शहीदों के सम्मान में भी जिला प्रमुखों और राजनेताओं की उपेक्षा एवं राजनीति उचित नहीं कही जा सकती
आजादी के बाद 16 जनवरी 2001 को जिले की वीर आदिवासी बाला बिंदु कुमरे श्रीनगर एयर पोर्ट पर लश्कर-ए-तोएबा की गोली से शहीद हो गयीं थीं। इसके बाद जिले की माटी के ही सपूत धंसौर विकास खंड़ के गा्रम भिलाई के प्रवीण राजपूत ने श्रीनगर में ही 27 नवम्बर 2012 को आतंकवादी हमले में देश के लिये अपनी जान कुर्बान कर दी। दोनों अमर शहीदों के पार्थिव शरीर जिले में लाये गये और उनका पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार तो किया गया लेकिन जिस तरह से जिला प्रमुखों और राजनेताओं द्वारा व्यवहार किया गया वह उचित तो नहीं ही कहा जा सकता। वैसे तो जिले से होकर गुजरने वाल उत्तर दक्षिण गलियारे के तहत बनने वाल फोर लेन रोड़ को लेकर बहुत से आंदोलन हुये। मामला सुप्रीम कोर्ट तक में लड़ा गया। लेकिन बाद में ऐसे आंदोलन अपने रास्ते से भटकने लगे। अब प्रगतिशील विकासमोर्चे के बैनर पर गैर भाजपायी और गैर इंकाई नेताओं ने इसे लेकर एक बार फिर आंदोलन चालू किया हैं। वैसे प्रदेश की शिवराज सरकार ने अध्यक्ष बाद का सीधे मतदाताओं से होने वाले चुनाव को सदस्यों के माध्यम से कराने का फैसला लेकर किसानों की सीधी पसंद और नापसंद को नकार कर चुनाव मेनेजमेंट में माहिर नेताओं को अपने अपने करतब दिखाने और चुनावी साल में अपने नाम का डंका बजवाने का सुनहरा मौका दे दिया हैं।
शहीदों के सम्मान में जिला प्रमुखों एवं राजनेताओं ने दिखायी लापरवाही-आजादी की लड़ाई में जिले की तीन आदिवासी महिलाओं और एक पुरुष ने टुरिया में अंग्रेजों की गोलियां सीने पर झेल कर देश के लिये अपनी शहादत दी थी। आजादी के बाद 16 जनवरी 2001 को जिले की वीर आदिवासी बाला बिंदु कुमरे श्रीनगर एयर पोर्ट पर लश्कर-ए-तोएबा की गोली से शहीद हो गयीं थीं। इसके बाद जिले की माटी के ही सपूत धंसौर विकास खंड़ के गा्रम भिलाई के प्रवीण राजपूत ने श्रीनगर में ही 27 नवम्बर 2012 को आतंकवादी हमले में देश के लिये अपनी जान कुर्बान कर दी। दोनों अमर शहीदों के पार्थिव शरीर जिले में लाये गये और उनका पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार तो किया गया लेकिन जिस तरह से राजनेताओं द्वारा व्यवहार किया गया वह उचित तो नहीं ही कहा जा सकता। बिन्दु कुमरे के वक्त तत्कालीन प्रभारी मंत्री डोमन सिंह नगपुरे ने आना जरूरी नहीं समझा तो प्रवीण राजपूत के वक्त प्रभारी मंत्री नाना भाऊ ने आना जरूरी नहीं समझा। बिन्दु कुमरे का पार्थिव शरीर जब सिवनी आ रहा था तब तत्कालीन वन मंत्री हाकी टूर्नामेंट के फायनल में मुख्य अतिथि के रूप से हेलीकाप्टर से सिवनी आये थे और बाजे गाजे और आतिशबाजी के साथ अपना स्वागत करा रहें थे। शहीद प्रवीण के समय भी हरवंश सिंह समय पर सिवनी में नहीं पहुचें और बरघाट नाके में उन्होंने श्रृद्धांजली अर्पित की। दोनों की शहीदों के अंतिम संस्कार में हरवंश सिंह ने शामिल होना उचित नहीं समझा। जिा भाजपा के अध्यक्ष और मविप्रा के अध्यक्ष नरेश दिवाकर ने भी जिले की सीमा पर खवासा जाना जरूरी नहीं समझा और परिसीमन के बाद की सिवनी विस की सीमा गोपालगंज में श्रृद्धांजली अर्पित की। जिले के प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी कलेक्टर और एस.पी. ने तो सिवनी शहर में ही श्रृद्धांजली अर्पित की और अंतिम संस्कार में भी नहीं गये। हालांकि उनके प्रतिनिधि अंतिम संस्कार में उपस्थित थे। जिस सिवनी जिले का इतिहास आजादी की लड़ाई में शहादत देने का रहा हैं। जिले में कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहें हैं। आजादी के दौरान जिस जिले के जेल में देश के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुभाष चंद्र बोस, पीर पगारो,पंड़ित रविशंकर शुक्ला, पं. द्वारका प्रसाद मिश्र जैसे लोग रखे गये हों उसी जिले को आज ना जाने क्या हो गया है कि जिले के प्रशासनिक और राजनैति क्षेत्र का नेतृत्व करने वाले लोग इतने संवेदनहीन कैसे हो गये कि देश के लिये अपनी जान न्यौछावर करने वाले अमर शहीदों के लिये एक दिन का वक्त भी नहीं निकाल पा रहें हैं।
फोर लेन के लिये प्रगतिशील विकास मोर्चे का आंदोलन प्रारंभ-वैसे तो जिले से होकर गुजरने वाल उत्तर दक्षिण गलियारे के तहत बनने वाल फोर लेन रोड़ को लेकर बहुत से आंदोलन हुये। मामला सुप्रीम कोर्ट तक में लड़ा गया। लेकिन बाद में ऐसे आंदोलन अपने रास्ते से भटकने लगे। कभी किसी राजनैतिक प्रतिद्वंदिता के कारण तो कभी सड़क के गड्ढे भरने में उलझा दिया गया तो कभी पुरानी सड़क को ही सुधारने की बात की जाने लगी तो कभी बनाने वालों को टारगेट बनाया जाने लगा। इसी कारण फोर लेन का प्रमुख मुद्दा दर किनार होता गया और गैर राजनैतिक आंदोलन में राजनीति ही राजनीति दिखने लगी इसी कारण धीरे धीरे जनता भी इससे दूर होती गयी।अब प्रगतिशील विकासमोर्चे के बैनर पर गैर भाजपायी और गैर इंकाई नेताओं ने इसे लेकर एक बार फिर आंदोलन चालू किया हैं। 1 दिसम्बर से काला पखवाड़ा मनाने की शुरुआत की गयी हैं।इसके तहत सिवनी शहर और खवासा तक जाने वाले वाहनों में प्रतीकात्मक रूप से काला फीता बांधा जायेगा तथ नुक्कड़ सभाओं के द्वारा कुछ कांग्रेसी और भाजपायी जनप्रतिनिधियों की सांठ गांठ का खुलासा किया जायेगा। मोर्चे के कामरेड हजारी लाल हेडाऊ और याहया कुरैशी ने यह जानकारी भी प्रेस को दी हैं कि आंदोलन आगे भी जारी रहेगा। नेताओं की पोल खोलना तो उनका अधिकार है लेकिन आंदोलन संचालित करने वालों को इस बात के प्रति भी सचेत रहना होगा कि आंदोलन कहीं सिर्फ पोल खोलने तक ही सीमित होकर ना रह जाये। मूल उद्देश्य तो फोर लेन बनवाने का हैं और वर्तमान में यह मामला राज्य वन्य प्राणी बोर्ड की अनुशंसा के साथ राष्ट्रीय वन्य प्राणी बोर्ड में अंतिम स्वीकृति के लिये लंबित पड़ा हैं। इसके लिये या तो किसी सांसद के माध्यम से संसद में या फिर दिल्ली में अपने राष्ट्रीय नेताओं से दवाब बनवाना होगा। इससे मामला जल्दी सुलझ सकता हैं। अन्यथा यह आंदोलन भी अन्य आंदोलनों की भांति ही धीरे धीरे वीर गति को प्राप्त हो जायेगा।
मंड़ी चुनाव की धूम हुयी शुरु-समूचे जिले में मंड़ी चुनावों की गहमा गहमी तेज हो गयी हैं। नाम वापसी के बाद अब शायद कांग्रेस और भाजपा अपने समर्थित उम्मीदवारों के नामों की सूची भी जारी करें। इसके बाद सभी रणबांकुरे मैदान में अपनी रसद के साथ जुट जायेंगें। वैसे प्रदेश की शिवराज सरकार ने अध्यक्ष बाद का सीधे मतदाताओं से होने वाले चुनाव को सदस्यों के माध्यम से कराने का फैसला लेकर किसानों की सीधी पसंद और नापसंद को नकार कर चुनाव मेनेजमेंट में माहिर नेताओं को अपने अपने करतब दिखाने और चुनावी साल में अपने नाम का डंका बजवाने का सुनहरा मौका दे दिया हैं। ऐसे हालात में अक्सर यह देखा गया है कि दलीय समर्थन की सूची वालों के जीतने या हारने से भी कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि चुनाव मेनेजमेंट के फंडें में माहिर नेताओं का यह मानना रहता है कि जो जीता उसे अपना माने और जो हार गया उसे अपना होने के बाद भी भूल जाओ तभी अपनी महारत बनी रह सकती हैं। इसका उदाहरण जिला पंचायत उपाध्यक्ष के चुनाव में देखा भी गया है कि कांग्रेस के समर्थित उम्मीदवार सुधीर जैन को इंका विधायक हरवंश सिंह के केवलारी क्षेत्र में ही हरा कर जीतने वाले अनिल चौरसिया आज कांग्रेस के बैनर तले ही जीत कर उपाध्यक्ष बन गये हैं। अब देखना यह है कि जिला भाजपा अध्यक्ष नरेश दिवाकर और इंकार अध्यक्ष हीरा आसवानी अपने समर्थित उम्मीदवारों की सूची बक जारी करते है और उन्हें जिताने के लिये कितने प्रयास करते है? या फिर जो जीता वो ही सिकंदर की तर्ज पर अपनी बिसात बिछाने की रएानीति बनाते हैं। वैसे तो प्रदेश सरकार ने किसानों में व्याप्त असंतोष को देखते हुये लंबे समय तक इन चुनावों को टाला लेकिन अब मजबूरी में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ये चुनाव हो रहें हैं इसका कांग्रेस कितना लाभ ले पाती है और नव नियुक्त जिला भाजपा अध्यक्ष नरेश दिवाकर अपना कितना करतब दिखा पाते हैं? इसका खुलासा तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही होगा। “मुसाफिर“
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