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9.4.20

करोना और तीन-बटे-तीन

पी. के. खुराना

बहुत से समाचारपत्रों में देवभूमि हिमाचल की पहाड़ियों और बस्तियों की सुंदर तस्वीरें छप रही हैं जो पंजाब और चंडीगढ़ में रह रहे लोगों ने अपने घर से ही देखीं। हिमाचल प्रदेश रमणीक तो है ही पर अब ट्रैफिक न होने और कारखानों का धुंआ न होने की वजह से हवा साफ हो गई है, हवा में ही नहीं, नदियों में भी प्रदूषण कम हो गया है, दिल्ली में यमुना नदी खुद-ब-खुद साफ हो गई है। हम लोग अपने-अपने घरों से ही प्रकृति का यह नज़ारा देख पा रहे हैं। शहरों की सड़कों पर वन्य जीव निर्भय विचरण करते दिखाई दे रहे हैं। कहीं हिरन घूम रहे हैं, कहीं मोर नाच रहे हैं। प्रकृति ने शहरों से मानो अपना हक मांगा है।

हमने यह भी सीखा है कि हम घर बैठकर भी न केवल उपयोगी ढंग से समय बिता सकते हैं बल्कि कुछ नया भी कर सकते हैं, हम घर में रहकर भी मित्रों-रिश्तेदारों से संपर्क बनाए रह सकते हैं, हम जंक फूड के बिना भी जिंदा रह सकते हैं, अधिकांश स्थितियों में एकल परिवार की अपेक्षा सामूहिक परिवार ज़्यादा बेहतर है, भारतीय महिलाओं के योगदान की वजह से हमारा घर भी मंदिर समान ही है, जब स्थितियां विकट हों तो आपसी रिश्ते पैसे से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं।

यह सच है कि करोना ने विश्व को एक सूत्र में बांधने में मदद की है लेकिन करोना ने विश्व भर की अर्थव्यवस्था पर चोट भी की है। इसके कारण बहुत से रोज़गार नष्ट हो गए हैं, या अभी और रोज़गार नष्ट हो जाएंगे, बहुत सी नौकरियां चली जाएंगी, मंदी का यह दौर अभी कई महीने चल सकता है और हमें संयम से और आत्मबल से जीना सीखना पड़ेगा, बहुत से लोगों को अपने जीवन से विलासिता की बहुत सी चीजों को तिलांजलि देनी होगी। यह बहुत आसानी से नहीं होगा, लेकिन करोना के इस दौर ने हमें यह भी सिखाया है कि हम खुद को बदल सकते हैं, सामान्य जीवन जी सकते हैं, खुश रहने के कई कारण ढूंढ़ सकते हैं और सचमुच खुश रह सकते हैं।

लेकिन क्या ऐसे कुछ और भी सबक हैं जो हमें सीखने चाहिएं ?

इस समय हम लोग घर में समय बिताने के लिए विवश हैं लेकिन इस विवशता में कुछ छुपे हुए वरदान हैं जिन्हें पहचान लें तो हमारा भावी जीवन भी सुखद हो सकता है। बहुत से लोग चूंकि घर में ही हैं, न तो उन्हें कहीं आना-जाना है, न ही उनके पास कोई आने वाला है। परिणाम यह है कि यदि वे दफ्तर का काम कर भी रहे हैं तो भी वे रात के कपड़ों में ही हैं, शेव नहीं करते, तैयार नहीं होते, कुछ महानुभाव तो नहाने से भी छुट्टी ले चुके हैं। स्वस्थ रहने के लिए यह आवश्यक है कि हम इस “पायजामा मोड” से बाहर आयें और अपने दिन को पूरा सदुपयोग करें। हैपीनेस गुरू के रूप में अपनी वर्कशाप में मैं प्रतिभागियों को एक प्रभावी तरीका बताता हूं जिसमें एक नियम का पालन करना होता है जो सदैव उपयोगी रहा है। इस नियम को मैं “तीन-बटे-तीन” (थ्री-बाई-थ्री) का नाम देता हूं। करना सिर्फ यह होता है कि उठते ही हम सबसे पहले दस मिनट के लिए, कम से कम दस मिनट के लिए कुछ भी व्यायाम करें, प्राणायाम करें, उछलें, योग करें, कुछ भी करें पर शरीर में हरकत होने दें। इससे आपकी सुस्ती तुरंत भाग जाएगी और आप दिन के शेष कार्यों के लिए अपने शरीर को तैयार कर लेंगे। अब बारी है दिन के काम के लिए दिमाग को तैयार करने की। उसके लिए यह तय करें कि आप दिन में सबसे महत्वपूर्ण कार्य क्या करना चाहते हैं और शेष सारा दिन कैसे बिताना चाहते हैं। इसे लिख लें। याद्दाश्त पर निर्भर न रहें, लिख लेना महत्वपूर्ण है। दिन का काम शुरू कर देने के बाद हर तीन घंटे के बाद, याद रखिए, हर तीन घंटे के बाद अपने द्वारा लिखे गए दिनचर्या के निश्चय को पढ़ें और तय करें कि आपने अब तक जो किया, क्या वह उस उद्देश्य की पूर्ति में सहायक हुआ, जो आपने तय किया था। दिन में दो-तीन बार अपने काम की समीक्षा से आप समय की बर्बादी से बच जाएंगे, और आपकी उत्पादकता बढ़ जाएगी। तीन-बटे-तीन का यह नियम आपको उदासी से, हताशा से, बोरियत से बचाता है और प्रेरणा देता रहता है कि आप अपने लक्ष्य के प्रति और समय के प्रति सचेत रहें।

तीन-बटे-तीन के नियम का अगला भाग यह है कि हम जीवन के तीन क्षेत्रों में बराबर-बराबर काम करें। वे तीन क्षेत्र हैं, खुद हम, हमारे रिश्ते और हमारा लक्ष्य अथवा काम। इनमें से किसी एक की उपेक्षा भी हमारे लिए हानिकारक हो सकती है। आइये, ज़रा इसे समझने की कोशिश करते हैं।

कुछ लोग जीवन में आगे बढ़ना चाहते हैं। वे अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित होते हैं। अच्छी बात है, बहुत अच्छी बात है। लेकिन बहुत से लोग लक्ष्य के पीछे इतने पागल होते हैं कि वे न अपना ध्यान रखते हैं या न अपने रिश्तों का। जब हम व्यायाम नहीं करते, समय पर खाना नहीं खाते, पूरी नींद नहीं लेते तो हम अपने शरीर पर अत्याचार कर रहे होते हैं जिसका खामियाज़ा आगे जाकर हमें गंभीर बीमारियों के रूप में भुगतना पड़ता है। कई बार तो जीवन भर चलने वाले रोग लग जाते हैं। इसी तरह जब हम रिश्तों पर ध्यान नहीं देते, काम में इतना उलझ जाते हैं कि बीवी-बच्चों के लिए समय ही नहीं निकालते तो अक्सर बच्चे बिगड़ जाते हैं, गलत राह पर चल देते हैं, बीवियां इतनी निराश हो जाती हैं कि तलाक तक की नौबत आ जाती है। पुरुष अक्सर यह सोचता है कि वह बच्चे को महंगी शिक्षा दिलवा रहा है, बीवी के ऐशो-आराम के लिए मेहनत कर रहा है लेकिन भूल जाता है कि परिवार को उसका समय भी चाहिए, साथ भी चाहिए।

तीन-बटे-तीन के नियम की खासियत ही यही है कि यह हमें इन तीनों भागों को बराबर महत्ता देने के योग्य बनाता है। इस नियम पर चलने वाले लोगों को न केवल कैरिअर में उन्नति मिल रही है बल्कि वे खुशहाल पारिवारिक जीवन भी बिता रहे हैं। यह नियम जीवन भर काम आने वाला मंत्र है पर करोना जैसे कठिन समय में तो इसकी उपयोगिता कई गुना बढ़ जाती है। इसलिए आवश्यक है कि हम अपने जीवन की रूपरेखा बनाएं और उसके अनुसार खुद को ढालें ताकि जब यह कठिन दौर समाप्त हो हम तब भी इतने अधिक मजबूत हों कि आने वाले जीवन की अनिश्चितताओं को संभाल सकें।

मैं दोहराना चाहूंगा कि करोना से उत्पन्न स्थिति लंबी चल सकती है, मंदी का दौर लंबा चल सकता है, लॉक-डाउन भी कुछ और बढ़ सकता है और जब लॉक-डाउन खुलेगा तब भी सब कुछ एकदम से सामान्य नहीं हो जाएगा। ऐसे समय में योजनाबद्ध ढंग से काम करना बहुत उपयोगी होता है। हम इसका महत्व समझेंगे तो सफलता की राह पर निरंतर अग्रसर होते रहेंगे। आमीन ! 

“दि हैपीनेस गुरू” के नाम से विख्यात, पी. के. खुराना दो दशक तक इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुस्तान टाइम्स, दैनिक जागरण, पंजाब केसरी और दिव्य हिमाचल आदि विभिन्न मीडिया घरानों में वरिष्ठ पदों पर रहे।

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