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27.6.11

अखबार के मालिक और मेरी भिड़ंत

शाम के वक्त एक साहित्य प्रेमी अमीर मित्र का फ़ोन आया उनके फ़ार्म हाउस मे वाईन एंड डाईन का न्योता था । मुफ़्त मे पैग लगाने की खुशी मे मै दनदनाता पहुंच गया । वहां एक सज्जन और विराजमान थे मित्र ने मेरा उनसे परिचय करवाया वे मध्य भारत के सबसे बड़े अखबार के मालिक और संपादक थे । उन्होने ससम्मान मुझसे हाथ मिलाया बैठने के बाद मित्र ने मेरा परिचय दिया भाईसाहब बड़े अच्छे व्यंग्य कार हैं  । यह सुनते ही सज्जन के चेहरे पर तिरस्कार के भाव उभरे मन ही मन उन्होने अनुमान लगाया जरूर इस लेखक की चाल होगी पार्टी के बहाने अपने लेख पढ़वायेगा । पर टेबल पर रखी शीवाज रीगल की बोतल देख उनकी नाराजगी कुछ कम हो गयी मन मार कर बोले चलिये इसी बहाने आपसे मुलाकात हो गयी ।

मैने भी मन ही मन सोचा भाड़ मे जाये मुझे इससे क्या लेना देना अपन तो पैग लगाओ । यहां वहां की चर्चा होती रही और अखबार के  मालिक साहब इंतजार करते रहे कि कब मै अपनी रचना उन्हे दिखाउंगा । दो राऊंड होने के बाद भी जब लेख प्रकाशित करने की कोई चर्चा न हुई तो मालिक साहब का माथा ठनका पांच राउंड होने के बाद तो सब गहरे मित्र बन जाते हैं ऐसे मे बात टालते न बनेगी । मालिक साहब ने बात मेरे लेखन पर मोड़ी भाई साहब कोई रचना साथ लाये हैं क्या मैने पूछा किस लिये हकबकाये मालिक साहब ने कहा अखबार मे छापने के लिये और क्यों । मैने पूछा किस अखबार में वे बोले मै छापूंगा तो अपने अखबार मे ही ना लगता है आप मेरी बात कुछ समझे नही । मैने कहा आप तो कोई अखबार निकालते ही नहीं मालिक साहब ने असहाय भाव से मित्र की ओर देखा मानो कह रहें हो दो पैग मे लग गयी है

मालिक साहब ने याद दिलाया वे फ़लां अखबार के मालिक संपादक हैं । मैने पलट कर जवाब दिया वो अखबार नही सरकार का मुखपत्र है भाट और चारण जैसा अंतर यही है कि सरकार की छोटी मोटी गलतिया छाप दी जाती है । हां कभी कभी उसमे मंहगाई का जिक्र भी कर दिया जाता है । मालिक साहब बैकफ़ुट पर थे आप गलत समझ रहे हैं हमारा अखबार दूसरो से अलग है हम किसी के दबाव मे नही आते । मैने कहा आम जनता को टोपी पहनाईगा मुझे नही । सरकार के हर विभाग मे खुला कमीशन बट रहा है घपले हो रहे हैं और आपके पत्रकार भी भीख मांगते वहीं पाये जाते हैं कभी छापा आपने । क्या छापते हैं आप "अन्ना हजारे ने अपने भांजे को कांग्रेस मे भरती किया" "बाबा रामदेव खुद को राम कह रहे हैं" । शांती भूषण नजर आ रहा है आपको भ्रष्टाचार का प्रदूषण नही , सलवा जुड़ूम के नाम पर हो रहा अत्याचार तो खैर आपको मालूम ही न होगा नक्सलवाद की चक्की पर पिस रहे आदिवासियो के बारे में क्या किया आपने कुछ नही । छापते क्या हैं आप चमत्कारी अंगूठी फ़र्जी बाबाओ के विज्ञापन और तो और  वो लिंगवर्धक यंत्र कभी उपयोग किया है आपने क्या मालिक साहब जो दूसरो को बतलाते हो

पूरा पढ़ने के लिये   http://aruneshdave.blogspot.com/2011/04/blog-post_26.html

1 comment:

pushpendra kumar sahu said...

sir aap ka lek padkar aacha laga aap ne sandar tareke se aapni batt keh di bemisal