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29.12.08

याचना नही अब रण होगा

याचना नही अब रण होगा ,
संघर्ष बड़ा भीषण होगा।
अब तक तो सहते आए हैं ,
अब और नही सह पाएंगे ,
हिंसा से अब तक दूर रहे,
अब और नही रह पायेंगे
मारेंगे या मर जायेंगे ,
जन जन का ये ही प्रण होगा।
याचना नही अब रण होगा ,
संघर्ष बड़ा भीषण होगा।
हमने देखें हैं आसमान से
टूट के गिरते तारों को,
लुटती अस्मत माताओं की,
यतीम बच्चे बेचारों को,
असहाय नही अब द्रौपदी भी
अब न ही चीर हरण होगा।
याचना नही अब रण होगा,
संघर्ष बड़ा भीषण होगा।
आतंक की आंधी के समक्ष
उम्मीद के दिए जलाये हैं,
तुफानो से लड़ने के लिए
सीना फौलादी लाये हैं,
भारत माँ की पवन भूमि पर
फिर से जनगनमन होगा।
याचना नही अब रण होगा,
संघर्ष बड़ा भीषण होगा।

3 comments:

Anonymous said...

आपकी कविता वर्तमान जनमानस की अभिव्यक्ति है. बाकी कर्ता धर्ता (शासक वर्ग) और कूटनीति क्या कहती है देखना है.

Anonymous said...

आपकी कविता वर्तमान जनमानस की अभिव्यक्ति है. बाकी कर्ता धर्ता (शासक वर्ग) और कूटनीति क्या कहती है देखना है.

Anonymous said...

वर्तमान समय में यह कविता एक मार्गदर्शन का कार्य करेगी