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15.1.20

जब सहारा में बकाया भुगतान के लिए भी करना पड़ा था आंदोलन


CHARAN SINGH RAJPUT

एक समय था कि सहारा के चेयरमैन सुब्रत राय नेताओं और बालीवुड हस्तियों से यह कहते-कहते नहीं थकते थे कि इतना बड़ा ग्रुप हाने के बावजूद हमारे यहां कहीं से कोई विरोध स्वर नहीं हैं। कोई यूनियन नहीं है। सब लोग एक परिवार की तरह काम करते हैं। सुब्रत राय ने सहारा को विश्व का सबसे बड़ा विशालतम परिवार कहा था। उनका कहना था कि रेलवे के बाद देश में सबसे अधिक रोजगार देने वाला ग्रुप सहारा है।

ऐसा क्या हो गया कि इसी ग्रुप में आज विरोध के स्वर भी हैं। यूनियन भी है और कर्मचारियों के अलावा एजेंट और निवेशक भी अपने पैसों  के लिए आंदोलन कर रहे हैं। बाहर के लोग भले ही न जानते हों पर जो लोग सहारा से जुड़े रहे हैं वह यह भली भांति जानते हैं कि जब तक सुब्रत राय ने कर्मचारियों, एजेंटों और निवेशकों को इंसान समझा तब तक यह ग्रुप सही तरह से चलता रहा। जब से इस व्यक्ति ने रुतबे और पैसे की चकाचौंध में कर्मचारियों, एजेंटों अैार निवेशकों को कीड़े-मकौड़े समझना शुरू कर दिया तब से सहारा की उल्टी गिनती शुरू हो गई।

सहारा की शुरू से ही यह पॉलिसी रही है कि पैसे लेकर दे मत। यही वजह रही कि रियल एस्टेट में आकर भी अपने कर्मचारियों के लिए फ्लैट बनाने के बजाय इस ग्रुप के कर्णधारों ने जनता को ठगने के लिए स्कीमें चलाई। फ्लैटों के नाम पर पैसा तो बहुत लिया पर किसी को कोई मकान दिया नहीं। पैसे लेकर वापस करनेकी नीयत कभी नहीं। पैसे बढ़ने का लालच देकर दूसरे मदों में डाल दिया जाता रहा।

यह सहारा प्रबंधन की बदनीयत ही थी कि 2016 मई माह में आंदोलन के नाम पर हम 22 साथियों को टर्मिनेट तो कर दिया पर पैसे देने का नाम सहारा नहीं ले रहा था। जब हम लोग अपना बकाया वेतन लेने के लिए नोएडा स्थित सहारा मीडिया परिसर के गेट पर बैठे तो हमारे कई साथियों का कहना था कि सुब्रत राय से सुप्रीम कोर्ट तो पैसा ले नहीं पा रहा है तुम लोग क्या लोगे ?

तभी मैंने कहा था कि यह पैसा हम लोगों के खून-पसीने की कमाई का है यह तो सुब्रत राय को देना ही होगा। और यही हुआ हम लोग गेट पर बैठ गये। वही सहारा प्रबंधन जिसने जंतर-मंतर पर सुब्रत राय को चोर कहना का मुद्दा बनाकर 22 कर्मचारियों को टर्मिनेट किया था उसी प्रबंधन को ललकारते हुए सहारा मीडिया के गेट से वे सब नारे सुब्रत राय के खिलाफ लगे, जिसकी कल्पना भी सुब्रत राय और उसके सिपेहसालारों ने नहीं की होगी। वही सहारा प्रबंधन सेबी के साथ ही सुप्रीम कोर्ट भी घुम रहा था।

रिटायर्ड हुए कर्मचारियों को पैसा देने को तैयार नहीं था। जिन कर्मचारियों को एग्जिट योजना के नाम पर निकाला था, उन्हें पैसे नहीं दे रहा था। उस प्रबंधन को गेट पर ही बर्खास्त किये गये साथियों को उनका बकाया भुगतान करना पड़ा।  मतलब जो सुब्रत राय अपने ग्रुप में विरोध के स्वर न होने का दावा करता था उसी सुब्रत राय के ग्रुप में विरोध के स्वर भी उठे। सुब्रत राय ने अपनी औकात भी दिखाई और बकाया भुगतान भी करना पड़ा। हालांकि इस व्यक्ति लखनऊ, पटना, भोपाल, मुंबई समेत कई शहरों में कर्मचारियों के अलावा, एजेंटों और निवेशकों को भी उनके बकाया भुगतान के लिए दौड़ा रखा है। इन लोगों में टर्मिनेट और स्थानांतरित किये गये कर्मचारी भी हैं।

सहारा के पैसे न देने की वजह से कितने बेटियों की शादी नहीं हो पा रही हैं। कितने लोगों ने पैसे-पैसे मांगते-मांगते दम तोड़ दिया। कितनों ने जलालत झेलनेकी वजह से आत्महत्या कर ली। कितने जलालत झेलने को मजबूर हैं। कितनों को इस व्यक्ति ने डरा-धमका कर चुप करा दिया है। 

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