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24.6.11

आजाद भारत में गुलाम पहनावा

क्लबों में ड्रेस कोड


लक्ष्मी पुत्र व सरस्वती पुत्र आमने-सामने

शंकर जालान

क्लबों में ड्रेस कोड को लेकर पिछले दिनों देश की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले कोलकाता शहर में काफी हंगामा व प्रदर्शन हुआ था। प्रसिद्ध चित्रकार शुभप्रसन्ना को क्लब के अनुरूप पोशाक नहीं पहने रहने के कारण प्रवेश से रोक दिया गया। इसके बाद शहर के बुद्धिजीवियों और संपन्न यानी लक्ष्मीपुत्रों और क्लब संस्कृति के प्रेमियों के एक बहस छिड़ गई। जहां, बुद्धिजीवी वर्ग के लोग ड्रेस कोड को आजाद भारत में गुलाम पहनावे बता रहे हैं। वहीं क्लब प्रेमियों के मुताबिक क्लबों में ड्रेस कोड होना गलत नहीं है। इसके पीछे उनका तर्क है कि क्लब आम लोगों के लिए नहीं, केवल सदस्यों के लिए होता है। इसीलिए अगर क्लब के सदस्यों को ड्रेस कोड से कोई परहेज नहीं है तो अन्य लोगों को भी नहीं होनी चाहिए।
ड्रेस कोड का मामला कोई नया नहीं है और ऐसा भी नहीं है कि पहली बार विवादों में आया हो। मशहूर क्रिकेटर व भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सुनील गवास्कर को भी ड्रेस कोड के कारण लाड्स के घुसने से रोक दिया गया था। महानगर कोलकाता में दर्जनों ऐसे क्लब है, जिसके अपने-अपने नियम-कानून व ड्रेस कोड हैं।
दक्षिण कोलकाता के २४१, आचार्य जगदीश चंद्र बोस रोड स्थित द कलकत्ता क्लब लिमिटेड में बीते दिनों ड्रेस कोड की वजह से चित्रकार शुभप्रसन्ना को घुसने नहीं दिया गया। इससे पहले भी कई मशहूर हस्तियों को ड्रेस कोड बंधन के कारण क्लब में प्रवेश करने से वंचित किया गया था। इनमें हाल ही दिवंगत हुए मशहूर चित्रकार एमएफ हुसैन, पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी व सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार शामिल हैं। इसके अलावा मध्य कोलकाता के स्ट्रांड रोड स्थित कलकत्ता स्वीमिंग क्लब में भी युवा समाजजेवी संदीप भूतोड़िया को कुर्ता-पायजामा पहने रहने के कारण घुसने से रोक दिया गया था।
ध्यान रहे कि कलकत्ता क्लब का स्थापनी रंगभेद व जाति भेद के खिलाफ ब्रिटिश जमाने में की गई थी। इसके स्थापना के पीछे की कहानी यह है कि ब्रिटिश काल में एक बार विशिष्ट भारतीय राजन मुखर्जी को कलकत्ता के एक और पुराने व प्रतिष्ठित क्लब बंगाल क्लब के डाइनिंग रूम में प्रवेश करने से रोक दिया गया था। उन्हें रोके जाने का एक मात्र कारण यह था कि वे भारतीय थे। मुखर्जी तत्कालीन भारत के वायसराय लार्ड मिंटो के अतिथि थे। उन्हीं के बुलावे पर वे बंगाल क्लब पहुंचे थे। इस घटना से नाराज कुछ भारतीय व युरोपियन लोगों ने एक नए क्लब की स्थापना करने की योजना बनाई। इस तरह १९०७ में कलकत्ता क्लब की स्थापना की गई। इसकी स्थापना उस नीति के मद्देनजर की गई कि यहां सदस्यता के लिए रंगभेद या जाति भेद नहीं पाना जाएगा। कलकत्ता क्लब में भारतीय व यूरोपियनों को समान रूप से प्रवेश करने की इजाजत होगी। थ्रोटोन नामक आर्किटेक्ट द्वारा तैयार की गई डिजाइन वाले इस क्लब का औपचारिक उद्घघाटन ३ फरवरी १९१५ को बंगाल के तत्कालीन गवर्नर सर थॉमस कार्मिकेल ने किया था। उस वक्त ड्रेस कोड के तहत यह तय किया गया कि क्लब में पारंपरिक भारतीय परिधान पहनकर किसी भी व्यक्ति को प्रवेश करने पर पाबंदी होगी। क्लब में प्रवेश करने के लिए पश्चिमी पोशाक यानी शर्ट, पैंट व जूता पहनना अनिवार्य होगा।
मालूम हो कि २००७ में भी यह क्लब महिलाओं की सदस्यता पर पाबंदी को लेकर विवादों में आया था, लेकिन महिलाओं के विरोध के बाद पाबंदी हटा ली गई थी।
पिछले दिनों हुए झमेले व क्लब के ड्रेस कोड की व्याख्या करते हुए क्लब के सचिव कर्नल बी. मुखर्जी ने कहा कि क्लब में कुर्ता, दक्षिण भारतीय स्टाइल की धोती, बिना बटन की कमीज, चप्पल व सैंडल पहनकर प्रवेश की इजाजत नहीं है। उन्होंने गर्व के साथ कहा- हम केवल शर्ट, पतलून व जूते पहनकर आने वालों को ही प्रवेश देते हैं।
गौरतलब है कि १०४ साल पुराने महानगर के आभिजात्य कलकत्ता क्लब में धोती कुर्ते के कारण प्रवेश से वंचित विशिष्ट चित्रकार शुभप्रसन्ना ने क्लब के पदाधिकारियों की प्रतिबद्धता पर सवाल उठाए और कहा कि वे लोग कौन हैं और किन परिवारों और बैक ग्राउंड से आए हैं, उन्हें पूरी जानकारी है लेकिन वे इस विवाद को जन्म नहीं देना चाहते लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि किसी आजाद मुल्क में गुलामी के समय के ड्रेस कोड को मानने की इतनी बड़ी प्रतिबद्धता क्लब पदाधिकारियों की ओर से दिखाई जा रही है। वरिष्ठ कलाकार शुभप्रसन्ना के अपमान से गुस्साए बुद्धिजीवियों ने कलकत्ता क्लब के सामने जुटे और गुलामी के दौर के ड्रेस कोड को रद्द करने की मांग की। प्रदर्शन करने वालों में विभास चक्रवर्ती, जय गोस्वामी, तरुण सान्याल, अर्पिता घोष प्रमुख थे। क्लब के समक्ष विरोध प्रदर्शित कर रहे बुद्धिजीवी प्रतुल मुखोपाध्याय ने कहा कि कलकत्ता क्लब या कोई क्लब हमारी संस्कृति से अपने आप को अलग कैसे कर सकता है। धोती कुर्ता जिसे बंगाली का पोशाक कहा जाता है, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना चुका है। मुखोपाध्याय ने कहा कि आज के दौर में इस तरह की शर्ते हास्यास्पद जान पड़ती हैं और इन्हें जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है। शुभप्रसन्ना को क्लब में प्रवेश करने की अनुमति न दिए जाने को विशिष्ट फिल्मकार गौतम घोष ने भी अनुचित कहा है। नाट्यकर्मी सांवली मित्र, वरिष्ठ लेखिका महाश्वेता देवी तथा फिल्म अभिनेत्री अपर्णा सेन ने भी सम्पूर्ण प्रकरण को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है।
ड्रेस कोड के सिलसिले में हिंदुस्तान क्लब के पूर्व अध्यक्ष सीताराम शर्मा के शब्दों पर ड्रेस कोड होना कोई गलत नहीं है। वे कहते हैं कि कोई भी क्लब सार्वजनिक या आम लोगों के लिए नहीं होता है। क्लब एक निजी संस्थान है और उसमें केवल सदस्यों को प्रवेश की अनुमति होती है। इसलिए अगर सदस्यों को ड्रेस कोड पर कोई आपत्ति नहीं है तो बाहरी लोगों को इस मामले में बोलने का कोई हक नहीं है। हर क्लब को अपने कायदे-कानून बनाने का हक है। क्या हिंदुस्तान क्लब में भी कोई ड्रेस कोड है? इसके जबाव में उन्होंने कहा कि नहीं। हां हाफ पैंट पहन कर स्वीमिंग पुल के पास जरूर जा सकते है, लेकिन डाइनिंग रूम में हाफ पैंट की इजाजत नहीं है। उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान क्लब की स्थापना १९४६ में हुई थी। उस वक्त कलकत्ता में जितने में क्लब थे सारे विदेशी थी और सभी में ड्रेस कोड था, इसीलिए हिंदुस्तान क्लब के ड्रेस कोड से अलग रखा गया।
वहीं, युवा समाजसेवी संदीप भूतोड़िया ड्रेस कोड को सिरे से गलत मानते हैं। उन कहना है कि स्वतंत्र भारत में इस तरह की गुलामी का बड़े पैमाने पर विरोध करना चाहिए। उन्होंने बताया कलकत्ता क्लब का जिक्र करते हुए कहा कि शुभप्रसन्ना के मामले में भले ही क्लब प्रबंधन बड़ी-बड़ी बात करे, लेकिन मैं खुद भुक्तभोगी हूं और इस बात का साक्षी भी की कलकत्ता क्लब समय-समय और अपनी इच्छा के मुताबिक नियमों में बदलाव करते रहता है। उन्होंने कहा कि बीते साल क्लब ने उन्हें किसी सम्मान समारोह में आंमत्रित किया था। उन्होंने क्लब प्रबंधन को साफ शब्दों में कह दिया था कि वे ज्यादातर कुर्ता-पायजामा पहनते हैं और समारोह के दिन भी कुर्ता-पायजामा पहनकर ही आएंगे, तो प्रबंधन ने उन्हें स्वीकृति दे दी। भूतोडि़या के मुताबिक क्लब के इस ढुलमुल रवैए को आप क्या कहेंगे। उन्होंने कहा कि यह कहते हुए शर्म आती है कि कलकत्ता स्वीमिंग क्लब के प्रवेश द्वार पर यह लिखा रहता था- कुत्ते व भारतीयों का प्रवेश वर्जित। इसी तरह टालीगंज क्लब में भी प्रवेश के लिए कुत्तों व आया (नौकरानी) की मनाही है। उन्होंने कहा भले की ड्रोस कोड वाले क्लबों की स्थापना आजादी के पहले हुई हो, लेकिन अब जब आजादी को ६४ साल हो गए हैं, तो इस तरह की पाबंदी का कोआ औचित्य नहीं है।
इस संदर्भ में कलकत्ता क्लब के अध्यक्ष डॉ. मनोज साहा ने टेलीफोन पर बात करते हुए कहा कि क्लब का कानून-कायदा सबसे ऊपर है। चाहे पीएम (प्रधानमंत्री) हो या सीएम (मुख्यमंत्री) अगर क्लब में प्रवेश करना है तो ड्रेस कोड मानना होगा। क्या आजाद भारत में गुलाम पहनावे यानी ड्रेस कोड का होना उचित है? इसका उत्तर देते हुए साहा ने कहा कि इसमें आजादी व गुलामी की कोई बात नहीं है।

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