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28.1.20

यात्रा वृतांत : कई मामलों में बेहद विशेष है पवनार आश्रम






भूदान आंदोलन के प्रणेता विनोबा भावे के कार्यों और विचारों के जीवंत कहानी कहता वर्धा स्थित परमधाम आश्रम (पवनार आश्रम) आज भी जनसेवा में लगा हुआ है । धाम नदी के किनारे निर्मित इस क़रीब 15 एकड़ के क्षेत्रफल में विस्तारित इस आश्रम जाने का अवसर मुझे वर्धा निवास के दौरान प्राप्त होता रहा ।

यह आश्रम सामान्य आश्रमों की अपेक्षा बेहद विशेष व अद्वितीय है । कुछ बातें जो इसे विशिष्ठ बनातीं हैं इस प्रकार हैं -

चर्चा इनकी भी हो

पी. के. खुराना

मुझे कुछ समय के लिए आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के कामकाज का तरीका देखने का मौका मिला था। वे नियमित रूप से उच्चाधिकारियों की बैठक लेते थे और प्रदेश भर में चल रहे कामकाज की समीक्षा होती थी। कहां सड़क बन रही है, कहां संडास बनाए जा रहे हैं, कहां विकास के अन्य काम हो रहे हैं आदि पर चर्चा चलती रहती थी। सुबह-सवेरे जाग कर योग करना और फिर काम पर लग जाना उनकी आदत थी। अड़सठ वर्ष की उम्र में भी सारा दिन लगातार काम करते हुए वे उबासी भी नहीं लेते थे।

27.1.20

शेरू का पुनर्जन्म ....!!

शेरू का पुनर्जन्म ....!!
तारकेश कुमार ओझा
कुत्ते तब भी पाले जाते थे, लेकिन विदेशी नस्ल के नहीं। ज्यादातर कुत्ते आवारा ही होते थे, जिन्हें अब  स्ट्रीट डॉग कहा जाता है। गली - मोहल्लों में  इंसानों के बीच उनका  गुजर - बसर हो जाता था। ऐसे कुत्तों के प्रति  किसी प्रकार का विशेष  लगाव या नफरत की भावना भी तब बिल्कुल नहीं  थी। हां कभी - कभार नगरपालिका और  रेलवे  प्रशासन  की अलग  - अलग कुत्ते पकड़ने वाली  गाड़ियां जब मोहल्लों  में आती तो वैसे  ही खौफ फैल जाता  , जैसे पुलिस की गाड़ी देख अपराधियों में  दहशत होती है। समय के  साथ ऐसी गाड़ियों  में  भर  कर आवारा  कुत्तों को ले  जाने  का  चलन बंद हो गया। इसके बाद  आवारा  कुत्तों  की अलग त्रासदी समाज में  जगह - जगह नजर  आने लगी। बहरहाल बचपन के दिनों में मुझ पर कुत्ते पालने का धुन  सवार हुआ। पता चला पास में  एक जगह  कुछ पिल्ले चिल्ल पों  मचाए रहते हैं। कुछ दोस्तों  के साथ वहां पहुंचा और पिल्लों के  बीच एक कुछ तेज सा  नजर आने वाला पिल्ला उठा लिया। कुछ दिनों में ही पिल्ला  सब का प्रिय बन गया। बच्चों  ने नाम  रखा शेरू। घर की  पालतू गायों  को दूध पीकर शेरू सचमुच  शेर जैसा  तगड़ा हो गया। शेरू में कई  खूबियां थी, लेकिन कुछ कमियां भी  थी। वो अचानक उग्र  हो कर आते - जाते लोगों पर हमले  कर देता। कईयों को उसने काटा। लोग डर से गली  के सामने  से  गुजरने  से खौफ खाने  लगे। इसके बाद हमने  उसे  लोहे  की  मोटी  जंजीर से  बांधना शुरू  किया। केवल  रात में ही उसे  खोला  जाता। मुझे अपने  फैसले  पर पछतावा  होने लगा,   क्योंकि   लोगों से हमारे रिश्ते बिगड़ने लगे।  कुछ शुभचिंतकों ने उसे  कहीं   दूर छोड़ आने  या जहर देकर मार देने  का सुझाव दिया। लेकिन  तब तक शेरू से  लगाव  इतना  बढ़ चुका था कि इस बात का ख्याल भी कलेजा चीर कर रख देता। अचानक आक्रामक हो जाने के सिवा शेरू में ऐसी कई  खूबियां थी जो उसे  साधारण कुत्तों  से  अलग करता था। परिवार के सदस्य की तरह शोक की स्थिति में उसकी आंखों से आंसू बहते मैने कई बार देखा था। खुशी  -  गम के  माहौल में  वो आक्रामकता मानो  भूल जाता। हालांकि आगंतुक डरे  - सहमे रहते। जीवन संध्या पर  शेरू कमजोर और बीमार रहने  लगा। हालांकि  अपनों को देखते ही उसकी आंखें  चमक उठती। आखिरकार ठंड की एक उदास शाम शेरू किसी मुसाफिर की तरह चलता बना... कुछ रह गया तो उसकी लोहे  की वो जंजीर , जिससे उसे बांध कर रखा जाता था। । उसके जाने  का गम  मुझे सालों  सालता रहा। किशोर उम्र में  ही  तय कर लिया कि  अब कभी कोई  जानवर नहीं पालूंगा। शेरू  की याद आते  ही सोचता इस नश्वर संसार में मोह - माया जितना  कम  रहे अच्छा। शेरू के जाने के बाद मन अपराध बोध से भी भर जाता। मैं शेरू  के  अचानक आक्रामक हो उठने  की वजह सोच कर परेशान  हो उठता। मुझे लगता कि अंजाने में मैं  शायद शेरू कि  किसी ऐसी  जरूरत को  नहीं भांप  पाया। जिसका बुरा असर उसकी शारीरिक - मानसिक सेहत पर पड़ा। कई  सालों  तक मैं कोई जानवर  नहीं  पालने  के अपने  फैसले  पर अडिग रहा। लेकिन हाल में बेटे की जिद के  आगे झूकना  पड़ा। बेटे ने विदेशी नस्ल का  कुत्ता पाला। नाम रखा ओरियो। चंद दिनों  का ही  था जब घर लाया गया। अपनी  सोच के  लिहाज से  मैं  उससे  दूरी बनाए रखने  का भरसक प्रयास करता रहा। लेकिन डरे - सहमे  रह कर भी वो  मेरे इर्द - गिर्द मंडराने की  कोशिश करता। मैने उसे कभी दुत्कारा तो नहीं लेकिन  कभी दुलार भी  नहीं  किया। लेकिन अपनी  सहज वृत्ति से ओरियो  ने जल्द ही घर के  सभी लोगों  को अपना  बना  लिया। कुछ दिनों में ही आलम  यह कि  उसे देखे  बिना हमें  चैन नहीं  तो परिवार के किसी सदस्य की अस्वाभाविक  अनुपस्थिति उसे बेचैन  कर देती। उसे  देख कर  मैं  सोच में  पड़ जाता हूं  कि  आखिर कौन  सिखाता है इन्हें पालकों  से  प्यार  करना  और वफादारी वगैरह। अभी वो चंद महीने  का ही है, लेकिन  परिवार की  महिलाओं  व बच्चों के  मामले में उसकी भूमिका बिल्कुल किसी बॉडीगार्ड की  तरह है। घर में हर किसी  के आगे - पीछे घूमते रह  कर  अपनी  वफादारी जतलाता  रहता है।  मासूम  बच्चों  की  तरह उन पर भी  जादू  कर देना  जो इनसे दूर रहना  चाहते हैं। ओरियो को देखता हूं तो लगता है शेरू का पुनर्जन्म  हुआ है।
 

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लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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सत्य और संघर्ष से बनी व्यास की आत्मकथा, जयपुर में हुआ विमोचन




जयपुर। कथेतर लेखन अब भारतीय साहित्य की मुख्य धारा है जिसमें हमारे युग की सच्चाई बोल रही है। कवि-लेखक डॉ सत्यनारायण व्यास की आत्मकथा 'क्या कहूं आज' केवल साधारण मनुष्य की सच्चाई और संघर्ष की दास्तान नहीं है बल्कि इसमें लंबे दौर के जीवन अनुभवों को देखा जा सकता है। वरिष्ठ आलोचक और साहित्यकार डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने उक्त विचार राजस्थान विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा आयोजित विमोचन समारोह में व्यक्त किए। डॉ अग्रवाल ने कहा कि महाविद्यालयी शिक्षक के खरे अनुभव भी इस आत्मकथा को विशिष्ट बनाते हैं।

हिन्दुस्तान भागलपुर के एडिटोरियल की स्थिति विस्फोटक, संपादक की वजह से स्टाफ में रोष


भागलपुर में हिन्दुस्तान के एडिटोरियल की हालात गंभीर होती जा रही है। यहां विस्फोटक स्थिति होती जा रही है। संपादक के चुनींदा लोगों को छुट्टी देने और उनकी बतमीजी वाली भाषा की वजह से यहां के सभी स्टाफ (कुछ को छोड़कर) में स्थानीय एडिटर की तानाशाही और पागलपनी चलते रोष फैलता जा रहा है।

राम मंदिर निर्माण तारीख को लेकर संशय बरकरार, रामनवमी से मंदिर निर्माण की चर्चाओं का जोर

अजय कुमार,लखनऊ

केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ,विश्व हिन्दू परिषद और साधू संतों आदि तक सभी मंदिर निर्माण की भव्यता को लेकर तो खूब दावे  कर रहे हैं, लेकिन करोड़ों हिन्दुओं के अराध्य मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम की जन्मस्थली पर भव्य मंदिर का निर्माण कब से शुरू होगा, यह कोई नहीं बता रहा है, जबकि हर राम भक्त मंदिर निर्माण की तारीख जानना चाहता है।

साईं बाबा : न पाथरी के न शिरडी के,वे तो सबके हैं


कृष्णमोहन झा

महाराष्ट्र में जब से शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी एवं कांग्रेस की महा विकास आघाडी सरकार के हाथों में सत्ता की बागडोर आई है, तब से रोज नए विवादों के जन्म लेने का सिलसिला थम नहीं रहा है। अब इन विवादों की पहुंच उन क्षेत्रों तक भी हो गई है ,जो वर्षों से लोगों की आस्था और श्रद्धा के केंद्र बने हुए है। पिछले दिनों इसी तरह का एक अनावश्यक विवाद करोड़ों लोगों की आस्था एवं श्रद्धा के केंद्र शिरडी को लेकर निर्मित हुआ है, जो साईं बाबा की तपस्थली के रूप में सारे विश्व में विख्यात हैं। साईं बाबा की समाधि के दर्शन हेतु प्रतिदिन यहां पचास हजार से अधिक लोग आते हैं और यह संख्या अवकाश के दिनों में तथा नव वर्ष , रामनवमी, गुरुपूर्णिमा तथा विजयदशमी के शुभ अवसर पर लाखों की संख्या को पार कर जाती है।

मोदी सरकार के लिए बड़ी आफत बना शाहीन बाग आंदोलन

CHARAN SINGH RAJPUT
   
नई दिल्ली। देश में अपनी बात रखने और विभिन्न मुद्दों पर विरोध-प्रदर्शन करने के लिए भले ही जंतर-मंतर को जाना जाता हो पर आज की तारीख में सीएए के विरोध में शाहीन बाग में हो रहे आंदोलन ने जो मुकाम हासिल किया है वह जंतर-मंतर को पीछे छोड़ता प्रतीत हो रहा है। गणतंत्र दिवस में जिस तरह से वहां पर सीएए के विरोधियों की भीड़ उमड़ी और गणतंत्र दिवस मनाया उसने मोदी सरकार द्वारा मनाए जा रहे गणतंत्र दिवस को भी पीछे छोड़ दिया। भले ही राजपथ पर देश की आन-बान-शान में विभिन्न झांकियां निकाली गईं हों पर शाहीन बाग के गणतंत्र दिवस समारोह ने न केवल देश बल्कि विदेश का भी ध्यान अपनी ओर खींचा।

25.1.20

ओछी मानसिकता रखने वाले पत्रकारों की कलम से पत्रकार और पत्रकारिता का गिरता स्तर

Pradeep Gadhwal
 

लोकतंत्र में संविधान के चौथे स्तंभ के रूप में पत्रकार  को जाना जाता है । एक पत्रकार की अहमियत क्या होती है ? उन पीड़ितों से पूछो जिन की परेशानी प्रशासनिक स्तर तक बगैर  जात-पात, धर्म पूछे एक पत्रकार ने पहुंचाई है । लेकिन बदलते समय के अनुसार आम जनता और प्रशासन के बीच सेतु की यह कड़ी धीरे-धीरे कमजोर होती जा रही है इसकी प्रमुख वजह निकल कर आई है वह है अब ऐसे पत्रकार बनने लगे हैं , जिनके पास किसी प्रकार का कोई अनुभव हैं ही नहीं है । न हीं कोई डिग्री डिप्लोमा है । ऐसे व्यक्ति प्रायः पत्रकारिता में इसलिए आते हैं कि समाज में उनकी पत्रकार की इमेज बने जिसके जरिए वह रोब डालने वाला बन सके। 

गांधी के राम

कुछ दिनों पहले मेरे एक मित्र ने मुझसे कहा, "वो तो अच्छा हुआ कि गोडसे ने गांधी को मार दिया, अगर गांधी आज ज़िंदा होता तो मैं मार देता।"

आज के परिप्रेक्ष्य में इस बात के समर्थन में कुछ पाठक भी होंगे, लेकिन सिर्फ समर्थन के लिए ही यह बात लेख के प्रारम्भ में नहीं कही और ना ही गाँधीजी के प्रति किसी भी प्रकार की सहानुभूति या दया उत्पन्न करने की चेष्टा है यह वाक्य। यह वाक्य ना तो नफरत फैलाने के लिए और ना ही किसी राजनीतिक दल की दाल गलाने के लिए मैनें बताया है।

15.1.20

जब सहारा में बकाया भुगतान के लिए भी करना पड़ा था आंदोलन


CHARAN SINGH RAJPUT

एक समय था कि सहारा के चेयरमैन सुब्रत राय नेताओं और बालीवुड हस्तियों से यह कहते-कहते नहीं थकते थे कि इतना बड़ा ग्रुप हाने के बावजूद हमारे यहां कहीं से कोई विरोध स्वर नहीं हैं। कोई यूनियन नहीं है। सब लोग एक परिवार की तरह काम करते हैं। सुब्रत राय ने सहारा को विश्व का सबसे बड़ा विशालतम परिवार कहा था। उनका कहना था कि रेलवे के बाद देश में सबसे अधिक रोजगार देने वाला ग्रुप सहारा है।

10.1.20

अमेरिका-ईरान तनाव से उड़ी मोदी सरकार की नींद, भारत को आर्थिक मोर्चे पर होंगी तमाम दुश्वारियां


अजय कुमार,लखनऊ

विकास के मामले में भारत भले ही दुनिया में अपनी पहचान नहीं बना पाया हो,लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपने देश की अहमियत को कभी किसी ने कम करके नहीं आका। खासकर जब से केन्द्र में मोदी सरकार आई है तब से भारत अंतराष्ट्रीय हनक-धमक और भी बढ़ गई है। मोदी की आवाज को दुनिया गंभीरता से सुनती है। पीएम संतुलन बनाकर आगे बढ़ते हैं,इसी वजह से उनके अमेरिका से भी अच्छे संबंध हैं तो रूस भी उन पर विश्वास करता है। परस्पर विरोधी इजरायल-फिलीपींस ही नहीं मुस्लिम देशों में भी मोदी का सिक्का चल रहा है।

2.1.20

खास मौकों पर चुप रहने वालों को इतिहास नहीं करता माफ

अजय कुमार, लखनऊ

विदेशी पैसे से पल रहे देश के मुट्ठी भर लोग और चंद नेता अगर सड़क पर आगजनी और हो-हल्ला मचाकर यह सोचते हैं कि वह भारत के भाग्य विधाता बन जाएंगे तो उन्हें अपने मन से यह गलत फहमी निकाल देनी चाहिए। कोई भी देश लोकतांत्रिक तरीके से चलता है। लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार और उसके बनाए कानून का पालन करना देश के प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी और कर्तव्य दोनों ही हैं। अगर सरकार के किसी फैसले कोई खुश नहीं है तो भी उसे विरोध का रास्ता लोकतांत्रिक तरीके से ही चुनना अथवा न्याय की शरण में जाना होगा,जहां दूध का दूध,पानी का पानी हो जाता है। कुछ नेताओं द्वारा अपनी सियासी रोटियां सेकनें के लिए सरकार के प्रत्येक फैसले के खिलाफ जहर उगलना उसे संविधान विरोधी बता कर बखेड़ा खड़ा करने के दुष्प्रचार को जनता अच्छी तरह से समझती है।