नव वर्श की हार्दिक शुभकामनाए
अलविदा 2008
नई किरन के साथ आगमन 2009
GYANENDRA KUMAR
HINDUSTAN, AGRA
31.12.08
Posted by gyanendra kumar 1 comments
हैप्पी न्यू ईयर
New Year Cards by ScrapU |
Fresh Air….
Fresh Idea….
Fresh Talent….
Fresh Energy….
I wish U to have a …..
Sweetest Sunday,
Marvellous Monday,
Tasty Tuesday,
Wonderful Wednesday,
Thankful Thursday,
Friendly Friday,
Successful Saturday.
Have a great Year.
HAPPY NEW YEAR
Posted by सचिन मिश्रा 1 comments
आंग्ल नव वर्ष 2009 की शुभकामनायें
समस्त पाठक गणों भडास से जुडे हुये सभी मित्र यशवंत दादा,रजनीश जी,बडे भाई रूप्ेश जी ,राजीव रंजन जी,अर्जुन निराला जी ,मुकेश जी सहित सभी पाठको मेरी तरु से नये वर्ष् की हार्दिक शुभकामनायें स्वीकार ।
शशिकान्त अव्सथी
कानपुर ।
ें
Posted by शशिश्रीकान्त अवस्थी 4 comments
चला,,,,, मैं चला,,,,,,,,,,,
प्रिय दोस्तों !
मैं साल 2008 हूँ, चौंक गए न ? मैंने आप सभी के साथ काफी वक्त गुजारा तो सोचा कि मैंने इस दुनिया को किस तरह समझा, इस राज को आपके साथ बांटता चलूँ ! चलते-चलते क्यों न अपनों से बात कर ली जाए, जिस तरह दुनिया का नियम है जो आया है, उसे जाना है ! मेरा भी वक्त ख़तम हो चला है और मुझे इसे 'एक्सेप्ट' करने में कोई 'प्रॉब्लम' भी नहीं है ! वैसे भी 'लाइफ' में जो भी जैसे मिले, अगर उसे वैसे ही 'एक्सेप्ट' कर लिया जाए तो जिंदगी थोड़ी आसान हो जाती है ! ये है मेरा पहला सबक जो मैं आपके साथ बांटना चाहता हूँ ! मुझे याद है जब मैं आया था तो लोगों ने तरह-तरह से खुशियाँ मनाकर मेरा स्वागत किया था ! वे मानते थे कि मैं उनके जीवन में खुशियों की बहारें लेकर आऊंगा ! कुछ की उम्मीदें पूरी हुयीं, कुछ की उम्मीदें टूटीं, कुछ को मायूसी हाथ लगी और अब उम्मीदों का सेहरा मेरे छोटे भाई साल 2009 पर होगा ! जाते साल का दूसरा सबक किसी से 'एक्सपेक्टेशन' मत रखिये ! क्योंकि अगर 'एक्सपेक्टेशन' पूरी नहीं होगी तो परेशानी होगी !
दिन तो इसी तरह बीतते जायेंगे ! साल आते रहेंगे, जाते रहेंगे और हर बार लोग न्यू ईयर से उम्मीदें लगाते रहेंगे ! यही उम्मीदें हमें जीने और आगे बढ़ने का 'मोटिवेशन' देती हैं, लेकिन कोरी उम्मीदों से 'लाइफ' न तो बदलती है और न ही आगे बढ़ती है ! इसके लिए 'एफर्ट' ख़ुद ही करने पड़ते हैं ! तीसरा सबक 'सक्सेस' के लिए 'डेडिकेशन' के साथ-साथ 'कन्सिसटेंसी' भी जरूरी है !
मैंने पिछले एक साल में जिंदगी के कई मौसम देखे ! जिंदगी कहीं गर्मी की धूप की तरह लगी, कभी बरसात की फुहार की तरह सुहानी और कभी सर्दी की ठंडी रातों की तरह सर्द ! मैंने होली, ईद, और दिवाली में सुख और उल्लास के पल देखे, वहीँ मुम्बई, जयपुर जैसे 'ब्लास्ट' में इंसानी हैवानियत के साथ दुःख के पलों का सामना किया, लेकिन मैं चलता रहा बीती बातों को छोड़ते हुए क्योंकि चलना मेरी नियति है ! तो मेरा चौथा सबक - परेशानियों की परवाह किए बिना अपना काम करते रहें, क्योंकि कोई इंसान बड़ा नहीं होता, महान होती हैं चुनौतियाँ और जब आदमी चुनौतियाँ स्वीकार करे तभी वो महान कहलाता है !
साल के सारे दिन एक जैसे ही होते हैं, हर सुबह सूरज निकलता है और शाम को डूब जाता है, बस अगर हम जिंदगी के प्रति ऐसा नजरिया रख पायें तो हमें खुशियाँ मनाने के लिए नए साल का इन्तजार नहीं करना पड़ेगा, हर दिन खुशनुमा होगा ! आपसे वादा करिए कि नया साल नई बातों, नई सोच का, कुछ कर गुजरने का साल होना चाहिए !
आप सबके साथ बिताये पलों की मधुर स्मृतियों के साथ मैं जा रहा हूँ, फिर कभी न आने के लिए ! जाते-जाते आखिरी सबक यह कि जिंदगी को जी भरकर जी लीजिये !
शुभकामनाओं के साथ हमेशा के लिए विदा !
सिर्फ आपका
साल 2008
[प्रस्तुति - आई नेक्स्ट ]
Posted by प्रकाश गोविंद 1 comments
महिला पत्रकारों से उप्रस्त्रपति की मुलाकात
२९ दिसम्बर को उप्रस्त्रपति हामिद अंसारी ने डेल्ही की महिला पत्रकारों से मुलाकात की.यह मुलाकात उनऔपचारिक होने के साथ -साथ उन्हें करीब से जानने का मौका था , जो हम महिला पत्रकारों ने पुरी तरह से उठाया। उन पर प्रश्नों की बारिस कर के। उन्हों ने भी पुरी तन्मयता हे हमारे प्रश्नों का जबाब दिया.
Posted by imnindian 1 comments
साल २००८ कोल्कता और में
हलाकि साल के साल के अंत में परम्परा स्वरुप आप साल की हर बड़ी खबर टीवी पर देखेंगे लेकिन एक साधारण आदमी (मैने) क्या देखा और याद रहा उसकी एक झलक.....
कोल्कता का वो निम्ताला घाट याद आया जहाँ डोम के बच्चे किसी धनि सेठ की अर्थी देख नाचने लगते थे..... आज अच्छा खाना जो मिलेगा उन्हें।
हावडा स्टेशन का राजू याद आया जो हुगली के घाट पर पीपल के नीचे रहता है , स्टेशन पर बोतल चुनता है, पानी के बोतल का आठ आना और कोल्दिंक्स के बोतल का चार आना, मोटी वाली आंटी इतना ही देती है ............बडे शान से बताता है कि 8 और 9 नम्बर प्लेटफोर्म उसका है ............... आगे बोलता है अभी 12 का हूँ न 21 का होते-होते 1 से 23 नम्बर प्लेटफोर्म पर बस वोही बोटेल चुनेगा।
टोलीगंज के मंटू दा याद आए जो सिंगुर काम करने गए थे ...... वापस लोट आए ........ बोलते हैं हस्ते हुए ...काजटा पावा जाबे.....57 के मंटू दा आपनी मुस्कराहट में दर्द छिपाने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं। पाँच कुवारी बेटिया, तीन की उम्र 30 के ऊपर है।
आज जब रात को हम सभी न्यूज़ रूम से साल भर की खबरे देख रहे होंगे तो हमे वो डोम के बच्चे, वो स्टेशन का राजू, टोलीगंज के मंटू दा नही दिखेंगे।
Posted by कुमार संभव 1 comments
Labels: टोलीगंज के मंटू, डोम के बच्चे, स्टेशन का राजू
HAPPY NEW इयर नव वर्ष की शुभकामनाएं
HAPPY NEW YEAR यानि नए वर्ष में खुश रहना। हम HAPPY(खुश) कैसे रह सकते हैं? कभी आपने इस बारे में सोचा है? मेरे विचार से तो हम HAPPY(खुश) तभी रह सकते हैं जब हम अपनी आवश्यकताओं (Requirments/Needs) और अपेक्षाओं (Expectations) को सीमित कर दें या कम कर दें। यह सत्य है कि कोई भी व्यक्ति किसी की अपेक्षाओं पर पूरी तरह से खरा नहीं उतर सकता और न ही किसी की आवश्यकताओं की पूर्णतया पूर्ति कर सकता है। सभी की अपनी-अपनी आवश्यकताएं हैं, किसी से अपेक्षाएं है। मां-बाप की अपने बच्चों से अपेक्षाएं हैं। उसी तरह बच्चों की अपने मां-बाप से अपेक्षाएं हैं। पति की अपनी पत्नी से अपेक्षाएं हैं। उसी तरह पत्नी की अपने पति से अपेक्षाएं हैं। दोस्त की दोस्त से अपेक्षाएं हैं। बॉस की अपने कर्मचारियों से अपेक्षाएं हैं। कर्मचारियों की अपने बॉस से अपेक्षाएं हैं। जनता की अपने नेताओं से अपेक्षाएं हैं। अपेक्षाएं अनंत हैं। क्या सभी लोगों की सभी अपेक्षाएं पूरी हो पाती हैं? इसका उत्तर निश्चित रूप से ''नहीं'' में होगा। क्योंकि सभी बच्चे अपने मां-बाप की अपेक्षाओं के अनुसार नहीं चल सकते और न ही कोई मां-बाप अपने बच्चों की सभी अपेक्षाओं की पूर्ति कर सकता है। न ही कोई दोस्त अपने दोस्त की सभी अपेक्षाओं पर खरा उतर सकता है और न ही कोई नेता अपनी जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप अपने को ढाल सकता है। जब हमारी अपेक्षाओं के अनुरूप कार्य नहीं होता है तो हम दुखी हो जाते है। उस परिस्थिति में हम HAPPY(खुश) कैसे रह सकते हैं?
हम प्रतिवर्ष लोगों को HAPPY NEW YEAR कह कर अपनी शुभकामनाएं तो दे देते हैं, परन्तु उन्हें वास्तविक रूप से HAPPY(खुश) रहने का राज नहीं बताते। क्योंकि जब तक वह HAPPY(खुश) नहीं रहेगा तब तक HAPPY(खुश) रहने की शुभकामनाएं देना बेमानी ही रहेगी। मेरे विचार से तो जब तक हम अपनी अपेक्षाओं और आवश्यकताओं को किसी पर थोपते रहेंगे तथा अपनी अपेक्षाएं सीमित नही करेंगे, कम नहीं करेंगे। तब तक हम वास्तविक रूप से HAPPY(खुश) नहीं रह सकते।
आओ ! इस वर्ष हम संकल्प लें कि इस वर्ष हम अपनी कुछ आवश्यकताओं (Requirments/Needs) और अपेक्षाओं (Expectations) में कमी लाएंगे। तभी हम वास्तविक रूप से HAPPY(खुश) रह पाएंगे। इसी संकल्प के साथ हम एक-दूसरे को नव वर्ष की शुभकामना दें-
HAAPY NEW YEAR
Posted by Unknown 1 comments
Labels: shubhkamna
वर्ष 2008 के संदेश
वर्ष 2008 के सबसे महत्वपूर्ण संदेश-
1 सत्य बोलो, प्रिय बोलो; किंतु ऐसा अप्रिय सत्य कदापि न बोलो जो हमारे माननीय जन-प्रतिनिधियों को पसंद न हो। चाहे आप किसी शहीद के पिता, पत्नी, पुत्र या स्वयं कोई पीड़ित ही क्यों न हों। क्योंकि इससे उनकी संवेदना आहत होती है।
2 आजादी की खुशफहमी दिल से निकल दें,क्योंकि सिर्फ़ आपके अंगूठे ही आजाद हैं, वोटिंग मशीन का बटन दबाएँ या दिखाएँ ।
3 एकता में बल है, इसलिए धर्म, संप्रदाय, वर्गों से ऊपर उठ 'मानवता परमो धर्मः ' के सिद्धांत को अपनाएं।
(मेरी भावनाओं से किसी को ठेस पहुँची हो तो अग्रिम खेद व्यक्त करता हूँ। )
Posted by अभिषेक मिश्र 1 comments
नए साल पर क्या?
वर्ष 2008 ऐसा गया कि किसी को सूझ ही नहीं रहा कि नए साल पर क्या संकल्प किया जाए। कोई आतंकवाद को खत्म करना चाहता है तो कोई हिन्दू मुस्लिम एकता को बढ़ाना चाहता है। बीते सालों के व्यसन छोड़ने, मोटापा कम करने, नई ऊंचाइयां हासिल करने जैसे संकल्प तो मानो गायब ही हो गए हैं।
हर किसी के चेहरे पर भय साफ झलकता है
एक आम भारतीय को इतना डरा और सहमा हुआ कभी नहीं देखा। बडे शहरों में घटनाएं होती है लेकिन छोटे शहर दर्शक बने रहते हैं उन्हें प्रभाव नहीं पडता लेकिन इस बार ऐसा नहीं है
बीकानेर के पास जयपुर और अजमेर निशाने पर आ गए हैं तो बीकानेर में भी इसका खौफ दिखाई देने लगा है।
वैसे भी यह बॉर्डर पर बसा शहर है। बीएसएफ की सरगर्मियां कुछ निश्चिंतता दे जाती हैं लेकिन अनजाने का भय बना रहता है। अलाव पर, पाटों पर, दफ्तरों में हर जगह आतंकवादी और पाकिस्तान की चर्चाएं हैं। निजी संकल्प कहीं सुनाई ही नहीं देता।
उम्मीद करता हूं आठ के ठाठ तो नहीं हुए नौ के मजे शायद हो जाएं। देश में अमन और शांति बढ़े और हां, विश्व समुदाय में दबदबा भी...
Posted by Astrologer Sidharth 2 comments
30.12.08
भाड़ में जाए मुंबई कांड हम तो झूम के मनाएंगे नया साल
मुंबई में हमला क्या हुआ लोगो ने दुनिया भर का नाटक खड़ा कर रखा है। महानगरो में लोगो ने तय किया है कि नया साल नही मनाएंगे। कई फिल्मी कलाकार और राजनेताओ के साथ बड़ी तादात में बड़े होटल और रेस्टोरेंट नया साल नही मनाएंगे। लेकिन हम तो झूमके नया साल मनाएंगे। पूरे जोश और मस्ती के साथ। और क्यो न मनाये ? आख़िर ऐसा क्या हो गया कि उत्साह ही छोड़ दे। और वह भी पहली बार। आख़िर राजनेताओ और फिल्मी कलाकारों ने आम लोगो कि किस घटना पर उत्सव मानना छोड़ा है। हम सिर्फ़ इसलिए उत्सव छोड़ दे कि यह हमला पूजीपतियों पर था। देश में महीने भर से मामला इसलिए ताना जा रहा है क्योकि पहली बार वह लोग निशाना बने है जो हमेशा शीशे में बैठ कर दुख व्यक्त किया करते थे। आम लोग मरते रहे उनका उत्सव और आनंद कभी कम नही हुआ। लेकिन यह हमला उनपर है इसलिए सारा देश उत्सव छोड़ दे। हम तो नही छोडगे भाई। और इन लोगो ने हमारे लिए कब छोड़ा ??? जो हम छोडें ?
कारगिल में देश के वीर सपूत मारे गए किस राजनेता ने उत्सव छोड़ा ? बिहार में हर साल हजारो लोग बेघर हो जाते हैं। त्रासदी का शिकार होते हैं किसने उत्सव छोड़ा ? जयपुर , अक्षरधाम, दिल्ली, मालेगांव इसे हजारो बम ब्लास्ट और मारे जाने वाले लाखो आम व गरीव आदमी और कोई उत्सव नही रुका। जिन्दगी ज्यो कि त्यों सामान्य रही। फ़िर इस हमले को क्यो इतना ख़ास बनाया जा रहा है। सिर्फ़ इसलिए क्योकि इसमे शिकार होने वाले सारे लोग पूजीपति है। देश के एक धनाड्य व्यक्ति के होटल में हमला हुआ। कुछ अधिकारी मारे गए। सिर्फ़ इसलिए ? आख़िर अधिकारी और सिपाई कि जिन्दी में भी कोई अन्तर है ?
यही कारण है कि हमने तो झूम के नया साल मानाने की ठानी है। ठीक वेसे ही जैसे पहले कि घटनायों के बाद भी मानते रहे हैं। मैं और सारा देश। मेरे लिए आम और ख़ास बराबर हैं। जिन्दगी की कीमत एक है। किसी की भी हो। चाहे वह हेमंत करकरे हो या मूमफली बेचने वाला कोई गरीव या कोई अन्य सिपाई। हमारे लिए बिहार के लोग भी उतने ही ख़ास है जितने मुंबई में मारे गए पूजीपति। जिन पर हुए पहले हमले में सबकी हवा निकल गई। कल तक आम लोगो के चिथड़े हवा में लहराया करते थे तो किसी के कानो में जू नही रेगती थी ? किसी को परवाह नही होती थी। पर अब होश फाकता हैं। जश्न न मानाने कि बातें कि जा रही है। लेकिन हम तो पूरे उस्तव के रूप में मनायेगे नया साल। जैसे पिछली हर घटना को भूलकर कमीनेपन के साथ मानते रहे है। यह सोचकर कि हमारे सारे परिजन बच गए हैं....?
राहुल कुमार
Posted by राहुल यादव 5 comments
भुलाए नहीं भूलेगा बीता वर्ष
जब मैं छोटा था और स्कूल में पढ़ा करता था उस समय बड़े-बूढ़े हमेशा यह सीख दिया करते थे कि बेटे कोई भी मुकाम मेहनत करके धीरे-धीरे हासिल करने से उसका असर दीघüकालिक होता है। अगर कोई सफलता बिना किसी मेहनत के चमत्कार केरूप में आती है उसका असर भी थोड़े दिन बाद समाप्त हो जाता है। इस बात को यहां पर मैं इसलिए बता रहा हूूं क्योंकि यह अपनी अर्थव्यवस्था से जुड़ा हुआ है। बात बहुत पुरानी नहीं है 2007 में हमने सेंसेक्स की ऊंचे छलांग लगाते ढ़ेरों रिकार्ड देखे। उसकी सफलता को देख हर कोई इस बात पर चर्चा करना भूल गया कि
आखिर सेंसेक्स इतना तेजी से क्यों बढ़ रहा है। जब सेंसेक्स 21 हजार के स्तर पर पहुंचा तो हमारे बाजार के जानकारों ने बिना सोचे समझे भविष्यवाणी कर दी कि अब सेंसेक्स की पकड़ से 25 हजार भी दूर नहीं है।
पर एक ऐसी आंधी आई कि सेंसेक्स का कोई स्तर ही नहीं रहा जनवरी 2008 से गिरावट का शुरू हुआ ये क्रम कब खत्म होगा इसकी कोई गारंटी नहीं ले रहा है। पिछले एक साल में जितने पूर्वानुमान लगाए गए वह बुरी तरह से लाप शो ही साबित हुए हैं। 8 जनवरी 2008 को सेंसेक्स की सबसे लंबी छलांग उस समय देखने को मिली जब वह 21 हजार के रिकार्ड स्तर पर पहुंचा। 6 जुलाई 2007 में जब सेंसेक्स ने 15 हजार की ऊंचाई छुई थी उस समय किसी ने यह अंदाजा नहीं लगाया था कि इस साल के बाकी बचे महीने भी सेंसेक्स की ऊंचाई के रिकार्ड बनाने जा रहे हैं। 11 फरवरी 2000 को सेंसेक्स ने 6000 की ऊंचाई पर कदम रखा था। इसके बाद उसे 7000 तक पहुंचने में लगभग पांच वर्ष लग गए और 11 जून 2005 को वह दिन आया जब सेंसेक्स सात हजार के पार हुआ। पर 2007 के कुछ महीनों में ही सेंसेक्स ने 6 हजार प्वाइंट कमाकर 21 हजार का उच्च स्तर छू लिया। पर हुआ वही जो नैतिक शिक्षा में पढ़ाया गया है कि धीरे-धीरे मिली सफलता ही अधिक दिनों तक कायम रहती है। 21 जनवरी 2008 को सेंसेक्स में ऐसी आंधी है जिसके चलते सभी भविष्यवक्ताओं और बाजार के जानकारों का पूर्वानुमान चकनाचूर हो गया और बाजार 1400 प्वाइंट गिरकर 17,605 पर आ गया। इसकेपहले गिरावट शुरू हुई थी पर वह बहुत छोटी थी। पर इसके बाद इस गिरावट ने थमने का नाम नहीं लिया और निचले स्तर की ओर लगातार बढ़ता गया। इसी बीच ग्लोबल क्राइसिस का प्रभाव शुरू हुआ और सारा असर सेंसेक्स पर दिखा।
पर इसके बाद भी बाजार के विशेषज्ञों ने अपने पूर्वानुमान को लगाने का काम नहीं छोड़ा और यहां तक भविष्यवाणी कर दी कि माकेüट छह हजार का निचला स्तर छुएगा। 26 नवंबर को मुंबई आतंकी हमलों के बाद एक और पूर्वानुमान समाचारों के माध्यम से लोगों तक आया कि इस हमले से सेंसेक्स में रिकार्ड गिरावट आएगी। पर इन सभी पूर्वानुमानों के विपरीत बाजार उन हमलों के बाद से अधिक मजबूत स्थिति में कारोबार कर रहा है। भारत की तेरह साल की सबसे महंगाई की दर अगस्त के 13 प्रतिशत से गिरकर मध्य दिसंबर तक 8 के भी नीचे आ गई है।
अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के रंग को देखकर अब तक हर कोई हैरान है। किसी साल में पहली बार अब तक ऐसा हुआ है कि कच्चे तेल की कीमत जुलाई में 147 डालर प्रति बैरल तक पहुंच गई और दिसंबर 2008 के मध्य तक हमने 37 डालर प्रति बैरल का इसका निचला स्तर देखा। इस तरह का उतार-चढ़ाव पहली बार देखने को मिल रहा है। कच्चे तेल की कीमतों में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कमी को देखते हुए सरकार इसका फायदा आम लोगों को देने का कार्यक्रम बना रही हैं। इसे देखकर अब 2008 को गाली दें इसका शुक्रिया अदा करें यह समझ में नहीं आ रहा है। क्योंकि तेल की कीमतों के कम होने से लोगों को बड़ी राहत मिली है और आगे और भी मिलने जा रही है।
मैं कोई पूर्वानुमान करने में भरोसा नहीं करता पर हां जिस तरह से कुछ और भविष्यवाणियां की जा रही हैं उसके मुताबिक अभी हम मंदी के दौर से नहीं गुजरने में पूरा का पूरा 2009 लेंगे। क्योंकि अभी पूरी दुनिया मंदी के चपेट में है। पर मंदी से सबसे अधिक मुझे जो भारत में प्रभावित लगता है वह है यहां का निर्यातक कारोबार, आज की तिथि में हमारे देश के कपड़े और गहने विश्व के उत्पादों का मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं। क्योंकि हमारे अधिकतर उत्पादों की खपत दुनिया के विकासशील देशों में होती है और वहां केलोगों ने अपने खर्चे सीमित कर लिए हैं। अधिकतर लोग अब कपड़े और गहने पर खर्च करने के बजाय अपने खाने और बच्चों की पढ़ाई पर खर्च कर रहे हैं। 2008 वर्ष केइसी रंग को हम नहीं भुला पाएंगे क्योंकि इसे हम ना बुरा कह सकते हैं ना भला कह सकते हैं न ही इसमें किसी अध्ययन के बाद किया गया पूर्वानुमान ही सही निकला।
Posted by अमित द्विवेदी 1 comments
Labels: पूर्वानुमान अमित
संत- महात्मा करते क्या हैं?
विनय बिहारी सिंह
कई मित्रों ने सवाल किया है कि संत- महात्मा करते क्या हैं? वे समाज का भला तो करते नहीं? आज इसी पर विचार किया जाए। लेकिन यहां उन कथित बाबाओं, संतों वगैरह की बात नहीं हो रही जो धर्म या आध्यात्म को धन और ख्याति के बाजार में उतरने की सीढ़ी मानते हैं। उनकी संख्या आज बहुत ज्यादा हो चली है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि धर्म, अध्यात्म या संसार के सभी धर्म ग्रंथ व्यर्थ हैं। आज भी इन धर्म ग्रंथों की प्रासंगिकता है। यहां उनकी बात हो रही है जो परमार्थ के लिए संत हैं या बीते समय में रहे हैं।
-वृक्ष कबहुं न फल भखै, नदी न संचै नीर।
परमारथ के कारने, साधुन धरा शरीर।।
(वृक्ष कभी अपना फल नहीं खाता, न ही नदी अपना जल संचित करती है। साधु परमार्थ के कारण ही शरीर धारण करता है)।
इससे तो साफ हो गया कि साधु- संतों का काम क्या है। आध्यात्म तो विग्यान है (तकनीकी कारणों से ग्य ऐसे ही लिख पा रहा हूं)। हमारे दिमाग में १०० बिलियन न्यूरांस होती हैं। जब हम नींद में होते हैं इनमें से ज्यादातर सुषुप्ता अवस्था में होती हैं। लेकिन ज्योंही हम जग जाते हैं, ये सक्रिय हो जाती हैं। जागते ही हमारा दिमाग चारो तरफ दौड़ने लगता है। सच्चे साधु- संतों ने हमें सिखाया है कि दिमाग को कैसे शांत रख सकते हैं। आइंस्टाइन ने हमें बताया था- इनर्जी इज इक्वल टू मैटर। यानी पदार्थ को ऊर्जा में बदला जा सकता है। इसी तरह ऊर्जा को भी पदार्थ में बदला जा सकता है। फिर आइंस्टाइन ने ही कहा- अगर किसी ऊर्जा को माइनस २७३ डिग्री सेल्सियस तक ले जाया जाए तो वह जिरो इनर्जी यानी ऊर्जा विहीन की स्थिति होगी। इसे ही हम टोटल केल्विन स्टेट कहते हैं। ध्यान या मेडिटेशन के जरिए, हम इसी टोटल केल्विन स्टेट तक पहुंचते हैं। तब हमारा मन एकाग्रचित्त हो जाता है। संत- महात्मा हमें इसी टोटल केल्विन स्टेट तक पहुंचने का वैग्यानिक तरीका बताते थे। इससे क्या फायदा होता है? इसे बताने की जरूरत है क्या? मन जब शांत रहेगा तो हमारा दिमाग ज्यादा रचनात्मक होगा। झगड़ा- फसाद औऱ तनाव से मुक्त होने का तरीका साधु- संत पैसा लेकर नहीं बताते थे। वे तो इसे मुफ्त में बांटते थे। व्यक्ति से ही तो समाज, देश औऱ दुनिया बनती है।
Posted by Unknown 2 comments
अमेरिका के सामने कब तक रोओगे ?
पैदा होने के चाँद महीने बाद बच्चा हाथ -पैर चलाना शुरू कर देता है । कुछ दिन बाद बैठना और फिर कुछ महीनो बाद चलना । जब वह २०- २२ साल हो जाने के बाद इतना परिपक्व हो जाता है, वो फैसले ख़ुद लेने लगता है, लेकिन यहाँ आजादी के इतने बरसो बाद भी हम अपने फैसले ख़ुद नही ले सकते । हमारे पास सबूत होने के बाद भी हम पकिस्तान के उपर करवाई नही कर सकते है । हमारे पास ढेर सारे सबूत होने के बाद भी हम पाकिस्तान पर कारवाई करने से एक बच्चे जैसे डर रहे है ,और अमेरिका की आखों में टकटकी लगाए देख रहे है ,और इस उम्मीद में है की अमेरिका हमारा पालन हार बनकर हमारी रक्षा करेगा ।आतंकी अजमल कसाब उसके मरे हुए साथीयों की लाशें , जो पाकिस्तानी नागरिक है । और साथ ही पाकिस्तानी चीजे और पाकिस्तानी हथियार । हमलो के दौरान फ़ोन काल्स के रिकॉर्ड ,फ़ोन सेट्स की लोकेशन और आतंकी द्बारा प्रयोग की गई बोट कुबेर । इन सब चीजों के बाद भी हम अमेरिका की तरफ़ उम्मीद लगा कर बैठे है । लेकिन अमेरिका भारत- पाकिस्तान को सिर्फ़ दिखवा शान्ति के रूप में देखना चाहता है । इसलिए अमेरिका की विदेश मंत्री कभी हर बार अलग बयान देती नज़र आती है। पाकिस्तान सिर्फ़ वक्त काट रहा है से कहा की वो अपने यहाँ आतंकवादियों ठेकानो बंद करेगा . साथी ही साथ की वो भारत द्वारा दी गई २० आतंकवादिओं की देगा ,जो पकिस्तान में बैठे है ।उसने कहा की अजहर मसूद को उसके घर में नजरबंद किया है ,लेकिन ये बात किसी के गले नही उतरती है ।लेकिन पाकिस्तान को भी पता ये सब चीजे भारत के नेता ख़ुद -ब - ख़ुद समय बीतने के साथ भूल जायेंगे । इसलिए वो भी अलग अलग तरीके के बयान दे रहे है ,कभी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री आसिफ अली जरदारी साहब कहते है जो भी जिम्मेदार तत्व होगे , उनके खिलाफ कारवाई की जायेगी , और दूसरी तरफ़ पकिस्तान के दुसरे मंत्री द्वारा ये कहा जाता है की वो लखी को भारत के सुरक्षा अधिकारीयों से पूछताछ नही करने देंगे ।
Posted by Pankaj mishra 1 comments
फिर करेंगे नौकरी फिर लाएंगे बंदूक
उत्तरप्रदेश के एक इलाके विशेष में खुर्रांट मगर मजदूर जाति में बीच एक कहावत प्रचलित है। कहावत उनके काम के तरीके और बिंदास जीवनशैली को लेकर है। वह कहावत है भाड़ (भाड़ की जगह और भी भद्दा शब्द इस्तेमाल किया जाता है) में गई नौकरी और बेंच खाई बंदूक, फिर करेंगे नौकरी फिर लाएंगे बंदूक। इस समुदाय के लोग भट्टे पर काम करते हैं। दिसंबर के महीने में यह काम पर जाते हैं और जब लौटते हैं तो काफी पैसा होता है। इससे वह अपनी शौक की चीजें मसलन घड़ी, रेडियो, साइकिल खरीद लेते हैं। धीरे-धीरे जब पैसे खत्म होना शुरु होते हैं और शराब जरूरी होती है तो एक-एक कर सामान बेंचना शुरु कर देते हैं। तब इन लोगों के बीच यही लाइन दोहराई जाती है। मंदी की मार में जिनकी नौकरी जा रही है क्या वह ऐसी लाइन दोहराने का जिगर रखते हैं। नहीं तो इनसे सीख लो।
Posted by बीहड़ 2 comments
29.12.08
शुभ अशुभ का चक्रव्यूह
आज के आधुनिक यूग में भी हम शुभ अशुभ के जाल से निकल नहीं पाए है . आज भी हम शुभ मुहूर्त की तलाश में ज्योतिषियों और पंडितों के यहाँ चक्कर लगते रहतें है .हमें कोई भी शुभ कार्य करना हो हम पंचांगो की गणना के चक्कर में जरूर पडतें है .लोगों का मानना है की अगर शादी के लिए मुहूर्त नहीं दिखलाया तो अनिष्ट होगा.यही भय हमारे मन में बचपन से परिवार के लोग ,सम्बन्धी और मित्र भर देते है. और शायद यही वह भय है जो किसी अनहोनी की आशंका से हमें आजीवन छुटकारा नहीं लेने देती.सरे मुहूर्त तथाकथित ज्योतिषियों द्वारा रचित पंचांगों के आधार पर गणना करके निकले जाते है.और आपको यह जानकर हैरानी होगी कि पंचांग भो अलग अलग होते है. एक पंचांग कहेगा कि इस महीने कोई अच्छा मुहूर्त नहीं है वहीँ कोई दूसरा पंचांग उसी महीने एक नहीं बल्कि दो चार अच्छे मुहूर्त निकाल देगा.एसे कई महीने है जो हमारे हिन्दू समाज में शादी के लिए वर्जित माना जाता है, पर उन्ही महीनो को बंगाली पंचांग अच्छे दिन मानता है. तो क्या हम ये मान लें कि बंगाली हिन्दू नहीं है.दक्षिण भारत का पंचांग तो और भी अलग है. हम अगर गौर करेंगे तो पायेंगे कि हमारे यहाँ हर त्यौहार के अलग अलग पंचांग दो अलग अलग दिन निकालता है, जब हिन्दू समाज में आपस में ही द्वंद कि भावना है पनपने लगती है. जब पूरा हिन्दू समाज ही आपस में एकमत नहीं है,तो क्या इस अंधविश्वास को जारी रखना चाहिए? क्या इसमें कोई फायदा है? राम और सीता के विवाह के लिए शुभ दिन कि गणना सर्वकालीन श्रेष्ट ऋषियों वशिस्ठ और विस्वमित्र ने कि लेकिन दोनों के गृहस्त जीवन की जितनी दुर्दशा हुई भगवन दुसमन की भी ना करे. गुरु नानक के अनुयायी सिख भाइयों ने विगत सैकडों सालों से सब दिन को बराबर समझकर पंचांग और ज्योतिषियों को दरकिनार कर सिद्ध कर दिया है कि ये सब सिर्फ अंधविश्वास है. लेकिन बृहद हिन्दू समाज आज भी शुभ अशुभ के चक्रव्यूह से बाहर नहीं निकल पाया.यदि आज भी लोग यात्रा पर निकलने से पहले शुभ अशुभ मुहूर्त देखना शुरू कर दें तो तुंरत सारी व्यवस्था ही गड़बड़ हो जाएगी. प्रशासन पंगु हो जायेगा,व्यवसाय बर्बाद हो जायेगा,कर्मचारी बर्खास्त कर दिए जायेंगे,पदाधिकारियों को घर का रास्ता दिखा दिया जायेगा.अब हमें वक़्त के साथ चलने की जरूरत है कहीं ऐसा न हो की हम शुभ अशुभ के जाल में फंसकर वक़्त की रफ़्तार से कहीं पीछे न छुट जाएँ.
Posted by आकाश सिंह 2 comments
गंध बाबा
Posted by Unknown 11 comments
याचना नही अब रण होगा
याचना नही अब रण होगा ,
संघर्ष बड़ा भीषण होगा।
अब तक तो सहते आए हैं ,
अब और नही सह पाएंगे ,
हिंसा से अब तक दूर रहे,
अब और नही रह पायेंगे
मारेंगे या मर जायेंगे ,
जन जन का ये ही प्रण होगा।
याचना नही अब रण होगा ,
संघर्ष बड़ा भीषण होगा।
हमने देखें हैं आसमान से
टूट के गिरते तारों को,
लुटती अस्मत माताओं की,
यतीम बच्चे बेचारों को,
असहाय नही अब द्रौपदी भी
अब न ही चीर हरण होगा।
याचना नही अब रण होगा,
संघर्ष बड़ा भीषण होगा।
आतंक की आंधी के समक्ष
उम्मीद के दिए जलाये हैं,
तुफानो से लड़ने के लिए
सीना फौलादी लाये हैं,
भारत माँ की पवन भूमि पर
फिर से जनगनमन होगा।
याचना नही अब रण होगा,
संघर्ष बड़ा भीषण होगा।
Posted by अजित त्रिपाठी 3 comments
अब होश कीजिये !!!
Posted by Pankaj mishra 0 comments
साला चोर कहीं का...मारो इसको/इसकी..कमीना शब्दचोर
आदरणीय अशोक पाण्डेय जी से करबद्ध क्षमा चाहता हूं क्योंकि मैं ठहरा निपट चूतिया तो पाप और गुनाह को एक जैसी ही "चीज" समझ बैठा अब पता चला कि ये भाषाई अंतर है हिंदी और उर्दू का इसमें शब्दकोश नहीं देखना चाहिये/ग्यान तो नहीं पर एक शब्द है "ज्ञान" जिसे बांटने के लिये कुछ छात्र चाहिये २००९ में आफ़र है सस्ते में बांट रहा हूं अगर आपकी जानकारी में हों तो मेहरबानी करके मेरी दुकान चलवा दीजिये आजीवन दुकान पर "साभार" लिख कर टांगे रहूंगा। कानून की मां-बहन करने के लिये जस्टिस आनंद सिंह ही काफ़ी हैं लेकिन आप तो बस मेरी करिये क्योंकि आप उन्हें जानना नहीं चाहेंगे या फिर है सच जानने की ताकत(वैसे चुप ही रहेंगे ऐसी उम्मीद है) बुरा आदमी हूं, चोर हूं, गलीज़ हूं अंतरात्मा क्या बहिरात्मा क्या कुछ है ही नही... ईमान,दोस्ती,सच्चाई वगैरह जैसे गरिष्ठ आचरण से दूर रहता हूं इससे पेट खराब हो जाता है और जुलाब हो जाता है कोई आयुर्वेविक दवा असर नहीं करती इसलिये हलकट पन में ही स्वास्थ्य तलाश कर भला हूं। चोर हूं इसलिये भड़ास की आत्मा तक चुरा ली है। आदरणीय सुशील जी के लिये मेरा मोबाइल नं.
09224496555, मेरा ई-मेल rudrakshanathshrivastava7@gmail.com , मेरा ब्लाग - http://aayushved.blogspot.com/
जितनी गालियां चाहें दे/प्यार देना चाहें दे सकते है मुकुन्द ने जो करा उसके लिए उसको इतनी गालियां दीजिये कि आप द्वारा दी गयी गालियों को संग्रह कर एक नयी किताब प्रकाशित करा सके
आत्मन अंकित ने जो लिखा वह अंग्रेजी में है तो समझना कठिन है आशा है अगली बार वे हिंदी में लिखेंगे तो मुझ देसी पिल्ले की समझ में आ सकेगा और रही बात बेनामी, अनामी, गुमनामी की तो आपको बस इतना बताना था कि कम से कम जो खुल कर गालियां दे पाने का साहस था, लेकिन ध्यान रहे गालियां मौलिक हों मादर-फादर छाप परम्परागत गालियों को हमने कापीराइट करा लिया है अतः उन्हें प्रयोग नहीं करें:)
जय जय भड़ास
Posted by डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) 4 comments
Labels: कापीराइट, चूतियापा, डा.रूपेश श्रीवास्तव, बौद्धिकता, भड़ास, मौलिकता, साभार
28.12.08
हे 2009, मेरी 2008 की बुराइयों को भूल जाना, अच्छाइयों को ही आगे बढ़ाना......उर्फ आइए खुद के दिल में झांकें
नया साल आने वाला है। पुराना जा रहा है। हर नए साल पर कई नए इरादे, वादे किए जाते हैं और बीत रहे साल के बुरे से सबक लेकर नए साल के लिए सब कुछ अच्छा अच्छा करने के मंसूबे बनाए जाते हैं। मैं भी कुछ ऐसा ही सोच रहा हूं। आप सभी भड़ासी अपने लिए जो कुछ प्लान करें, उसे शेयर जरूर करें ताकि वो इरादा दुनिया को पता चले और उसे पाने के लिए आप अगर खुद भी न चाहें तो भी दुनिया को दिए वचन को निभाने के लिए उस पर आपको जूझकर काम करना पड़े। चलिए शुरुआत मैं करता हूं लेकिन इसके पहले मेरे बहाने से विस्फोट.डाट काम पोर्टल के ब्लाग पर संजय तिवारी जी ने जो कुछ लिखा है, उसे पूरा पढ़िए.............
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हिन्दी ब्लागरी की शुरूआत कोई पुरानी घटना नहीं है. यह ताजा तरीन बात है. मैं आज कुछ आधुनिक तकनीकों पर काम करता हूं. विस्फोट वेबसाईट मैनेज करता हूं और कुछ ऐसी तकनीकों पर थोड़ी बहुत पकड़ बन गयी है जिसके बारे में आज से साल डेढ़ साल पहले तक सोच भी नहीं सकता था. यह सब ब्लागरी की देन है. ब्लागरों का सहयोग है. लेकिन पिछले डेढ़ साल में ब्लागिंग की पृष्ठभूमि में मैं देख रहा हूं कि एक और व्यक्ति ने यह प्रयोग किया है. वो हैं यशवंत सिंह. भड़ास ब्लाग के माडरेटर. अब हिन्दी के अच्छे खासे चलनेवाले मीडिया पोर्टल भड़ास 4 मीडिया के संपादक. उन्होंने जुमला पर काम किया और मैंने वीवो पर. मुझे याद है यशवंत सिंह कहने लगे कि गुरू मेरा पोर्टल बना दो. हम लोग मिलकर बहुत काम कर सकते हैं. मैंने मना कर दिया. मैंने कहा कि मैं रास्ता तो बता सकता हूं लेकिन आपके लिए पोर्टल डिजाईनिंग का काम नहीं कर सकता. मैं चाहता हूं आप खुद जूझिए. लड़िए. हो सकता है आप जीत जाएं और यह भी हो सकता है कि आप हार जाएं. लेकिन जो भी हो, करना आपको ही होगा. मैं यशवंत सिंह से इसलिए भी प्रभावित हूं कि ...........Read More
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अगर आपने Read More पर क्लिक कर संजय जी के ब्लाग पर पूरा पढ़ लिया तो आगे बढ़ते हैं। मेरे लिए निजी तौर पर 2008 बेहद भयानक उतार-चढ़ावों वाला रहा। इस साल मैंने खुद को दुनिया के सामने विशुद्ध 24 कैरेट वाला खलनायक बना पाया तो साल बीतते बीतते एक नायक की तरह लोग मुझे सम्मान देने लगे। इन दो विपरीत ध्रुवों की सवारी करवाना, वर्ष 2008 की देन है। वैसे, ज्योतिष में मेरा विश्वास बहुत ज्यादा तो नहीं है लेकिन इलाहाबाद विश्वविद्यालय में शौकिया तौर पर ज्योतिष की जो पढ़ाई की है, अंक ज्योतिष की और हस्त ज्योतिष की, उसके आधार पर मैंने अपने बारे में कुछ भ्रांतियां बना रखी हैं। जैसे, एक तो ये कि मेरा जन्मांक आठ है और मूलांक 9 इसलिए ये दोनों अंक मेरे व्यक्तित्व में शामिल हैं और यही तकनीक, कंटेंट, नेतृत्व, अच्छे-बुरे आदि को करवाते रहते हैं। अंक ज्योतिष के थोड़े भी जानकार हैं उन्हें पता होगा कि आठ और नौ अंक अलग अलग गुण-अवगुण वाले अंक होते हैं, और अगर ये दोनों किसी के व्यक्तित्व में समाहित हैं तो वो फ्रस्टेट तो कुछ समय के लिए हो सकता है लेकिन हार नहीं मान सकता। दूसरे, हस्त ज्योतिष के मुताबिक मेरा भाग्य बहुत अच्छा नहीं है लेकिन माइंड लाइन ने हथेली के इस पार से उस पार तक जो विभाजनकारी रेखा खींच रखी है उससे पता चलता है कि खोपड़िया में उम्दा किस्म की खुराफातें चलती-पनपती रहेंगी और जीने-खाने, नाम कमाने और बदनाम होने भर का माल-माद्दा मिलता रहेगा।
लेकिन दोस्तों, ज्योतिष तो एक बहाना होता है। असल चीज तो कर्म ही है। बुरा किया तो बुरा पाओगे, अच्छा किया तो अच्छा पाओगे वाली कहावत अब इस दुनिया में भले कम लागू हो लेकिन है ये सौ फीसदी सच। हां, कई बार आंखों देखा जो होता है वो झूठा साबित होता है और कई बार जो कानों सुना होता है वो भी बिलकुल बकवास साबित होता है। बावजूद इसके, जो आप अंदर से खुद होते हैं और खुद को जो आप समझते हैं, उसे दुनिया के सामने भले न आप प्रकट करें या प्रकट करें तो दुनिया भले ही उसे सही या झूठ माने, ये अंदर और अंतस की जो मेटल, मूल है वो ही आपको गाइड करने और आगे-पीछे ले जाने के लिए जिम्मेदार होता है। 2008 की अच्छाइयों-बुराइयों से निकलकर, संजय भाई ने उपर जो बात कही है उस पर आते हैं क्योंकि उसी में मेरे लिए वर्ष 2009 के वादे-इरादे भी छिपे हैं।
हम हिंदी पट्टी वाले, जो बचपन से, पैदा होते ही, नोकरी करने के लिए सिखाए-बनाए-तैयार किए जाते हैं, 2009 में क्यों नहीं सोचें कि हम पैदा ही हुए हैं मालिक बनने के लिए। हम क्यों बने-बनाए मालिकों के नौकर बनें। हम क्यों नहीं मालिक बनने की रेस में शामिल हों। जाहिर है, इसके लिए हमें न सिर्फ अपने माइंड सेट में भयंकर बदलाव लाने होंगे बल्कि खुद को इसके अनुरूप तैयार करना होगा और कंटेंट के साथ-साथ तकनीक, ब्रांड, मार्केट, बिजनेस, फाइनेंस आदि की बुनियादी चीजों को समझना होगा। ये शब्द देखने में तो लगते काफी बड़े बड़े हैं लेकिन असल में ये हैं किसी मुर्गे जैसे, जिसे हम मारकर अक्सर खा जाते हैं। या नहीं खाते तो दौड़ाकर पकड़ लेने की क्षमता रखते हैं। तो ये जो बड़े बड़े शब्द दिक्खे हैं, इन्हें दौड़ाकर पकड़ा जा सकता है। हां, ये कतई जरूरी नहीं है कि आप मालिक बनने के लिए हिंदी को छोड़ें, अपनी चाल-ढाल या स्टाइल बदलें, या अच्छे अच्छे कपड़े पहनें। आपको केवल एक चीज गांठ बांधनी पड़ेगी, मुश्किलें चाहें जितनी आएंगी, पीछे नहीं हटेंगे, सीखने से परहेज नहीं करेंगे, झुकेंगे लेकिन उतना ही जितने से दिल पर कोई बोझ न आ पाए।
मैंने 2008 में इरादा करके 40 हजार रुपये की महीने की नौकरी से इस्तीफा दिया और दो प्रयोगों पर काम शुरू किया। एक ग्रामीण भारत के लिए मीडिया मिशन का प्रोजेक्ट था और दूसरा हिंदी मीडिया की खबरों के लिए प्रोजेक्ट। पहला प्रोजेक्ट शुरू हुए कुछ ही समय हुआ कि समझ में आ गया कि इसे करने के लिए एक व्यवस्थित टीम और आफिस का होना जरूरी है लेकिन मेरे पास तो दोनों में से कुछ भी नहीं है क्योंकि इन दोनों चीजों के लिए पैसा होना चाहिए जो मेरे पास बिलकुल नहीं था। मेरे पास था तो केवल एक महीने का अग्रिम वेतन जिसे कंपनी ने नोटिस पीरियड के दौरान का वेतन ससम्मान दिया था। इसी एक महीने के अग्रिम वेतन से एक लैपटाप खरीदा, तीन साइट डिजाइन कराईं और जुट गया काम में। मुश्किलें इतनी आईं कि अगर उनपर लिखना शुरू करूं तो शायद एक मोटी किताब तैयार हो जाए, और इसे भविष्य में लिखूंगा भी लेकिन अभी फिलहाल इतना कि कई कई दिनों तक पाकेट में एक रुपये न होने के बावजूद उधारी मांग मांग कर मिशन में डटा रहा। अपने 14 सालों के मीडिया के विभिन्न तरह के अनुभवों और छह महीने तक मार्केटिंग के अनुभवों और एक साल के ब्लागिंग के अनुभवों को निचोड़कर एक में पिरो दिया और इन सभी फंडों-अनुभवों का व्यवस्थित इस्तेमाल करता रहा। आज मैं कह सकता हूं कि छह महीने पहले चालीस हजार रुपये की नौकरी करने वाला यशवंत अब एक लाख रुपये महीने का व्यय केवल भड़ास4मीडिया के आफिस के संचालन, स्टाफ की सेलरी व अऩ्य खर्चों में खर्च करता है और ये पैसा न तो कहीं से उधार लिया गया है और न ही कहीं से उगाही करके इकट्ठा किया गया है। ये सब भड़ास4मीडिया नामक कंपनी के एकाउंट में विभिन्न कंपनियों द्वारा विज्ञापन, ब्रांडिंग आदि के मद में लिखित में किया गया भुगतान है जिसके कागजात हमारे पास मौजूद हैं।
मेरे कहने का मतलब यह कतई नहीं है कि मैं अब सफल हो गया हूं, महान हो गया हूं या मालिक बन गया हूं। छह महीने के वक्त में अगर कोई ऐसा मानने लगे तो उससे बड़ा उल्लू का पट्ठा कोई नही हो सकता लेकिन मैं ये बातें इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि मुझे पता है अपन के देश में मेरे जैसे हजारों लाखों नौजवान हैं जो बेहद प्रतिभाशील हैं और कुछ भी कर गुजरने का माद्दा रखते हैं लेकिन उन्हें कोई गाइड करन वाला नहीं है, उन्हें कोई इन्सपायर करने वाला नहीं है, उन्हें कोई दिशा देने वाला नहीं है क्योंकि जितने भी मालिक लोग होते हैं वो अपने सक्सेस मंत्राज छिपाकर रखते हैं। उसे कतई डिस्क्लोज नहीं करते। पर मैं खुद को और भड़ास4मीडिया को हिंदी वालों के प्यार का देन मानता हूं इसलिए उनका कर्ज मेरे पर है और रहेगा। इसे मैं अपने जैसे लोगों को तैयार करके ही चुकाने की कोशिश कर सकता हूं।
वर्ष 2009 में अगर जिंदा रहा (...बहुतों से पंगा लिया है इसलिए ये संभव है कि कोई बददुआ मुझे जीने न दे:) तो मेरा अपने लिए जो इरादा है वो इस प्रकार है-
1- भड़ास आश्रम की स्थापना। एक ऐसा आश्रम जहां सात्विक और तामसिक दोनों प्रकार के लोग एक साथ, अपने-अपने गुण-दोषों के साथ आ सकें और खुद को कुंठाओं से मुक्त कर सकें। कुंठा मुक्ति के लिए जो कुछ होगा, वो डिटेल कभी बाद में दूंगा लेकिन उसमें कुछ भी अनैतिक नहीं होगा, ये वादा है। उसमें गाना, बजाना, नाचना, चिल्लाना, रोना, खाना, पीना, लड़ना आदि शामिल है। ये ऐसी चीजें हैं जो हम लोग रोज करते हैं लेकिन अवचेतन में करते हैं इसलिए ये चीजें दवा की जगह रुटीन का हिस्सा बन जाती हैं।
2- हिंदी पट्टी के लोगों को इंटरप्रेन्योर, उद्यमी, प्रोपराइटर, डायरेक्टर बनने के लिए प्रेरित करना। अपनी हिंदी और अपने गांव में इतनी ताकत है कि कई हजार नई चीजें करने के लिए बाकी हैं पर हमारे लोगों का माइंडसेट ऐसा ही कि वो खुद लाख-दो लाख रुपये महीने कमाने की बजाय बीस-तीस हजार रुपये महीने की नौकरी के लिए मरे जाते हैं।
3- कुछ आध्यात्मिक प्रयोगों को अंजाम देना। इसमें ध्यान, नृत्य, गायन, भोजन (कुछ और चीजें भी हैं, जिनका यहां जिक्र नहीं करना चाहता) के जरिए शरीर से लंबे समय तक मुक्ति के लिए प्रयोग करना शामिल है। इस मुक्ति की झलक मैं पिछले कई वर्षों से गाहे-बगाहे अप्रयोजित तरीके से पाता रहा हूं लेकिन उसे लंबा करने, उसे व्यवस्थित तरीके से करने का वक्त नहीं निकाल पाता। अगले साल इस छूटे हुए काम को जरूर करने की कोशिश करूंगा।
4- हारमोनियम बजाना सीखना है। बचपन मे एक लेसन आप सभी ने पढा होगा साइकिल की सवारी वाला। जिस तरह साइकिल चलाना सीखना एक चुनौती भरा काम होता है उसी तरह मेरे लिए हारमोनियम बजाना सीखना भी एक बड़ी चुनौती है। इस काम को इस वर्ष जरूर करूंगा।
5- भड़ास4मीडिया के लिए कुछ योजनाएं हैं जिसे नए साल में इंप्लीमेंट करना है लेकिन ये योजनाएं क्या हैं, उसे यहां बताने की बजाए, उसे करके दिखाना ज्यादा अच्छा होगा, रणनीतिक वजह के चलते भी और शेखी न हांकने की मनोवृत्ति के चलते भी।
6- ग्रामीण भारत के मीडिया मिशन के प्रोजेक्ट को शुरू करना। इस सौ फीसदी आजमाए हुए प्रोजेक्ट को सुव्यवस्थित रूप से नए साल में शुरू कर सकूंगा, ये मुझे पूरा विश्वास है। बस, कुछ साथी मुझे चाहिए जो मार करने से लेकर कंप्यूटर व फील्ड में महारत दिखाने तक का जज्बा रखते हों।
दोस्तों.....आप सभी भड़ासी साथियों, भड़ास के पाठकों और भड़ास विरोधियों के लिए भी, दिल से दुवा करता हूं कि नया साल आपके, आपके परिवार, आपके पड़ोस व आपके-हमारे समाज व देश में खुशियां ही खुशियां लाए, सफलता ही सफलता लाए, मुक्ति ही मुक्ति लाए, प्यार ही प्यार लाए......।
इस बीत रहे वर्ष में जिन-जिन साथियों-दोस्तों-कथित दुश्मनों का मैंने जाने-अनजाने तरीके से दिल दुखाया है, उनसे नम आंखों के साथ दिल से क्षमा याचना करता हूं क्योंकि हमारी-आपकी अच्छाइयां और हमारी-आपकी सकारात्मक ऊर्जा ही इतनी ज्यादा हैं कि हमें बुरी और नकारात्मक प्रवृत्तियों के बारे में सोचने-जीने के लिए बिलकुल वक्त नहीं होना चाहिए। खुद से घृणा करने वालों से उम्मीद रखता हूं कि वे भले ही मुझे माफ न कर पाएं लेकिन माफ करने के बारे में सोचने की शुरुआत जरूर करेंगे। वैसे भी, हर व्यक्ति को यह अधिकार है कि वो जिंदगी के किसी भी पल से खुद को व्यवस्थित व पाजिटिव बनाने की शुरुआत करे और मैं यह शुरुआत इस बीत रहे वर्ष के अंतिम तीन महीनों से कर सका हूं और इसको नए साल में आगे बढ़ाऊंगा।
आभार के साथ
जय भड़ास
यशवंत सिंह
09999330099
Posted by यशवंत सिंह yashwant singh 18 comments
Labels: 2008, 2009, इरादे, नया साल, बीत रहा साल, भड़ास, यशवंत, वादे, सपने
अमिताभ जी वैसे भी यह हेमलेट राजनेता कुछ करने थोडी वाले हैं
सही जा रहे हो अमिताभ जी वैसे भी यह हेमलेट राजनेता कुछ करने थोडी वाले हैं। संसद में आतंकवादी घुसे थे तब भी क्या उखाड़ लिया था। चार दिन सीमा में सेना को खड़ा किया फिर हमें फीलगूड होने लगा और क्रिकेट डिप्लोमेसी शुरू हो गई। इस बार भी यही होने जा रहा है। बेशक जान गंवाने वालों के परिजन पर क्या बितती है उसे समझ पाना मुश्किल है। पर इतनी जाने गवाने के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकलता तो लगता नहीं की लोगों की कुर्बानी बेकार जा रही है। मुंबई में हुआ हमला कितना बड़ा है यह इसी से समझ लीजिये की अगर कसब और इस्माइल द्वारा छोडा गया बम अगर २९६ मिनीट में फट गया होता तो यह दूसरे विश्व युद्ध के बाद का सबसे खतरनाक हमला होता । और मुंबई को दुनिया हिरोशिमा और नागासाकी की तरह आने वाली कई सदियों तक याद करती । बेशक और जाने गंवाने से बचने का प्रयास करना चाहिए, पर वे बचने वाली नहीं हैं। बस अगली बार रामलाल की जगह मांगीलाल मरेगा।
Posted by gurudatt tiwari 0 comments
Labels: गुस्सा
27.12.08
ये युद्ध नहीं आसां
अमिताभ बुधौलिया 'फरोग'
जाने वो कौन सा देश...
जहाँ तुम चले गए।
इस दिल को लगा के ठेस...
चिठ्ठी न कोई संदेश...
जहाँ तुम चले गए।
जाने वो कौन सा देश...
जहाँ तुम चले गए।
हर चीज पे अश्कों से...
जाने वो कौन सा देश...
जहाँ तुम चले गए।
जहाँ तुम चले गए।
जाने वो कौन सा देश...
जहाँ तुम चले गए।
Posted by अमिताभ क. बुधौलिया 0 comments
कम से कम अपनी महान रचनाए एक बार ही डालो यार
अरे यार! क्यों भड़ास की मईयो कर रहे हो, कम से कम अपनी महान रचनाए एक बार ही डालो। इतनी शिद्दत से तो आप अपनी डस्ट्बींन में कचरा भी नहीं डालते । शहर का हाल देखकर यह समझ में आ जाता है, फिर भड़ास क्यों आपके दिमाग के कचडे का डम्पिंग मैदान बनता जा रहा है......
Posted by gurudatt tiwari 4 comments
Labels: बक बक
चोरी करना पाप है
हद है! अब ब्लॉग पर भी चोरी होने लगी ।मामला ताजा है , फरवरी २००८ में ही कृत्या मॆ धूमिल पर एक आलेख छपा था, लेखक थे जाने माने कवि और आलोचक भाई सुशील कुमार। अब इसी को शब्दशः चुरा कर मुकुन्द नामक व्यक्ति ने कालचक्र पर छाप दिया है। यहाँ तक कि क़ोटेशन भी वही है।यह ब्लाग की मस्त कलन्दरी दुनिया को गन्दा करने वाला प्रयास है। इसकी लानत मलामत की जानी चाहिये।सबूत के लिये यहाँ दोनों लिन्क दे रहा हूँ ।http://www.kritya.in/0309/hn/editors_choice.html इस पर सुशील जी का आलेख फ़रवरी मे छपा।http://kalchakra-mukund.blogspot.com/2008/09/blog-post_5626.html इस पर है मुकुन्द जी का स्वचुरित लेख है।
फ़ैसला आप ब्लागर देश के नागरिकों का।
Posted by Ashok Kumar pandey 8 comments
फ़िर शहीद हुए हम...29/11/08
अनाथ बच्चे बिलखते
माँ बाप खाली दामन तकते,
फिर कोई फूल चमन से
फिर चमन किसी फूल से
आज महरूम हो गया है ,
फिर पड़ी दरारें आपस में
फिर किसी ने उगला ज़हर है,
फिर खेली गयी होली खून की
फिर शहीद हुवे
भगत चंद्रशेखर अशफाक ,
रोको इन दह्शद-गर्दों को
ये देश की अंधी राजनीति के
पेट से पैदा कुछ कीड़े हैं,
देश बेचने वालों के
ये अन्न दाता हैं
जागो भारत की अब
हम टूटने की कगार पर हैं ,
एक क्रांति और पुकार रही है
सुनो इस पुकार को
आज़ाद करा लो देश
आओ एक बार फिर से
हम सिर्फ क्रांतिकारी बने
एक बार फिर से हम
देश में बदलाव के लिए
संघर्ष करें......,
apka हमवतन भाई गुफरान
(AWADH PEPULS FORUM FAIZABAD)
Posted by गुफरान सिद्दीकी 0 comments
Labels: भगत चंद्रशेखर अशफाक शहीद अनाथ
लालबत्ती इच्छाधारियों ने खण्डूड़ी पर दबाव बनाया
भारतीय जनता पार्टी के अन्दर एक बार फिर से घमासान के आसार पैदा हो गये हैं। लालबत्ती की लाइन में खड़े विधायक व पार्टी नेता तुरंत दायित्व के बोझ तले दबाने को उतावले हैं तो पार्टी के पुराने निष्ठावान कार्यकर्ता लालबत्तियों के मामले में छत्तीसगढ़ फार्मूले को अपनाये जाने पर जोर दे रहे हैं। हालत की गम्भीरता का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि दोनों ही पक्ष इस मामले में आलाकमान के दरवाजे पर गुहार भी लगा चुके हैं। असन्तुष्टों की हलचल के थमने के बाद इस प्रकरण में भाजपा में सियासी तूफान के से हालात बन गये हैं। 7 मार्च 2008 को सूबे की कमान संभालने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री व लोकसभा सांसद भुवन चन्द्र खण्डूड़ी के लिए पौने दो वर्ष में हालात कभी सामान्य नहीं रहे। मित्र विपक्ष से ग्रस्त विपक्ष बनी मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस कभी भी उन्हें परेशान नहीं कर पायी, किन्तु अपनी ार्टी के ही नेताओं और विधायकों ने उन्हें आराम ही नहीं करने दिया। मुख्यमंत्री पद की शपथ पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रकाश पंत के साथ लेने के बाद विधायकों ने इतनी लाबिंग करी कि मंत्रीमण्डल के अन्य 10 सदस्यों को शपथ दिलाने में ही 20 दिन लग गये। यह खण्डूड़ी का ही कौशल था कि लगातार दूसरे वर्ष सरप्लस बजट विधानसभा में पेश किया गया। पार्टी के नेताओं और विधायकों ने मुख्यमंत्री के निकटवर्तियों को निशाने पर लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी किन्तु यह निकटवर्तियों की रणनीति व खण्डूड़ी का भाग्य ही था कि वे कठिन से कठिन परिस्थितियों से भी पार पा गये। खेमाबंदी कर रहे विधायक तो खण्डूड़ी को एक दिन भी मुख्यमंत्री नहीं रहने देना चाह रहे थे, किन्तु एक के बाद एक चुनाव में मिली जीत व आलाकमान की फटकार ने उन्हें चुप रहने पर तात्कालिक मौर पर विवश किया। असंतुष्ट विधायकों ने पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के नेतृत्व में दिल्ली दरबार में दस्तक दी, तो एक बार संख्या बल के हिसाब से लगा कि खण्डूड़ी को दिक्कत हो सकती है, किन्तु दिल्ली दरबार की घुडक़ी व कोश्यारी को वाया राज्यसभा से दिल्ली भेज असन्तुष्ट मुहिम को करारा झटका दिया गया। खण्डूड़ी ने पार्टी के लगभग 45 नेताओं नेताओं को दायित्व के बोझ से नवाजा, तो विधायकों की महत्वकांक्षा फिर हिलौरे मारने लगी। राजनीतिक मजबूरी भी थी कि किसी तरह असन्तुष्टों के पर कतरे जांय या दायित्व दिये जायं। दायित्व देने के लिए 28 पदों को लाभ के दायरे से बाहर लाया गया, किन्तु मलाईदार माल न मिलते देख विधायकों ने इस पैरवी ही नहीं की। लगातार आज कल होता देख असन्तुष्ट विधायकों ने नई खेमाबन्दी कर ली। प्रदेश भाजपा प्रभारी के बीते शनिवार को देहरादून दौरे के दौरान पद न मिलने का रोना भी रोया गया। पिछली कांग्रेस और अब मिलाकर लगभग 46 पद लाभ के दायरे से बाहर हैं। विधायक इन पदों पर अपना स्वाथाविक हक जता रहे हैं। विधानसभा में भाजपा के इस वक्त 36 विधायक हैं। कोश्यारी के विधानसभा से इस्तीफा देने के कारण कपकोट सीट खाली हो गयी है। तीन निर्दलीय व उक्रांद के तीन विधायकों को मिलाकर संख्या 42 हो जाती है, इनमें मनोनीत विधायक केरन हिल्टन भी शामिल हैं। मुख्यमंत्री सहित 12 सदस्य मन्त्रिमण्डल में हैं, तो विधानसभाध्यक्ष हरबंस कपूर व उपाध्यक्ष विजय बड़थ्वाल भी संवैधानिक पदों पर आरूढ हैं। इस प्रकार विधानसभा में 22 विधायक ऐसे हैं। जिनके पास कोई पद नहीं है, किन्तु पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता यह साफ कहते हैं कि विधायक संवैधानिक व्यवस्था का प्रमुख अंग है। और विधायक का टिकट देते हुए पार्टी ने किसी विधायक से यह वादा नहीं किया गया था कि उन्हें पद से नवाजा जायेगा। पुराने व निष्ठावान कार्यकर्ता पार्टी के अन्दर छत्तीसगढ़ फार्मूले को अपनाने पर जोर दे रहे हैं, जहां पार्टी में जीते या हारे प्रत्याशियों को कोई दायित्व न दिया जाना तय किया गया है। इनका यह भी कहना है कि भाजपा ने पूरा चुनाव अभियान कांग्रेस द्वारा बांटी लालबत्तियों और भ्रष्टाचार के विरूद्ध चलाया और लालबत्तियां बांटने के मामले में कांग्रेस की राह चले, तो जनता के बीच क्या मुंह लेकर जायेगे। अगले कुछ माह में ही लोकसभा चुनाव के साथ प्रदेश सरकार भी दो वर्ष का कार्यकाल पूरा कर लेगी, ऐसे में लोकसभा चुनाव से पहले लालबत्ती वितरण से जनता के बीच विपरीत संदेश जाना तय है।
Posted by राजेन्द्र जोशी 0 comments
divya santo ka naam lena kya galat hai
हां. हां बिलकुल गलत नहीं है, पर भड़ास में यह बात करना ऐसे ही है जैसे दारू के अड्डे पर जाकर भजन। इसकी दिव्यता को चूतियापा है जनाब। दिमाग खाने वाले बॉस, डीग हांकने वाले साथी और सत्यानाशी नेताओं को अपने ही निराले अंदाज में निपटाना इसके प्रमुख लक्षण रहे हैं। बनारस से हिंदी में डॉक्टरी करके पूरे हिंदुस्तान को हिंदी का पाठ पढाने वाले विद्वानों को अपना शब्दकोष समृध्द करने के लिए इस भड़ास ने काफी योगदान दिया है या यों कहिए की साहित्य को नई विधा दी है। अगर पतित और गिरे हुए गले से लगाना देवत्व की निशानी है तो शब्दों की दुनिया में भड़ास ने यही काम किया है। ऐसे कितने ही शब्द हैं जिन पर कलम चलाने से साहित्य मटियामेट होता है जबान पर लाने से संस्कार अकाल मौत मर जाते थे उन्हीं शब्दों का उपयोग किस अलंकारित रूप से यहां हुआ है, उसकी मिसाल अन्यत्र मुश्किल है। इन शब्दों के प्रणेता डॉ रुपेश श्रीवास्तव, यशवंत सिंह, मुनव्वर आपा का मिजाज ही भड़ास है। सिंह साहब कृपया मुझे काफिर ना समझें। मेरी सलाह है कि यह अंधो की बस्ती है। क्यों आइना बेचते हो भाई।
Posted by gurudatt tiwari 3 comments
Labels: "छीछालेदर रस" हास्य व्यंग्य
दिव्य संतों के बारे में पढ़ना- लिखना क्या गलत है?
Posted by Unknown 4 comments
26.12.08
कहाँ गई वो दिल की भडास ?
ये अचानक भडासी परिवार को क्या हो गया ?
मैं रोज ही एक बार यहाँ अवश्य झाँक जाता हूँ , किंतु निराशा होती है .........
ढेर सारी खिन्नता भी ! कोई विचार नहीं .....कोई सार्थक लेखन नहीं !
जब कोई मुद्दा ही नहीं तो बहस कहाँ से होगी ?
कहाँ गई वो दिल की भडास ?
वाद - प्रतिवाद की जगह गाली - गलौज, खुन्नसबाजी, और निरर्थक लेखन !
संत रैदास, जीसस, संत नामदेव, तैलंग स्वामी, गीता सार, कबीर.............
क्या यही सब पढने को मिलेगा अब ?
Posted by प्रकाश गोविंद 5 comments
संत नामदेव
विनय बिहारी सिंह
संत नामदेव अपने समय के विलक्षण संत थे। उनका जन्म तो महाराष्ट्र के सतारा जिले के गांव नारस वामनी में हुआ था। लेकिन उनके जन्म के बाद ही उनके माता- पिता सोलापुर जिले के पंढरपुर में बसने चले गए। पिता दर्जी का काम करते थे। पंढरपुर में ही भगवान का एक मंदिर था- जिसे विट्ठल या विठोवा कहा जाता था। जब नामदेव पांच साल के थे तो उनकी मां ने कुछ प्रसाद चढ़ाने के लिए दिया और कहा कि वे इसे विठोवा को चढ़ा दें। नामदेव सीधे मंदिर में गए और विठोवा को प्रसाद चढ़ा कर कहा कि इसे खाओ। लोगों ने कहा- यह मूर्ति है। खाएगी कैसे? लेकिन नामदेव मानने को तैयार नहीं थे कि विठोवा उनका प्रसाद नहीं खाएंगे। बच्चे की जिद मान कर सब अपने- अपने घर चले गए। मंदिर में कोई नहीं था। नामदेव धाराधार रोए जा रहे थे और कह रहे थे- विठोवा या तो यह प्रसाद खाओ नहीं तो मैं यहीं, इसी मंदिर में जान दे दूंगा। दिल को चीर देने वाली बच्चे की कारुणिक पुकार सुन कर विठोवा पिघल गए। वे हाड़- मांस के जीवित व्यक्ति के रूप में प्रकट हुए और विठोवा का प्रसाद खाया। नामदेव को भी खिलाया। नामदेव तो विठोवा के दीवाने हो गए। दिन- रात विठोवा, विठोवा या विट्ठल, विट्ठल की रट लगाए रहते थे। धीरे- धीरे स्थिति यह हो गई कि नामदेव की हर सांस विठोवा के नाम से चलने लगी। नामदेव ने कई चमत्कार भी किए। लेकिन मजा यह था कि नामदेव को यह मालूम नहीं था कि वे चमत्कार कर सकते हैं। एक व्यक्ति का एक पैर बिल्कुल खराब था। उसे विठोवा मंदिर की सीढियां चढ़ने में बहुत कष्ट होता था। नामदेव ने उसके खराब पैर को थोड़ी देर के लिए सहलाया औऱ उस व्यक्ति के पैरों में ताकत आ गई। वह व्यक्ति तो नामदेव के पैरों पर ही गिर पड़ा। नामदेव चकित थे, बोलेम- एसा क्यों कर रहे हो मित्र? वह बोला- भगवन आपने मेरे ऊपर असीम कृपा कर दी। नामदेव भोले ढंग से बोले- मेरी क्या ताकत है मित्र? सब विठोवा करते हैं। बहाना किसी को बना देते हैं। जो तुम हो वही मैं हूं।
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25.12.08
पहले परमात्मा को चाहो, चीजों को नहीं- जीसस क्राइस्ट
विनय बिहारी सिंह
जीसस क्राइस्ट परमात्मा के अवतार थे। उन्होंने कहा- सीक ये द गॉड, आल थिंग्स विल बी एडेड अन टू यू। यानी सबसे पहले परमात्मा को चाहो। उसे पाओ। बाकी सारी चीजें तुम्हारे पास खुद ब खुद दौड़ी चली आएंगी। वह चीजें भी जिनकी हमें जरूरत है और हमें इसका भान तक नहीं है। परमात्मा सर्वग्य हैं। वे सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान भी हैं। आज क्रिसमस के दिन जीसस क्राइस्ट को सभी एक बार याद करते हैं क्योंकि वे करुणा, क्षमा, दया, प्यार और बेसहारों के सहारा हैं। परमहंस योगानंद ने जीसस क्राइस्ट पर बहुत खूबसूरत पंक्तियां लिखी हैं-क्लाउड कलर जीसस कमओ माई क्लाउड कलर जीसस कमओ माई क्राइस्ट, ओ माई क्राइस्टओ माई क्राइस्ट, ओ माई क्राइस्टजीसस क्राइस्ट कम।क्लाउड कलर जीसस कम।। कई चित्र ऐसे भी हैं जिनमें भगवान कृष्ण और जीसस क्राइस्ट हाथ में हाथ मिला कर चल रहे हैं। दरअसल गीता और बाइबिल की कई बातें एक जैसी हैं। कोलकाता में क्या हिंदू और क्या ईसाई सभी क्रिसमस को उत्सव के रूप में मनाते हैं। जीसस क्राइस्ट ने कहा- मैं ईश्वर का पुत्र हूं। लेकिन उन्होंने यह भी कहा- तुम भी ईश्वर के पुत्र हो। उन्होंने कहा- मनुष्य को भगवान ने अपने रूप में बनाया है। परमहंस योगानंद ने जीसस क्राइस्ट के बारे में बहुत लिखा है। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक है- सेकेंड कमिंग आफ क्राइस्ट। यह पुस्तक जीसस क्राइस्ट के दर्शन और उनकी महानता को स्पष्ट तरीके से सामने लाती है। भारत सर्व धर्म समभाव वाला देश है। हमारा देश मानता है कि इस पृथ्वी पर जितने भी संत- महात्मा हुए हैं, उन्होंने अपने समय में मनुष्य का बड़ा उपकार किया है। मनुष्य को उनका आभारी होना चाहिए। जीसस क्राइस्ट ने मनुष्य को करुणा, प्रेम, दया और सहानुभूति का जो पाठ पढ़ाया, वह अद्भुत है। आज समूचे विश्व में क्रिसमस धूमधाम से मनाया जाता है। भगवान कृष्ण की तरह जीसस क्राइस्ट की असीम करुणा और दया के सागर हैं। वे मनुष्य ही नहीं सभी जीवों पर कृपा करें, यही हमारी प्रार्थना है।
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Merry Khristmas
Wish you All
A Very
MERRY CHRISTMAS
Posted by Parvez Sagar 0 comments
Labels: Christmas
24.12.08
merry christmas
Friends18.com Christmas Greetings
Chritmas ka yeh pyara tyohaar
jeevan mein laye khushiyan apaar,
santa clause aaye aapke dwar,
subhkamna hamari
kare sweekar. Merry Christmas.
Posted by सचिन मिश्रा 0 comments
Merry christmas
ओ bhadhasio और वो सभी जो bhadhasi नही है उनको भी Merry christmas
Posted by gyanendra kumar 0 comments
बताओ भडासी तुममे तो हिजडे जितनी भी ताकत नही........
संजय जी आप कितने अजीब प्राणी हो भाई ..पहले भी आपको पढ़ा लगा कोई समझदार इंसान होगा पर जब से आपकी "जवान साली फिसल गई " पढ़ा आपकी औकात का अंदाजा हो गया कम से कम यार जवान को जुबान तो कर लिया होता । लडाई तो आपकी सम्भवजी से थी पर आपकी किडनी इतनी कमज़ोर है जो कमेन्ट करने वालो से भी पंगेवाजी पे उतर आए। यार जहाँ तक बात हिजडो की तरह सहानुभूति बटोरने की है तो इतना तो समझले की आप हिजडो की तरह ताकतवर भी नही हो...यार शारीरिक विकलांग होते हुए भी वे ज़माने से डट कर लड़ते हैं। सोचिये जरा आप जैसे मर्दों में अगर लिंग ही ना रहे तो मर्दानगी दिखाने की अधूरी ख्वाहिश पाले खुदकुशी कर लेंगे....
जहाँ तक बात भड़ास निकालने की है तो यार भडासी एक दुसरे पर ही गरज रहे हैं, कहीं ऐसा ना हो जाए हम सिर्फ़ गरजे ही बरसने की औकात ही ना रहे , यशवंत दादा ने मंच दिया है भड़ास निकालने के लिए तो इसका इस्तेमाल तो सही तरीके से करो यार...
मिलजुल कर कहो, आपस में मत लडो...
जय जय भड़ास.........
Posted by आकाश सिंह 6 comments
भगवान श्रीकृष्ण का कर्मयोग संदेश
Posted by Unknown 2 comments
क्षमा तत्व की हुई कमी तो आए प्रभु येशु
Wednesday, December 24, 2008
>> पंकज व्यास
जब-जब इस दुनिया में किसी मानवीय तत्व की कमी हुई, तब-तब उस कमी को पूरा करने के लिए इस धरा पर किसी को आना पड़ा।
मानव तभी पूर्णता की ओर अग्रसर हो सकता है, जब उसमें सब तत्वों का समावेश हो। ठीक इसी तरह इस विश्व में भी सारे तत्वों का समावेश जरूरी है। जब कभी किसी तत्व की कमी हुई, तो उस तत्वा को पूरा करने की आवश्यकता हुई और प्रकृति व परमेश्वर ने उस तत्व में अभिवृद्घि करने के लिए उस तत्व से भरपुर एक अवतरण को इस दुनिया में भेजा।
जब करूणा की कमी हुई, तो बुद्घ आए, जब मर्यादा की कमी हुई तो श्रीराम आए, जब प्रेम और व्यावहारिकता की कमी हुई तो श्री कृष्ण आए, जब ओज-जोश और वीरता की कमी हुई तो पवनपुत्र हनुमान आए, जब अहिंसा की कमी हुई तो महावीर आए, जब भाईचारे की कमी हुई, पेगम्बर मोहम्मद आए। इसी तरह जब क्षमा तत्व की कमी हुई तो प्रभु येशु आए और दुनिया में सबको क्षमा करना सीखाया।
प्रभु येशु के वैसे तो कई उपदेश, सदुपदेश, शिक्षाएं व सुसमचार हैं, लेकिन उनके जीवन को व्यापक दृष्टिï से देखें तो उन्होंने विश्व को क्षमा करना सीखाया। दूसरे शब्दों में प्रभु येशु को क्षमा का अवसर का जाए, तो कदाचित् कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
आज जबकि छोटी-छोटी छोटी बातों के लिए, झगड़े-फसाद हुआ करते हैं, प्रभु येशु का अवतरण दिवस क्रिसमस प्रासंगिक बन पड़ा है।
इस दिन सारी प्रार्थनाओं के साथ एक प्रार्थना और की जा सकती है और वह है क्षमा की अभिवृद्घि की।
यहाँ ब्लॉग भी देखे: आप-हम.ब्लागस्पाट.कॉम
Posted by Unknown 1 comments
मै भडासी हूँ सम्लेंगिक नहीं ..हा हा हा !!
संभव जी इस मंच की सार्थकता अब समझ आई जब आपकी में बम्बू हुआ ,पहेले जब किसी की में ऊँगली कर रहे थे तब समझ नहीं आ रहा था !! भैया अच्छी विचारधारा हम भी रखते है ,अच्छे काम हम भी करते है पर जब आप किसी को उत्तेजित करोगे तो वो तो आपकी लेगा ही !!और ये कमेंट्स छापकर सहानुभूति बटोरकर आपने बिलकुल उसी तरह का कार्य किया है ,जिस प्रकार का काम एक किन्नर खुदा को दोष देकर,सहानुभूति बटोरकर चंदा बटोरने में करता है !खैर मुझे खुसी है की जिस प्रकार की आशा में आपसे रखता थ और जिस श्रेणी का में आपको समझता था बिलकुल आप उसी तरह के निकले !!!और आकाश जी को बता दो की हम भडासी तो है पर सम्लेंगिक नहीं है इसलिए मर्दांगनी औरतों पर उतारते है ,अब आप सम्लेंगिक हो सकते हो इसलिए आप मर्दों मर्दों की बात बन जाती है ....हा हा हा .......और आकाश जी कह रहे थे की .. और हाँ संभव भाई अपनी मर्दानगी की आग बचाए रखे..!!!हाँ तो संभव जी में भी आपसे यही कहना चाहूँगा की ये आग बचाए रखे ...बुढापे में तकलीफ नहीं होगी!!!
अगर अब और हिजडों की तरह काम करना है मेरा मतलब सहानुभूति बटोरनी हो तो एक और पोस्ट छाप देना ,मेरी पोस्ट को जोड़कर !!अच्छा भैया अब चले जा रहे है , आशा है की अब आप मंच की सार्थकता हो जान गए होंगे !! और संजय को भी !!
Posted by News4Nation 1 comments
ये क्या हो गया भड़ास को
भडासी भाई लोग पढो पहले फिर कुछ बताते हैं, क्या है ये ।
खुद का पॉर्न विडियो ही नेट पर डाला,युवती नेआज इसे जवानी की मदहोशी कहे या खुद को प्रसिद्ध करने की लालसा युबक और कम उम्र की लड़कियां खुद को जनता के सामने किसी भी रूप मैं परोसने को तैयार है ऐसा ही बाकया हमारे सामने आया है ,जिसने सपूर्ण चीन को धुल्मित कर दिया ,साथ ही कुछ मनचलों को कुछ पल का सकून दिया ,गनीमत है की यह कारनामाहिन्दुस्तान का नहीं है !!!इसी पर एक रिपोर्ट !!.yaadonkaaaina.blogspot.comPosted by ѕαηנαу ѕєη ѕαgαя
Kumar sambhav said...sagar sahab aap ne josh me aakar tin bar ek hi chez post kar diye, aur ey koi nai khabr nahi hai, lagta hai net ka estemal haal hi me shuru kiyea hai।jai jai भड़ास
23/12/08 11:54 AM
ѕαηנαу ѕєη ѕαgαя said...हाँ तो भइया बात कुछ ऐसी है की हम ठहरे मर्द ,अब मर्द है तो जोश तो है ही साथ ही साथ मुद्दा भी दिल जलने वाला है क्योंकि हमको वो विडियो देखने मिला नही !!अब आपमें तो हुम्हे आजतक जोश जैसा कुछ दिखा नही,पर हाँ मर्दों में होता है !! आपका भइया मुझे पता नही ,क्या लफडा है !!और बात पुराणी हो सकती है क्योंकि आप मेट्रो सिटी में बैठे हो ,हम गाँव में !!और रही बात नेट की तो शयद बह भी मर्द है जोश में तीन बार पोस्ट का दी !!आप एक काम करो ब्लॉग लिखके कुछ पैसे मिले हो तो आज डॉक्टर को दिखा लो !!वरना अपने रजनीश जी ये यहाँ मुफ्त सुबिधा उपलब्ध है ! !!जय जय जय भड़ास
23/12/08 12:15 PM
Kumar sambhav said...इन्ही उलझे दिमागों में मुहबत के घने लच्छे हैं, हमे पागल hi रहने do हम पागल hi अच्छे हैं । भाई रजनीश मुझे जानते हैं , परिचेय देने कि जरूरत नहीं आप को आपकी एक और बेतुकी पोस्ट पढ़ा वैसे आपकी पहले के पोस्ट कि बात hi अलग रही है। मुझे आप कि लेखनी भी पसंद आती है। लेकिन ये बीच में आपने कुछ बहादुरी दिखाई और निरे बेवकूफ नज़र आए। चलो गुरु मर्दानगी कि नसीहत भी दे दी डॉ। का पता नहीं बताया लगता है पुराना आनाजाना है डॉ। के यहाँ. यार कुछ अच्छी जगह मर्दानगी दिखाओ, रही बात बड़े और छोटे शहर कि तो भाई में गाओं से आता हूँ, पेट कि आग ने दिल्ली पहुँच दिया.
ѕαηנαу ѕєη ѕαgαя said...हा हा गूंगा भी बोला !!!गजब आज पता नहीं किसका मुँह देखकर उठा था !!! मजा आ गया!!बड़े भैया जिंतना जोश अब आपकी से बगर रहा है अगर पहेले बगरा होता तो कुछ जरुर हो जाता है! और रही मर्दांगनी की बात तो बहुत सी कन्याएं गवाह है की संजय सेन मर्द है !!और रही बात रजनीश जी की तो बे एक सामाज सेवेक भी है इसलिए आपका काम मुफ्त में बनवा रहा था !!चलो यार अब जा रहे है मजा आया !!!
कुछ दिन पहेले भडास पर मनीषा जी और राजीव जी के बीच लगभग इसी तरह का सवांद हुआ था। थोडी भाषा अलग थी , सवाल ये उठता है की क्या विचारों के मतभेद को एक दुसरे के ऊपर अशोभानिये बातें लिख कर कम कियाजा सकता है? नही बिल्कुल नही ...सागर सेन सागर साहब की बातों का जवाब दिया जा सकता है , लेकिन क्यों ? क्या मतलब है इससे भड़सिओं को , जवाब देकर में क्या साबित करूंगा ? यार सेन साहब को पढ़ कर मुझे yahoo chat के वो दिन याद आगये जब बच्चे नेट पर एक दुसरे को गलियों दिया करते थे । भाई यशवंत जी ने मंच दिया है .... कम से कम सार्थक इस्तेमाल तो करो .....जय जय भड़ास
Posted by कुमार संभव 2 comments
23.12.08
पान की दुकान पर भड़ास....
शीर्षक पढ़के ये मत समझ लीजियेगा की पान की दुकान पर 'भड़ास' की चर्चा की बात का उल्लेख कर रहा हूँ। दरअसल पान की दुकान ऐसी जगह है जहाँ लोग गाहे बगाहे हर तरह की भड़ास निकालते हैं । आज की ही बात है रिपोर्टिंग के लिए निकला तो पास ही में एक मित्र से मुलाकात हो गई, सोचा कुछ खाया चबाया जाए । हम पान की दुकान की और चल दिए...जहाँ हम भाडासिओं जैसे ही कुछ भडासी मौजूद थे। उनके बातचीत की एक बानगी हुबहू पेश कर रहा हूँ॥
"यार इ अंतुले पगला है का बे॥"
का हो गया
"कल फिर देखे करकरे जो बम्बई में मर गया उसका मरने का जाँच का मांग पे अड़ल है अउर बेटा कांग्रेसियन भी सब चूतिये है उ माधर...को निकाल कहे नही रहा "
छोड़ ना बे चुपचाप सिगरेट मारो इ सब तो साला अइसने है, ललुआ और दू चार गो मुस्लिम सांसद लोग अंतुले का सपोर्ट कर दिया तो साला का गांड मोटा गया , अउर कांग्रेसियन को तो बॉस वोट चाहिए ना ...तुम उलोग को जीता दोगे का। इ लोग तो किसी को भी वोट के नाम पे किसी का मार लेगा। तुम भी जल्दी जल्दी मारो अउर चलो।
"ठीके कह रहे हो यार सब तो गांडूऐ है इ जो भाजपा वाला है इहो सब तो बोल रहा था की करकरे देशद्रोही है, सही कर के अंगुली कर दिया था तो लग रहा था.... इ लोग को अब राजनित करना है तो डेली टिविया में बक बक कर रहा है..."
छोड़ इ लोग का बात मत करो .... अरे मैचवा में का हुआ
"हुआ का ड्रा हो जायेगा "
अउर सुना की नही धोनिया का पूजा होगा बे॥
"हाँ पेपर में पढ़े साला मन्दिर बन रहा है"
के पूजा करेगा रे वहां
...मार साला पगला गया है सब अभी जीत रहा है तो पूज रहा है, चार पाँच गो मैच हारने दो इहे लोग उसका पुतला जलायगा अउर फासियो देगा , एक बार उसका घरवा तोडा था ना ...
हाँ भाई पब्लिको चूतिये है ...
चल शो का टाइम हो गया है सुने हैं बड़ा मस्त फ़िल्म है....चलो हमलोग भी चांस पे डांस मारते हैं ।
फिर पान की दुकान पर भड़ास निकालने वाले ये भाई चलते बने...
अब हम भी चलते हैं॥
जय जय भड़ास.....
जय हो भड़ास....
Posted by Akhilesh k Singh 3 comments
ईश्वर का पुत्र
ईसाई धर्म में जीससका क्या स्थान है, इससे हर कोई भलीभांति परिचित है। लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि जीससको केवल इसलिए सूली पर चढा दिया गया था, क्योंकि वे खुद को ईश्वर का पुत्र मानते थे।
दरअसल, रोमन साम्राज्य के अंतर्गत आता था जीससका देश जूडिया।रोमन गवर्नर पांटियसपायलट की एक पागल व निर्दोष व्यक्ति को सूली पर चढाने में कोई रुचि नहीं थी। एक ऐसा आदमी, जो दावा करता था कि मैं ईश्वर का एकमात्र पुत्र हूं।
दरअसल, उसे अधिकतर लोग पागल ही मानते थे। लेकिन वह किसी व्यक्ति को नुकसान नहीं पहुंचा सकता था। पांटियसपायलट ने माना कि जीससनिर्दोष हैं और उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है। यदि उन्हें इस विचार से आनंद मिलता है कि वह ईश्वर का एकमात्र पुत्र है, तो उन्हें ऐसा सोचने देना चाहिए।
वास्तव में, यदि आपके मन में ईष्र्या के भाव पैदा हो रहे हैं, तभी दूसरे प्रकार के विचार आ सकते हैं। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति सोचे कि मैं ईश्वर का एकमात्र पुत्र हूं, तो उस व्यक्ति के प्रति विरोध प्रकट करने का सवाल ही नहीं उठता है! क्योंकि किसी भी व्यक्ति के पास इस बात का कोई ठोस प्रमाण ही नहीं है कि वह ईश्वर का पुत्र है या नहीं! व्यक्ति न केवल ईश्वर का पिता हो सकता है, बल्कि वह ईश्वर का पुत्र और भाई भी हो सकता है। यह व्यक्ति मात्र की कल्पना हो सकती है। यदि आप किसी व्यक्ति से मिलते हैं और वह आपसे कहता है कि वह ईश्वर का पुत्र है, तो क्या आप यह सोचते हैं कि उस व्यक्ति को सूली पर चढा देना चाहिए?
संभव है कि आप यह सोचें कि सामने वाला व्यक्ति अपनी राह से भटक गया है। लेकिन इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि उसे सूली पर चढा दिया जाए। सच तो यह है कि उस व्यक्ति को आनंद मनाने का पूरा अधिकार है। अब यदि दूसरे शब्दों में कहें, तो आपको उस व्यक्ति का उत्साह और बढाना चाहिए, क्योंकि ईश्वर को पाना बहुत कठिन है और आपने ईश्वर के रूप में पिता को पा लिया है। यह संभव है कि वह आपको ईश्वर के ठिकाने का कोई संकेत बता दे।
जीससने किसी व्यक्ति को कभी कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था। एक शहर से दूसरे शहर में जाकर यह कहना कि मैं ईश्वर का एकमात्र पुत्र हूं, यह कोई अपराध नहीं है। लेकिन यह यहूदियों के स्वाभिमान के लिए खतरनाक था, क्योंकि एक गरीब इनसान उनसे कह रहा था कि वह ईश्वर का पुत्र है! अन्यथा यह एक निर्दोष मामला था, उस बेचारे पर तनिक भी क्रोध प्रकट करने की कोई आवश्यकता नहीं थी!
आपको स्वच्छ और बोझ-रहित होना होगा, क्योंकि आप शिखर को छूने जा रहे हैं। ये सारे बोझ आपकी प्रगति को बाधित कर देंगे। आप सत्य को जानने जा रहे हैं, इसलिए सत्य के संबंध में किसी धारणा को मत ढोएं, क्योंकि यही धारणा आपके और सत्य के बीच में अवरोध बन जाएगी। -[ओशो]
Posted by Unknown 0 comments
जवान साली फिसल जाती है !
Kumar sambhav said...
sagar sahab aap ne josh me aakar tin bar ek hi chez post kar diye, aur ey koi nai khabr nahi hai, lagta hai net ka estemal haal hi me shuru kiyea hai.jai jai bhadas
23/12/08 11:54 AM
हाँ तो भइया बात कुछ ऐसी है की हम ठहरे मर्द ,अब मर्द है तो जोश तो है ही साथ ही साथ मुद्दा भी दिल जलने वाला है क्योंकि हमको वो विडियो देखने मिला नही !!अब आपमें तो हुम्हे आजतक जोश जैसा कुछ दिखा नही,पर हाँ मर्दों में होता है !! आपका भइया मुझे पता नही ,क्या लफडा है !!और बात पुराणी हो सकती है क्योंकि आप मेट्रो सिटी में बैठे हो ,हम गाँव में !!और रही बात नेट की तो शयद बह भी मर्द है जोश में तीन बार पोस्ट का दी !!आप एक काम करो ब्लॉग लिखके कुछ पैसे मिले हो तो आज डॉक्टर को दिखा लो !!वरना अपने रजनीश जी ये यहाँ मुफ्त सुबिधा उपलब्ध है ! !!
जय जय जय भड़ास
Posted by News4Nation 7 comments
Labels: जवान साली फिसल जाती है
आतंकियों के बारे में एक विस्मयकारी तथ्य
आतंकवादियों की गतिविधियों पर गौर करने पर एक अद्भुत तथ्य सामने आया है। आप भी गौर करें।
१३ मई---------------------------जयपुर में विस्फोट।
जून----------------------------------------------
२६ जुलाई------------------------अहमदाबाद में विस्फोट।
अगस्त--------------------------------------------
१३ सितम्बर----------------------दिल्ली में विस्फोट।
अक्टूबर-------------------------------------------
२६ नवम्बर----------------------मुंबई में विस्फोट।
दिसम्बर-------------------------------------------
१३ जनवरी------------------------??????????
कृपया सावधान रहें और अपना ख़याल रखें।
मकबूल
Posted by Maqbool 0 comments
22.12.08
खुद का पॉर्न विडियो ही नेट पर डाला,युवती ने
Posted by News4Nation 3 comments
सारे महत्वपूर्ण विभाग माताओं के पास
Posted by Unknown 0 comments
मेरी कलम से
जिन्दगी यूँ ही गुजर जाती तो क्या बात थी
तेरे क़दमों में ठहर जाती तो क्या बात थी
यूँ तो उसका चेहरा किसी नूर से कम नहीं,
कुछ और निखर जाती तो क्या बात थी
कौन डूबता है घुटनों घुटनों पानी में,
इक और लहर आ तो क्या बात थी
तू बात करती थी अक्सर जिस शाम की,
इन आंखों में उतर जाती तो क्या बात थी
वो जा रही थी मौसम बदलने से पहले
जरा सा और ठहर जाती तो क्या बात थी।
Posted by jitendra suryawanshi 0 comments
हाय रे मनमोहन ये तूने क्या किया
यूं पी ऐ सरकार के गठन के बाद मनमोहन सरकार महंगाई के आंच से झुलस रही थी। इसके बाद मंदी का दीमक लग गया। अभी सरकार को दीमक खा रहा था कि बीच में आतंकी छर्रे भी खाने पड़े। इन ढेर साडी समस्याओं से पीड़ित होकर सरकार ने सोचा कि अब सत्ता का भोग दोबारा मिलाना मुश्किल है। लेकिन जैसे ही विधान सभा चुनाव में नतीजे अच्छे निकले। तो मनमोहन सरकार को आस जगी और आनन् फानन में लम्बी लम्बी घोशनाएँ करना शुरू कर दिया जैसे मंदी से निपटने के लिए बैंकों को रहत पॅकेज होम लोन में ब्याज डरघटाकर बहार लाना। नौकरी के दौरान निकले गए कर्मचारियों को ६ महीने का वेतन दिलाना। सरकार ने घोषणाओं का अम्बर लगा दिया। लेकिन मेरे हिसाब से घाव कहीं और है और मरहम कहीं और लगाया जा रहा है। जैसे आवासीय पॅकेज में सरकार ने २० लाख लोन तक में ब्याज दर घटी हैं। लेकिन मुंबई ठाणे जैसे शहरों में तो २० लाख से ऊपर का माकन मिलाता नहीं है। बिल्डर बंधू दाम घटने के मूड में नहीं हैं। मकान बीके या नहीं। उल्टे ग्राहकों को लुभाने के लिए स्कीम और चला दी है वो भी दाम बढाकर । तब तो होम लोन का तो फायदा मिलाने से रहा। अब दूसरी बात मंदी से निपटने के लिए कर्मचारिओं की छंटनी पर ६ महीने का वेतन दिया जाए। उसमे भी शर्त रख दी गयी के कंम्पनी में पाँच साल तक काम कर चुका हो। अब मैं यहांं पर ये बताना चाहता हूँ कि पाँच साल का मतलब बाजपेयी की सरकर में नौकरी लगी और मनमोहन की सरकार में मरहम मिला रहा है जबकि असलियत ये है के जितना मनमोहन सरकार में प्राइवेट सेक्टर में उफान आया है उतना बाजपेयी सरकार में नहीं आया था॥ और लोग मनमोहन सरकार में ही ज्यादातर कम्पनियों में जों हुए हैं। यानी कि आप्कावे ज़माने में जो भरती हुए हैं वो तो बेचारे नीबू नमक ही चटाकर रह जायेंगे। और जो बाजपेयी सरकार में शामिल हुए उनकी तो बहार है। अब में यही कह रहा हूँ कि हे मनमोहन सरकार ये आपने क्या किया । थोड़ा बहुत तो आप अपने काम काज को परख लें । आप क्या कर रहे है और इधर काया हो रहः है।
Posted by जितेन्द्र सिंह यादव 0 comments
Labels: काम धंधा बहक जाना, सरकार
21.12.08
चूतिया कौन
१। if india attacks on ISI, don't u think ISI will fight within india as more bomb blasts, coz still we hav not tightened internal security, we still have to define terrorism(MADAK DRAVYA , NAKALI NOTE, HATHIYARO KE SODAGAR etc) and our police is needed to open all old Files and catch and sentence them।
२। why not should we understand that most of our respected leaders of all the sectors of our life are DOGLE and have worked and talked like CHUTIYAA in all of their life... i have some EXAMPLES as QUESTION on their DESHBHAKTI
- WHEN polticians meet SWAMI RAMDEV G he expresses well respect in all of his speeches, even if all of them are GHOTALEBAAJ and LOKTANTRA KE KODH. and when he has no politician in front of him he shouts on politicians. is not all of those SWAMIS chutiyaas.
- Indias most spiritual leaders from last so many decades are the same CHUTIYAAS , coz i have read the same about MACHAAN WAALE BABA and so many of past and present BABAs.
- Mrs. bachchan supports Samajwaadi party. the party supports SIMMI. now how dare hr HE complains for ATANKWAAD.
- Being an MP, SANSAD se gayab rahna bhi to ek prakaar ka small size desdroh hai. and so many cricketers, bollywoodians do it.
Posted by "MURKHA --- RAAJ" 1 comments
गुरु-शिष्य
वो गुरु-शिष्य परंपरा को
कुछ इस तरह निभा रहे हैं
बाहर रेस्तारेंट मैं
एक ही सिगरेट से
धुआं उड़ा रहे हैं
http://www.tirchinagar.blogspot.com/
Posted by jitendra suryawanshi 3 comments
20.12.08
इस जहाँ को लग गई किसकी नज़र...
इस जहाँ को लग गई किसकी नज़र है,
कौन जाने यह भला किसका कहर है?
आदमी ही आदमी का रिपु बना है,
दो दिलों में छिडी यह कैसी ग़दर है?
ढूँढने से भी नहीं मिलती मोहब्बत,
नफरतों की जाने कैसी यह लहर है?
स्वार्थ ही अब हर दिलों में बस रहा,
यह हवा में घुल रहा कैसा ज़हर है?
हर तरफ़ हत्या, डकैती, राहजनी,
अमन का जाने कहाँ खोया शहर है?
मंजिलों तक जो हमें पहुँचा सके,
अब भला मिलती कहाँ ऐसी डगर है?
उदित होगा फिर से एक सूरज नया,
हमको इसकी आस तो अब भी मगर है।
Posted by Chaitanya Chandan 4 comments
19.12.08
पाकिस्तान को मजबूत कर रहे हैं अंतुले
अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री अब्दुल रहमान अंतुले ने यह कहकर बवाल खड़ा कर दिया कि मुंबई हमलों में मारे गए एटीएस चीफ हेमंत करकरे की मौत की जांच होनी चाहिए, कि उन्हें आंतिकयों ने मारा या फिर उनकी हत्या किसी साजिश के तहत की गई। मुंबई हमलों के बाद पूरा देश इस मद्दे पर एकजुट खड़ा है। इतना ही नहीं इस एक मुद्दे पर पक्ष और विपक्ष भी एक साथ नजर आ रहे हैं। सोई हुई राजनीति ने अंगड़ाई तोड़कर खुमारी छोड़ी है और आंतक से लड़ने की रानीतिक इच्छा शक्ति में नई जान पड़ती दिख रही है। इस मुद्दे पर अगर सारे देश से कोई इतर खड़ा है तो वो हैं अंतुले।
हालांकि अंतुले इससे पहले भी कई बार बेतुकी बयानबाजी कर चुके हैं, लेकिन इस बार बयान बहादुर अंतुले ने ऐसा अपच वाला बयान दिया है कि पूरे देश को हज़म नहीं हो रहा। उस पर ढिठाई ये कि अपनी गलती मानने को तैयार नहीं। हठधर्मिता ने अंतुले को इस्तीफा देने को मजबूर कर दिया। अंतुले के इस बयान ने करकरे की शहादत पर तो सवाल खड़े करने का काम कर ही दिया, साथ ही मुंबई हमलों की जांच कर रहीं भारतीय और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की जांच को भी शक के दायरे में लाने का काम कर दिया। पलटबयानी में माहिर पाकिस्तान अंतुले के बयान को ढाल की तरह इस्तेमाल कर सकता है। पाकिस्तान सरकार इस बात से पहले से ही मुकर रही है कि कसाब और हमलों में मारे गए आतंकी पाकिस्तानी हैं, ऐसे में अंतुले का यह बयान घाघ पाकिस्तान को बढ़ावा ही देगा। पाकिस्तान राषाट्राध्यक्ष इस मामले में क्लीन चिट के लिए पहले ही कई पैंतरे आजमा चुके हैं, लेकिन विश्व बिरादरी के बढ़ते दबाव से वह कामयाब नहीं हो पा रहे हैं। ऐसे हालात में अंतुले के बयान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रखकर पाक यह दावा कर सकता है कि मुंबई हमले भारत की घरेलू साजिश थी। इन हमलों में उनके अपने लोग ही शामिल थे और पाकिस्तान को आतंकवादी राष्ट्र घोषित कराने के लिए भारत अपने ही देश में खुद आतंकवादी हमलों को अंजाम देता आ रहा है। इससे भारत की नीतियों और उजली छवि को विश्व मंच पर धक्का लग सकता है।
इधर उबलती राजनीति और देश की नब्ज को टटोलकर कांग्रेस ने भी अपने इस कारिन्दे से पल्ला झाड़ लिया है। वक्त का तकाजा भी यही है। हालांकि अंतुले के इस्तीफे पर अभी यूपीए सरकार के मुखिया मनमोहन सिंह विचार ही कर रहे हैं, लेकिन चिंता यह है कि कि अंतुले पर की गई कार्रवाई को भी पाकिस्तान अपने हित में भुना सकता है। पाकिस्तान कह सकता है कि सच सामने आने के डर से भारत ने अंतुले के खिलाफ कार्रवाई करके उसका मुंह बंद करने की कोशिश की है। इससे बेहतर तो यही हो कि अंतुले का इस्तीफा मंजूर ही न किया जाए। शायद हमारे दूरअंदेशी प्रधानमंत्री भी यही सोचकर चुप हैं।
सोचने का मुद्दा यह है कि जिस मामले पर अंतरराष्ट्रीय संवेदना हमारे साथ है, पूरी दुनिया ने पाकिस्तान को गलत मानकर उसे तुरंत ठोस कार्रवाई करने के लिए बाध्य किया है, उस मुद्दे पर अंतुले इतनी ढीली बयानबाजी क्यों कर गए। कहीं ये अल्पसंख्यक तुष्टिकरण का हथकंड़ा को नहीं? मुंबई हमलों में भी कहीं हिंदू आतंकवाद का भगवा रंग घोलने का कोशिश तो नहीं? मालेगांव धमाकों और इस घटना में अंतर है। मालेगांव ने जहां सारे देश को अचंभे में डाल दिया था, वहीं इस घटना ने पूरे देश और राजनीति को आतंक के खिलाफ लामबंद किया है। राजनेताओं ने जनता के तीखे तेवर देखकर बहुत कुछ सीखा है। अंतुले के इस बयान के पीछे एक वजह समझ आती है कि कांग्रेस में हाशिए पर खिसक चुके अंतुले शायद पार्टी का ध्यान अपनी तरफ खींचना चाहते थे। एक समुदाय विशेष को गुमराह करके अपना जनाधार तैयार करना चाहते थे।
खैर जो भी हो, अंतुले को अपनी लफ्फाजी पर लगाम लगानी चाहिए, वरना सही दिशा में जा रही जांच और पाक पर बढ़ रहा अंतरराष्ट्रीय दबाव दिशाहीन हो सकते हैं। जो कि भारत ही नहीं बल्कि समूची दुनिया के लिए खतरा है। अंतुले को एक बात और ध्यान रखनी चाहिए कि जनता अब राजनीति की नब्ज समझने लगी है। अगर जनता अर्श पर बैठा सकती है तो फिर मिनटों में ही फर्श पर भी फेंक सकती है।
Posted by मधुकर राजपूत 6 comments
आदमी की इज्ज़त ही कुछ और होती है....!!
और टूटी हुई चीजों की कीमत कुछ और होती है.....!!
मर-मर कर जीना तो बहुत ही आसान है ऐ दोस्त....
जिंदादिल लोगों की तो हिम्मत कुछ और होती है.....!!
एक ही बार तो आता है आदम यहाँ धरती पर.....
बनकर रहे आदम ही तो रिवायत कुछ होती है....!!
हम गाफिल लोग ही रहते हैं आदतों के बाईस........
और फकीरों की तो हाजत ही कुछ और होती है...!!
जो "धन"को जीते हैं उनका चेहरा होता है कुछ और .......
प्यार बांटने वालों की तो लज्जत ही कुछ और होती है.....!!
लोग जाने क्या-क्या "फिजूल"चाहते हुए ही मर जाते हैं.....
जिन्दगी जीने वालों की तो चाहत ही कुछ और होती है.....!!
जब हम सिर्फ़ अपने लिए जीते हैं तो गम ही मिलता है.....
सबपे जीते इंसा पे अल्ला की इनायत कुछ और होती है....!!
धारा के साथ जीने को तो सब जीते हैं "गाफिल"
इसके ख़िलाफ़ वालों की ताकत कुछ और होती है.....!!
Posted by राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) 0 comments
मौत...
मौत को आज मैंने जाना है,
और जीवन को भी पहचाना है।
ज़िन्दगी है अगर कोई संगीत,
तो मौत मस्ती भरा तराना है।
ज़िन्दगी दर्द का समुन्दर है,
तो मौत खुशिओं भरा खजाना है।
मौत ही मंजिले मुसाफिर है,
पर ज़िन्दगी का भी गम उठाना है।
जाने क्यूँ मौत से हम डरते हैं,
ये तो कुदरत का एक नजराना है।
Posted by Chaitanya Chandan 0 comments
18.12.08
अरे भाई....जिन्दगी तो वही देगी...जो.....!!!
हम क्या बचा सकते हैं...और क्या मिटा सकते हैं......ये निर्भर सिर्फ़ एक ही बात पर करता है....कि हम आख़िर चाहते क्या हैं....हम सब के सब चाहते हैं....पढ़-लिख कर अपने लिए एक अदद नौकरी या कोई भी काम....जो हमारी जिंदगी की ज़रूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त धन मुहैया करवा सके....जिससे हम अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकें...तथा शादी करके एक-दो बच्चे पैदा करके चैन से जीवन-यापन कर सकें...मगर यहाँ भी मैंने कुछ झूठ ही कह दिया है....क्यूंकि अब परिवार का भरण पोषण करना भी हमारी जिम्मेवारी कहाँ रही....माँ-बाप का काम तो अब बच्चों को पाल-पोस कर बड़ा करना और उन्हें काम-धंधे पर लगा कर अपनी राह पकड़ना है....बच्चों से अपने लिए कोई अपेक्षा करना थोडी ना है....वो मरे या जिए बच्चों की बला से.....खैर ये तो विषयांतर हो गया....मुद्दा यह है कि हम जिन्दगी में क्या चुनते हैं...और उसके केन्द्र में क्या है....!!........और उत्तर भी बिल्कुल साफ़ है....कि सिर्फ़-व्-सिर्फ़ अपना परिवार और उसका हित चुनते हैं...इसका मतलब ये भी हुआ कि हम सबकी जिन्दगी में समाज कुछ नहीं....और उसकी उपादेयता शायद शादी-ब्याह तथा कुछेक अन्य अवसरों पर रस्म अदायगी भर पूरी के लिए है....यानि संक्षेप में यह भी कि समाज होते हुए भी हमारे रोजमर्रा के जीवन से लगभग नदारद ही है...और कुछेक अवसरों पर वो हमारी जीवन में अवांछित या वांछित रूप से टपक पड़ता है....समाज की जरूरतें हमारी जरूरते नहीं हैं......और हमारी जरूरते समाज की नहीं....!!........ अब इतने सारे लोग धरती पर जन्म ले ही रहें हैं...और वो भी हमारे आस-पास ही....तो कुछ-ना-कुछ तो बनेगा ही....समाज ना सही....कुछ और सही....और उसका कुछ-ना-कुछ तो होगा ही....ये ना सही....कुछ और सही...तो समाज यथार्थ होते हुए भी दरअसल विलुप्त ही होता है....जिसे अपनी जरुरत से ही हम अपने पास शरीक करते है...और जरुरत ना होने पर दूध में मक्खी की तरह बाहर....तो जाहिर है जब हम सिर्फ़-व्-सिर्फ़ अपने लिए जीते हैं....तो हम किसी को भी रौंद कर बस आगे बढ़ जाना चाहते हैं....इस प्रकार सब ही तो इक दूसरे को रौदने के कार्यक्रम में शरीक हैं...और जब ऐसा ही है....तो ये कैसे हो सकता है भला कि इक और तो हम जिन्दगी में आगे बढ़ने की होड़ में सबको धक्का देकर आगे बढ़ना चाहें और दूसरी ओर ये उम्मीद भी करें कि दूसरा हमारा भला चाहे....!! ऐसी स्थिति में हम......हमारा काम.........और हमारी नौकरी ही हमारा एक-मात्र स्वार्थ...एक-मात्र लक्ष्य....एक-मात्र....एक-मात्र अनिवार्यता हो जाता है....वो हमारी देह की चमड़ी की भांति हो जाता है....जिसे किसी भी कीमत पर खोया नहीं जा सकता....फिर चाहे जमीर जाए...चाहे ईमान...चाहे खुद्दारी..चाहे अपने व्यक्तित्व की सारी निजता.....!!....हाँ इतना अवश्य है कि कहीं...कभी सरेआम हमारी इज्ज़त ना चली जाए.....!!.....मगर ऐसा भी कैसे हो सकता है...कि एक ओर तो हम सबकी इज्ज़त उछालते चलें...दूसरी और ये भी चाहें कि हमारी इज्ज़त ढकी ही रहे....सो देर-अबेर हमारी भी इज्ज़त उतर कर ही रहती है....दरअसल दुनिया के सारे कर्म देने के लेने हैं....और यह सारी जिन्दगी गुजार देने के बाद भी हम नहीं समझ नहीं पाते....ये भी बड़ा अद्भुत ही है ना कि दुनिया का सबसे विवेकशील प्राणी और प्राणी-जगत में अपने-आप सर्वश्रेष्ठ समझने वाला मनुष्य जिन्दगी का ज़रा-सा भी पहाडा नहीं जानता...और जिन्दगी-भर सबके साथ मिलकर जीने के बजाय सबसे लड़ने में ही बिता देता है....और सदा अंत में ये सोचता है....कि हाय ये जिन्दगी तो यूँ ही चली गई...कुछ कर भी ना पाये.....!!........अब यह कुछ करना क्या होता है भाई....??जब हर वक्त अपने पेट की भूख....अपने तन के कपड़े...अपने ऊपर इक छत के जुगाड़ की कामना भर में पागल हो रहे...और पागलों की तरह ही मर गए....तो ये कुछ करना भला क्या हुआ होता.....??.........जिन्दगी क्या है.........और इसका मतलब क्या....सबके साथ मिलकर जीने में अगर जीने का आनंद है....तो ये आप-धापी....ये कम्पीटीशन की भावना....ये आगे बढ़ने की साजिश-पूर्ण कोशिशें....ये कपट...ये धूर्तता...ये बेईमानी...ये छल-कपट....ये लालच...ये धन की अंतहीन....असीम चाहत....इस-सबको तो हर हालत में त्यागना ही होगा ही ना....!!??जीने के खाना यानी भोजन पहली और आखिरी जरुरत है....जरुरत है...और इस जरुरत को पूरा करने के लिए धरती के पास पर्याप्त साधन और जगह....मगर हमारी जरूरतें भी तो सुभान-अल्लाह किस-किस किस्म की हैं आज...??!! फेहरिस्त सुनाऊं क्या......??तो जब हमारी जरूरतों का ये हाल है...तो हमारा हाल भला क्या होगा...............हमारी जरूरतों से उनको प्राप्त करने के साधनों से कई गुना कर दें.... हमारा वास्तविक हाल निकल आयेगा...!! तो ये तो हमारी जिन्दगी है....अरे यही तो हमारा चुनाव है.....हमारी जरूरतों के चुनाव से तय होती है हमारी जिन्दगी....!!हमारे ही बीच से बहुत सारे लोग समाज के लिए जीकर निकल जाते हैं....उन्हें अपना ख्याल तक नहीं आता....और मज़ा यह कि ख़ुद जिंदगी उनका ख्याल रखती है.....और लोग-बाग़ जिनके बीच वो जीते हैं....वो उनका ख़याल रखते हैं.......और तो और हम तमाम अम्बानियों....मित्तलों...और ऐसी ही समाज की अनेकानेक अन्य विभूतियों को जरा सी देर में ही समाज द्वारा बिसार दिया जाता है.....और तमाम फ़कीर किस्म के लोग उसी समाज में हजारों वर्षों तक समाज की इक-इक साँस के साथ आते हैं....जाते हैं....!!!!तय तो हमें भी यही तो करना होता है....कि आख़िर हमें क्या करना है......अरे भाई....हम जो चाहेंगे जिन्दगी हमें वही तो देगी.....!!!???
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