प्रमोशन में आरक्षण
बिल को लेकर महाभारत थमने का नाम नहीं ले रहा है। राजनीतिक दल इस बिल के सहारे एक
बार फिर से अपनी अपनी रोटियां सेंकने में जुट गए हैं। बिल को लेकर विरोध की
चिंगारी इतनी तेज हो गई है जो कभी भी बड़ी आग का रूप ले सकती है...लेकिन सरकार ने संविधान
संशोधन बिल पारित करने की पूरी तैयारी कर ली है। राजनीतिक दलों की नजर 2014 के आम
चुनाव पर है और वोटों के लिए ये लोग किसी भी हद तक जाने को तैयार दिखाई दे रहे
हैं। ये वही राजनीतिक दल और राजनेता हैं जो अपने भाषणों में तो सभी के हिमायती
होने का दावा करते हैं....देश से जात-पात के अंतर को खत्म करने की बात करते
हैं....लेकिन प्रमोशन में आरक्षण बिल ये बताने के लिए काफी है कि इनकी कथनी और
करनी में कितना फर्क है। बिल ने एक ही छत के नीचे साथ साथ बैठकर काम करने वाले
सरकारी कर्मचारियों को एक दूसरे का दुश्मन बना दिया है। एक वर्ग बिल के विरोध में
सड़कों पर उतर कर आंदोलन कर रहा है तो दूसरा वर्ग बिल के समर्थन में अपनी निर्धारित
8 घंटे की ड्यूटी से भी ज्यादा काम करने को तैयार हैं। बिल को लेकर अलग अलग लोगों
की व्यक्तिगत राय अलग अलग हो सकती है लेकिन मेरा व्यक्तिगत तौर पर मानना है कि
प्रमोशन में आरक्षण बिल दो वर्गों के बीच एक गहरी खाई पैदा करने का ही कार्य करेगा
जो कि बिल्कुल भी सही नहीं है। किसी को सिर्फ जाति के आधार पर उसे उसके सहकर्मी से
ऊपर प्रमोट कर दिया जाना कहां तक सही है ? अगर ऐसा किया जाता है तो क्या दूसरी जाति के कर्मचारी के मन में हीन
भावना उतपन्न नहीं होगी ? वह कैसे अपने कार्य
को पूरे मन से कर पाएगा...क्योंकि उसके सहकर्मी को तो प्रमोशन दे दिया जाएगा...लेकिन
वह सालों तक उसी जगह पर कार्य करता रह जाएगा। क्या इससे उसके कार्यक्षमता पर फर्क
नहीं पड़ेगा ? इसका नुकसान किसे
होगा...जाहिर है वह अपने साथ ही दूसरों का भी नुकसान करेगा। इससे बेहतर क्या ये
नहीं कि प्रमोशन के लिए कर्मचारी की कार्यकुशलता और उसके प्रदर्शन के साथ ही उसके
व्यवहार को पैमाना बनाया जाए ? अगर ऐसा किया जाता
है तो जाहिर है प्रमोशन पाने के लिए कर्मचारी पूरे मन से काम करेगा और काम में
लापरवाही नहीं बरतेगा। उसके काम का आउटपुट बढ़ेगा और इसका फायदा न सिर्फ संबंधित
विभाग को होगा बल्कि उस कर्मचारी को प्रमोशन भी मिलेगा। जिस कर्मचारी को प्रमोशन
नहीं मिल पाएगा क्या वो प्रमोशन के लिए और अधिक मेहनत से कार्य नहीं करेगा ? जाहिर है तरक्की हर किसी को अच्छी लगती है
और तरक्की के लिए कर्मचारी अच्छा कार्य करेगा। इसके साथ ही जिस पद पर प्रमोशन होना
है क्यों न उस पद के लिए उसकी योग्यता मापने के लिए विभागीय परीक्षा आयोजित की जाए
? सभी कर्मचारी उस विभागीय परीक्षा में शामिल
हों और अपनी योग्यता के आधार पर प्रमोशन पाएं। किसी को उसकी कार्यकुशलता और पद की योग्यता के बाद भी सिर्फ उसकी जाति के आधार पर
प्रमोशन न मिलना या देर से मिलना क्या उस मेहनती कर्मचारी के साथ अन्याय नहीं होगा
? इसका
ये मतलब न निकाला जाए कि दूसरी जाति के कर्मचारी काबिल नहीं है। साथ ही किसी को
कार्यकुशल न होने के बाद भी सिर्फ जाति के आधार पर प्रमोशन दिया जाना भी तर्कसंगत
तो कहीं से नहीं है। प्रमोशन हर किसी कर्मचारी का हक भी है और उसे मिलना भी चाहिए...लेकिन
इसे जल्दी पाने के लिए किसी कर्मचारी के जाति विशेष के होने की दीवार खड़ी करना
कहीं से भी सही नहीं होगा। सोचिए जब एक ही छत के नीचे साथ बैठकर काम करने वाले
कर्मचारी इस बिल की आहट मात्र से एक दूसरे के खिलाफ तलवार खींच कर बैठ गए हों...तो
इसके लागू होने के बाद सरकारी दफ्तरों के अंदर का नजारा क्या होगा ? राजनीतिक दलों को
भी इस संवेदनशील मुद्दे पर राजनीति से परे हटकर सोचना होगा ताकि पहले से ही आम
जनता को परेशान करने के लिए बदनाम सरकारी दफ्तरों में बेहतर काम का माहौल बनाया जा
सके...और इस माहौल का लाभ आम आदमी के साथ ही देश को मिल सके।
deepaktiwari555@gmail.com
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