पगथिया: मोदी से भय क्यों है अन्य दलों को ?: मोदी से भय क्यों है अन्य दलों को ? राष्ट्रिय राजनीति में नरेन्द्र मोदी जैसे ही आये बूढ़े और नये सभी राजनैतिक
31.10.13
30.10.13
नीतीश कुमार हैं फेंकू नंबर वन-ब्रज की दुनिया
मित्रों,अगर कभी फेंकने का ओलंपिक कहीं हुआ तो निश्चित रूप से उसके सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी घोषित किए जाएंगे बिहार के निवर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी। यह श्रीमान् तो राज्य में सिर्फ वही कर देने के वादे और दावे करते फिरते हैं जो इनके बूते में ही नहीं है। जब ये विकास-यात्रा पर होते हैं तब धड़ल्ले से रास्ते में पड़नेवाले हर गाँव-शहर में थोक में शिलान्यास करते हैं और दिन के बदलने के साथ ही उनको भूल जाते हैं। ये कभी पटना में मेट्रो ट्रेन चलाते हैं तो कभी पटना के बगल में नया पटना बसाते हैं। अभी कुछ ही दिन पहले इन्होंने पटना से बख्तियापुर तक गंगा किनारे छः लेन की सड़क बनाने की योजना का शिलान्यास किया है जो शायद गंगा पर बिदूपुर और बख्तियारपुर के सामने बननेवाले दो महासेतुओं के साथ ही इसी शताब्दी में बनकर पूरी हो जाएगी। कभी इन्होंने राज्य के लोगों से वादा किया था कि आगे से संविदा पर बहाली नहीं की जाएगी लेकिन एक बार फिर जैसे ही दिन बदला,सूरज ने पूर्वी क्षितिज पर दस्तक दी नीतीश जी वादे को भूल गए। दिनकटवा आयोगों का गठन करने और इस प्रकार पटना उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को उपकृत कर निवर्तमान जजों को सुखद संकेत देने के मामले में सुशासन बाबू केंद्र सरकार से भी कई कदम आगे हैं। कदाचित् इन आयोगों का गठन ही इसलिए किया गया है कि इनकी रिपोर्ट कभी आए ही नहीं। फारबिसगंज न्यायिक आयोग,कुसहा बांध न्यायिक आयोग इत्यादि इसकी मिसाल हैं। बिहार में (कु)कर्मियों और अ(न)धिकारियों की भर्ती करने के लिए गठित बिहार लोक सेवा आयोग व बिहार कर्मचारी चयन आयोग इन दिनों सिर्फ नाम के लिए या उम्मीदवारों को धोखा देने के लिए परीक्षाएँ आयोजित करते हैं बाँकी सारी सीटें तो पर्दे के पीछे पैसे लेकर बेच दी जाती हैं। इसी प्रकार इन्होंने 2010 के चुनावों के समय वादा किया था कि अगली पारी में राज्य से भ्रष्टाचार को समूल नष्ट कर दिया जाएगा लेकिन हुआ मनमोहन-उवाच की तरह उल्टा और घूस की रेट लिस्ट में बेइन्तहाँ बढ़ोतरी हो गई। इन श्रीमान् के शासन में हर सरकारी दफ्तर-स्कूल-थाने भ्रष्टाचार के सबसे बड़े अड्डे बन गए हैं लेकिन ये फिर भी चाटुकार मीडिया द्वारा सुशासन बाबू कहे जाते हैं। कहने को तो राज्य में निगरानी विभाग है जो बराबर लोगों को घूस लेते रंगे हाथों गिरफ्तार भी करती है लेकिन आज तक शायद किसी रिश्वतखोर को इसने सजा नहीं दिलवाई है। रिश्वतखोर जब जेल से छूट कर आता है तो और भी ज्यादा ढिठाई से घूस लेने लगता है। इसी प्रकार इस विभाग ने दिखाने के लिए कुछ मकान जब्त भी किए हैं लेकिन जिस प्रदेश के कदाचित् 90 प्रतिशत मकान भ्रष्टाचार की देन हैं,जहाँ छतदार मकानवाला जमीन्दार चार-चार बार इंदिरा आवास का पैसा उठाता है और असली जरुरतमंद मुँहतका बना रहता है वहाँ एक-दो दर्जन मकानों को जब्त करने से भ्रष्टाचार का क्या उखड़ जानेवाला है आप सहज ही सोंच सकते हैं। राज्य में अफसरशाही की हालत इतनी खराब है कि छोटे-छोटे अफसर भी मंत्रियों तक की नहीं सुनते। तबादलों ने राज्य में उद्योग का रूप ले लिया है।
मित्रों,इस व्यक्ति ने मीडिया को अभूतपूर्व विज्ञापन द्वारा कृतज्ञ बनाकर पूरी दुनिया में यह झूठी अफवाह फैला दी है कि बिहार में कानून-व्यवस्था की स्थिति पूरी तरह से सुधर गई है जबकि सच्चाई तो यह है कि आज भी यहाँ रोजाना दर्जनों अपहरण होते हैं,बैंक लूट होती है। बिहार पुलिस का गठन ही मानों सिर्फ घूस खाने,जनता पर अत्याचार करने व बलात्कार करने के लिए हुआ है अनुसंधान करना और आतंकी कार्रवाई रोकना तो इसकी कार्यसूची में ही नहीं है। पहले बोधगया और अब पटना में आतंकियों ने सफलतापूर्वक बम फोड़े और बिहार पुलिस केंद्र से चेतावनी मिलने के बावजूद मूकदर्शक बनी रही और कदाचित् आगे भी बनी रहेगी। बनी भी क्यों न रहे जबकि मुख्यमंत्री ही आतंकियों को अपना बेटी-दामाद बताते हैं। मुजफ्फरपुर में अपने घर से 18 सितंबर,2012 की रात से अपहृत 11 वर्षीय लड़की नवरुणा का आज तक महान बिहार पुलिस सुराग तक नहीं लगा पाई है जबकि जाहिर तौर पर इसके पीछे उन स्थानीय भू-माफियाओं का हाथ है जिनको स्थानीय नेताओं व प्रशासन का वरदहस्त प्राप्त है।
मित्रों,भाजपा कोटे से पथनिर्माण मंत्री नंदकिशोर यादव के अथक परिश्रम से राज्य की सड़कें चिकनी क्या हुई,चंद्रमोहन राय की तत्परता से अस्पतालों और जलापूर्ति विभाग में सुधार क्या हुआ कि नीतीश जी ने मीडिया में विकास के बिहार मॉडल की हवा चला दी। जब विकास हुआ ही नहीं तो विकास का मॉडल कैसा? कई बार श्रीमान् ने उद्योगपतियों के साथ पटना में बैठकें की लेकिन पलटकर कोई उद्योगपति बिहार नहीं आया। जब राज्य के अधिकांश हिस्सों में सरकारी अधिकारी नक्सलियों को बिना लेवी दिए दफ्तरों में बैठ नहीं सकते तो फिर उद्योगपति उनसे कैसे निबटेंगे?
मित्रों,फिर एक दिन अचानक नीतीश जी ने यू-टर्न लिया और कहा कि राज्य का सुपर स्पीड में विकास तो हुआ है लेकिन उस विकास के कारण राज्य और भी ज्यादा पिछड़ गया है इसलिए उनके राज्य को विशेष राज्य का दर्जा मिलना चाहिए। कैसा विकास है यह जिसमें केवल शराब-विक्रय से प्राप्त आय ही बढ़ती है? हर मोड़,हर चौराहे पर कम-से-कम एक-एक शराब की दुकान। खूब पीयो क्योंकि इससे राज्य का विकास होगा। उनसे यह पूछा जाना चाहिए कि अगर विशेष राज्य का दर्जा मिल भी गया तो उद्योगों के लिए जमीन कहाँ से लाएंगे या फिर उद्योग भी उनकी बातों की तरह हवा में ही स्थापित हो जाएंगे? पिछले कई वर्षों से स्कूली छात्र-छात्राओं को सिरिमान जी साईकिलें बाँट रहे हैं। मुखियों को शिक्षक बहाली का अधिकार देकर स्कूली शिक्षा का तो बंटाधार कर दिया और बाँट रहे हैं साईकिल और छात्रवृत्ति। क्या साईकिलें व पैसे पढ़ाएंगे बच्चों को?
मित्रों,श्रीमान् ने भाजपा का दामन छोड़ा सीबीआई के डर से और भाजपा की पीठ में खंजर भोंककर उल्टे भाजपा पर ही विश्वासघात का आरोप लगा रहे हैं। बिहार में एक और नेता हुआ करते हैं लालू प्रसाद यादव जी। हवाबाजी में ये नीतीश जी से थोड़ा-सा ही कम हैं। पिछले विधानसभा चुनावों में इन्होंने सीरियस मजाक करते हुए वादा किया कि अगर नीतीश साईकिलें बाँट रहे हैं तो मैं छात्र-छात्राओं को मोटरसाईकिलें दूंगा। इतना ही नहीं इन्होंने मुखियों द्वारा बहाल किए गए अयोग्य शिक्षकों को पुराने शिक्षकों जितना वेतनमान देने की भी घोषणा कर दी। अब इन्हीं से पूछिए कि मोटरसाईकिल और वेतन के लिए ये पैसा कहाँ से लाएंगे,चारा घोटाला फंड से या अलकतरा घोटाला निधि से?
मित्रों,हमारे राष्ट्रीय युवराज का नाम भाई लोगों ने भले ही पप्पू रख दिया हो मगर सच्चाई तो यह है कि फेंकने में इनका भी कोई सानी नहीं है। अभी कुछ ही दिन पहले इन्होंने दिल्ली मेट्रो को शीला सरकार की देन ठहरा दिया जबकि यह परियोजना जापान सरकार के सहयोग से वाजपेयी सरकार द्वारा लाई गई थी। कई-कई बार ये पंचायती राज को अपने स्व. पिता की देन बता चुके हैं जबकि भारत में पंचायती राज 1993 में तब लागू किया गया जब केंद्र में नरसिंह राव जी की सरकार थी। इसी प्रकार ये सूचना क्रांति को भी अपने पिताजी की देन बताते हैं जबकि सूचना क्रांति को सर्वाधिक बढ़ावा तब मिला जब वाजपेयी प्रधानमंत्री और प्रमोद महाजन सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार मंत्री थे। इंतजार करिए लोकसभा चुनावों तक ये लाल किला और कुतुबमीनार को भी क्रमशः नेहरू और इंदिरा द्वारा निर्मित बताएंगे। इसी प्रकार केंद्र व उप्र की सरकारों में भी फेंकुओं की कोई कमी नहीं है। कोई 32 रुपए कमानेवाले को अमीर बता रहा है तो कोई दो रुपए में भरपेट भोजन कर लेता है तो कोई हजार रुपए में टेबलेट बाँट रहा है तो कोई घोटाले करके भ्रष्टाचार मिटाने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित कर रहा है तो कोई गरीबों की झोली से प्रति व्यक्ति प्रति माह 10 किलोग्राम अनाज छीनकर भोजन की गारंटी दे रहा है तो कोई गरीबों को कागज पर शिक्षा का अधिकार देने में लगा-भिड़ा है। काम शून्य सिर्फ हवाबाजी। जब भी आतंकी हमला हुआ तो उनींदी मुद्रा में बोल दिया कि किसी को भी नहीं बख्शा जाएगा और फिर सो गए,जब पाकिस्तान ने जवानों को मारा तो ऊंघते हुए कह दिया कि कड़े कदम उठाए जाएंगे और सो गए। जब चीन ने घुसपैठ की तो घुसपैठ होने से ही मुकर गए और चीन की एक दंडवत यात्रा कर ली। कहने को तो सेना के लिए बंदूक की गोली और टैंक का गोला तक नहीं है लेकिन प्रधानमंत्री के अनुसार हमारी सेना किसी भी खतरे से निबटने में सक्षम है। अर्थव्यवस्था रसातल में पहुँच चुकी है लेकिन प्रधानमंत्री औसत के आधार पर इसे राजग कार्यकाल से अच्छा सिद्ध कर रहे हैं। महँगाई तो न जाने कब से अगले सप्ताह से ही कम हो जानेवाली है। मैं पूछता हूँ कि अगर पटेल कांग्रेस के गौरव हैं तो क्यों उनको पूरी तरह से पार्टी द्वारा भुला दिया गया और तभी क्यों उनकी याद आई जब नरेंद्र मोदी ने उनकी विश्व की सबसे बड़ी व ऊँची प्रतिमा स्थापित करने की घोषणी की? छोटे युवराज अखिलेश यादव ने तो खेल के सारे नियम ही पलट दिए हैं। मुजफ्फरनगर में जो पीड़ित पक्ष है उसे ही जेलों में ठूस दिया गया है और जो व्यक्ति दंगों के दौरान अधिकारियों को कोई कार्रवाई नहीं करने के निर्देश दे रहा था अभी भी उप्र सरकार में कैबिनेट मंत्री ही नहीं सुपर चीफ मिनिस्टर बना हुआ है।
मित्रों,अब आप ही बताईए कि वास्तव में बड़ा या सबसे बड़ा फेंकू कौन है? दरअसल राजनीति के मैदान में हर कोई फेंकू है और कुछ तो नीतीश की तरह ऐसे भी हैं जिनको कुछ करना आता ही नहीं है सिर्फ फेंकना आता है। अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि हमारे सभी राजनेताओं में सबसे बड़ा फेंकू कौन है-
हँस-हँस बोले मधुर रस घोले विरोधियों पर बदइंतजामी से उतारे खीस।
झूठ भी बोले सच से अच्छा का सखी मोदी ना सखी नीतीश।।
Posted by
ब्रजकिशोर सिंह
1 comments
27.10.13
हे प्याज देवता! आओ बाज! कितना हमें रुलाओगे?
कितना हमें रुलाओगे?
पहले तुमको छीला करते तब आंसू थे आते
अब तो देव देखकर तुमको ही आंसू आ जाते
कितने दाम बढ़ाओगे।
अब कितना हमें रुलाओगे?
हे प्याज देवता! आओ बाज!
अब कितना हमें रुलाओगे?
रुखी-सूखी रोटी-प्याज ही गरीब हैं खाते,
कभी-कभी तो बिना ही खाये सब-के-सब सो जाते
कब तक तुम तरसाओगे,
अब कितना हमे रुलाओगे।
हे प्याज देवता! आओ बाज!
अब कितना हमें रुलाओगे?
देव आपके चक्कर में हैं नेता चांदी काट रहे
जितने हैं बिचौलिये सारे धन आपस में बांट रहे
पर आप नहीं कुछ पाओगे।
अब कितना हमें रुलाओगे?
हे प्याज देवता! आओ बाज!
अब कितना हमें रुलाओगे?
धनिया, मिरच, टमामट, आलू अपना ताव दिखाते हैं
सभी आपके ही चक्कर में हमको देव सताते हैं
क्या ये सरकार गिराओगे?
या फिर ऐसे हमें रूलाओगे।
हे प्याज देवता! आओ बाज!
अब कितना हमें रुलाओगे?
Posted by
Shishupal Prajapati
0
comments
धमाकों के बीज गूंजी शेर की दहाड़-ब्रज की दुनिया
मित्रों,मैं नरेन्द्र मोदी जी को धन्यवाद देता हूँ और उनकी इस बात के लिए सराहना करता हूँ कि उन्होंने अपने भाषण में लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की। मैं उनका इसलिए भी आभारी हूँ क्योंकि उन्होंने रैली स्थल पर बम फटने के बावजूद अपने संबोधन को स्थगित नहीं किया और बेखौफ होकर जनसभा को संबोधित किया। संबोधन के समय उनके चेहरे की भाव-भंगिमा यह बता रही थी कि वे सचमुच गुजरात ही भारत के शेर हैं। जिस तरह जनता उनको जान हथेली पर लेकर सुनने के लिए डटी रही वह न सिर्फ उनकी लोकप्रियता का परिचायक है बल्कि उससे इस बात का भी पता चलता है कि देश-प्रदेश के मौजूदा हालात से जनता किस कदर उब चुकी है और किस हद तक परिवर्तन की आकांक्षी है। बिहार की धरती पर देश के विकास के दीवानों की वहाई गई खून की एक-एक बूंद बेकार नहीं जाएगी। उनकी शहादत,उनका लहू 2014 के लोकसभा चुनावों के समय पूरे जोश में बोलेगा,मतों के रूप में हुंकारेगा और तब जाकर इस रैली का हुंकार रैली नाम सार्थक सिद्ध होगा। यहाँ अंत में मैं सुशासन बाबू से पूछना चाहता हूँ कि कहाँ है उनकी कानून और व्यवस्था,कहाँ है उनका सुशासन? क्या सिर्फ दिन-रात सुशासन-2 की रट लगाने से ही प्रदेश में सुशासन आ जाएगा? वे कैसे मुख्यमंत्री हैं,किस बात के मुख्यमंत्री हैं जो रैली के दिन भी आतंकी हमलों को रोक नहीं पाए जबकि पहले से ही ऐसा होने की संभावना थी? क्या वे प्रधानमंत्री बन जाने पर इसी तरह से देश को चलाएंगे अगर किसी दिन सूरज पश्चिम से उग गया तो? क्या हम उनसे उम्मीद रखें कि वे इन हमलों के लिए दोषी अपने बेटियों-दामादों को गिरफ्तार करेंगे और सजा दिलवाएंगे?
Posted by
ब्रजकिशोर सिंह
0
comments
सोच का फर्क
सब्जी मंडी नहीं कह सकते उस जगह को क्योंकि वह एक चौड़ा रास्ता है उसके आस
पास रहीश और अमीर लोगों की कॉलोनियां हैं। उस चौड़े रास्ते पर कुछ ठेले वाले
सब्जियां बेच कर अपना परिवार चलाते हैं।
एक युवती सब्जी वाले से पूछती है - भईया ,भिन्डी क्या भाव है ?
सब्जी वाले ने कहा -बहनजी ,पचास रूपये किलो।
युवती -क्या कहा !पचास रूपये !! अरे बड़ी मंडी में चालीस में मिलती है …
सब्जीवाला -बहनजी वहां से लाकर थोड़ी थोड़ी मात्रा में यहाँ बेचना है में मुश्किल से
दस किलो बेच पाता हूँ ,मुझे तो उसी दस किलो की बिक्री से घर चलाना है
युवती -तो क्या करे हम ,हम भी मेहनत से कमाते हैं ,देख पेंतालिस में देता है तो
एक किलो दे दे ?
सब्जीवाला उसे एक किलो भिन्डी पेंतालिस के भाव से दे देता है और अनमने भाव से
बाकी के पैसे लौटा देता है
वह युवती घर लौटती है और अपने पति से बताती है कि किस तरह वह भाव ताल
करके सस्ती सब्जी लाती है। पति उसको गर्व से निहारता है और मॉल में खरीद दारी
के लिए ले जाता है। वह युवती पर्स पसंद करती है और उसे पेक करने का ऑर्डर दे
देती है यह देख उसका पति बोलता है -रुक ,जरा भाव ताल तय कर लेते है ,तुमने तो
उससे भाव भी नहीं पूछा और सामान पैक करने का भी कह चुकी हो ….
युवती बोली -आपकी सोच कितनी छोटी है ,ये लोग अपने को फटीचर नहीं समझेंगे ?
युवक बोला -अरे चीज खरीद रहे हैं ,भाव पूछने में क्या जाता है ,वाजिब होगा तो
लेंगे नहीं तो दुसरे से खरीद लेंगे
युवती ने कहा - देख नहीं रहे हो ,यहाँ सभी अपने से ज्यादा पैसे वाले लोग खरीदी
कर रहे हैं और चुपचाप बिल चूका रहे हैं ,आप मेरी इज्जत का कचरा करायेंगे मोल
भाव करके ,ज्यादा से ज्यादा सौ -दो सौ का फ़र्क होगा
मॉल से पर्स खरीद कर वो दरबान को दस रुपया टीप देकर बाहर निकल आते हैं
ये घटनाएँ छोटी हो सकती हैं मगर बहुत गहरा प्रभाव देश पर छोडती है। एक गरीब
मेहनत करके परिवार का पेट इमानदारी से पालना चाहता है तो हम उससे मोल
भाव करते हैं और वो बेचारा पेट की भूख की मज़बूरी को देख सस्ता देता है और एक
तरफ धन्ना सेठों की दुकानों पर मुहँ मांगे दाम भी देते हैं। कभी हमे पाँच रूपये बचाना
होशियारी लगता है तो कहीं सौ -दो सौ लुटाना वाजिब लगता है।
फैसला कीजिये खुद कि क्या आप सही कर रहे हैं ,आने वाले पर्व त्योहारों पर गरीब
लोगों से सडक पर छोटी छोटी वस्तुओं पर भाव ताव करके पैसे मत बचाईये ,जैसे
आप त्यौहार हर्ष से मनाना चाहते हैं वैसे इन मेहनत कश लोगों को भी त्यौहार के
दिन उनका माँगा मुल्य देकर उनके घर भी कुछ पल रौशनी के आ जाए ,ऐसा काम
कर दीजिये , आपके घर जलने वाले दीपक से कोई झोपडी में ख़ुशी आ जाए तो
आप इसमें सह भागी बनिये।
ठीक लगे यह विचार तो आगे अपने दोस्तों में शेयर कीजिये।
Posted by
Unknown
0
comments
Labels: khari khari
24.10.13
मेरे गाँव का बुढ़ा पीपल
मेरे गाँव का बुढ़ा पीपल
मेरे गाँव का बुढ़ा पीपल
गाँव के प्रवेश द्वार पर
खड़ा वर्षो से दृढ अविचल।
देख रहा निर्बल निस्तेज
आँखों से यहाँ का परिवर्तन
हवा में सरसराती पत्तिया
कहती व्यथा गाँव की पलपल।
बचपन से देखा इसने
इस राह गुजरते लोगो को
दुःख दर्द की बाते कर स्मृत
कैसी होती है कम्पन।
राह गुजरते -गाँव में आते
गाँव से कोई बाहर जाते
छांव में बैठ जाते एक पल।
तने पर पड़ी झुर्रिया उम्र दर्शाती है
तल पे चट्टान की परत बतलाती है।
.jpg)
बाराते -ठहरी बैठी पंचायते
कितनी महफिले जमी यहाँ।
धुंधला गयी वक्त के कोहरे में
इतिहास के सपने यहाँ।
पीपल की शाखाओ में टंगी
अनगिनत मिटटी की हांड़ी
कहती जिंदगी की दास्ताँ।
साथी संग छूट गये
दुनिया से नाता तोड़ गये
राजा -रंक यहाँ आके
एक अस्तित्व में मिट गए।
हमारे गाँव का इतिहास पुरुष
सुखदुख साक्षी सबल।
बच्चो का ये हमजोली
खेलते यहाँ पे सब होली
थकेमांदे को मिलता आराम
मौत पर भी यहाँ होता
अंतिम संस्कार का काम।
तल में बहती 'बुढ़िया' निर्मल।
युगो से धो रही चरण जल शीतल।
वक्त बदला लोग बदले
कभी पसरा था सुनसान यहाँ
बन गये अब कई मकान यहाँ
'बुढ़िया' पे चढ़ा पूल सबल
तन्हा पड़ा है बूढ़ा पीपल।
सड़क हो गयी है काली
भाग रही सरपट गाड़िया
कोई थका अब बैठता नही
बकरिओ के लिए बस लोग
आते है यहाँ तोड़ने पत्तियां।

चलती है रोज तन पे कुल्हाड़ियां
टूटती है ट्रोज इसकी डालियाँ।
हो रहा ठूंठ हरपल बन रहा निर्बल।
इन कुछ सालो में सिमट गया है
बड़ा साम्राज्य ,खड़ा लाचार
सह रहा सब
प्रतिकार का भी नही रहा अब बल।
होली की हुड़दंग नही
सियासत की खेमेबाजी
लड़ने-लड़ाने की होती गुटबाजी
कितना निरीह ,पीड़ित विकल
मेरे गाँव का बुढ़ा पीपल। ।
------------------------पंकज भूषण पाठक "प्रियम "
Posted by
पंकज प्रियम
0
comments
23.10.13
प्याज और सिंहासन
प्याज एक सब्जी भर नही है क्योंकि किसी भी सब्जी में आज तक वह दम देखने को
नहीं मिला जो प्याज में है। सत्ता के सिंहासन से जमीन पर पटकने का काम सिर्फ
प्याज ही करता है।
जिन राज्यों में चुनाव माथे पर है उन सत्ताधिशो को नींद नहीं आ रही है
कारण यह नहीं कि विरोधी हावी है बल्कि प्याज गरीबी रेखा से ऊपर उठ गया है और
मीडियम वर्ग के ठीक ऊपर से निकल कर रहीश लोगों की थाली में जा गिरा है।
वैसे आज तक बहुत घोटाले हुये मगर आम आदमी सब घोटाले पचा जाता
है इसे हम लोगों के बढिया हाजमे के उदाहरण के तोर पर देखा जा सकता है मगर
प्याज का घोटाला …. सब की जबान से चक चक शुरू हो जाती है!
एक भाई वातानुकूलित दूकान में सब्जी खरीदने गये काफी सब्जियां देखी
और कुछ सौ दो सौ ग्राम खरीदी भी थोड़ी देर में पहुँच गए प्याज के काउंटर के
पास ,गहरा साँस लिया और प्याज को नाजुकता से छुआ ,पुरे शरीर में करंट दौड़
गया। प्याज का गुलाबी चेहरा दमक रहा था और मादक खुशबु से भरा था। भाई
प्याज को एकटक निहारने का आनन्द लेते रहे और फिर मिलने का वादा कर
पेमेन्ट काउन्टर की और बढ़े। जब बिल मिला जो प्याज का दस रूपये भी लिखा
था। उसने दूकान वाले से कहा -मेने प्याज ख़रीदा नहीं तो दस रूपये क्यों लिखे हैं ?
दुकानदार बोला -प्याज के काउंटर के पास से गुजरने के पाँच रूपये और हाथ से
उठाकर या कुछ देर रुक कर खुशबु लेने के पांच ,श्रीमान आपने ये दोनों काम किये
इसलिए दस का चार्ज लगा।
प्याज के दाम बढ़ने से बहुत सारे सरकारी महकमे और छोटे बड़े व्यापारी
संतुलित बल्ड प्रेशर से जीते हैं। जब ये दोनों पॉइंट जुड़ जाते हैं तो इन दोनों के
घर सिक्के खनकते हैं ,रोता है बेचारा पैदा करने वाला या फिर प्याज की बलि देने
वाली।
प्याज के दाम बढ़ते ही विरोधी दल इस तेज गेंद को हवा में तैर कर पकड़ने
की फिराक में रहते हैं। प्याज के नाम पर आंसू टपकाते हैं ताकि जनता की संवेदना
टपके और फिर चालु खटखटिया सरकार टपके। जो काम विरोधी दल के बड़े बड़े
मुद्दे नहीं कर सकते वो अकेले प्याज देवता कर देते हैं।
देश की हर रूलिंग पार्टी जगती और सोती रहती है। जागने और सोने को रेशियो
कुछ भी हो यह मुख्य नहीं है मुख्य बात है उसके पास पक्के आंकड़े प्याज की
पैदावार के सम्बन्ध में होने चाहिए बाकी सब आंकड़े मौसम विभाग वाले हो तो
चलेगा क्योंकि प्याज के अलावा सब जगह सुंदर भड़कीले बहाने मिल जाते हैं मगर
प्याज के मुद्दे पर असल ही चाहिये यदि प्याज पर लीपापोती कर दी तो पक्का मानो
कि उस सरकार की पुताई होनी ही है
यदि प्याज गरीबी की रेखा के नीचे भी भरपूर मिले तो समझिये आप फिर
सरकार बनाने वाले हैं और प्याज गायब तो वे सरकारे भी गायब …………….
चलते चलते ---
हम देश के सभी गरीबों को भरपेट भोजन देंगे क्योंकि हमारे पास खाद्य सुरक्षा
है मगर हमसे प्याज गारंटी ना मांगे क्योंकि इसका मिलना या ना मिलना भाग्य के
हाथ में है !!
Posted by
Unknown
0
comments
Labels: hasya-vyangya
22.10.13
आग से खेल रहे हैं छद्म धर्मनिरपेक्ष-ब्रज की दुनिया
मित्रों,आजादी के बाद भारतीय संविधान-निर्माताओं ने इतिहास से सबक लेते हुए संविधान में धर्म के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित कर दिया परन्तु मुसलमान वोट-बैंक पर गिद्ध-दृष्टि गड़ाए नेताओं ने सत्ता के लिए फिर से तुष्टीकरण का वही गंदा खेल खेलना शुरू कर दिया जो कभी अंग्रेज खेला करते थे। सबसे पहले पं. जवाहरलाल नेहरू ने इसकी शुरुआत की हिन्दू विवाह अधिनियम,1955 को पारित करवाकर जिसके अनुसार आज भी मुसलमानों के लिए अलग दीवानी कानून हैं और हिन्दुओं के लिए अलग। फिर बाद में मुस्लिम मतों के अन्य दावेदार-हिस्सेदार भी सामने आए और इस तरह धोबी पर धोबी बसे तब चिथड़े में साबुन लगे कहावत चरितार्थ की जाने लगी। आज सारे छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी दलों व नेताओं में मुसलमानों को अन्य जनसमुदायों से ज्यादा अतिरिक्त सुविधाएँ देने की होड़-सी लगी हुई है। इन लोगों ने हिन्दू विद्यार्थी-मुस्लिम विद्यार्थी,हिन्दू गरीब-मुस्लिम गरीब,हिन्दू ऋण-मुस्लिम ऋण,हिन्दू बैंक-इस्लामिक बैंक,हिन्दू दंगाई-मुस्लिम दंगाई,हिन्दू दंगा पीड़ित-मुस्लिम दंगा पीड़ित,हिन्दू पर्सनल लॉ-मुस्लिम पर्सनल लॉ,हिन्दू आतंकी-मुस्लिम आतंकी,हिन्दू आतंकवाद-मुस्लिम आतंकवाद,हिन्दू अपराधी-मुस्लिम अपराधी की अलग-अलग श्रेणियाँ बना दी है और वही सब कर रहे हैं जो आजादी से पहले अंग्रेज भारत की एकता और अखंडता को नुकसान पहुँचाने के लिए किया करते थे। दुर्भाग्यवश इस बार जिन्ना या सर सैयद अहमद खाँ मुसलमान नहीं हैं बल्कि हिन्दू हैं। एक मोर्ले-मिंटो ने एक झटके में उस सिन्धू-गंगा के पानी का बँटवारा कर दिया था जिसको सदियों तक इंसानी खून की नदियाँ बहानेवाली तलवारें भी अलग नहीं कर पाई थीं। फिर आज के भारत में तो न जाने कितने मोर्ले-मिन्टो मौजूद हैं जिससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले वक्त में इस देश से और कितने पाकिस्तान निकलनेवाले हैं।
मित्रों,इस तरह के बेहद निराशाजनक माहौल में गुजरात की सरकार बधाई और स्तुति की पात्र है जिसने इस बार बकरीद के दिन हिन्दुओं के लिए परमपूज्य गायों के गलों पर छुरियाँ फेरनेवाले 184 मुसलमानों पर पासा व अन्य धाराओं के अंतर्गत मुकदमा दर्ज किया है जबकि दिल्ली समेत सारी राज्य-सरकारें व केंद्र सरकार बकरीद के दिन गोहत्या की घटनाओं से जानबूझकर अनजान बनी रही। हम 18-11-2011 को ब्रज की दुनिया पर लिखे गए अपने आलेख यह कैसे और कैसी क़ुरबानी? में अर्ज कर चुके हैं कि दक्षिणी दिल्ली के बटाला हाऊस क्षेत्र में बकरीद के दिन मुसलमानों के घर-घर में गायें-बछड़े काटे जाते हैं और ऐसा होते हुए हमने अपनी आँखों से देखा है फिर भी शीला दीक्षित या सुशील कुमार शिंदे ने गोमाताओं को कटने से रोकने का कोई प्रयास नहीं किया। इतना ही नहीं गुजरात कांग्रेस ने मुसलमानों पर गोहत्या के लिए कार्रवाई किए जाने की निंदा भी की है। क्या ऐसे लोग हिन्दू कहलाने के योग्य हैं? मैं भारत सरकार समेत सभी छद्म धर्मनिरपेक्ष दलों से जो रोगी को भावे वही वैद्य फरमावे के रास्ते पर चलते हुए मांग करता हूँ कि उनको मुसलमानों को हिन्दुओं से अलग कर सुविधा देने की दिशा में सबसे महान कदम उठाने में तनिक भी देरी नहीं करनी चाहिए और मुसलमानों के लिए अलग से शरीयत आधारित मुस्लिम आपराधिक संहिता बना देनी चाहिए जिससे मुस्लिम अपराधियों व आतंकियों के साथ शरीयत के अनुसार न्याय हो सके। यथा-चोरी करने पर अंग-भंग,व्यभिचार-बलात्कार-हत्या करने पर सरेआम पत्थर मारकर मृत्यु-दंड इत्यादि।
Posted by
ब्रजकिशोर सिंह
0
comments
21.10.13
saadhuo ko sapane
साधुओं को भी अब आते हैं सपने रोज़ सोने के।
अरे सीता ने शौहर को पिठाया कनक मृग पीछे ,
तो लंका में गयी सोना जहाँ घर घर बिछौने के।
खजाने , हैं बहुत-से लोग लोलुप ताक में तेरी ,
नहीं आना नज़र तुम भूलकर भी बिन दिठोने के।
कभी सोना उगलती खेत में थी देश की धरती ,
दौर अब इस तरह के तमाशे मंदिर में होने के।
Posted by
Dr Om Prakash Pandey
0
comments
17.10.13
15.10.13
दरिंदा बनता सिस्टम-ब्रज की दुनिया
मित्रों,अखबार के अनुसार हादसे की चश्मदीद रजुश्री यादव का कहना है, 'मैंने पुल पर श्रद्धालुओं को चिल्लाते हुए सुना कि पुलिस शवों और कुछ बच्चों को पानी में फेंक रही थी। मैंने खुद छह बच्चों को बाहर निकाला। इनमें से एक को मैंने नदी से निकाला।' ग्राम रक्षा समिति की सदस्य यादव का कहना है कि उन्होंने पांच बच्चों को उनके परिजनों को सौंप दिया है जबकि एक दो साल की बच्ची अभी भी उनके पास है। यादव के साथ उनके भतीजे कमल प्रजापति भी थे। उनका कहना है कि उन्होंने एक लड़के को डूबने से बचाया। प्रत्यक्षदर्शी इंदेल अहीरवार का कहना है कि उसने पुलिसवालों को कई लाशों को गाड़ी में कहीं ले जाते देखा। उनका कहना है कि उन्होंने करीब 175 लाशें देखीं थीं। मध्य प्रदेश के ही भिंड की रहने वाली गीता मिश्रा ने स्थानीय संवाददाताओं से कहा, 'मैं भगदड़ के दौरान पुल पर ही थी। पुलिसवालों को 2 दर्जन से अधिक लोगों को नदी में फेंकते देखा।' हादसे में बाल-बाल बचे दमोह के रहने वाले 15 साल के आशीष अहीरवार ने बताया कि जब वह अपने 5 साल के भाई का शव लेने गया तो पुलिस वालों ने उसे नदी में फेंक दिया। आशीष को गंभीर चोटें आई हैं। आशीष का कहना है, 'मैंने उनसे मेरे भाई की लाश देने की भीख मांगी लेकिन उन्होंने उल्टे मुझे ही नीचे फेंक दिया और बोले कि तुम्हें भी मर जाना चाहिए।'सबसे हैरान करने की बात है कि पुलिस ने सीधे-सीधे इस गंभीर आरोप से इंकार भी नहीं किया है। इस बारे में पूछे जाने पर डीजीपी नंदन कुमार दुबे ने कहा कि आरोपों की पड़ताल की जा रही है और अगर इनमें सचाई मिली तो कार्रवाई की जाएगी। रतनगढ़ माता मंदिर के पास बसई घाट पर सिंध नदी का पुल टूटने की अफवाह और फिर पुलिस लाठीचार्ज से मची भगदड़ में 115 लोगो के मरने की खबर है। लोग आशंका जता रहे हैं कि मरने वालों की संख्या 200 से ऊपर जा सकती है। बताया जा रहा है कि हादसे के वक्त वहां करीब 1.5 लाख लोग मौजूद थे। इस बीच इस हादसे के बाद दतिया के डीएम, एसपी, एसडीएम और डीएसपी को सस्पेंड कर दिया गया है।
मित्रों,जाहिर है कि इस दुर्घटना में सिर्फ शताधिक मानवों की ही मौत नहीं हुई है बल्कि उससे भी ज्यादा बेरहमी से मारा गया है मानवता को और हत्यारे कोई और नहीं हैं बल्कि वे लोग हैं जिनके कंधों पर इसकी रक्षा की जिम्मेदारी थी। क्या भविष्य में हमारे बच्चे बेखौफ और बेफिक्र होकर संकट के समय पुलिस अंकल से मदद की गुहार लगा सकेंगे? प्रश्न सिर्फ यह नहीं है कि इस घटना के लिए प्रदेश सरकार कहाँ तक जिम्मेदार है बल्कि असली प्रश्न तो यह उठता है कि अब तक हमारा जो सिस्टम सिर्फ भ्रष्ट था अब हम जनता के खून का ही प्यासा क्यों हो गया है या होने लगा है? जो व्यक्ति बिना वर्दी के दीन-हीन बना रहता है वही व्यक्ति वर्दी पहनते ही कैसे खूंखार दरिंदा बन जाता है? खामी कहाँ है या कहाँ-कहाँ है? क्या सिपाही-दारोगा की बहाली की प्रक्रिया भ्रष्टाचाररहित है? जो व्यक्ति पैसों से वर्दी खरीदेगा वो फिर उसका मूल्य तो वसूलेगा ही चाहे घूस खाकर वसूले या लाशों से गहने उतारकर। हम किसी भी परीक्षा के दौरान फिर चाहे वो परीक्षा चतुर्थवर्गीय कर्मचारी के लिए हो या आईएएस अधिकारियों के लिए उम्मीदवारों के ज्ञान की,जाति की या फिर घूस देने की क्षमता की जाँच करते हैं लेकिन उनकी ईमानदारी और ईंसानियत की कहीं जाँच नहीं होती। क्या सभी परीक्षाओं में उम्मीदवारों की ईमानदारी व ईंसानियत की जाँच नहीं की जानी चाहिए? मैं यह तो मानता हूँ कि लोकतंत्र में यथा प्रजा तथा राजा का नियम काम करता है लेकिन मैं यह नहीं मानता कि यथा राजा तथा प्रजा का नियम बिल्कुल ही बेअसर और बेकार हो गया है। बल्कि दोनों ही नियम अपनी-अपनी जगह आज भी प्रासंगिक हैं और हमेशा रहनेवाले हैं। गुजरात की पुलिस अगर ईमानदार है तो इसलिए क्योंकि वहाँ के मुख्यमंत्री ईमानदार हैं और उ.प्र.,दिल्ली,बिहार,मध्य प्रदेश की पुलिस अगर बेईमान है तो सिर्फ इसलिए क्योंकि वहाँ के मुख्यमंत्री ईमानदार नहीं है। मैं अगर ईमानदारी से कहूँ तो मैं खुद एक पत्रकार होने के बावजूद पुलिसकर्मियों के मुँह लगने से बचता रहता हूँ। अभी पाँच-छः दिन पहले ही बेगूसराय में बिहार पुलिस की रंगदारी और बर्बरता के शिकार अंतरार्ष्ट्रीय स्तर पर कई सम्मानों से सम्मानित प्रख्यात रंगकर्मी प्रवीण कुमार गुंजन तक हो चुके हैं और अस्पताल में भर्ती हैं।
मित्रों,मैं वर्षों से कहता आ रहा हूँ कि हमारे देश के अधिकतर राज्यों की पुलिस बिल्कुल भी ईमानदार नहीं रह गई है और वास्तव में वर्दीवाले गुंडों का अघोषित संगठन भर बनकर रह गई है। क्या जरुरत हैं ऐसी लुटेरी-हत्यारी सरकारी संस्था की? हालात कैसे बदलेंगे यह हम सभी जानते हैं। जब तक हम नहीं बदलेंगे,तब तक समाज नहीं बदलेगा और जब तक समाज नहीं बदलेगा हालात भी नहीं बदलेंगे। अभी उपभोक्तावाद का दौर है जिसमें हम सभी आदमी ईंसान नहीं बल्कि उपभोक्ता बनकर रह गए हैं। कदाचित् अभी हमारा व हमारे समाज का और भी नैतिक पतन होना शेष है और वो समय आनेवाला है जब हम भारतीय सिर्फ यौन-संतुष्टि के पीछे भागनेवाले जानवर बनकर रह जाएंगे। उसके बाद की भविष्यवाणी मैं नहीं कर सकता क्योंकि ऐसा करना मेरी क्षमता के बाहर है।
Posted by
ब्रजकिशोर सिंह
0
comments
राम, रावण एवं रावण तत्व । एक विमर्श !
बुराई पर अच्छाई की प्रतीकात्मक जीत, धुंवाधार आतिशबाजी के साथ आज एक भर
फिर मुक्कमल हो गयी । आज भी दशहरा है । रावण फिर जला और राम की सत्ता पर
लोगों ने फिर आस्था जताई । यहाँ मैं इस बात से आज आगे बढ़ना चाहता हूँ कि
हर बरस इस आयोजन की क्या सार्थकता है ?
सिर्फ प्रतीकात्मक ही रह
गया है । रावण को बुराई का होल - सोल ठेकादार मानकर फूंक देना । क्योंकि
वास्तव में तो न तो रावण मरता दिखता है और न ही रावण तत्व का खात्मा होता
हुआ । इन सब रस्म अदायगी के बीच एक विचार यह भी आया कि रावण का एक बहुत
बड़ा उद्देश्य राम को स्थापित करना भी है । क्योंकि राम का महातम रावण के
किरदार के बिना कैसे चमकता ? रावण की सिर्फ एक गलती उसे अर्श से फर्श पर
पहुँचा देती है ।
कुबेर को
रावण का बड़ा भाई बताया गया है । यानि एक जिम्मेदार पद पर । रावण की शिव -
भक्ति पर स्वयं महादेव भी प्रश्न चिन्ह नहीं लगा सकते । और जो काम पूरे
विश्व में कोई नहीं कर पाया वो सिर्फ रावण ने कर दिखाया । शिव के नृत्य
’तांड़व’ को शब्द-बद्ध एवं लय-बद्ध करने का । उस जमाने में भी ज्ञानी -
महात्मा लोगों की कमी नहीं रही होगी । शिव तांड़व स्त्रोत वास्तव में रावण
स्त्रोत है । और शिव को दस बार आपना शीश काट कर अर्पित करने के कारण उसका
नाम दशानन पड़ा । स्वयं महादेव ने उसके दसों सिर वापस किये ।
लक्ष्मण को राजनीति शास्त्र के ज्ञाता रावण की मृत्यु शय्या पर रावण के पास
स्वयं मर्यादा पुरूषोत्तम राम ने कुछ ज्ञान हासिल करने भेजा था । राम ने
जिस रामेश्वरम मन्दिर की स्थापना की उसमें पुरोहित का किरदार भी रावण के
जिम्मे रहा ।
रावण सामराज्यवादी था । वह अपना सामराज्य बढ़ा रहा
था । आज भी कौन सा शक्तिशाली देश यह काम नहीं कर रहा है । जबसे दुनिया एक
ध्रुवीय हुई है तबसे यह बात और भी प्रासंगिक हो चली है । सामराज्यवाद जो
पहले ब्रिटेन का काम माना जाता था । वह सोवियत संघ के टूटने के बाद अमेरिका
का शगल हो चला है । जहाँ अमेरिका आर्थिक सामराज्यवाद की दिशा में बढ़ रहा
है वहीं ब्रिटेन उसके साथ राजनैतिक सामराज्यवाद भी बढ़ाता था । तो रावण
बुरा था इसलिये उसके पुतले पूरे देश में फूंके जा रहे हैं - 5000 साल बाद
भी । और अमेरिका के पुतले भी पूरे विश्व में हर उस देश में फूंके जा रहे
हैं जहाँ - जहाँ उसके सामराज्यवाद ने लोगों को दु:ख पहुँचाया । यहाँ तक की
स्वयं अमेरिका में भी । साथ ही बताने की जरूरत नहीं की रानी का सामराज्य अब
सिमट चुका है ।
यह रावण के किरदार की एक बानगी भर है । और आप
में से हर कोई इसकी मीमांसा अपने - अपने चश्में से ही करेगा । प्रदूषण
बढ़ाने की दृष्टि से शायद हम - सब भी रावण के ही रोल में हैं । इसलिये रावण
का नहीं रावण-तत्व का दहन करें और इस किरदार के उअले पक्ष को अंगीकृत करने
में कोई हर्ज नहीं दिखता ।
शायद, शायर निदा फाज़ली ने इसी लिये कहा हो :
हर आदमी में होते हैं दस - बीस आदमी
जिसे भी देखिये
बार - बार देखिये ।
Posted by
Sachin Agarwal
0
comments
12.10.13
वर्तमान समय में जेपी-लोहिया की प्रासंगिकता-ब्रज की दुनिया
मित्रों,कल लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती थी और आज डॉ. राममनोहर लोहिया की पुण्यतिथि है। इस अवसर पर पूरे भारत ने उन दोनों को शिद्दत के साथ याद किया। जहाँ जेपी का नाम सामने आते ही हमलोगों को 1974 के आंदोलन का स्वतः स्मरण हो आता है वहीं लोहिया का नाम कानों में पड़ते ही एक ऐसे दूरदर्शी का अक्स आँखों में उभर आता है जिसने आजादी के तत्काल बाद ही भारतीय लोकतंत्र की खामियों को समझ लिया था। जहाँ लोहिया महान विचारक थे वहीं जेपी महान् कर्मयोगी। वास्तव में जेपी एक व्यक्ति नहीं आंदोलन थे। एक ऐसा आंदोलन जो सबकुछ बदल देना चाहता था। समाज,राजनीति और व्यवस्था सबकुछ। निरंकुश सत्ता ने तब 21 महीनों के लिए पूरे देश को एक विशाल जेलखाने में बदल दिया था। न तो जुल्मी ने ही हार मानी थे और न तो जेपी के अनुयायी दिवानों ने ही। एक तरफ एक बूढ़ा और बीमार व्यक्ति और दूसरी ओर अपार बलशाली केंद्र और राज्यों की कांग्रेसी सरकारें। उद्दाम नाजीवादी कांग्रेसी तूफान के सामने जलते हुए एक नन्हें से दिये के समान थे जेपी। फिर आया सन् 1977 का चुनाव और चमत्कार हो गया। तूफान हार गया था और दीपक जीत गया था।
मित्रों,जनता पार्टी की सत्ता के कुछ ही महीनों में जेपी की समझ में यह आ चुका था कि वे अपने चेलों द्वारा ही ठगे गए हैं। जेपी जीतकर भी हार गए थे और भीतर तक टूट भी गए थे। सत्ता और कुर्सी के लिए जेपी की पार्टी जनता पार्टी में लठ्ठमलठ्ठा होने लगा जिससे सबसे ज्यादा घायल हुई थी खुद जेपी की अंतरात्मा। कुछ समय बाद ही जनता पार्टी के कथित समाजवादी और छद्मधर्मनिरपेक्षतावादियों ने आरएसएस को आतंकी संगठन घोषित कर स्यापा करना शुरू कर दिया। तब तक जेपी अपने धूर्त समाजवादी-धर्मनिरपेक्षतावादी चेलों की करतूतों और लोमड़ीपने को भलीभाँति समझ चुके थे इसलिए वे आरएसएस के समर्थन में चट्टान की तरह खड़े हो गए और सिंहनाद करते हुए कहा कि अगर आरएसएस आतंकी संगठन है तो वे भी आतंकी हैं। जेपी समझ चुके थे कि उनसे जनता पार्टी के गठन में गंभीर गलती हुई है लेकिन उनके पास भूल-सुधार करने के लिए पर्याप्त समय नहीं था और 8 अक्तूबर,1979 को उनका देहान्त हो गया। दुर्भाग्यवश तब केंद्र में कथित समाजवादी चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस समर्थित सरकार सत्ता में आ चुकी थी और जनता पार्टी की सरकार का पतन हो चुका था। संपूर्ण क्रांति का नारा महज नारा बनकर रह गया।
मित्रों,फिर भी जेपी के एक सिद्धान्त के प्रति उनके चेलों की आस्था कमोबेश 1989 तक बनी रही। बीजेपी के उभार के बाद जेपी और लोहिया के गैरकांग्रेसवाद के नारे का स्थान गैरभाजपावाद ने ले लिया। आज लोहिया-जेपी के चेलों का इतना अधिक नैतिक पतन हो चुका है कि वे उसी इंदिरा की बहू की पालकी ढोने में लगे हैं जिसको कि जेपी और लोहिया ने कभी सिरे से नकार दिया था। आज वे भ्रष्टाचार के पंक में आकंठ डूबे हुए हैं और आज सोनिया की कांग्रेस भी इंदिरा की कांग्रेस के मुकाबले करोड़ गुना ज्यादा पतित है। आज की कांग्रेस ने चुनाव आयोग और सीएजी जैसी संवैधानिक व प्रतिष्ठित संस्थाओं को भी चहेते अफसरों के माध्यम से अपना गुलाम बना लिया है। बाबा रामदेव उपदेश दें तो चुनाव आयोग का डंडा और जब बुखारी या देवबंद फतवा जारी करे तो अंधा-बहरा आयोग अंधा-बहरा बन जाता है? सोनिया कांग्रेस ने न केवल जनता बल्कि अपराधियों को भी संप्रदायों में बाँट दिया है और तदनुसार उनके साथ अलग-अलग तरह का व्यवहार किया जा रहा है। क्या यही अनुच्छेद 14 में वर्णित समानता का अधिकार है?
मित्रों, आज जेपी-लोहिया के चेलों का न कोई सिद्धांत है और न ही कोई मूल्य सिर्फ सत्ता और पैसे के पीछे अंधी दौड़ में वे दौड़े चले जा रहे हैं। जेपी ने तो कभी न तो सत्ता चाही और न ही पैसा लेकिन उनके चेले उनके जीते-जी ही पथभ्रष्ट हो गए? भ्रष्टाचार करने और बचाव के लिए धर्मनिरपेक्षता का बुर्का पहन लेने में जेपी-लोहिया के चेलों ने चिर भ्रष्ट और तानाशाह कांग्रेस को भी मात दे दी है। संपूर्ण क्रांति अर्थात् व्यवस्था-परिवर्तन तो उनकी प्राथमिकता सूची में कभी था ही नहीं। न जेपी के जीते-जी और न ही मरने के बाद। जनता आपस में जातीयता,सांप्रदायिकता और क्षेत्रीयता के मुद्दे पर आपस में कट-मर रही है और ये लोग प्रशासन को निर्देश दे रहे हैं कि जो हो रहा है उसे होने दो। दंगे सरकार खुद करती-करवाती है और पकड़कर जेलों में ठूंस देती है विपक्षी नेताओं को। कांग्रेस और जेपी-लोहिया के इन चेलों में कोई सांस्कृतिक और चारित्रिक अंतर रह ही नहीं गया है। कांग्रेस तो आजादी के बाद से ही फूट डालो और शासन करो की नीति पर चलती रही है परन्तु जेपी-लोहिया के चेलों का भी अब सत्ता-सुख पाने का यही मूलमंत्र बन गया है।
मित्रों,इस प्रकार हम पाते हैं कि जेपी और लोहिया आज पहले से भी ज्यादा प्रासंगिक हो चले हैं। आज अगर वे जीवित होते तो यकीनन सिर्फ बातें नहीं कर रहे होते। कोरे सिद्धांत बघारना तो जेपी के स्वभाव में ही नहीं था इसलिए वे आज फिर से आंदोलन खड़ा कर रहे होते। इस बार जेपी इस पुनीत कार्य में अकेले नहीं होते बल्कि लोहिया भी उनके हमकदम होते कांग्रेस के खिलाफ और उससे भी कहीं ज्यादा अपने उन बगुला भगत चेलों के विरूद्ध जिन्होंने उनके आदर्शों को कालांतर में तिलाजलि दे दी और आज उसी कांग्रेस की देशलूटक और देशबेचक संस्कृति का हिस्सा बन गए हैं जिसके खिलाफ कभी उन्होंने आवाज उठाई थी। आज अगर जेपी जीवित होते तो निश्चित रूप से ताल ठोंककर कह रहे होते कि अगर नरेंद्र मोदी सांप्रदायिक और मुलायम-सोनिया-नीतीश धर्मनिरपेक्ष हैं तो मैं भी सांप्रदायिक हूँ।
Posted by
ब्रजकिशोर सिंह
0
comments
Labels: वर्तमान समय में जेपी-लोहिया की प्रासंगिकता-ब्रज की दुनिया
8.10.13
क्या किसी दरिन्दे ने फिर कली नोच दी है
न्याय की पोथी के वो पन्ने सुलगा रहे थे
पूछा क्यों ?तो बोले चुनाव जो आ रहे हैं
इत्मीनान से कर रहे थे वो कश्ती में सुराख
नाव जब डूबी तो दोष जमाने पर मढ़ दिया
सफेद बगुला तो नव निर्माण की बात करता है
मगर समन्दर की मछलियाँ क्यों रोने लगी है
बड़ी जालिम है निरपेक्षता धर्म के नाम पर
मरहम की बात करके वो चीरा लगा देते हैं
कंठी,माला,टोपी सडको पर क्यों अटी पड़ी है
लगता है- जरुर कोई नेता इधर से गुजरा है
आज उसकी झोपडी में चूल्हा जला कैसे
क्या फिर कोई धूर्त सन्यासी बन आया है
हकीकत सिर्फ यही थी कोई जवान शहीद हुआ है
क्यों उदास है आज ये गुलजार गुलिस्ता
क्या किसी दरिन्दे ने फिर कली नोच दी है
Posted by
Unknown
2
comments
7.10.13
सावधान मोदीजी यू टर्न लेना मना है-ब्रज की दुनिया
मित्रों,ऐसा ही कुछ भारत के तत्कालीन लौहपुरूष लालकृष्ण आडवाणी के साथ भी हुआ था। आडवाणी जी ने मुसलमानों के वोट के लालच में पड़कर मो. अली जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष बता दिया था और फिर प्रधानमंत्री बन पाना तो उनके लिए सपना बन ही गया वे भाजपा के और भारत के लौहपुरूष भी नहीं रह गए। दरअसल किसी भी राजनीतिज्ञ की एक छवि होती है और राजनीतिज्ञ जितना ही बड़ा होता है उसके लिए एकदम से यू-टर्न ले पाना उतना ही कठिन और खतरनाक होता है। जाहिर है कि तब आडवाणी जी ऐसा कर पाने में असमर्थ रहे थे और दुर्घटना के शिकार हो गए थे।
मित्रों,मैं भाजपा और तदनुसार भारत के वर्तमान लौहपुरूष श्री नरेन्द्र मोदी जी से निवेदन करना चाहता हूँ कि वे हरगिज वैसी गलती न करें जैसी गलती आडवाणी जी ने तब की थी। उनको अपनी छवि में बदलाव लाना ही है,विकासवादी और प्रगतिशील दिखना ही है तो अपनी गाड़ी की धीरे-धीरे मोड़ें एकदम से यू-टर्न हरगिज न लें। मैंने माना कि शौचालय मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम शौचालय के महत्त्व को उसकी बिना देवालय से तुलना किए बता ही नहीं सकते। शौचालय अगर शारीरिक और सामाजिक गरिमा के लिए जरूरी है तो देवालय मानव की नैतिक और आध्यात्मिक उन्नति और उनको सचमुच का मानव बनाने के लिए अत्यावश्यक हैं इसलिए इन दोनों के बीच तुलना हो ही नहीं सकती। आप ही बताईए कि मात्र दस दिनों के अंतर पर स्वर्ग सिधारे दो महापुरूषों लाल बहादुर शास्त्री और डॉ. होमी जहाँगीर भाभा की महानता की तुलना कोई कैसे कर सकता है या फिर कोई कैसे महात्मा गांधी और मेजर ध्यानचंद के योगदान की तुलना कर सकता है?
मित्रों,मोदी जी को अपनी धर्मनिरपेक्षता को प्रमाणित करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि वे एक आम हिन्दू की तरह जन्मजात धर्मनिरपेक्ष हैं और जो भी जन्मना हिन्दू राजनेता धर्मनिरपेक्षता का ढोल पीटते रहते हैं दरअसल वे शर्मनिरपेक्ष हैं धर्मनिरपेक्ष तो वे हैं ही नहीं। वे तो अपने भ्रष्टाचरण को छिपाने और जेल जाने से बचने भर के लिए फैजी टोपी का दुरूपयोग करते रहे हैं। जहाँ तक सबका मत प्राप्त करने का प्रश्न है तो जिस तरह भारत की जनता वर्तमान काल में अल्पसंख्यकवादी व देशद्रोही राजनेताओं द्वारा विभिन्न हितसमूहों में बाँट दी गई है वैसे में किसी भी दल को सबका मत मिल पाना प्रायः असंभव ही है। ऐसे में कहीं ऐसा न हो कि मोदी जी का हाल एकहिं साधे सब सधे सब साधे सब जाए वाला हो जाए और वे न तो ईधर को रह जाएँ और न ही उधर के बिल्कुल अपने राजनैतिक गुरू आडवाणी जी की तरह। एक और सलाह मैं उनको देना चाहूंगा कि वे जरुरत भर ही बोलें और जितना भी बोलें सोंच-समझकर बोलें तो यह उनके और देश के लिए भी अच्छा होगा क्योंकि हमारा अनुभव बताता है कि हम जितना ही ज्यादा बोलते हैं गलतियों की गुंजाईश उतनी ही ज्यादा होती है और मुँह से निकले हुए शब्द और धनुष से छूटे हुए वाणों को कभी भी वापस नहीं लिया जा सकता।
प्रतिक्रियाएँ: |
शनिवार, 5 अक्तूबर 2013
लालू को सजा न्याय या साजिश
मित्रों,लालूजी के समय सिर्फ पशुपालन विभाग में ही घोटाला हुआ हो ऐसा भी नहीं है। अलकतरा,मेधा,रजिस्ट्री,पुलिसवर्दी और बाढ़ राहत समेत लगभग सारे महकमों में जमकर घोटाले किए गए। क्या ये सारे घोटाले भी किसी विपक्षी दल की साजिश के परिणाम थे? क्या लालूजी के शासन में विपक्ष सरकार चला रहा था? लालूजी के शासनकाल में अपहरण उद्योग बिहार का एकमात्र उद्योग रह गया था और उनके साधू यादव वगैरह रिश्तेदारों की गुंडागर्दी भी चरम पर थी। उनके हाथों कब कौन आईएएस पिट जाएगा तब कोई नहीं जानता था। तो क्या उन अपहरणों और गुंडागर्दी के पीछे भी किसी की साजिश थी? लालू जी की बड़ी बिटिया मीसा भारती की शादी के समय साधू यादव के गुर्गों ने टाटा मोटर्स के शोरूम से सारी गाड़ियाँ और नाला रोड की फर्निचर दुकानों से सारे सोफे जबर्दस्ती उठा लिए थे। तो क्या इस जोर-जबर्दस्ती के पीछे भी किसी शत्रु का षड्यंत्र काम कर रहा था? जब लालूजी रेल मंत्री थे तब इसी साधू यादव ने पटना जंक्शन पर जबरन राजधानी एक्सप्रेस का प्लेटफॉर्म बदलवा दिया था। क्या शिल्पी-गौतम की हत्या भी विपक्ष की साजिश थी? फिर स्वनामधन्य साधू यादव ने सीबीआई को अपने खून का नमूना क्यों नहीं दिया? क्या साधू सिर्फ इसलिए कांग्रेस में शामिल नहीं हुए ताकि वे सोनिया से कहकर इस मामले की फाईल हमेशा-हमेशा के लिए बंद करवा सकें?
मित्रों,अगर इन सारी गड़बड़ियों के पीछे कोई-न-कोई राजनैतिक साजिश थी तो यकीनन भारत के सारे नेता और सारे अपराधी निर्दोष हैं और वे सबके सब किसी-न-किसी गंदी साजिश की शिकार हुए हैं फिर चाहे वो टुंडा हो या भटकल या कोई और विनय शर्मा या राम सिंह। हद हो गई बेईमानी और बेशर्मी की। पहले एक राज्य के समस्त संसाधनों को खा गए और जब उसके लिए मामूली सजा हुई तो लगे साजिश का राग अलापने। उस दिन लालू जी की बुद्धि कौन-सा चारा चरने में लगी थी जब मोहरा फिल्म के निर्माण में चारा घोटाले का पैसा लगाया जा रहा था और जब उनकी आँखों के तारे डॉ. आरके राणा चारा घोटाले के पैसों से अपनी प्रेमिका को बॉलीबुड की स्टार नायिका बनाने का प्रयास कर रहे थे?
मित्रों,लालू के मामले में न्याय हुआ ही नहीं है सरासर अन्याय हुआ है। किसी भी भ्रष्टाचारी को जिसने सरकारी खजाने से भारी गबन किया हो सिर्फ जेल भेज देने भर से न्याय नहीं हो जाता। न्याय तो तब होता जब पूरे लालू परिवार की समस्त चल-अचल संपत्ति जब्त करके घोटाले की क्षतिपूर्ति की जाती। ये भी कोई बात हुई कि पहले दस-बीस पुश्तों के राज भोगने लायक माल खजाने से उड़ा लो और जीवन के अंतकाल में कुछ समय के लिए जेल खट लो। सवाल उठता है कि इससे भ्रष्टाचारी का बिगड़ा क्या? वो तो अकूत धन लूटने के अपने मूल उद्देश्य में कामयाब तो हो ही गया न? इसलिए मैं कहता हूँ कि लालू को और बिहार को न्याय तभी मिलेगा जब अन्य अभियुक्तों सहित उनकी और उनके परिवार की सारी चल-अचल संपत्ति उनसे छीन ली जाएगी और तत्कालीन भारत के सबसे बड़े घोटाले की क्षतिपूर्ति उससे की जाएगी।
Posted by
ब्रजकिशोर सिंह
0
comments
6.10.13
नजरिया
पौधे पर लगा गुलाब पास खड़ी कांटे की झाड़ी पर लगे कांटो को देख खुद पर गर्व
महसूस कर रहा था . गुलाब अपने सौन्दर्य ,कोमलता ,महक ,रंग ,रूप,कुशल माली
के हाथों लालन पालन देख अहंकार से भर गया . उसे दुनिया में खुद की सार्थकता
नजर आने लगी . गुलाब ने मन ही मन सोचा - मेरे कारण ही यह उपवन शोभित है ,
तितलियाँ और भवरे मेरे कारण ही उपवन की सुन्दरता बढाते और नाचते गाते हैं .
मेरे कारण ही देव प्रतिमा सुसज्जित लगती है .जब मैं सुन्दरी के बालो में होता हूँ
तो उसका रूप खिल उठता है .यह सब सोच वह प्रफुल्लित हो गया और कांटे की झाड़ी
का उपहास करते हुए बोला- अरे शूल !तुम कांटो का बोझ ढ़ो कर निरर्थक जिन्दगी
क्यों जी रहे हो ?न तुम सुन्दर हो ,ना सौरभ है ,ना ही तुम कोमल हो ?
कंटीली झाड़ी ने कहा - गुलाब , तुम सिर्फ खुद को देख कर ही ऐसा कह रहे हो मगर
यह भूल रहे हो कि तुम और मैं इस एक ही प्रकृति कि संतान हैं ,तुम्हे यह लग रहा है
कि तेरे अलावा बाकी सब कि जिन्दगी निरर्थक है मगर मुझे लगता है कि हम सभी
सार्थक जिन्दगी जी रहे हैं .
गुलाब हंसा और बोला -बताओ तेरे में क्या सार्थकता है ?
कांटे कि झाड़ी बोली -मेरे कारण कई छोटे छोटे पौधों का जीवन पशुओं से बच जाता है
मुझे देख वे दूर चले जाते हैं ,मेरे कारण तेरी रक्षा भी होती हैं तुम्हे अवांछित हाथों में
जाने से बचाता हूँ ,मेरे से ही सभी किसानों के खेत सुरक्षित हैं और किसान चिंता
रहित हो रात को सुकून से घर लौटते हैं .मेरे सूख जाने पर मैं अपने इन्ही कांटो से
भयंकर सर्द रातों में हर पथिक को गर्मी देता हूँ .यह तो आदमी कि फितरत है कि वो
खुद को महान और दूसरों को तुच्छ समझता है
Posted by
Unknown
0
comments
Labels: bodh katha
सरकारी स्कूल का एक दिन
अखिलेश उपाध्याय/कटनी से
जिले के विद्यालयों की दुर्दशा चरम पर है. पहले कभी आदर्श रहे शिक्षक अब स्वयम कर्तव्यहीन और भ्रष्ट हो चुके है. आज शासकीय विद्या मंदिरों में शिक्षा के आलावा अन्य गतिविधियों में शिक्षक ज्यादा रूचि ले रहे है. अध्यापन में कम रूचि वाले शिक्षक अपने व्यवसाय में लगे है. न पढ़ना जैसे उनका अधिकार बन गया है. ऐसे में जिले एवम तहसील स्तर पर बैठे जिम्मेदार अधिकारी क्या मानिटरिंग करते है ? अगर औचक निरीक्षण करते है तो क्या उन्हें शिक्षा व्यस्था में कोई कमी नहीं दिखती और अगर दिखती है तो फिर सम्बंधित कर्मचारी को सो कास नोटिस या कार्रवाई क्यों नहीं की जाती?
इन्ही सब बातो को ध्यान में रकते हुए पिछले दिनों कांती जिले की परिक्रमा पर निकला तो स्कूलों की दुर्दशा देख स्वयं को न रोक सका और व्यथा फूट पडी जिसके कुछ अंश प्रस्तुत है -
समय की पाबंदी नहीं
सरकारी विद्यालयों में अध्यापनरत शिक्षक समय पर स्कूल पहुचना स्वयम की अवमानना समझते है. चपरासियों और अतिथियों के सहारे विद्यालय चल रहे है. अतिथि शिक्षक समय पर पहुचकर जैसे तैसे स्कूल लगवा तो देते है लेकिन नियमित शिक्षक अपने मन मुताबिक समय पर आते-जाते रहते है. यदि कोई जांचकर्ता अधिकारी पहुच भी गया तो उनके आवेदन की प्रति पहले से लगी देखी जा सकती है.
गाव में कोई नहीं रहना चाहता
एक जमाना था जब शिक्षक गर्मी की छट्टियो तक में गावो में रहा करते थे अब भौतिक्बाद और निरंकुश शासन के चलते तथा अपने जमीर को मरकर जीने वाले अधिकांश शिक्षक पास के शहर में रहते है और वही से विद्यालय आना जाना करते है. अपने बच्चो की पढ़ाई या बेहतर स्वास्थ्य व्यस्थाओ का बहाना बनाकर मुख्यालय में नहीं रहते.
शिक्षा प्रभावित
ऐसे में जैसे तैसे शिक्षक विद्यालय पहुच भी गए तो फिर सामायिक घटनाओं पर चर्चा करके अपने ज्ञान से स्वयम को एवम दूसरो को बौद्धिक विलास करके आनंदित होते है. पैतालीस मिनट के पीरियड में दस मिनट के लिए कक्षा में पहुचते है अगर समय पर गए भी तो फिर साथ के शिक्षक से गप्प लगाकर समय बर्बाद करते देखे जाते है
मरने की फुर्सत नहीं
अधिकांश शिक्षक अध्यापन की अपेक्षा अन्य गतिविधियों में समय बर्बाद करते है. बहुतेरे तो साल भर हाथ में फाईलो का बस्ता ढोते पाए जाते है. और उनका यह काम न केवल शिक्षक कक्ष में बल्कि पीरियड में भी जारी रहता है उन्हें देखकर यह कहावत सटीक लगती है की काम कोडी का नहीं और फुर्सत मरने की नहीं. आखिर बच्चो ने क्या बिगाड़ा है. उच्च वेतन पाकर भी भला क्यों नहीं पढ़ाते?
चमचागिरी में मग्न
विद्यालय से लेकर जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय तक कुछ होसियार और कामचोर शिक्षक अपनी-अपनी सेटिंग में लगे रहते है. जिले के अधिकारियो से मेल-जोल बनाकर विद्यालय में काम न करना तथा स्वयं को विद्यालय का मुखिया समझते है. और हो भी क्यों न क्योकि विद्यालय के मुखिया भी तो सप्ताह में दो-तीन दिन ही दर्शन देते है
नौ दिन चले अढाई कोस
यह सब देख कर्मठ और ईमानदार शिक्षको का मनोबल टूट जाता है कुछ शिक्षक जो दिलोजान से अध्यापन करते है उन्हें लगता है की आखिर वे क्यों अकेले पूरा स्कूल सर पर उठा रहे है और फिर परिणाम होता है की वे शिक्षक भी पढ़ाने से कतराने लगते है या खाना पूर्ती के लिए कक्षा में तो दीखते है लेकिन क्या पढ़ते है यह तो विद्यार्थी भी नहीं बता सकते यह तो वही बात हो गई की नौ दिन चले अढाई कोस
कागजो में दौड़ रहे काम
यदि कहे की शिक्षा व्यस्था में गड़बड़ी के लिए उसी गाव के लोग और स्वयं पालक ही जिम्मेदार है तो यह गलत नहीं होगा क्योकि जब पालक और गाव वाले स्वयं देख रहे है की शिक्षक समय पर नहीं आते और यदि आते भी है तो विद्यालय में गप्प मारते देखे जा सकते है तो फिर वे टोकते क्यों नहीं या उच्च अधिकारियो से शिकायत क्यों नहीं करते? इसीलिए सारी समितिया कागजो में दौड़ रही है और हर समिति की बैठक बताती है की स्कूल बिलकुल दुरुस्त चल रहा है जबकि परिणाम सभी के सामने है
प्रयोगशाला बनी कबाड़
जिले के हाई स्कूल एवम हायर सेकेंडरी स्कूलों की प्रयोग शालाओं की स्थितिया बदतर हो चुकी है अब इनमे सिवाय कबाड़ के कुछ नहीं बचा है. हायर सेकेंडरी में फिजिक्स और केमेस्ट्री की प्रयोग शालाओ में उपकरण नहीं है यदि है तो वर्षो पुराने जंग लगे है. केमिकल सालो पुराना है जो एक्सपायर हो चूका है. परखनली एवम अन्य उपकरण नदारद है ऐसे में भला क्या प्रयोग होते होगे. भविष्य के डाक्टर और ईन्जीनियर फिर भला कैसे तैयार होगे?
कंप्यूटर लेब के दरवाजे कब खुले?
जिले के उच्च एवम उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालयों में कंप्यूटर शिक्षा के नाम पर फीस ली जाती है लेकिन बारहवी क्लास में पढ़ रहे विद्यार्थियों को तो यह तक पता नहीं की कंप्यूटर कक्षा है कहा. कंप्यूटर के लिए शिक्षक भी रखे जाते है लेकिन उनसे दुसरे काम कराये जाते है. कुछ ख़ास शिक्षको की समिति मुखिया द्वारा बनाकर बैठक कागजो में दिखा दी जाती है
पुस्तकालय का लाभ बच्चो को नहीं
विद्यालयों में पुस्तकालय इसलिए बनाये जाते है ताकि बच्चे अच्छी पुसते पढ़ कर ज्ञान प्राप्त कर सके और उनमे पढने के प्रति लगन पैदा गो लेकिन अधिकांश स्कूलों में तो पुस्तकालय कहा है यह विद्यार्थियों को पता ही नहीं है. इन विद्यालयों में पुस्तकालय प्रभारी तो बना दिए गया है लेकिन आज तक किसी बच्चे को पुस्तक पढने के लिए नहीं मिली.
शाला विकास के नाम पर बसूली
शासन के निर्देश है की शाला विकास के नाम पर किसी भी प्रकार की कोई भी शुल्क न बसूली जाये लेकिन जिले के अधिकांश विद्यालय इस नियम का वर्षो से उल्लंघन कर रहे है और धड़ल्ले से शाला विकास के नाम से बच्चो से पैसा ले रहे है. सरकारी विद्यालयों में अधिकांश गरीब तबके के विद्यार्थी पढ़ते है ऐसे में शासन के नियमो की अवहेलना करके शाला विकास के नाम पर पैसा क्यों वसूला जा रहा है? और यदि वसूला भी जा रहा है तो विद्यालय में व्यवस्थाये क्यों चौपट है . कमरों में पंखे क्यों नहीं है. खचाखच भरे कमरों में उबलते बच्चे जैसे-तैसे बैठे रहते है.
टायलेट में ताला
जिले के विद्यालयों में समग्र स्वच्छता अभियान के तहत टायलेट बनाये तो गए लेकिन इनकी दुर्दशा है. यहाँ यदि कोई पेशाब करने पहुच जाए तो या तो वह बेहोश हो जायेगा या जी मिचलाने लगेगा. इन टायलेट में कभी फिनायल और एसिड डालकर सफाई नहीं की जाती. उसपर भी कन्यायो के लिए बनाये गए टायलेट में अधिकांश विद्यालयों में ताला लटकता देखा गया
पढाई के अलावा आज विद्यालयों में सब कुछ हो रहा है. यदि मुखिया से पूछा जाये तो वे कहते है की हमसे इतनी जानकारी पूछी जाती है की हम तो जबाव देते देते थक जाते है. शिक्षको से पूछा जाये तो वे कहेगे की शाशन की योजनाओं को पूरा करने के लिए उनसे भी कागजी कार्रवाही कराई जाती है. ऐसे में भला शिक्षा नीती बनाने वाले क्या यही सोचकर व्यस्था बनाते है की विद्यार्थी पढ़े न ?
Posted by
sahaj express
1 comments
5.10.13
लालू को सजा न्याय या साजिश-ब्रज की दुनिया
मित्रों,लालूजी के समय सिर्फ पशुपालन विभाग में ही घोटाला हुआ हो ऐसा भी नहीं है। अलकतरा,मेधा,रजिस्ट्री,पुलिसवर्दी और बाढ़ राहत समेत लगभग सारे महकमों में जमकर घोटाले किए गए। क्या ये सारे घोटाले भी किसी विपक्षी दल की साजिश के परिणाम थे? क्या लालूजी के शासन में विपक्ष सरकार चला रहा था? लालूजी के शासनकाल में अपहरण उद्योग बिहार का एकमात्र उद्योग रह गया था और उनके साधू यादव वगैरह रिश्तेदारों की गुंडागर्दी भी चरम पर थी। उनके हाथों कब कौन आईएएस पिट जाएगा तब कोई नहीं जानता था। तो क्या उन अपहरणों और गुंडागर्दी के पीछे भी किसी की साजिश थी? लालू जी की बड़ी बिटिया मीसा भारती की शादी के समय साधू यादव के गुर्गों ने टाटा मोटर्स के शोरूम से सारी गाड़ियाँ और नाला रोड की फर्निचर दुकानों से सारे सोफे जबर्दस्ती उठा लिए थे। तो क्या इस जोर-जबर्दस्ती के पीछे भी किसी शत्रु का षड्यंत्र काम कर रहा था? जब लालूजी रेल मंत्री थे तब इसी साधू यादव ने पटना जंक्शन पर जबरन राजधानी एक्सप्रेस का प्लेटफॉर्म बदलवा दिया था। क्या शिल्पी-गौतम की हत्या भी विपक्ष की साजिश थी? फिर स्वनामधन्य साधू यादव ने सीबीआई को अपने खून का नमूना क्यों नहीं दिया? क्या साधू सिर्फ इसलिए कांग्रेस में शामिल नहीं हुए ताकि वे सोनिया से कहकर इस मामले की फाईल हमेशा-हमेशा के लिए बंद करवा सकें?
मित्रों,अगर इन सारी गड़बड़ियों के पीछे कोई-न-कोई राजनैतिक साजिश थी तो यकीनन भारत के सारे नेता और सारे अपराधी निर्दोष हैं और वे सबके सब किसी-न-किसी गंदी साजिश की शिकार हुए हैं फिर चाहे वो टुंडा हो या भटकल या कोई और विनय शर्मा या राम सिंह। हद हो गई बेईमानी और बेशर्मी की। पहले एक राज्य के समस्त संसाधनों को खा गए और जब उसके लिए मामूली सजा हुई तो लगे साजिश का राग अलापने। उस दिन लालू जी की बुद्धि कौन-सा चारा चरने में लगी थी जब मोहरा फिल्म के निर्माण में चारा घोटाले का पैसा लगाया जा रहा था और जब उनकी आँखों के तारे डॉ. आरके राणा चारा घोटाले के पैसों से अपनी प्रेमिका को बॉलीबुड की स्टार नायिका बनाने का प्रयास कर रहे थे?
मित्रों,लालू के मामले में न्याय हुआ ही नहीं है सरासर अन्याय हुआ है। किसी भी भ्रष्टाचारी को जिसने सरकारी खजाने से भारी गबन किया हो सिर्फ जेल भेज देने भर से न्याय नहीं हो जाता। न्याय तो तब होता जब पूरे लालू परिवार की समस्त चल-अचल संपत्ति जब्त करके घोटाले की क्षतिपूर्ति की जाती। ये भी कोई बात हुई कि पहले दस-बीस पुश्तों के राज भोगने लायक माल खजाने से उड़ा लो और जीवन के अंतकाल में कुछ समय के लिए जेल खट लो। सवाल उठता है कि इससे भ्रष्टाचारी का बिगड़ा क्या? वो तो अकूत धन लूटने के अपने मूल उद्देश्य में कामयाब तो हो ही गया न? इसलिए मैं कहता हूँ कि लालू को और बिहार को न्याय तभी मिलेगा जब अन्य अभियुक्तों सहित उनकी और उनके परिवार की सारी चल-अचल संपत्ति उनसे छीन ली जाएगी और तत्कालीन भारत के सबसे बड़े घोटाले की क्षतिपूर्ति उससे की जाएगी।
Posted by
ब्रजकिशोर सिंह
0
comments
4.10.13

,d rjQ okrkZ nwljh rjQ ?kqliSB vksj Qk;fjax! ihB esa [katj ?kksaius dh ;g fQrjr ikfdLrku dh cgqr iqjkuh gSA ;g vc cgl dk eqík ugha jgk fd ikfdLrku vkradokfn;ksa dks iukg nsdj mUgsa gj rjg dh enn djrk gSA lhek ikj ls fgUnqLrku dh ljteha ij vkdj vkradokn dh f?kukSuh gjdrsa djus ds fy;s ?kqliSfB;ksa dh la[;k yxkrkj btkQk fpark dk fo’k; gSA vkradoknh tc ?kqliSB djrs gSa] rks ikfdLrkuh lSfud mudh enn djrs gSaA ;g gekjh “kku vksj lqdwu ds fy;s cgqr gS fd viuh lsuk ,slh gjdrksa dk eqagrksM+ tokc nsrh gSA ?kqliSfB;ksa ls fuiVuk ;dhuu fdlh pqukSrh ls de ugha gSA ;g ,sls xans dhM+s gSa tks iwjs eqYd esa tgj ?kksyus dk dke dj ldrs gSaA vkadM+ksa ij utj Mkysa] rks o’kZ 2012 esa 120 ?kqliSfB, nkf[ky gq, tcfd bl lky ;g la[;k 90 rd igqap pqdh g
Posted by
Nitin Sabrangi
0
comments
Labels: आतंकवादी, घुसपैठ, जनरल विक्रम सिंह, जवाब, मुठभेड़, सेना, सैनिक