31.12.12
वो 2012 की बात थी...
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राम सिंह राम नहीं रावण है-ब्रज की दुनिया
मित्रों,कहाँ मेरे राम मर्यादापुरूषोत्तम और कहाँ यह राम सिंह? यह मेरे राम का अपमान है,घोर अपमान और मैं इसे कदापि सहन नहीं कर सकता। इस नीच का जिसने भी नामकरण किया था उसने मेरे राम को अपमानित करने की धृष्टता का अक्ष्म्य अपराध किया है। क्या मेरे राम ने कभी किसी पर-स्त्री की तरफ बुरी नजरों से निमिष मात्र के लिए देखा था? बल्कि मेरे राम ने तो बलात्कार-पीड़िता अहिल्या को जो लोक-लाज के मारे पत्थर सी,निर्जीव-सी हो गई थी समाज में पुनर्प्रवेश दिलाया था और ऐसा करके भारतीय समाज को संदेश दिया था कि नफरत बलात्कारी से करो न कि उससे जिसने इस अमानुषिक अत्याचार को भोगा है। मेरे राम ने तो अपनी पत्नी को वापस पाने के लिए जान की बाजी लगा दी थी और सीता-मुक्ति के माध्यम से समाज में फिर से स्थापित किया था स्त्रियों की गरिमा और अस्मिता को। उन्होंने तो कभी दूसरा विवाह नहीं करने की भीष्म-प्रतिज्ञा की थी और फिर उसे मन,वचन और कर्म से निभाया भी था। और आज उसी राम के नाम को धारण करने लगे हैं राम सिंह जैसे नरपिशाच ड्रैकुला! नाम से राम और काम से रावण! नहीं मैं नहीं होने दूंगा ऐसा। मेरे राम का नाम तो पवित्र है दुनिया के सारे नामों से भी ज्यादा फिर कैसे कोई इसको बदनाम करने की मूढ़ता कर सकता है? नहीं हरगिज नहीं होने दूंगा मैं ऐसा! बेहतर हो कि आगे से कोई हिन्दू अपने बच्चे का नाम राम रखे ही नहीं और अगर रखे भी तो हर क्षण इस बात का खयाल रखे कहीं उसका रामनामधारी बच्चा कुमार्ग पर तो नहीं जा रहा है। अगर उसे कभी ऐसा खतरा महसूस हो तो उसको तत्क्षण उसका नाम बदल देना चाहिए। वह स्वतंत्र है इसके लिए कि अपने बच्चे का नाम कुछ भी रख ले बस सिर्फ राम या उनका पर्यायवाची न रखे क्योंकि इससे मेरे,आपके और सबके राम का नाम बदनाम होता है।
Posted by ब्रजकिशोर सिंह 0 comments
हम नहीं चाहते हैं कि बुराइयाँ रुके ........
हम नहीं चाहते हैं कि बुराइयाँ रुके ........
अँधेरे का विकराल अस्तित्व तब तक कायम है जब तक कोई लौ जलती नहीं है।हम कब तक
अँधेरा -अँधेरा पुकारते रहेंगे और एक दुसरे से कहते रहेंगे कि देखो,अँधेरा कितना भयावह हो
गया है।हमारे चीखने और चिल्लाने भर से अँधेरा खत्म हो जाता तो अब तक हुआ क्यों नहीं ?
हम गला फाड़ -फाड़ कर सालों से चिल्ला रहे हैं।हम दोष दर्शन कर रुक जाते हैं,हम दुसरे पर
दोष डालने के आदी हो गए हैं।हम चाहते हैं कि मैं कुछ भी कर सकता हूँ मगर दुनिया सदैव
मेरे साथ अच्छा सलूक करे।
समस्या मूल रूप से यह है कि हम खुद को नैतिक,ईमानदार,सदाचारी और निर्भीक नहीं
बनाना चाहते हैं मगर हम चाहते हैं कि मुझ को छोड़कर सब नैतिक बन जाये!!
भ्रष्टाचार की लड़ाई में लाखों लोग झुड़े मगर किसे ने भी सामूहिक रूप से सच्ची निष्ठा के
साथ यह कसम नहीं खायी कि मैं और मेरे बच्चे अब से भ्रष्ट आचरण नहीं करेंगे।नतीजा
ढाक के तीन पात .......
बलात्कार जैसे जघन्य अपराध पर हमने खूब प्रदर्शन किया मगर किसी ने भी सामूहिक
रूप से सच्ची निष्ठां के साथ यह कसम नहीं खायी कि अब से हम या हमारे परिवार से किसी
को बलात्कारी नहीं बनने देंगे .....
हमने सामजिक बुराइयों को हटाने के लिए कभी ठोस संकल्प नहीं लिया।हम चाहते हैं की
सामाजिक बुराई से कोई और व्यक्ति लड़े और मैं दूर से देखता रहूँ ,यह स्वप्न कैसे सच हो
सकता है ?
हम या हमारा पुत्र जब रिश्वत का पैसा घर लाता है तो हम खुद को बुरा या पुत्र को बुरा नहीं
कहते हैं हम उसे समझदारी मान लेते हैं और दूसरा वैसा ही काम करता है तो हमारा नजरिया
बदल जाता है और वह भ्रष्ट आचरण लगने लगता है ,यह दोहरा नजरिया ही समस्या का मूल
है।
जब हम गलत काम करते हैं और पकड़े जाते हैं तो खुद को निर्दोष साबित करने की पुरजोर
कोशिश करते हैं और दूसरा वैसा ही कर्म करता है तो उसे अपराधी मान लेते हैं।यह दोगलापन
कभी सभ्य और सुंदर समाज का निर्माण नहीं कर पायेगा।
हम चाहते हैं कि पहले मैं या मेरा परिवार अकेला ही क्यों सुधरे,पहले वो सुधरे जिन्होंने बड़ा
अपराध किया है।हम खुद के अपराध को छोटा मानते हैं और दूसरों के अपराध को बड़ा।हम
इन्तजार करते हैं कि पहले जग सुधर जाए, खुद को बाद में सुधार ही लेंगे।
यदि हम देश को सुधारने के फेर में पड़ेंगे तो बहुत समय गँवा देंगे मगर उससे ज्यादा नहीं
उपजा पायेंगे।यदि हम खुद को सुधार ले तो देश सुधरने में वक्त नहीं लगेगा।
हम अनैतिकता का डटकर विरोध करे यह कदम अति आवश्यक है लेकिन साथ ही साथ
हम सामुहिक रूप से दृढ संकल्प करे कि हम खुद नैतिक और सदाचारी बनेगें।क्या हम
ऐसा करेंगे .... ? या यह प्रतीक्षा करेंगे कि पहले दुसरे लोग ऐसी प्रतिज्ञा करे और उसका पालन
करे ,यदि दुसरे लोग सुधर जायेंगे तो हम भी सुधर जायेंगे।
देश के निर्माण के लिए हम ना तो अपराध करे और ना ही अपराध सहें।अच्छे परिणाम के
लिए हमे अपने कर्म अच्छे बनाने पड़ेंगे,यही एक रास्ता है जिस पर देर सवेर चलना पड़ेगा।
Posted by Anonymous 3 comments
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30.12.12
Posted by Dr Dwijendra vallabh sharma 2 comments
hum mein gam hai
फिर धीरे -से भेड़ -भेडिये आपस में मिल जायेंगे।
किन्तु अभी हालात अलग हैं, हम में गम है , गुस्सा है ,
जैसी है आलाप हवा में , वैसा गीत सुनायेंगे।
कोहरे में मिल गया धुंआ , आँखों में शबनम उतर गयी ,
मानवता के महामूल्य कब तक आलाव जलाएंगे ?
चीरहरण पर कुरुक्षेत्र जिसके भू पर हो आया था ,
भारत का दिल है दिल्ली , अब कहने में शर्मायेंगे।
आनेवाले आ स्वागत है , किन्तु नहीं हम कह सकते ,
जानेवाले के जख्मों को कबतक हम सहलायेंगे।
Posted by Dr Om Prakash Pandey 6 comments
माफ करना दामिनी! हम भी गुनाहगार हैं!
29.12.12
Posted by Dr Dwijendra vallabh sharma 0 comments
कहाँ आकर खड़े हो गये हम ?
कहाँ आकर खड़े हो गये हम ?
पाश्चात्य सभ्यता का अनुकरण करते-करते हम कहाँ आ गये ? हमने अपनी संस्कृति छोड़ी
अपनी सभ्यता छोड़ी अपने सदग्रंथ छोड़े अपना परिवेश छोड़ा।हम बिना विचार किये छोड़ते
गये अपने आचार-विचार को अपनी वेशभूषा और संस्कृति को और अंधे होकर खोटे - खरे,बुरे-
भले का विचार किये बिना ही नए विचारों के नाम पर पाश्चात्य सभ्यता को अपनाते गये ,
नतीजा हम दिशा विहीन हो गये हैं और आज राष्ट्र अनेक समस्याओं से ग्रसित हो गया है।
हमने अपनी आश्रम जीवन प्रणाली को छोड़ा अपनी गुरुकुल प्रणाली को छोड़ा ,
उसकी जगह सह -शिक्षा को अपनाया ,मूल्यांकन कीजिये कि हमने क्या अर्जित किया।
हमारे युवा जो पहले वीर्यवान, उर्जावान, नैतिक, सुसंस्कृत, विद्वान,सदाचारी और सद्
व्यवहारी थे अब उनमे सभी सदगुणों की कमी झलकती है ,क्यों तथा इसके लिए
जिम्मेदार कौन ?
ब्रह्मचर्य आश्रम में 25 वर्ष की आयु तक रह कर विद्या अर्जन करना तथा सुयोग्य
नागरिक बनना होता था।इस काल में गुरु अपने शिष्यों को सुयोग्य नागरिक बनाता था,
विद्वान व्यक्ति बनाता था यानी गुरु अबोध बालक का सृजन करता था मगर वह व्यवस्था
लोप होने के बाद स्कुली शिक्षा पद्धति आई और उसके साथ ही सह शिक्षा।क्या यह शिक्षा
पद्धति हमारी संस्कृति का गौरव बढ़ा पायी है ?
हम कहते हैं कि ये तो आदम के जमाने की सोच है?इस युग में यह संभव नहीं।आज
विश्व कहाँ पहुँच गया है!विज्ञान कितना आगे निकल गया है!! ये सब तर्क हम दे सकते हैं
मगर मुद्दा यह है कि फिर सामाजिक समस्याएँ बढ़ी क्यों ? यदि हम आधुनिक हो गए हैं
तो हमारे समक्ष समस्यायें नहीं होनी चाहिए थी ?
सह शिक्षा ने नारी का क्या भला किया ? सह शिक्षा ने इस देश की संस्कृति का क्या
भला किया ?हमे तुलनात्मक विचार करना ही पड़ेगा।
हमने अपना परिवेश छोड़ा,क्या हमारे पूर्वज अपने परिवेश से असभ्य लगते थे ?
विवेकानंद और गांधी के चरित्र को जानने वाले,तिलक और पटेल को समझने वाले इस पर
क्या तर्क देंगे ? जिस देश में युवा नारी शक्ति और लक्ष्मी के रूप में पूजीत है उस देश की नारी
पर आज जुल्म क्यों हो रहे हैं ? आज देश की नारी का स्वतंत्रता के नाम पर जितना शोषण
हो रहा है उतना इस देश की नारी का कभी नहीं हुआ था।वैदिक नारी का परिवेश और ज्ञान
आज से अच्छा था।वैदिक नारी की बोद्धिक योग्यता और व्यवहार ऊँचे दर्जे का था। भारतीय
परिवेश सोम्य था।पहनावा विकृतियों को कम कर देता है ,क्या यह सही नहीं है ?
हर कोई कह रहा है कि समय बदल गया है,नैतिकता का ह्रास हो रहा है। बात सही है
परन्तु इसके लिए जबाबदार कौन ? इसके लिए हम सब कहीं ना कहीं जबाबदार हैं। विकृतियों
को रोकने के लिए कानून ही कठोर हो ,यह पूर्ण हल नहीं है।कानून कठोर हो और उसका पालन
भी पूर्ण रूप से शासन करवाए मगर हम भी नैतिक बने ,सद व्यवहारी बने,सौम्य परिधान
अपनाएँ, अपनी संस्कृति के अनुसार आचार विचार करे।सही और गलत परम्पराओं पर गहन
विचार करे आधुनिक बनने के लिये विचारों का स्तर ऊँचा होना चाहिए।
हमारे चित्रपट,संचार साधन जो फूहड़ता दिखा रहे हैं उन्हें भी सोचना होगा क्योंकि वो जो
दिखाते हैं उसका असर अपरोक्ष रूप से करोड़ों लोगों पर पड़ता है।नारी देह को केन्द्रित कर
विज्ञापन दिखा कर व्यवसाय बढ़ाना या सिनेमा में फूहड़ दृश्य दिखाना क्या समस्याओं को
अनजाने में ही बढ़ावा देना नहीं है?
सभ्य समाज के निर्माण के लिए कानून व्यवस्था, नागरिक,आध्यात्म,संस्कृति,विज्ञान
कला सभी क्षेत्र को एक मंच पर आकर सोचना होगा,तभी नए समाज का निर्माण होगा ।
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"अगले जनम मोहे बिटिया न कीजौ"
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"अगले जनम मोहे बिटिया न कीजौ"
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Posted by Dr Dwijendra vallabh sharma 0 comments
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28.12.12
गांधीजी की लाठी और दिल्ली पुलिस-ब्रज की दुनिया
मित्रों,तभी से महान भारतवर्ष की महान जनता ने धर्म-अधर्म संबंधी पूर्वजों के विचारों पर विचार करना छोड़ दिया और देश में जिसकी लाठी उसकी भैंस की कहावत ने व्यावहारिक रूप से जन्म लिया। इसी लाठी की सहायता से हमारे नेता पिछले 65 सालों से जनता को भड़का और हड़का रहे हैं कुल मिलाकर हाँक रहे हैं और जनता भी आज्ञाकारी भेंड़ की तरह उनकी बातों में आती रही है। इस लाठी के गुणों से हमारे मध्यकालीन पूर्वज भी भलीभाँति परिचित थे तभी तो गिरिधर कवि ने इस महान अस्त्र-शस्त्र के सम्मान में कुछ यूँ कसीदे गढ़े थे-
लाठी में बहुत गुण है सदा राखिये संग,
सदा राखिये संग झपटी कुत्ते को मारे;
दुश्मन दावागीर मिले तिनहुँ को झारे,
कहे गिरिधर कविराय सुनो हे धुर के बाटी,
सब हथियारन को छोड़ के हाथ में लीजै लाठी।
आजकल सोनपुर मेले में भी सबसे ज्यादा बिक रही है यही लाठी। इससे यही सत्य भलीभाँति स्थापित हो रहा है कि बिहार के लोग बातों के या पैसों के धनी भले ही नहीं हों लाठी के धनी जरूर हैं। यह हमारे लिए गौरव की बात है कि हमारे यहाँ लालूजी जैसे पूजनीय महापुरूष हुए हैं जिन्होंने लाठी को 15 सालों तक खूब तेल पिलाया है भले ही जनता को उनके शासन-काल में पेट की आग बुझाने के लिए दूसरे राज्यों का रूख करना पड़ा हो। जनता की कड़ाही और सिर में भले ही तेल की एक बूंद भी न हो लालूजी की टूट चुकी लाठी में आज भी खूब तेल मालिश हो रही है।
मित्रों,परन्तु लाठी का सर्वाधिक मोहक स्वरूप तो तब उभरकर दुनिया के सामने आया जब वह भारतीय पुलिस के हाथों की शोभी बनी। आजकल लोग बेवजह दिल्ली पुलिस को भला-बुरा कह रहे हैं क्योंकि वे यह भूल गए हें कि इस पूरे घटनाक्रम में पुलिस पूरी तरह से निर्दोष है दोषी है तो गांधीजी की प्यारी लाठी। अन्य राज्यों की पुलिस की तरह दिल्ली पुलिस भी पूरी तरह से निरपेक्ष भाव से काम करती है। उसको क्या पता कौन पीड़क है और कौन पीड़ित। वह बेचारी तो निष्काम भाव से बल-प्रयोग करती है यह देखना तो इस निगोड़ी लाठी का काम है न कि वह सिर्फ दोषियों पर ही प्रहार करे। यह लाठी ही है जिसने पोस्टमार्टम करनेवाले डॉक्टर से विवादास्पद रिपोर्ट तैयार करवाया। वो कहते हैं न कि लाठी के डर से तो भूत भी काँपता है फिर डॉक्टर तो बहुत मामूली शह है। उसको अपने ऊपर आईपीसी की सारी धाराएँ एकसाथ थोड़े ही ठोकवानी थी सो बेचारे ने जैसा भी पुलिसिया लाठी ने कहा लिख दिया। न तो एक हर्फ कम और न तो एक हर्फ ज्यादा। बुरा किया या भला किया जिन्दा और सही-सलामत रहेंगे तभी न कभी फुरसत में सोंच सकेंगे। हमारी पुलिस अगर सलीम अल्वी जैसे पूर्वप्रमाणित विवादास्पद झूठे गवाहों को पालती है तो इसमें भी उसका क्या दोष? गांधी के सत्य को क्या पुलिस ने दूसरे के आंगन में इस तरह से भँजाकर फेंका था कि वह फिर से वापस भारत में आ ही न सके? अब तो उसने सुभाषचंद्र तोमर को अस्पताल पहुँचानेवाले योगेन्द्र तथा पाउलिन की राजनैतिक पृष्टभूमि की झूठी जाँच भी शुरू कर दी है। हमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए अगर दोनों का संबंध बहुत जल्दी माननीय शिंदे साहब के संदेहानुसार नक्सलियों से स्थापित कर दिया जाए और वे दोनों कैमरे के सामने खुद ही अपने टूटे-फूटे मुँह से इसे कबूल भी कर लें। यहीं पर तो लाठी की नंगई वाला असली गुण आप अपनी नंगी आँखों से देख सकते हैं। यह लाठी ही तो है जो सच को सफेद झूठ और झूठ को सफेद सच में बदल देती है। निर्दोषों को सजा दिलवा देती है और दोषियों को लाल बत्ती।
मित्रों,मेरे पास इस समय आपके लिए भी मुफ्त की एक नायाब सलाह उपलब्ध है-हो सके तो आपलोग कुछ महीनों के लिए दिल्ली की यात्रा न करें। अगर आप दिल्ली में ही रहते हैं तो नए साल का स्वागत घर में ही कर लें हरगिज इंडिया गेट की ओर न जाएँ क्योंकि ऐसा करने पर संभव है कि आपको सरे राह चलते दिल्ली पुलिस मिल जाए और आपपर सीधे देशद्रोह का मुकदमा चला दिया जाए। हो सकता है आपको इस दुस्साहस के लिए बालपन के बाद पहली बार ब्रह्मसोंटा उर्फ दुःखहरण बाबू का अलौकिक स्वाद भी चखना पड़े। दोस्त जब एक जिंदा लाश प्रधानमंत्री,एक पागल गृहमंत्री और एक महामूर्ख पुलिस चीफ हो तो आपके साथ कभी भी,दिल्ली में कहीं भी,कुछ भी हो सकता है। एक बार दिल्ली पुलिस के चंगुल में फँसे तो मानवाधिकार तो क्या आप शर्तिया यह भी भूल जाएंगे कि आपका नाम क्या है और आपको सिर्फ वही याद रह जाएगा जो आपको लाठी याद करवाएगी,गांधीजी की अहिंसक लाठी।
Posted by ब्रजकिशोर सिंह 2 comments
अलसी - डायबिटीज टर्मीनेटर
Flaxseed - Diabetes Terminator
मधुमेही मित्रों,
आपके लिए आज यूट्यूब पर हिन्दी में अलसी और मधुमेह पर एक शानदार दमदार और मजेदार वीडियो डाला है, जरूर देखिये। इसमें गीत है, बल्ले बल्ले डांस है, शूटिंग है, फाइटिंग है, मेकडॉनल्ड सौंग भी है।
Posted by Shri Sitaram Rasoi 0 comments
युवा नेताओं की क्या बिसात..!
Posted by Unknown 1 comments
Posted by Neeraj Tomer 0 comments
Posted by Dr Dwijendra vallabh sharma 0 comments
27.12.12
बेटा बोला लेकिन राष्ट्रपति “पिता” खामोश !
Posted by Unknown 0 comments
दिल्ली के बाद....महिलाओं के वस्त्रों पर चर्चा
दिल्ली में छात्रा से गेंग रेप की घटना के बाद दो स्तरों पर बहस चल रही है। पहला, बलात्कारियों को फांसी या और भी कोई कड़ी सजा दी जानी चाहिए और दूसरे महिलाओं के वस्त्रों को लेकर..., मेरा मानना है-'महिलायें क्या पहनें और क्या नहीं' की बहस में पड़ने से पहले जरा पीछे मुड़ें, सिर्फ लड़कियों को न समझाने लगें कि वह क्या पहनें और क्या नहीं.....।
हमारे यहाँ 'पहनने' को लेकर दो बातें कही गयी हैं, पहला 'जैसा देश-वैसा भेष', और दूसरा 'खाना अपनी और पहनना दूसरों की पसंद का होना चाहिए'। यानी हम चाहे महिला हों या पुरुष, उस क्षेत्र विशेष में प्रचलित पोशाक पहनें, और वह पहनें जो दूसरों को ठीक लगे...।
यानी यदि हम गोवा या किसी पश्चिमी देश में, या बाथरूम में हों तो वहां 'नग्न' या केवल अंत वस्त्रों में रहेंगे तो भी कोई कुछ नहीं कहेगा, वैसे भी 'हमाम' में तो सभी नंगे होते ही हैं। लेकिन जब भारत में हों, या दुनियां में कहीं भी मंदिर-मस्जिद, गुरूद्वारे या चर्च जाएँ तो पूरे शरीर के साथ ही शिर भी ढक कर ही आने की इजाजत मिलती है...। हम मनुष्यों की दुनियां में खाने-पहनने के सामान्य नियम सभी देशों-धर्मों में कमोबेश एक जैसे होते हैं। हाँ, उस क्षेत्र के भूगोल के हिसाब से जरूर बदलाव आता है। गर्म देशों में कम और सर्द देशों में अधिक कपडे पहने जाते हैं। इसी तरह भोजन में भी फर्क आ जाता है।
और जहाँ तक महिलाओं के वस्त्रों की बात है, शालीनता उनका गहना कही जाती है। उन्हें किसी और से प्रमाण पत्र लेने की जरूरत नहीं कि वह किन वस्त्रों में शालीन लगती हैं, और किन में भड़काऊ। और उन्हें यह भी खूब पता होता है कि वह कोई वस्त्र स्वयं को क्या प्रदर्शित करने (शालीन या भड़काऊ) के लिए पहन रही हैं, और वह इतनी नादान भी नहीं होतीं और दूसरों, खासकर पुरुषों की अपनी ओर उठ रही नज़रों को पहली नजर में ही न भांप पायें, जिसकी वह ईश्वरीय शक्ति रखती हैं। बस शायद यह गड़बड़ हो जाती है कि जब वह 'किसी खास' को 'भड़काने' निकलती हैं तो उस ख़ास की जगह दूसरों के भड़कने का खतरा अधिक रहता है।
नैनीताल में घूमते सैलानी |
नैनीताल में घूमते सैलानी |
Posted by डॉ. नवीन जोशी 4 comments
26.12.12
Posted by Dr Dwijendra vallabh sharma 0 comments
हंगामा है क्यूँ बरपा ?
दिल्ली गैंगरेप के खिलाफ पूरे देश में कैंडल मार्च और विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं. पूरे देश में न भी हो रहे हों पर दिल्ली में तो हो रहे हैं न ? अभी हाल ही में काला-धन और जन-लोकपाल के लिए भी हुआ था. केजरीवाल जी के खुलासे पर खुलासे आ रहे थे, इधर कुछ कम हुआ है. सोशल साईट्स पर तो चौबीस घंटे आन्दोलन जारी हैं, सब देशभक्त और आन्दोलन के सिपाही हैं. बेशक हैं. नहीं हैं क्या ? पर इस आन्दोलन का नेता कौन है ? इसके उद्देश्य क्या हैं ? इसका परिणाम क्या होगा ? सब कुछ हवा में है. कुछ भी तो तय नहीं. तो क्या जनता अराजक हो गई है ? वो सत्ता को खुलेआम चुनौती दे रही है. राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री के घरों को घेर ले रही है. सम्पूर्ण जन-जीवन ठप हो जा रहा है. मीडिया इसका भरपूर सपोर्ट कर रही है, व्यवस्था में उच्चासीन लोगों को छोड़ दें तो सम्पूर्ण जनमानस का प्रत्यक्ष नहीं तो कम से कम परोक्ष समर्थन इन आन्दोलनकारियों को मिल रहा है. ये आंदोलनकारी हैं कौन ? ये हैं पढ़े-लिखे और समझदार युवा, जिनके हाथ अब कलम से अधिक कंप्यूटर पर चलते हैं और जो देश के नामी-गिरामी संस्थानों में पढ़े हैं/पढ़ रहे हैं. ध्यातव्य है कि पहले इनकी सहभागिता बहुत कम होती थी और ये आन्दोलन में रूचि न लेकर अपने अध्ययन कक्ष में ही समय बिताना सहज महसूस करते थे. इस आन्दोलन का माध्यम बन रहा है फेसबुक, VOIP, SMS. सब कुछ हाईटेक है, फेसबुक पर इवेंट क्रिएट कर लाखों को आमंत्रण भेज रहे हैं और जंतर-मंतर पर लोगों का हुजूम इकट्ठा. क्या सब कुछ अनायास हो रहा है ? कुछ तो कारण होगा. कारण है. लोगों के मन में व्यवस्था के प्रति गुस्सा है. कहीं न कहीं हर आम आदमी व्यवस्था से पीड़ित/दुखी है. छोटे-छोटे गुस्सों का इजहार है यह. अब इसे रोकना या दबाना संभव नहीं. एकमात्र इलाज व्यवस्था को पारदर्शी, संवेदनशील और जिम्मेवार बनाना ही है. और यह अब केवल आम लोगों की समस्या नहीं, ख़ास किसी न किसी दिन भयंकर मुसीबत में फंसनेवाले हैं. बेहतर है, जल्द इलाज ढूंढ लें और अपने आप को भी समयानुसार ढाल लें. यह जनसैलाब अब रुकनेवाला नहीं. कोई नेता नहीं है ना, कि आप गुप्त समझौते कर लोगे और आन्दोलन की धार कुंद कर दोगे. फेसबुक का ज़माना है भाई, लाखों-करोड़ों देशभक्त लाइन में खड़े हैं. कितने से लड़ोगे ? अब लोग सरकार प्रायोजित अखबारों के समाचार पर आश्रित नहीं हैं, वे अब फेसबुक और गूगल सर्च खंगालते हैं जिसमें देश क्या गाँव-घर की स्थिति भी जानी जा सकती है. लोग अब अफवाहों और ख़बरों का विश्लेषण करना जान चुके हैं और सबसे खुशी की बात है कि युवा-पीढी निश्चित रूप से हमारे नेताओं की तुलना में अधिक ईमानदार, संवेदनशील और जवाबदेह है. व्यवस्था में बैठे महानुभाव, आप व्यवस्था का पूरा ऑपरेशन कर उसे दुरुस्त करें नहीं तो यह असंतोष की ज्वाला आपका ऑपरेशन कर आपको दुरुस्त कर देगी.
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