दोस्तों आज चवन्नी हम से विदा हो गयी। तुम लोग सोचोगे कि ये क्या 'मुंह्बाजी' है पर सच में पता नहीं क्यों मुझे इसके जाने का बहुत दुःख हुआ।
समय बदलता रहता है, हमारे बड़ों ने शायद 'आने'(वही एक आना,दो आना) को इस तरह याद किया होगा और शायद आज से बीस-पच्चीस साल बाद आने वाली पीढ़ी में से कोई 'हजार के नोट' की समाप्ति पर कुछ दुःख व्यक्त करे। पर मेरे बचपन की औकात तो चवन्नी तक ही सीमित थी,इसलिए मैं इसके सम्मान में कुछ शब्द कहूँगा।
मुझे पंजी,दस्सी और बीस पैसे के जाने का कभी उतना दुःख नहीं हुआ जितना इस छोटी सी गोल चवन्नी के विलुप्त होने का.........................
पूरा पढने के लिए यहाँ पधारें
http://shishirwoike.blogspot.com/2011/06/blog-post_30.html
30.6.11
चवन्नी : मेरे बचपन का पूँजीवाद
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कृष्णावतार
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सआदत हसन मंटो की कहानी : खोल दो
अमृतसर से स्पेशल ट्रेन दोपहर दो बजे चली और आठ घंटों के बाद मुगलपुरा पहुंची। रास्ते में कई आदमी मारे गए। अनेक जख्मी हुए और कुछ इधर-उधर भटक गए।
सुबह दस बजे कैंप की ठंडी जमीन पर जब सिराजुद्दीन ने आंखें खोलीं और अपने चारों तरफ मर्दों, औरतों और बच्चों का एक उमड़ता समुद्र देखा तो उसकी सोचने-समझने की शक्तियां और भी बूढ़ी हो गईं। वह देर तक गंदले आसमान को टकटकी बांधे देखता रहा। यूं ते कैंप में शोर मचा हुआ था, लेकिन बूढ़े सिराजुद्दीन के कान तो जैसे बंद थे। उसे कुछ सुनाई नहीं देता था। कोई उसे देखता तो यह ख्याल करता की वह किसी गहरी नींद में गर्क है, मगर ऐसा नहीं था। उसके होशो-हवास गायब थे। उसका सारा अस्तित्व शून्य में लटका हुआ था।
गंदले आसमान की तरफ बगैर किसी इरादे के देखते-देखते सिराजुद्दीन की निगाहें सूरज से टकराईं। तेज रोशनी उसके अस्तित्व की रग-रग में उतर गई और वह जाग उठा। ऊपर-तले उसके दिमाग में कई तस्वीरें दौड़ गईं-लूट, आग, भागम-भाग, स्टेशन, गोलियां, रात और सकीना...सिराजुद्दीन एकदम उठ खड़ा हुआ और पागलों की तरह उसने चारों तरफ फैले हुए इनसानों के समुद्र को खंगालना शुरु कर दिया।
पूरे तीन घंटे बाद वह ‘सकीना-सकीना’ पुकारता कैंप की खाक छानता रहा, मगर उसे अपनी जवान इकलौती बेटी का कोई पता न मिला। चारों तरफ एक धांधली-सी मची थी। कोई अपना बच्चा ढूंढ रहा था, कोई मां, कोई बीबी और कोई बेटी। सिराजुद्दीन थक-हारकर एक तरफ बैठ गया और मस्तिष्क पर जोर देकर सोचने लगा कि सकीना उससे कब और कहां अलग हुई, लेकिन सोचते-सोचते उसका दिमाग सकीना की मां की लाश पर जम जाता, जिसकी सारी अंतड़ियां बाहर निकली हुईं थीं। उससे आगे वह और कुछ न सोच सका।
सकीना की मां मर चुकी थी। उसने सिराजुद्दीन की आंखों के सामने दम तोड़ा था, लेकिन सकीना कहां थी , जिसके विषय में मां ने मरते हुए कहा था, "मुझे छोड़ दो और सकीना को लेकर जल्दी से यहां से भाग जाओ।"
सकीना उसके साथ ही थी। दोनों नंगे पांव भाग रहे थे। सकीना का दुप्पटा गिर पड़ा था। उसे उठाने के लिए उसने रुकना चाहा था। सकीना ने चिल्लाकर कहा था "अब्बाजी छोड़िए!" लेकिन उसने दुप्पटा उठा लिया था।....यह सोचते-सोचते उसने अपने कोट की उभरी हुई जेब का तरफ देखा और उसमें हाथ डालकर एक कपड़ा निकाला, सकीना का वही दुप्पटा था, लेकिन सकीना कहां थी?
सिराजुद्दीन ने अपने थके हुए दिमाग पर बहुत जोर दिया, मगर वह किसी नतीजे पर न पहुंच सका। क्या वह सकीना को अपने साथ स्टेशन तक ले आया था?- क्या वह उसके साथ ही गाड़ी में सवार थी?- रास्ते में जब गाड़ी रोकी गई थी और बलवाई अंदर घुस आए थे तो क्या वह बेहोश हो गया था, जो वे सकीना को उठा कर ले गए?
सिराजुद्दीन के दिमाग में सवाल ही सवाल थे, जवाब कोई भी नहीं था। उसको हमदर्दी की जरूरत थी, लेकिन चारों तरफ जितने भी इनसान फंसे हुए थे, सबको हमदर्दी की जरूरत थी। सिराजुद्दीन ने रोना चाहा, मगर आंखों ने उसकी मदद न की। आंसू न जाने कहां गायब हो गए थे।
छह रोज बाद जब होश-व-हवास किसी कदर दुरुसत हुए तो सिराजुद्दीन उन लोगों से मिला जो उसकी मदद करने को तैयार थे। आठ नौजवान थे, जिनके पास लाठियां थीं, बंदूकें थीं। सिराजुद्दीन ने उनको लाख-लाख दुआऐं दीं और सकीना का हुलिया बताया, गोरा रंग है और बहुत खूबसूरत है... मुझ पर नहीं अपनी मां पर थी...उम्र सत्रह वर्ष के करीब है।...आंखें बड़ी-बड़ी...बाल स्याह, दाहिने गाल पर मोटा सा तिल...मेरी इकलौती लड़की है। ढूंढ लाओ, खुदा तुम्हारा भला करेगा।
रजाकार नौजवानों ने बड़े जज्बे के साथ बूढे¸ सिराजुद्दीन को यकीन दिलाया कि अगर उसकी बेटी जिंदा हुई तो चंद ही दिनों में उसके पास होगी।
आठों नौजवानों ने कोशिश की। जान हथेली पर रखकर वे अमृतसर गए। कई मर्दों और कई बच्चों को निकाल-निकालकर उन्होंने सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया। दस रोज गुजर गए, मगर उन्हें सकीना न मिली।
एक रोज इसी सेवा के लिए लारी पर अमृतसर जा रहे थे कि छहररा के पास सड़क पर उन्हें एक लड़की दिखाई दी। लारी की आवाज सुनकर वह बिदकी और भागना शुरू कर दिया। रजाकारों ने मोटर रोकी और सबके-सब उसके पीछे भागे। एक खेत में उन्होंने लड़की को पकड़ लिया। देखा, तो बहुत खूबसूरत थी। दाहिने गाल पर मोटा तिल था। एक लड़के ने उससे कहा, घबराओ नहीं-क्या तुम्हारा नाम सकीना है?
लड़की का रंग और भी जर्द हो गया। उसने कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन जब तमाम लड़कों ने उसे दम-दिलासा दिया तो उसकी दहशत दूर हुई और उसने मान लिया कि वो सराजुद्दीन की बेटी सकीना है।
आठ रजाकार नौजवानों ने हर तरह से सकीना की दिलजोई की। उसे खाना खिलाया, दूध पिलाया और लारी में बैठा दिया। एक ने अपना कोट उतारकर उसे दे दिया, क्योंकि दुपट्टा न होने के कारण वह बहुत उलझन महसूस कर रही थी और बार-बार बांहों से अपने सीने को ढकने की कोशिश में लगी हुई थी।
कई दिन गुजर गए- सिराजुद्दीन को सकीना की कोई खबर न मिली। वह दिन-भर विभिन्न कैंपों और दफ्तरों के चक्कर काटता रहता, लेकिन कहीं भी उसकी बेटी का पता न चला। रात को वह बहुत देर तक उन रजाकार नौजवानों की कामयाबी के लिए दुआएं मांगता रहता, जिन्होंने उसे यकीन दिलाया था कि अगर सकीना जिंदा हुई तो चंद दिनों में ही उसे ढूंढ निकालेंगे।
एक रोज सिराजुद्दीन ने कैंप में उन नौजवान रजाकारों को देखा। लारी में बैठे थे। सिराजुद्दीन भागा-भागा उनके पास गया। लारी चलने ही वाली थी कि उसने पूछा-बेटा, मेरी सकीना का पता चला?
सबने एक जवाब होकर कहा, चल जाएगा, चल जाएगा। और लारी चला दी। सिराजुद्दीन ने एक बार फिर उन नौजवानों की कामयाबी की दुआ मांगी और उसका जी किसी कदर हलका हो गया।
शाम को करीब कैंप में जहां सिराजुद्दीन बैठा था, उसके पास ही कुछ गड़बड़-सी हुई। चार आदमी कुछ उठाकर ला रहे थे। उसने मालूम किया तो पता चला कि एक लड़की रेलवे लाइन के पास बेहोश पड़ी थी। लोग उसे उठाकर लाए हैं। सिराजुद्दीन उनके पीछे हो लिया। लोगों ने लड़की को अस्पताल वालों के सुपुर्द किया और चले गए।
कुछ देर वह ऐसे ही अस्पताल के बाहर गड़े हुए लकड़ी के खंबे के साथ लगकर खड़ा रहा। फिर आहिस्ता-आहिस्ता अंदर चला गया। कमरे में कोई नहीं था। एक स्ट्रेचर था, जिस पर एक लाश पड़ी थी। सिराजुद्दीन छोटे-छोटे कदम उठाता उसकी तरफ बढ़ा। कमरे में अचानक रोशनी हुई। सिराजुद्दीन ने लाश के जर्द चेहरे पर चमकता हुआ तिल देखा और चिल्लाया-सकीना
डॉक्टर, जिसने कमरे में रोशनी की थी, ने सिराजुद्दीन से पूछा, क्या है?
सिराजुद्दीन के हलक से सिर्फ इस कदर निकल सका, जी मैं...जी मैं...इसका बाप हूं।
डॉक्टर ने स्ट्रेचर पर पड़ी हुई लाश की नब्ज टटोली और सिराजुद्दीन से कहा, खिड़की खोल दो।
सकीना के मुद्रा जिस्म में जुंबिश हुई। बेजान हाथों से उसने इज़ारबंद खोला और सलवार नीचे सरका दी। बूढ़ा सिराजुद्दीन खुशी से चिल्लाया, जिंदा है-मेरी बेटी जिंदा है-। डॉक्टर सिर से पैर तक पसीने में गर्क हो गया।
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मुंगेरीलाल के बदनसीब सपने-ब्रज की दुनिया
मित्रों,आजकल अपने मुंगेरी भाई बहुत परेशान हैं.काजीजी तो सिर्फ शहर की चिंता में ही दुबले हो गए थे,मुंगेरी भाई के पास तो चिंताओं का अम्बार है.एक चिंता अभी खत्म भी नहीं हुई होती है कि दूसरी बेचारे के छिलपट मगज पर आकर सवार हो जाती है.चिंता से चतुराई का घटना सर्वज्ञात तथ्य है सो बेचारे चतुर से चतुरी चमार बनते जा रहे हैं.क्या करें और क्या न करें;क्या खरीदें और क्या न खरीदें;आज सिर्फ आम आदमी की ही समस्या नहीं है बल्कि इससे सपनों की दुनिया के बेताज बादशाह भी त्रस्त हैं.
मित्रों,मुंगेरी भाई ने एक लम्बे समय से दाल का स्वाद नहीं चखा.और भी ऐसी कई खाने-पीने की चीजें हैं जो इस कृशकाय प्राणी की पहुँच से दूर हो चुकी हैं.मुंगेरी भाई अब चिंतित हैं कि पहले से ही मनमाना भाड़ा वसूलने वाले निजी वाहन मालिक अब न जाने कितना किराया बढ़ा दें.कहीं ऐसा न हो कि अब डीजल गाड़ियों की यात्रा भी दाल-सब्जियों की तरह मुगेरी भाई की पहुँच से दूर हो जाए.फिर बेचारे कहाँ तक बिना जूता-चप्पल वाले पैरों को घसीटते चलेंगे?बात इतनी ही हो तो खुदा खैर करे.डीजल का दाम बढ़ने का मतलब है मालवाहक के किराये में भी मनमानी बढ़ोतरी.फिर बेचारे किस-किस वस्तु के उपयोग का त्याग करते चलेंगे.अगर इसी तरह ज़िन्दगी के लिए जरुरी वस्तुओं का एक-एक कर त्याग करते रहे तो बहुत जल्दी जिंदगी ही उनका त्याग कर देगी.
मित्रों,मुंगेरी भाई ने कई साल पहले बिजली का कनेक्शन लगवाने के लिए बिहार राज्य विद्युत् बोर्ड में आवेदन किया था.मीटर भी जमा करवाया था लेकिन कई साल बीत जाने के बाद भी बेचारे को विद्युत् बोर्ड के महा (ना) लायक कर्मचारियों के शुभ दर्शन नहीं प्राप्त हुए हैं.सो बेचारे रात में ढिबरी जलाते हैं और इस तरह तनहाई में रात को धोखा देने का प्रयास करते हैं.लेकिन अब क्या होगा रामा रे?अब राशन के साथ-साथ किरासन भी बेचारे की पहुँच से बाहर होती जा रही है.ढंग से उनका नाम तो बीपीएल सूची में होना चाहिए था लेकिन गाँव के मुआं निमुंछिये मास्टरों की भ्रष्ट करतूतों के कारण बेचारे एपीएल में पड़े हुए हैं.ऐसा भी नहीं है कि उन्होंने इसे सुधरवाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया लेकिन कई वर्षों तक प्रखंड कार्यालय के चक्कर काटने के बाद भी जब काम नहीं बना तो छोड़ दिया खुद को खुदा के भरोसे.
मित्रों,मुंगेरी भाई को रसोई गैस का मूल्य बढ़ने से कोई फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि श्रीमान के पास कभी इतना पैसा नहीं रहा कि जगे हुए या सोए हुए में गैस कनेक्शन लेने की सोंचते भी.वैसे वे इसका दाम बढ़ने से जनता को होनेवाली दुश्वारियों से पूरी तरह अनजान हों ऐसा भी नहीं है.अपने दिल से जानिए औरों के दिल का हाल कहावत के अनुसार वे चिंतित हैं कि गैस कनेक्शन रखने वालों का क्या होगा.इस महंगाई में वैसे ही जीवन-रक्षा कठिन है;अब और भी मुश्किल हो जाएगी.
मित्रों,मुंगेरी भाई हर चुनाव में नियमित तौर पर मतदान करते आ रहे हैं;इस उम्मीद में कि इस बार तो बदलाव आकर रहेगा.नेताजी ने अपने मुंह से जो कहा है.आज उन्होंने जब अख़बारों में पढ़ा कि शरद पवार नाम के एक सम्मानित व वरिष्ठ मंत्री ने खुद ही चीनी का दाम बढ़वा दिया तो उन्हें खुद के आदतन मतदान करने पर शर्म आने लगी और गुस्सा भी.आजादी के समय से ही बेचारे सपने देखते रहे हैं.आपने उन्हें दूरदर्शन पर सपने देखते हुए देखा भी है.लेकिन लखना डाकू को पकड़ने का उनका सपना तो उनकी सपनीली दुनिया का काफी छोटा भाग है.उन्होंने कई बार देश के बदलने के सपने अहले सुबह में देखे.इस उम्मीद में कि लोग कहते हैं कि सुबह का सपना सच हो जाता है परन्तु सब व्यर्थ.इसलिए मुंगेरी भाई नहीं चाहते अब कोई भी सपना देखना किन्तु यह तो ऐसी शह है जिस पर उनका कोई नियंत्रण नहीं.स्वर्गीय पत्नी के प्यार में उन्होंने क्या-क्या नहीं छोड़ा?अब बेचारे अफीम और शराब को हाथ तक नहीं लगाते लेकिन पत्नी के लाख मना करने पर भी सपना देखना नहीं छोड़ पाए.अभी भी एक सपना देखने में लगे हैं.वे देख रहे हैं कि देश में राम-राज्य आ गया है.किसी को भी किसी प्रकार का दुःख नहीं है.सबके सब तन-मन से पवित्र हो गए हैं और उनका यानि मुंगेरी भाई का नाम बीपीएल में जुड़ गया है.मंत्रियों-अफसरों-भ्रष्ट कर्मचारियों ने अपनी सारी संपत्ति जनता में वितरित कर दी है और खुद दांतों के बीच में तिनका दबाकर वन को प्रस्थान कर गए हैं.चारों तरफ धर्म की ध्वजा फहराने लगी है.
Posted by ब्रजकिशोर सिंह 0 comments
Ganpati ji Hamare Ghar Slideshow
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Posted by गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर 0 comments
पावली की पदोन्नति । Part- 1.
`जय-जय पावली परमात्मन्..!! जय-जय हिन्दुस्तान..!! मेरा भारत महान?`
Posted by Markand Dave 0 comments
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parwaz परवाज़: कब तक तारे जमीन पर लाते रहेंगे या लगान चुकाते रहें...
parwaz परवाज़: कब तक तारे जमीन पर लाते रहेंगे या लगान चुकाते रहें...: "भाग डी. के बोस : डैडी मुझसे बोला तू गलती है मेरी ... आजकल युवाओं की जबान पर चढ़ा देल्ली बेल्ली का ये गाना सुर्ख़ियों में है.और इसको सुर्ख..."
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parwaz परवाज़: ढूंढो रे साजना वो एक चुइंग-गम वाला
parwaz परवाज़: ढूंढो रे साजना वो एक चुइंग-गम वाला: "आज की ताज़ा खबर वित्त मंत्रालय में जासूसी ...सुबह से हर टी वी चेनल पर यही खबर सुनाई दे रही है सही भी है जब कांग्रेस के धुरंदर नेता प्रणव मुख..."
Posted by kanu..... 1 comments
parwaz परवाज़: माँ मुझे घर याद आता है...
parwaz परवाज़: माँ मुझे घर याद आता है...: "माँ मुझे घर याद आता है... हर ख़ुशी में हर गम में प्यार ज्यादा हो चाहे कम में माँ मुझे घर याद आता है अब पता चला मुझे क्यों भर आती थी आँख..."
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parwaz परवाज़: रेव पार्टी :अब तो शर्म भी शर्माने लगी है
parwaz परवाज़: रेव पार्टी :अब तो शर्म भी शर्माने लगी है: "अखबारों के वो क्लासिफाइड विज्ञापन तो आपको याद ही होंगे ' जिंदगी में मौज मस्ती के लिए हमसे जुड़े २० हजार से ३० हजार रूपए महिना कमाए संपर्क कर..."
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"माँ धूमावती":-(श्रद्धा और प्रेम की भूखी)
Posted by राज शिवम 2 comments
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महंगाई व प्रधानमंत्री के वायदे
प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने मार्च 2012 तक महंगाई दर में 6 प्रतिशत की कमी होने का एक बार फिर दावा किया है। दरअसल, प्रधानमंत्री जी प्रिंट मीडिया के कुछ प्रमुख संपादकों से बुधवार को मुखातिब हुए। यहां उन्होंने भ्रष्टाचार, लोकपाल बिल समेत अन्ना हजारे, बाबा रामदेव के आंदोलन के संबंध में अपनी बात रखी। साथ ही खुद को कमजोर प्रधानमंत्री कहे जाने को एक सिरे से खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि यह विपक्ष का दुष्प्रचार है, जबकि वे हर संभव कोशिश कर रहे हैं कि देश में कैसे विकास दर को बढ़ाया जाए और देश की प्रमुख समस्या भ्रष्टाचार तथा महंगाई से निपटा जाए।
संपादकों से हुई चर्चा में अन्य मुद्दों को फिलहाल छोडकऱ, महंगाई जैसी देश की गंभीर समस्या पर मंथन करना इसलिए भी जरूरी है कि प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह, बार-बार वादे पर वादे करते जा रहे हैं और महंगाई दर कम होने के बजाय बढ़ती जा रही है। ऐसा कोई माह नहीं जाता, जब कोई आवश्यक वस्तुओं के दाम में बढ़ोतरी नहीं होती और उसके बाद प्रधानमंत्री यही कहते नजर आते हैं कि महंगाई पर कुछ ही महीनों में लगाम ली जाएगी या फिर महंगाई दर में कमी आ जाएगी। मगर अफसोस, सरकार महंगाई की दर घटाने में असफल रही है तथा उल्टे महंगाई दर हर बार बढ़ती जा रही है। अब अकेले पेट्रोल के ही दाम को ले लीजिए, बीते नौ माह में 9 बार जहां कीमत बढ़ाई जा चुकी हैं, वहीं यूपीए-2 के बीते दो बरस में 23 बार बेहिचक पेट्रोल की दर में इजाफा किया गया है।
अब बात करते हैं, प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के महंगाई कम करने संबंधी वायदों की। अभी साल भर में प्रधानमंत्री ने ऐसे पांच अवसरों पर महंगाई पर काबू पाने के दावे किए थे, जिसकी पोल उस मियाद के खत्म होते ही खुल जाती है। सबसे पहले 15 अगस्त 2010 को दिल्ली के लाल किला की प्राचीर से उन्होंने अपने भाषण में महंगाई कुछ ही महीनों में कम करने का हवाला दिया था, इस समय लोगों के मन में विश्वास जगा कि चलो अब तो महंगाई डायन के डंक से मुक्ति मिलेगी, किन्तु उन्हें कहां पता था कि वह दावे खोखले ही साबित होंगे और सरकार की महंगाई रोकने की चाल, महज ढाक के तीन पात रह जाएगी।
दूसरी बार प्रधानमंत्री डा. सिंह ने 24 मई 2010 को महंगाई दर को 5-6 प्रतिशत तक लाने की बात कहते हुए दिसंबर 2010 तक हर हाल में महंगाई पर काबू पाने का आश्वासन, देश की अवाम को दिया था, मगर यह आश्वासन भी सिफर ही रहा और मध्यमवर्गीय परिवारों को महंगाई से झटके पर झटके लगते रहे।
तीसरी बार उन्होंने 23 नवंबर 2010 को देश की जनता को भरोसा दिलाते हुए महंगाई से निपटने की मंशा जाहिर की, वह भी कुछ महीनों बाद धरी की धरी रह गई। प्रधानमंत्री का यह डेटलाइन भी अधूरी रही, क्योंकि महंगाई रोकने सरकार पूरी तरह अक्षम साबित हुई और महंगाई दर में कई गुना वृद्धि हो गई।
चौथी बार प्रधानमंत्री डा. सिंह ने 20 दिसंबर 2010 को एक नई डेटलाइन तय की और मार्च 2011 तक महंगाई दर को 5 प्रतिशत तक लाने की ऐसी मंशा जताई कि देश की जनता को लगने लगा, इस बार तो सरकार ने महंगाई से निपटने पूरी कमर कस ली है, लेकिन वही पुराने हालात रहे और अर्थशास्त्री माने जाने वाले प्रधानमंत्री, महंगाई रोकने लाचार नजर आए और सरकार की ओर से कहा गया, जो वे अब तक कहते आ रहे हैं कि महंगाई, केवल भारत की समस्या नहीं है, बल्कि यह अंतर्राष्ट्रीय समस्या है, मगर सवाल यह है कि जब सरकार ऐसी सोचती है तो देश की जनता को बरगलाने की कोशिश क्यों करती है ? क्यों, सरकार महंगाई रोकने बार-बार एक नई डेटलाइन तय करती है ? यह बातें सरकार को स्पष्ट करना चाहिए। देश की सवा अरब जनता को सरकार की नीति के बारे में जानने का पूरा हक है।
अब पांचवीं बार प्रधानमंत्री जी ने पिं्रट मीडिया के संपादकों से चर्चा में उस बात को एक बार फिर दोहराई है, जिसे वे पिछले साल भर से कहते आ रहे हैं और महंगाई दर में कमी लाने एक नई डेटलाइन तैयार की है, वो है मार्च 2012। इस तरह महंगाई दर 6 प्रतिशत तक लाने की दुहाई दी गई है। यहां सवाल सरकार के समक्ष यही है कि आखिर महंगाई कैसे रूक पाएगी ? क्या इस बार प्रधानमंत्री अपने दावे पर खरे उतर पाएंगे ? क्या इस बार भी उनके दावे की हवा निकल जाएगी ? और कई बरसों से जारी महंगाई की समस्या जस की तस बनी रहेगी ? यह सब सवाल, देश की हर वो अवाम जानना चाह रही है, जो महंगाई की समस्या की मार से कराह रही है।
केन्द्र की यूपीए सरकार की इस दूसरी पारी में ही दर्जनों बार अलग-अलग वस्तुओं के दाम में बढ़ोतरी की गई है, जिससे आम लोग महंगाई की समस्या से दो-चार हो रहे हैं। सरकार द्वारा जिस तरह दावे पर दावे पर किए जा रहे हैं, वह दावे केवल कोरे ही साबित होते आ रहे हैं, इससे सरकार की आर्थिक नीति पर सवालिया निशान भी लग रहा है। प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने देश को महंगाई से निपटने पांचवीं बार भरोसा दिलाया है, अब इसमें उनकी नीति कितनी कारगर साबित होती है ? यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा, लेकिन इस बार प्रधानमंत्री के दावे खोखले साबित हुए तो देश की अवाम का भरोसा इस सरकार से उठ ही जाएगा ? क्योंकि आखिर कब तक देश, उस ख्याली पुलाव के सहारे जीती रहेगी, जो केवल आश्वासनों पर टिका हुआ है। कहीं देश की जनता को यह न लगे कि प्रधानमंत्री जी के वायदे, कोरे ही नहीं, बल्कि झूठे होते हैं।
Posted by jindaginama 1 comments
29.6.11
सैंया बने भैया
मेरठ के आरती-नितीश प्रकरण ने रिश्तों की एक नई परिभाषा की व्युत्पत्ति की। रिश्ता, सात्विक भावनाओं व निश्छलता का। आरती ने सत्य के आँचल की छांव में अपने और विनीत के सम्बन्ध को नितीश के सम्मुख स्वीकार किया और नितिश ने भी सन्तुलित व्यक्तित्व का परिचय देते हुए आरती के साथ एक नवीन पवित्र रिश्ते की डोर बाँधी। समाजशास्त्री इस नव-परिवर्तन को स्वीकार न कर सामाजिक कुप्रभाव की संभावनाएँ व्यक्त कर रहे हैं। परन्तु पिछले कुछ आंकडों का विश्लेषण करने पर ऑनर किलिंग की बढ़ती घटनाओं का यह समाधान तलाशने की बाध्यता ऑनर किलिंग के जनकों ने ही उत्पन्न की है। बेटियों को शिक्षित कर उन्हंे प्रत्येक अधिकार प्रदान करने की रीत में एक कड़ी अभी भी टूटी हुई है, उन्हंे अपने योग्य जीवन साथी के चयन की स्वतंत्रता। यही कारण है कि आरती को माता-पिता की आज्ञा का अनुसरण करते हुए नितीश का हमसफर बनने के लिए विवश होना पड़ा। परन्तु क्या इस मजबूरी के रिश्ते का बोझ वे दोनों जीवन पर्यन्त ढो पाते? क्या एक-दूसरे के प्रति निष्ठा व सम्पर्ण की आस्था उनमें उत्पन्न हो पाती? ऐसी परिस्थितियों में नितिश का यह निर्णय एक मिसाल है। उसके सुलझे मस्तिष्क व व्यापक सोच का स्वागत किया जाना चाहिए। और अभिभावकों को विचारना चाहिए कि वर्तमान में तलाक, हत्या, भाग जाना, ऑनर किलिंग जैसी बढ़ती घटनाआंे में वृद्धि न हो इसके लिए बच्चों के मित्र बन उनके करियर के साथ-साथ विवाह सरीखे विषयों पर भी खुलकर बात करें और उनमें स्वयं के हित-अहित पर मनन करने की योग्यता विकसित करें। साथ ही अभिभावकों को भी व्यवहारगत जड़ता का त्याग करते हुए बच्चों के सही निर्णयों को सहर्ष स्वीकार कर शुष्क सम्बन्धों को जीवन्त करने का प्रयास करना चाहिए। परिवर्तन ही संसार का नियम है और पारस्परिक सामंजस्य इस नवीन परिवर्तन को एक सार्थक परिणाम प्रदान कर सकता है।
Posted by Neeraj Tomer 2 comments
ओमेगा-6 वसा अम्ल की वेदना सुन कर मैंने उनका शपथ पत्र लिखा
Posted by Shri Sitaram Rasoi 2 comments
टेढ़ी नजर
राजकुमार साहू, जांजगीर, छत्तीसगढ़
1. समारू - प्रधानमंत्री ने प्रिंट मीडिया के प्रमुख संपादकों से चर्चा की।
पहारू - दिखाना चाह रहे हैं कि मेरी उछल-कूद में कोई कमी है तो बताओ।
2. समारू - खटारा गाड़ी में शहीद के शव मामले में छग के मुख्यमंत्री की सफाई।
पहारू - जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई की जहमत कहां उठा सकते हैं।
3. समारू - आरबीआई ने चवन्नी के सिक्के को बंद कर दिया।
पहारू - अब कोई चवन्नी छाप नहीं होगा।
4. समारू - प्रधानमंत्री ने साल भर में पांचवीं बार महंगाई कम होने का दावा किया है।
पहारू - झूठा तेरा वादा....झूठा तेरा वादा... मारी गई जनता...।
5. समारू - छग के आरटीओ में कामबंद करने की चेतावनी दी गई है।
पहारू - कर्मचारी नेता के खिलाफ कार्रवाई तो महंगी पड़ेगी, ही।
Posted by jindaginama 0 comments
साथ मरने की कसम खा लो जो खाई जाए..........
प्यार सेहरा में रहे या की गुलिस्ताँ में रहे,
प्यार की तान ही सुननी है सुनाई जाए........
चार सू दिखती हैं लाशें यहाँ चलती फिरती,
जो पुर सुकून लगे शैय वो ही दिखाई जाए.........
वाद रुखसत के मेरी मैयत पर,
बड़ी महंगी है कोई चादर ना चड़ाई जाए.......
राह से भटके है जो भाई अपने,
राह पुर अमन की उनको है बताई जाए........
साथ जीने की कसम खाना बड़ा मुश्किल है,
साथ मरने की कसम खा लो जो खाई जाए..........
सरहदों के पार भी रहते तो इन्सां ही हैं,
हुक्मरानों को सिखाओ जो ये बात सिखाई जाए...........
पैसा जन्नत में किसी काम नही आयेगा,
हरेक सौदे पे कमिशन क्यों फिर खाई जाये ...........
विश्व गुरु जबकि रहा दुनियां में मेरा हिन्दोस्तां,
प्यार ओ तहजीब की अलख फिर से जगाई जाए........
संस्कारों पे अपने जो चलेंगे हम सब,
खून की नदी ना फिर धरती पे बहाई जाये.......
हाल बेहाल हुआ नाशाद वतन "दीवाना",
आओ मिल जुल के कोई बात बनाई जाए.........
Posted by भारत एकता 0 comments
टेढ़ी नजर -
राजकुमार साहू, जांजगीर, छत्तीसगढ़
1. समारू - महंगाई ने आर्थिक बजट बिगाड़ दिया है।
पहारू - ‘आम आदमी के साथ हाथ‘ वाली सरकार पर और विश्वास करो।
2. समारू - बाबा रामदेव ने कहा है कि वे कायर नहीं है।
पहारू - सच है, नहीं भागते तो पुलिस का कोपभाजन बनना पड़ जाता।
3. समारू - छग कांग्रेस में नए जिलाध्यक्षों की घोषणा जल्द होने वाली है।
पहारू - फिर क्या है, कलह भी जल्द आने वाली है।
4. समारू - भाजपा के मध्यप्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा ने बढ़ती महंगाई को लेकर मौत मांगी है।
पहारू - देश में भला इससे बढ़कर राजनीति हो सकती है।
5. समारू - छग के रायगढ़ में शहीद के शव को कचरा वाहन में लाया गया।
पहारू - किसी मंत्री के साथ ऐसा होता तो पहाड़ सिर पर उठा लेते।
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अन्ना हजारे को अक्ल आ गई ठिकाने
इतना ही नहीं, जनता के इस सबसे बड़े हमदर्द की हालत देखिए कि कल तक वे जनता को मालिक और चुने हुए प्रतिनिधियों को जनता का नौकर करार दे रहे थे, आज उन्हीं नौकरों की दहलीज पर मालिकों के सरदार सिर झुका रहे हैं। तभी तो कहते है कि राजनीति इतनी कुत्ती चीज है कि आदमी जिसका मुंह भी देखना पसंद करता, उसी का पिछवाड़ा देखना पड़ जाता है। ये कहावत भी सार्थक होती दिखाई दे रही है कि वक्त पडऩे पर गधे को भी बाप बनाना पड़ता है।
आइये, अब तस्वीर का एक और रुख देख लें। जाहिर सी बात है कि विपक्षी नेताओं से मिलने के पीछे अन्ना का मकसद ये है कि यदि उनका सहयोग मिल गया संसद में उनकी आवाज और बुलंदी के साथ उठेगी। मगर अन्ना जी गलतफहमी में हैं। माना कि सरकार को अस्थिर करने के लिए, कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाने के लिए विपक्षी नेता अन्ना को चने के झाड़ पर चढ़ा रहे हैं, मगर जब बात सांसदों को लोकपाल के दायरे में लाने की आएगी तो भला कौन अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारेगा। यह तो गनीमत है कि अन्ना जी जिस मुहिम को चला रहे हैं, उसकी वजह से उनकी जनता में इज्जत है, वरना वे ही राजनीतिज्ञ बदले में उनको भी दुत्कार कर भगा सकते थे कि पहले सभी को गाली देते थे, अब हमारे पास क्यों आए हो?
जरा अन्ना की भाषा और शैली पर भी चर्चा कर लें। सभी सियासी लोगों को भ्रष्ट बताने वाले अन्ना हजारे खुद को ऐसे समझ रहे हैं कि वे तो जमीन से दो फीट ऊपर हैं। माना कि सरकार के मंत्री समूह से लोकपाल बिल के मसौदे पर मतभेद है, मगर इसका अर्थ ये भी नहीं कि आप चाहे जिसे जिस तरह से दुत्कार दें। खुद को गांधीवादी मानने वाले और मौजूदा दौर का महात्मा गांधी बताए जाने पर फूल कर कुप्पा होने वाले अन्ना हजारे को क्या ये ख्याल है कि गांधीजी कभी घटिया भाषा का इस्तेमाल नहीं करते थे। उनके सत्य-आग्रह में भाषा का संयम भी था। यदि कभी संयम खोया भी होगा तो उनकी मुहिम अंग्रेजों के खिलाफ थी, इस कारण उसे जायज ठहराया जाता सकता है। मगर अन्ना ने तो मौजूदा सरकार को काले अंग्रेजों की ही सरकार बता दिया। ऐसा कह के उन्होंने अनजाने में पूरी जनता को काले अंग्रेज करार दे दिया है। जब ये सरकार हमारी है और हमने ही बनाई है तो इसका मतलब ये हुआ कि हम सब भी काले अंग्रेज हैं। मौजूदा सरकार कोई ब्रिटेन से नहीं आई है, हमने ही लोकतांत्रिक तरीके से चुनी है। हम पर थोपी हुई नहीं है। कल हमें पसंद नहीं आएगी तो हम दूसरों को मौका दे देंगे। पहले भी दे ही चुके हैं। सरकार से मतभेद तो हो सकता है, मगर उसके चलते उसे अंगे्रज करार देना साबित करता है कि अन्ना दंभ में आ कर भाषा का संयम भी खो बैठे हैं। असल बात तो ये है कि वे दूसरी आजादी के नाम पर जाने-अनजाने देश में अराजकता का माहौल बना रहे हैं।
वे पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को ईमानदार बता कर इज्जत दे रहे थे, मगर अब जब बात नहीं बनी तो उन्हें ही सोनिया की कठपुतली करार दे रहे हैं। हालांकि यह सर्वविदित है कि सरकार का रिमोट कंट्रोल सत्तारुढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष सोनिया गांधी के हाथ में है, उसमें ऐतराज भी क्या है, फिर गठबंधन का अध्यक्ष होने का मतलब ही क्या है, मगर अन्ना को अब जा कर समझ में आया है। तभी तो कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तो सीधे और ईमानदार आदमी हैं लेकिन रिमोट कंट्रोल (सोनिया गांधी) समस्याएं पैदा कर रहा है। कल उन्हें आरएसएस का मुखौटा बताए जाने पर सोनिया से ही उम्मीद कर रहे थे कि वह कांग्रेसियों को ऐसा कहने से रोकें और आज उसी सोनिया से नाउम्मीद हो गए।
बहरहाल, मुद्दा ये है कि उन्हें अपना ड्राफ्ट किया हुआ लोकपाल बिल ज्यादा अच्छा लगता है, और हो भी सकता है कि वही अच्छा हो, मगर उसे तय तो संसद ही करेगी। कम से कम अन्ना एंड कंपनी तो नहीं। यदि संसद नहीं मानती तो उसका कोई चारा नहीं है। ऐसे में यदि वे 16 अगस्त से फिर अनशन करते हैं तो वह संसद के खिलाफ कहलाएगा। सरकार की ओर से तो इशारा भी कर दिया गया है। उनके अनशन के हश्र पर ही टिप्पणियां आने लगी हैं। खैर, आगे-आगे देखिए होता है क्या?
आखिर में एक बात और। जब भी इस प्रकार अन्ना अथवा बाबा के बारे में तर्कपूर्ण आलोचना की जाती है तो उनके समर्थकों को बहुत मिर्ची लगती है। उन्हें लगता है कि लिखने वाला या तो कांग्रेसी है या फिर भ्रष्टाचार का समर्थक या फिर देशद्रोही। जिस मीडिया के सहारे आज देश में हलचल पैदा करने की स्थिति में आए हैं, उसी मीडिया को वे बिका हुआ कहने से भी नहीं चूकते। ऐसा प्रतीता होता कि अब केवल अन्ना व बाबा के समर्थक ही देशभक्त रह गए हैं। उनसे वैचारिक नाइत्तफाक रखने वालों को देश से कोई लेना-देना नहीं है।
-तेजवानी गिरधर, अजमेर
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निरमा बाबा की चौथी आंख
. अष्टावक्र
एक दिन सुबह सुबह पत्नी ने मेरे हाथो से झाड़ू लेकर गर्मागरम चाय की प्याली रख दी । आसन्न खतरे को भांप कर मै सर्तक हो गया । श्रीमती ने कहा सुनो आज कल मेरा समय खराब चल रहा है क्यो न किसी अच्छे बाबा की शरण मे चलें | मै मन ही मन भुनभुनाया झाड़ू पोछा मै कर रहा हूं और समय इनका खराब चल रहा है । श्रीमती ने निरमा बाबा की जानकारी दी बड़े पहुंचे हुये बाबा हैं टीवी चैनलो मे छाये रहते हैं । मैने बहुत समझाया कि बाबा लोगो का चक्कर बेकार है भाई केवल टोपी देते हैं अरे उनमे ऐसी शक्तियां होती तो खुद का भला पहले करते काहे गरीबो से पैसे लेने की दरकार होती और ये टीवी वाले भी इनको नैतिकता से कोई लेना देना थोड़े है जिससे पैसा मिला उसको दिखा दिया । लेकिन समझाना व्यर्थ था पूरे तीन हजार रूपये बाबा के बैंक खाते मे जमा करके बाबा से उनके एक शिविर मे मिलने का नंबर लगा ।
पहुंचा तो देखा सैकड़ो की भीड़ थी संपर्क स्थल पर एक दादा टाईप के भक्त ने मनी रिसीट की जांच की और ससम्मान लाईन मे लगा दिया । नियत स्थान पर पहुचते ही मैने नजर घुमाई चारो ओर भक्ती का सागर हिलोरे मार रहा था वही कुछ मेरे टाईप के असंतुष्ट भी थे जो कि बलपूर्वक लाये गये थे । बाबा का कार्यक्रम शुरू हुआ सबसे पहले लाटरी लगी वाले अंदाज मे कुछ भक्तो ने बाबा का गुणगा्न शुरू किया किसी की लड़की की शादी बाबा के आशीर्वाद से हुई थी किसी का व्यापार रतन टाटा की तरह चमक गया था लाईने ऐसी बोल रहे थे कि मानो स्वयं कादर खान ने लिखी हो मैने मन ही मन अनुमान लगाया कम से कम 3000 प्रतिदिन लेते होंगे । उधर पत्नी ने विजयी निगाहो से मुझे देखा मानो मुझे उसका उपकार मानते हुये रात को आधा घंटा अतिरिक्त हाथ पैर दबाने का निर्देश दे रही हो ।
पूरा पढ़ने के लिये http://aruneshdave.blogspot.com/2011/03/blog-post_22.html
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मानवता-सौहार्द-नैतिकता-भाई चारे की शिक्षा देते संत-डॉ कल्बे सादिक
अरविन्द विद्रोही बाराबंकी के कर्बला में मजलिस ए गम में शामिल होने का निमंत्रण वरिष्ट पत्रकार रिजवान मुस्तफा के द्वारा मुझे प्राप्त हुआ तो अपने सामाजिक सरोकार व पत्रकारिता के धर्म का पालन करने हेतु मैं वहा पहुच गया |तक़रीबन दोपहर १२ बजे इस्लामिक - शिया धर्म गुरु डॉ कल्बे सादिक समारोह स्थल पर आये, मंच पर आते ही उन्होंने उपस्थित जनों से मुखातिब होते हुए कार्यक्रम में देरी से आने के लिए माफ़ी मांगी | आज के दौर में जहा पर लोग अपनी बड़ी गलतियो पर सामाजिक-सार्वजनिक रूप से माफ़ी नहीं मांगते है,उस दौर में एक प्रख्यात हस्ती,एक धर्म गुरु द्वारा जन सामान्य से कार्यक्रम के प्रारंभ में ना आ सकने की माफ़ी मांगना,यकीन मानिये मैं तो हतप्रभ रह गया |और तो और देर से आने की पूर्व सूचना भी धर्म गुरु डॉ कल्बे सादिक ने आयोजक रिजवान मुस्तफा को दे दी थी |उसके बाद भी माफ़ी | आह ! विनम्रता की प्रतिमूर्ति - तुझे मेरा प्रणाम , उसी पल मैंने मन ही मन उन्हें अपना अभिवादन प्रेषित किया | मुझे आभास हुआ की आज यह समारोह कुछ विशिष्ट सन्देश प्राप्ति का स्थल बनेगा | अपने संबोधन में डॉ कल्बे सादिक ने धर्म क्या है ,पर सरल व मृदु वचनों में कहा कि धर्म वो है जो आपको गलत रास्ते पर जाने से बचाए | आज धर्म को बचाने की बात होती है,कोई इन्सान धर्म कैसे बचा सकता है? धर्म तो आपको बचाने ,सही रास्ता दिखाने के लिए है | धर्म के नाम पर मतभेद ख़त्म करने की अपील करते हुए धर्म गुरु डॉ कल्बे सादिक ने कहा कि आज यहाँ कर्बला में शिया - सुन्नी, हिन्दू सभी धर्म के मानने वाले मौजूद है | मैं हज़रत साहेब को मानने वालो से पूछना चाहता हूँ कि हज़रत साहेब से जंग क्या हिन्दू ने लड़ी थी? बैगैर ज्ञान के मनुष्य जानवर से भी बदतर होता है | खुदा,परमेश्वर जो भी कहिये उसने सबसे बुद्धिमान मनुष्य को बनाया है और यह मनुष्य अपने कर्मो से अपने को सबसे नीचे गिरा लेता है | ज्ञान व विज्ञानं इन्सान व इस्लाम के फायदे के लिए है | ज्ञान हासिल करना नितांत जरुरी है | कई घटनाओ का हवाला देते हुए डॉ कल्बे सादिक ने कहा कि जुल्म के खिलाफ लड़ने वाला ही सच्चा मुसलमान होता है , जुल्म करने वाला मुसलमान हो ही नहीं सकता | आतंकवाद के सवाल पर धर्म गुरु डॉ कल्बे सादिक ने कहा कि मैं यह जिम्मेदारी लेता हूँ कि हज़रत मोहम्मद साहेब को मानने वाला कभी भी दहशत गर्त हो ही नहीं सकता , जो दहशत गर्त हैं और जो बेगुनाहों का खून बहाते है उनसे पूछा जाये यकीनन वो जुल्मी यजीद को मानने वाले ही होंगे | मोहम्मद साहेब को मानने वाला जुल्मी हो ही नहीं सकता | बहकावे और उकसाने वाली कार्यवाहियो से बचे रहने तथा अमन चैन की पैरोकारी करने की अपील करते हुए डॉ कल्बे सादिक ने एक वाकया सुनाया | उन्होंने बताया की यह बात हज़रत साहेब के दौर की है | एक अरबी उस मस्जिद में पाहुजा जिसे खुदा की इबादत के लिए रसूल ने अपने हाथो से तामीर की थी | उस अरबी ने मस्जिद में पेशाब करना शुरु कर दिया , वहा रसूल के साथ मौजूद सेवक ने उस अरबी को रोकना चाहा,रसूल ने सेवक से कहा - जरा ठहरो , उसे कर लेने दो पेशाब | वहा गन्दगी फैला कर वह अरबी वापस चल दिया , अब रसूल ने कहा मस्जिद में जो गन्दगी इसने पेशाब करके फैलाई है , उसको पानी से धो कर साफ़ कर दो | कई बाल्टी पानी डाल डाल कर वहा सफाई करवाई खुद रसूल ने | अरबी वहा आया था खलल पैदा करने के मकसद से व मार पीट के इसदे से | रसूल के इस प्रकार के व्यव्हार से वह अरबी भी रसूल का मुरीद हो गया | यह वाकया सुना कर डॉ कल्बे सादिक ने कहा कि यह है हज़रत मोहम्मद साहेब का चरित्र | इस छमा और विनम्रता की राह पर चल कर रसूल ने इस्लाम को विस्तार दिया था और आज आप मुसलमान क्या कर रहे हो ? यह सोचिये...हिन्दुओ के त्यौहार होली में रंग अगर मस्जिद की दीवारों पर पड़ जाये तो आप उत्तेजित हो जाते हो | अरे..होली का रंग तो पाक होता है, दीवारों पर चूना लगा कर दीवारों को फिर से चमका सकते हो लेकिन आप लोग तो इंसानों को चुना लगा सकते हो लेकिन मस्जिद की रंग लगी दीवारों पर चूना नहीं लगा सकते हो | इस्लाम जुल्म के खिलाफ लड़ने का , आपसी भाईचारे का , विनम्रता का सन्देश देता है | धर्मगुरु डॉ कल्बे सादिक ने मुसलमानों से कहा कि आप कि पहचान क्या है ? आज आप समाज में लम्बे कुरते , ऊँचे पायजामे , लम्बी दाढ़ी , टोपी से पहचाने जा रहे है | जिस जगह मीनारे, गुम्बद , मस्जिद होती है - लोग कहते है यहाँ मुसलमान रहते है | आज आपका बाहरी व्यक्तित्व आपकी पहचान बन चुका है | इस्लाम व मुसलमान का वास्तविक रूप सामने लाने की जरुरत है | डॉ कल्बे सादिक ने बताया कि सही मायने में मुसलमान बस्ती वो है जहा पर कोई मांगने वाला ना हो सब देने वाले हो | मस्जिद खुदा का घर होता है | वह पाक जमीन पर बननी चाहिए | किसी दुसरे की जमीन पर जुल्म जबरदस्ती के जोर से मस्जिद बनाने से वो खुदा का घर नहीं हो जाता | जुल्मी शासक लोग धर्म का इस्तेमाल अपने गुनाहों और जुल्मो को छिपाने के लिए धर्म का बेजा इस्तेमाल करते रहे है | ऐसे जुल्मी कभी भी खुदा के बन्दे नहीं हो सकते | जनाब डॉ कल्बे सादिक ने इस पर भी एक वाकया सुनाया | उन्होंने कहा कि अगर एक जरुरत मंद का मकान बनवा दिया जाये तो खुदा उसको अपना आशियाना मानता है | जरुरतमंदो की मदद करना खुदा के बताये राह पर चलना है | नेक कामों से इस्लाम का विस्तार हुआ , आज नेकी की राह पर सभी को चलने की जरुरत है | समाज में और विशेष कर मुसलमानों में शिक्षा की कमी पर धर्म गुरु डॉ कल्बे सादिक ने बार बार चिंता व्यक्त की | उन्होंने कहा कि विश्व हिन्दू परिषद् के नेता प्रवीण भाई तोगड़िया ने कहा है कि हर मस्जिद के बगल में मंदिर बनाया जायेगा, मैं उनसे अनुरोध करता हूँ कि वे हर मस्जिद के बगल में विद्या मंदिर की स्थापना जरुर करवा दे | जिससे हिन्दुओ के साथ साथ मुसलमान बच्चे भी शिक्षा ग्रहण करे और ज्ञान कि रौशनी में भारत की तरक्की में अपना योगदान करे | अंत में अपनी वाणी को विराम देने के पहले इस्लामिक शिया धर्म गुरु डॉ कल्बे सादिक ने कहा कि बैगैर ज्ञान के इन्सान व देश - समाज की तरक्की नामुमकिन है | इसलिए ज्ञान हासिल कीजिये | समापन के अवसर पर कर्बला की जंग के वाकये को याद करते व दिलाते हुए धर्म गुरु ने सवाल किया कि यह जंग क्या हिन्दुओ से लड़ी गयी थी ? अरे ..वो यजीद और उसके लोग थे,और वो भी पांचो वक़्त के नमाज़ी ही थे ..जिन्होंने रसूल के नवासे को प्यासा ही मार डाला था | यह बात जन समुदाय को उद्वेलित कर गयी | लोगो की सिसकियाँ रुदन में तब्दील हो चुकी थी , इसी समय डॉ कल्बे सादिक ने कहा कि खुदा ना करे कभी ऐसा हो, लेकिन अगर कही फसाद हो जाये और आप मुसलमान किसी हिन्दू बस्ती में अपने परिवार व बच्चो के साथ पीने का पानी मांगोगे तो यह मेरा यकीन है कि हिन्दू फसाद भूल कर आपको अपने घर में पनाह देंगे, पानी - खाना देंगे , लेकिन इतिहास गवाह है कि उन यजीद के मानने वालो ने प्यासा ही मार डाला था | कर्बला का वह दर्दनाक मंज़र सुनकर रुदन कर रहे जन समुदाय का ह्रदय जुल्म के खिलाफ लड़कर शहीद हुए कर्बला के वीरो को अपने श्रधा सुमन अर्पित करने लगा था | इन्सान मात्र से प्रेम ,शिक्षा ग्रहण करने की सलाह , जरुरत मंदों की मादा , अन्याय - जुल्म से लड़ने की सीख़ देते हुए इस्लामिक शिया धर्म गुरु डॉ कल्बे सादिक ने अपनी वाणी को विराम दिया |
Posted by अरविन्द विद्रोही 1 comments
प्राकृतिक, शुद्ध, सात्विक और शाकाहारी नमक – सैंधा नमक
हमारे शरीर को रोज 4-5 ग्राम नमक की आवश्यकता होती है। हम में से अधिकतर लोग नमक की कमी से ग्रसित हैं, हालाँकि हमारा शरीर सोडियम क्लोराइड की आवश्यकता से ज्यादा मात्रा के बोझ से पीड़ित है। हम रोज औसतन 12 से 21 ग्राम टेबल साल्ट या सोडियम क्लोराइड खा रहे हैं, जब कि हमारे गुर्दे रोज मात्र 5.29 से 7.77 ग्राम सोडियम क्लोराइड का उत्सर्जन कर सकते हैं। इससे ज्यादा सोडियम क्लोराइड हमारे शरीर के लिए एक कोशिकीय विष के समान है, हृदय, गुर्दों और सभी अंगों पर एक बोझ है और शरीर जल्दी से जल्दी इससे छुटकारा पाने की कौशिश करता है। सोडियम क्लोराइड की इस ओवर डोज़ को शरीर पानी में मिला कर, उसमें सोडियम तथा क्लोराइड को ऑयनाइज़ कर निष्क्रिय करने का प्रयास करता है। इस प्रक्रिया में कोशिकाओं से उत्कृष्ट पानी बाहर निकल जाता है और कोशिकाएँ निर्जलीकृत (डिहाइड्रेट) होकर मरने लगती हैं। इस तरह टेबल साल्ट के ज्यादा सेवन से शरीर में सूजन आ जाती है, यानी ऊतकों में अम्लीय पानी इकट्ठा हो जाता है। इसलिए चिकित्सक नमक कम खाने की सलाह देते हैं।
Dr. O.P.Verma
M.B.B.S.,M.R.S.H.(London)
President, Flax Awareness Society
7-B-43, Mahaveer Nagar III, Kota (Raj.)
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Posted by Shri Sitaram Rasoi 6 comments