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29.6.11

निरमा बाबा की चौथी आंख


                                                               

.  अष्टावक्र


एक दिन सुबह सुबह पत्नी ने मेरे हाथो से झाड़ू लेकर गर्मागरम चाय की प्याली रख दी । आसन्न खतरे को भांप कर मै सर्तक हो गया । श्रीमती ने कहा सुनो आज कल मेरा समय खराब चल रहा है क्यो न किसी अच्छे बाबा की शरण मे चलें | मै मन ही मन भुनभुनाया झाड़ू पोछा मै कर रहा हूं और समय इनका खराब चल रहा है । श्रीमती ने निरमा बाबा की जानकारी दी बड़े पहुंचे हुये बाबा हैं टीवी चैनलो मे छाये रहते हैं । मैने बहुत समझाया कि बाबा लोगो का चक्कर बेकार है भाई केवल टोपी देते हैं अरे उनमे ऐसी शक्तियां होती तो खुद का भला पहले करते काहे गरीबो से पैसे लेने की दरकार होती और ये टीवी वाले भी इनको नैतिकता से कोई लेना देना थोड़े है जिससे पैसा मिला उसको दिखा दिया । लेकिन समझाना व्यर्थ था पूरे तीन हजार रूपये बाबा के बैंक खाते मे जमा करके बाबा से उनके एक शिविर मे मिलने का नंबर लगा ।



पहुंचा तो देखा सैकड़ो की भीड़ थी संपर्क स्थल पर एक दादा टाईप के भक्त ने मनी रिसीट की जांच की और ससम्मान लाईन मे लगा दिया । नियत स्थान पर पहुचते ही मैने नजर घुमाई चारो ओर भक्ती का सागर हिलोरे मार रहा था वही कुछ मेरे टाईप के असंतुष्ट भी थे जो कि बलपूर्वक लाये गये थे । बाबा का कार्यक्रम शुरू हुआ सबसे पहले लाटरी लगी वाले अंदाज मे कुछ भक्तो ने बाबा का गुणगा्न शुरू किया किसी की लड़की की शादी बाबा के आशीर्वाद से हुई थी किसी का व्यापार रतन टाटा की तरह चमक गया था लाईने ऐसी बोल रहे थे कि मानो स्वयं कादर खान ने लिखी हो मैने मन ही मन अनुमान लगाया कम से कम 3000 प्रतिदिन लेते होंगे । उधर पत्नी ने विजयी निगाहो से मुझे देखा मानो मुझे उसका उपकार मानते हुये रात को आधा घंटा अतिरिक्त हाथ पैर दबाने का निर्देश दे रही हो ।

पूरा पढ़ने के लिये http://aruneshdave.blogspot.com/2011/03/blog-post_22.html

1 comment:

Anonymous said...

are bhai kuch likhne kop nahi milta hain kya . kya bekar mein vyarth ki batte likhte ho . jab kise se mahan nahi ban sakte ho to uski ninda ya comment nahi karni chhayie