यूं पी ऐ सरकार के गठन के बाद मनमोहन सरकार महंगाई के आंच से झुलस रही थी। इसके बाद मंदी का दीमक लग गया। अभी सरकार को दीमक खा रहा था कि बीच में आतंकी छर्रे भी खाने पड़े। इन ढेर साडी समस्याओं से पीड़ित होकर सरकार ने सोचा कि अब सत्ता का भोग दोबारा मिलाना मुश्किल है। लेकिन जैसे ही विधान सभा चुनाव में नतीजे अच्छे निकले। तो मनमोहन सरकार को आस जगी और आनन् फानन में लम्बी लम्बी घोशनाएँ करना शुरू कर दिया जैसे मंदी से निपटने के लिए बैंकों को रहत पॅकेज होम लोन में ब्याज डरघटाकर बहार लाना। नौकरी के दौरान निकले गए कर्मचारियों को ६ महीने का वेतन दिलाना। सरकार ने घोषणाओं का अम्बर लगा दिया। लेकिन मेरे हिसाब से घाव कहीं और है और मरहम कहीं और लगाया जा रहा है। जैसे आवासीय पॅकेज में सरकार ने २० लाख लोन तक में ब्याज दर घटी हैं। लेकिन मुंबई ठाणे जैसे शहरों में तो २० लाख से ऊपर का माकन मिलाता नहीं है। बिल्डर बंधू दाम घटने के मूड में नहीं हैं। मकान बीके या नहीं। उल्टे ग्राहकों को लुभाने के लिए स्कीम और चला दी है वो भी दाम बढाकर । तब तो होम लोन का तो फायदा मिलाने से रहा। अब दूसरी बात मंदी से निपटने के लिए कर्मचारिओं की छंटनी पर ६ महीने का वेतन दिया जाए। उसमे भी शर्त रख दी गयी के कंम्पनी में पाँच साल तक काम कर चुका हो। अब मैं यहांं पर ये बताना चाहता हूँ कि पाँच साल का मतलब बाजपेयी की सरकर में नौकरी लगी और मनमोहन की सरकार में मरहम मिला रहा है जबकि असलियत ये है के जितना मनमोहन सरकार में प्राइवेट सेक्टर में उफान आया है उतना बाजपेयी सरकार में नहीं आया था॥ और लोग मनमोहन सरकार में ही ज्यादातर कम्पनियों में जों हुए हैं। यानी कि आप्कावे ज़माने में जो भरती हुए हैं वो तो बेचारे नीबू नमक ही चटाकर रह जायेंगे। और जो बाजपेयी सरकार में शामिल हुए उनकी तो बहार है। अब में यही कह रहा हूँ कि हे मनमोहन सरकार ये आपने क्या किया । थोड़ा बहुत तो आप अपने काम काज को परख लें । आप क्या कर रहे है और इधर काया हो रहः है।
22.12.08
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