राजीव करुणानिधि,वरुण जायसवाल और वो लोग जिनके मां-बाप ने अब तक उनके नाम नहीं रखे अब तक बेनामी हैं, पूरे यकीन के साथ कह सकती हूं कि वरुण जी ने न तो कभी डा.रूपेश श्रीवास्तव को पढ़ा है और न ही उनके व्यक्तित्त्व से जरा सा भी परिचित हैं। भाषा की श्लीलता और अश्लीलता के पैमानों से उन्हें मत नापिये उनके सामाजिक और साहित्यिक कद की पैमाइश के लिये आपको वातानुकूलित घर से निकल कर झोपड़ॊं मे श्रमिकों के साथ, सड़कों पर सोने वाले भिखारियों और बच्चों के साथ, जिस्मफ़रोशी करने वाली लाचार माताओं के साथ और हम जैसे लैंगिक विकलांगों के साथ चंद घंटे या दिन नहीं बल्कि अपनी M.D. Ph.D जैसी बड़ी डिग्रीज़ को किनारे रख कर,एक धनी परिवार की विरासत छोड़ कर,सन्यस्त रह कर जीवन जीने वाले इस परित्राता मसीहा को नापने के लिये नया पैमाना लाना होगा। दिवा से पनवेल और खोपोली तक होने वाले जहरीली शराब के व्यापार को अकेले अपने आत्मबल की ताकत से इस शख्स ने समाप्त करा दिया, मुझ जैसे अनेकों इंसानो को जिनके माता-पिता ने तक सड़कों पर धक्के खाने को छोड़ दिया था इस मसीहा ने सहारा दिया घर, हिंदी सिखाया, गालियां देकर कमर्शियल सेक्स वर्क करने वाले हिजड़े को बहन कह कर सम्मानित दर्जा दिलवाया, कम्प्यूटर सिखाया। जिस ब्लाग भड़ास पर आप उन्हें कलंक कह रहे हैं शायद आप जानते ही नहीं कि यशवंत दादा और डा.रूपेश श्रीवास्तव उस ब्लाग के माडरेटर हैं वे अगर चाहते तो आपका कमेंट हटा सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं करा बल्कि आपसे बातचीत और विचारों के आदान-प्रदान का पुल बना लिया। आशा है कि आप मेरी बातों से व्यथित न होंगे। मै यह भाषा प्रयोग कर आपको ये सब लिख पा रही हूं उस बात का श्रेय आपके द्वारा कलंक ठहराये गए डा.रूपेश श्रीवास्तव को ही जाता है किसी बौद्धिक और साहित्यिक मुखौटाधारी ब्लागर को नहीं वरना यशवंत दादा जानते हैं कि भाई ने ही मुझे एक "भड़ासी डिक्शनरी" दी थी जो मुझे अब तक पूरी याद है। राजीव करुणानिधि नामक छिछोरा डा.साहब के ब्लाग आयुषवेद पर जाकर सुअरपन कर रहा है उसे चेतावनी है कि बेटा सुधारे नहीं तो ध्यान रखना हम भड़ासी वैसे भी घोषित तौर पर बुरे लोग हैं तुम्हारी तरह अच्छाई का मुखौटा नहीं लगाते,तुम्हारी औकात तुम्हें दिखाने में जरा भी देर न लगाएंगे।
जय जय भड़ास
मनीषा नारायण
माडरेटर "अर्धसत्य" ,सलाहकार "भड़ास"
7.12.08
साहित्यिक छिछोरों डा .रूपेश श्रीवास्तव बन कर दिखाओ तो जरा
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5 comments:
दीदी,
आप इन बकार्चोदों को क्यों तबज्जो दे रही हैं, चूतियों की जमात हैं ये, समाज के जिस इलाकें में डोक्टर रुपेश खाना खता है, रहता है और लोगों से प्यार करता है उसे ये गलीज कहते हैं, सभ्य चूतिये जो ठहरे.
बकर बकर करना हो तो कोई भी कर ली और ये ही लोग कर भी रहें हैं, क्यौंकी किसी सफेदपोश के गांड में दम नही जो समाज की वास्तविकता को स्वीकार और उसे आत्मसात करे.
जय जय भड़ास
हिज(ड़ा) हाईनेस मनीषा, तू जिस तरह से भभक रही है इससे तो साफ़ जाहिर होता है कि तू जिस्म से नहीं दिमाग से भी हिजडा है. तेरी औकात क्या है मै जान चूका हूँ, मेरी औकात नापने का प्रयास मत करो, तेरे जैसी बेहूदी शख्स से मै मुह भी नहीं लगाना चाहता. मैंने डॉ रुपेश को कोई गाली नहीं दी थी, बस सलीके से एक जवाब लिखा था कि ''कृपया अच्छे शब्दों का इस्तेमाल करे. अन्यथा ये समझा जायेगा कि आपकी मानसिक स्थिति अच्छी नहीं है.'' रही बात शराफत की चादर ओढ़ने की बात तो मै बता दू कि ये चादर नहीं मेरा व्यक्तित्व है. और तेरी जैसी नाली के कीडे के साथ मै कोई भी रहम नही रखता. आइन्दा सलीके से जवाब देना. तू भडासी है मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. पर मै जो हु उससे तुझे जरूर फर्क पड़ेगा.. डॉ रुपेश इतने अच्छे इंसान है, इसके लिये उन्हें धन्यवाद, पर क्या अपनी बात कहने के लिये या उसका महत्व बढ़ाने के लिये गाली और अभद्र भाषा का प्रयोग करना उचित है. क्या रुपेश साहब अपने घर में अपने परिवार के सामने ऐसी भाषा का इस्तेमाल करते है. अपनी बात या अपनी भडास निकलने के लिये सलीके दार शब्दों का भी इस्तेमाल हो सकता है. ये जरूरी नहीं कि गाली या बेहूदी भाषा बोलकर ही भडास निकली जा सकती है. और हा जो कुकृत्य बड़े समाज में क्लबों में होते है क्या वो गाँव की गलियों में नहीं होते. अच्छे और बुरे लोग हर जगह है, सिर्फ गाली बोलकर बात करने वाले ही साहसी, स्पस्टवादी, नेक विचार और साफ़ दिल नहीं होते.
हिज(ड़ा) हाईनेस मनीषा, तू जिस तरह से भभक रही है इससे तो साफ़ जाहिर होता है कि तू जिस्म से नहीं दिमाग से भी हिजडा है. तेरी औकात क्या है मै जान चूका हूँ, मेरी औकात नापने का प्रयास मत करो, तेरे जैसी बेहूदी शख्स से मै मुह भी नहीं लगाना चाहता. मैंने डॉ रुपेश को कोई गाली नहीं दी थी, बस सलीके से एक जवाब लिखा था कि ''कृपया अच्छे शब्दों का इस्तेमाल करे. अन्यथा ये समझा जायेगा कि आपकी मानसिक स्थिति अच्छी नहीं है.'' रही बात शराफत की चादर ओढ़ने की बात तो मै बता दू कि ये चादर नहीं मेरा व्यक्तित्व है. और तेरी जैसी नाली के कीडे के साथ मै कोई भी रहम नही रखता. आइन्दा सलीके से जवाब देना. तू भडासी है मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. पर मै जो हु उससे तुझे जरूर फर्क पड़ेगा.. डॉ रुपेश इतने अच्छे इंसान है, इसके लिये उन्हें धन्यवाद, पर क्या अपनी बात कहने के लिये या उसका महत्व बढ़ाने के लिये गाली और अभद्र भाषा का प्रयोग करना उचित है. क्या रुपेश साहब अपने घर में अपने परिवार के सामने ऐसी भाषा का इस्तेमाल करते है. अपनी बात या अपनी भडास निकलने के लिये सलीके दार शब्दों का भी इस्तेमाल हो सकता है. ये जरूरी नहीं कि गाली या बेहूदी भाषा बोलकर ही भडास निकली जा सकती है. और हा जो कुकृत्य बड़े समाज में क्लबों में होते है क्या वो गाँव की गलियों में नहीं होते. अच्छे और बुरे लोग हर जगह है, सिर्फ गाली बोलकर बात करने वाले ही साहसी, स्पस्टवादी, नेक विचार और साफ़ दिल नहीं होते.
गांड में दम रजनीश के झा को है या मुझे ये रजनीश झा नहीं जनता है. बकचोदी करना आसान है पर उसे साबित करना मुश्किल. मै जो बोल रहा था अभी भी उसपर कायम हु. रजनीश की बातो से लगता है कि समाज का असली ठेकेदार वही है. तो रजनीश सिर्फ बेहूदी भाषा बोलकर तू महान नहीं बन जायेगा. महान बनने के लिये महानता दिखानी पड़ती है. आइन्दा अपनी सोच समझ कर बोल
गांड में दम रजनीश के झा को है या मुझे ये रजनीश झा नहीं जनता है. बकचोदी करना आसान है पर उसे साबित करना मुश्किल. मै जो बोल रहा था अभी भी उसपर कायम हु. रजनीश की बातो से लगता है कि समाज का असली ठेकेदार वही है. तो रजनीश सिर्फ बेहूदी भाषा बोलकर तू महान नहीं बन जायेगा. महान बनने के लिये महानता दिखानी पड़ती है. आइन्दा अपनी सोच समझ कर बोल
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