहाई देने वाले ये  शासक जनहित ध्यान में रखकर काम कर रहे हैं ? आज के हालात से तो बिल्कुल नहीं लग रहा है। दुनिया में तमाम प्रतिबंध के बावजूद, मानवता पर काम करने का दावा करने वाले अनगिनत संगठनों के बावजूद प्रभाव शाली देशों के शासक अपना धंधा चमकाने के लिए जनता के ही दुश्मन बने हुए हैं।  लोकतंत्र के रखवाले ही लोकतंत्र की ऐसी की तैसी करने में लगे हैं। जनता की आवाज को दबाने के लिए हद से गुजरा जा रहा है।  रोजी रोटी को दरकिनार कर हथियारों की खरीद फरोख्त दुनिया की पहली प्राथमिकता बनकर रह गई है।

9.4.20

करोना और तीन-बटे-तीन

पी. के. खुराना

बहुत से समाचारपत्रों में देवभूमि हिमाचल की पहाड़ियों और बस्तियों की सुंदर तस्वीरें छप रही हैं जो पंजाब और चंडीगढ़ में रह रहे लोगों ने अपने घर से ही देखीं। हिमाचल प्रदेश रमणीक तो है ही पर अब ट्रैफिक न होने और कारखानों का धुंआ न होने की वजह से हवा साफ हो गई है, हवा में ही नहीं, नदियों में भी प्रदूषण कम हो गया है, दिल्ली में यमुना नदी खुद-ब-खुद साफ हो गई है। हम लोग अपने-अपने घरों से ही प्रकृति का यह नज़ारा देख पा रहे हैं। शहरों की सड़कों पर वन्य जीव निर्भय विचरण करते दिखाई दे रहे हैं। कहीं हिरन घूम रहे हैं, कहीं मोर नाच रहे हैं। प्रकृति ने शहरों से मानो अपना हक मांगा है।

कोराना काल में नफ़रत व भेदभाव

( भंवर मेघवंशी )

हमारी संचित नफरतें कोराना के कुदरती कहर के वक्त भी उसी तरह प्रकट हो रही है ,जैसे सामान्य दिनों में होती रहती है ,वैसे भी जाति और धर्म आधारित घृणायें तात्कालिक नहीं होती है ,यह हमारे देश में लोगों के दिल ,दिमाग में व्याप्त है ,उसे थोडा सी हवा मिले तो अपने सबसे शर्मनाक स्तर पर बाहर आ जाती है .

FIR against Pramod Boro for spreading lie about Covid-19


New Delhi, 09 April 2020: Suleman Narzary, a resident of Kokrajhar Rupathi Nagar Ward No. 3, BTC Assam, lodged an FIR against Promod Boro, the President of UPPL(United People’s Party Liberal),a regional political party of Bodoland Territorial Council Assam at Kokrajhar Police Station on Monday under the IPC Section 182, 505 (1) (b) for spreading False information on the Covid-19 Pandemic.

कोई बोतल पड़ी है क्या ?

आजकाल दोस्तों/ रिश्तेदारों के फोन आते है। बडी आत्मीयता से पूछते हैं, कैसा चल रहा है ?  स्वास्थ कैसा है ? स्वास्थ ठीक रखने के बारे मे हिदायतें भी देते है।

मनरेगा मजदूरों का पैसा कब तक हजम करते रहेंगे ग्राम प्रधान



 सौरभ सिंह सोमवंशी

 शनिवार को जौनपुर के जिलाधिकारी दिनेश कुमार अपने कार्यालय में बैठे हुए थे उनके पास मोबाइल के व्हाट्सएप पर एक मैसेज आता है। जिसमें पचोखर गांव का एक पीड़ित सुभाष निषाद यह कह रहा है कि हमारे गांव के प्रधान पति श्री पहाड़ू यादव ने हमारे खाते से 4900 रुपए निकाल लिए और हमें सिर्फ 400रूपये दिया। इसमें बैंक मित्र ने भी प्रधान पति की मदद की।

आज हर मुस्लिम को जमाती समझा जाने लगा है

मुस्लिमों के प्रति दिनों दिन नफरत भारत के लोगों में कौन फैला रहा है ?
 
मुस्लिमों के प्रति दिनों दिन नफरत भारत के लोगों में जो फैल रही है. ऐसा भी कह सकते हो कि फैलाई जा रही है.इस बात को आप लोगों को बहुत ही गहराई से समझना होगा.क्योंकि बहुत बड़ा षड्यंत्र रचा गया है.जिसे समझना हर भारतवासी को बहुत जरूरी है.

मुसलमानों के बाद दलितों का नंबर आएगा

संजीव खुदशाह
कोरोना लॉक डाउन के दौरान डॉक्टर अंबेडकर की जयंती (14 अप्रैल) पड़ने वाली है। ऐसी स्थिति में स्वाभाविक है कि बहुजन समाज या अंबेडकरवादी लोग चाहे वह किसी भी जाति से ताल्लुक रखते हो भावनावश अंबेडकर की जयंती को हर्षोल्लास के साथ मनाएंगे।

झारखंड में कोरोना वायरस से पहली मौत, सरकार पर उठते सवाल


रूपेश कुमार सिंह
स्वतंत्र पत्रकार

झारखंड में कोरोना वायरस से मौत का सिलसिला शुरु हो गया है। बोकारो के गोमिया प्रखंड के बुजुर्ग मो. याकूब ने 8 अप्रैल को देर रात करीब डेढ़ बजे दम तोड़ दिया।बोकारो सिविल सर्जन डाॅ. अशोक कुमार पाठक ने कहा कि यह बुजुर्ग बीजीएच में बने आईसोलेशन वार्ड में भर्ती था।

5.4.20

टार्च जलाकर कोरोना भगाने की कवायद

उत्सव धर्मिता भी मानवीय स्वभाव का अभिन्न पहलू है। लोग अपनी धार्मिक अभिव्यक्तियों के लिए भी उत्सव धर्मिता का सहारा लेते हैं जबकि धर्म मुख्य रूप से साधना और समाधि का एकान्तिक विषय है। इसे देखते हुए उत्सव प्रियता के कारण किसी व्यक्ति या समाज का मखौल उड़ाने का कोई औचित्य नहीं है।

4.4.20

क्या कोरोना के उपचार की कोई जड़ी बूटी जंगलों में होगी?


वैज्ञानिक, तकनीकी क्रांति के बूम की बजाय इससे पहले का युग आज होता तो कोरोना महामारी रोकने के लिए लोग प्रयोगशाला में वैक्सीन विकसित होने की प्रतीक्षा करने की बजाय देहाती वैद्य के पास पहुंचते जो उनके विश्वास के मुताबिक जंगल जाकर एक वनस्पति उखाड़ लाता जिसमें इस बीमारी का सहज निदान छुपा होता।